Golendra Gyan

Friday, 29 March 2024

कविता : फ़रज़ाना का अफ़साना

 

फ़रज़ाना का अफ़साना

ज़माना ख़राब है

क्या तुमने सुना है?
लाशों को लोरियाँ गाते हुए
या फिर दाउदी बोहरों की सफेद दाढ़ियों से
स्त्रियों के ख़तना पर
असभ्य-स्वर
यह कितना अश्क़िया-क्रूर रिवाज़ है!
इस अज़ाब से मुक्ति का क्या इलाज है?

क़ब्रिस्तान में क़ब्र से आती है आवाज़
वे कर्म नहीं,
जाति-धर्म को महत्त्व देते हैं
जो जीवन-मर्म नहीं समझते हैं

उनको धर्म की खेती करनी है
और काटनी है जाति की फ़सल
सवधान, राजनीति दंगा-फ़साद की जननी है
नफ़रत की नज़र से वंचित नहीं है वक्त

जीत का जश्न जारी है
विपक्ष में खड़ी नज़्म ज़ख़्मी है
क्योंकि वह सत्य का प्रवक्ता है

फ़रज़ाना फफकते हुए
सोच रही है कि कुछ लोगों के लिये चाँद
रोटी है
तो कुछ लोगों के लिये
सिक्का है
तो कुछ लोगों के लिये
रूपक है

इस वक्त
जब कि चारों ओर 'जय श्री राम' का नारा गूँज रहा है
मैं कैसे कहूँ 'अल्लाहु अकबर'
नमाज़ पढ़ने वाले मारे जा रहे हैं
सड़क पर शौहर मारे गए, अहबाब!

हिन्दू-मुस्लिम शोक में डूबे हैं
अल्लाह चुप है
उसकी चुप्पी चुभ रही है
ईश्वर चुप है
उसकी चुप्पी चुभ रही है
मंदिर-मस्जिद के चिराग़ बुझे हैं मन दु:खी है, अहबाब!

संतान जीने की हिम्मत होती है

बच्चों के बिना न ईद अच्छी लगती है
न बक़रीद अच्छी लगती है
न होली अच्छी लगती है
न दीवाली अच्छी लगती है

उधर ख़ून की नदी है इधर
उनकी स्मृति
सेवईं की तरह है
गोया अब्सार में इल्म की ईदी है
जहाँ आब-ए-चश्म अंतर्मन का आईना है
और अब्रू पर सर-ए-सबद
इज़्तिराब है, अहबाब!

मुझे अमीना की चिंता है,
उसके लिये
यह कितना कठिन समय है!
एक बच्चा आगे, एक गोद में और एक पेट में है
या ख़ुदा!
यह कैसा अन्याय है?
मेरी बच्ची के साथ, मेरे साथ
बिना पुरुष की स्त्री अनाथ हो जाती है न?
मैं अनाथ हो चुकी हूँ, अहबाब!

मुझे इंतज़ार है उस दिन का
जो मुझे मेरे हिस्से का सुकून दे सके
मुझे इंतज़ार है उस रात की
जो मुझे मेरे हिस्से की नींद दे सके
अल्लाह के बंदे इंतज़ार करने के सिवाय और क्या कर सकते हैं?
आफ़त में अल्लाह की याद आती है न?
अल्लाह मेरी इबादत कब सुनेंगे?
क्या दरगाह जाने से मेरा दुख दूर हो जाएगा?
मैं कुरान के किस अंश का पाठ करूँ
कि मेरा दुख पहाड़ से छोटा हो जाए!
बताओ न मौलवी साहब!

मेरी बेटी उदारवादी मुसलमान है
वह कुरान ही नहीं, बल्कि गीता का भी अध्येता है
उसने 'मुसलमान कवियों की कविता में हिन्दुत्व' पर शोध किया है
हे हिन्दू फ़कीर!
उसके अच्छे दिन कब आएंगे?

