Golendra Gyan

Thursday, 23 September 2021

जिउतिया पर्व || खर जिउतिया पूजन || गोलेन्द्र पटेल

खर जिउतिया पूजन
_____________________________________________

एक माँ की स्मृति जीवित होती है
जीवित्पुत्रिका व्रत से
अनंत दुआएँ द्वार पर आती हैं
सभी संतानें साँपों से बच जाती हैं मुश्किल सफ़र में
विषम समय का विख सोख लेता है सूर्य
गाँव दर गाँव गूँजता है तूर्य

जगत पर टिमटिमाते जुगनुओं की रोशनी में
अढ़ाई अक्षरों के प्रेमपत्र को पढ़ती हैं किशोरियाँ
किलकारियों के कचकचाहटी स्वर में गाती हैं कजरियाँ

“सर्वे भवंतु सुखिनः’ सिद्धांत है हवा के होंठों पर
 ऐ सखी! सृष्टि में फूल मरता है
 पर उसका सौरभ नहीं
 कलियाँ कंठों-कंठ कानों-कान सुनती रहती हैं
 भ्रमरियों की गुनगुनाहट
और आहत तन-मन की आहट
मसलन ‘जीवन का राग नया अनुराग नया”

बाहर धूल भीतर रेत है
अंधेरी आँधियों में मणियों का मौन चमकना
साँप-साँपिन के संयोग का संकेत है
ओसों से बुझ रही है घास की प्यास
साथ छोड़ रहा है श्वास

पर, पेड़ को पता है
पत्तियों के पेट में जाग रही है भूख
कहीं नहीं है सुख
सूख रहा है ऊख

आश्विन-कृष्णा अष्टमी को
जीमूतवाहन जन्नत का वास छोड़कर पृथ्वी पर आते हैं
गरुड़ गगनगंगा में मलयावती के साथ नौका विहार करते हैं
जहाँ ढेर सारे किसान बादलराग गाते हैं

नयननीर की नदियों में शांति है
पर आँखों में क्रांति है
लालिमा बढ़ रही है
टूट रहा है विश्वास
रोष के रस से लबालब भरा है गिलास

गर्भवती अनुभूतियाँ जन्म दे रही हैं स्मृतियों को
जिन्हें जीउतिया माई अमरता का आशीर्वाद दे रही हैं 
स्मृतियों के जीवित रहने से मनुष्यता जीवित रहती है

खैर, यह कोरोना के विरुद्ध छत्तिस घंटों का महासंकल्प है 

इस वायरस-वर्ष ने प्रेम में नजदीकियों को नहीं,
दूरियों के तनाव को स्वीकार किया है
स्पर्श से दोस्ती में दरार पड़ रही है
कच्ची उम्र की बुभुक्षा लड़ रही है

पर्व को परवाह नहीं किसी के जीवन से
मृत्यु नहीं रुकती है किसी के रोकने से
नहीं रुकती हैं
कभी-कभी ख़ुद से ख़ुद की दूरियाँ बढ़ने से
दूरियों के बढ़ने से मन खिन्न है

गँवई शब्द मृत्यु की गंध को सूँघ रहे हैं
मरने से पहले एकत्र होकर
एक ही अगरबत्ती के धुएं को फेफड़े तक पहुँचा रहे हैं
डर के विरुद्ध

व्रतधारिन बूढ़ी औरतें  
नयी नवेली बहुओं को उपदेश दे रही हैं
कि उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद है उपवास

चील्होर था या उल्लू फुसफुसा रही है भीड़
परात का प्रसाद लौट रहा है
चूल्हे के पास

बच्चे हैं
कि गोझिया आज ही खाना चाहते हैं
खर व्रतधारिन समझा रही हैं
जिउतिया माई रात भर खईहन
हम सब सवेरे
(प्रसाद बसियाने पर शीघ्र शक्ति प्रदान करता है, वत्स!) 

बच्चे कह रहे हैं माई हमार हिस्सा हमें दे दे
नाहीं त रतिया में जिउतिया माई कुल खा जईहन
आज शायद ही छोटे बच्चे सो पाएंगे ठीक से
व्रत की बात हट रही है लीक से

यह लोकपर्व मातृशक्ति की तपस्या है!!

(©गोलेन्द्र पटेल / 10-09-2020)

संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


*विख=विष





Friday, 17 September 2021

आखेट आचार्य (शिकारी शिक्षक)

आखेट आचार्य (शिकारी शिक्षक) : गोलेन्द्र पटेल

40 से अधिक रचनाकारों (पत्रकार, वरिष्ठ कवि, आलोचक व आचार्य) ने फोन करते ही आपको बहुत बहुत बधाई व अशेष शुभकामनायें। फिर पुरस्कार राशि कितना मिला है?...सबसे अंत में आप कैसे हैं? खैर, वे सुधीजन जो अपनी संस्था का पुरस्कार मुझे देना चाहते थे पर मैंने नहीं लिया। वे बहुत नाराज हैं कि आखिर मैं उनका पुरस्कार क्यों नहीं लिया? कुछ गुरुओं का आरोप है कि मैं एक चाटूकार चेला हूँ। उनकी दृष्टि में मैं एक चाटूक्ति लिखने वाला शिष्य हूँ। वे बतौर कक्षा एक दिन भी मेरा मार्गदर्शन नहीं किये हैं। और वे सोचते हैं कि मैं उन्हें अपना उपजीव्य बनाऊँ। तो यह कैसे संभव है? एक सर्जक शिष्य के लिए कि वह उन्हें अपना उपजीव्य बनाये। जो कभी प्रभावित ही नहीं किये उसे (यानी मुझे/एक शिष्य को)। एक गुरु (मार्गदर्शक) दूसरे गुरु के शिष्य के प्रति इतनी अमानवीय दृष्टि क्यों रखते हैं? यह एक गुरु ही जानता है। शिष्य तो उन्हें अपने गुरु के समान ही समझता है/ मानता है। उनके ही शिष्य-शिष्या जो मेरे मित्र हैं/ सखी (यानी शोधा छात्रा साथी) हैं। वे उनके व्यक्तित्व के विषय में जब मुझसे चर्चा करते हैं/ बताती हैं। मुझे हँसी आती है उनके गुरुत्व पर लेकिन मेरी नजर में उनका उतना ही सम्मान है जितना कि मैं उनकी रचनाओं का करता हूँ। अर्थात् उनके कृतित्व का। बहरहाल, शिक्षा के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन हीन व संकीर्ण मानसिकता के मार्गदर्शक बढ़ रहे हैं। इसलिए आप खुल कर यह नहीं कह सकते हैं कि ये मेरे मार्गदर्शक हैं तो यह मेरा गुरु! क्योंकि आज शिष्यों से जादा गुरुओं के बीच द्वन्द्व है। देखावे के लिए, वे आपस में मिलते हैं पर वास्तविकता कुछ और है। जो धीरे-धीरे एक शिष्य को समझ में आता है। जब वह उनका शिकार होने लगता है। तब उसे पता चलता है उनका वह पक्ष जो उसकी कल्पना से अब तक परे था। मानस में स्थित उन पथप्रदर्शकों की प्रतिमाएँ भहरा कर टू जाती हैं। मन खिन्न हो जाता है और आत्मा दुखी।


