कोरोजीवी या कोरोजयी कविता के दौर में आचार्य सदानन्द शाही जी की कविताएं :-
१.
यत्र तत्र सर्वत्र कोरोना
जो घर से बाहर निकले ही नहीं
उन्हें भी हुआ
जिन्होंने निष्ठापूर्वक बजाई थी थाली
और जलाये थे दिये
उन्हें भी हुआ
जो लड़ रहे थे कोरोना से
निभा रहे थे ड्यूटी
उन्हें भी हुआ
जो डाक्टर थे
बचा रहे थे दूसरों का जीवन
उन्हें भी हुआ
जिन्होंने लिखी कोरोना चालीसा
कोरोना माई का व्रत रखा
उन्हें भी हुआ
हुआ उन्हें भी
जो यह सब नहीं कर रहे थे......
२.
अल्पमत में
जब बुद्ध ने राजपाट छोड़ा
अल्पमत में थे
जब सुकरात को जहर दिया गया
अल्पमत में थे
जब ईसा मसीह सलीब पर लटकाये गये
अल्पमत में थे
सूर्य नहीं
पृथ्वी लगाती है सूरज के चक्कर
ऐसा कहने वाले
ब्रूनो कापरनिकस और गैलेलियो
अल्पमत में थे
जब काशी छोड़नी पड़ी कबीर को
जरूर रहे होंगे
अल्पमत में......
**
३.
कारीगरी
जाति और जनवाद
कुर्सी और जनछवि
साज़िश रचना
आदर्श बघारना
कैसे साध लेते हो
ऐन वक्त पर राष्ट्रवादी
ऐन वक्त पर समाजवादी
वक्त वक्त पर जनवादी
हर वक्त अवसरवादी
कैसे हो लेते हो
जाति की नौका पर
स्वार्थ का माल लादे
घाट घाट घूमने वाले
अरे ओ महानायक
कहां से सीखी
ऐसी कारीगरी
कहां से सीखा छलना
और छलते रहना।
४.
आप डेढ़ हड्डी के कवियों से डरते हैं?
विदूषक ने पूछा
"नहीं,बिल्कुल नहीं"।
'फिर कवियों को जेल में क्यों डाल रखा है?'
"ताकि लोगों को पता चले कि
मैं भी कविता की समझ रखता हूं।"
५.
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना तुच्छ क्यों नहीं बना दिया
कि अपने समय के
किसी भी राजनीतिक दल
या विचार की
चूहेदानी में अमा सकूं
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना निरीह क्यों नहीं बना दिया
कि सिर्फ तुम्हारे लिए गायी जाने वाली प्रार्थनाएं
अपने समय के
छलात्कारी महाप्रभुओं के लिए
खुलकर गा सकूं
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना मूढ़ ही क्यों नहीं बना दिया
कि समय के रथ पर सवार
किसी भी लम्पट हत्यारे को
तुम्हारी जगह बिठाकर
दिन-रात
आरती उतार सकूं
हे मेरे ईश्वर !
मुझे ऐसी भाषा क्यों नहीं दे दी
जिसके शब्दकोश में
सिर्फ पार्टी झंडा डंडा नारा
और गालियां होतीं
मैं चाहता भी तो
सत्य,न्याय,मानवता,प्रेम,करुणा
जैसे शब्द नहीं बोला पाता
और अपराधी नहीं कहलाता
हे मेरे ईश्वर!
तुमने मुझे नाहक बना दिया
बुद्ध, गोरख और कबीर
का वारिस
बेहतर होता
मुझे कम्प्यूटर बना देते
नहीं डालते कोई मेमोरी कार्ड
कोई रोज रोज प्रोग्रामिंग कर देता
और मैं खुशी से उछलता कूदता
आसमान पर थूकता
मस्त रहता
हे मेरे ईश्वर !
तुमने मुझे ऐसा क्यों बना दिया
कि मेरे लिए समय की हर चादर
छोटी पड़ जाती है....!
६.
विकास हत्यारा है
हत्या के पीछे विकास है
विकास के पीछे हत्या है
जहां विकास है
वहीं हत्या है
हत्यारा विकास है।
७.
मैं दूब हूं
मुझे काटो!
कितनी बार काटोगे?
फिर उग आऊंगा
और हां
तुम्हारी बंजर हथेली पर नहीं
धरती पर
धरती मेरी मां है।
८.
जो बेचेगा
वही बचेगा
बेचो बेचो
जल्दी बेचो
यह भी बेचो
वह भी बेचो
खुली छूट है
नया नया
लाइसेंस मिला है
सेंस बेच लो
सेंस और सेंटेंस बेच लो
जुमला बेचो
नारे बेचो
गिन गिन के
सब तारे बेचो
बाप की धरती
बाप का धन
बेच रहा हूं
मेरा मन!
धरती क्या
आकाश बेच लो
दया बेच लो
दुआ बेच लो
कमजोरी की
दवा बेच लो
देशप्रेम की
हवा चली है
हवा बेच लो
जल्दी करो
मर जायेगा
जल्दी करो
उतर जायेगा
देश का पानी
खुला बेच लो
बेमतलब की
चिल्ल पों है
कतवारू की
नानी बेच लो
मां की ममता
उधर बेच लो
बीबी का त्याग
इधर बेच लो
गर्ल फ्रेंड का
पता बेच लो
घृणा बेच लो
प्रेम बेच लो
और पते की बात सुनो
खोलो गांठ
बंधे बंधे तो सड़ जायेगा
सारा का सारा
धरम बेच लो
फिर भी कम हो
थोड़ा सा
ईमान बेच लो
होड़ मची है
दूकान सजा लो
बेचो बेचो
जल्दी बेचो
यह भी बेचो
वह भी बेचो।
९.
