कला, साहित्य और संस्कृति की मासिक पत्रिका
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Golendra Gyan
Thursday, 23 September 2021
जिउतिया पर्व || खर जिउतिया पूजन || गोलेन्द्र पटेल
Friday, 17 September 2021
आखेट आचार्य (शिकारी शिक्षक)
आखेट आचार्य (शिकारी शिक्षक) : गोलेन्द्र पटेल
शिक्षा के जंगल में कई शिकारी मेरा भी शिकार चाहते हैं। पर मेरे मार्गदर्शक उनके शिकार करने की कला से मुझे अवगत करा चुके हैं। मैं जंगल के सभी हिस्से से परिचित हूँ। किधर कौन सा हिंसक जानवर रहता है? जंगल के किस क्षेत्र में कौन सा शिकारी कब शिकार करता है? किधर वे अपना जाल बिछाये हैं? किधर कोई बहेलिया अपना जाल लगाया है या लगाने वाला है? किस शिकारी के पास कौन सा औजार है?....इस तरह के तमाम प्रश्नों के उत्तर। मैं अपने मार्गदर्शकों से पूछ लिया हूँ। मैं जान लिया हूँ इस जंगल का कोना-कोना। एक न एक दिन मैं नदी के तट पर शेष बातें भी जान जाऊँगा। असल में जानना ही शिष्य का धर्म है और सीखना उसका कर्म। और कर्म करना मनुष्य की नियति है। ("आखेट आचार्य" से /गोलेन्द्र पटेल)
{ई-संपादक}
नाम : गोलेन्द्र पटेल
{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
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Wednesday, 15 September 2021
"सुब्रह्मण्य भारती युवा कविता सम्मान'' : शिक्षा को समाज की पहली आवश्यकता मानते थे राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती - प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल
शिक्षा को समाज की पहली आवश्यकता मानते थे राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती- प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल
तमिल के प्रख्यात कवि, समाज सुधारक एवं पत्रकार सुब्रह्मण्यम भारती की स्मृति में अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय के तत्वावधान में हनुमान घाट पर ‘प्रतिमा माल्यार्पण सह परिचर्चा' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सुब्रह्मयम भारती की मूर्ति पर माल्यार्पण के बाद हनुमान घाट स्थित कवि के बनारस प्रवास के दिनों के घर जाकर परिवार से मुलाकात की गई तथा महाकवि की स्मृतियों को संजोते हुए परिवार को सम्मानित किया गया।इस अवसर पर युवा कवि गोलेन्द्र पटेल को "सुब्रह्मण्य भारती युवा कविता सम्मान'' प्रदान किया गया।
चेतसिंह किला परिसर में आयोजित परिचर्चा के क्रम में स्वागत एवं बीज वक्तव्य देते हुए काशी के ख्यात न्यूरोलॉजिस्ट एवं अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वॉक विश्विद्यालय के मानद कुलपति प्रो. विजायनाथ मिश्र ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती की कविताएं आम आदमी की पीड़ा का बयान हैं। महाकवि तुलसीदास की रचनाओं में भी आम आदमी का कष्ट दिखाई पड़ता है। प्रो. विजयनाथ मिश्र ने कार्यक्रम के माध्यम से हनुमान घाट स्थित भारती जी के घर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग उठाई।