Golendra Gyan

Thursday, 24 August 2023

मुक्तिबोध पर मुक्तिबोध की तरह कविता : गोलेन्द्र पटेल

मुक्तिबोध पर मुक्तिबोध की तरह कविता

शब्दबद्ध— उत्कृष्ट तीव्र अनुभव

युगबोध...
इस अर्थ क्रीड़ा के दौर में और क्या है?
काव्य-नायक का

उसकी क्या पहचान है?
जो आत्मा सभ्यता को मरता देख,
अपने अर्थ से अनजान है
क्या वह इनसान है?

कैसा है उसका रिश्ता?
स्याह आसमान की आह से
सागर में नदियों के आँसू
संचित हैं; धरा का हरापन गायब हो रहा है
आहिस्ता! आहिस्ता!! आहिस्ता!!!
किन्तु, किन्तु-परन्तु उपस्थित रहेंगे
लेकिन के साथ
और इत्यादि भी; पर,
दुःख, पीड़ा, वेदना व संवेदना के बाद


क्या यह उसके सत्य का संवाद है?
नहीं, अपने मूल्य में सिर्फ़ नाद है
उसके अनुप्रासिक आयतन का, 
शायद आंतरिक आवाज़ का

क्योंकि वह वाद है
वह अपने मूल में त्रिकोणीय चक्कर लगा रहा है
लगातार
वह अँधेरा रचता है, उसके लिए
रात रचनात्मक है
वह सुबह के इंतज़ार में रात रच रहा है
(रोशनी की भाषा में रात
पेड़ों की आँखों से
टपकती है
और नींद के मुहावरे जाग जाते है
स्मृति की बात
उसकी कविता है!)
यह उसके सपनों का ज्ञानोदय है

मतलब, उसकी नयी ज़िंदगी की नयी लय है
सपनों की दुनिया में
उसने सोचा,
वक्त के वाचक को पता है,
सच्चा प्रेम स्वतंत्रता का हेतु है
वह लोकोन्मुख शास्त्रज्ञ है
कोई महान दुःख
उसके हृदय और मन का सेतु है

वह भावनात्मक विचार में डूब गया है
उसकी नसों में बिजली दौड़ रही है
उसने अपनी साँसों की गति पर काबू करते हुए कहा,
जनता के शोर से नहीं,
शब्दों के शोर से सत्ता को डर लगता है
शब्द हथियार होते हैं
इसीलिए वह भावभूमि और मनोभूमि में शब्दों की खेती कर रहा है

वह खेत भर कुदाल से लिखता है
कि वह सिर्फ़ वह नहीं है, इस वह में कई वह शामिल हैं

वह पानी पर पदचिन्हों को पढ़ता है

उसका;
जो उसके रक्त की राजनीति करता है

उसके निर्णय और निष्कर्ष के बीच
सभ्यता-समीक्षा का दृष्टिकोण है
स्वतः स्फूर्त संवेदन व साध्य गतिशीलता
उसकी दुरूह व कठिन संप्रेषणीयता को नयी दिशा
व दृष्टि प्रदान करती हैं
उसके जीवन का ताना-बाना
सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक एवं नाना
प्रकार की मानवीय क्रिया-प्रतिक्रिया है
जहाँ नवोन्मेषी चेतना
उसकी सोच की पहली इकाई है
वह शोध कर रहा है
बाह्य जगत के स्रोतों को आधार बनाकर
आंतरिक जगत पर
अपने इस शोध के बाद
वह विश्वदृष्टि का रूपक हो जाएगा

लयबद्ध— उसकी उदात्त आत्मा
व्यष्टि से समष्टि की ओर उन्मुख है
और उसकी भाषा
शास्त्र से लोक की ओर
वह हजारों गुफाओं से गुज़रता हुआ
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर
तपस्यारत है

वह कभी नहीं सोता है
समाधि में सिर्फ़ शिव उसे टक्कर दे सकते हैं
वह परम-अनंत का अनंत हो चुका है
उसके उच्चरित मंत्र से
सृष्टि की संपन्नता है

उसकी आँखें एकांत में हैं
किन्तु, कान नहीं
उसकी आँखों से विश्वदर्शन के प्रकाश फूट रहे हैं
वह समय सापेक्ष सत्य का स्रष्टा है
उसकी वाणी में नदी-सागर के संगीत हैं
जंगल की हरियाली है, चिड़ियों के मधुर स्वर हैं
पर्वत-पठार के प्रगीत हैं

और है अग्नि की ध्वनि
वह परम-अभिव्यक्ति का पर्याय है
उसी के शिष्य प्रियतम पुरखे मुक्तिबोध हैं

मुक्तिबोध?...मुक्तिबोध??...मुक्तिबोध???

