Golendra Gyan

Tuesday, 19 August 2025

क्रांति-ज्योति महामना रामस्वरूप वर्मा : गोलेन्द्र पटेल

क्रांति-ज्योति महामना रामस्वरूप वर्मा
               — गोलेन्द्र पटेल
★★★

प्रस्तावना:
भारत का इतिहास केवल राजाओं और साम्राज्यों का इतिहास नहीं है। यह उस अनवरत संघर्ष की भी कथा है जो शोषित-पीड़ित जनता ने सदियों से अन्याय, विषमता और दमन के विरुद्ध लड़ा है। इस संघर्ष की परंपरा में जहाँ बुद्ध, फुले, अंबेडकर, पेरियार जैसे महापुरुष हैं, वहीं एक तेजस्वी ज्योति उत्तर भारत की मिट्टी से प्रकट हुई— महामना रामस्वरूप वर्मा।
उन्होंने न केवल राजनीति में बल्कि समाज और संस्कृति के हर क्षेत्र में ब्राह्मणवाद की जड़ों को चुनौती दी। उन्होंने दिखाया कि सुधार नहीं, समूल उखाड़ फेंकना ही मुक्ति का मार्ग है। उनकी लेखनी बारूद थी, उनके विचार विस्फोटक। उन्होंने तर्क, विज्ञान और मानववाद को शस्त्र बनाया और बहुजन समाज को आत्मसम्मान का मंत्र दिया।
यह लंबी कविता उसी ज्वाला का गान है।
यह श्रद्धांजलि नहीं, यह शपथ है।
यह स्मरण नहीं, यह आह्वान है।
***


क्रांति-ज्योति महामना रामस्वरूप वर्मा


खंड – 1


अध्याय : क्रांति की ज्वाला

जय अर्जक! जय मानववाद! जय समता का भविष्य!
दो ही मोती, दो ही मशालें—
“सबको इज्ज़त, सबको रोटी।”
गौरीकरन की मिट्टी से उठी एक लौ,
कुर्मी किसान का बेटा,
विश्वविद्यालयों का स्वर्णजयी—
IAS की कुर्सी ठुकराकर
जनता का रास्ता चुना।
उन्होंने कहा—
“ब्राह्मणवाद झूठा है, भाग्यवाद धोखा है, पुनर्जन्म मायाजाल है।
मनुस्मृति इस राष्ट्र का कलंक है।”
और इन वाक्यों ने
सिंहासन हिला दिया।
राजनीति में वे कबीर थे—
निर्भीक, तीखे, नग्न सच बोलने वाले।
उत्तर भारत के अंबेडकर,
जिन्होंने घोषणा की—
“मारेंगे, मर जाएंगे, हिन्दू नहीं कहलाएंगे।”
उन्होंने अर्जक संघ रचा—
एक झंडा, एक आंदोलन, एक क्रांति।
जहाँ विवाह था प्रतिज्ञा का उत्सव,
जहाँ मृत्यु थी शोकसभा,
तेरहवीं का पाखंड नहीं।
जहाँ मूर्तियों के स्थान पर
मानव की गरिमा पूजी जाती थी।
विधानसभा में उन्होंने
पेश किया इतिहास का पहला
शून्य घाटे का बजट।
पर उनका असली बजट था—
इंसाफ, शिक्षा, बराबरी।
उनकी कलम थी बारूद:
क्रांति क्यों और कैसे,
मानववाद बनाम ब्राह्मणवाद,
मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक,
आत्मा-पुनर्जन्म मिथ्या—
ये किताबें नहीं,
जंजीरों को तोड़ने के औज़ार थीं।
जब सरकार ने अंबेडकर की किताबें जब्त कीं,
उन्होंने अदालत से जीतकर लौटते हुए कहा—
“विचार किसी हुकूमत की कैद नहीं हो सकता।”
वह नेता ही नहीं, दार्शनिक थे।
जनता को समझाते—
“सिर्फ़ आरक्षण नहीं,
पूरे जातिवादी ढाँचे को ढहाना होगा।”
उन्होंने पुकारा—
“जला दो मनुस्मृति!
जला दो रामायण!
जो किताबें इंसान को गुलाम बनाती हैं,
वे राख बनने योग्य हैं।”
वह लोहिया के साथी थे
पर उनकी सीमाएँ पहचानते थे।
गांधी से टकराए,
क्योंकि गांधी वर्ण को बचाना चाहते थे।
वर्मा बुद्ध, फुले, अंबेडकर, पेरियार के साथ खड़े थे—
मनुष्य को मनुष्य की तरह
जीते देखने के लिए।
आज जब पूँजीवाद और धर्मांधता
नए पिंजरे गढ़ रहे हैं,
वर्मा की आवाज गूंजती है—
“मानववाद ही मुक्ति है,
तर्क ही क्रांति है,
समता ही भविष्य है।”
रामस्वरूप वर्मा—
तुम्हारा नाम गूंजता है बहुजन की साँसों में,
उन मशालों में,
जो अंधकार से लड़ रही हैं।
जय अर्जक! जय मानववाद! जय क्रांति!
***


