Golendra Gyan

Thursday, 21 May 2020

"कवि के भीतर स्त्री" से 'देह विमर्श' : गोलेंद्र पटेल 【{©Golendra Patel} (BHU)】

देह विमर्श
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जब

स्त्री ढ़ोती है
गर्भ में सृष्टि
तब

परिवार का पुरुषत्व
उसे श्रद्धा के पलकों पर

धर

धरती का सारा सूख देना चाहते हैं
   घर।।

एक कविता
जो बंजर जमीन और सूखी नदी की है
समय की समिक्षा शरीर-विमर्श

सतीत्व के संकेत
सत्य को भूल

उसे बांझ की संज्ञा दी।...

©गोलेन्द्र पटेल
लम्बी कविता "कवि के भीतर स्त्री"से】
मो.नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com





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