Golendra Gyan

Friday, 29 July 2022

प्रेम-तीर्थ के पथ पर प्रेमचंद से प्रार्थना : गोलेन्द्र पटेल / प्रेमचंद पर कविता


 *प्रेम-तीर्थ के पथ पर प्रेमचंद से प्रार्थना*

प्रिय धनपतराय!
अपनी पीढ़ी की सीढ़ी पर चढ़ता हुआ
मेरा कवि मुझसे कह रहा है कि
काश कि सभी को पता होता कि
विश्वास के आकाश में गजब का प्रकाश है
पर भयभीत भाषा में यथार्थ का विनाश है!

हे रव के रवि!
क्या कथा में चरित्र की छद्म छवि
उद्देश्य की 'सौत' है?

जब भी देखा
जर्जर वस्त्र में देह का दीपक अधिक देखा
फटे जूते में अनंत 'समर-यात्रा' का पथिक देखा
शायद पिता अजायबराय प्रसिद्ध पोस्टमैन थे
बाल्यकाल में ही दुनिया के लेखकों से परिचित
कलम का सच्चा सिपाही देखा

जब भी सुना
'सूरा' और 'होरी' की तबाही सुना 
'गोबर' और 'धनिया' की गवाही सुना
'बुधिया' की चीख सुना
मनुष्यता की मिट्टी में उगी ईख की सीख सुना

और सुना
'सोजेवतन' में 'बलिदान' का गान 
सार्थक स्वर का स्वाभिमान
'अफसाना कुहन', 'कफ़न' ,'सद्गति', 'सेवादसदन', 'निर्मला' 
'प्रेरणा', 'कायाकल्प', 'सवा सेर गेहूँ', 'प्रेम-पचीसी',
'ईदगाह', 'पंच-परमेश्वर', 'परीक्षा' , 'बालक' , 'नमक का दरोगा', 'प्रेमाश्रम'
'बड़े घर की बेटी', 'दो बैलों की कथा', 'रंगभूमि', 'गोदान', 'गबन' व 'कर्बला'
'आत्माराम'! इनमें भारतीय आत्मा की आवाज़ है
सारे संसार की स्याह संस्कृति का संपूर्ण समाज है

तुम्हारी स्वतंत्रता की चाहत में 
एक अलग तरह का स्वराज है
'सोफिया' से लेकर 'मालती' तक, 'विनय' से लेकर 'मेहता' तक
सभी के बीच 'गोविंदी' के गुणों की चर्चा है
बहुत मिठी मिठाई मर्चा है
कुर्सी पर 'जॉन' की जगह 'जयसिंह' का परचा है
स्वच्छंद, निस्पृह और विचारशील व्यक्ति की दृष्टि
सृष्टि की सेवा में दृश्य धुनती है
और सुबह-शाम सागर में मोती चुनती है
जहाँ विचारोत्कर्ष है सौंदर्य का वास्तविक शृंगार

'सर्वहारा वीर' तो तुम नहीं थे
दिशाहारा तो तुम नहीं थे
राहहारा तो तुम नहीं थे
हे गद्य के तुलसी! हे कथा सम्राट! हे कहानीकार!
थे तुम 'बलिदान-पथ' के चिरंजीवी चिंतक
तुम्हारे सोच की सृजन में शामिल रहे
'गोर्की' और 'लूशुन' के विचार

हे दलित के दीपक! हे गाँव के गायक!
हे नर के नायक!
दोस्त-दुश्मन की पहचान थी तुम्हें खूब
बूढ़ी महाजनी सभ्यता और 
मरजाद की बेड़ियों को काटने की कला
भला कौन नहीं सीखना चाहता है?
तुमने सीखाया क्रांति के पक्ष में खड़ा होना
तुमने सीखाया बुरे वक्त में बुद्धि से बड़ा होना

हे चेतना के चिराग!
तुमने लगाई शोषकों के महल में आग
तुमने गाया सदा रोशनी का राग
तुमने सीधी-साधी बात सीधी-साधी जनता को
सरल-सहज-सरस भाषा में समझाया

हे सत्य के साधक!
परिवर्तन के युद्ध के बुद्ध!
स्नेह, समता, न्याय से प्रतिबद्ध, साहित्य के सूर्य!
ज़िन्दगी की तान के तूर्य!
तुम्हारी कथा की धमनियों में धरती की धुन,
खेतों की ख़ुशबू, विविध फूलों के रंग, नदी की उमंग
और भोर का भक्त नक्त है, संवेदना सशक्त है
शहर का राजनीतिक रक्त है, वाया वक्त है

हे 'शतरंज के खिलाड़ी'!
अँधेरे में मानवता की मणि!
गगन भी गाता है तुम्हारा गौरव गीत, हे मुंशी मीत!
लमही से आ रही है जय की लय
तुम्हारे शब्द दुख की दुपहरी में वृक्ष बन गए
और तुम्हारी प्रोक्ति 'लाल फीता' का बंधन तोड़ने की 'प्रेम-प्रतिज्ञा'
तुमसे हर आदमी आदमी होने का हुनर हासिल करता है

हे 'प्रेम सरोवर' के अरुण कमल!
तुम स्वप्न, संघर्ष व साहस के स्रष्टा हो
तुम भविष्य द्रष्टा हो
तुमने बताया, 'एक गिलास पानी' का महत्व 
____'नवजीवन' का तत्व
चारों ओर दुविधा और दहशत का धुआँ है
'गंगी' के पति 'जोखू' के सामने मौत का कुआँ है
जी हाँ, जो एक 'ठाकुर का कुआँ' है

हे ऋषि-कथाकार प्रेमचंद!
कहानी के अद्वितीय छंद!
संकल्प के अभियान में तब्दील होना
असल में आगामी प्रलय की प्रयोगशाला में पुरखों को बोना है
हवा नहीं है अनुकूल
परिवेश है प्रतिकूल
मैं तुम को बो रहा हूँ कविता की क्यारी में किसान की तरह
तन-मन से बहुत जतन से, साधना के सपूत! 

हे मानस के हंस!
'नवनिधि' के 'मंगल सूत्र'!
नये 'संग्राम' में 'प्रेम की वेदी' पर चढ़ने की शक्ति दो मुझे!
मैं 'कर्मभूमि' में 'पूस की रात' का 'हल्कू' हूँ
'प्रेम-प्रमोद' की गोद में ले लो मुझे
आज 'प्रेम-पंचमी' है परसों नागपंचमी
'प्रेम-तीर्थ' के पथ पर 
मुझ अबोध पाठक की यही प्रार्थना है रोज़
कि हर सुबह हर घर खिले 'सप्तसुमन' व 'सप्त सरोज'!

(©गोलेन्द्र पटेल
30-07-2022)

नाम : गोलेन्द्र पटेल
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