Golendra Gyan

Sunday, 3 May 2020

प्रश्न-कोरोना : हुक्म-ए-लोकतंत्र -युवा कवि गोलेन्द्र पटेल // golendra patel


*प्रश्न-कोरोना : हुक्म-ए-लोकतंत्र*
१.
सृष्टि के सृजन गर्भ में
एक नहीं अनेक
अंतरिक्षाकाश भर अनंत अद्भुत
आश्चर्यमयी-रहस्यमयी-महाविनाशी प्रश्न छुपे हैं
जैसे अद्यतन प्रश्न "प्रश्न-कोरोना"
अब साहित्यिक समाज को स्वीकार है
यह युद्ध नहीं
महासंग्राम है संसार के श्यामपट्ट पर
समय के स्याही से उत्कीर्ण होने के लिए
जिसका जनक जन हैं
प्रकृति नहीं!
जो चाईना के हैं.....।।
दो वक्त के रोटी के लिए
संर्घष शब्द विश्व-विख्यात है
जिसे गणित विज्ञान में समुच्चय कहते हैं
भूख के अवयवों के
और साहित्य में समन्वय
चिखने चिल्लाने गुर्राने बर्राने रोने के।
कान-कान से
अफवाह का आवाज़ "कहर-ए-कोरोना" काल में
सोशल मीडिया पर सनसनीखेज़ ख़बर बन रहा
धीरज-धैर्य सड़क शुन्य फार्मूला से
"लॉकडाउन" का लालटेन जला संसद सदन में है उजाला
जनता जन्नत देखने जा रही
अंधेरे घरों के भीतर "एकांतवास" का चादर ओढ़
सीख है चमगादड़ के चाम से सूप के विरुद्ध ढोल बनाना
जिसके ध्वनि शंखनाद से वायरस भीतर से बाहर भागेगा
तन से मन से जीवन से वतन से.....।।
२.
चमचमाती धूप में चिल्ला चिल्ला फेरी लगाने वाले
महामजदूर
महामौन के महासागर में अपने आँसुओं के एकैक बूंद
को सतह पर तैरते देख रहे
आँखें बंद कर उपजीवी उम्मीद के स्वप्न में कहर कहर
कुछ पिता छुप छुप इधर उधर डगर पर डर डर मर मर
गाँव आ रहे शहर से
जिनके स्वागत के लिए सड़क पर पत्तें उपस्थित हैं
कुछ पत्तें मालूम होते हैं धरने के लिए
उन्हें रोकना चाहते हैं अपने पास
जो स्वयं सूख रहे हैं धरने पर बैठ
बच्चें खिडकियों से देख रहे गलियों में पिता की राह
अंतःअंदर अनंत सपने सजाकर चिंता की चाह
देह के डकची में पकाते पकाते थक हार पत्नी भी
गर्भ के रक्षक रोटी
जिस मुहर वाले ठप्पे युक्त कागज़ से मिलते हैं
उसे दिल्ली के दीमक चाट गयें
इसलिए एक-एक दो-दो किलो चावल बाट रहें
ऐसा सोच रही गर्भवती मजदूरीन
कोविड-१९ कर्ज़ को काल बनाने आया है
ऐसा कह रहे हैं किसान और भूखे इंसान
लॉकडाउन में लक्ष्मणरेखा घर का ड्योढ़ी अब हुआ
सड़क पर स्वर्णमृग पकड़ने वाले सैनिक हुए राम
सीता के लिए लक्ष्मण का आदेश - "हुक्म-ए-लोकतंत्र"
-गोलेन्द्र पटेल
नोट : आधा भेजा हूँ कैसा लगा यह कविता
सम्पूर्ण "कविता का पाठ " विडिओ में भेजूंगा



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