शिक्षा के जंगल में कई शिकारी मेरा भी शिकार चाहते हैं। पर मेरे मार्गदर्शक उनके शिकार करने की कला से मुझे अवगत करा चुके हैं। मैं जंगल के सभी हिस्से से परिचित हूँ। किधर कौन सा हिंसक जानवर रहता है? जंगल के किस क्षेत्र में कौन सा शिकारी कब शिकार करता है? किधर वे अपना जाल बिछाये हैं? किधर कोई बहेलिया अपना जाल लगाया है या लगाने वाला है? किस शिकारी के पास कौन सा औजार है?....इस तरह के तमाम प्रश्नों के उत्तर। मैं अपने मार्गदर्शकों से पूछ लिया हूँ। मैं जान लिया हूँ इस जंगल का कोना-कोना। एक न एक दिन मैं नदी के तट पर शेष बातें भी जान जाऊँगा। असल में जानना ही शिष्य का धर्म है और सीखना उसका कर्म। और कर्म करना मनुष्य की नियति है। ("आखेट आचार्य" से /गोलेन्द्र पटेल)


                                                          {ई-संपादक}

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}

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Wednesday, 15 September 2021

"सुब्रह्मण्य भारती युवा कविता सम्मान'' : शिक्षा को समाज की पहली आवश्यकता मानते थे राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती - प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल

 शिक्षा को समाज की पहली आवश्यकता मानते थे राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती- प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल

तमिल के प्रख्यात कवि, समाज सुधारक एवं पत्रकार सुब्रह्मण्यम भारती की स्मृति में अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय के तत्वावधान में हनुमान घाट पर ‘प्रतिमा माल्यार्पण सह परिचर्चा' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सुब्रह्मयम भारती की मूर्ति पर माल्यार्पण के बाद हनुमान घाट स्थित कवि के बनारस प्रवास के दिनों के घर जाकर परिवार से मुलाकात की गई तथा महाकवि की स्मृतियों को संजोते हुए परिवार को सम्मानित किया गया। 

इस अवसर पर युवा कवि गोलेन्द्र पटेल को "सुब्रह्मण्य भारती युवा कविता सम्मान'' प्रदान किया गया।

चेतसिंह किला परिसर में आयोजित परिचर्चा के क्रम में स्वागत एवं बीज वक्तव्य देते हुए काशी के ख्यात न्यूरोलॉजिस्ट एवं अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वॉक विश्विद्यालय के मानद कुलपति प्रो. विजायनाथ मिश्र ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती की कविताएं आम आदमी की पीड़ा का बयान हैं। महाकवि तुलसीदास की रचनाओं में भी आम आदमी का कष्ट दिखाई पड़ता है। प्रो. विजयनाथ मिश्र ने कार्यक्रम के माध्यम से हनुमान घाट स्थित भारती जी के घर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग उठाई।


अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक, अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वॉक विश्वविद्यालय के मानद डीन एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती के बहाने हिंदी और तमिल के बीच संस्कृतिक सेतु की चर्चा की जा सकती है। भारती जी 1905 के कांग्रेस अधिवेशन में बनारस आए थे। बाद में 1906 के कलकत्ता अधिवेशन में वे सिस्टर निवेदिता से मिले जहां से उन्हें स्त्री शिक्षा के लिए काम करने की प्रेरणा मिली। भारती जी का मानना था कि एक उन्नत समाज में शिक्षा होनी चाहिए, शिक्षा के लिए स्कूल चाहिए, अखबार और उद्यमी होने चाहिए। सन् 1919 में गांधी से मुलाकात कर उन्होंने हिन्दी भाषा का जोरदार ढंग से समर्थन किया था। वे हमेशा दलितों, उपेक्षितों, स्त्री शिक्षा पर जोर देते थे। महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती ने विकसित समाज के लक्ष्य प्राप्ति के लिए तीन बातें आवश्यक मानी इनमें पहली बात शिक्षा है, दूसरी बात शिक्षा और तीसरी बात भी शिक्षा है। वे भारतीय राष्ट्रीय काव्यधारा में दक्षिण भारत के उतने ही बड़े कवि जितने उत्तर भारत में मैथिलीशरण गुप्त एवं रामधारी सिंह दिनकर।

विशेष अतिथि के रूप में कवि सुब्रह्मण्यम भारती की नातिन डॉ. जयंती कृष्णन ने उन्हें याद करते हुए कहा कि भारती जी चार वर्ष तीन महीने बनारस में रहे थे और इसी दौरान वे लाल- बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल) से प्रभावित हुए। भारती जी की वेशभूषा भी उसी प्रभाव का परिणाम है। वे न सिर्फ लिखते थे बल्कि गाते भी थे। काशी के जय नारायण इंटर कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की और बाद में चेन्नई में श्रीमती  एनिबेसेंट व सिस्टर निवेदिता के संपर्क में आए।


