Golendra Gyan

Wednesday, 10 August 2022

बहन पर केंद्रित कविताएँ / रक्षाबंधन / बौद्ध रक्खासुत्तबंध दिवस : गोलेन्द्र पटेल

बहन पर केंद्रित कविताएँ :  गोलेन्द्र पटेल 
1).

जरई

धूल में धम्मधर्मी ध्वनि की जय है

धूप ने खिले हुए फूलों से कहा 
कि शब्द और संवेदना के बीच 
मानवीय संबंधों की लय है 

एक स्त्री को रोते देख 
दूसरी स्त्री का रोना 
असल में एक दूसरे का दु:ख समझना है 

पाँच दाने गेहूँ 
शेष जौ 
भूखे पेट सींचना 
रक्षाबंधन जैसा पर्व मनाना है 

कजरी के दिन जरई कबारती हुयीं बहनें
नदी में डुबकी लगाकर 
क्या कहती हैं?

यह तो हम नहीं जानते
न ही हमने कभी यह जानने की कोशिश की
कि वे क्या कहती हैं 

लेकिन हमने यह ज़रूर महसूस किया है 
कि बहनों के बिना 
आँगन की तुलसी सूख जाती है 
और सूख जाते हैं पेड़ 
उनके बिना न घर चिक्कन होता है 
न दुआर 

उनके होने से होता है 
चिड़ियों का कलरव 
झरनों के स्वर में पर्वत के गीत 
और भाइयों की भाषा में आँखों की नमी 

वे विश्वास का पर्याय होती हैं 
जैसे संतान के लिए माँ

बहनें कलह नहीं, कला प्रिय होती हैं 
वे बनाती हैं पतलो-काशा की कुरई, डोलची, सिकौली, झाँपी...
वे बनाती हैं बाँस का बेना
बुनती हैं एक से एक डिज़ाइन वाले स्वेटर 
वे रचती हैं रूमाल पर नई रचना
नई चेतना 

उनकी जरई स्नान से जुड़ी हुयीं यादें 
उन्हें पूरे साल 
धरती होने का बोध कराती हैं 
वे चूल्हे की आँच से सींझती हुई कहानी सुनाती हैं 
वे सुनाती हैं नाँद में चाँद के उतरने के किस्से 
सपनों के संगीत 

उनके स्नेह से अँजोरिया है 
उनकी बातें सुनने के लिये ढिबरी जलती है पूरी रात 

वे कतकी व तीज पर कूजती हैं
उनसे जरई बँधवाते हुए हमने जाना 
बहनापा का वैश्विक मतलब भाईचारा से व्यापक है 
और हमने उनसे सीखा 
बुरे वक्त में 
वेदना को उत्सवगान में बदलने का हुनर

हमारी बहनें 
साहस व सहजता के धरातल पर 
उम्मीद हैं!

2).

धागा

पाण्डुलिपियों में पर्व की परंपरा बची है
लेकिन आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से
अभी तक प्रेम का प्रमेय हल नहीं हुआ है
गणितज्ञ के यज्ञ में श्लोक नहीं,
सूत्र का स्वाहा है
हर युग इसका उदात्त उत्तर चाहा है

धरती और आसमान आँसू की आवाज़ सुनो!

न तो उसका कोई भाई है
न तो उसकी कोई बहन
वह तो महज़ एक पेड़ है
फिर भी उसे धागा बाँधा जा रहा है
पत्थर को भी धागा बाँधा जा रहा है
क्या इस धागे में रक्षाबंधन की रक्षा सूत्र नहीं है?

पत्थर पेड़ की तरह मनोवांछित फल देता है
ओ रूढ़ रव!
ऐसी सामाजिक व्यवस्था है 
कि धागे से अटूट आस्था है

एक धागा प्रेम का प्रतीक है
जिसके टूटने से तन नहीं,
मन टूट जाता है

क्या यह वही है?

3).

गगरी

माँ ने बहन से कहा कि मेरी बच्ची
जहाँ चार-छह गगरी होंगी
वहाँ से ठन-ठन की आवाज़ आना स्वाभाविक है

लेकिन आज से ठीक तेइस बरस पहले
नानी ने माँ से कहा था कि मेरी बच्ची
यदि गगरी ठनठनही निकल जाए,
तो उसे चार बार बदली जाती है

गगरी वही है 
पर, परिस्थिति अलग है
जो कि उसका अर्थ बदल रही है
बेटी माँ की तरह गल रही है!

4).

