Golendra Gyan

Friday, 27 March 2020




ज़ार-ज़ार
लाचार
कुंभकार
पहुँच
लोहटिया बाज़ार
लोटा-गिलास
बाल्टी के पास
गया प्यास।
जैसे प्यासा पंक्षी
दूर दूर भटकते
रेगिस्तान में
वैसे वह भटक
रहा है विचार
आत्मसम्मान में
पैसे नहीं जेब
यह जान कर
ऐसे कहा सेब
सहृदय नर
रस पेरनेवाले पुरुष से
मालिक! मालिक!
एक मनुष्य
पिपासा है।
आज मुझे और संतरे को
एकसाथ पेरकर ,उसे दो
आदमी पिया जो
पानी चाहता रो
असहाय असहायक समय में ,तो
इंसानियत का वृक्ष बो
सेब बना कविता
पेरनेवाला कवि।।
-गोलेन्द्र पटेल
रचना : १७-०१-२०२०

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