Golendra Gyan

Monday, 12 August 2024

दंगे देश को नंगे करते हैं : गोलेन्द्र पटेल

बेरोज़गारी व्यक्ति को बर्बरता की ओर ढकेलती है!


आह! वेदना हो रही है वायरल 

इंसानियत से बड़ी कोई चीज़ नहीं

संवेदना को महसूस करने के लिए 

संगीत काफ़ी है 


बेरोज़गारी व्यक्ति को बर्बरता की ओर ढकेलती है!


भीड़ अँधी-बहरी ही नहीं, बल्कि बर्बर भी होती है 

ओह! राजनीतिक उथल-पुथल की ख़बरें आ रही हैं 

तख़्त गिराए जा रहे हैं, ताज उछाले जा रहे हैं


ये आक्रोश, गुस्सा और घृणा के दिन हैं

करुणा! भाषा में क्रूरता कूज रही है 

क्योंकि, मानवाधिकार के ख़िलाफ़ साम्प्रदायिक हथियार हैं

चीख़ और चुप्पी के बीच से समझदारी गायब है 

दुविधा और उदासीनता के स्वर ऊँचे हैं

लोग ज़ोर-ज़ोर से बोल रहे हैं 

प्रगतिशीलजन अमानवीय घटनाओं पर नहीं बोल रहे हैं 

बुद्धजीवी परजीविता और आतंकवाद की राह पकड़ रहे हैं 

जन प्रतिरोध नया सवेरा लाने में असमर्थ है 

हक़ और हुकूमत के बीच लड़ाई जारी है 


स्वतंत्रता और स्वाधीनता से कोसों दूर 

जो संवेदनशील हैं, वे प्रतिक्रियावादी हैं 

वे हवा में अमन, चैन, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की कामना कर रहे हैं


वे कह रहे हैं,

दंगे देश को नंगे करते हैं 

उस देश में उनके धर्म के लोग 

प्रताड़ित किये रहे हैं, मारे जा रहे हैं 

उनकी स्त्रियों की इज़्ज़त लुटी जा रही है 

उनके देवों के ठीहे पर दैत्यों का कब्ज़ा हो गया है

उनके घर जलाये जा रहे हैं 

उनके पुरखों की प्रतिमाएँ तोड़ी जा रही हैं

लूट, हत्या, बलात्कार, दरिंदगी के दृश्य सामने आ रहे हैं 

सड़कें ख़ून की नदियाँ हो चुकी हैं 

उनके रिश्तेदार मृत्यु को करीब से देख रहे हैं

वहाँ अत्याचार की ऊँची अनुगूँज है 

मानवता ख़तरे में है

कट्टरपंथियों ने देश पर कब्ज़ा कर लिया है

आग में आज़ादी स्वाहा हो चुकी है 

पड़ोसी सरहदों पर शरणार्थियों का सैलाब है!


वे कह रहे हैं,

सांस्कृतिक जातीय अस्मिताबोध के लिहाज़ से 

सताये जाने वाले अल्पसंख्यक अपने हैं

उन पर ख़ूब हमले हो रहे हैं 

भूखों के कितने बुरे सपने हैं?

उनके चीत्कार के पक्ष में कोई चेतावनी नहीं है

उस देश की घटनाएँ दूसरे देश के लिए बेहद चिंताजनक हैं

उस देश के हालातों को लेकर इस देश में राजनीति हो रही है


वह देश अल्पसंख्यकों एवं बहुसंख्यकों के बीच 

क़ब्रिस्तान होने से बचना चाह रहा है 

कोई उसका सुन नहीं रहा है, आह! राष्ट्र रो रहा है...

क्रांति काल बन चुकी है 


इस समय जाति-धर्म पर बोलना ठीक नहीं है 

लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है 

कि उनके आरक्षण विरोधी संघर्ष 

और अपने आरक्षण विरोध के बीच कोई समानता नहीं है

कि यदि ताकतवर को और ताकतवर बनने के लिये

आरक्षण दिया जाएगा,

तो ऐसा ही होगा


ख़ैर, देश का दर्द से दायित्व की ओर जाना 

पुनः खड़ा होना है

वह अपने पैरों पर खड़ा होगा यथाशीघ्र 

ऐसा विश्वास है दुनिया के दुखी जन में, 

उस देश के नागरिकों में

जो अभी जल रहा है

जो अस्थिरता के ज्वार में तबाह हो रहा है!


(©गोलेन्द्र पटेल /13-08-2024)

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