Golendra Gyan

Friday, 27 March 2020


किंवदंती कविता सार :
रामांश और उनके अनुज लक्ष्मणांश का पुनः माता धरती पर अवतार कथासार निम्न हैं :- कौशल्यांश देवी जो एक वनदेवी थी।वह वनदेवी वास्तव में एक गाँव की कन्या थी जिसकी जन्म एक कुवाँरी कन्या के गर्भ से हुई थी।उसकी हालात कुन्ती के जैसा था दोनों समकालीन भी थी।कौशल्यांश कर्ण के जन्म के समय ही जन्मीं थी।कर्ण के हृदय को जितना कष्ट हस्तीनापुर दैता हैं उससे कई गुना कौशल्यांश को मिला।
कौशल्यांश : कुन्ती पाण्डवों के साथ जब वनवास जाती है तो कुछ दिन बाद अकेले एकांत नदी के तट पर कौशल्यांश से मिली। कौशल्यांश एक बूढ़ी वृक्ष के नीचे तपस्या कर रही थी।कुन्ती उन्हें प्रणाम कर उनसे पूछा अपने पुत्रों का भविष्य। कुन्ती के भविष्य के साथ भूत देख नयन नीर नदी में प्रवाहित करने लगी। कुन्ती कही : देवी! वनदेवी! आपके आँसू नदी में जा रही हैं ऐसा क्यों? क्या करणा हैं? तो कुन्ती को पाण्डवों के भविष्य के साथ साथ कर्ण की भविष्य सूनाई.....।नदी में अश्रुजल की तरंग गति और बढ़ गई।अब कौशल्यांश के साथ कुन्ती का नयन नीर भी नदी में जा मिला।कुन्ती के अन्दर अनंत जिज्ञासा जाग उठा और एक यह भी की कर्ण पुत्र के भविष्यवाणी के बाद देवी का नयन नीर नदी तीव्र गति से अभी तक क्यों प्रवाहित हो रही है।कुन्ती के विनम्र विनती पर कुन्ती के कष्ट को कम करने हेतु वनदेवी अपनी कथा सुनाती हैं।

रामांश और लक्ष्मणांश : अपने कुवाँरी अवस्था में भगवान विष्णु के भक्ति से उनके राम अवतार के रामांश रूप में उसका स्वयं पुत्र बन गए और साथ में उनका अनुज लक्ष्मणांश भी।
 बिन ब्याही स्त्री को बच्चा होना कर्षित समाज में पेट दर्द बोने के समान विष्णु का यह अवतार सिद्ध हुआ।
कुछ समय के लिए क्योंकि सत्य ने किए सत्य का पान।
कहानी जो भी हो पर किंवदंती की कथा कहती है कि  कर्ण को जिसे दिन राधे-आधिरथ त्यागते हैं उसी दिन रामांश और लक्ष्मणांश भी वनवासियों को छोड़ भीतरी वन में चले जाते हैं।मेरी निर्दयी आत्म आज्ञा से और मैं यहाँ एकांत में सत्य का तपस्या कर रही हूँ।

भक्ति और शक्ति : कब कैसे और किससे रामांश-लक्ष्मणांश को शिक्षा दीक्षा और अद्भुत आलौकिक शक्तियाँ प्राप्त हुआ पता नहीं।
क्योंकि यह किंवदंती है महाभारत का कोई प्रसंग नहीं।
यहाँ तक की अब सीतांश भी कब कहाँ से रामांश और लक्ष्मणांश के संग वहीं जा रही हैं जहाँ वे दोनों जाना चाहते हैं।अचानक पात्र का जुड़ना हो सकता है किंवदंती का कला हो।
जैसे चित्रा नामक कुतिया लक्ष्मणांश के भोजन में अचानक आ भयंकर मृत्युविष मिलाती है पर लक्ष्मणांश बच जाते हैं।
वास्तविक विष मिलवाने वाला का पता चला वह हैं एक अर्द्धमुंड राक्षस।जो सूर्य और इन्द्र तक जीत सकता है।सूर्य और इन्द्र इसके भय से रामांश के पास आये।रामांश प्रथम बार में उसे प्राजित नहीं कर पातें हैं।सभी देवता डरे जाते हैं कि अब क्या होगा।पर चित्रा उसकी मृत्यु का रहस्य बताती है।जो एक महर्षि के हृदय में बसा है।महर्षि कौन है यह सादे आप किंवदंती किंग से पूछे या ना पूछे।परन्तु पूज्य पूर्वज भली भांति जानते रहे।
यह वही महर्षि था जो महर्षि के महापद पर बैठने से पूर्व प्यासे धरती का प्यास बुझाया था।जिसके अन्न जल से रामांश को जीवन मिला है।इसलिए जीतते हुए सत्य को कुछ समय के लिए असत्य के चादर से ढक लिया।असत्य चादर बन ठिठुरता रहा और सत्य ओढ़ ओज ऊर्जा से सम्पन्न हो असत्य को एक प्रहार से प्राजित कर दिया। देवतागण रहस्य जानने में लगे हुए हैं कि आखिर ऐसा एक ही रात बाद कैसे हुआ।

रामांश जब महर्षि के कूटिया पहुँचे तो महर्षि की माता जो सत्य की जननी थी एक चार पर मृत्यु को रोक रामांश दर्शन हेतु रूकी हुई थी।रामांश देखे की यह मेरी माँ हैं पर इतनी जल्दी इतनी बुढ़ी कैसे।

तब से लक्ष्मणांश के संग सीतांश और कौशल्यांश भी आ गई।कौशल्यांश अपनी माता को छाती से लगा कही पुत्र ये आपकी नानी हैं।मेरी माता मेरी जननी।

अच्छा कुछ समय बाद नानी का भी अंतिम क्रिया क्रम कर अपने जन्म भूमि गाँव लौटे सब।

गाँव से पता चला कि हस्तीनापुर में पाण्डवों का सुखद राज्य हैं प्रजा-सैनिकों की पत्नियों ने महाभारत के रक्त से सिंचे हुए धरती पर सफेद वस्त्र उगा उससे अपनी अधपकी अंग को क्या सुख दे रही हैं?

उसी सुख को कुन्ती स्वयं और उसकी वधु-पौत्रवधु भी।पांचाली जानती थी कृष्ण ही इस सुख से मुक्त कसते है परंतु इस अद्भुत सुख को कृष्ण ने भी मुक्त नहीं कर सकता।अन्ततः सभी महाभारत के विधवा औरतें कौशल्यांश के पास श्वेत वस्त्र सुख से मुक्ति माँगी।
कौशल्यांश के एक आदेश पर रामांश और लक्ष्मणांश ने एक ही तीर तीसरे युग कलयुग का प्रारंभ कर सभी बैकुण्ठ चले गए।

यह कौशल्यांश, रामांश लक्ष्मणांश और सीतांश कौन थे हम सब बच्चे सुबह बुढ्ढीनानी से  पुछने वाले थे कि वह भी बैकुण्ठ जा चुकी थी।अब कौन बताया यह सब कौन थे?
-गोलेन्द्र पटेल

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