खंड – 2


अध्याय : क्रांति का आह्वान

जागो शोषितों! आज क्रांति का दिवस है।
22 अगस्त की सुबह कानपुर की धरती से उठा तूफ़ान—
रामस्वरूप वर्मा! किसान का बेटा।
एमए-एलएलबी टॉप कर सिविल सर्विस ठुकराई,
कहा—
“आराम नहीं, संघर्ष की आग चुनूँगा!”
उनका नारा—
“सबको इज्ज़त, सबको रोटी।”
यह नारा नहीं, हथियार था—
ब्राह्मणवाद की कब्र खोदने का।
वह आधुनिक कबीर लगे,
उत्तर भारत के अंबेडकर।
लोहिया के साथी, फिर विद्रोही।
गांधीवाद, लोहियावाद, हिंदुत्व—
सबको चुनौती दी।
घोषणा की—
“मारेंगे, मर जाएंगे, हिंदू नहीं कहलाएंगे!”
छह बार विधायक, वित्तमंत्री बने,
शून्य-घाटे का बजट पेश किया।
पर उनकी असली लड़ाई
विचारों की थी—
पचास साल तक
बिना समझौते लड़े।
1968, कानपुर—
अर्जक संघ की नींव रखी।
विवाह बना प्रतिज्ञा का संस्कार,
मृत्यु बनी शोकसभा का अवसर।
तेरहवीं की जंजीर तोड़ी,
पाखंड की आग बुझाई।
मानवतावादी पर्व गढ़े—
अंबेडकर, बुद्ध, पेरियार,
बिरसा, फूले का सम्मान।
उन्होंने कहा—
“जात-पात, भाग्य, पुनर्जन्म, चमत्कार—
ये ब्राह्मणवाद के पाँच ज़हर हैं।
इनकी जड़ें उखाड़ो,
वेदों में डायनामाइट लगाओ!”
उनकी किताबें बनीं बम:
क्रांति क्यों और कैसे—
शोषण की चिता जलाने का आह्वान।
मानववाद बनाम ब्राह्मणवाद—
समता का शास्त्र।
मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक—
इस जहर को राख करो।
आत्मा-पुनर्जन्म मिथ्या—
विज्ञान का शंखनाद।
जब सरकार ने अंबेडकर की किताबें जब्त कीं,
उन्होंने आंदोलन छेड़ा।
ललई सिंह यादव के संग अदालत जीती।
सरकार झुकी,
अंबेडकर साहित्य पुस्तकालयों तक पहुँचा।
उन्होंने आदेश दिया—
“जला दो मनुस्मृति!
जला दो रामायण!”
गाँव-गाँव नुक्कड़ नाटक हुए,
ब्राह्मणवाद की चूलें हिल गईं।
लोहिया से टकराव हुआ—
लोहिया वर्ण को मानते रहे,
पर वर्मा गरजे—
“ब्राह्मणवाद सुधार नहीं,
समूल उखाड़ो!”
उनका दर्शन—
बुद्ध, फुले, पेरियार, अंबेडकर।
पूँजीवाद, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास—
सबको चुनौती।
विज्ञान और मानववाद से समाज बदलो,
तभी राजनीति बदलेगी।
आज विडंबना है—
इतना क्रांतिकारी विचारक भुला दिया गया।
मुद्राराक्षस ने कहा—
“यह विस्मृति राष्ट्र का नुकसान है।”
पर वर्मा की आत्मा गरज रही है—
“ब्राह्मणवाद पोटेशियम सायनाइड है—
सुधार नहीं, उखाड़ फेंको!”
उठो बहुजन, दलित, पिछड़े!
एक मंच पर आओ।
मनुवाद पर हथौड़ा मारो,
नया संसार गढ़ो—
जहाँ हर इंसान गरिमा से जिए,
समता से खिले,
क्रांति से जिए।
19 अगस्त 1998, लखनऊ—
वह विदा हुए,
पर उनके विचार अमर हैं।
अब यह आग
पूरे भारत में फैलेगी।
जय अर्जक! जय विज्ञान! जय संविधान!
इंकलाब जिंदाबाद!
***


उपसंहार:

महामना रामस्वरूप वर्मा का जीवन एक जीवित क्रांति था।
उन्होंने दिखाया कि सत्ता में होना ही शक्ति नहीं है,
बल्कि विचारों की निर्भीकता ही असली शक्ति है।
आज, जब बाजार और मंदिर मिलकर जनता को कैद कर रहे हैं,
जब लोकतंत्र का वस्त्र फाड़कर सांप्रदायिकता और पूँजीवाद नंगा नाच रहे हैं,
जब शोषित-बहुजन अब भी न्याय से वंचित हैं—
तब वर्मा की आवाज़ और भी तेज़ सुनाई देती है:
“मानववाद ही मुक्ति है,
तर्क ही क्रांति है,
समता ही भविष्य है।”
उनका सपना अधूरा है।
उनकी मशाल अब हमारी जिम्मेदारी है।
हम सबको मिलकर अर्जक बनना है—
पाखंड को नकारना,
जातिवाद की जड़ों को उखाड़ना,
और एक ऐसा समाज रचना
जहाँ हर इंसान बराबर हो।
रामस्वरूप वर्मा की विरासत केवल स्मृति नहीं,
यह भविष्य की राह है।
उनकी चिता की राख से
अब भी उठती है आग—
आग, जो हमें पुकार रही है:
उठो बहुजन!
तोड़ो मनुवाद की जंजीरें!
गढ़ो एक नया भारत—
जहाँ मानव ही धर्म है,
विज्ञान ही आस्था,
और समता ही जीवन।
जय अर्जक! जय मानववाद! जय क्रांति!
***

           ★★★


रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com

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