विशिष्ठ अतिथि, बीएचयू के तमिल विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. जगदीशन टी ने महाकवि को याद करते हुए कहा कि भारती जी पूरी दुनिया को अपना मानते थे। गरीबों और लाचार की मदद करना वे धर्म समझते थे। उनके विचार न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि समस्त भारत के विचार हैं, जिसे बनारस में उन्होंने ग्रहण किया था। आज सुब्रह्मण्यम भारती के विचारों को सामने लाए जाने की जरूरत है। 

कार्यक्रम के आरंभ में हनुमान घाट पर स्थित सुब्रह्मण्यम भारती की प्रतिमा का माल्यार्पण किया गया। तत्पश्चात युवा कवि गोलेन्द्र पटेल को पहले 'सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान 2021' से सम्मानित किया गया जिसमें इन्हें प्रशस्ति पत्र,सम्मान राशि व अंगवस्त्रम भेंट किया गया।

उनकी कविताओं पर वक्तव्य देते हुए बीएचयू के हिंदी विभाग में सहायक आचार्य और युवा आलोचक डॉ विंध्याचल यादव ने कहा कि 

गोलेन्द्र  हिंदी कविता में एक  विस्फोट की तरह हैं।वे किसानी व श्रमिक चेतना के कवि हैं।उनकी परंपरा में किसान परंपरा दिखाई देती है जहां लोक के प्रति गहरी संसक्ति है।उन्होंने  अपनी भाषा अर्जित की है,यह सुखद है।


इस अवसर पर गोलेन्द्र ने 'उस पार','मल्लू मल्लाह' व 'होनी का होना' नामक कविताओं का पाठ किया।


कार्यक्रम के अंत में  संगीत की प्रस्तुति भी हुई जिसमें बीएचयू के कृष्ण कुमार तिवारी ने गणेश वंदना के साथ सुब्रह्मण्यम भारती के जीवन पर आधारित गीत की प्रस्तुति की।तबले पर काशी विद्यापीठ के  सुमंत चौधरी ने संगत दी।

कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र उदय पाल  ने किया।धन्यवाद लोक कलाकार अष्टभुजा मिश्र ने किया।


इस अवसर पर अष्टभुजा मिश्र,उदय प्रताप सिंह,अंकित,कविता गोंड,पंकज पटेल,शिव विश्वकर्मा, आस्था वर्मा,जूही त्रिपाठी और कई शोधार्थी ,कलाकार व  घाटवाकर उपस्थित थे।

रपट साभार : जूही त्रिपाठी (शोधार्थी, बीएचयू)

Monday, 13 September 2021

HINDI : हिन्द, हिन्दवी, हिन्दी (हिंदी) | सिन्धु, हिन्दु, हिन्दुस्तान | हिंदी दिवस


 हिन्दी//


ह् इ न् द् ई

'ह' से हँसी 

'इ' से इश्क

'न' से नज़र 

'ई' से ईर्ष्या है हिन्दी


©गोलेन्द्र पटेल

रचना : 14 सितंबर, 2016 की है तब अंतिम पंक्ति ('ई' से ईप्सा है हिंदी) थी।

मो.नं. : 8429249326


Thursday, 9 September 2021

BHU MA Entrance Exam 2013 : Hindi || बी.एच.यू. , एम.ए. हिंदी प्रवेश परीक्षा 2013 का पेपर : उत्तर...

{BHU MA Entrance Exam 2013 : Hindi}
                {बी.एच.यू. , एम.ए. हिंदी प्रवेश परीक्षा 2013 का पेपर : गोलेंद्र पटेल}

प्रिय मित्रों! आप उत्तर कमेंट्स बॉक्स में लिखते रहिए!


(01) पूर्वी हिंदी का विकास निम्नलिखित में से किस अपभ्रंश से हुआ है?

(1) मागधी अपभ्रंश 

(2) अर्धमागघी 

(3) शौरसेनी

(4) महाराष्ट्री


(2) भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में हिंदी भाषा के विकास सम्बन्धी निर्देश दिए गये हैं ?

(1) 251

(2) 243

(3) 343

(4) 351


(3) डॉo उदयनारायण तिवारी ने अपनी पुस्तक हिंदी भाषा का उदगम और विकास में अपभ्रंश का जन्मकाल माना है:

(1)700 ईo

(2)800 ईo

(3)900 ईo

(4)1000 ईo


(4) राजभाषा अधिनियम 1976 के अनुसार कौन -सा राज्य 'क ' सूची में नहीं आता हैं?

(1) हरियाणा 

(2) राजस्थान 

(3) पंजाब 

(4) हिमांचल


(5) विशेषण के रूप परिवर्तन पर किसका असर पड़ता हैं?

(1) पुरुष 

(2) लिंग 

(3) काल

(4) कारक


(6) परवर्ती अपभ्रंश को पुरानी हिंदी नाम किसने दिया ?

(1) चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'

(2) राहुल सांकृत्यायन

(3) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 

(4) हजारी प्रसाद दुिवेदी


(7) लरिकवा जात रहा - वाक्य किस बोली का है?

(1) भोजपुरी 

(2) अवधी 

(3) ब्रज 

(4) मैथिलि


(8) काव्यभाषा के रूप में अवधी भाषा के आरम्भिक रूप का पहला महत्तपूर्ण साक्ष्य निम्नांकित किस कृति में मिलता है?

(1) मधुमालती 

(2) पद्र्मावत

(3) चान्दायण 

(4) चित्रावली 


(9) चलती हुई ब्रजभाष में सबसे पहली साहित्यिक कृति इन्ही की मिलती है जो पूर्णता के कारण आश्चर्य में डाल देती है-आचार्य शुक्ल की यह उक्ति किस कवि की काव्य भाषा के लिए है?

(1) सूरदास 

(2) नंददास

(3) बिहारी 

(4) पुद्र्माकर


(10) निम्नलिखित रचनाओँ में एक रचना ब्रजभाषा में नहीं है?

