Golendra Gyan

Friday, 27 March 2020



हाशिये का हसुआ
एकसाथ चीरता हुआ
सरसों-चना-केरवा
पालक-सोहा-बथुआ
से कहा पकोगे कड़ाही में
क्योंकि तुम सब शाग हो।

आह अंधेरा हो गया
पकाते पकाते चुल्हे पर!
आँत भूख से तड़प रही हैं
टुकुर टुकुर ताक तवा पर
रोटियाँ देख रही हैं : नई कविता जाग-रो।

शाक छौंक कर
माँड़ मिला कर
खाता-पीता काव्यरस
देख डर जाता हूँ
मदाड़ी के बस में
रहनेवाले नाग को

भूख पास बैठी
द्वंद्व के दुनिया में
संघर्ष के लिए माँ से कहती
काव्यथाली में अनुराग दो!
और शाग दो!शाग दो!।....
-गोलेन्द्र पटेल

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