युवा कवि भास्कर दत्त शुक्ल की कुछ कविताएँ :-
1)"प्रेमी पेड़ में मानव मन"
मानव की ज़मीन रूपी आत्मा
आज संसार में बीज रोपण का
नवीनतम संस्कार चाहती है
पर मैं पूछता हूँ
क्या तुम्हारी मानवीयता
संवैधानिक अंकुरण को
अपने सांचे में अंकुरित होने देगी?
वे अंकुरित इच्छाएँ
जो किसी जड़ में
अपनेपन का सहारा ढूढ़ती हैं..
लेकिन वृक्षों का अंत:स्थल
पहले भी देख चुका है
प्रेमी इच्छाओं के तीखे फल
इसलिए कौन जाने
फिर से उग आयें ...
ईर्ष्या की हवायें
यादों का बरकटा
विरह के फूल
और झरोखे से
अकेलेपन की पत्तियाँ
इसी प्रेमी वृक्ष की अंतडि़यों में,
उसकी धड़कनों में प्रवाहित
धरती का जल
सूखने लगता है
फुनगियों में चर्चाओं की तेजी
इशारों में बादलों को घूरती हैं
कि इस बार मत बरसना
क्योंकि मेरी आँखों में
बादलों से कहीं अधिक रौनक है..
किंतु
मेरी बात न मानकर
यदि कहीं बरस गये
और मनुष्यों ने मेरा संहार किया
तो इसकी जिम्मेदारी
सिर्फ और सिर्फ
आसमान की होगी...
2)"अभिव्यक्ति का अंतस्"
आहूत हो रही है
भाव की अंगडा़ई
मन की खामोश और गुमसुम परछाई में
कि कहीं कोई चेहरा...
चेहरे की रंगत
कविताओं में हिलकोरे लेती
मुझमें ही डूबती जा रही है
बड़ी आंत से छोटी आंत में
कुंडली के ऊपर फन फटकर...
पर क्या आप विश्वास करेंगे?
कतई नहीं...
क्योंकि मैं मनुष्यों की झोली में
बंदरों और बंदरगाहों का खज़ाना हूँ,
जिसमें दिल भी है और दिल्ली भी....
मगर नजरें हैं कि टिकती ही नहीं...
3)" छात्र नेता, गोली और हत्या "
मैं नहीं कहता कि मुझे अपने ही मारेंगे
मुझे अपनों पर पूरा भरोसा है
तब दुश्मनों की औक़ात ही क्या
जब घर ही जयचंदो का है
जिसकी आवाज़ सुनकर कांपते थे
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रत्येक छात्रनेता,
हर एक गली में गूंजता था नाम
अच्युतानन्द उर्फ़ सुमित शुक्ला
आखिर वह प्रयागराज में स्तब्ध क्यों हो गया?
तब धरती के गहन अंधकार स्वर में
एक लहर प्रतिध्वनित हो उठती है
कि "पहले राजनीति के लिए हत्या होती थी
और अब हत्या के लिए राजनीति... "
उसकी तस्वीर तो देखिए जनाब़
गोली खाकर भी आजाद ए चंद्रशेखर
अल्फ्रेड पार्क का हिंदुस्तानी राजा
जिसे देखकर जयचंदों का स्तन
दूध की जगह पानी का संगम बन बैठा
कि कहीं ये खूंखार शेर उठ न जाये
और तब हमारी छत्रछाया कौन बनेगा,
हम किसकी शरण में सुरक्षित होंगें?
लेकिन वह वीर तो जैसे सो गया हो
अपनी राजशाही मुद्रा में,
जिसे उसकी ही पिस्टल से
उसे मार दिया गया था
और अब वह विदा ले रहा था
आसमानी तारों का नया सूर्य बनने के लिए
क्योंकि 'भास्कर' बनकर वह देख सकता है
प्रयागराज के नवनिर्वाचित परीक्षित को,
जिसका पूर्वज कभी जयचंद होता था....!
काले अक्षरों में बैठकर
मैं वो किताब लिखता रहा,
जिसमें तुम्हारी आंखें खुलती रहीं
कोर से कोर तक,
कवर से कवर तक
और तू मुस्कुराती रही
शायद ये सोचकर
कि मेरी आंखें कोई कागज़ नहीं,
जिसमें तेरी श्याही उतरकर
पन्नों की तरह फड़फड़ाती रहे.....
5) 'ओ मेरी हिंदी'
मेरी हिंदी
मुझे तुम्हारे अंतस् में
माँ का संस्कार झलकता है
क्योंकि तू मेरी माँ
अर्थात् मातृभाषा है
और मातृभाषा- मातृभूमि का ही पर्याय है
उस मातृभूमि का
जिसमें हम सभी जीवित हैं
एक साथ संवाद करते हुए
सदियों से
बिना किसी आपसी प्रतिरोध के...
6)"चीन हर एक माल खतरनाक"
मैंने निजात पाया है
हर उस चीज़ पर
शिवाय उसके
जो कमबख़्त चीन की
डायनामाइट छछूंदर है
कितनी बेशरमियत
कितना बेहया
कितना बेमुरव्वत
कितना हरजाई है
कि तेरा "चीन"
अब शहर-ए
मुहब्बत में
मानवीय मूल्यों का
पहाड़ा
एक नहीं
दो नहीं, बल्कि
संपूर्ण विश्व को
घर-घर में
मुफ़्त
बिल्कुल मुफ़्त
दे रहा है
इसके लिए
कई जगह
मुस्तैदी से खड़े हैं
तमाम सम्मानित सुरक्षाकर्मी
आपकी प्रतीक्षा में
आपको लाईलाज
ठीक कर देंगे
इसकी तो गारंटी है
वैसे चीन का हर माल
सस्ता और गंदा होता था
गंदा इस अर्थ में कि
सिर्फ गरीबों को मारता था
और साथ में कोई गारंटी भी नहीं देता था
विपरीत इन समस्त मालों के
यह अमीरों को जल्दी पकड़ता है
बिल्कुल फुल गारंटी
और लाइफटाइम अचीवमेंट के साथ
क्योंकि यह सस्ता नहीं है
इसलिए औरों से टिककर
ज्यादा चलता और चलाता है
नाम बताने पर शायद
हम सब आतंकित हो जायें
इससे पहले आप सभी
सुरक्षित और सतर्क हो जायें...
©भास्कर दत्त शुक्ल
((भास्कर दत्त शुक्ल :- बी.ए.इलाहाबाद विश्वविद्यालय
एम. ए. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
पीएचडी हो रही है बीएचयू से ही...
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#भास्करदत्तशुक्ल
बहुत सुंदर
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DeleteBhut badiya... Aise hi achi achi kavita likhte rhe aap.... 😇😇
ReplyDelete🙏🥰
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