आत्मा में चमकीली प्यास भर गयी है
जग भर दीखती है सुनहली तस्वीरें मुझको
मानो कि कल रात किसी अनपेक्षित क्षण में ही सहसा
प्रेम कर लिया हो मनोहर मुख से
जीवन भर के लिए!!
मानो कि उस क्षण
अतिशय मृदु किन्हीं बाहों ने आकर
कस लिया था मुझको
उस स्वप्न स्पर्श की,चुम्बन घटनाकी याद आ रही है
याद आ रही है!!
१०.
वोट लोट पार्टी का घोषणा पत्र
हमें तो वोट चाहिए
वोट के लिए लोट चाहिए
पानी बरस रहा है बरसे
हमें तो वोट चाहिए
बाढ आई है
खुश किस्मती है बाढ़ आई है
बाढ का राहत कोष बनेगा
कोष खरच कर लोट मिलेगा
लोट मिलेगा तो वोट मिलेगा
जो डूब गये
उनका क्या?
उनका क्या
सो डूब गये
उन्हें डूबना था
यही नियति यही लिखा था
सूखा पड़ा है पड़े
हमें तो वोट चाहिए
सूखा राहत कोष बनेगा
कोष खरच कर लोट मिलेगा
लोट रहेगा वोट मिलेगा
सूखे चपेट में आकर मरने वालों
दुख मत करना
हम आयेंगे मिलने
मिलकर रोयेंगे
रो रो कर धरती को आंसू से तर कर देंगे
अहा आह क्या दृश्य बनेगा
जुट जायेंगे चेनल वाले
दृश्य देखकर वोट मिलेगा
महामारी माई
तुम भी आओ
हाथ बटाओ
हाथ बटाओ
साथ निभाओ
धरो विरोधी
मरो विरोधी
सारा हल्ला सारा गुल्ला
सबको क्वारंटीन करा दो
नौ लड्डू नौ फूल चढ़ाकर
तेरा हम अभिषेक करेंगे
नौ लवंग नौ पान चढ़ाकर
तेरा हम उन्मेष करेंगे
चिंता मत करना
मूर्ति बन जायेगी
तेरी भी घर घर में
बस
हमें तो वोट चाहिए
वोट के लिए लोट चाहिए......!
११.
उलटबांसी
डाक्टर भोंपू बजा रहा था
मास्टर ट्रैफिक कंट्रोल के लिए तैनात थे
पुलिस के जिम्मे डाक्टरी आ गयी थी
अर्थशास्त्री लोक-नृत्य कर रहे थे
राजनीति शास्त्री विदूषकों के नाक में दम किए हुए था
इतिहासकार अर्थ रचना संभालने में जुटे थे
कवियों ने भांटों का पेशा हथिया लिया था
भांट इतिहास लिखने के लिए मजबूर थे
पत्रकारों ने खोल लिए थे मसाज पार्लर
वकील योगा सिखाने लगे थे
योगिराज तेल बेंच रहे थे
भोंपू बजाने वाले के हाथ में विधि व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी थी
विदूषक वीजा पासपोर्ट विभाग में जम गये थे
लोक नर्तक जुट गये थे एटामिक रिसर्च के फ्रंट पर
मदारी युद्धनीति पर काम कर रहे थे
फिल्मी कलाकार फरमान जारी कर रहे थे
विलेन सेवा कार्य में जुटा हुआ था
महानायक वीमा पालिसी बेचने में मशगूल था
पुजारी ले उड़े थे दारू के ठेके
और जब दारूवाला ज्योतिष बांच रहा था
ठीक उसी समय
सल्फाश की दुकानों पर
खरीदारों की लम्बी लाइन लग चुकी थी
१२.
*कबीर जयंती पर*
नयी चादर बुनी जाती रहेगी
मुरदों के गांव में सब मर जायेंगे
कबीर नहीं मरेंगे
जब तक संसार जलता रहेगा
कबीर धाह देते रहेंगे
जब तक कागज की लेखी
खड़ी करती रहेगी भ्रम की टाटी
आती रहेगी ज्ञान की आंधी
बैठे ठाले पंडे और पुरोहित
चादर मैली करते रहें-
कबीर का करघा चलता रहेगा
और नई चादर बुनी जाती रहेगी
१३.
कालिख पोतो
कालिख पोतो
हर मुखड़ा जो चमक रहा है
हर चेहरा जो दमक रहा है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
उसकी कमीज़ साफ कैसे है
उसके मुंह पर उजास कैसे है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
मेरी चादर इतनी मैली और कुचैली
उसकी चादर अब तक झकास है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
आओ बच्चो !आओ लाला!