(1) विनय पत्रिका 

(2) कवितावली 

(3) कृष्ण गीतावली 

(4) बरवै रामायण


(11) निम्नलिखित बोलियों में एक बिहारी हिंदी समूह की बोली नहीं है?

(1) मैथिलि 

(2) मगही 

(3) बघेली 

(4) भोजपुरी


(12) पैशाची प्रकृत का क्षेत्र कहाँ था ?

(1) मगघ के आस -पास 

(2) कश्मीर के आस -पास 

(3) महाराष्ट्र के आस -पास 

(4) मथुरा या शूरसेन के आस -पास


(13) निम्न में एक आधुनिक अवधी के कवि नहीं है?

(1) द्वारिका प्रसाद मिश्र 

(2) गरु प्रसाद सिंह  'मॄगेश '

(3) वंशीधर शुक्ल 

(4) कवि नसीर


(14) देवनागरी का विकास किस लिपि से हुआ है?

(1) ब्राह्मी 

(2) खरोष्ठी 

(3) पंजाबी 

(4) गुरुमुखी


(15) अक्षरों के वर्ग के पंचम वर्ण के स्थान पर केवल अनुस्वार का प्रयोग किया जाय-देवनागरी लिपि के सुधार हेतु यह सुझाव किसका था ?

(1) आचर्य नरेंद्र देव 

(2) श्यामसुन्दर दास 

(3) डॉ राधा राधा कृष्णन् 

(4) श्रीनिवास जी 


(16) निम्न वर्णों में एक स्वर नहीं है:

(1) उ 

(2) ऋ 

(3) ए 

(4) श्र


(17) निम्न ध्वनियों में एक तालव्य है :

(1) ख 

(2) घ 

(3) छ 

(4) ध


(18) निम्न में एक दन्त्य नहीं है:

(1) च 

(2) त 

(3) थ 

(4) ध


(19) निम्नलिखित में कौन -सी भाषा प्राचीनतम है?

(1) प्राकृत 

(2) पालि 

(3) वैदिक संस्कृत 

(4) संस्कृत


(20) मराठी भाषा की लिपि क्या है? 

(1) गुजराती 

(2) देवनागरी 

(3) गुरुमुखी 

(4) फारसी


(21) हिंदी भाषा नामक पुस्तक के लेखक है:

(1) भोलानाथ तिवारी 

(2) हरदेव बाहरी 

(3) देवेन्द्र कुमार शर्मा 

(4) सुनीति कुमार चटर्जी



(22) निम्नलिखित में कौन ध्वनि निर्बल है ?

(1) ख 

(2) फ 

(3) य 

(4) ठ


(23) किस शब्द में वर्णविपर्यय है ?

(1)  रत्न 

(2) ब्रम्ह 

(3) यत्न 

(4) क्रम


(24) कौन भाषा चित्र लिपि में लिखी जाती है ?

(1) अरबी 

(2) संस्कृत 

(3) अंग्रेजी 

(4) चीनी


(25) किस शब्द में स्वरागम (स्वर भक्ति ) है ?

(1 ) परम 

(2 ) करम 

(3 ) चरम 

(4 ) अमर


(26) किस पुराण में काव्यशास्त्रीय विवेचन प्राप्त होता है ?

(1) भागवतपुराण

(2) कूर्मपुराण 

(3) अग्निपुराण 

(4) मत्स्य पुराण


(27) निम्न में रसवादी आचार्य कौन है ?

(1 ) चिंतामणि 

(2 ) केशवदास 

(3) भूषण 

(4) पद्माकर



(28) केशवदास किस काव्य सम्प्रदाय से सम्बद्ध है?

(1) रीति 

(2) वक्रोकित 

(3) ध्वनि

(4) अलंकार


(29) आचार्य शुक्ल ने वक्रोकित सिद्धान्त की तुलना किससे की है ?

(1) मनोविशलेषणवाद 

(2) अभिव्यंजनावाद 

(3) स्वच्छन्दतावाद 

(4) साम्यवाद


(30) 'रससूत्र ' के व्याख्याकारों में कौन नहीं है?

(1) भट्नायक 

(2) लोल्लत 

(3) शंकुक 

(4) रुद्र्ट



(31) 'रसगंगाधर ' किसकी रचना है ?

(1) विश्वनाथ 

(2) जगन्नाथ 

(3) दण्डी 

(4) उद्दभट


(32) रसवादी आचार्य किस शब्द शक्ति को प्रमुख मानते हैं? 

(1) अभिधा 

(2) व्यंजना 

(3) लक्षणा 

(4) तात्पर्य वॄत्ति


(33) भारतमुनि के अनुसार श्रृंगार रस का वर्ण क्या है?

(1) शवेत 

(2) श्याम

(3) नील 

(4) पीत 


(34) 'रमणीयार्थ प्रतिपादक : शब्द :काव्यम' -किस आचर्य का काव्य -लक्षण है ?

(1) भरत 

(2) भामह 

(3) विश्वनाथ 

(4) जगन्नाथ


(35) आचार्य रामचन्द शुक्ल किस काव्य सम्प्रदाय के समर्थक है?

(1) अलंकार 

(2) ध्वनि 

(3) रस 

(4) वक्रोतिक 


(36) आचर्य भिखारीदास की रचना कौन -सी है?

(1) रसपीयूष निधि 

(2) काव्यनिर्णय 

(3) कविकुलकल्पतरु 

(4) रस मीमांसा 


(37) 'जूही की कली ' कौन -सा रस  है ?

(1) श्रृंगार रस 

(2) रौद्र रस 

(3) शान्त रस 

(4) श्रृंगार रसाभास



(36) आचर्य भिखारीदास की रचना कौन -सी है?

(1) रसपीयूष निधि 

(2) काव्यनिर्णय 

(3) कविकुलकल्पतरु 

(4) रस मीमांसा


(37) 'जूही की कली 'मे कौन -सा रस है ?

(1) श्रृंगार 

(2) रौद्र रस  

(3) शांत रस 

(4) श्रृंगार रसभासं


(38) किस अलंकार में वर्ण वक्रता होती है ?