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक, अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वॉक विश्वविद्यालय के मानद डीन एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती के बहाने हिंदी और तमिल के बीच संस्कृतिक सेतु की चर्चा की जा सकती है। भारती जी 1905 के कांग्रेस अधिवेशन में बनारस आए थे। बाद में 1906 के कलकत्ता अधिवेशन में वे सिस्टर निवेदिता से मिले जहां से उन्हें स्त्री शिक्षा के लिए काम करने की प्रेरणा मिली। भारती जी का मानना था कि एक उन्नत समाज में शिक्षा होनी चाहिए, शिक्षा के लिए स्कूल चाहिए, अखबार और उद्यमी होने चाहिए। सन् 1919 में गांधी से मुलाकात कर उन्होंने हिन्दी भाषा का जोरदार ढंग से समर्थन किया था। वे हमेशा दलितों, उपेक्षितों, स्त्री शिक्षा पर जोर देते थे। महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती ने विकसित समाज के लक्ष्य प्राप्ति के लिए तीन बातें आवश्यक मानी इनमें पहली बात शिक्षा है, दूसरी बात शिक्षा और तीसरी बात भी शिक्षा है। वे भारतीय राष्ट्रीय काव्यधारा में दक्षिण भारत के उतने ही बड़े कवि जितने उत्तर भारत में मैथिलीशरण गुप्त एवं रामधारी सिंह दिनकर।
विशिष्ठ अतिथि, बीएचयू के तमिल विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. जगदीशन टी ने महाकवि को याद करते हुए कहा कि भारती जी पूरी दुनिया को अपना मानते थे। गरीबों और लाचार की मदद करना वे धर्म समझते थे। उनके विचार न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि समस्त भारत के विचार हैं, जिसे बनारस में उन्होंने ग्रहण किया था। आज सुब्रह्मण्यम भारती के विचारों को सामने लाए जाने की जरूरत है।
कार्यक्रम के आरंभ में हनुमान घाट पर स्थित सुब्रह्मण्यम भारती की प्रतिमा का माल्यार्पण किया गया। तत्पश्चात युवा कवि गोलेन्द्र पटेल को पहले 'सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान 2021' से सम्मानित किया गया जिसमें इन्हें प्रशस्ति पत्र,सम्मान राशि व अंगवस्त्रम भेंट किया गया।उनकी कविताओं पर वक्तव्य देते हुए बीएचयू के हिंदी विभाग में सहायक आचार्य और युवा आलोचक डॉ विंध्याचल यादव ने कहा कि
गोलेन्द्र हिंदी कविता में एक विस्फोट की तरह हैं।वे किसानी व श्रमिक चेतना के कवि हैं।उनकी परंपरा में किसान परंपरा दिखाई देती है जहां लोक के प्रति गहरी संसक्ति है।उन्होंने अपनी भाषा अर्जित की है,यह सुखद है।
इस अवसर पर गोलेन्द्र ने 'उस पार','मल्लू मल्लाह' व 'होनी का होना' नामक कविताओं का पाठ किया।
कार्यक्रम के अंत में संगीत की प्रस्तुति भी हुई जिसमें बीएचयू के कृष्ण कुमार तिवारी ने गणेश वंदना के साथ सुब्रह्मण्यम भारती के जीवन पर आधारित गीत की प्रस्तुति की।तबले पर काशी विद्यापीठ के सुमंत चौधरी ने संगत दी।
कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र उदय पाल ने किया।धन्यवाद लोक कलाकार अष्टभुजा मिश्र ने किया।इस अवसर पर अष्टभुजा मिश्र,उदय प्रताप सिंह,अंकित,कविता गोंड,पंकज पटेल,शिव विश्वकर्मा, आस्था वर्मा,जूही त्रिपाठी और कई शोधार्थी ,कलाकार व घाटवाकर उपस्थित थे।
रपट साभार : जूही त्रिपाठी (शोधार्थी, बीएचयू)
Monday, 13 September 2021
HINDI : हिन्द, हिन्दवी, हिन्दी (हिंदी) | सिन्धु, हिन्दु, हिन्दुस्तान | हिंदी दिवस
हिन्दी//
ह् इ न् द् ई
'ह' से हँसी
'इ' से इश्क
'न' से नज़र
'ई' से ईर्ष्या है हिन्दी
©गोलेन्द्र पटेल
रचना : 14 सितंबर, 2016 की है तब अंतिम पंक्ति ('ई' से ईप्सा है हिंदी) थी।
मो.नं. : 8429249326
Thursday, 9 September 2021
BHU MA Entrance Exam 2013 : Hindi || बी.एच.यू. , एम.ए. हिंदी प्रवेश परीक्षा 2013 का पेपर : उत्तर...