बहन का मतलब

अंग्रेजी में ‘बहन’ को ‘सिस्टर’ कहते हैं
जिसका मशहूर मतलब है
‘स्वीट’, ‘इनोसेंट’, ‘सुपर’, ‘टैलेंटेड’, ‘एलिगेंट’ और ‘रिमार्केबल’

हिन्दी में बहन का पहला मतलब है
‘ब’ से ‘बज़्म’ है बहन 
‘ह’ से ‘हथौटी’ है बहन 
‘न’ से ‘नज़्म’ है बहन

बहन का दूसरा मतलब है
‘ब’ से ‘बल’ है बहन (भाई का)
‘ह’ से ‘हल’ है बहन (हर सवाल का)
‘न’ से ‘नल’ है बहन (पानी का)

बहन का तीसरा मतलब है
‘ब’ से बाप के लिए बधाई बन जाना 
‘ह’ से हक के लिए हथियार उठाना
‘न’ से नीच के लिए नाख़ून बढ़ाना

बहन! बहन का चौथा मतलब क्या है?
“दूसरे की बहन को अपनी बहन समझना!”
■ 

5).

मेरे घर की स्त्रियों का बाल झड़ रहा है

बचपन में
जब भी आता था बाल लेने वाला
मैं मुँक्की-मुँक्का में, 
मँड़ई में माँ का बाल ढूँढ़ता था
बाल मिलते ही
मेरी आँखें चमक उठती थीं
लेकिन अब जब बाल लेने वाले के डमरू की आवाज़ सुनता हूँ 
मेरी आँखें नम हो जाती हैं
मेरा हृदय हहरा उठता है
मेरे आँसू की ढुलकीं
 बूँदें
मेरे पसीने की बूँदों से मिलती हुयीं
उन स्त्रियों का दुःख गाती हैं
जिनके बाल तेजी से 
झड़ रहे हैं, टूट रहे हैं!

मैं अपनी माँ के झड़े हुए बालों के साथ
सेल्फ़ी ले रहा हूँ
कि बहन कह रही है 
कि उसके बाल भी तेजी से झड़ रहे हैं
चाची का भी झड़ रहा है
दादी तो खैर चंडूलाहिन हो गयी हैं

स्त्रियों के बालों का झड़ना
उनके सौंदर्य का झड़ना है

वे स्मित चेहरे के पीछे कितनी दुखी हैं
दिन के दुख से कहीं अधिक गहरा होता है
रात का दुख
और ऊपर से यह बाल का झड़ना
उनके मन को कुतर रहा है
जैसे तन को चिंता!

मुझे अपने घर की स्त्रियों को चंडूलाहिन होने से बचाना है
उन्हें बेलचट होने से बचाना है
उन्हें तकला होने की तकलीफ़ से उबारना है

प्रिय पाठको!
मेरी यह अभिव्यक्ति
किसी बाल चिकित्सक तक पहुँचाने की कृपा करें!
मेरी माँ का बाल तेजी से झड़ रहा है
मेरी बहन का भी
मेरी चाची का भी
मेरी पड़ोसिन स्त्रियों का भी
मेरा भी!

6).

गंजा

अक्सर गंजा आदमी खड़ंजा की संज्ञा पाता है
और औरत बेलमूँड़ी की

दोनों ही घने बालों वालों के लिए
हास्यास्पद बन जाते हैं
कभी-कभी!

7).
माँ राखी बाँधना छोड़ दी

बहन का ब्याह बहुत दूर हुआ है
राह ताक रही माँ से पूछा
"माँ तूने क्यों छोड़ दिया
राखी बाँधना?"
आँखों से टपकती आँसू के बूँदें उत्तर हैं!

मौन टूटने पर माँ ने कहा
___बीमार थी न
रोपनी नहीं कर पायी
रुपये-पैसे नहीं थे इसलिए

बहन को भाई पर गर्व है
तीमार भावाविष्ट रक्षाबंधन
पवित्र प्रेम का पर्व है!!

8).

केवल रक्षाबंधन
 
जग में कोई नहीं है अपना
दो वक्त की रोटी है सपना
वह एकजुआर रोज़ रोती है

चूल्हे की ओर ताक रही है भूख
तवा उदास है और सुना रहा है 
डकची को कड़ाही का दुख-दर्द 
और आत्मा के आँसू की व्यथा-कथा

चौका-बेलना बिलख रहे हैं
सून्ठा-सिल सिसक रही हैं
आँखों में बह रही है नदी 

गरीब के गालों पर देख रहा है 
बुरे समय में उगा ऊख
आह! ये कैसी विपदा? ये कैसी बदी?

कुएँ का पानी विकल्प है
बच्चों के जीवन के लिए
आज नैहर जाना है - प्राणनाथ स्वर्ग से लौट आओ!

