Golendra Gyan

Friday, 4 June 2021

महामारी में मुहावरों की मौत : गोलेन्द्र पटेल || कोरोजयी मुहावरे


महामारी में मुहावरों की मौत // गोलेन्द्र पटेल


 


भाग-1


मानवता को जीवित रखनेवाले जिन मुहावरों एवं लोकोक्तियों को हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। इस वैश्विक महामारी के दौरान उनके अर्थ ही बदल गए हैं। वैसे आप भी जानते हैं कि प्राचीनकाल से भारतवर्ष महात्माओं की भूमि रही है यहाँ एक से बढ़कर एक दानी राजा-रानी, ऋषि-मुनि हुए हैं। 

                                 दानवीरों में राजा शिवि, हरिश्चंद्र, बलि, एकलव्य, कर्ण, दधीचि, ययाति आदि का नाम आदर के साथ लिया जाता रहा है। इनकी कथाओं से आप भलीभाँति परिचित हैं। इधर अच्छी बात यह है कि इस कोरोप्लावित समय में कुछ ऐसे दानवीर हुए हैं जो "नेकी कर सोशल मीडिया पर टाँग" जैसे मुहावरे गढ़े हैं और इनकी कथाएँ हम सोशल मीडिया पर आय-दिन पढ़ रहे हैं और दूसरों को साझा कर रहे हैं। हमारी दिलचस्पी ऐसी ही शंसनीय कथाओं को पढ़ने में है। जो आदर्श जीवन की मुहावरों का अर्थ तेजी से बदल रही हैं।

 

                           "निराशा में बदल रही है परिभाषा/ कोरो तान सुन रहा जहान/आपदा में अवसर को पहचान/ज्ञानी दे रहे हैं मुक्ति का ज्ञान/और लिख रहे हैं गान/गाली-गलौज के भाषा में"


इस जीवन में जो भी इंसान इंसानियत के नाते कोई पुण्य कार्य करता है तो उसका फल केवल उसे ही नहीं , बल्कि ब्रह्मांड के समस्त प्राणियों को प्राप्त होता है। प्रत्येक मनुष्य की मनुष्यता उसकी ऋणी हो जाती है। देह क्षयी है पर सद्बुद्धि विजयी है इसलिए परमात्मा ने सबको एक समान बुद्धि दी है अतः बुद्धि को सद्बुद्धि में बदलने के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों के पारंपरिक अर्थों का जिंदा रहना अत्यावश्यक है।


भाग-2


जन, जमीन और जिंदगी का अटूट संबंध सभ्यता से है और सभ्यता के गर्भ से ही मुहावरों का जन्म होता है। मुहावरों और कहावतों का स्रोत समाज है। समाज में बोली जाने वाली भाषा में इनके प्रयोग से सजीवता और प्रवाहमयता आ जाती है, फलस्वरूप पाठक या श्रोता शीघ्र ही प्रभावित हो जाता है और उस भाषा के प्रति उसकी श्रद्धा और बढ़ जाती है। जब कोई चिंतनधर्मी कवि या लेखक कोई नया मुहावरा गढ़ता है तब उसके पृष्ठभूमि में उसके लोक-संस्कृति की अहम भूमिका होती है।

                                अतः चेतना की चुंबकीय प्रभाव भाषा की प्रवाहमयता में चार चाँद लगाता है। जिससे अनुभूति की अभिव्यक्ति क्षमता और बढ़ जाती है। 


इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि कालजयी कवियों ने नये-नये मुहावरें गढ़े हैं पर कोरोजयी कवियों ने नये को और नया किये हैं और संवेदना के साक्षात्कार से शब्दों में नयी ऊर्जा भरे हैं। इनके मुहावरे मानवतावादी दृष्टिकोण का सर्वोत्कृष्ट सृजन है।


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 अंततः  केदारनाथ सिंह के शब्दों इतना ही कि


"अंत में मित्रों,

इतना ही कहूंगा

कि अंत महज एक मुहावरा है"


©गोलेन्द्र पटेल

ईमेल: corojivi@gmail.com

मो.नं.: 8429249326

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