{बी.एच.यू. , एम.ए. हिंदी प्रवेश परीक्षा 2013 का पेपर : गोलेंद्र पटेल}
प्रिय मित्रों! आप उत्तर कमेंट्स बॉक्स में लिखते रहिए!
(01) पूर्वी हिंदी का विकास निम्नलिखित में से किस अपभ्रंश से हुआ है?
(1) मागधी अपभ्रंश
(2) अर्धमागघी
(3) शौरसेनी
(4) महाराष्ट्री
(2) भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में हिंदी भाषा के विकास सम्बन्धी निर्देश दिए गये हैं ?
(1) 251
(2) 243
(3) 343
(4) 351
(3) डॉo उदयनारायण तिवारी ने अपनी पुस्तक हिंदी भाषा का उदगम और विकास में अपभ्रंश का जन्मकाल माना है:
(1)700 ईo
(2)800 ईo
(3)900 ईo
(4)1000 ईo
(4) राजभाषा अधिनियम 1976 के अनुसार कौन -सा राज्य 'क ' सूची में नहीं आता हैं?
(1) हरियाणा
(2) राजस्थान
(3) पंजाब
(4) हिमांचल
(5) विशेषण के रूप परिवर्तन पर किसका असर पड़ता हैं?
(1) पुरुष
(2) लिंग
(3) काल
(4) कारक
(6) परवर्ती अपभ्रंश को पुरानी हिंदी नाम किसने दिया ?
(1) चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'
(2) राहुल सांकृत्यायन
(3) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(4) हजारी प्रसाद दुिवेदी
(7) लरिकवा जात रहा - वाक्य किस बोली का है?
(1) भोजपुरी
(2) अवधी
(3) ब्रज
(4) मैथिलि
(8) काव्यभाषा के रूप में अवधी भाषा के आरम्भिक रूप का पहला महत्तपूर्ण साक्ष्य निम्नांकित किस कृति में मिलता है?
(1) मधुमालती
(2) पद्र्मावत
(3) चान्दायण
(4) चित्रावली
(9) चलती हुई ब्रजभाष में सबसे पहली साहित्यिक कृति इन्ही की मिलती है जो पूर्णता के कारण आश्चर्य में डाल देती है-आचार्य शुक्ल की यह उक्ति किस कवि की काव्य भाषा के लिए है?
(1) सूरदास
(2) नंददास
(3) बिहारी
(4) पुद्र्माकर
(10) निम्नलिखित रचनाओँ में एक रचना ब्रजभाषा में नहीं है?
(1) विनय पत्रिका
(2) कवितावली
(3) कृष्ण गीतावली
(4) बरवै रामायण
(11) निम्नलिखित बोलियों में एक बिहारी हिंदी समूह की बोली नहीं है?
(1) मैथिलि
(2) मगही
(3) बघेली
(4) भोजपुरी
(12) पैशाची प्रकृत का क्षेत्र कहाँ था ?
(1) मगघ के आस -पास
(2) कश्मीर के आस -पास
(3) महाराष्ट्र के आस -पास
(4) मथुरा या शूरसेन के आस -पास
(13) निम्न में एक आधुनिक अवधी के कवि नहीं है?
(1) द्वारिका प्रसाद मिश्र
(2) गरु प्रसाद सिंह 'मॄगेश '
(3) वंशीधर शुक्ल
(4) कवि नसीर
(14) देवनागरी का विकास किस लिपि से हुआ है?
(1) ब्राह्मी
(2) खरोष्ठी
(3) पंजाबी
(4) गुरुमुखी
(15) अक्षरों के वर्ग के पंचम वर्ण के स्थान पर केवल अनुस्वार का प्रयोग किया जाय-देवनागरी लिपि के सुधार हेतु यह सुझाव किसका था ?
