Golendra Gyan

Saturday, 12 September 2020

कोरोजीवी कविता : जन और समाज की चिंता का प्रश्न {©corojivi}



 “कोरोजीवी कविता : जन और समाज की चिंता का प्रश्न”

  -गोलेन्द्र पटेल 

कोरोजीवी कविता :  जो कविताएँ कोरोना काल में लिखी गयीं या लिखी जा रही हैं उसे ही “कोरोजीवी कविता” कहा जा रहा है। इस कविता में कवि की सम्पूर्ण संवेदना स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। इसमें कोरोना (अर्थात् कोविड) का जिक्र हो या न हो ; परंतु यह उससे पूर्णतः प्रभावित है। इस कविता का श्रीगणेश श्रीप्रकाश शुक्ल की कविता “उत्तर-कोरोना” से माना जा रहा है। इसमें भूख , भय , त्रासदी , प्रकृति , प्रेम , बेबसी , लाचारी , मजबूरी , संसदीय सड़क पर निराशा , महामारी का मार , मुसिबत में मजदूरों का मंत्र से मेडिकल तक की यात्रा , दर्द का जीवंत दृश्य , पीड़ा , व्यथा , मानसिक दुख , तनाव एवं चिंता इत्यादि हैं।



युवा कवि व आलोचक “बिम्ब-प्रतिबिम्ब” के संपादक अनिल पाण्डेय ने जब समकालीन हिंदी कविता हस्ताक्षर कवि , आलोचक व आचार्य श्रीप्रकाश शुक्ल से नब्बे के दशक के बाद के कविताओं के नामकरण के संबंध में जानना चाहा , तो उन्होंने तीन नामों का जिक्र किया। जो निम्नलिखित हैं –

1. अस्मितामूलक कविता

2. प्रयोजनिक कविता

3. कोरोजीवी कविता


उक्त संज्ञाओं में से कोरोजीवी कविता संज्ञा को हिंदी जगत सर्वमत से स्वीकार कर स्वागत कर रहा है। इस संज्ञा के संबंध में आचार्य श्रीप्रकाश शुक्ल ने के.एल.पचौरी प्रकाशन के फेसबुक पेज़ पर सैद्धांतिकी एकल व्यख्यान दिए हैं। शुक्ल के कोरोजीवी नामकरण पर अपना विचार व्यक्त करते हुए समकालीन हिंदी कविता के विश्वसनीय आवाज आत्मीय कवि मदन कश्यप ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा था कि “कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बाद दुनिया का बदलना तय है। संवेदनशील विधा होने के नाते कविता उस बदलाव को लक्षित कर रही है। हिंदी के यशस्वी कवि एवं आलोचक श्रीप्रकाश शुक्ल ने कविता में आ रहे बदलाव को आधार बनाकर एक नयी सैद्धांतिकी गढ़ी है जो स्वागत योग्य है।“ यह सैद्धांतिकी कोरोजीवी कविता की सैद्धांतिकी है।



कोरोजीवी कविता ने सम्प्रदायगत सजगता की जगह इतिहास विवेक पैदा किया है साथी ही हमें सजग किया कि हम जिस भूगोल पर चल रहे थे उस पर हमारा ध्यान बने रहना चाहिए। यह नये इतिहास विवेक की कविता है। शुक्ल ने कविता को आंतरिक लय के दायरे में लोकोन्मुखी मानते हुए कहा है कि यह कोरोजीवी ही कविता की कोरोजयीता का प्रमुख आधार है।



कोरोना की इस वैश्विक आपदा में मनुष्य कोरोजीवी हो गया है। उठते-बैठते , सोते-जागते , खाते-पीते , घूमते-टहलते , लिखते-पढ़ते यदि किसी बात की चिंता है तो वह है “कोरोना” । ईश्वर भी कोरेंटाइन हो गए हैं और आम आदमी की आस्थाएँ डगमगा रही हैं। जिसका जीवंत दृष्टव्य निम्नलिखित कोरोजयी काव्य पुष्प पंखुड़ियाँ हैं-


“क्या तुम जानते हो

यह आस्थाओं के फड़फड़ाने का दौर है

जिसमें संत कवियों की एक बार फिर से वापसी हो रही है

जब उन्होंने कहा था कि इस जगत में एक ही ब्रह्म की सत्ता है

बाकी सब मिथ्या है।“

{उत्तर-कोरोना (आत्माएं होंगी , आत्मीयता न होगी) : श्रीप्रकाश शुक्ल} से


आर्थिक , सामाजिक , राजनीतिक एवं धार्मिक (आध्यात्मिक) जगत की यथार्थ स्थिति को इस समय की कविताओं ने खुली आँखो से अभिव्यक्त किया है।सदियों से रक्षित ईश्वरी सत्ता से लोगों का विश्वास इधर एकदम से टूटा है। जिस विज्ञान के आंतक से लोग डरे हुए थे , जिस पर गुमान करते हुए पूरा आधुनिक समाज टिका था , वह विज्ञान भी कुछ न कर सका।





फ्रांसीसी साहित्यकार “ज्यों पाल सार्त्र” अस्तित्त्ववादी विचारकों में सर्वोपरि माने जाते हैं । वे नास्तिक अस्तित्त्ववाद के प्रतिपादक हैं। उनका मत है कि “ईश्वर मर चुका है” । जिसका साक्षात्कार हम कोरोजयी कवियों की कविताओं में कर रहे हैं। इस संदर्भ में मुझे मदन कश्यप  की कुछ कोरोजीवी काव्य पंक्ति याद आ रही हैं।जो निम्नलिखित हैं-


