उपन्यास- ज्यों मेहँदी को रंग, नई देवयानी,
घरवास, अतिशय कहानी संग्रह- साक्षात्कार,
स्पर्श की तासीर, एक दीये की दीवाली निबंध संग्रह- आईने
के सामने, क ख ग, मानवी के नाते लघुकथा संग्रह- देखने
में छोटे लागे
पुराण के बच्चे, बिहार की लोककथाऍं: भाग 1,2; राजपथ से लोकपथ पर (राजमाता विजयाराजे
सिंधिया की आत्मकथा का संपादन)
मृदुला सिन्हाका जन्म श्रीमती अनुपा देवी व बाबू छबीले सिंह के
यहाँ 27 नवम्बर 1942 कोहिन्दू पंचांगके अनुसारराम-विवाहके शुभ दिनबिहारराज्य मेंमुजफ्फरपुरजिले के छपरागाँवमें हुआ था।मनोविज्ञानमें एम०ए० करने के बाद उन्होंने बी०एड० किया औरमुजफ्फरपुरके एक कॉलेज में प्रवक्ता हो गयीं। कुछ समय तकमोतीहारीके एक विद्यालय में प्रिंसिपल भी रहीं किन्तु अचानक
उनका मन वहाँ भी न लगा और नौकरी को सदा के लिये अलविदा कहके उन्होंनेहिन्दी साहित्यकी सेवा के लिये स्वयं को समर्पित कर दिया। उनके पति डॉ॰ रामकृपाल सिन्हा, जो
विवाह के वक़्त किसी कॉलेज मेंअंग्रेजीके प्रवक्ता हुआ करते थे, जब
बिहार सरकार में मन्त्री हो गये तो मृदुला जी ने भी साहित्य के साथ-साथ राजनीति की
सेवा शुरू कर दी।
वेगोवाकेराज्यपाल पद पर थी। वे एक सुविख्यातहिन्दीलेखिका के साथ-साथभारतीय जनता पार्टीकी केन्द्रीय कार्यसमिति की सदस्य भी थी। इससे पूर्व वेपाँचवाँ स्तम्भके नाम से एक सामाजिकपत्रिकानिकालती थी।
श्रीमती सिन्हाअटल बिहारी वाजपेयीके प्रधानमन्त्रित्व-काल में केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्षभी रह चुकी हैं। उनकी पुस्तकएक थी रानी ऐसी भीकी पृष्ठभूमि पर आधारित राजमाता विजया राजे सिन्धिया को लेकर एक फिल्मभी बनी थी।
आपका
साहित्यकार बनने का मार्गक्रमण कहां सेे शुरू हुआ? मैं हॉस्टल में रहती थी। वहां
कुछ पैरोडी बनाती थी, कविताएं लिखती थी। नियमित रूप से लिखना मैंने एम.ए. करने के
बाद शुरू किया। मेरे ससुर जी का भी एक ही सपना था कि मेरी बहू को बड़ा अफसर बनाना
है, साहित्यकार बनाना है। उनकी साहित्य में गहरी रुचि थी। वे खुद भी कविताएं लिखते
थे। वे जब लगभग मरणासन्न अवस्था में थे तो ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ नामक पत्रिका
में मेरी कहानी प्रकाशित हुई थी। मेरी फोटो के साथ प्रकाशित हुई उस कहानी को जब
मेरे देवर ने ससुर जी को दिखाया तो उन्होंने कहा यह तो ठीक है, उसे अभी बहुत ऊंचा
जाना है। मैं भी वहीं खड़ी थी। मेरी आंख में आंसू आ गए और मैंने मन में सोचा अभी तो
मैंने लिखना शुरू किया है और मुझे उनका आशीर्वाद भी मिल गया। राजनीति के लिए भी वे
हमेशा अपने बेटे से कहते थे कि इन्हें चुनाव लड़वाइये। मेरे ससुर जी सामाजिक
कार्यकर्ता थे। म. गांधी के साथ उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया था। महिलाओं को
समान अधिकार देना इत्यादि जैसी बातें वहीं से हमारे परिवार में आईं।
आपकी
जीवन यात्रा बहुत सकारात्मक रही है इस सोच के लिए अपना गुरु किसे मानती हैं? मैंने हर किसी से
सीखने की कोशिश की है। परंतु मैं गुरू अपने पति को ही मानती हूं। साहित्य भी उच्च
कोटि का हो तथा राजनीति में भी स्वच्छ प्रतिमा के साथ कैसे काम किया जाए ये
उन्होंने ही मुझे सिखाया है। वे स्वयं भी संतुष्ट व्यक्ति हैं। उनके जीवन से ही
मैंने सीखा है।
आपने
अभी तक ऐसे कौन से कार्य किए हैं जो महिलाओं के विकास में लाभदायक हों। मैंने अपने साहित्य के माध्यम
से महिलाओं में विश्वास जगाने का प्रयत्न किया। एक सामान्य सी घरेलू महिला भी
कितनी सशक्त होती है यह सामने लाने का प्रयत्न किया। सन १९८० के आसपास एक नारा
काफी गूंजा था- ‘‘हम भारती की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं।’’ मैंने जब यह सुना
तो मैंने सोचा कि भारतीय नारी की प्रतिमा ऐसी नहीं होनी चाहिए। मैं उसमें थोड़ा सा
परिवर्तन किया और कहा- ‘‘हम भारत की नारी हैं, फूल और चिंगारी हैं।’’ सृष्टि ने
नारी को विशेष रूप दिया है। किसी भी सभ्य महिला को, आदर्श महिला को देखकर लोगों को
प्रसन्नता होती है। महिला सभी को वात्सल्य देती है, सभी का पालन पोषण करती है, सभी
की सेवा करती है, सभी को आनंदित रखती है। यह उसका फूल की तरह ही स्वभाव है। यह मूल
स्वभाव हमें नहीं छोड़ना है, परंतु यदि कोई इस फूल को कुचलने की कोशिश करता है, तो
हम चिंगारी बन जाती हैं। दूसरी बात मैंने कही कि पुरुष
और महिला की बराबरी की बात नहीं की जानी चाहिए। लड़का लड़की एक समान होते हैं। बल्कि
बेटियां विशेष होती हैं। उसे तो प्रकृति ने विशेष बनाया है। परंतु इसका यह अर्थ
नहीं कि पुरुष कुछ नहीं है। पुरुष तो उसका सबसे बड़ा सहयोगी है। उसी के कारण महिला
के गुणों का प्रस्फुटन होता है। प्रकृति ने दोनों को एक ही समान बनाया है। महिला
पुरुष का सम्मान है। हमारे समाज में महिलाओं को डोली में ले जाया जाता है। उसका
सम्मान, रक्षण किया जाता है। २५ वर्ष पहले मेैं नारा दिया था- ‘‘बेटी का सम्मान
करें हम, जनमे तो अभिमान करें हम।’’ इस तरह कभी नारों के द्वारा, कभी साहित्य के
द्वारा, कभी प्रस्ताव पारित करके मैंने महिलाओं के लिए कार्य किया।….
श्रद्धांजलि!
संपादक:- युवाकविगोलेन्द्रपटेल
【काशीहिंदूविश्वविद्यालयमें स्नातक तृतीय वर्ष का
छात्र】
संपर्क सूत्र :-
पता : ग्राम-खजूरगाँव , पोस्ट-साहुपुरी , जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश , भारत 221009