स्याह संवेदना को शस्त्र
एवं अँधेरा को अस्त्र में रूपांतरित करने वाले
सर्जक हैं मुक्तिबोध

मुक्तिबोध की 'अंधेरे में' कविता
मेरे लिए कविता नहीं
नाटक है
उसमें चार दृश्य हैं परंतु आठ अंक हैं
सो , सब कविता समझते हैं
उसमें आत्मचेतस् से अधिक विश्वचेतस् की ठूँसाठूँसी है
अर्थात् शब्दों की सघनता में विचार लगातार
बार-बार उहापोह होते हुए भी
आशंका के आकाश में उदात्तता की उड़ान भरता है
एक नये उजास के साथ उस पार
पहुँच जाता है कवि

उसकी भीतरी छवि देखने पर पता चला कि
मन और हृदय के बीच
बुद्धि का अद्वितीय अनुरोध है
प्रतिबद्ध प्रसंग में आधुनिक सभ्यता का बोध
मुक्तिबोधीय चेतना का शोध है
जहाँ भाव विकल और ज्ञान पिपासु समय के साधक ने
जीवन के वन में व्यक्तित्व वृक्ष के नीचे
अपना विराट विवेक विपश्यना की मुद्रा में बैठाकर
अनुभव की उर्ध्वगति साध ली है
उसके संवेदित सच का आधार
स्याह संवेदना है
उसके लिए मनुष्यता मूल्यवान निधि है
यह आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की
अत्यंत पुरातन साधना-विधि है

उजाले की तलाश में भविष्यवक्ता भटकता है
कहीं और नहीं, अपने भीतर
आनंद के नहीं
आघात के अन्वेषक हैं वे
जटिल मन:स्थिति के लेखक हैं
आत्मा के शिल्पी हैं

वाद-विवाद से दूर
निनाद और संवाद प्रिय वक्त के वक्ता हैं

उनके द्वारा अँधेरे की आवाज़ को
अभय व कर्म तत्परता का मंत्र मिला है
वे आंतरिक पुनर्रचना के प्रगतिशील स्वर हैं

उनकी रचनाओं से गुज़रते हुए
मैंने महसूस किया है कि
नये शिल्प की सम्भावनाओं को लेकर
वैचारिक द्वन्द्व की अभिव्यक्ति जनपक्षधरता की ओर
अभूतपूर्व ऊर्जा और आवेग से आगे बढ़ती है
जो स्वयं को गढ़ती है

सघन अंधकार में सहर्ष स्वीकार का मौलिक संसार
आत्मालोचना की भाषा में अंतर्मन का विस्तार है
उनकी चिन्ता में वह मनुष्य है
जो पूँजीवादी तंत्र में उत्पीड़न का शिकार है
यह हम सबके प्रियतम पुरखे का साहित्यिक सरोकार है

संवेदना के सफ़र में स्वप्नजीवी की संघर्षरत सम्प्रेषणीयता
आग के राग से है
जो आँखों में नवोन्मेषकारी शक्ति की तरह
मौजूद है
वरना वाचक का क्या वजूद है?

उनकी अंतर्यात्रा में सौंदर्य का संवेदन है
वे लगातार चेतना की चित्रकारी में फैंटेसी का प्रयोग करते हैं
वे कविता के नये प्रतिमान हैं
उनकी पंक्ति-पंक्ति में राजनीति का रस है
अस्मिता की खोज की प्रक्रिया को प्रेरणा देने के लिए
असल में अँधेरे की भयानक आकृति
ब्रह्मराक्षस है!

जनपक्षधरता— आधुनिकता-भाष्य

नई अस्मिता, पुराने स्व-संवाद

मशीनी मनुष्य की ज्वलंत समस्या

विद्या और विधा के बीच— वैविध्य विधि-प्रसंग

जादुई यथार्थ, रचना-शीलता

उत्थान-पतन, नाटकीयता— कथा-भंग

वर्चस्व के ख़िलाफ़ लगातार संघर्षरत व्यक्ति

सहज शक्ति, सजग भक्ति

ऊँची सतह, गहरी अनुभूति

द्वंद्वात्मक संबंध— उत्तम उमंग

निर्बंध-गंध, रस-रंग, सौंदर्य-संग, निःसंदेह

परिवर्तनकारी शांतिपूर्ण क्रांति के महासूत्र

ये सब के सब हैं इनके पास

और आत्म-इतिहास भी।

(©गोलेन्द्र पटेल / रचना : 30-05-2022)

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1 comment:

  1. बदलाव को प्रेरित करती हुई रचना! चिंतन को नया आइना दिखा रही है आपकी रचना!

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