कोरोना और सच की महत्ता -
कोरोना और सच की महत्ता -
सच बोलना अपराध हो गया है।सिर्फ राज्य स्वीकृत बातें ही बोल सकते हैं।इससे पता चलता है जिंदगी का अब स्वतंत्र अस्तित्व खतरे में है। इस ऑरवेलियन नियंत्रित छली समाज व्यवस्था की ट्रंप ने शुरूआत कर दी और धीरे धीरे वे लोग इस रास्ते पर चल निकले हैं जो ट्रंप के यार हैं।छल और नियंत्रण के नए शासन का आरंभ सूत्र है कोरोना के इलाज के बाद जारी होने वाला स्वास्थ्य प्रमाण पत्र। अमेरिका में यह आवाज उठी है अपने चुने गए नुमाइंदों को जनता अपना संरक्षक न समझे।वे जनता के हितों और अधिकारों के संरक्षक नहीं हैं।खासकर पश्चिम में तो ऐसा कोई संरक्षक नहीं है।
ट्रंप प्रशासन ने कोरोना संक्रमण से पीड़ितों के लिए कोविद-19 इम्युनिटी सर्टीफिकेट प्रमाण पत्र जारी करने का प्रस्ताव जारी किया है। मसलन् जिनका कोरोना टेस्ट लिया गया और वे जब रिकवर कर लेते हैं तो उनको एक प्रमाणपत्र दिया जाता है कि वे स्वस्थ हैं उनके शरीर में कोरोना के कोई लक्षण अब नहीं हैं।जिससे वे नौकरी पर लौट सकें।यह प्रमाण पत्र अमेरिका का ‘‘नेशनल इंस्टूट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’’ जारी करेगा।
इस प्रमाणपत्र को लेकर अनेक सवाल उठ खड़े हुए हैं।यह प्रमाणपत्र सबको जरूरी होगा।इससे जनता की मुश्किलें बढ़ेंगी। इस तरह के प्रमाणपत्र को लेकर कोरोना के नेगेटिव और पॉजिटिव मरीजों की संख्या और उनके रजिस्ट्रेशन को लेकर विवाद होगा।उनकी सही संख्या को लेकर मेनीपुलेशन शुरू हो चुका है।कोरोना के टेस्ट को लेकर जो असल समस्या है वह यह कि इसके सही टेस्ट करने के लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।इसके टेस्ट के लिए पीड़ित मनुष्य के शरीर से छोटा सा टीशू का अंश लिया जाता है।उसको विश्लेषण के लिए विस्तारित करते हैं।लेकिन इस प्रक्रिया में यह बताना मुश्किल होता है कि यह वायरस शरीर में कहां कहां फैल गया है।इससे भी अधिक खतरनाक है जबरिया टॉक्सिंग वैक्सीनेशन और उसके बाद दिया जाने वाला प्रमाण पत्र।इस तरह का वैक्सीनेशन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।अनिवार्य वैक्सीनेशन और उसके जरिए कोरोना मुक्त प्रमाणपत्र मुश्किलभरा काम है। यह भी कहा जा रहा है कोरोना के टेस्ट के लिए जो किट इस्तेमाल हो रहे हैं वे अधिक भरोसेमंद नहीं हैं। अमेरिका में ये किट बेहतर प्रिफ़ॉर्म नहीं कर रहे।अभी तक विज्ञानसम्मत कोई टेस्ट कोरोना के लिए सामने नहीं आया है।अब कहा जा रहा है सब लोग टेस्ट कराओ और वैक्सीनेशन लो।सभी लोगों के लिए यह नियम खतरनाक है।
अब सारी दुनिया में कोरोना को लेकर वैक्सीनेशन कराने की मुहिम सामने आई है। इसकी क्रोनोलॉजी समझने की कोशिश करें-
कोविद-19 के लिए ‘‘कॉयलेशन फॉर प्रिपेयर्डनेस इन्नोवेसन( सीइपीआई) नामक संगठन का विश्व आर्थिक मंच डावोस, बिल एवं मेलिंडा गेटस फाउंडेशन के प्रायोजन में गठन किया गया है। इस क्रम देखें-
-- सन् 2019 में कोव वैक्सीन की डावोस आर्थिक मंच के सम्मेलन में घोषणा की जाती है।इसके एक सप्ताह बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करता है। यह आपातकाल ऐसे समय घोषित किया जाता है जब चीन के बाहर कन्फर्म केस मात्र 150 थे, इनमें अमेरिका में 6 केस थे।इसके बाद 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया।सीइटल में मार्च 18 को पहला टेस्ट होता है जिसमें मानवीय स्वयंसेवक भी शिरकत करते हैं।