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शिशु और शब्द (दो कविताएं)

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प्रकृति-प्रेमी कवि गोलेन्द्र पटेल की दो कविताएँ (डॉ० उदय प्रताप पाल भैय्या के सुपुत्र प्रिय अहिंसक जी के साथ खेलते हुए गोलेन्द्र पटेल) 1).   हम बच्चे के साथ खेल रहे हैं _____________________________________________ हम अनुभव से बुजुर्ग हैं  पर, अभिव्यक्ति से जवान  बच्चों के साथ खेलना  खिलना ही नहीं,  बल्कि बचपन की स्मृतियों से मिलना भी है और कुछ खुलना भी! शिशु के साथ खेलने में जो मज़ा है  वह शब्दों के साथ खेलने में नहीं हम बच्चे के साथ खेल रहे हैं  हम बच्चे को खेला रहे हैं हमारे खेल में हार-जीत नहीं है सिर्फ़ पत्थर में प्राण फूँकने वाली स्मित मुस्कान है जो बुद्ध की प्रतिमा में है या फिर उन महापुरुषों की मूर्तियों में  जो मानवीय मशाल हैं बच्चे बुढ़ापे की ढाल हैं जैसे शब्द बुरे समय में! *** 2). शिशु ही तो शब्द हैं! _____________________________________________ पिता जब लेते हैं कंधे पर पहाड़ के उस पार की धरती, आसमान, सागर दिखता है  अभी तक मैंने सिर्फ़ और सिर्फ़ शिशु और शब्द से प्रेम किया है क्योंकि यही दोनों सुखकर्ता और दुखहर्ता हैं मैंने जब भी किसी शिशु को गोद लिया है  मैंने महसूस किया है

बौद्ध महाविहार खजूरगाँव

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  "भारतीय दार्शनिक, सुधारक, सामाजिक वैज्ञानिक, बौद्ध धर्म के संस्थापक एवं प्रवर्तक गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) लगभग 533ई.पू. से 528 ई.पू. के बीच आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन खजूरगाँव (प्राचीन नाम: शेरपुर) से होकर सारनाथ (प्राचीन नाम: मृगदाव, मृगदाय वन) पहुँचे, जहाँ उन्होंने वप्पा, भादिया, महानामा, कौण्डिण्य तथा अस्सागी इन पाँचों को सर्वप्रथम धर्मोपदेश दिया, जिसे बौद्ध इतिहास में धम्मचक्र प्रवर्तन कहते हैं, पाली भाषा में इसे ‘धम्मचक्क पबत्तन’कहा जाता है। महानामा, कौदन्ना, भद्दिया, वप्पा और अश्वजिता यही पाँचों ने बुद्ध का साथ तब छोड़ा था, जब बुद्ध ने आत्महिंसा वाली तपस्या पद्धति (तपस्चर्या) छोड़ी थी। खैर, महात्मा बुद्ध के दस प्रमुख शिष्यों में सारिपुत्र, मौद्गल्यायन, महाकाश्यप, सुभूति, पूर्ण मैत्रायणी-पुत्र, कात्यायन, अनुरुद्ध, उपालि, राहुल व आनन्द का नाम लिया जाता है और उनकी प्रमुख शिष्याएं हैं महाप्रजापति, यशोधरा, रानी खेमा, आम्रपाली आदि। उनके प्रमुख प्रचारक हैं, बिंबिसार, अजातशत्रु, प्रसेनजित, जीवक, अनाथपिडक, अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक,