(1) आचर्य नरेंद्र देव
(2) श्यामसुन्दर दास
(3) डॉ राधा राधा कृष्णन्
(4) श्रीनिवास जी
(16) निम्न वर्णों में एक स्वर नहीं है:
(1) उ
(2) ऋ
(3) ए
(4) श्र
(17) निम्न ध्वनियों में एक तालव्य है :
(1) ख
(2) घ
(3) छ
(4) ध
(18) निम्न में एक दन्त्य नहीं है:
(1) च
(2) त
(3) थ
(4) ध
(19) निम्नलिखित में कौन -सी भाषा प्राचीनतम है?
(1) प्राकृत
(2) पालि
(3) वैदिक संस्कृत
(4) संस्कृत
(20) मराठी भाषा की लिपि क्या है?
(1) गुजराती
(2) देवनागरी
(3) गुरुमुखी
(4) फारसी
(21) हिंदी भाषा नामक पुस्तक के लेखक है:
(1) भोलानाथ तिवारी
(2) हरदेव बाहरी
(3) देवेन्द्र कुमार शर्मा
(4) सुनीति कुमार चटर्जी
(22) निम्नलिखित में कौन ध्वनि निर्बल है ?
(1) ख
(2) फ
(3) य
(4) ठ
(23) किस शब्द में वर्णविपर्यय है ?
(1) रत्न
(2) ब्रम्ह
(3) यत्न
(4) क्रम
(24) कौन भाषा चित्र लिपि में लिखी जाती है ?
(1) अरबी
(2) संस्कृत
(3) अंग्रेजी
(4) चीनी
(25) किस शब्द में स्वरागम (स्वर भक्ति ) है ?
(1 ) परम
(2 ) करम
(3 ) चरम
(4 ) अमर
(26) किस पुराण में काव्यशास्त्रीय विवेचन प्राप्त होता है ?
(1) भागवतपुराण
(2) कूर्मपुराण
(3) अग्निपुराण
(4) मत्स्य पुराण
(27) निम्न में रसवादी आचार्य कौन है ?
(1 ) चिंतामणि
(2 ) केशवदास
(3) भूषण
(4) पद्माकर
(28) केशवदास किस काव्य सम्प्रदाय से सम्बद्ध है?
(1) रीति
(2) वक्रोकित
(3) ध्वनि
(4) अलंकार
(29) आचार्य शुक्ल ने वक्रोकित सिद्धान्त की तुलना किससे की है ?
(1) मनोविशलेषणवाद
(2) अभिव्यंजनावाद
(3) स्वच्छन्दतावाद
(4) साम्यवाद
(30) 'रससूत्र ' के व्याख्याकारों में कौन नहीं है?
(1) भट्नायक
(2) लोल्लत
(3) शंकुक
(4) रुद्र्ट
(31) 'रसगंगाधर ' किसकी रचना है ?
(1) विश्वनाथ
(2) जगन्नाथ
(3) दण्डी
(4) उद्दभट
(32) रसवादी आचार्य किस शब्द शक्ति को प्रमुख मानते हैं?
(1) अभिधा
(2) व्यंजना
(3) लक्षणा
(4) तात्पर्य वॄत्ति
(33) भारतमुनि के अनुसार श्रृंगार रस का वर्ण क्या है?
(1) शवेत
(2) श्याम
(3) नील
(4) पीत
(34) 'रमणीयार्थ प्रतिपादक : शब्द :काव्यम' -किस आचर्य का काव्य -लक्षण है ?
(1) भरत
(2) भामह
(3) विश्वनाथ
(4) जगन्नाथ
(35) आचार्य रामचन्द शुक्ल किस काव्य सम्प्रदाय के समर्थक है?
(1) अलंकार
(2) ध्वनि
(3) रस
(4) वक्रोतिक
(36) आचर्य भिखारीदास की रचना कौन -सी है?
(1) रसपीयूष निधि
(2) काव्यनिर्णय
(3) कविकुलकल्पतरु
(4) रस मीमांसा
(37) 'जूही की कली ' कौन -सा रस है ?
(1) श्रृंगार रस
(2) रौद्र रस
(3) शान्त रस
(4) श्रृंगार रसाभास
(36) आचर्य भिखारीदास की रचना कौन -सी है?