सारी दुनिया में सीइपीआई के तहत प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप में वैक्सीनेशन की मुहिम चलाने की अपील की जाती है। यह संगठन इस मामले में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है,इस काम में ‘‘इननोविओ’’ और क्विंसलैंड विश्वविद्यालय आस्ट्रेलिया एक पार्टनरशिप पर साइन करते हैं। उल्लेखनीय है इन दोनों के बीच एक साझा समझौते के तहत पहले से काम चल रहा है।हमारे कुछ मित्र जो आस्ट्रेलिया भक्त हैं वे इस समझौते से अनभिज्ञ हैं और इसके पीछे कार्यरत राजनीतिक-आर्थिक शक्तियों की अनदेखी कर रहे हैं।इन्नोविओ और क्लींसलैंड विश्वविद्यालय के साझे काम को 23 जनवरी को सीइपीआई एक बयान जारी करके पुष्ट करती है।साथ ही कहती है कि उसने इस काम में मॉडर्ना और आईएनसी कंपनियों के साथ यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्टीयस डिजीज को भी इस गठबंधन में शामिल किया है।इन सबके नेतृत्व में अमेरिका में फीयर और पेनिक अभियान चलाया गया है। यह कैम्पेन मौसमी फ्लू के खिलाफ चलाए गए प्रचार अभियान से दस गुना अधिक है।
जॉन हॉपकिंस इंस्टट्यूट के अनुसार यह एक तथ्य है कि कोरोना के इलाज का बेहद सिम्पल है।सिर्फ उसमें रिकवरी की समस्याओं को जोड़ देना ही पर्याप्त होता। लेकिन टीवी चैनलों की हेडलाइन निरंतर पेनिक क्रिएट करती रही हैं।मीडिया के उन्माद प्रचार के जरिए कोरोना के बारे में विज्ञानसम्मत राय के प्रचार पर कम ध्यान दिया गया।
कोरोना का सत्य वह है जो बीमारी या संक्रमण के रूप में है।दूसरा अघोषित सत्य यह है कि कोरोना के कारण विश्वव्यापी लॉकडाउन चल रहा है। इसके कारण बेकारी,दिवालियापन,भयानक गरीबी और अभाव पैदा हुआ है। इससे अमीरों और भ्रष्टनेताओं को लाभ हो रहा है। छोटे-मंझोले पूंजी के धंधे चौपट हो गए हैं।सिर्फ बड़ी पूंजी के धंधे बचे हैं।पूंजी का केन्द्रीकरण बढा है।यह एक तरह ने बायोलॉजिकल नयी विश्व व्यवस्था की शुरूआत है।इसने मानवीय अधिकारों, जीने अधिकारों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया है।अनेक देशों में आपातकाल और मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है।
असल में जब झूठ को सत्य में बदल दिया जाए तो आप पीछे सत्य की ओर नहीं लौट सकते। इसलिए कोरोना से लड़ने साथ झूठ से लड़ना सबसे बड़ी चुनौती है। हर स्तर पर झूठ का खेल चल रहा है।
ट्रंप प्रशासन ने कोरोना संक्रमण से पीड़ितों के लिए कोविद-19 इम्युनिटी सर्टीफिकेट प्रमाण पत्र जारी करने का प्रस्ताव जारी किया है। मसलन् जिनका कोरोना टेस्ट लिया गया और वे जब रिकवर कर लेते हैं तो उनको एक प्रमाणपत्र दिया जाता है कि वे स्वस्थ हैं उनके शरीर में कोरोना के कोई लक्षण अब नहीं हैं।जिससे वे नौकरी पर लौट सकें।यह प्रमाण पत्र अमेरिका का ‘‘नेशनल इंस्टूट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’’ जारी करेगा।
इस प्रमाणपत्र को लेकर अनेक सवाल उठ खड़े हुए हैं।यह प्रमाणपत्र सबको जरूरी होगा।इससे जनता की मुश्किलें बढ़ेंगी। इस तरह के प्रमाणपत्र को लेकर कोरोना के नेगेटिव और पॉजिटिव मरीजों की संख्या और उनके रजिस्ट्रेशन को लेकर विवाद होगा।उनकी सही संख्या को लेकर मेनीपुलेशन शुरू हो चुका है।कोरोना के टेस्ट को लेकर जो असल समस्या है वह यह कि इसके सही टेस्ट करने के लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।इसके टेस्ट के लिए पीड़ित मनुष्य के शरीर से छोटा सा टीशू का अंश लिया जाता है।उसको विश्लेषण के लिए विस्तारित करते हैं।लेकिन इस प्रक्रिया में यह बताना मुश्किल होता है कि यह वायरस शरीर में कहां कहां फैल गया है।इससे भी अधिक खतरनाक है जबरिया टॉक्सिंग वैक्सीनेशन और उसके बाद दिया जाने वाला प्रमाण पत्र।इस तरह का वैक्सीनेशन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।अनिवार्य वैक्सीनेशन और उसके जरिए कोरोना मुक्त प्रमाणपत्र मुश्किलभरा काम है। यह भी कहा जा रहा है कोरोना के टेस्ट के लिए जो किट इस्तेमाल हो रहे हैं वे अधिक भरोसेमंद नहीं हैं। अमेरिका में ये किट बेहतर प्रिफ़ॉर्म नहीं कर रहे।अभी तक विज्ञानसम्मत कोई टेस्ट कोरोना के लिए सामने नहीं आया है।अब कहा जा रहा है सब लोग टेस्ट कराओ और वैक्सीनेशन लो।सभी लोगों के लिए यह नियम खतरनाक है।
