Golendra Gyan

Wednesday, 17 August 2022

क्या तुम इसका उत्तर जानते हो? : गोलेन्द्र पटेल


क्या तुम इसका उत्तर जानते हो?

यह है आज़ादी के
अमृत महोत्सव का वातावरण
भाषा पर भुजा
व भूख पर भय हावी है
आँसू की नदी में नीति की नाव नहीं
डूबा भावी नावी है
मटके पर मुल्क का मन अटक गया
पर , पानी की पीड़ा पसीने को पता है
धर्मराज!
मैं अछूत की कविता हूँ
सृजनात्मक समाज का सोच नया शब्द-स्वर
जाति की ज्योति - जीवन की जीवटता
जन्मजात जिज्ञासा - जीव की जिजीविषा
मैं मानवीय संवेदना की सरिता हूँ
आज़ाद भारत के महाभारत का भविष्यपर्व
अर्थात् अनकहा गीता हूँ
मुझे मालूम है
मेरा शब्दसपूत अर्थार्जुन से जंग जीता है
वह सहृदय में समय का सविता है
मृत्यु की गोद में सोना
उसके लिए अंतिम बार रोना है

कृष्ण!
मेरे एकलव्य को देखे हो
द्रोणाचार्य को दिया उसका अँगूठा
अक्षर से आकृति बना रहा है
अँधेरे के चेहरे पर
मैं चाहती हूँ कि वह इसे रोके
अन्यथा आवाज़
अंतःकरण से बाहर आते ही
धर्म की ध्वनि को शोर में परिवर्तित कर देगी
और तुम्हारा सपना 
संघर्ष के संग्राम में स्वाहा हो जाएगा
मृत्यु का मौसम वसंत से अच्छा है
जंगल - यह ख़ून से गीला
किसका कच्छा है?

पहाड़ का हाड़ पहाड़ा से जोड़ता प्रश्न
भूगोल के लिए कठिन है
हर! हर
दिन दीन के लिए दुर्दिन है 
भीष्म को अपनी प्रतिज्ञा प्यारी है
किन्तु कर्ण को परिवर्तन की चाह है
बेवजह चालान कट रही है
यह कैसी राह है?

मेरी आँखों का तारा
हालात से हारा है
समरसता का स्वाद उसे मारा है
उसकी प्यास इतिहास का आन्दोलन है
वह पाण्डुलिपियों में
पेड़ के प्रतिबिंब का प्रदोलन है
हवा में ख़ुशबू नहीं
तैर रही है सनसनी ख़बर 
व्यवस्था के विरुद्ध युद्ध की बात
कर रही है रात
अपनी है न 
जात
भात के लिए तरस रही है!

आँचल के कोर भोर होने से पहले भीग गये हैं
चाक चरमपंथी के आगे कब तक चुप रहेगा?
नाथ! दुख का हाथ 
सुबह से शाम तक उसके साथ है
आज मिट्टी बिना वह अनाथ है
मगर मिट्टी पास है
जो आँवाँ में नहीं
चेतना के चूल्हे में पकेगी
एक अनूठी अभिव्यक्ति के रंग में राग अड़ा है
औंधा घड़ा पर बड़ा 
किन्तु एकदम गोल सवाल खड़ा है
जो अपने अस्तित्व के लिए
बहुत लड़ा है

संजय!
क्या तुम इसका उत्तर जानते हो?
क्या तुम उस माँ की चीख सुन सकते हो?
गंधारी की पट्टी से बाहर झाँक रही हैं पुतलियाँ
व्यास वीरों के तीरों की वृष्टि से आहत हैं
इंद्र की आँखों से ढुलकीं
आँसू की बूंदें उनकी स्याही में जा मिलीं 

वे लिख रहे हैं इंद्रनामा
जिसे धृतराष्ट्र की तरह
संवैधानिक संज्ञा - न्याय पढ़ने में असमर्थ है
क्या उनका लिखना व्यर्थ है?

उत्तर दो गुरु!

(©गोलेन्द्र पटेल
17-08-2022)

कवि : गोलेन्द्र पटेल

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