यह मत सोचो
क्या सफेद है क्या है काला
कालिख पोतो
कालिख पोतो
कालिख का कोई दाम नहीं है
फ्री मिलती है , गोदाम खुला है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
हर मुखड़ा जो चमक रहा है
हर चेहरा जो दमक रहा है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
माल और असबाब मिलेगा
ओहदा और इनाम मिलेगा
कालिख पोतों
कालिख पोतो
१४.
परोसनि मांगे कन्त हमारा
पीव क्यूँ बौरी मिलहि उधारा
मासा मांगे रती ना देऊ
घटे मेरा प्रेम तो कासनि लेहूँ
राखि परोसनि लरिका मोरा ,
जे कछु पाऊ सु आधा तोरा
बन बन ढूंढो नैन भरी जोऊ
पीव ना मिले तो बिलखी करि रोऊ
कहे कबीर यहु सहज हमारा,
बिरली सुहागिन कन्त हमारा
१५.
*वह दृश्य याद रखा जाएगा*
वह दृश्य जिसे
तारीख सात मई साल दो हजार बीस
की सुबह
जवान हो रही इक्कीसवीं सदी
के महान संवाददाता
बाल सूर्य ने पहले पहल देखा था
याद रखा जायेगा
वैशाख पूर्णिमा की धवल रात में
रेल की
पटरियों पर थक कर चूर
सो रहे पांवों को
रौंदते हुए जा चुकी थी
मालगाड़ी
पटरियोंके इर्द गिर्द बिखरी थीं
रोटियां
जो अब भी
पूर्णिमा के चांद से होड़ ले रही थीं
आसमान विस्मित था
धरती लज्जित
पूर्णिमा का चांद
चुल्लू भर पानी की तलाश में कब का
निकल चुका था
सूरज धरती से आंख चुराता भाग रहा था
सूरज के चेहरे में
चांद के धब्बे नजर आ रहे थे।
तारीख सात मई साल दो हजार बीस
की सुबह
जवान हो रही इक्कीसवीं सदी
के महान संवाददाता
बाल सूर्य ने पहले पहल देखा था
वह दृश्य
याद रखा जायेगा।
१६.
हुक्म है
हुक्मदाता का
जो फेसबुक पर नहीं हैं
वे हैं ही नहीं
जिनका नहीं है ट्वीटर पर एकाउंट
जिनका नहीं है इन्स्ट्राग्राम पर खाता
जिनके ब्लाग नहीं है
यूट्यूब चैनल भी नहीं है
जो नहीं इस्तेमाल करते ईमेल
उनका होना प्रामाणिक नहीं है
वे किस्से में हो सकते हैं
कहानी में हो सकते हैं
महज कविताओं में दर्ज होने से
उनके होने को नहीं माना जायेगा
उन्हें किसी न किसी सोशल मीडिया की
नागरिकता लेनी होगी
तभी उनकी गिनती की जाएगी
यही हुक्म हुआ है
हुक्मदाता का।
१७.
हे मेरे प्रिय
इस विलक्षण प्रीति को तोडना मत
( तुमने तोड़ भी लिया )
हम तो नहीं तोडने वाले
तुमसे नाता तोडकर
आखिर हम जोडेंगे किससे ?
हमने तो जोड लिया है सच्चा प्रेम
तुमसे जोड़कर
और सबसे तोड़ लिया है
अब मैं सिर्फ
तुम्हारे लिए गाता हूँ
अब यही है मेरा जीवन
और मेरी पूजा
१८.
कोरोना समय में कविता
1
कोरोना तुम्हारी जाति क्या है?
कोरोना तुम्हारी जाति क्या है
कोरोना तुम्हारा धर्म क्या है
कोरोना तुम्हारी विचारधारा क्या है
कोरोना तुम किस देश के वासी हो
कोरोना तुम किस रंग के हो
काले हो या सफेद
या निपट भूरे हो
कोरोना
क्या तुम दढियल हो
जैसा कि हमारे न्यूज चैनल बता रहे हैं
या क्लीन शेव
तुम लुंगी पहनते हो
दक्षिण भारतीय तो नहीं हो
तुम्हारी नाक चपटी है क्या
क्या तुम्हारी शक्ल मंगोलों से मिलती है?
कोरोना तुम इतना उधम क्यों मचाए हो
आओ न
इधर बैठो
हमारे पालतू बन जाओ
हम जिसे कहें उसे सताओ
जिसे कहें उसे बक्स दो
टीका चंदन लगाओ
हम तुम्हारी मूर्ति बनवा देंगे
हम तुम्हारे लिए मंदिर भी बनवा देंगे
चालीस दिन होते होते
लिख देंगे तुम्हारे लिए चालीसा
बना देंगे मंत्र
स्तोत्र कई तरह के
2
हे सर्व शक्तिमान!
तुमने कहा घर में रहो
हम घर में रहें
तुमने कहा थाली पीटो
हमने थाली पीटी
तुमने कहा लोटा बजाओ
हमने लोटा बजाओ
तुमने कहा दांत चिआरो
हमने दांत चिआरा
तुमने कहा उठक बैठक करो
हमने उठक बैठक किया
तुमने कहा झुके रहो
हमने रेंगना शुरू कर दिया
तुमने कहा आवाज निकालो
हम रेंकने लगे
तुमने जो जो कहा
हमने वह सब किया
फिर भी तुमने हमारी घंटी बजा दी
हे सर्व शक्तिमान!कोरोना!
