Golendra Gyan

Sunday, 20 March 2022

तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव / गोलेन्द्र पटेल (चतुर्थ खंड)


तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव / गोलेन्द्र पटेल


(चतुर्थ खंड)

 

जो सभी के सामने कह रहा है कि

मित्र गोलेन्द्र!

आज तुम मेरे स्वप्न में आये थे

मैंने कहा कि

क्या संयोग है

यार!

कि आज शाम फोन पर

एक अजनबी लड़की ने कहा 

कि मैं उसके ताजे स्वप्न का नायक हूँ

तो मुझे याद आईं

उन आत्मीय सखियों की बातें 

जो उन्होंने कुछ इसी तरह कही थीं

कि वे सपने में मेरी माँ से झगड़ रही थीं

माँ की तसवीर शायद ही 

मैंने सोशल मीडिया पर साझा की हो

यह कहते हुए कि ये मेरी माँ हैं

दोस्तो! स्वप्न में छवि गढ़ना

आत्मीयता को नहीं दर्शाता है

मैंने भी स्वप्न में देखा है 

मगर केवल मार्गदर्शकों को

जो सखियाँ अक्सर अपनी बातें भूल जाती हैं

उनकी मित्रता पर संदेह होना स्वभाविक है

या फिर कह सकते हैं

कि उनके स्वप्न में स्वार्थ है

स्वप्नशास्त्र के शब्दों में कहें

तो नदी में नहीं

बल्कि नींद में नाविक है

जो कि खे रहा है पतवार

पर नाव स्थिर है


अच्छा, 

मित्र गोलेन्द्र!

तुम्हारे प्रेम की कथा

तुम्हारे प्राथमिक दोस्तों से सुनी है

क्या यह सच है

कि वह छोटी जाति की लड़की थी

और तुमसे इतना प्यार करती थी

कि उसके हित-नात भी

जानते थे कि तुम उसके प्रेमी हो/

लवर हो/

आशिक हो/


हाँ, 

मित्र!

यह सच है कि वह फलाने जाति की थी

जिसे लोग छोटी जाति कहते हैं

खैर,

उस वक्त न मुझे न उसे

न मेरे अन्य साथियों को

किसी को भी

जाति का अर्थ मालूम नहीं था

हम सब एक दूसरे के दोस्त थे

उन्हीं दोस्तों में से एक वह भी थी

कह सकते हो

मेरा पहला सच्चा दोस्त

वही थी

वह मुझसे तीन वर्षों से प्रेम कर रही थी

पर मुझे उसके प्यार का अहसास

निम्न घटना के बाद हुआ

कहते हैं न कि सच्चे मन से

पत्थर को पूजने पर वह पुरुषोत्तम हो जाता है/

कंडी को पूजने पर कृष्ण

फिर तो मैं मनुष्य हूँ

और ऊपर से

उसकी मुहब्बत के मंदिर की मूर्ति हूँ


हाँ,

यह भी सच है 

कि मैं उसके घर के सभी सदस्यों से बातें की

उसकी हिताई-नताई में भी की

पर उसके पिताजी से कभी नहीं की


जब तक वह धरती पर थी

हम दोनों के बीच प्यार कम दोस्ती जादे थी


दूसरे दोस्त से 

जो कि प्राथमिक कक्षाओं से अभी तक

मेरे साथ है 

उसकी ओर मुड़कर मैंने कहा

कि तुम्हें याद ही होगा

संवत 2073 की वसंत पंचमी की रात

तुम्हारे ही साथ 

मैं सरस्वती माता की सेवा में लगा था

ठीक आरती के वक्त

मेरी मोबाइल में रिंगटोन बजा 

कि "ओ! यारों माफ़ करना कुछ कहने आया हूँ..."

तुमने कॉल को रीसव किया


दिल दहला देने वाली ख़बर थी

कि वह कार एक्सिडेंट की वजह से फलाने हास्पिटल में एडमिट है/

भरती है

देखने,

हम दोनों साथ गये 

तो पता चला कि मेरा दोस्त आईसीयू में है

(अन्य की आँखों से मेरा प्यार)

हम लोग बिना देखे ही वापस लौट आए

लेकिन

छह दिन बाद होश में आने पर 

वह मुझे देखना चाहती थी

पर जब मैं हास्पिटल पहुंचा

उसकी देह से दूर जा चुकी थी आत्मा


उसके जाने के बाद

उसकी दोस्ती को प्यार की संज्ञा

सुधी साथियों ने दी


मित्र! 

मैं सच कहता हूँ 

कि वह मुझसे से प्रेम करती थी

पर मैं उसे दोस्त ही मानता था

जैसे तुम मेरे अत्यंत आत्मीय दोस्त हो

ठीक उसी तरह 

वह थी


अच्छा मित्र

उसके बाद किसी दूसरी लड़की से 

तुम्हारी दोस्ती-वोस्ती हुई

कि नहीं


नहीं,

फिलहाल कोई लड़की मेरा मित्र नहीं है

न ही किसी को मित्र बनाने की 

मेरी चाहत है

क्योंकि दो-तीन महीने में ही पता चल जाता है

कि उनकी दोस्ती की दिशा क्या है

वे क्या चाहती हैं?

