आद्य औरत का अत्यंत
प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य हैं
मातृसत्तात्मक!
फिर भी हम
ऋग्वैदिक काल में आते हैं
जहाँ उषा है
उत्तम उम्मीद।
स्त्री का स्वतंत्र अस्तित्व
अनंत आकाश से ऊपर
अध्यात्म की शिक्षा-दीक्षा
समुद्र से गहरा मन:सागर
ऋचाएँ कंठस्थ थीं
वक्तव्यनिधि व्यक्त की
तर्क के तेराजू पर तौल।
वे महाविश्वविदुषी निम्न थीं
रोमशा ,अपाला ,उर्वशी ,
लोपामुद्रा ,विश्ववारा ,सिक्ता ,
निबावरी ,घोषा व सुलभा।
वैदिक युग में दो वर्ग
प्रथम *सद्योवधू* : विवाह के पूर्व
दूसरा *ब्रह्मवादिनी* : सम्पूर्ण जीवन
बुद्धि ,ज्ञान ,दर्शन ,तर्क ,
मीमांसा व साहित्य आदि
अध्ययन करती जैसे वेदवती
ऋषि कुशध्वज की कन्या
ब्रह्मवादिनी व महापंडिता
बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न स्त्री।
*काशकृत्स्नी* मीमांसा में विख्यात
याज्ञवल्क्य की पत्नी *मैत्रेयी* का नाम न पूछो
जनक सभा की विद्वगोष्ठी में विजेता *गार्गी*
अपने अद्भुत तर्कशक्ति से महर्षियों को मात देती
जिसमें प्रमुख थे याज्ञवल्क्य महाऋषि व उनके गुरु
चौंक उठी सामने झरोखे में बैठी रानी सभी।
रामायण काल में स्त्रियों के शिक्षक कभी
वाल्मीकि थे अत्रेयी के तो अगस्त्य मैत्रेयी के
पाण्डवों की मात कुन्ती अथर्ववेद में परांगत
और
अम्बा व शेखावत्य की शिक्षा
महाभारत की गरिमा है
बौद्ध युग में देखें तो
एक नहीं अनेक हैं थेरी
जिसमें थीं प्रमुख निम्न
शुभा ,सुमेधा, सुभद्रा ,अनोपमा ,
भद्रकुंडकेशा,जयंता ,गोतमी
वैशाली ,विशाखा व खेमा....
गुप्तकालीन गौरव प्रभावतीगुप्त
कश्मीर की शासिका सुगंध और दिद्दा
सोलंकी वंशी अक्का और भैला
राज्य कार्य के लिए इतिहास में विख्यात।
हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री नृत्यगीत
की अध्यापिका थी सखियों के बीच
प्रमाण है हर्षचरित व गाथासप्तशाती
रेखा ,रोहा ,माधवी ,अनुलक्ष्मी ,पाहई बद्धवही
व शशिप्रभा जैसी कवयित्रियों के कला कौशल का।
हम रजिया सुल्तान से रानी लक्ष्मीबाई
और अनेक भारतीय महिलाओं के
महान व्यक्तित्व से परिचित हैं ; जैसे-
कल्पना चावला ,इन्द्रा गाँधी ,सरोजनी नायडू ,लता मंगेशकर ,मीराबाई, सुभद्रा कुमारी चौहान ,महादेवी वर्मा एवं अन्य।
स्त्री चेतना का उत्खनन आधुनिक साहित्य का काम
हम वाल्मीकि , वेदव्यास व गौतम बुद्ध के
नारी नयन को छोडते हैं आते हैं हिंदी में
कबीर , तुलसी , जायसी व सुर से सीधे
प्रसाद , पंत ,निराला ,दिनकर ,प्रेमचंद ,
जैनेन्द्र ,यशपाल ,अज्ञेय एवं अन्य के पास
एक समय था
जब प्रसाद लिखते हैं *नारी तुम केवल श्रद्धा हो*
तब निराला कहते हैं: *वह तोड़ती पत्थर*
मैं चुपचाप पढ़ रहा हूँ
एक रचनाकार के भीतर का स्त्री
और आज के स्त्री का स्त्री।
कुछ लोग कैसे कहते हैं ?
आधुनिक स्त्रियों का स्थिति पहले से अच्छी है
पृथ्वी भी एक स्त्री है क्या इसकी स्थिति अच्छी?
नदी भी एक स्त्री है क्या इसकी?
या मेरे माँ की?
या मेरे पत्नी की?
या मेरे पुत्री की?
हे समाज के साईकिल का एक चक्का महापुरुष!
जब तक रहेगा
पितृसत्तात्मक!
कुशक्ति का घर में वास
तब तक रहेंगी
हाशिये पर स्त्री।
उपर्युक्त औरतों का औकात
ऋषियों ने ,महर्षियों ने ,शासकों ने , रचनाकारों ने
यहाँ तक की हमने और आप ने भी देखा
किसी पौधे के पुष्प का पूर्ण विकास
जिस प्रकार कली के पूर्ण विकास में निहित है
ठीक उसी प्रकार पुरुष का उत्तम उत्थान
स्त्री के उत्तम उत्थान में।
अतः आज हम कह सकते हैं कि नारी
किसी भी कार्य में पुरुषों से पीछे नहीं हैं
खुद के उन्नति और देश के उन्नति के लिए
हमें अपने समान ही अपने घर के स्त्रियों को
समानता ,स्वतंत्रता व शिक्षा देनी ही होगी
अर्थात् मातृसत्तात्मक बराबर पितृसत्तात्मक।....
*-गोलेन्द्र पटेल*
रचना : 24/03/2020
**औरत का औकात** से
*मोबाइल नंबर : 8429249326
Very very nice poem
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