(1) शलेष 

(2) अनुप्रास 

(3) यमक 

(4) उत्प्रेक्षा



(39) केवल प्रतिभा को काव्य हेतु मानने वाले आचार्य कौन हैं ?

(1) भामह 

(2) महिमभट्ट 

(3) पंडितराज़ जगन्नाथ 

(4) राजशेखर


(40) 'आलोचक की आस्था ' किसकी कॄति है?

(1) आचार्य शुक्ल 

(2) डॉo नगेन्द्र 

(3) महावीर प्रसाद द्वावेदी 

(4) मुक्तिबोध


(41) स्वच्छन्दतावादी समीक्षक कौन हैं ?

(1) नन्ददुलारे बाजपेयी 

(2) हजारी प्रसाद द्विवेदी

(3) शांतिप्रिय द्विवेदी

(4) आचार्य रामचन्द शुक्ल


(42) वक्रोक्ति सिद्धांत के उदधोषक है?

(1) कुंतक 

(2) दण्डी 

(3) आनन्द वर्द्धन 

(4) मम्मट


(43) काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है काव्य के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण धारणा व्यक्त करने वाले कवि है

(1) प्रसाद 

(2) पन्त 

(3) निराला 

(4) महादेवी


(44) निम्नलिखित में से एक काव्य हेतु नहीं है

(1) प्रतिभा 

(2) व्युत्पति 

(3) अभ्यास 

(4) श्रवण

                         (शेष प्रश्न अगली प्रस्तुति में : गोलेन्द्र पटेल)

★ संपादक संपर्क सूत्र :-

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र}

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Wednesday, 8 September 2021

युवा किसान कवि गोलेन्द्र पटेल की सोलह कविताएँ

 युवा किसान कवि गोलेन्द्र पटेल की सोलह कविताएँ :-

                                 {साखी-33 का लोकार्पण}

1).

👁️आँख👁️
••••••••••••••

1.
सिर्फ और सिर्फ देखने के लिए नहीं होती है आँख
फिर भी देखो तो ऐसे जैसे देखता है कोई रचनाकार
2.
दृष्टि होती है तो उसकी अपनी दुनिया भी होती है
जब भी दिखते हैं तारे दिन में, वह गुनगुनाती है आशा-गीत
3.
दोपहरी में रेगिस्तानी राहों पर दौड़ती हैं प्यासी नजरें
पुरवाई पछुआ से पूछती है, ऐसा क्यों?
4.
धूल-धक्कड़ के बवंडर में बचानी है आँख
वक्त पर धूपिया चश्मा लेना अच्छा होगा
यही कहेगी हर अनुभव भरी, पकी उम्र
5.
आम आँखों की तरह नहीं होती है दिल्ली की आँख
वह बिल्ली की तरह होती है हर आँख का रास्ता काटती
6.
अलग-अलग आँखों के लिए अलग-अलग
परिभाषाएँ हैं देखने की क्रिया की
कभी आँखें नीचे होती हैं, कभी ऊपर
कभी सफेद होती हैं तो कभी लाल !


2).

लकड़हारिन
(बचपन से बुढ़ापे तक बाँस)

••••••••••••••••••••••••••••••

तवा तटस्थ है चूल्हा उदास
पटरियों पर बिखर गया है भात
कूड़ादान में रोती है रोटी
भूख नोचती है आँत
पेट ताक रहा है गैर का पैर

खैर जनतंत्र के जंगल में
एक लड़की बिन रही है लकड़ी
जहाँ अक्सर भूखे होते हैं
हिंसक और खूँखार जानवर
यहाँ तक कि राष्ट्रीय पशु बाघ भी
 
हवा तेज चलती है
पत्तियाँ गिरती हैं नीचे
जिसमें छुपे होते हैं साँप बिच्छू गोजर
जरा सी खड़खड़ाहट से काँप जाती है रूह
हाथ से जब जब उठाती है वह लड़की लकड़ी
मैं डर जाता हूँ...!

3).

मुसहरिन माँ
•••••••••••••••

धूप में सूप से
धूल फटकारती मुसहरिन माँ को देखते
महसूस किया है भूख की भयानक पीड़ा
और सूँघा मूसकइल मिट्टी में गेहूँ की गंध
जिसमें जिंदगी का स्वाद है

चूहा बड़ी मशक्कत से चुराया है
(जिसे चुराने के चक्कर में अनेक चूहों को खाना पड़ा जहर)
अपने और अपनों के लिए

आह! न उसका गेह रहा न गेहूँ
अब उसके भूख का क्या होगा?
उस माँ का आँसू पूछ रहा है स्वात्मा से
यह मैंने क्या किया?

मैं कितना निष्ठुर हूँ
दूसरे के भूखे बच्चों का अन्न खा रही हूँ
और खिला रही हूँ अपने चारों बच्चियों को

सर पर सूर्य खड़ा है
सामने कंकाल पड़ा है
उन चूहों का
जो विष युक्त स्वाद चखे हैं
बिल के बाहर
अपने बच्चों से पहले

आज मेरी बारी है साहब!

4).

चिहुँकती चिट्ठी
•••••••••••••••••

बर्फ़ का कोहरिया साड़ी
ठंड का देह ढंक
लहरा रही है लहरों-सी
स्मृतियों के डार पर

हिमालय की हवा
नदी में चलती नाव का घाव
सहलाती हुई
होंठ चूमती है चुपचाप
क्षितिज
वासना के वैश्विक वृक्ष पर
वसंत का वस्त्र
हटाता हुआ देखता है
बात बात में
चेतन से निकलती है
चेतना की भाप
पत्तियाँ गिरती हैं नीचे
रूह काँपने लगती है

खड़खड़ाहट खत रचती है
सूर्योदयी सरसराहट के नाम
समुद्री तट पर

एक सफेद चिड़िया उड़ान भरी है
संसद की ओर
गिद्ध-चील ऊपर ही
छिनना चाहते हैं
खून का खत