बच्चों को नानी के घर
मिलेगा हलवा-पुड़ी-मिठाई
सब उल्लास से उछल रहे हैं

भईया पहले अपने ससुराल जाएंगे
फिर लौट कर आएंगे हमें लेनें
साँझ हो गयी मामा कब आएंगे? माँ!

बेटी! उम्मीद मांगती है वक्त
बस थोड़ा और इंतजार करो, सब्र करो
मामा आ गए, मामा आ गए, बड़े मामा आ गए...

मुन्नी कैसी हो? 
ठीक हैं
रात हो गयी

दीदी रास्ते में गाड़ी खराब हो गई थी
सारे दुकान बंद थे
"लॉकडाउन लगा है चारों ओर
लोग घर में रहते-रहते लंगड़ हो गए हैं"

चलो जल्दी करो! 
माई फोन करवा रही है
वह विशेष धागों के साथ पहुँच गई जब मायके में
तब बैग में ढूँढ़कर, देखकर 
हँसी-ठिठोली में भुक्खड़ भौजाई बोली है
हे बूढ़िया! आपकी धीया
हे मुनुवाँ के पापा! आपकी बहन
मिठाई नहीं केवल रक्षाबंधन लायी हैं
केवल रक्षाबंधन!
केवल रक्षाबंधन!
केवल रक्षाबंधन!

9).

केवल राखी

एक).
मैंने देखा___
सावन का मस्तीला मौसम मेघों का मधुर संगीत सुन रहा है
और धरती चाँद को इंद्रधनुषी राखी बाँध रही है
लेकिन त्यौहार की बयार कह रही है कि
यह श्रेय और प्रेय के बीच संबंधों के क्षय होने का समय है
ऐसे में रोशनी के लिए रूह की राखी में चेतना की चिनगारी का चिंघाड़ना
चुप्पी से चीख को उघाड़ना है
कोई बहन बाज़ार में चेतावनी की चमक देख
आँखों में संचित कर लीं संघनित स्मृतियाँ

यह गंध-रूप-रस-रंग का कैसा राग है?
तपस्वी शब्द के शरीर पर नाख़ून का दाग है
अर्थ की यात्रा में गहरे रिश्ते का रोना
प्रतिदिन मनुष्यता के प्रत्यय का गायब होना है

बहन प्यार की कसौटी पर धागे में अपना बल परोर
भाई की कलाई में कला की तरह बाँध देती है
उसकी भुजा में भाषा की ताकत तप से अधिक तोप है
तुम्हारे रक्षाबंधन से रक्षा का लोप है
किन्तु बंधन बचा है जो तुम्हारे पाँव की बेड़ी है
तुम्हारी पीड़ा के प्रश्नों को पुरुषार्थ के पत्थर पर पनपते देख
प्रलय की आहटें अँखुआने लगी हैं
खूँटे पर बकरी की लेड़ी है और खेत में खेड़ी है
तुम्हारी फटी हुई एड़ी है
मेरी दृष्टि में मैं बहुत चिंतित हूँ!

दो).
अपनी व्यथा-कथा को भूल
मेरी बहन इस पावन पर्व पर सूरदास का पद गा रही है
(राखी बांधत जसोदा मैया।
विविध सिंगार किये पटभूषण, पुनि पुनि लेत बलैया॥
हाथन लीये थार मुदित मन, कुमकुम अक्षत मांझ धरैया।
तिलक करत आरती उतारत अति हरख हरख मन भैया॥
बदन चूमि चुचकारत अतिहि भरि भरि धरे पकवान मिठैया।...)
मैं उसे सुना रहा हूँ श्रीप्रकाश शुक्ल की कविता 'रक्षा बंधन'
(...मासूम कलाइयों के बदलते हुए खूँखार पंजों के लिए
तुम महज़ एक देह हो
जिसको खुद ही रखना है महफूज
इन रक्षक भाइयों से...)

तीन).
वक्त की वेदना बड़ी है
घाट पर हिलोरों को निहारती हुई
मेरी बहन खड़ी है

सुलगती जा रही है ज़िन्दगी
हथेलियों में हरे हैं ढेर सारे घाव
स्वप्न के संघर्ष में विश्राम नहीं है
बिखर रहा है भाव
बिलख रही है नाव
रेत डूब गई अपने आँसू में

रक्षा बंधन पर नदी का नैहर जाना संभव नहीं है
वह बस अपनी बेटी की तरह रो रही है
जब एक स्त्री रोती है 
तब अन्य स्त्रियों का रोना स्वाभाविक क्रिया है
अब मछलियाँ भी रो रही हैं
बाढ़ आने की स्थिति बन चुकी है

बाँध टूटेगा तो नदी अपने ससुराल पहुँचेगी!

