Golendra Gyan

Saturday, 31 December 2022

नव वर्ष का नया राग | नया साल का नया स्वर | नव वर्ष का हर्ष संघर्ष है! | गोलेन्द्र पटेल

 

गोलेन्द्र पटेल की तीन कविताएँ :-


1).


नव वर्ष का नया राग


वे देश को दुहने के लिए

प्रतिबद्ध हैं

संबद्ध हैं

आबद्ध हैं

मगर मैं प्रतीक्षास्तब्ध हूँ

कि

गर्द है, धुआँ है, सर्द है और

आग है

नव वर्ष का नया राग है

जहाँ पेड़ की फुनगियों पर

उम्मीदें कायम हैं

टूट, ओ पीड़ा के पर्ण

पतझड़

वसंत से पहले आया है


गम के ग्रीटिंग कार्ड में लिखीं नम आँखें

कि नदी, जंगल, पहाड़ और सागर 

सुनो, इस दौर में ठौर नहीं है

कौर नहीं है

घर-घर में घुप अँधेरा घूर्ण है 

पूर्ण मन चूर्ण है

यह ख़त अपूर्ण है


सूरज लुढ़क गया है

उम्र की ढलान पर और 

पृथ्वी डूब रही है

आसमान के संचित आँसू में

लेकिन

युवा उलट कर हो गया वायु

या यह कहूँ 

कि उसकी आत्मा का अव्यय 

वाह

वह हवा है 

जो सरहद के पार जाती है

शुभकामना लेकर!


रचना : 20-12-2022


2).

नया साल का नया स्वर


मैं चाहता हूँ

जीवन के वन में कोयल कूजे

हर घर में 

समरसता, सर्वधर्म और समभाव की वाणी गूँजे

मैं चाहता हूँ

हर कवि की कविता में

सरिता लोरी गाए

सागर संगीतबद्ध हो जाए

और धरती की धुन में सनी

आसमान की लय उतर आए

मैं चाहता हूँ

पेड़ फूले-फले

और पहाड़

आदमी के कद से ऊँचा रहे

मैं चाहता हूँ

भाषा में सूप भर धूप

और रूप अमर

सुंदर अक्षर

मैं चाहता हूँ

सृजन के शोर में 

नया साल का नया स्वर

मैं चाहता हूँ

खेतों में सूरज उगे

चेतना की चिड़िया 

दाना चुगे!


रचना : 30-12-2022


3).

नव वर्ष का हर्ष संघर्ष है!

जनवरी! दिसंबर को पता है
बीतना एक नयी मुबारकबाद का मुहावरा है

उम्मीद की उड़ान भरी हुई
चेतना की चिड़िया
आसुओं की नदी को पार
करती हुई उसमें
अपना चेहरा देखती है

और देखती है सूरज
डूब रहा है
वह निर्निमेष निहारती है
पेड़ों के प्रतिबिंबों को
और महसूस करती है
मछलियों का पहाड़-सा दुःख
लेकिन लहरों के कुछ लम्हे
धारदार स्मृति की पहचान है

गत और आगत के बीच तट पर
हरा-भरा है घाव
सागर के इस छोर से उस छोर तक
जीवन की नाव
पीड़ा की पतवार से खेती हुई
मल्लाहिन
चक्कर लगा रही है
मछलियों की तलाश में
हताश होकर
अपने अस्तित्व का अर्थ
जानना चाह रही है
भँवर बीच
भीतर के जल से

जहाँ नीरव शून्यता में नव वर्ष का हर्ष
असल में अवनि पर स्वप्न का संघर्ष है!


रचना : 01-01-2023


कवि : गोलेन्द्र पटेल

संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


Friday, 23 December 2022

किन्नर पर केंद्रित आठ कविताएँ : गोलेन्द्र पटेल

 किन्नर पर केंद्रित आठ कविताएँ : गोलेन्द्र पटेल



1).


कविता में किन्नर


प्रिय दोस्त!

न स्त्री

न पुरुष

न ही अर्द्धनारीश्वर हो तुम


तुम कविता में किन्नर हो

यानी थर्ड जेंडर

___ ट्रांसजेंडर

लफ़ंगों की भाषा में हिजड़ा

तुम्हारा गात

गोया गम का पिंजड़ा

पर तुम मुझे पसंद हो!...


