Golendra Gyan

Friday, 27 March 2020



काव्य का आलमारी -
जितना ही भरा रहा है
विद्वता प्रदर्शन के लिए
शिक्षा के प्रति जागरूक -
ग्रामीण विद्यार्थी उतना ही
नये नये कवियों के रचनाओं
को कुड़ा समझ रहे हैं
मैं तो बहुत खुश हो रहा हूँ
भाभीजी को यह देखकर
की नई कविता के कागज़ पर
बच्चे का मल उठा उसी के
साथ नई पद्यपंक को फेंक रही हैं
अरे भाभीजी!
आप ऐसा क्यों कर रही हैं
पढ़ीलिखी हैं दूरदृष्टि हैं आप -
जैसी विदुषी को देखकर
मुझे तो दुःख भी हो रहा हैं
जानना चाहते हो देवरजी
तो थोड़ा धैर्यध्यान से सुनो
जो काव्य दिल में जगह ही
नहीं बना सकता है पूज्य पूर्वजों की
साहित्यिक काव्य तुलना में कूड़ा हैं
कूड़ा करकट के स्थान पर
जब जाते हो , तो नई कविता
कैसे मलमूतर के गंध से घूँट रही होती है
आप अच्छे से देख सकते हैं कैसे रोती है
कवि की काव्यात्मा!!
ऐसा क्यों हुआ कविता के साथ
नई चेतना के पाथ कह रहा मन
पद्य का गद्य की ओर विस्थापन
मोह ही काव्यशास्त्र के मार्गदर्शन
पर न चलने को बाध्य कर
कवियों से कूड़ा बटोरवा रहा है
कविता का औषधालय काव्यशास्त्र रीत हैं
इसके बदौलत अतीत की कविता जीवित है
हमें काव्य के पूज्य परंपरा पथ पर
लौटना ही होगा-कहते डॉ. इंदीवर
जिससे कवि-काव्य की आयु बढ़ेगी
उस पथ पर मैं तो अवश्य ही चलूँगी
देवरजी! कविजी!
रचना : २९-१२-२०१९
-गोलेन्द्र पटेल

No comments:

Post a Comment