Golendra Gyan

Friday, 17 September 2021

आखेट आचार्य (शिकारी शिक्षक)

आखेट आचार्य (शिकारी शिक्षक) : गोलेन्द्र पटेल

40 से अधिक रचनाकारों (पत्रकार, वरिष्ठ कवि, आलोचक व आचार्य) ने फोन करते ही आपको बहुत बहुत बधाई व अशेष शुभकामनायें। फिर पुरस्कार राशि कितना मिला है?...सबसे अंत में आप कैसे हैं? खैर, वे सुधीजन जो अपनी संस्था का पुरस्कार मुझे देना चाहते थे पर मैंने नहीं लिया। वे बहुत नाराज हैं कि आखिर मैं उनका पुरस्कार क्यों नहीं लिया? कुछ गुरुओं का आरोप है कि मैं एक चाटूकार चेला हूँ। उनकी दृष्टि में मैं एक चाटूक्ति लिखने वाला शिष्य हूँ। वे बतौर कक्षा एक दिन भी मेरा मार्गदर्शन नहीं किये हैं। और वे सोचते हैं कि मैं उन्हें अपना उपजीव्य बनाऊँ। तो यह कैसे संभव है? एक सर्जक शिष्य के लिए कि वह उन्हें अपना उपजीव्य बनाये। जो कभी प्रभावित ही नहीं किये उसे (यानी मुझे/एक शिष्य को)। एक गुरु (मार्गदर्शक) दूसरे गुरु के शिष्य के प्रति इतनी अमानवीय दृष्टि क्यों रखते हैं? यह एक गुरु ही जानता है। शिष्य तो उन्हें अपने गुरु के समान ही समझता है/ मानता है। उनके ही शिष्य-शिष्या जो मेरे मित्र हैं/ सखी (यानी शोधा छात्रा साथी) हैं। वे उनके व्यक्तित्व के विषय में जब मुझसे चर्चा करते हैं/ बताती हैं। मुझे हँसी आती है उनके गुरुत्व पर लेकिन मेरी नजर में उनका उतना ही सम्मान है जितना कि मैं उनकी रचनाओं का करता हूँ। अर्थात् उनके कृतित्व का। बहरहाल, शिक्षा के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन हीन व संकीर्ण मानसिकता के मार्गदर्शक बढ़ रहे हैं। इसलिए आप खुल कर यह नहीं कह सकते हैं कि ये मेरे मार्गदर्शक हैं तो यह मेरा गुरु! क्योंकि आज शिष्यों से जादा गुरुओं के बीच द्वन्द्व है। देखावे के लिए, वे आपस में मिलते हैं पर वास्तविकता कुछ और है। जो धीरे-धीरे एक शिष्य को समझ में आता है। जब वह उनका शिकार होने लगता है। तब उसे पता चलता है उनका वह पक्ष जो उसकी कल्पना से अब तक परे था। मानस में स्थित उन पथप्रदर्शकों की प्रतिमाएँ भहरा कर टू जाती हैं। मन खिन्न हो जाता है और आत्मा दुखी।


शिक्षा के जंगल में कई शिकारी मेरा भी शिकार चाहते हैं। पर मेरे मार्गदर्शक उनके शिकार करने की कला से मुझे अवगत करा चुके हैं। मैं जंगल के सभी हिस्से से परिचित हूँ। किधर कौन सा हिंसक जानवर रहता है? जंगल के किस क्षेत्र में कौन सा शिकारी कब शिकार करता है? किधर वे अपना जाल बिछाये हैं? किधर कोई बहेलिया अपना जाल लगाया है या लगाने वाला है? किस शिकारी के पास कौन सा औजार है?....इस तरह के तमाम प्रश्नों के उत्तर। मैं अपने मार्गदर्शकों से पूछ लिया हूँ। मैं जान लिया हूँ इस जंगल का कोना-कोना। एक न एक दिन मैं नदी के तट पर शेष बातें भी जान जाऊँगा। असल में जानना ही शिष्य का धर्म है और सीखना उसका कर्म। और कर्म करना मनुष्य की नियति है। ("आखेट आचार्य" से /गोलेन्द्र पटेल)


                                                          {ई-संपादक}

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}

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