मर्द की मर्ज़ स्त्री नहीं इश्क है
दर्ज़ की दर्द की दवा दिल ही है
रात में आसमान का चादर ओढ़
जुगनू की रोशनी में खत पढ़ना
कोई मज़ाक नहीं ,मुहब्बत है मेरी
सुबह सूर्य की कृपा से देखता हूँ
नयन नदी का आकर्षण झील ही है।
बात में ख़ास गान का आदर छोड़
राग अनुराग के ध्वनि में मत गढ़ना
धूप में पका रूप ही इज्ज़त है मेरी
जिन्दगी के नाव को घाट पर लगा
घाटवाक् कर काशी का कर्षित कवि
नये समाज के लिए नये यज्ञ का हवि
डालता और कविता में रवि का छवि
प्रेम की प्यासी पृथ्वी पुस्तक है मेरी।
माँ गंगा के स्नेह सागर में शब्द स्वर
तैर रहे हैं तरंगों के संग , माँ बैठकर
देख रही है उमंगों के रंग इन्द्रधनुष में
मैं देखता जीर्ण शीर्ण अंग नदी बीच
पावन पूज्य लाचारी बेचारी नारी की।
अनेक नालों से तंग हो तस्वीर देती
अपने दर्द के अभिव्यक्ति के लिए ही
हम सभी को और भावी भविष्य को
चाहती दूरूह दूषित जल का उद्धार हो
और मैं चाहता आपको नदी से प्यार हो।
अजी गोलेन्द्र बहुत समय हो गया
चलोगे घाट से घर या अभी रहोगे
अजी आप जाओ आज काव्यगुरु
और आदरणीय विजयनाथ मिश्र जी
आ रहे हैं यहाँ जो माँ के मानसपुत्र हैं
पैरों के धूल पानी से ही धुलते हैं
पानी नदियों का हो या कुएँ का
या समुद्र का वाष्पीकरण ओस
या संसद सदन का हो बिस्लेरी
पर हमें क्या हम पंक्षी है गंगाघाट के
गंदा गङ्गा जल पीना ही धर्म है मेरा
राष्ट्रीयता का प्रतीक ही कर्म है मेरा
शिवपुत्रवाहन की संज्ञा दे महामहर्षि
सृष्टि में नभचरों के प्रति दया दृष्टि की
शून्य से विस्तार तक केवल कथा नहीं
बनारस के सड़कों से उत्पन्न संगीत
संत साहित्य से होत हुए नवगीत में
इश्के मजाज़ी से सोशल मीडिया पर
सीधे सीधे टंग रहे हैं अद्यतन अध्येतव्य
सनम अद्भुत जगत संदेश खत है तेरी।
**घाट से घर**
*गोलेन्द्र पटेल*
रचना 01/03/2020
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