हाँ,

कुछ सहपाठियों को बोल देता हूँ 

कि तुम मेरे मित्र हो

ताकि उन्हें दुःख न हो

मगर मेरी मित्रता का मतलब

तुम हो, मित्र

सिर्फ तुम हो


मित्र गोलेन्द्र!

यह तो मेरा सौभाग्य है 

कि आप मेरे परममित्र हैं

वह भी एक सर्जक सहृदय साथी


सखा! 

पता नहीं, मैं सहृदय हूँ कि नहीं

यह तो मैं नहीं जानता

पर मेरी कोशिश यही है/ और रहेगी

कि मेरी मित्रता पर कोई अँगुली न उठाये

वरना मेरी मनुष्यता जीते जी मर जायेगी


एक अन्य मित्र : 

क्या तुम्हें उसकी याद आती है?

हाँ, यार

याद ही तो है 

जिसकी वजह से आत्मा की अग्नि

अभिव्यक्ति में बनी हुई है


बहरहाल ये बताओ!

कि तुम सिक्कों पर शोध क्यों करना चाहते हो


वह कहता है

कि सिक्के केवल इतिहास का सच नहीं बताते

वरन समय की शक्ति से अवगत कराते हैं

इतिहास में जब-जब सिक्के बदले हैं

तब-तब शासक बदले हैं

आज सिक्के ही नहीं नोट भी बदल रहे हैं

यह 'बदलना' क्रिया राजनीतिक हो गई है

लोग नाम बदल रहे हैं

(गाँव का/ 

शहर का/ 

जिला का/ 

स्टेशन का/ एवं अन्य का नाम)

मित्र!

एक ओर

मेरे शोध के साहित्यिक साक्ष्य कह रहे हैं 

कि जिसे संवेदना के सिक्के की पहचान है

समझ लो! वह इंसान है

वहीं दूसरी ओर

सिक्के कह रहे हैं कि

यह संवेदना के बाज़ारीकरण का समय है

सत्ता के सिनेमा में सच पर झूठ की विजय है

मित्र!

कैसे कहूँ कि

वे जो साहित्य से दूर हैं

सिनेमा को सच्चा इतिहास मान बैठते हैं

उन्हीं से वे ऐंठते हैं पैसे


तुम तो साहित्य के विद्यार्थी हो

तुम्हें तो

सिक्के बदलने का शोक है

मनुष्यता की ओर मिसाइल की नोक है


सो, तुम्हारा डरना

केवल तुम्हारा डरना नहीं है

असल में सक्कों के ऐतिहासिक किस्सों में झाँकना है

संवेदना के सागर में डूबना है


मित्र!

बहुत दुःखद मौसम है

दुःख का दोपहर है

तुम्हारी दीदी मैसेज की हैं

कि नाना-नानी नहीं रहें

एक उम्र के बाद

आत्मा अपना वस्त्र बदलती ही है

चाहे वस्त्र नया ही क्यों न रहे

बहरहाल,

तुम्हारी नानी-नाना की तेरही किस दिन है

वे सच्ची मुहब्बत की मिसाल हैं

मेरी नज़र में प्रेमी-प्रेमिका का ऐसा कोई जोड़ा नहीं है

जो इतना अधिक जीने के बाद

एक ही दिन दुनिया छोड़ा हो

तुम्हारे नाना की भेंट की हुई पुस्तकें

सदैव उनकी याद दिलाती रहेंगी

और नानी के हाथ के हलवे का स्वाद

उनकी याद


मित्र!

28 नवंबर को है

यह बताने ही वाला था

किंतु पता नहीं क्यों पहले 

स्वप्न की बात बताने की इच्छा हुई

सो, मैंने बताई

और यहाँ तक यात्रा हुई

तुम सब जरूर आना

मैं अकेला हो गया हूँ

सारा काम तुम्हीं लोगों को देखना है/

करना है


ठीक है मित्र


तेरहवीं की रात

एक मित्र नशे में कहा 

कि एक बूँद, एक कौर है

और आगे लड़खड़ाती है ज़बान

पर हम सुनते हैं कि

सेवा में सोमरस समर्पित है

नानाजी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है


उसके कहने की शैली ही ऐसी थी

कि हम सब एकसाथ ठठा के हँसें

शोक को सुख की तरह 

जीने का मज़ा ही कुछ और है

उसने कहा कि

सच में शोक को सेलिब्रेट करने का यह दौर है!


©गोलेन्द्र पटेल

28-11-2020)

नाम : गोलेन्द्र पटेल

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