मंत्री बाज का कहना है
गरुड़ का आदेश आकाश में
विष्णु का आदेश है

आकाशीय प्रजा सह रही है
शिकारी पक्षियों का अत्याचार
चिड़िया का गला काट दिया राजा
रक्त के छींटे गिर रहे हैं
रेगिस्तानी धरा पर
अन्य खुश हैं
विष्णु के आदेश सुन कर

मौसम कोई भी हो
कमजोर....
सदैव कराहते हैं
कर्ज के चोट से

इससे मुक्ति का एक ही उपाय है
अपने एक वोट से
बदल दो लोकतंत्र का राजा
शिक्षित शिक्षा से
शर्मनाक व्यवस्था

पर वास्तव में
आकाशीय सत्ता तानाशाही सत्ता है
इसमें वोट और नोट का संबंध धरती-सा नहीं है
चिट्ठी चिहुँक रही है
चहचहाहट के स्वर में सुबह सुबह
मैं क्या करूँ?

5).

सब ठीक होगा
•••••••••••••••

धैर्य अस्वस्थ है
रिश्तों की रस्सी से बाँधी जा रही है राय
दुविधा दूर हुई
कठिन काल में कवि का कथन कृपा है
सब ठीक होगा
अशेष शुभकामनाएं

प्रेम ,स्नेह व सहानुभूति सक्रिय हैं
जीवन की पाठशाला में
बुरे दिन व्यर्थ नहीं हुए
कोठरी में कैद कोविद ने दिया
अंधेरे में गाने के लिए रौशनी का गीत

आँधी-तूफ़ान का मौसम है
खुले में दीपक का बुझना तय है
अक्सर ऐसे ही समय में संसदीय सड़क पर
शब्दों के छाते उलट जाते हैं
और छड़ी फिसल जाती है

अचानक आदमी गिर जाता है

वह देखता है जब आँखें खोल कर
तब किले की ओर
बीमारी की बिजली चमक रही होती है
और आश्वासन के आवाज़ कान में सुनाई देती है

गिरा हुआ आदमी खुद खड़ा होता है
और अपनी पूरी ताकत के साथ
शेष सफर के लिए निकल पड़ता है।

6).

ऊख
••••••

(१)
प्रजा को
प्रजातंत्र की मशीन में पेरने से
रस नहीं रक्त निकलता है साहब

रस तो
हड्डियों को तोड़ने
नसों को निचोड़ने से
प्राप्त होता है
(२)
बार बार कई बार
बंजर को जोतने-कोड़ने से
ज़मीन हो जाती है उर्वर

मिट्टी में धँसी जड़ें
श्रम की गंध सोखती हैं
खेत में
उम्मीदें उपजाती हैं ऊख
(३)
कोल्हू के बैल होते हैं जब कर्षित किसान
तब खाँड़ खाती है दुनिया
और आपके दोनों हाथों में होता है गुड़!

7).

ईर्ष्या की खेती
••••••••••••••••

मिट्टी के मिठास को सोख
जिद के ज़मीन पर
उगी है
इच्छाओं के ईख

खेत में
चुपचाप चेफा छिल रही है
चरित्र
और चुह रही है
ईर्ष्या

छिलके पर  
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं
और द्वेष देख रहा है
मचान से दूर
बहुत दूर
चरती हुई निंदा की नीलगाय !

8).

किसान है क्रोध
•••••••••••••••••

निंदा की नज़र
तेज है
इच्छा के विरुद्ध भिनभिना रही हैं
बाज़ार की मक्खियाँ

अभिमान की आवाज़ है

एक दिन स्पर्द्धा के साथ
चरित्र चखती है
इमली और इमरती का स्वाद
द्वेष के दुकान पर

और घृणा के घड़े से पीती है पानी

गर्व के गिलास में
ईर्ष्या अपने
इब्न के लिए लेकर खड़ी है
राजनीति का रस

प्रतिद्वन्द्विता के पथ पर

कुढ़न की खेती का
किसान है क्रोध !

9).

गुढ़ी
•••••

लौनी गेहूँ का हो या धान का
बोझा बाँधने के लिए - गुढ़ी
बूढ़ी ही पुरवाती है
बहू बाँकी से ऐंठती है पुवाल
और पीड़ा उसकी कलाई !


10).

थ्रेसर
••••••

थ्रेसर में कटा मजदूर का दायाँ हाथ
देखकर
ट्रैक्टर का मालिक मौन है
और अन्यात्मा दुखी
उसके साथियों की संवेदना समझा रही है
किसान को
कि रक्त तो भूसा सोख गया है
किंतु गेहूँ में हड्डियों के बुरादे और माँस के लोथड़े
साफ दिखाई दे रहे हैं

कराहता हुआ मन कुछ कहे
तो बुरा मत मानना
बातों के बोझ से दबा दिमाग
बोलता है / और बोल रहा है
न तर्क , न तत्थ
सिर्फ भावना है
दो के संवादों के बीच का सेतु
सत्य के सागर में
नौकाविहार करना कठिन है
किंतु हम कर रहे हैं
थ्रेसर पर पुनः चढ़ कर -

बुजुर्ग कहते हैं
कि दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है
तो फिर कुछ लोग रोटी से खेलते क्यों हैं
क्या उनके नाम भी रोटी पर लिखे होते हैं
जो हलक में उतरने से पहले ही छिन लेते हैं
खेलने के लिए

बताओ न दिल्ली के दादा
गेहूँ की कटाई कब दोगे?

11).
श्रम का स्वाद
•••••••••••••••••••••••••••••

गाँव से शहर के गोदाम में गेहूँ? 

गरीबों के पक्ष में बोलने वाला गेहूँ
एक दिन गोदाम से कहा
ऐसा क्यों होता है
कि अक्सर अकेले में अनाज
सम्पन्न से पूछता है
जो तुम खा रहे हो
क्या तुम्हें पता है
कि वह किस जमीन की उपज है
उसमें किसके श्रम का स्वाद है
इतनी ख़ुशबू कहाँ से आई?
तुम हो कि
ठूँसे जा रहे हो रोटी
निःशब्द!

12).

