Golendra Gyan

Friday, 17 April 2020

उत्तर-कोरोना काल || uttar corona kal


**उत्तर-कोरोना काल**

साहित्य में कोरोना का स्थान
सबसे ऊँचा सदैव रहेगा ;
इसके सामने झुकेगा हर महान
व्यक्ति ,क्रांति ,युद्ध व शुद्ध बुद्ध ज्ञान
ऐसा मैं नहीं
आज का वर्णन कहेगा।
मैं समय से पहले ही
अपने प्रिय आलोचकों से पूछा था ;
सत्र दो हजार दस के बाद के रचनाओं को
किस संज्ञा से पुकारा जाएगा?
कोई कुछ कहा तो कोई कुछ
लेकिन अब स्पष्ट है उत्तर : "उत्तर-कोरोना"
यह इस लिए नहीं कह रहा हूँ कि
यह शीर्षक हमारे काव्यगुरु की है
बल्कि यह इस लिए कह रहा हूँ कि
आपके सामने साहित्यिक यथार्थ है
जिसका प्रमाण सोशल मीडिया है
और कनिष्ठ से वरिष्ठ साहित्यकार
दोनों महायुद्ध हो या हमारे बुद्ध
या हमारे गाँधी या कोई इतिहास
सबसे आगे होगा कोरोना : कथाओं में ,
कविताओं में ,आलोचनाओं में व अन्य विधाओं में
सम्पूर्ण संवेदना समाज के श्यामपट्ट पर
रेखांकित करेगा : भय ,त्रासदी ,सन्नाटा ,......आदि।
और अद्भुत दृश्य दर्द का दर्पण
"स्पर्श" सृष्टि का सत्यानाशी महाविनाशी
ख़ौफ़नाक "घृणित साक्ष्य-शब्द" से भयभीत
ईश्वर ,अल्लाह ,ईसा ,मूसा और गॉड इन दिनों
अपने आँख-कान-नाक-जिह्वा-त्वचा बचाए
छिप गए हैं अज्ञात एकांतवास में
और "त्राहि-त्राहि" का शंखनाद बंद किवाड़ से
टकरा आदमी के पास वापस आ-जा रहा है
सुबह शाम उलाहना पहूँचे देश के रक्षकों के पास
शोक व शंकाएँ आत्माभिव्यक्ति का आधार
चिंता व चेतना मानव जीवन का लम्ब
समय व संघर्ष जगत का कर्ण
इसी आधार लम्ब कर्ण पर टिका है :
पिरामिड या परिवार या रचना संसार
जहाँ से चिड़ियों को चावल के दाने मिलते थे
चारों तरफ चहचहाहट के चम्मच बजते थे
वहाँ अब चुप्पी के खिलाफ हवाओं में
चुल्हों के रूदन स्वर गूँज रहे हैं
जिसे सून शून्य हो सभी सुमन झड़ पडे़ पेड़ से
कोलाहल ही कोलाहल है
चमकते धूप में
बदलते स्वरूप में
मिडिया के चीख मे
उम्र को उम्मीद है
विज्ञान के अविष्कार में
कुछ ऐसा है कि ऐसा कुछ भी नहीं
जिसे ढूँढ न पाए वह
विकल्प के विस्तार से तंग
तरंग भंग हुआ नदी बीच
अद्भुत आशा का नाव जब रूका अचानक
कहर का लहर चारो ओर दौड़ गया
समुद्र-सा सपाट होता हुआ साहित्य में
धीरज धरते धरती के सदस्य में
कोविड नाइंटीन की कथा सड़क से संसद में
धुम मचाया : "लॉकडाउन टाउन से शहर में"
गाँव का भूख चढ़ा हिमालय के उतुंग शिखर
मजदूर वर्ग जो रोज़ कुआँ खोद के पानी पीते हैं
उनके नवजात शिशु दूध के जगह माड़ पीते हैं
या माँ का रक्त निचोड़ सूखी छाती से पीते हैं
अब वे सब रोते रोते पिता के आँसू पी रहे हैं
हे राजनीति के खुदा! हे भारत भाग्य विधाता!
तेरे बच्चे भूखे-कलपते-तड़पते हुए जी रहे हैं
द्वार पर खड़े हैं असहाय महराज यमराज
आत्मा को समय से पहले देह छोड़ते देख
ब्रह्म देव हताश हैं ; स्वयं का पढ़ पूर्व लेख
नारदजी का थम गया नारायण-नारायण जाप
लेखनी चले कैसे कागज़ रूए कलम रहा काप
अपनों से अजनबी का व्यवहार कर रहे हैं हम-आप
सूनो!सामाजिकता या सामूहिकता हुआ अभिशाप
सामुहिक प्रयास से कोरोना लेगा अपना रास्ता नाप
इस महामारी के कष्टमयी रात में राजनीति का भाप
भूख के जमीन से उठ ऊपर जन्नत में चला चुपचाप
योंही चलता रहा तो न मानव होगा न जीवन
बस वायरस होगा लोकतंत्र के दुनिया में
कोरोना को बीजेपी वाले कहेंगे काँग्रेस
काँग्रेस बीजेपी को कहेंगे कोविडनाइंटीन
कवि ,लेखक ,गीतकार ,कलाकार व पत्रकार
अपने क्रोध को कोरोना से जोड़ कर प्रस्तुत करेंगे
राजनीति के विरुद्ध बुलंद आवाज़ों में
जनता जन्म से दो वक्त की भोजन चहती
नहीं मिलेगा तो चिल्लाते-चिल्लाते चुप हो जाएगी
लाचार असहाय प्यासे मरुस्थलीय पंक्षियों के भाँति
अन्ततः कोई खेत में गिरेगा कोई रेत में
कोई कोरोना के कहर से किसी शहर में
यदि जीना चाहते हो तो जगना ही होगा
कोरोना रूपी राजनीतिक अंधकार में.....।
-गोलेन्द्र पटेल
रचना :16-04-2020

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