अब सारी दुनिया में कोरोना को लेकर वैक्सीनेशन कराने की मुहिम सामने आई है। इसकी क्रोनोलॉजी समझने की कोशिश करें-
कोविद-19 के लिए ‘‘कॉयलेशन फॉर प्रिपेयर्डनेस इन्नोवेसन( सीइपीआई) नामक संगठन का विश्व आर्थिक मंच डावोस, बिल एवं मेलिंडा गेटस फाउंडेशन के प्रायोजन में गठन किया गया है। इस क्रम देखें-
-- सन् 2019 में कोव वैक्सीन की डावोस आर्थिक मंच के सम्मेलन में घोषणा की जाती है।इसके एक सप्ताह बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करता है। यह आपातकाल ऐसे समय घोषित किया जाता है जब चीन के बाहर कन्फर्म केस मात्र 150 थे, इनमें अमेरिका में 6 केस थे।इसके बाद 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया।सीइटल में मार्च 18 को पहला टेस्ट होता है जिसमें मानवीय स्वयंसेवक भी शिरकत करते हैं।सारी दुनिया में सीइपीआई के तहत प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप में वैक्सीनेशन की मुहिम चलाने की अपील की जाती है। यह संगठन इस मामले में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है,इस काम में ‘‘इननोविओ’’ और क्विंसलैंड विश्वविद्यालय आस्ट्रेलिया एक पार्टनरशिप पर साइन करते हैं। उल्लेखनीय है इन दोनों के बीच एक साझा समझौते के तहत पहले से काम चल रहा है।हमारे कुछ मित्र जो आस्ट्रेलिया भक्त हैं वे इस समझौते से अनभिज्ञ हैं और इसके पीछे कार्यरत राजनीतिक-आर्थिक शक्तियों की अनदेखी कर रहे हैं।इन्नोविओ और क्लींसलैंड विश्वविद्यालय के साझे काम को 23 जनवरी को सीइपीआई एक बयान जारी करके पुष्ट करती है।साथ ही कहती है कि उसने इस काम में मॉडर्ना और आईएनसी कंपनियों के साथ यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्टीयस डिजीज को भी इस गठबंधन में शामिल किया है।इन सबके नेतृत्व में अमेरिका में फीयर और पेनिक अभियान चलाया गया है। यह कैम्पेन मौसमी फ्लू के खिलाफ चलाए गए प्रचार अभियान से दस गुना अधिक है।
जॉन हॉपकिंस इंस्टट्यूट के अनुसार यह एक तथ्य है कि कोरोना के इलाज का बेहद सिम्पल है।सिर्फ उसमें रिकवरी की समस्याओं को जोड़ देना ही पर्याप्त होता। लेकिन टीवी चैनलों की हेडलाइन निरंतर पेनिक क्रिएट करती रही हैं।मीडिया के उन्माद प्रचार के जरिए कोरोना के बारे में विज्ञानसम्मत राय के प्रचार पर कम ध्यान दिया गया।
कोरोना का सत्य वह है जो बीमारी या संक्रमण के रूप में है।दूसरा अघोषित सत्य यह है कि कोरोना के कारण विश्वव्यापी लॉकडाउन चल रहा है। इसके कारण बेकारी,दिवालियापन,भयानक गरीबी और अभाव पैदा हुआ है। इससे अमीरों और भ्रष्टनेताओं को लाभ हो रहा है। छोटे-मंझोले पूंजी के धंधे चौपट हो गए हैं।सिर्फ बड़ी पूंजी के धंधे बचे हैं।पूंजी का केन्द्रीकरण बढा है।यह एक तरह ने बायोलॉजिकल नयी विश्व व्यवस्था की शुरूआत है।इसने मानवीय अधिकारों, जीने अधिकारों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया है।अनेक देशों में आपातकाल और मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है।
असल में जब झूठ को सत्य में बदल दिया जाए तो आप पीछे सत्य की ओर नहीं लौट सकते। इसलिए कोरोना से लड़ने साथ झूठ से लड़ना सबसे बड़ी चुनौती है। हर स्तर पर झूठ का खेल चल रहा है।
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