उम्मीद की उपज
•••••••••••••••••••••

उठो वत्स!
भोर से ही
जिंदगी का बोझ ढोना
किसान होने की पहली शर्त है
धान उगा
प्राण उगा
मुस्कान उगी
पहचान उगी
और उग रही
उम्मीद की किरण
सुबह सुबह
हमारे छोटे हो रहे

खेत से....!

13).

घिरनी
•••••••

फोन पर शहर की काकी ने कहा है
कल से कल में पानी नहीं आ रहा है उनके यहाँ

अम्माँ! आँखों का पानी सूख गया है
भरकुंडी में है कीचड़
खाली बाल्टी रो रही है
जगत पर असहाय पड़ी डोरी क्या करे?

आह! जनता की तरह मौन है घिरनी
और तुम हँस रही हो।

14).

मेरे मुल्क की मीडिया
•••••••••••••••••••••

बिच्छू के बिल में
नेवला और सर्प की सलाह पर
चूहों के केस की सुनवाई कर रहे हैं-
गोहटा!

गिरगिट और गोजर सभा के सम्मानित सदस्य हैं
काने कुत्ते अंगरक्षक हैं
बहरी बिल्लियाँ बिल के बाहर बंदूक लेकर खड़ी हैं

टिड्डे पिला रहे हैं चाय-पानी

गुप्तचर कौएं कुछ कह रहे हैं
साँड़ समर्थन में सिर हिला रहे हैं
नीलगाय नृत्य कर रही हैं

छिपकलियाँ सुन रही हैं संवाद-
सेनापति सर्प की
मंत्री नेवला की
राजा गोहटा की....

अंत में केंचुआ किसान को देता है श्रधांजलि
खेत में

और मुर्गा मौन हो जाता है
जिसे प्रजातंत्र कहता है मेरा प्यारा पुत्र
मेरे मुल्क की मीडिया!

15).

सफ़र


सरसराहट संसद तक बिन विश्राम सफ़र करेगी
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तिर्रियाँ पकड़ रही हैं
गाँव की कच्ची उम्र
तितलियों के पीछे दौड़ रही है
पकड़ने की इच्छा
अबोध बच्चियों का!

बच्चें काँचे खेल रहे हैं
सामने वृद्ध नीम के डाल पर बैठी है
मायूसी और मौन  

मादा नीलकंठ बहुत दिन बाद दिखी है
दो रोज़ पहले मैना दिखी थी इसी डाल पर उदास
और इसी डाल पर अक्सर बैठती हैं चुप्पी चिड़ियाँ!

कोयल कूक रही है
शांत पत्तियाँ सुन रही हैं
सुबह का सरसराहट व शाम का चहचहाहट चीख हैं
क्रमशः हवा और पाखी का

चहचहाहट चार कोस तक जाएगी
फिर टकराएगी चट्टानों और पर्वतों से
फिर जाएगी ; चौराहों पर कुछ क्षण रुक
चलती चली जाएगी सड़क धर
सरसराहट संसद तक बिन विश्राम किए!

16).

कोहारिन काकी की कला 
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लटक रहा है
मानस के सिकहर पर
मक्खन से भरा
मथुरा का मार्मिक मटका

इस पर उत्कीर्ण है
कोहारिन काकी की कला।

गंध सूँघ रहा है बन-बिलार
बिल्ली थक कर बैठी है नीचे

मक्खियाँ भिनभिना रही हैं
चूहे चढ़ कर चाट रहे हैं मक्खन

अंततः बन-बिलार फोड़ दिया घर का घड़ा।

पूर्वजों ने ठीक ही कहा है
कला का महत्व मनुष्य जानते हैं
जानवर नहीं।

जानवर तो अपना ही जोतते रहते हैं

काकी ठीक कहती हैं
भूख कला को जन्म देती है।

कुछ भी हो
बन-बिलार बलवान के साथ साथ चतुर भी है
क्योंकि वह मक्खन और चूहे को एकसाथ खा रहा है।

परिचय :-
नाम : गोलेन्द्र पटेल
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) , बी.एच.यू.।
भाषा : हिंदी
विधा : कविता व कहानी
माता : श्रीमती उत्तम देवी
पिता : श्री नन्दलाल

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :
कविताएँ और आलेख -  प्राची, बहुमत, आजकल, व्यंग्य कथा, साखी, काव्य प्रहर, प्रेरणा अंशु, जनसंदेश टाइम्स, विजय दर्पण टाइम्स, रणभेरी,पदचिह्न, अग्निधर्मा, नेशनल एक्सप्रेस, अमर उजाला, पुरवाई एवं सुवासित आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।

ब्लॉग्स, वेबसाइट और ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-
गूगल के 100+ पॉपुलर साइट्स पर - हिंदी कविता, समकालीन जनमत, लिटरेचर प्वाइंट, साहित्य रचना, समालोचना, द लल्लनटॉप, पुरवाई, साहित्य कुंज, साहित्यिक डॉट कॉम, साहित्यिक, जनता की आवाज़, पोषम पा, अपनी माटी, लोक साक्ष्य, अद्यतन काल क्रम, द साहित्य ग्राम, लोकमंच, राष्ट्र चेतना पत्रिका, डुगडुगी, साहित्य सार, हस्तक्षेप, जनवर्ता, जखिरा, संवेदन स्पर्श (अभिप्राय) , मीडिया स्वराज, जानकी पुल, उम्मीदें, बोलती जिंदगी, गढ़ निनाद एवं हमारा मोर्चा इत्यादि एवं कुछ लोगों के व्यक्तिगत ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित।

प्रसारण : राजस्थानी रेडियो, द लल्लनटॉप एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)
अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित

काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्य-गोष्ठियों में।

सम्मान : फिलहाल कोई विशेष सम्मान नहीं, पर अनेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र मिले हैं।

संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com

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कवि : गोलेन्द्र पटेल
(काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र)

माता : श्रीमती उत्तम देवी
पिता : श्री नन्दलाल
भाषा : हिंदी
विधा : कविता व कहानी
डाक पता :-
ग्राम - खजूरगाँव 
पोस्ट - साहुपुरी
जिला - चंदौली
राज्य - उत्तर प्रदेश , भारत 221009

संपर्क सूत्र :-
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
 
--Golendra Patel


BHU , Varanasi , Uttar Pradesh , India


नोट : उपर्युक्त सभी रचनाएँ स्वरचित हैं और मेरी हैं!

