दो दोस्त कौआ और तोता
प्रजातंत्र का एक ही खोता
चोंचो से चुन एकसाथ रहते थे
बहुत दिनों से संकट सहते थे
नभ से साथ उतरकर नव रूख का
विपत्तिओं में एकदूसरे के भूख का
भोजन ढूँढते-फिरते,आम्र-ऊख का
ठेला देखा : देख एक आम तोता लें
आकाश में उड़ गया
कौआ देखता ही रह गया
गन्नों के गाँठ को
प्रजापति और प्रजा के पाठ को
स्मरण कर
अतिशिघ्र काग ने सुग्गे-
से कहा सखे मुझे कड़ा-
वाला भाग चाहिए
तो तोता दिया गुठली
कौआ आम का कोइली
लिए कब तक फिरे वन में
गुद्दा तो चतुर तोता छली
कब का खा लिया गगन में
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