इस सृष्टि में

तुम्हारी ताली

कुदृष्टि के लिए

गाली है

तुम भी उसी कोख से उत्पन्न हुए हो

जिससे मैं

तुम देश की संतान हो

मेरे दोस्त!

                    रचना : 20-12-2022

2).


ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


क्या कोई रोक पाया है कभी

आँखों से पकी पीड़ा का टपकना

माथे पर श्रम की बूँद का अंकुरित होना

देह में दर्द का खिलना

फिर कैसे रोक पायेगा

कभी कोई

ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


सुख में

पत्थर पर उग जाती है प्रसन्नता

जैसे 

रेत में रोती हुई दूब ;

जहाँ मर्द और औरत के बीच

नदी

किन्नर का संचित

आँसू है

जो अपने आप में धाँसू है!

                         रचना : 21-12-2022

3).


किन्नर-कथा


अस्तित्व की तलाश में शिखंडी

अपनी आत्मा को तब तक तपाया

जब तक कि भीष्म 

शरशय्या पर सो नहीं गये


मगर याद रहे

साधना के समय स्त्री रूप में था वह

तप के बाद हुआ पुरुष


उसने अर्द्धनारीश्वर रूप की नहीं

शंकर की तपस्या की

तुम भी कर रहे हो, दोस्त!

लेकिन तुम किन्नर हो

काश कि तुम्हारी प्रार्थना भी 

सुनते शिव!


तुम्हारी व्यथा की कथा

शायद नंदी के कानों में कहने से

शीघ्र सुन लें वे!


तुम जब भी ट्रेनों में या चौराहों पर

या किसी के द्वार पर

तालियाँ बजाते हुए

दिखते हो

तुम्हारे होंठों पर होते हैं

सोहर

मंगल गीत

शुभकामना के स्वर


जबकि तुम भीतर से बहुत दुखी होते हो

और बाहर से बहुत प्रसन्न

तुम अपने चेहरे पर इतनी प्राकृतिक प्रसन्नता

कैसे उगा लेते हो?

क्या है इसका राज़?

आज

मेरी कलम निस्तब्ध पड़ी है

मन के द्वार पर 

एक ट्रांसजेंडर मित्र की स्मृति खड़ी है


जो इस करुणामयी कविता में 

किन्नर-कथा को इन्नर की तरह 

परोस चुकी है!

रचना : 21-12-2022 


4).


हिजड़ों की फ़ौज़


बचपन से

सुनता आ रहा हूँ मैं

कि हिजड़ों की फ़ौज़ से

जंग 

जीती नहीं जाती है


जंग जीती जाती है

हौसलों से!

रचना : 21-12-2022

 5). 


किन्नर


कंठ से नहीं, कोख से फूटे

शब्द ने पूछा 

कि

इस धरती पर

उसकी जगह कहाँ है?

जो फूल

क्लीव है


वसंत का मौसम है

मगर रंगों का आयतन कम हो गया है

गंध गायब हो गयी है

भाषा से


हवा में केवल

किन्नर, मौगा, हिजड़ा, छक्का, थर्ड जेंडर

___ ट्रांसजेंडर जैसे दर्दनाक

संबोधन हैं

ये कैसे उपवन हैं?


जहाँ सुनने वाला न पुरुष है

न स्त्री है

इन दोनों से भिन्न है!

रचना : 22-12-2022 


6).


किन्नर पर कविता


संसद की सड़क पर 

माँसपेशियों की मीठी महक ने कहा

कि वे न नारी हैं न नर!


उधर

एक कोई स्वर स्वयं को गाता आ रहा है

कोई समय सुनता जा रहा है उनको

कोई गमी उनकी गज़ल बन रही है

लेकिन उनकी लयबद्ध तालियाँ

मंगल के गीत हैं

उनके आँसू की आवाज़

सरसराहट में स्वप्न के संगीत हैं

वे सदियों से गाए जा रहे हैं

अपनी मानवीय स्मृति

इस धरती के लिए!