इतनी शक्ति कहां से मिली।
१९.
यही भारत है
ये जो सिर पर गठरियां लिए भागे जा रहे हैं
पांवों से नाप रहे हैं जम्बूदीप
जरूरी नहीं कि तुम्हें इनके दुख का अंदाजा हो
जरूरी यह भी नहीं कि तुम्हें उनकी बुद्धि का अंदाजा हो
तुम जो अपने सुरक्षित स्थानों में बैठे
वर्क ऐट होम कर रहे हो
जुटा लिए हो साल भर का राशन
नहीं समझ पाओगे
शाम के भोजन का इंतजाम न होने पर
कैसा लगता है
कैसा लगता है
बच्चों को तीन दिन से भूखा देखकर
अगर यह सब नहीं समझ पाते
तो भी कोई बात नहीं
पर यह गांठ बांध कर रख लो
यही भारत भाग्य विधाता हैं
और कुछ नहीं कर सकते मत करो
अपनी गालियों को किसी और मौके के लिए बचा लो
ये भारत माता की संतति हैं
अपनी बेचारगी की भरपाई इन्हें गाली देकर मत करो
यही वो शय हैं जिसे भारत कहते हैं।
भारत का आदर करो
वह माता है।
२०.
*पांवों की अभ्यर्थना में*
हमारी यात्रा के आदिम साधन हैं पांव
बाद में आयीं बैलगाड़ियां
घोड़ा गाड़ियां और गाड़ियां
रेलगाड़ियां और बाद में आईं
और भागते-भागते हो गयीं बुलेट ट्रेन
साइकिलें आईं
और रफ्तार बढ़ाती हुई
बदल गयीं मोटर साइकिलों में
जहाज आये
पंख फैलाए
नापते रहे अनंत आकाश
एक एक कर सब बंद हुए
सबसे बाद में आने वाले हवाई जहाजों ने
सबसे पहले साथ छोड़ा
रेलगाड़ी के पहियों ने बंद कर दिया
पटरी पर सरकना
बैल पहले ही अलगा दिए गये थे
गाड़ियों से
अपने गुट्ठल कंधों के साथ
कभी कभार दिख जाते हैं
यह बताने के लिए
कि हम भी कभी बैल थे
भाग्य विधाताओं के गैराज में जा छुपी गाड़ियां
बता रही थीं
कोई नहीं है किसी का भाग्य विधाता
ऐसे वक्त में
जब कि तरह तरह के पहियों ने डाल दिए हथियार
पांव अनथक चले जा रहे हैं
समय जितना कठिन हो
रास्ता जितना बीहड़
दूरी जितनी अलंघ्य
आदमी के पांवों ने छोडा नहीं
चलते चले जाने का कौशल
वे निरंतर यह साबित करने में लगे हैं
कि
आदमी अपने पांवों पर खड़ा है
अनंत काल से
और
खड़ा रहेगा
अनंत काल तक।
२१.
करती रही इन्तजार
जब मैं सीता थी
अपने वनवासी पति का सिर गोद में लिए
बैठी ही तो थी
भविष्य की बाट जोहती
देवताओं के राजा इन्द्र के बेटे जयन्त ने
मेरी छातियों को लहूलुहान कर दिया
जब मैं अहिल्या थी
अपनी कुटिया में सोयी आधी नींद में
पति गौतम का इन्तजार करती हुई
देवताओं के राजा इन्द्र के
छलात्कार का शिकार बनीं
आकाश में चमकने वाला चन्द्रमा
सिर्फ गवाह नहीं था
पूरे वाकये में शामिल था
देवताओं का देवत्व
इस कदर बरपा
कि मैं
पथरा गई
जब द्रौपदी हुई
अपने पाँचो पतियों की अनुगामिनी
(सनद रहे कि
मैंने नहीं वरा था पाँच पतियों को
माता कुन्ती केआदेश से
बाट दी गयी बराबर बराबर)
मैं नहीं खेल रही थी जुआ
सिर्फ दाँव पर चढ़ा दी गयी थी
मैं हारी नही थी
सिर्फ जीत ली गयी थी
लायी गयी दुर्योधन की सभा में
पाँचो पतियों के साथ
और दु:शासन के पशुबल से
अपमानित हुई
कोई साधारण सभा नहीं थी वह
वहाँ पितामह भीष्म थे
वहाँ द्रोणाचार्य थे
वहाँ कृपाचार्य थे
और जाने कौन कौन से आचार्य थे
सब धृतराष्ट्र थे
एक स्त्री निर्वस्त्र की जा रही थी
और यह महान सभा देख रही थी
महारथी चुप थे
रश्मिरथी चुप थे
आचार्य चुप थे
इतिहासवेत्ता
नीति निर्माता
सब चुप थे
सोचती हूँ क्यों चुप थे सब!
कि दोष मेरा ही था
कि मेरे परिधान दोषी थे
नहीं तो
मेरे स्त्री शरीर का दोष तो होगा ही होगा
मैं इस स्त्री शरीर का क्या करूँ
जिसको लिए दिए
देवताओं
महारथियो
आचार्यो
के
कल, बल, छल का
शिकार होती रही
पत्थर बनती रही
मुक्ति के लिए
किसी पुरुष के पैरों की ठोकर का
करती रही
इन्तजार।
2016
१.
