Golendra Gyan

Saturday, 30 July 2022

प्रेमचंदनामा : गोलेन्द्र पटेल / प्रेमचंद पर कविताएँ / कथा सम्राट प्रेमचंद की 142 वीं जयंती पर स्मृति की कृति


 
प्रेमचंदनामा : गोलेन्द्र पटेल

1. प्रेम के प्रदीप प्रेमचंद


दुखिया चमार के चेहरे पर

दर्द का दाग है

उसे देखने वाली आँखों में आग है

जहाँ जड़ता की जड़ का फटना

सद्गति की सड़क पर अंतिम यात्रा करना है


संवेदना के श्यामपट पर लिखा है

सामंतवाद मुर्दाबाद!

प्रत्येक पंक्ति में प्रसव की पीड़ा है

कर्ज वह कीड़ा है

जो एक बार काट ले 

तो आदमी की मृत्यु निश्चित है

होरी इस बात का गवाह है


आज जो चरवाह है

वह सत्ता का चारा है

हर हलधर हालात का मारा है

आह! जीवन की रंगभूमि में खड़ा सूर

लाचार बेसहारा बेचारा है

मरजाद की बेड़ी से मुक्त किसान

हल्कू मजदूर

'पूस की रात' से हारा है


महाजनी व वर्णव्यवस्था का मुँह लाल है

जो क्रांतिकारिन धनिया के गाल का कमाल है

मालती व सोफिया प्रेम की ममतामयी मूर्ति हैं

मेहता व विनय की स्फूर्ति हैं

सिलिया वंचना के भीतर वंचना का शिकार है

विधवा झुनिया से गोबर को प्यार है

अपने मर्द द्वारा मार खाती स्त्री को 

उसकी छाती पर चढ़कर 

उसकी मूँछ उखाड़ने का अधिकार है


अब जब न्याय अमीर के लिए भोग है

गरीब के लिए रोग है

तब सब योग सोग है

यह शब्द और अर्थ का कैसा संयोग है!


बुधिया की चीख यह सीख है कि

भूख हर आदमी की मति हर लेती है

आह! घीसू और मावध 

असंवेदनशीलता की आँच में आलू भुनते रहें

शराब के नशे में कबीर के पद चुनते रहें


मुन्नी, गंगी, सोना, रूपा, सरोज, आनंदी, गोविंदी

मनोविज्ञान की दृष्टि से सार्थक पात्र हैं

सिमोन द बोउआर के प्रेमी-पथप्रदर्शक पॉल सा‌र्त्र हैं

(मालती व मेहता के बीच का संबंध

भारतीय व पश्चात संस्कृति की समन्वित गंध है)


'पंच परमेश्वर' के 'रामधन' का मन पढ़ना

असल में न्याय के पक्ष में खड़ा होना है

जाति और धर्म से मनुष्यता का बड़ा होना है


प्रेमचंद कहानी के छंद में प्रेम के प्रदीप हैं

करुणा की कसौटी पर कथा में कथ्य व कला की कीप हैं!


(©गोलेन्द्र पटेल

31-07-2022)


2. प्रेम-तीर्थ के पथ पर प्रेमचंद से प्रार्थना


प्रिय धनपतराय!

अपनी पीढ़ी की सीढ़ी पर चढ़ता हुआ

मेरा कवि मुझसे कह रहा है कि

काश कि सभी को पता होता कि

विश्वास के आकाश में गजब का प्रकाश है

पर भयभीत भाषा में यथार्थ का विनाश है!


हे रव के रवि!

क्या कथा में चरित्र की छद्म छवि

उद्देश्य की 'सौत' है?


जब भी देखा

जर्जर वस्त्र में देह का दीपक अधिक देखा

फटे जूते में अनंत 'समर-यात्रा' का पथिक देखा

शायद पिता अजायबराय प्रसिद्ध पोस्टमैन थे

बाल्यकाल में ही दुनिया के लेखकों से परिचित

कलम का सच्चा सिपाही देखा


जब भी सुना

'सूरा' और 'होरी' की तबाही सुना 

'गोबर' और 'धनिया' की गवाही सुना

'बुधिया' की चीख सुना

मनुष्यता की मिट्टी में उगी ईख की सीख सुना


और सुना

'सोजेवतन' में 'बलिदान' का गान 

सार्थक स्वर का स्वाभिमान

'अफसाना कुहन', 'कफ़न' ,'सद्गति', 'सेवादसदन', 'निर्मला' 