अहबाब, क्या तुम्हें पता है?
मैं एक राष्ट्रवादी मुस्लिम हूँ
मेरे जीवन का अफ़साना क़ौम का क़िस्सा है
यानी कि मैं तुम्हारी भी कहानी हूँ

अहबाब अमीना की तलाक़शुदा ख़ाला हैं
वे अफ़सुर्दा में अश्फ़ाक हैं!

(©गोलेन्द्र पटेल / 30-03-2024)

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Wednesday, 20 March 2024

असली शराबी अच्छे इनसान होते हैं (Asali Sharabi Achchhe Inasan Hote Hain)

 

असली शराबी अच्छे इनसान होते हैं


असली शराबी अच्छे इनसान होते हैं


घीसू-माधव हों या महान ग़ालिब

इनकी कथाएँ कहती हैं,

शराब पीने से शरीर ख़राब होता है, मन नहीं।


मैं कोई नशा नहीं करता 

मैंने कभी नहीं किया कोई नशा

पर, जानता हूँ नशा से नृत्य निखरता है

नज़र निथरती है...


मैं पूरे होशोहवास में कह रहा हूँ

चाय की चुसकी और शराब का चषक

चीख और चुप्पी के पर्याय हैं 


यह सच है कि वे समुद्र से अधिक

शराब में डूबते हैं जिनके लिए

शराब अमृत है  

जो अधिक शराब पीते हैं

शराब उन्हें पीती है


यहाँ शराब का पर्याय समुद्र है


मैं आग की ओर नहीं,

आँसू की ओर इशारा कर रहा हूँ

क्योंकि उसकी एकता का नाम समुद्र है। खैर,


जिनका एक पैक में सिक्स पैक बन जाता है 

वे ख़ुद को टॉपों-टॉप में महसूस करते हैं

भले ही वे सबेरे का सूरज नहीं देखते हैं 

लेकिन आधी रात का चाँद उन्हें पहले से कुछ और सुन्दर नज़र आता है 

वे स्वप्न में भी शराब पीते हैं नये-नये ब्रांड

और ख़ास बात तो यह है 

कि उनका हर स्वप्न नया स्वप्न होता है

हर दिन नया दिन होता है 

हर यात्रा नयी यात्रा होती है 

और वे थोड़े से चढ़ने पर ख़ुद कुछ नया हो जाते हैं

अंत में एकदम नया मुसाफ़िर 


मदिरा मनुष्य को मनुष्य से जोड़ती है

जैसे मुहब्बत 

वह किसी से भेदभाव नहीं करती है

और पीने वालों को यह सीख देती है

कि वे किसी से भेदभाव न करें

वह मनुष्य को धर्म, जाति, अमीरी-गरीबी से ऊपर उठाती है 


वैद्य से पूछिए,

शराब एक बेहतर औषधि है कि नहीं 

अमुक बीमारी के लिए?

सरकारें भी जानती हैं

कि शराब से उनकी रीढ़ मज़बूत होती है 

शराब सरकार और शबाब के लिए ख़तरा तो नहीं है

फिर भी, कुछ लोग शराब को बेवजह बदनाम किये हैं 


जहाँ शराब बंद है

वहाँ कई साहित्यकार शराब पीते हैं 

जो शराब पीकर लिखते हैं 

वे धूम्रपान निषेध दिवस मनाते हैं

और इस वक्त शराब की पाबंदी पर चुप हैं 

  

मैं नहीं पीता हूँ

पर, मुझे महान शराबी पुरखे याद आ रहे हैं

क्या वे होते तो अपने यहाँ शराब बंद होती?


अब तो स्त्रियाँ भी पीती हैं शराब


मैंने स्त्रियों के मुँह से सुना है

कि मद्य सिर्फ़ मर्द के लिये नहीं है

किसी भी मदिरालय पर नहीं लिखा होता है

कि मरद-मेहरारू को दारू नहीं पीना चाहिए

भले ही लिखा होता है

कि शराब सेहत और समाज के लिये हानिकार है! 


©गोलेन्द्र पटेल (युवा कवि, आलोचक व संपादक)

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asalee sharaabee achchhe inasaan hote hain