शिशु और शब्द (दो कविताएं)
प्रकृति-प्रेमी कवि गोलेन्द्र पटेल की दो कविताएँ (डॉ० उदय प्रताप पाल भैय्या के सुपुत्र प्रिय अहिंसक जी के साथ खेलते हुए गोलेन्द्र पटेल) 1). हम बच्चे के साथ खेल रहे हैं _____________________________________________ हम अनुभव से बुजुर्ग हैं पर, अभिव्यक्ति से जवान बच्चों के साथ खेलना खिलना ही नहीं, बल्कि बचपन की स्मृतियों से मिलना भी है और कुछ खुलना भी! शिशु के साथ खेलने में जो मज़ा है वह शब्दों के साथ खेलने में नहीं हम बच्चे के साथ खेल रहे हैं हम बच्चे को खेला रहे हैं हमारे खेल में हार-जीत नहीं है सिर्फ़ पत्थर में प्राण फूँकने वाली स्मित मुस्कान है जो बुद्ध की प्रतिमा में है या फिर उन महापुरुषों की मूर्तियों में जो मानवीय मशाल हैं बच्चे बुढ़ापे की ढाल हैं जैसे शब्द बुरे समय में! *** 2). शिशु ही तो शब्द हैं! _____________________________________________ पिता जब लेते हैं कंधे पर पहाड़ के उस पार की धरती, आसमान, सागर दिखता है अभी तक मैंने सिर्फ़ और सिर्फ़ शिशु और शब्द से प्रेम किया है क्योंकि यही दोनों सुखकर्ता और दुखहर्ता हैं मैंने जब भी किसी शिशु को गोद लिया है मैंने महसूस किया है