इधर

मैंने ट्रांसजेंडर साथियों से बातचीत करते हुए

महसूस किया है कि

लंबी हिचकियों के बीच

हृदय में हुलास मारता है दुःख

हड्डियाँ चरमरा जाती हैं 

और उनकी देह

उन्हें दर्द का गेह मालूम होती है


धूप, हवा और पानी प्रतिकूल हैं

पर अपनी पीड़ा

वे गूँथते जाएंगे अपनी धुन के धागे पर

अभिशप्त जीवन के लिए


जहाँ उनमें एक उम्मीद है

कि ऊसर में उनकी आत्मकथा उगेगी

जो चुप्पी के समाजशास्त्र का सप्रसंग व्याख्या करेगी


आह! आत्मा के अक्षर 

इतिहास के पन्नों पर अच्छे लग रहे हैं!


मेरे दोस्त!

यह सोहर में स्याह संवेदना व्यक्त करने का समय है

और तुम चुप हो


तुमसे दोस्ती है तुम हो इसलिए यह 

किन्नर पर कविता है 

जैसे कोई ठूँठ पेड़ सिर्फ़ इसलिए है

क्योंकि पंक्षियों की उड़ान भरने में

उसकी अहम भूमिका है! 

रचना : 22-12-2022

7).


तीसरा समाज


भले ही भारत-भूमि 

आदिकाल से तमाम जातियों की रही है

किन्तु ;

आज मैंने

दलित, आदिवासी, वृद्ध, विकलांग 

व किन्नर पर काम करते हुए

पाया कि

साहित्य में एक तीसरा समाज है!

रचना : 22-12-2022

8).


 किन्नर पर केंद्रित किताब


आज सुबह-सुबह कोयल की कूक नहीं

किसी हिजड़े के हृदय की हूक सुनी है मैंने

इन दिनों मैं पढ़ रहा हूँ

किन्नर पर केंद्रित किताब


अक्षरों के नीचे दबे दर्द को देख रहा हूँ मैं


सुना मैंने कई चैनलों पर ट्रांसजेंडरों के इंटरव्यू

शक़ हुआ उन पर

लिखे गये विमर्शों को लेकर

जहाँ ज़िन्दगी जिज्ञासा बन गयी


अँधेरे को चीरती चेतना

पेड़ का नहीं,

प्रसव पीड़ा का तना है

जो समंदर के शोक में सरिता की संवेदना है


वर्तमान के विमर्श यह नहीं देख रहे कि

उसमें समकालीन सच कितना है!


उनमें बस कागज़ पर उतने की होड़ लगी है

कोई आहत आत्मा आधी रात जगी है


अब जब कवि हवा में कुछ शब्द उछालते हैं

आलोचक उसे कविता कहते हैं

ऐसे में मतलब समझ ही गये 

कि मैं कहना क्या चाहता हूँ


उनके दुःख में दुखी होना चाहता हूँ मैं 

गीत की भाषा में रोना चाहता हूँ

ताकि वे सुन सकें

जिन तक चिखना-चिल्लाना-गुर्राना 

जैसी क्रियाएँ नहीं पहुँचती हैं


उनके अस्तित्व की आवाज़ें

रोक दी जाती हैं

जो तीसरे समाज के नागरिक हैं!

रचना : 23-12-2022

कवि परिचई :-

नाम : गोलेन्द्र पटेल


उपनाम/उपाधि : 'गोलेंद्र ज्ञान' , 'युवा किसान कवि', 'हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय', 'काशी में हिंदी का हीरा', 'आँसू के आशुकवि', 'आर्द्रता की आँच के कवि', 'अग्निधर्मा कवि', 'निराशा में निराकरण के कवि', 'दूसरे धूमिल', 'काव्यानुप्रासाधिराज', 'रूपकराज', 'ऋषि कवि',  'कोरोजयी कवि', 'आलोचना के कवि' एवं 'दिव्यांगसेवी'।

जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.

जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।

शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) व एम.ए. (अध्ययनरत), बी.एच.यू.।

भाषा : हिंदी व भोजपुरी।

विधा : कविता, नवगीत, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास व आलोचना।

माता : उत्तम देवी

पिता : नन्दलाल


पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :


कविताएँ और आलेख -  'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,'साहित्य बीकानेर' ,'उदिता' ,'विश्व गाथा' , 'कविता-कानन उ.प्र.' , 'रचनावली', 'जन-आकांक्षा', 'समकालीन त्रिवेणी', 'पाखी', 'सबलोग', 'रचना उत्सव', 'आईडियासिटी', 'नव किरण', 'मानस',  'विश्वरंग संवाद', 'पूर्वांगन' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।


विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं और "कविता में किसान" (सं. नीरज कुमार मिश्र एवं अमरजीत कौंके) में कविता।


ब्लॉग्स, वेबसाइट और ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-


गूगल के 100+ पॉपुलर साइट्स पर - 'कविता कोश' , 'गद्य कोश', 'हिन्दी कविता', 'साहित्य कुञ्ज', 'साहित्यिकी', 'जनता की आवाज़', 'पोषम पा', 'अपनी माटी', 'द लल्लनटॉप', 'अमर उजाला', 'समकालीन जनमत', 'लोकसाक्ष्य', 'अद्यतन कालक्रम', 'द साहित्यग्राम', 'लोकमंच', 'साहित्य रचना ई-पत्रिका', 'राष्ट्र चेतना पत्रिका', 'डुगडुगी', 'साहित्य सार', 'हस्तक्षेप', 'जन ज्वार', 'जखीरा डॉट कॉम', 'संवेदन स्पर्श - अभिप्राय', 'मीडिया स्वराज', 'अक्षरङ्ग', 'जानकी पुल', 'द पुरवाई', 'उम्मीदें', 'बोलती जिंदगी', 'फ्यूजबल्ब्स', 'गढ़निनाद', 'कविता बहार', 'हमारा मोर्चा', 'इंद्रधनुष जर्नल' , 'साहित्य सिनेमा सेतु' , 'साहित्य सारथी' , 'लोकल ख़बर (गाँव-गाँव शहर-शहर ,झारखंड)', 'भड़ास', 'कृषि जागरण' ,'इंडिया ग्राउंड रिपोर्ट', 'सबलोग पत्रिका', 'वागर्थ', 'अमर उजाला', 'रणभेरी', 'हिंदुस्तान', 'दैनिक जागरण', 'परिवर्तन' इत्यादि एवं कुछ लोगों के व्यक्तिगत साहित्यिक ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित हैं।


लम्बी कविता : तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव


प्रसारण : 'राजस्थानी रेडियो', 'द लल्लनटॉप' एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)


अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित


काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।


सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022" और अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र प्राप्त हुए हैं।


मॉडरेटर : 'गोलेन्द्र ज्ञान' , 'ई-पत्र' एवं 'कोरोजीवी कविता' ब्लॉग के मॉडरेटर और 'दिव्यांग सेवा संस्थान गोलेन्द्र ज्ञान' के संस्थापक हैं।


संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


■★■

(दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए अनमोल ख़ज़ाना)


SUBSCRIBE

https://youtube.com/c/GolendraGyan

LIKE

https://www.facebook.com/golendrapatelkavi

FOLLOW

https://golendragyan.blogspot.com/?m=1

Twitter

https://twitter.com/GyanGolendra?t=f8R8qoS8Gf1OtHRI54nrdQ&s=09

Thursday, 22 December 2022

किन्नर पर केंद्रित कविताएँ | कविता में किन्नर | ट्रांसजेंडर संतान का दुःख! | किन्नर-कथा | हिजड़ों की फ़ौज़ | किन्नर | किन्नर पर कविता : गोलेन्द्र पटेल

किन्नर पर केंद्रित छह कविताएँ : गोलेन्द्र पटेल



1).


कविता में किन्नर


प्रिय दोस्त!

न स्त्री

न पुरुष

न ही अर्द्धनारीश्वर हो तुम


तुम कविता में किन्नर हो

यानी थर्ड जेंडर

___ ट्रांसजेंडर

लफ़ंगों की भाषा में हिजड़ा

तुम्हारा गात

गोया गम का पिंजड़ा

पर तुम मुझे पसंद हो!...


इस सृष्टि में

तुम्हारी ताली

कुदृष्टि के लिए

गाली है

तुम भी उसी कोख से उत्पन्न हुए हो

जिससे मैं

तुम देश की संतान हो

मेरे दोस्त!

                    रचना : 20-12-2022

2).


ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


क्या कोई रोक पाया है कभी

आँखों से पकी पीड़ा का टपकना

माथे पर श्रम की बूँद का अंकुरित होना

देह में दर्द का खिलना

फिर कैसे रोक पायेगा

कभी कोई

ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


सुख में

पत्थर पर उग जाती है प्रसन्नता

जैसे 

रेत में रोती हुई दूब ;

जहाँ मर्द और औरत के बीच

नदी

किन्नर का संचित

आँसू है

जो अपने आप में धाँसू है!

                         रचना : 21-12-2022

3).


किन्नर-कथा


अस्तित्व की तलाश में शिखंडी

अपनी आत्मा को तब तक तपाया

जब तक कि भीष्म 

शरशय्या पर सो नहीं गये


मगर याद रहे

साधना के समय स्त्री रूप में था वह

तप के बाद हुआ पुरुष


उसने अर्द्धनारीश्वर रूप की नहीं

शंकर की तपस्या की

तुम भी कर रहे हो, दोस्त!

लेकिन तुम किन्नर हो

काश कि तुम्हारी प्रार्थना भी 

सुनते शिव!


तुम्हारी व्यथा की कथा

शायद नंदी के कानों में कहने से

शीघ्र सुन लें वे!


तुम जब भी ट्रेनों में या चौराहों पर

या किसी के द्वार पर

तालियाँ बजाते हुए

दिखते हो

तुम्हारे होंठों पर होते हैं

सोहर

मंगल गीत

शुभकामना के स्वर


जबकि तुम भीतर से बहुत दुखी होते हो

और बाहर से बहुत प्रसन्न

तुम अपने चेहरे पर इतनी प्राकृतिक प्रसन्नता

कैसे उगा लेते हो?

क्या है इसका राज़?

आज

मेरी कलम निस्तब्ध पड़ी है

मन के द्वार पर 

एक ट्रांसजेंडर मित्र की स्मृति खड़ी है


जो इस करुणामयी कविता में 

किन्नर-कथा को इन्नर की तरह 

परोस चुकी है!

रचना : 21-12-2022 


4).


हिजड़ों की फ़ौज़


बचपन से

सुनता आ रहा हूँ मैं

कि हिजड़ों की फ़ौज़ से

जंग 

जीती नहीं जाती है


जंग जीती जाती है

हौसलों से!

रचना : 21-12-2022

 5). 


किन्नर


कंठ से नहीं, कोख से फूटे

शब्द ने पूछा 

कि

इस धरती पर

उसकी जगह कहाँ है?

जो फूल

क्लीव है


वसंत का मौसम है

मगर रंगों का आयतन कम हो गया है

गंध गायब हो गयी है

भाषा से


हवा में केवल

किन्नर, मौगा, हिजड़ा, छक्का, थर्ड जेंडर

___ ट्रांसजेंडर जैसे दर्दनाक

संबोधन हैं

ये कैसे उपवन हैं?


जहाँ सुनने वाला न पुरुष है

न स्त्री है

इन दोनों से भिन्न है!

रचना : 22-12-2022 


6).


किन्नर पर कविता


संसद की सड़क पर 

माँसपेशियों की मीठी महक ने कहा

कि वे न नारी हैं न नर!


उधर

एक कोई स्वर स्वयं को गाता आ रहा है

कोई समय सुनता जा रहा है उनको

कोई गमी उनकी गज़ल बन रही है

लेकिन उनकी लयबद्ध तालियाँ

मंगल के गीत हैं

उनके आँसू की आवाज़

सरसराहट में स्वप्न के संगीत हैं

वे सदियों से गाए जा रहे हैं

अपनी मानवीय स्मृति

इस धरती के लिए!


इधर

मैंने ट्रांसजेंडर साथियों से बातचीत करते हुए

महसूस किया है कि

लंबी हिचकियों के बीच

हृदय में हुलास मारता है दुःख

हड्डियाँ चरमरा जाती हैं 

और उनकी देह

उन्हें दर्द का गेह मालूम होती है


धूप, हवा और पानी प्रतिकूल हैं

पर अपनी पीड़ा

वे गूँथते जाएंगे अपनी धुन के धागे पर

अभिशप्त जीवन के लिए


जहाँ उनमें एक उम्मीद है

कि ऊसर में उनकी आत्मकथा उगेगी

जो चुप्पी के समाजशास्त्र का सप्रसंग व्याख्या करेगी


आह! आत्मा के अक्षर 

इतिहास के पन्नों पर अच्छे लग रहे हैं!