(1) रसपीयूष निधि
(2) काव्यनिर्णय
(3) कविकुलकल्पतरु
(4) रस मीमांसा
(37) 'जूही की कली 'मे कौन -सा रस है ?
(1) श्रृंगार
(2) रौद्र रस
(3) शांत रस
(4) श्रृंगार रसभासं
(38) किस अलंकार में वर्ण वक्रता होती है ?
(1) शलेष
(2) अनुप्रास
(3) यमक
(4) उत्प्रेक्षा
(39) केवल प्रतिभा को काव्य हेतु मानने वाले आचार्य कौन हैं ?
(1) भामह
(2) महिमभट्ट
(3) पंडितराज़ जगन्नाथ
(4) राजशेखर
(40) 'आलोचक की आस्था ' किसकी कॄति है?
(1) आचार्य शुक्ल
(2) डॉo नगेन्द्र
(3) महावीर प्रसाद द्वावेदी
(4) मुक्तिबोध
(41) स्वच्छन्दतावादी समीक्षक कौन हैं ?
(1) नन्ददुलारे बाजपेयी
(2) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(3) शांतिप्रिय द्विवेदी
(4) आचार्य रामचन्द शुक्ल
(42) वक्रोक्ति सिद्धांत के उदधोषक है?
(1) कुंतक
(2) दण्डी
(3) आनन्द वर्द्धन
(4) मम्मट
(43) काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है काव्य के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण धारणा व्यक्त करने वाले कवि है
(1) प्रसाद
(2) पन्त
(3) निराला
(4) महादेवी
(44) निम्नलिखित में से एक काव्य हेतु नहीं है
(1) प्रतिभा
(2) व्युत्पति
(3) अभ्यास
(4) श्रवण
(शेष प्रश्न अगली प्रस्तुति में : गोलेन्द्र पटेल)★ संपादक संपर्क सूत्र :-
नाम : गोलेन्द्र पटेल
{काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र}
ह्वाट्सएप नं. : 8429249326
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Wednesday, 8 September 2021
युवा किसान कवि गोलेन्द्र पटेल की सोलह कविताएँ
युवा किसान कवि गोलेन्द्र पटेल की सोलह कविताएँ :-
{साखी-33 का लोकार्पण}Sunday, 5 September 2021
शिष्य का शब्द : आत्मकथ्य - 2 : गोलेन्द्र पटेल (बीएचयू)
शिष्य का शब्द : आत्मकथ्य - 2
'गु' शब्द का अर्थ है अंधकार (यानी 'अज्ञान') और 'रु' शब्द का अर्थ है प्रकाश (यानी 'ज्ञान')। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म स्वरूप प्रकाश है, वह गुरु है। यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि गुरु का उक्त तात्पर्य उस युग का है जब एक 'गुरु' स्वयं एक 'गुरुकुल' होता था। समय के साथ शिक्षा की खेती करने की अनेक पद्धतियाँ विकसित हुई हैं। परंतु खेत दिन-प्रतिदिन छोटे होते जा रहे हैं और ज्ञान की खेती करने वाले सुकुमार, एकदम सुकुवार। तेजी से मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो रही है। शिक्षक और शिष्य के संबंधों का सुमन मुरझा रहा है। इस मुरझाते हुए सुमन के संदर्भ में मुझे अपने प्रिय कवि ज्ञानेंद्रपति की कविता 'वे जो' की याद आना, यहाँ कोई अनायास नहीं है बल्कि वर्तमान की दशा का दबाव है। इस कड़वी सच्चाई को व्यक्त करनेवाली कवि कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :-
"वे जो 'सर' कहाते हैं
धड़ भर हैं
उनकी शोध-छात्राओं से पूछ देखो"