यत्र तत्र सर्वत्र कोरोना
जो घर से बाहर निकले ही नहीं
उन्हें भी हुआ
जिन्होंने निष्ठापूर्वक बजाई थी थाली
और जलाये थे दिये
उन्हें भी हुआ
जो लड़ रहे थे कोरोना से
निभा रहे थे ड्यूटी
उन्हें भी हुआ
जो डाक्टर थे
बचा रहे थे दूसरों का जीवन
उन्हें भी हुआ
जिन्होंने लिखी कोरोना चालीसा
कोरोना माई का व्रत रखा
उन्हें भी हुआ
हुआ उन्हें भी
जो यह सब नहीं कर रहे थे......
२.
अल्पमत में
जब बुद्ध ने राजपाट छोड़ा
अल्पमत में थे
जब सुकरात को जहर दिया गया
अल्पमत में थे
जब ईसा मसीह सलीब पर लटकाये गये
अल्पमत में थे
सूर्य नहीं
पृथ्वी लगाती है सूरज के चक्कर
ऐसा कहने वाले
ब्रूनो कापरनिकस और गैलेलियो
अल्पमत में थे
जब काशी छोड़नी पड़ी कबीर को
जरूर रहे होंगे
अल्पमत में......
**
३.
कारीगरी
जाति और जनवाद
कुर्सी और जनछवि
साज़िश रचना
आदर्श बघारना
कैसे साध लेते हो
ऐन वक्त पर राष्ट्रवादी
ऐन वक्त पर समाजवादी
वक्त वक्त पर जनवादी
हर वक्त अवसरवादी
कैसे हो लेते हो
जाति की नौका पर
स्वार्थ का माल लादे
घाट घाट घूमने वाले
अरे ओ महानायक
कहां से सीखी
ऐसी कारीगरी
कहां से सीखा छलना
और छलते रहना।
४.
आप डेढ़ हड्डी के कवियों से डरते हैं?
विदूषक ने पूछा
"नहीं,बिल्कुल नहीं"।
'फिर कवियों को जेल में क्यों डाल रखा है?'
"ताकि लोगों को पता चले कि
मैं भी कविता की समझ रखता हूं।"
५.
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना तुच्छ क्यों नहीं बना दिया
कि अपने समय के
किसी भी राजनीतिक दल
या विचार की
चूहेदानी में अमा सकूं
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना निरीह क्यों नहीं बना दिया
कि सिर्फ तुम्हारे लिए गायी जाने वाली प्रार्थनाएं
अपने समय के
छलात्कारी महाप्रभुओं के लिए
खुलकर गा सकूं
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना मूढ़ ही क्यों नहीं बना दिया
कि समय के रथ पर सवार
किसी भी लम्पट हत्यारे को
तुम्हारी जगह बिठाकर
दिन-रात
आरती उतार सकूं
हे मेरे ईश्वर !
मुझे ऐसी भाषा क्यों नहीं दे दी
जिसके शब्दकोश में
सिर्फ पार्टी झंडा डंडा नारा
और गालियां होतीं
मैं चाहता भी तो
सत्य,न्याय,मानवता,प्रेम,करुणा
जैसे शब्द नहीं बोला पाता
और अपराधी नहीं कहलाता
हे मेरे ईश्वर!
तुमने मुझे नाहक बना दिया
बुद्ध, गोरख और कबीर
का वारिस
बेहतर होता
मुझे कम्प्यूटर बना देते
नहीं डालते कोई मेमोरी कार्ड
कोई रोज रोज प्रोग्रामिंग कर देता
और मैं खुशी से उछलता कूदता
आसमान पर थूकता
मस्त रहता
हे मेरे ईश्वर !
तुमने मुझे ऐसा क्यों बना दिया
कि मेरे लिए समय की हर चादर
छोटी पड़ जाती है....!
६.
विकास हत्यारा है
हत्या के पीछे विकास है
विकास के पीछे हत्या है
जहां विकास है
वहीं हत्या है
हत्यारा विकास है।
७.
मैं दूब हूं
मुझे काटो!
कितनी बार काटोगे?
फिर उग आऊंगा
और हां
तुम्हारी बंजर हथेली पर नहीं
धरती पर
धरती मेरी मां है।
८.
जो बेचेगा
वही बचेगा
बेचो बेचो
जल्दी बेचो
यह भी बेचो
वह भी बेचो
खुली छूट है
नया नया
लाइसेंस मिला है
सेंस बेच लो
सेंस और सेंटेंस बेच लो
जुमला बेचो
नारे बेचो
गिन गिन के
सब तारे बेचो
बाप की धरती
बाप का धन
बेच रहा हूं
मेरा मन!
धरती क्या
आकाश बेच लो
दया बेच लो
दुआ बेच लो
कमजोरी की
दवा बेच लो
देशप्रेम की
हवा चली है
हवा बेच लो
जल्दी करो
मर जायेगा
जल्दी करो
उतर जायेगा
देश का पानी
खुला बेच लो
बेमतलब की
चिल्ल पों है
कतवारू की
नानी बेच लो
मां की ममता
उधर बेच लो
बीबी का त्याग
इधर बेच लो
गर्ल फ्रेंड का
पता बेच लो
घृणा बेच लो
प्रेम बेच लो
और पते की बात सुनो
खोलो गांठ
बंधे बंधे तो सड़ जायेगा
सारा का सारा
धरम बेच लो
फिर भी कम हो
थोड़ा सा
ईमान बेच लो
होड़ मची है
दूकान सजा लो
बेचो बेचो
जल्दी बेचो
यह भी बेचो
वह भी बेचो।
९.