मेरे दोस्त!

यह सोहर में स्याह संवेदना व्यक्त करने का समय है

और तुम चुप हो


तुमसे दोस्ती है तुम हो इसलिए यह 

किन्नर पर कविता है 

जैसे कोई ठूँठ पेड़ सिर्फ़ इसलिए है

क्योंकि पंक्षियों की उड़ान भरने में

उसकी अहम भूमिका है! 

रचना : 22-12-2022

कवि : गोलेन्द्र पटेल 

संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com




Wednesday, 21 December 2022

किन्नर पर केंद्रित कविताएँ | कविता में किन्नर | ट्रांसजेंडर संतान का दुःख! | किन्नर-कथा | हिजड़ों की फ़ौज़ | गोलेन्द्र पटेल

   किन्नर पर केंद्रित कविताएँ : गोलेन्द्र पटेल

1).


कविता में किन्नर


प्रिय दोस्त!

न स्त्री

न पुरुष

न ही अर्द्धनारीश्वर हो तुम


तुम कविता में किन्नर हो

यानी थर्ड जेंडर

___ ट्रांसजेंडर

लफ़ंगों की भाषा में हिजड़ा

तुम्हारा गात

गोया गम का पिंजड़ा

पर तुम मुझे पसंद हो!...


इस सृष्टि में

तुम्हारी ताली

कुदृष्टि के लिए

गाली है

तुम भी उसी कोख से उत्पन्न हुए हो

जिससे मैं

तुम देश की संतान हो

मेरे दोस्त!

                    रचना : 20-12-2022

2).


ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


क्या कोई रोक पाया है कभी

आँखों से पकी पीड़ा का टपकना

माथे पर श्रम की बूँद का अंकुरित होना

देह में दर्द का खिलना

फिर कैसे रोक पायेगा

कभी कोई

ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


सुख में

पत्थर पर उग जाती है प्रसन्नता

जैसे 

रेत में रोती हुई दूब ;

जहाँ मर्द और औरत के बीच

नदी

किन्नर का संचित

आँसू है

जो अपने आप में धाँसू है!

                         रचना : 21-12-2022

3).


किन्नर-कथा


अस्तित्व की तलाश में शिखंडी

अपनी आत्मा को तब तक तपाया

जब तक कि भीष्म 

शरशय्या पर सो नहीं गये


मगर याद रहे

साधना के समय स्त्री रूप में था वह

तप के बाद हुआ पुरुष


उसने अर्द्धनारीश्वर रूप की नहीं

शंकर की तपस्या की

तुम भी कर रहे हो, दोस्त!

लेकिन तुम किन्नर हो

काश कि तुम्हारी प्रार्थना भी 

सुनते शिव!


तुम्हारी व्यथा की कथा

शायद नंदी के कानों में कहने से

शीघ्र सुन लें वे!


तुम जब भी ट्रेनों में या चौराहों पर

या किसी के द्वार पर

तालियाँ बजाते हुए

दिखते हो

तुम्हारे होंठों पर होते हैं

सोहर

मंगल गीत

शुभकामना के स्वर


जबकि तुम भीतर से बहुत दुखी होते हो

और बाहर से बहुत प्रसन्न

तुम अपने चेहरे पर इतनी प्राकृतिक प्रसन्नता

कैसे उगा लेते हो?

क्या है इसका राज़?

आज

मेरी कलम निस्तब्ध पड़ी है

मन के द्वार पर 

एक ट्रांसजेंडर मित्र की स्मृति खड़ी है


जो इस करुणामयी कविता में 

किन्नर-कथा को इन्नर की तरह 

परोस चुकी है!

रचना : 21-12-2022 


4).


हिजड़ों की फ़ौज़


बचपन से

सुनता आ रहा हूँ मैं

कि हिजड़ों की फ़ौज़ से

जंग 

जीती नहीं जाती है


जंग जीती जाती है

हौसलों से!

रचना : 21-12-2022

कवि : गोलेन्द्र पटेल 

संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com

Sunday, 18 December 2022

सुप्रसिद्ध युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की दस कविताएँ

 सुप्रसिद्ध युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की दस कविताएँ :- 


1).