'ग्राम ज्ञान संस्थान' की कार्यकारी समिति

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 "ग्राम ज्ञान संस्थान"  ( शिक्षा , स्वास्थ्य, सफाई, सेवाभाव ) में आप सभी ग्रामवासियों का सादर स्वागत है।... जुड़ें और औरों को जोड़ें। धन्यवाद! 🙏 “सबसे क़ीमती धन ज्ञान है  विद्यार्थियों का,  विद्यार्थियों के द्वारा,  विद्यार्थियों के लिये 'ग्राम ज्ञान संस्थान' है  शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, सेवाभाव इसकी पहचान है! ” -गोलेन्द्र पटेल 'ग्राम ज्ञान संस्थान' की कार्यकारी समिति :- 1. संरक्षक:- 2. संस्थापक:- 3. अध्यक्ष:- 4. उपाध्यक्ष:- 5. सह उपाध्यक्ष:- 6. महासचिवः- 7. सचिवः- 8. सहसचिव:- 9. उपसचिव:- 10. सह उपसचिव:- 11. कोषाध्यक्षः- 12. सहकोषाध्यक्षः- 13. संगठन मंत्री:- 14. व्यवस्था मंत्री:- 15. सूचना मंत्री:-  16. आंतरिक लेखा परीक्षक:- 17. प्रेस-मीडिया प्रभारी:- 18. परामर्श मंडल प्रमुख:- 19. सलाहकार सदस्य:- 20. कार्यकारिणी सदस्य:- 21. कला पक्ष प्रमुख:- 22. संयोजक:- 23. सदस्यगण:- * ' ग्राम ज्ञान संस्थान ' विद्यार्थियों का, विद्यार्थियों के द्वारा, विद्यार्थियों के लिये है। यह संस्था अव्यावसायिक है। इस संस्था के सभी सदस्य अवैतनिक हैं।  * कार्यकारी समिति के कुछ

कविता : फ़रज़ाना का अफ़साना

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  फ़रज़ाना का अफ़साना ज़माना ख़राब है क्या तुमने सुना है? लाशों को लोरियाँ गाते हुए या फिर दाउदी बोहरों की सफेद दाढ़ियों से स्त्रियों के ख़तना पर असभ्य-स्वर यह कितना अश्क़िया-क्रूर रिवाज़ है! इस अज़ाब से मुक्ति का क्या इलाज है? क़ब्रिस्तान में क़ब्र से आती है आवाज़ वे कर्म नहीं, जाति-धर्म को महत्त्व देते हैं जो जीवन-मर्म नहीं समझते हैं उनको धर्म की खेती करनी है और काटनी है जाति की फ़सल सवधान, राजनीति दंगा-फ़साद की जननी है नफ़रत की नज़र से वंचित नहीं है वक्त जीत का जश्न जारी है विपक्ष में खड़ी नज़्म ज़ख़्मी है क्योंकि वह सत्य का प्रवक्ता है फ़रज़ाना फफकते हुए सोच रही है कि कुछ लोगों के लिये चाँद रोटी है तो कुछ लोगों के लिये सिक्का है तो कुछ लोगों के लिये रूपक है इस वक्त जब कि चारों ओर 'जय श्री राम' का नारा गूँज रहा है मैं कैसे कहूँ 'अल्लाहु अकबर' नमाज़ पढ़ने वाले मारे जा रहे हैं सड़क पर शौहर मारे गए, अहबाब! हिन्दू-मुस्लिम शोक में डूबे हैं अल्लाह चुप है उसकी चुप्पी चुभ रही है ईश्वर चुप है उसकी चुप्पी चुभ रही है मंदिर-मस्जिद के चिराग़ ब

असली शराबी अच्छे इनसान होते हैं (Asali Sharabi Achchhe Inasan Hote Hain)

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  असली शराबी अच्छे इनसान होते हैं असली शराबी अच्छे इनसान होते हैं घीसू-माधव हों या महान ग़ालिब इनकी कथाएँ कहती हैं, शराब पीने से शरीर ख़राब होता है, मन नहीं। मैं कोई नशा नहीं करता  मैंने कभी नहीं किया कोई नशा पर, जानता हूँ नशा से नृत्य निखरता है नज़र निथरती है... मैं पूरे होशोहवास में कह रहा हूँ चाय की चुसकी और शराब का चषक चीख और चुप्पी के पर्याय हैं  यह सच है कि वे समुद्र से अधिक शराब में डूबते हैं जिनके लिए शराब अमृत है   जो अधिक शराब पीते हैं शराब उन्हें पीती है यहाँ शराब का पर्याय समुद्र है मैं आग की ओर नहीं, आँसू की ओर इशारा कर रहा हूँ क्योंकि उसकी एकता का नाम समुद्र है। खैर, जिनका एक पैक में सिक्स पैक बन जाता है  वे ख़ुद को टॉपों-टॉप में महसूस करते हैं भले ही वे सबेरे का सूरज नहीं देखते हैं  लेकिन आधी रात का चाँद उन्हें पहले से कुछ और सुन्दर नज़र आता है  वे स्वप्न में भी शराब पीते हैं नये-नये ब्रांड और ख़ास बात तो यह है  कि उनका हर स्वप्न नया स्वप्न होता है हर दिन नया दिन होता है  हर यात्रा नयी यात्रा होती है  और वे थोड़े से चढ़ने पर ख़ुद कुछ नया हो जाते हैं अंत में एकदम नया मुसा