'प्रेरणा', 'कायाकल्प', 'सवा सेर गेहूँ', 'प्रेम-पचीसी',

'ईदगाह', 'पंच-परमेश्वर', 'परीक्षा' , 'बालक' , 'नमक का दरोगा', 'प्रेमाश्रम'

'बड़े घर की बेटी', 'दो बैलों की कथा', 'रंगभूमि', 'गोदान', 'गबन' व 'कर्बला'

'आत्माराम'! इनमें भारतीय आत्मा की आवाज़ है

सारे संसार की स्याह संस्कृति का संपूर्ण समाज है


तुम्हारी स्वतंत्रता की चाहत में 

एक अलग तरह का स्वराज है

'सोफिया' से लेकर 'मालती' तक, 'विनय' से लेकर 'मेहता' तक

सभी के बीच 'गोविंदी' के गुणों की चर्चा है

बहुत मिठी मिठाई मर्चा है

कुर्सी पर 'जॉन' की जगह 'जयसिंह' का परचा है

स्वच्छंद, निस्पृह और विचारशील व्यक्ति की दृष्टि

सृष्टि की सेवा में दृश्य धुनती है

और सुबह-शाम सागर में मोती चुनती है

जहाँ विचारोत्कर्ष है सौंदर्य का वास्तविक शृंगार


'सर्वहारा वीर' तो तुम नहीं थे

दिशाहारा तो तुम नहीं थे

राहहारा तो तुम नहीं थे

हे गद्य के तुलसी! हे कथा सम्राट! हे कहानीकार!

थे तुम 'बलिदान-पथ' के चिरंजीवी चिंतक

तुम्हारे सोच की सृजन में शामिल रहे

'गोर्की' और 'लूशुन' के विचार


हे दलित के दीपक! हे गाँव के गायक!

हे नर के नायक!

दोस्त-दुश्मन की पहचान थी तुम्हें खूब

बूढ़ी महाजनी सभ्यता और 

मरजाद की बेड़ियों को काटने की कला

भला कौन नहीं सीखना चाहता है?

तुमने सीखाया क्रांति के पक्ष में खड़ा होना

तुमने सीखाया बुरे वक्त में बुद्धि से बड़ा होना


हे चेतना के चिराग!

तुमने लगाई शोषकों के महल में आग

तुमने गाया सदा रोशनी का राग

तुमने सीधी-साधी बात सीधी-साधी जनता को

सरल-सहज-सरस भाषा में समझाया


हे सत्य के साधक!

परिवर्तन के युद्ध के बुद्ध!

स्नेह, समता, न्याय से प्रतिबद्ध, साहित्य के सूर्य!

ज़िन्दगी की तान के तूर्य!

तुम्हारी कथा की धमनियों में धरती की धुन,

खेतों की ख़ुशबू, विविध फूलों के रंग, नदी की उमंग

और भोर का भक्त नक्त है, संवेदना सशक्त है

शहर का राजनीतिक रक्त है, वाया वक्त है


हे 'शतरंज के खिलाड़ी'!

अँधेरे में मानवता की मणि!

गगन भी गाता है तुम्हारा गौरव गीत, हे मुंशी मीत!

लमही से आ रही है जय की लय

तुम्हारे शब्द दुख की दुपहरी में वृक्ष बन गए

और तुम्हारी प्रोक्ति 'लाल फीता' का बंधन तोड़ने की 'प्रेम-प्रतिज्ञा'

तुमसे हर आदमी आदमी होने का हुनर हासिल करता है


हे 'प्रेम सरोवर' के अरुण कमल!

तुम स्वप्न, संघर्ष व साहस के स्रष्टा हो

तुम भविष्य द्रष्टा हो

तुमने बताया, 'एक गिलास पानी' का महत्व 

____'नवजीवन' का तत्व

चारों ओर दुविधा और दहशत का धुआँ है

'गंगी' के पति 'जोखू' के सामने मौत का कुआँ है

जी हाँ, जो एक 'ठाकुर का कुआँ' है


हे ऋषि-कथाकार प्रेमचंद!

कहानी के अद्वितीय छंद!

संकल्प के अभियान में तब्दील होना

असल में आगामी प्रलय की प्रयोगशाला में पुरखों को बोना है

हवा नहीं है अनुकूल

परिवेश है प्रतिकूल

मैं तुम को बो रहा हूँ कविता की क्यारी में किसान की तरह

तन-मन से बहुत जतन से, साधना के सपूत! 