1.     “एक तुम्हारा स्पर्श ही तो था

जिससे ईश्वर होने की अनुभूति हुई

लेकिन कोरोना ने मुझे निरिश्वर बना दिया”


2. “मैं मरने से पहले ईश्वर को मरता हुआ

  देखना चाहता हूँ।“




इधर 4-5  महीने से सामाजिक बिखराव की समस्याएं बढ़ी हैं। रिश्तों-संबंधों और व्यावहारिकता को लेकर नये समीकरण बने हैं। जनता में बेरोजगारी , भूखमरी एवं मानसिक तनाव की समस्या बढ़ी है।  जन-जन के हृदय में डर का रोग तेजी से बढ़ रहा है और वातावरण में संकट की सन्नाटा है , भय है , त्रासदी है एवं राजनीति का नग्नता है। कोरोजीवी कवि जनता के पक्ष में निडर खड़े हैं। वे इस कोविड-कहर से उत्पन्न कराह को संत कवियों की भाँति सुन रहे हैं और यथार्थ दुःख , पीड़ा व मानवीय संवेदनाओं को सहृदयता से शब्द-शस्त्र में ढाल कर राजनीति षड्यंत्र को असफल बना रहे हैं।

 

 

1. “सारा दुख गुस्से में बदल जाय तो दरक सकते हैं

 बड़े से बड़े किले”

      (“अंधेरे के अंत का गीत” से , सुभाष राय)

            2. “सोचा तब क्या होगा?

   जब संकट के समय में

  इंसानों की भाँति सूर्य मना करेगा रोशनी देने से

  चाँद शीतलता

  पेड़-पौधे मना करेंगे

  फल-फूल छाया देने से

  बादल पानी”

          (“संकट के समय में” से , अमरजीत राम)



निष्कर्ष : -   अनिल पाण्डेय ने कोरोजयी कवि और कोरोजीवी कविता के संदर्भ में कहा है कि “कवि और कविता सही अर्थों में मनुष्य के मुक्ति की छटपटाहट है।“ इस वैश्विक महामारी में घोर निराशाओं के क्षण में आशाओं का मशाल लेकर कोरोजयी कवि अंधेरी गलियों में जन-जीवन के उज्ज्वल भविष्य के लिए उम्मीद का  रोशनी  बिखेर रहे हैं।


लोक जिस गति में पहले जागरूक हो रहा था इधर कोरोजयी कवि और कोरोजीवी कविता के हस्तक्षेप से कुछ और अधिक जागरूक व चौकन्ना हुआ है।


कोरोजीवी कविता महज अव्यवस्थाओं का चित्रण नहीं करती अपितु व्यवस्था-परिवर्तन में सकारात्मक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला रही है उसकी दृष्टि में भौगोलिक यथार्थ है।


कोरोजीवी कवि अकर्मण्य होने की अपेक्षा अपनी सामाजिक-सक्रियता बढ़ा रहे हैं और वे भूख-प्यास से लिपटे जनों के पास जने का सहर्ष साहस भी कर रहे हैं जिससे उपेक्षितों को जीने की उम्मीद “संजीवनी साहित्य का सृजन” तीव्र गति से हो रहा है।



लोकतंत्र के लोकल लोग भूखे-प्यासे पथरीली पथ पर नग्गे पाँव लौट रहे होते हैं तब कवि के आँखों से आँसू का टपकना और दिल चीर देने वाली तस्वीरों पर नजर गढ़ना , कानों में काँटों की भाँति चुभने वाली चीख सहजता से सहृदय सुन कर सजीव चित्र हमारे सामने प्रस्तुत कर रही है निम्न कोरोजयी पंक्ति :-


1. नहीं रही अब  खतरनाक क्रिया

नयी सदी में लौटने की यह क्रिया 

जाने से कहीं अधिक ख़ौफ़नाक है।

(“लौटना” से , श्रीप्रकाश शुक्ल)


कोरोजीवी कविता में जिम्मेदारी और ईमानदारी साथ साथ जन-जीवन की चिंता है। यह चिंताएं संज्ञानात्मक , शारीरिक , भावनात्मक और व्यवहारिक विशेषता वाले घटकों की मनोवैज्ञानिकि हैं। आज सत्ताएँ जन को दो वर्गों में बाट कर राजनीति का रंगमंचीय नाटक समाज को देखा रही है। पहला आमजन (मूल निवासी) दूसरा ख़ास जन (प्रवासी) । जब ऐसे समय में शक्ति और सत्ताएँ दोनों अनुपस्थित हो जाते हैं तब जन-जीवन के केंद्र में श्रम और प्रेम की उपस्थिति से उल्लास का उर्वर ज़मीन तैयार करनेवालों में स्वप्निल श्रीवास्तव जैसे कवि का योगदान उल्लेखनीय है। वे कहते हैं कि “हमने अपने श्रम से इस धरा को सुंदर बनाया है” । इस दौर के अन्य महत्वपूर्ण कवि व कवयित्री निम्नलिखित हैं –

2. रामाज्ञा राय शशिधर’

3. बोधिसत्व

4. जितेंद्र श्रीवास्तव

5. निलय उपाध्याय

6. संजय कुंदन

7. शैलेंद्र शुक्ल

8. संदिप तिवारी

9. अरुणाभ सौरभ

10. मनकामना शुक्ल पथिक

11. अनामिका

12. रश्मिभारतद्वाज

13. सोनी पाण्डेय

14. अंकिता खत्री

15. पूनम विश्वकर्मा

16. रचना शर्मा

17. प्रतिभा श्री एवं अन्य।

©गोलेन्द्र पटेल



नाम : गोलेन्द्र पटेल

शिक्षा : बीएचयू , बीए , तृतीय वर्ष

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DATE : 13-09-2020



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