चार).
इस सौहार्दपूर्ण पर्व पर राखी ने पूछा___
क्या प्रेम की पंक्ति में सुरक्षा की सूक्ति है?
क्या रूढ़िवादिता की रस्सी से मुक्ति है?
अभिमंत्रित रेशम ने उत्तर दिया___
रिश्ते की रोशनी अँधेरे में रास्ता दिखाती है

भाई-बहन का प्रेम धर्म-जाति से ऊपर है
इतिहास में मुसलमान हुमायूँ को 
हिंदू कर्णवती ने राखी बाँधी है
जिसकी बहन नहीं, वह आधा है
अपूर्ण है, अभागा है आज भी
कृष्ण की कलाई में द्रौपदी का धागा है

रीति और नीति के बीच नये सोच की सुई है
सत्य से समय का संबंध ख़ास है
मेरी बहन दो घरों का उजास है!

पाँच).
जैसे पिता के लिए ताकत होती है बेटी
वैसे ही छोटे भाई के लिए दाई होती है बहन
मेरी बहन मुझसे छोटी है 
लेकिन वह मेरी बुद्धि का बिंब है
उसकी बहस बहस नहीं बल्कि निंब है

वह अपने तर्क से तिल को ताड़ या राई को पर्वत बनाने में सामर्थ्य है
उसके हठ को हराने में अनर्थ है
मैं बहस में बहन से हार जाता हूँ

हारने का हर्ष जीत की ख़ुशी से अधिक आनंददायक है!

छह).
मैं महासूत्र के पवित्र-महाबंधन पर बहन के नाम छंद रच रहा हूँ
यह रक्षाबंधन पवित्रता का अनूठा संगम है
रेशमी धागों के बंधन में बँधा है संसार का प्यार
यह जाति-धर्म से ऊपर है सबसे बड़ा त्यौहार

इसमें संस्कृति और सभ्यता की तान है
यह स्त्री-रक्षा का अभियान है
ज़िंदगी की नोंक-झोंक में एक दृढ़ विश्वास है
लेकिन आधुनिकता की आँच से सिकुड़ रहे हैं संबंध
भौतिकवाद की भेंट चढ़ रही है राखी
रेशम हो रहा है तार-तार
अब नहीं रह गए रस्म के संस्कार

अक्षय-अक्षुण धुन-ध्वनि-धन्य-धान्य शब्द सखा सगा भाई
सुख-दुख के मौलिक मूल्यों की मर्यादा की मणि है
बहन के लिये आदर्श का आलोक है, घड़ी है
और है चेतना शून्य समय में जीवन का संचार
आश्वासन का उपहार
साक्षात ढाल, मृत्यु समक्ष वज्र प्रहार
महारक्षासूत्र रेशमी बंधन
कुमकुम रोली से सज गये घर-द्वार
मनुष्यता की नाव खे रही है प्रेमपर्व की पतवार!

सात).
रोपनहारिन बहन रोपाई के रुपये से राखी खरीद
मायके आयी है और मिठाई लायी है
नेह से लिपटे चिपटे चाकलेट और हाथ के बने पेड़े
श्रावण पूर्णिमा की श्रद्धा फल
अटूट प्रेम का प्रतीक है

झमाझम बारिश हो रही है माँ की आँखों से
आँगन में गौरैयाँ आ गयी हैं 
तुलसी की पत्तियाँ और हरी हो गयी हैं
पिता के कंठ से फूट रही है आशीष
___चिरंजीवी हो बेटी

मैं बहन की चकती युक्त पुरानी धोती में धुन तलाश रहा हूँ
हे धरती! ध्वनि दे वेदना की असाध्य वीणा में
मेरे हृदय को गार कर शब्द निकाल तू
हे सूर्य! मेरी हड्डियों पर साध हथौड़ा
चोट से उत्पन्न चिनगारी को करने दे यात्रा
हे समुद्र! संगीत का स्वाद जीभ को पसंद है 
लहरों से पूछ ले, यह मेरे आँसू का छंद है

हे लय! हे बचपन! हे मृग-मन! हे सज्जन!
निःस्वार्थ, सहज और आत्मिक अभिनन्दन!
यह अनूठा मिलन रक्षा बंधन
एक यादगार ऐतिहासिक दिन है
चुभी, बहन के पाँव में पिन है

मिठाई के डिब्बे पर रबर है 
पर पुतली में रोता हुआ घर है!!