धन्यवाद!



Sunday, 5 September 2021

शिष्य का शब्द : आत्मकथ्य - 2 : गोलेन्द्र पटेल (बीएचयू)


 शिष्य का शब्द : आत्मकथ्य - 2


'गु' शब्द का अर्थ है अंधकार (यानी 'अज्ञान') और 'रु' शब्द का अर्थ है प्रकाश (यानी 'ज्ञान')। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म स्वरूप प्रकाश है, वह गुरु है। यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि गुरु का उक्त तात्पर्य उस युग का है जब एक 'गुरु' स्वयं एक 'गुरुकुल' होता था। समय के साथ शिक्षा की खेती करने की अनेक पद्धतियाँ विकसित हुई हैं। परंतु खेत दिन-प्रतिदिन छोटे होते जा रहे हैं और ज्ञान की खेती करने वाले सुकुमार, एकदम सुकुवार। तेजी से मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो रही है। शिक्षक और शिष्य के संबंधों का सुमन मुरझा रहा है। इस मुरझाते हुए सुमन के संदर्भ में मुझे अपने प्रिय कवि ज्ञानेंद्रपति की कविता 'वे जो' की याद आना, यहाँ कोई अनायास नहीं है बल्कि वर्तमान की दशा का दबाव है। इस कड़वी सच्चाई को व्यक्त करनेवाली कवि कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :-


"वे जो 'सर' कहाते हैं

धड़ भर हैं

उनकी शोध-छात्राओं से पूछ देखो"


बुद्धि हर व्यक्ति के पास होती है। पर सद्बुद्धि सबके पास नहीं होती है। यह तब तक प्राप्त नहीं होती है जब तक कि व्यक्ति को किसी का मार्गदर्शन प्राप्त न हो जाये। एक बात यह भी है कि गुरु के अनुभव से जब शिष्य के अनुभव का रैखिक मिलन होता है तब उसके सोचने-समझने की दायरा बहुत बढ़ जाता है और उसकी सृजनात्मक शक्ति भी पहले की अपेक्षा काफी बढ़ जाती है। उसकी सचेतनता उसकी रचनात्मकता को परिष्कृत करती रहती है। उसके संस्कार का संसार अपनी सभ्यता और संस्कृति से उर्जा पाकर फैलने लगता है। इसके फैलने से उसके (शिष्य) भीतर की मनुष्यता जागृत होती है। जो उसे मानवीय बनाती है और यही मानवीयता सृष्टि की संवेदना को संजोकर जिंदगी की नदी को स्वच्छ रखती है। जिसमें वैचारिकता की नाव बौद्धधर्मी खेना सीखाते रहते हैं जीवन भर।


किसी भी परिस्थिति में किसी भी तरह की समस्याओं और उलझनों से निपटने के लिए गुरुमंत्र ही वह सार्थक व सर्वोत्तम साधन है। जिसके द्वारा व्यक्ति आसानी से उन पर विजय प्राप्त कर सकता है। हर गुरु साधारण में असाधारण होता है क्योंकि उनके पास शक्तित्रयी (आत्मशक्ति, स्पर्शशक्ति व वाक्यशक्ति) है और यही शक्तियाँ उन्हें ईश्वर से भी बढ़कर सिद्ध करती हैं। जिसे संत कवियों ने बेखूबी से अपनी रचनाओं में दर्ज किये हैं। इस संदर्भ में कबीरदास का आगामी दोहा तो जगत प्रसिद्ध है ही। "गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,काके लागूं पायं / बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया दिखाय ।।"


बहरहाल, मेरी दृष्टि में मेरे गुरु भी उन्हीं ऋषियों की तरह हैं जो अपने समय के सर्वशक्तिमान शिक्षक रहे हैं। मेरे गुरु भी अपने आप में गुरुकुल हैं और मेरे शिक्षक भी अपने आप में शिक्षालय हैं। एक संस्था हैं। जहाँ शिक्षा और दीक्षा दोनों ही आधुनिकता के रंग में रंगी हुई हैं। कला, साहित्य और संस्कृति का त्रिवेणी संगम हैं। अक्सर मैं इस संगम पर सुनता हूँ उनके मुख से निकला हुआ ब्रह्म स्वरूप शब्द! अतः मेरे गुरु मेरे समय के शब्द हैं।


मैं उनकी प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ। न ही उनका मूल्यांकन। और न ही यहाँ कोई अतिशयोक्ति है। न ही मेरे पास कोई चाटुकारिता की भाषा है। मैं तो बस सत्यता की सीमा में अपनी बात रख रहा हूँ। उनकी सक्रियता ही उनकी सदाचारिता और साधुता की पहचान है। वे सतर्क के साँचे में वर्णित अनुभूतियों को मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से उच्च स्तर (भूमि) पर ले जाने का भागीरथ प्रयास तो करते ही हैं। साथ ही साथ शुन्य  की संवेगी कंपनता का साक्षात्कार भी कराते हैं। अतः मैं यह कह सकता हूँ कि मेरे गुरु सहज और उदात्त होने के साथ साथ ज्ञाता और दाता भी हैं।


उनकी क्यारी की फसलें लहलहाती हुई नज़र आ रही हैं। उसमें उगे हुए गेहूँ और गुलाब का संगीतमय संवाद स्पष्ट रूप से सुना जा सकता है। उनकी आँखों की ज्योति निराशा में आशा का गीत गुनगुनाती हुई सूर्य की किरण की तरह जगत का तमस दूर कर रही है और तब तक करती रहेगी जब तक सृष्टि रहेगी।

 

©गोलेन्द्र पटेल

                                                             {संपादक : गोलेन्द्र पटेल}

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com