आत्मा में चमकीली प्यास भर गयी है
जग भर दीखती है सुनहली तस्वीरें मुझको
मानो कि कल रात किसी अनपेक्षित क्षण में ही सहसा
प्रेम कर लिया हो मनोहर मुख से
जीवन भर के लिए!!
मानो कि उस क्षण
अतिशय मृदु किन्हीं बाहों ने आकर
कस लिया था मुझको
उस स्वप्न स्पर्श की,चुम्बन घटनाकी याद आ रही है
याद आ रही है!!
१०.
वोट लोट पार्टी का घोषणा पत्र
हमें तो वोट चाहिए
वोट के लिए लोट चाहिए
पानी बरस रहा है बरसे
हमें तो वोट चाहिए
बाढ आई है
खुश किस्मती है बाढ़ आई है
बाढ का राहत कोष बनेगा
कोष खरच कर लोट मिलेगा
लोट मिलेगा तो वोट मिलेगा
जो डूब गये
उनका क्या?
उनका क्या
सो डूब गये
उन्हें डूबना था
यही नियति यही लिखा था
सूखा पड़ा है पड़े
हमें तो वोट चाहिए
सूखा राहत कोष बनेगा
कोष खरच कर लोट मिलेगा
लोट रहेगा वोट मिलेगा
सूखे चपेट में आकर मरने वालों
दुख मत करना
हम आयेंगे मिलने
मिलकर रोयेंगे
रो रो कर धरती को आंसू से तर कर देंगे
अहा आह क्या दृश्य बनेगा
जुट जायेंगे चेनल वाले
दृश्य देखकर वोट मिलेगा
महामारी माई
तुम भी आओ
हाथ बटाओ
हाथ बटाओ
साथ निभाओ
धरो विरोधी
मरो विरोधी
सारा हल्ला सारा गुल्ला
सबको क्वारंटीन करा दो
नौ लड्डू नौ फूल चढ़ाकर
तेरा हम अभिषेक करेंगे
नौ लवंग नौ पान चढ़ाकर
तेरा हम उन्मेष करेंगे
चिंता मत करना
मूर्ति बन जायेगी
तेरी भी घर घर में
बस
हमें तो वोट चाहिए
वोट के लिए लोट चाहिए......!
११.
उलटबांसी
डाक्टर भोंपू बजा रहा था
मास्टर ट्रैफिक कंट्रोल के लिए तैनात थे
पुलिस के जिम्मे डाक्टरी आ गयी थी
अर्थशास्त्री लोक-नृत्य कर रहे थे
राजनीति शास्त्री विदूषकों के नाक में दम किए हुए था
इतिहासकार अर्थ रचना संभालने में जुटे थे
कवियों ने भांटों का पेशा हथिया लिया था
भांट इतिहास लिखने के लिए मजबूर थे
पत्रकारों ने खोल लिए थे मसाज पार्लर
वकील योगा सिखाने लगे थे
योगिराज तेल बेंच रहे थे
भोंपू बजाने वाले के हाथ में विधि व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी थी
विदूषक वीजा पासपोर्ट विभाग में जम गये थे
लोक नर्तक जुट गये थे एटामिक रिसर्च के फ्रंट पर
मदारी युद्धनीति पर काम कर रहे थे
फिल्मी कलाकार फरमान जारी कर रहे थे
विलेन सेवा कार्य में जुटा हुआ था
महानायक वीमा पालिसी बेचने में मशगूल था
पुजारी ले उड़े थे दारू के ठेके
और जब दारूवाला ज्योतिष बांच रहा था
ठीक उसी समय
सल्फाश की दुकानों पर
खरीदारों की लम्बी लाइन लग चुकी थी
१२.
*कबीर जयंती पर*
नयी चादर बुनी जाती रहेगी
मुरदों के गांव में सब मर जायेंगे
कबीर नहीं मरेंगे
जब तक संसार जलता रहेगा
कबीर धाह देते रहेंगे
जब तक कागज की लेखी
खड़ी करती रहेगी भ्रम की टाटी
आती रहेगी ज्ञान की आंधी
बैठे ठाले पंडे और पुरोहित
चादर मैली करते रहें-
कबीर का करघा चलता रहेगा
और नई चादर बुनी जाती रहेगी
१३.
कालिख पोतो
कालिख पोतो
हर मुखड़ा जो चमक रहा है
हर चेहरा जो दमक रहा है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
उसकी कमीज़ साफ कैसे है
उसके मुंह पर उजास कैसे है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
मेरी चादर इतनी मैली और कुचैली
उसकी चादर अब तक झकास है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
आओ बच्चो !आओ लाला!
यह मत सोचो
क्या सफेद है क्या है काला
कालिख पोतो
कालिख पोतो
कालिख का कोई दाम नहीं है
फ्री मिलती है , गोदाम खुला है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
हर मुखड़ा जो चमक रहा है
हर चेहरा जो दमक रहा है
कालिख पोतो
कालिख पोतो
माल और असबाब मिलेगा
ओहदा और इनाम मिलेगा
कालिख पोतों
कालिख पोतो
१४.