आठ).
रेशम की डोरी में संबंध की शक्ति है
हे अग्नि!
भूखे पेट पर्व की भक्ति है
आँसू से अनुरक्ति है 

जहाँ पीड़ा की पाखी है साखी
केवल राखी!
केवल राखी!
केवल राखी!

नौ).
इस अनुगूँज के बीच 
बौद्ध रक्खासुत्तबंध दिवस पर चर्चा करती हुई 
एक भिक्खुनी बहन ने कहा 
कि बुद्ध स्त्रियों के पहले शुभचिंतक एवं मार्गदाता हैं 
पर, रक्खासुत्तबंध का रक्षाबंधन होना 
स्त्री को पुरुष के अधीन करना है 

स्त्री पितृसत्तात्मक समाज में असुरक्षित है 

स्त्री के लिए 
रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का पर्व नहीं,
बल्कि उसे यह अहसास कराने वाला त्यौहार है 
कि तुम अपनी रक्षा ख़ुद नहीं कर सकती 
तुम कमज़ोर हो 
तुमसे श्रेष्ठ है तुम्हारा भाई

एक स्त्री 
इसलिए विद्रोह नहीं करती है 
कि उसकी माँ ने उसे सहना सिखाया है 
उसकी माँ को उसकी नानी ने इस तरह रहना सिखाया है 
कि ऊपर वाले सब कुछ देखते हैं 
वे न्याय करेंगे

बहनो!
अधिकार और न्याय के लिए 
लड़ना पड़ता है 
लड़ना सीखो, ग़लत को ग़लत कहना सीखो
नींद के विरुद्ध 
यह स्त्रियों के जागने का समय है।

दस).

माँ ने सुना 
और कहा 
कि बेटी बाप की शक्ल है 
और बेटा उनका अक्ल

बेटियों के साथ दरिंदगी की ख़बर 
आ रही है लगातार 
हम दुखी हैं, बहुत दुखी हैं
किस के पास इस दु:ख से उबरने का उपाय है?

बेटियों का असुरक्षित होना 
बेटों का बर्बर होना है 
उनका ठीक से परवरिश न करना है 
उन्हें उचित संस्कार न देना है 
और सड़क पर सरकार का कमज़ोर होना है 

घाव 
राखी-पानी नहीं,
दवा बाँधने से ठीक होता है 
बहन बाँध रही है स्नेहसूत 
भाई मंगलगीत गा रहा है 

पड़ोसी परिवार उदास है 
कि उनके घर बेटी नहीं है

क्योंकि हमारे लिए बेटियाँ
ख़ुशियाँ हैं!

नाम : गोलेन्द्र पटेल (युवा कवि व लेखक : पूर्व शिक्षार्थी, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी)
उपनाम/उपाधि : 'गोलेंद्र ज्ञान', 'गोलेन्द्र पेरियार', 'युवा किसान कवि', 'हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय', 'काशी में हिंदी का हीरा', 'आँसू के आशुकवि', 'आर्द्रता की आँच के कवि', 'अग्निधर्मा कवि', 'निराशा में निराकरण के कवि', 'दूसरे धूमिल', 'काव्यानुप्रासाधिराज', 'रूपकराज', 'ऋषि कवि',  'कोरोजयी कवि', 'आलोचना के कवि' एवं 'दिव्यांगसेवी'।
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) व एम.ए., बी.एच.यू., हिन्दी से नेट।
भाषा : संस्कृत, पालि, अपभ्रंश, हिंदी, भोजपुरी, अंग्रेजी, फ़्रेंच एवं मराठी।
विधा : कविता, नवगीत, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास व आलोचना।
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :

कविताएँ और आलेख -  'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,'साहित्य बीकानेर' ,'उदिता' ,'विश्व गाथा' , 'कविता-कानन उ.प्र.' , 'रचनावली', 'जन-आकांक्षा', 'समकालीन त्रिवेणी', 'पाखी', 'सबलोग', 'रचना उत्सव', 'आईडियासिटी', 'नव किरण', 'मानस',  'विश्वरंग संवाद', 'पूर्वांगन', 'हिंदी कौस्तुभ', 'गाथांतर', 'कथाक्रम', 'कथारंग' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित एवं दर्जन भर से ऊपर संपादित पुस्तकों में रचनाएँ प्रकाशित हैं।

लम्बी कविता : 'तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव' एवं 'दुःख दर्शन'


काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।

सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022", हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से "शंकर दयाल सिंह प्रतिभा सम्मान-2023",  "मानस काव्य श्री सम्मान 2023" और अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र प्राप्त हुए हैं।

संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
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