हे मानस के हंस!

'नवनिधि' के 'मंगल सूत्र'!

नये 'संग्राम' में 'प्रेम की वेदी' पर चढ़ने की शक्ति दो मुझे!

मैं 'कर्मभूमि' में 'पूस की रात' का 'हल्कू' हूँ

'प्रेम-प्रमोद' की गोद में ले लो मुझे

आज 'प्रेम-पंचमी' है परसों नागपंचमी

'प्रेम-तीर्थ' के पथ पर 

मुझ अबोध पाठक की यही प्रार्थना है रोज़

कि हर सुबह हर घर खिले 'सप्तसुमन' व 'सप्त सरोज'!


(©गोलेन्द्र पटेल

30-07-2022)

3. यथार्थ के पार्थ प्रेमचंद


हे आकाशधर्मा अध्यापक! शिवरानी के सोहाग!
बहुत दिनों के बाद मिला है यह सौभाग्य
कि मैं लिखूँ काव्य में तुम्हारी रोशनी का राग
जाग! जाग!! महात्याग तू जाग!
अंतःकरण में आग लगी है लेकिन जल रही है लाग
भाग! भाग!! झाग तू भाग!
धारा की विपरीत दिशा में अनवरत
तैरने की कला है तेरे साथ
और हिम्मत के हाथ भी

हे उदात्त कलाकंद!
अवनि की आत्मा की आँख और आकाश का
पसंद---- प्रेमचंद!
तुम महाजनी मानसिकता एवं सामंती सोच के विरुद्ध
युद्ध हो
शांति की क्रांति का बुद्ध हो
जीवन के रंगमंच पर सामाजिक चित्त के चित्रकार हो
सांस्कृतिक टिप्पणीकार हो
भाषा में उदार हो
आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के मंत्र हो
असली लोकतंत्र हो
प्रत्येक पाठक की पुतली हो

तुम्हारे सामने कल्पना और विचारधारा क्षुद्र सिद्ध हो चुकी हैं
आलोचना के अस्त्र-शस्त्र हो रहे हैं बेकार
तुम वेदना के वेत्ता व बुद्धि की वृष्टि हो
नवोन्मेषी इतिहास-दृष्टि हो
नवजागरण की सृष्टि हो

अंधेरे में 'आपका चित्र' आलोक है
'ख़ून सफे़द' दूध जैसा आर्यसमाज का श्लोक है
तुम्हारी लय का व्यापक लोक है
तुम प्रगतिशील जिज्ञासा के जहाज़ हो
तिमिर की तान के ताज हो

हे समय के शब्द! सत्य के स्वर!
मानवीय मशाल! स्मृति के बरगद विशाल!
काल-त्रिकाल सब मानते हैं कि तुम्हारी कृति अमर है
क्या ख़ूब किया तुम ने
समोज्ज्वल संवाद का इस्तेमाल!
सर्वप्रथम तुम ने देखा 'मनुष्यता का अकाल'
सत्ता से पूछा सवाल

हे संवेद्य, संवेदन, संवेदना व संवेदनशील के चतुष्टय!
अनुभव, ज्ञान, संकल्प व चेतनाधारी नज़र के नंद
--- प्रेमचंद!
मन की हिलोरें हँस रही हैं मंद-मंद
मैं डूब रहा हूँ तुम्हारे पसीने में जहाँ श्रम की सुगंध है
पहुँच गया हूँ 'कल्पकाया' के भीतर
ओ हो! यहाँ नीति और नीयत के बीच नियति है
मगर मष्तिष्क में मौजूद मति है

हे प्रयत्न के रत्न! यथार्थ के पार्थ!
तुम वैश्विक विश्वास हो
आधुनिक भारत का महाभारत लिखने वाले व्यास हो
सच कहूँ तो तुम एक अतृप्त प्यास हो
परम अभिव्यक्ति आलोकित आत्मा-सम्भवा हो
प्रत्येक पुनरुक्ति में पुनर्नवा हो

मैं चाहता हूँ____
तुम मुझे सृजन के 'संग्राम' में दाँव-पेंच सीखाओ!
मैं चाहता हूँ____
मैं तुम्हारे सम्मुख 'प्रेम प्रतिज्ञा' लूँ
कि अब 'नवजीवन' की 'कर्मभूमि' में श्रमरत रहूँगा!!

(©गोलेन्द्र पटेल
01-08-2022)



कवि : गोलेन्द्र पटेल

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