परोसनि मांगे कन्त हमारा
पीव क्यूँ बौरी मिलहि उधारा
मासा मांगे रती ना देऊ
घटे मेरा प्रेम तो कासनि लेहूँ
राखि परोसनि लरिका मोरा ,
जे कछु पाऊ सु आधा तोरा
बन बन ढूंढो नैन भरी जोऊ
पीव ना मिले तो बिलखी करि रोऊ
कहे कबीर यहु सहज हमारा,
बिरली सुहागिन कन्त हमारा
१५.
*वह दृश्य याद रखा जाएगा*
वह दृश्य जिसे
तारीख सात मई साल दो हजार बीस
की सुबह
जवान हो रही इक्कीसवीं सदी
के महान संवाददाता
बाल सूर्य ने पहले पहल देखा था
याद रखा जायेगा
वैशाख पूर्णिमा की धवल रात में
रेल की
पटरियों पर थक कर चूर
सो रहे पांवों को
रौंदते हुए जा चुकी थी
मालगाड़ी
पटरियोंके इर्द गिर्द बिखरी थीं
रोटियां
जो अब भी
पूर्णिमा के चांद से होड़ ले रही थीं
आसमान विस्मित था
धरती लज्जित
पूर्णिमा का चांद
चुल्लू भर पानी की तलाश में कब का
निकल चुका था
सूरज धरती से आंख चुराता भाग रहा था
सूरज के चेहरे में
चांद के धब्बे नजर आ रहे थे।
तारीख सात मई साल दो हजार बीस
की सुबह
जवान हो रही इक्कीसवीं सदी
के महान संवाददाता
बाल सूर्य ने पहले पहल देखा था
वह दृश्य
याद रखा जायेगा।
१६.
हुक्म है
हुक्मदाता का
जो फेसबुक पर नहीं हैं
वे हैं ही नहीं
जिनका नहीं है ट्वीटर पर एकाउंट
जिनका नहीं है इन्स्ट्राग्राम पर खाता
जिनके ब्लाग नहीं है
यूट्यूब चैनल भी नहीं है
जो नहीं इस्तेमाल करते ईमेल
उनका होना प्रामाणिक नहीं है
वे किस्से में हो सकते हैं
कहानी में हो सकते हैं
महज कविताओं में दर्ज होने से
उनके होने को नहीं माना जायेगा
उन्हें किसी न किसी सोशल मीडिया की
नागरिकता लेनी होगी
तभी उनकी गिनती की जाएगी
यही हुक्म हुआ है
हुक्मदाता का।
१७.
हे मेरे प्रिय
इस विलक्षण प्रीति को तोडना मत
( तुमने तोड़ भी लिया )
हम तो नहीं तोडने वाले
तुमसे नाता तोडकर
आखिर हम जोडेंगे किससे ?
हमने तो जोड लिया है सच्चा प्रेम
तुमसे जोड़कर
और सबसे तोड़ लिया है
अब मैं सिर्फ
तुम्हारे लिए गाता हूँ
अब यही है मेरा जीवन
और मेरी पूजा
१८.
कोरोना समय में कविता
1
कोरोना तुम्हारी जाति क्या है?
कोरोना तुम्हारी जाति क्या है
कोरोना तुम्हारा धर्म क्या है
कोरोना तुम्हारी विचारधारा क्या है
कोरोना तुम किस देश के वासी हो
कोरोना तुम किस रंग के हो
काले हो या सफेद
या निपट भूरे हो
कोरोना
क्या तुम दढियल हो
जैसा कि हमारे न्यूज चैनल बता रहे हैं
या क्लीन शेव
तुम लुंगी पहनते हो
दक्षिण भारतीय तो नहीं हो
तुम्हारी नाक चपटी है क्या
क्या तुम्हारी शक्ल मंगोलों से मिलती है?
कोरोना तुम इतना उधम क्यों मचाए हो
आओ न
इधर बैठो
हमारे पालतू बन जाओ
हम जिसे कहें उसे सताओ
जिसे कहें उसे बक्स दो
टीका चंदन लगाओ
हम तुम्हारी मूर्ति बनवा देंगे
हम तुम्हारे लिए मंदिर भी बनवा देंगे
चालीस दिन होते होते
लिख देंगे तुम्हारे लिए चालीसा
बना देंगे मंत्र
स्तोत्र कई तरह के
2
हे सर्व शक्तिमान!
तुमने कहा घर में रहो
हम घर में रहें
तुमने कहा थाली पीटो
हमने थाली पीटी
तुमने कहा लोटा बजाओ
हमने लोटा बजाओ
तुमने कहा दांत चिआरो
हमने दांत चिआरा
तुमने कहा उठक बैठक करो
हमने उठक बैठक किया
तुमने कहा झुके रहो
हमने रेंगना शुरू कर दिया
तुमने कहा आवाज निकालो
हम रेंकने लगे
तुमने जो जो कहा
हमने वह सब किया
फिर भी तुमने हमारी घंटी बजा दी
हे सर्व शक्तिमान!कोरोना!
इतनी शक्ति कहां से मिली।
१९.