प्रेम में पड़ीं लड़कियाँ


माफ़ करना

मैंने नहीं मेरे गुरु देखे हैं

कि (पढ़ी-लिखी)

प्रेम में पड़ी हुईं लड़कियाँ

जन्मदिन पर 

प्रेमी का पाँव छूती हैं!


2).


पिछलग्गू


वे कैसे दिन थे 

जब लोग पहले परिणय करते थे

फिर प्रेम

अब तो

प्रेम परिणय का पिछलग्गू है!


3).


काली प्रेमिकाएँ


जंगल, पहाड़, समुद्र और कोयले में

जो पाई जाती हैं काली प्रेमिकाएँ

वे सिर्फ़ वासना की पूर्ति भर हैं

उनकी नज़र में 

जो उन्हें प्रेम कर के छोड़ देते हैं!


4).


ईश्वर नहीं नींद चाहिए


उनके व्यर्थ गए गुनाहों के बारे में

जब सोचती हूँ मैं

स्पर्शशून्य रस उमड़ता है भीतर

आँखें बोलती हैं

ईश्वर नहीं नींद चाहिए!


5).


संस्मरण


मुहब्बत वीणा की तरह 

मेरे हृदय में थी

तुम तो साधक थे!


अब संगीत में सना संस्मरण

मेरे दिल व दिमाग का गायक है!

(रचना : 16-12-2022)


6).


प्यार का इंतज़ार


नहीं हूँ किसी का भी भक्त मैं

पर प्रभु तुम्हारे मंदिर की सीढियों पर

करती हूँ अपने प्यार का इंतज़ार


वैसे ही

जैसे पृथ्वी करती है 

वसंत की प्रतीक्षा!

(रचना :15-12-2022)


7).


चिंतित समुद्र


उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव की 

यात्रा से लौटे हैं प्रभु!

उनकी थकान की मात्रा 

मीडिया में मुस्कुरा रही है कि


रेगिस्तान में

जब उठती हैं लहरें

समुद्र चिंतित होता है

पर नदी प्रसन्न होती है

क्योंकि वह प्यास बुझाती है!

(रचना : 15-12-2022)


8).


मुक्ति के मार्ग


मुक्ति के लिए

न दर्शन के 

न कविता के मार्ग चुने मैंने


प्रभु! 

तुमने मेरी निष्ठा अनदेखी की

मैंने तुम्हारी मूर्ति में अपनी विष्ठा पोत दी

और तुम प्रकट हो गये!

(रचना : 15-12-2022)



9).


ईश्वर की भाषा में नहीं


सौंदर्य के साधक शब्दों को तब तक रगड़ते हैं

जब तक कि रंग हथेलियों में हथियार न बन जाए

और गंध हवा में गोली

पर, प्रभु!

धूप का धनुष धारा की दिशा में ढूँढ़ रही है

नई सदी की नदी


जहाँ बदी के विरुद्ध पतवार की प्रार्थना सुनकर

बादल नाव में उतर रहे हैं और

तट पर सुनाई दे रही है

कि जल ने मछलियों की हत्या की

उनकी चीख चिनगारी में बदल चुकी है


वे रेत की रोशनी हैं

मगर मौसम मौन है

मुर्दा हो चुका है मुल्क का मल्लाह

हिलोरें हवन कर रही हैं

तुम्हारे लिए, प्रभु!


उनकी आत्माओं की शांति के इस यज्ञ से धुआँ नहीं,

अमर, अपराजेय और अप्रतिहत गूँज उठ रही है

जो ईश्वर की भाषा में नहीं

इनसान की भाषा में कविता है, प्रभु!


प्रभु! तुम्हारी सत्ता के लिए सतह पर 

मछलियों का सुलगता सवाल है

कि नदी का क्या हाल है!


10).


पाँव से फूटी प्रार्थना


अब आस्था की छाँव में ईश्वर बड़े होते हैं

और आदमी छोटे

ऐसे में सत्य की समाधि पर

मैं हूँ

सूर्याभिमुखी अभिव्यक्ति

मेरी आँखों से आग की बूँदें

गिरीं जब धरती पर

तब पीड़ा की पौध में

आत्ममैथुन और आत्ममंथन के फूल खिले

पर प्रभु!

जो तुमने सुनी प्रार्थना

वह मेरे कंठ से नहीं

पाँव से फूटी थी!