कुछ रचनाकारों की माँ पर केंद्रित कुछ रचनाएँ / kuchh rachanaakaaron kee maan par kendrit kuchh rachanaen

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कुछ रचनाकारों की माँ पर केंद्रित कुछ रचनाएँ :- 1). लोक-रिश्ता यह हर तरह के सामाजिक संबंध पर लिखने का समय है कुँवारी लड़कियाँ बुआ कहलाती हैं लेकिन कुँवारे लड़के फूफा नहीं कुँवारे लड़के चाचा कहलाते हैं लेकिन कुँवारी लड़कियाँ चाची नहीं कुँवारे लड़के मामा होते हैं लेकिन कुँवारी लड़कियाँ मामी नहीं हाँ, दोनों कुँवारेपन में मौसी-मौसा हो सकते हैं। कुँवारे लड़के अपने युवावस्था में कइयों के चाचा, तो कइयों के दादा, तो कइयों के बुढ़ऊ बाऊ लगते हैं जैसे हम अपने गाँव में। खैर, वे विवाहित स्त्रियाँ जो बच्चे पैदा करने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें समाज बाँझ की संज्ञा देता है जो कि गलत है क्योंकि वे मातृत्व से वंचित नहीं होती हैं वे लोक में किसी न किसी की छुटकी या बड़की माई होती हैं वे वात्सल्यपूर्ण आशीर्वाद देती हैं धरती बंजर हो सकती है पर, स्त्री बाँझ नहीं। ©गोलेन्द्र पटेल , संपर्क :  डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।   पिन कोड : 221009 ■ 2). मां मां मेरी अलौकिक निधि, जग जननी है मेरी। भाग्य फैसला करने वाली, अमूल्य धरोहर है मेरी।      संस्कृति को बढ़ाने

मैं हिन्दू हूँ (कविता) / main hindu hun

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  मैं हिन्दू हूँ इस धरती की धड़कनें सांस्कृतिक स्वर की ऊँची अनुगूँज हैं अपनी सनातनी अर्थ-प्रक्रिया में यह हिन्दुत्व के ध्वजोत्तोलन का समय है मैं हिन्दू हूँ मेरे आध्यात्मिक गुरु ऋषिचित्त हैं मैं शैशवावस्था से शाकाहारी हूँ माँ सरस्वती का भक्त हूँ और माँ दुर्गा का भी पर, मैंने सत्रह सालों तक शिव की उपासना की है कई सालों तक कतकी नहायी है मुझे जब से जानकारी है तब से रोज़ हनुमान का ध्यान करता आ रहा हूँ मैं उदार, उदात्त व धर्मनिरपेक्ष धार्मिक हूँ क्योंकि मैं सभी धर्मों के शक्ति-स्रोतों को मानता हूँ मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा जाता हूँ ! मैं बुद्ध को ख़ूब पढ़ता हूँ पर, मैं बौद्ध नहीं हूँ मैं महावीर स्वामी को ख़ूब पढ़ता हूँ पर, मैं जैन नहीं हूँ मैं कबीर को भी ख़ूब पढ़ता हूँ पर, मैं कबीरपंथी नहीं हूँ मैं तुलसी को भी ख़ूब पढ़ता हूँ पर, मैं रामनामी नहीं हूँ न ही मैं भगवाधारी हूँ मैं ग्रामदेवता को पूजता हूँ प्रकृति की पूजा करता हूँ माँ का पाँव छूता हूँ पिता का पाँव छूता हूँ गुरु का पाँव छूता हूँ पुरखों का पाँव छूता हूँ मैं वादियों का पढ़ता हूँ पर, मैं वादी नहीं हूँ सिवाय इसके कि मैं स्पष्टवादी हूँ जो कहना होता है