यही भारत है
ये जो सिर पर गठरियां लिए भागे जा रहे हैं
पांवों से नाप रहे हैं जम्बूदीप
जरूरी नहीं कि तुम्हें इनके दुख का अंदाजा हो
जरूरी यह भी नहीं कि तुम्हें उनकी बुद्धि का अंदाजा हो
तुम जो अपने सुरक्षित स्थानों में बैठे
वर्क ऐट होम कर रहे हो
जुटा लिए हो साल भर का राशन
नहीं समझ पाओगे
शाम के भोजन का इंतजाम न होने पर
कैसा लगता है
कैसा लगता है
बच्चों को तीन दिन से भूखा देखकर
अगर यह सब नहीं समझ पाते
तो भी कोई बात नहीं
पर यह गांठ बांध कर रख लो
यही भारत भाग्य विधाता हैं
और कुछ नहीं कर सकते मत करो
अपनी गालियों को किसी और मौके के लिए बचा लो
ये भारत माता की संतति हैं
अपनी बेचारगी की भरपाई इन्हें गाली देकर मत करो
यही वो शय हैं जिसे भारत कहते हैं।
भारत का आदर करो
वह माता है।
२०.
*पांवों की अभ्यर्थना में*
हमारी यात्रा के आदिम साधन हैं पांव
बाद में आयीं बैलगाड़ियां
घोड़ा गाड़ियां और गाड़ियां
रेलगाड़ियां और बाद में आईं
और भागते-भागते हो गयीं बुलेट ट्रेन
साइकिलें आईं
और रफ्तार बढ़ाती हुई
बदल गयीं मोटर साइकिलों में
जहाज आये
पंख फैलाए
नापते रहे अनंत आकाश
एक एक कर सब बंद हुए
सबसे बाद में आने वाले हवाई जहाजों ने
सबसे पहले साथ छोड़ा
रेलगाड़ी के पहियों ने बंद कर दिया
पटरी पर सरकना
बैल पहले ही अलगा दिए गये थे
गाड़ियों से
अपने गुट्ठल कंधों के साथ
कभी कभार दिख जाते हैं
यह बताने के लिए
कि हम भी कभी बैल थे
भाग्य विधाताओं के गैराज में जा छुपी गाड़ियां
बता रही थीं
कोई नहीं है किसी का भाग्य विधाता
ऐसे वक्त में
जब कि तरह तरह के पहियों ने डाल दिए हथियार
पांव अनथक चले जा रहे हैं
समय जितना कठिन हो
रास्ता जितना बीहड़
दूरी जितनी अलंघ्य
आदमी के पांवों ने छोडा नहीं
चलते चले जाने का कौशल
वे निरंतर यह साबित करने में लगे हैं
कि
आदमी अपने पांवों पर खड़ा है
अनंत काल से
और
खड़ा रहेगा
अनंत काल तक।
२१.
करती रही इन्तजार
जब मैं सीता थी
अपने वनवासी पति का सिर गोद में लिए
बैठी ही तो थी
भविष्य की बाट जोहती
देवताओं के राजा इन्द्र के बेटे जयन्त ने
मेरी छातियों को लहूलुहान कर दिया
जब मैं अहिल्या थी
अपनी कुटिया में सोयी आधी नींद में
पति गौतम का इन्तजार करती हुई
देवताओं के राजा इन्द्र के
छलात्कार का शिकार बनीं
आकाश में चमकने वाला चन्द्रमा
सिर्फ गवाह नहीं था
पूरे वाकये में शामिल था
देवताओं का देवत्व
इस कदर बरपा
कि मैं
पथरा गई
जब द्रौपदी हुई
अपने पाँचो पतियों की अनुगामिनी
(सनद रहे कि
मैंने नहीं वरा था पाँच पतियों को
माता कुन्ती केआदेश से
बाट दी गयी बराबर बराबर)
मैं नहीं खेल रही थी जुआ
सिर्फ दाँव पर चढ़ा दी गयी थी
मैं हारी नही थी
सिर्फ जीत ली गयी थी
लायी गयी दुर्योधन की सभा में
पाँचो पतियों के साथ
और दु:शासन के पशुबल से
अपमानित हुई
कोई साधारण सभा नहीं थी वह
वहाँ पितामह भीष्म थे
वहाँ द्रोणाचार्य थे
वहाँ कृपाचार्य थे
और जाने कौन कौन से आचार्य थे
सब धृतराष्ट्र थे
एक स्त्री निर्वस्त्र की जा रही थी
और यह महान सभा देख रही थी
महारथी चुप थे
रश्मिरथी चुप थे
आचार्य चुप थे
इतिहासवेत्ता
नीति निर्माता
सब चुप थे
सोचती हूँ क्यों चुप थे सब!
कि दोष मेरा ही था
कि मेरे परिधान दोषी थे
नहीं तो
मेरे स्त्री शरीर का दोष तो होगा ही होगा
मैं इस स्त्री शरीर का क्या करूँ
जिसको लिए दिए
देवताओं
महारथियो
आचार्यो
के
कल, बल, छल का
शिकार होती रही
पत्थर बनती रही
मुक्ति के लिए
किसी पुरुष के पैरों की ठोकर का
करती रही
इन्तजार।
2016
lecture of professors{#bhu #jnu #du #ku #mu #etc.}~दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए निम्न लिस्ट
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