Golendra Gyan

Friday, 27 March 2020




**काव्यघास**
अर्थ का अहसास
शब्द के आसपास
जमे घास के ख़ास
भूखंड में उदास
उम्मीद के पास
पहुँचने पर हुआ।

निराश भूख
प्रचंड प्यास
देख दुःख!
पृथ्वी हताश
श्वास
कैसे ले रही
विश्वास
बैल बन
हल और जुआ।
समय के
खेत में
खींच कहा
पेट में
एक यज्ञ
हो रहा
जिसका हवि : कवि का काव्य रोटी है
जिसका छवि : रवि का नाव्य ज्योति है।
परंतु मैं तो
पालतू पशु
खाता घास
पीता अश्रु।
आह आज!
मेरे नाँद में
भूसा नहीं है
क्या सही है
समाज
खूँटा से बंधन तोड़
पेट भर चरना घास
बारहों मास।
काश!
साँड़ होता
कभी न सोता
भूखा
कभी न खाता
रूखा-सूखा
उपयुर्क्त बैल ऊब गया
अपने नाँद के मालिक से
दो वक्त के भूसा-पानी से
दासत्व में जकड़े जवानी से
विशेष विवेक के सहयोग से
शब्द और अर्थ के योग से
मुक्त हो जोते हुए जमीन में
उपजाता : उम्मीद का उल्लास
और आकाश का घास
विकास का प्रयास
साहित्य का आवास
विश्वास का निवास
अन्ततः उगा केवल काव्यघास।।
-गोलेन्द्र पटेल
रचना : 19-01-2020



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