(©गोलेन्द्र पटेल / रचना : 15-12-2022)

संक्षिप्त परिचय :-

नाम : गोलेन्द्र पटेल

उपनाम/उपाधि :- 'गोलेंद्र ज्ञान' , 'युवा किसान कवि', 'हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय', 'काशी में हिंदी का हीरा', 'आँसू के आशुकवि', 'आर्द्रता की आँच के कवि', 'अग्निधर्मा कवि', 'निराशा में निराकरण के कवि', 'दूसरे धूमिल', 'काव्यानुप्रासाधिराज', 'रूपकराज', 'ऋषि कवि',  'कोरोजयी कवि', 'आलोचना के कवि' एवं 'दिव्यांगसेवी'।
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) व एम.ए. (अध्ययनरत), बी.एच.यू.।
भाषा : हिंदी व भोजपुरी।
विधा : कविता, नवगीत, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास व आलोचना।
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-

कविताएँ और आलेख -  'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,'साहित्य बीकानेर' ,'उदिता' ,'विश्व गाथा' , 'कविता-कानन उ.प्र.' , 'रचनावली', 'जन-आकांक्षा', 'समकालीन त्रिवेणी', 'पाखी', 'सबलोग', 'रचना उत्सव', 'आईडियासिटी', 'नव किरण', 'मानस',  'विश्वरंग संवाद', 'पूर्वांगन' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।

विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं और "कविता में किसान" (सं. नीरज कुमार मिश्र एवं अमरजीत कौंके) में कविता।

ब्लॉग्स, वेबसाइट और ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-

गूगल के 100+ पॉपुलर साइट्स पर - 'कविता कोश' , 'गद्य कोश', 'हिन्दी कविता', 'साहित्य कुञ्ज', 'साहित्यिकी', 'जनता की आवाज़', 'पोषम पा', 'अपनी माटी', 'द लल्लनटॉप', 'अमर उजाला', 'समकालीन जनमत', 'लोकसाक्ष्य', 'अद्यतन कालक्रम', 'द साहित्यग्राम', 'लोकमंच', 'साहित्य रचना ई-पत्रिका', 'राष्ट्र चेतना पत्रिका', 'डुगडुगी', 'साहित्य सार', 'हस्तक्षेप', 'जन ज्वार', 'जखीरा डॉट कॉम', 'संवेदन स्पर्श - अभिप्राय', 'मीडिया स्वराज', 'अक्षरङ्ग', 'जानकी पुल', 'द पुरवाई', 'उम्मीदें', 'बोलती जिंदगी', 'फ्यूजबल्ब्स', 'गढ़निनाद', 'कविता बहार', 'हमारा मोर्चा', 'इंद्रधनुष जर्नल' , 'साहित्य सिनेमा सेतु' , 'साहित्य सारथी' , 'लोकल ख़बर (गाँव-गाँव शहर-शहर ,झारखंड)', 'भड़ास', 'कृषि जागरण' ,'इंडिया ग्राउंड रिपोर्ट', 'सबलोग पत्रिका', 'वागर्थ', 'अमर उजाला', 'रणभेरी', 'हिंदुस्तान', 'दैनिक जागरण', 'परिवर्तन' इत्यादि एवं कुछ लोगों के व्यक्तिगत साहित्यिक ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित हैं।

लम्बी कविता : तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव 

प्रसारण : 'राजस्थानी रेडियो', 'द लल्लनटॉप' एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)

अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित

काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।

सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022" और अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र प्राप्त हुए हैं।

मॉडरेटर : 'गोलेन्द्र ज्ञान' , 'ई-पत्र' एवं 'कोरोजीवी कविता' ब्लॉग के मॉडरेटर और 'दिव्यांग सेवा संस्थान गोलेन्द्र ज्ञान' के संस्थापक हैं।

संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com

■■■★★★■■■

--Golendra Patel
BHU , Varanasi , Uttar Pradesh , India

धन्यवाद!

■■★★■■

(दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए अनमोल ख़ज़ाना)

SUBSCRIBE
https://youtube.com/c/GolendraGyan
LIKE
https://www.facebook.com/golendrapatelkavi
FOLLOW
https://golendragyan.blogspot.com/?m=1
Twitter
https://twitter.com/GyanGolendra?t=f8R8qoS8Gf1OtHRI54nrdQ&s=09