बुद्धि हर व्यक्ति के पास होती है। पर सद्बुद्धि सबके पास नहीं होती है। यह तब तक प्राप्त नहीं होती है जब तक कि व्यक्ति को किसी का मार्गदर्शन प्राप्त न हो जाये। एक बात यह भी है कि गुरु के अनुभव से जब शिष्य के अनुभव का रैखिक मिलन होता है तब उसके सोचने-समझने की दायरा बहुत बढ़ जाता है और उसकी सृजनात्मक शक्ति भी पहले की अपेक्षा काफी बढ़ जाती है। उसकी सचेतनता उसकी रचनात्मकता को परिष्कृत करती रहती है। उसके संस्कार का संसार अपनी सभ्यता और संस्कृति से उर्जा पाकर फैलने लगता है। इसके फैलने से उसके (शिष्य) भीतर की मनुष्यता जागृत होती है। जो उसे मानवीय बनाती है और यही मानवीयता सृष्टि की संवेदना को संजोकर जिंदगी की नदी को स्वच्छ रखती है। जिसमें वैचारिकता की नाव बौद्धधर्मी खेना सीखाते रहते हैं जीवन भर।
किसी भी परिस्थिति में किसी भी तरह की समस्याओं और उलझनों से निपटने के लिए गुरुमंत्र ही वह सार्थक व सर्वोत्तम साधन है। जिसके द्वारा व्यक्ति आसानी से उन पर विजय प्राप्त कर सकता है। हर गुरु साधारण में असाधारण होता है क्योंकि उनके पास शक्तित्रयी (आत्मशक्ति, स्पर्शशक्ति व वाक्यशक्ति) है और यही शक्तियाँ उन्हें ईश्वर से भी बढ़कर सिद्ध करती हैं। जिसे संत कवियों ने बेखूबी से अपनी रचनाओं में दर्ज किये हैं। इस संदर्भ में कबीरदास का आगामी दोहा तो जगत प्रसिद्ध है ही। "गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,काके लागूं पायं / बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया दिखाय ।।"
बहरहाल, मेरी दृष्टि में मेरे गुरु भी उन्हीं ऋषियों की तरह हैं जो अपने समय के सर्वशक्तिमान शिक्षक रहे हैं। मेरे गुरु भी अपने आप में गुरुकुल हैं और मेरे शिक्षक भी अपने आप में शिक्षालय हैं। एक संस्था हैं। जहाँ शिक्षा और दीक्षा दोनों ही आधुनिकता के रंग में रंगी हुई हैं। कला, साहित्य और संस्कृति का त्रिवेणी संगम हैं। अक्सर मैं इस संगम पर सुनता हूँ उनके मुख से निकला हुआ ब्रह्म स्वरूप शब्द! अतः मेरे गुरु मेरे समय के शब्द हैं।
मैं उनकी प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ। न ही उनका मूल्यांकन। और न ही यहाँ कोई अतिशयोक्ति है। न ही मेरे पास कोई चाटुकारिता की भाषा है। मैं तो बस सत्यता की सीमा में अपनी बात रख रहा हूँ। उनकी सक्रियता ही उनकी सदाचारिता और साधुता की पहचान है। वे सतर्क के साँचे में वर्णित अनुभूतियों को मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से उच्च स्तर (भूमि) पर ले जाने का भागीरथ प्रयास तो करते ही हैं। साथ ही साथ शुन्य की संवेगी कंपनता का साक्षात्कार भी कराते हैं। अतः मैं यह कह सकता हूँ कि मेरे गुरु सहज और उदात्त होने के साथ साथ ज्ञाता और दाता भी हैं।
उनकी क्यारी की फसलें लहलहाती हुई नज़र आ रही हैं। उसमें उगे हुए गेहूँ और गुलाब का संगीतमय संवाद स्पष्ट रूप से सुना जा सकता है। उनकी आँखों की ज्योति निराशा में आशा का गीत गुनगुनाती हुई सूर्य की किरण की तरह जगत का तमस दूर कर रही है और तब तक करती रहेगी जब तक सृष्टि रहेगी।
©गोलेन्द्र पटेल
{संपादक : गोलेन्द्र पटेल}नाम : गोलेन्द्र पटेल
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