सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत, वंचितों के अधिकारों के सशक्त प्रवक्ता, किसानों व कमेरा समाज के मसीहा, सामाजिक न्याय और समरसता के प्रखर प्रणेता, अपना दल के संस्थापक यशःकायी बोधिसत्व डॉ. सोनेलाल पटेल जी पर केंद्रित बहुजन कवि-लेखक श्री गोलेन्द्र पटेल जी की दो कविताएँ :-
1).
दूसरी आज़ादी का आह्वान : डॉ. सोनेलाल पटेल
वे मिट्टी से जन्मे थे,
हल-जोते खेतों की गंध से भरे हुए,
किसान का बेटा होकर भी
आकाश की भौतिकी पढ़ने निकले थे।
पर ज्ञान का प्रकाश जब देखा—
तो जाना कि सबसे अँधेरा
तो मनुष्य की आँखों पर बैठा है,
जाति, शोषण और अन्याय का।
उन्होंने कहा—
“यह कैसी आज़ादी है,
जहाँ बहुजन भूख से मरता है
और गिने-चुने लोग राजसिंहासन पर बैठे हैं?”
इसलिए उनका स्वर गूँजा—
“दूसरी आज़ादी चाहिए,
अन्याय की जंजीरें तोड़नी होंगी।”
लाठीचार्ज की पीड़ा, जेल की दीवारें,
साजिशों के काँटे, षड्यंत्र की छाया—
किसी ने उन्हें रोका नहीं।
वे खड़े रहे—
समानता की मशाल हाथ में लिए,
कमेरा समाज की धड़कन बने।
उन्होंने धर्म की बेड़ियाँ भी तोड़ीं,
सरयू तट पर
अंधविश्वास की राख झटककर
धम्म का प्रकाश अपनाया।
बोधिसत्व कहाए,
क्योंकि करुणा और संघर्ष
उनके जीवन का धर्म था।
राजनीति को उन्होंने
सत्ता का खेल नहीं,
बल्कि वंचितों की हथेली में
न्याय रखने का माध्यम समझा।
“गिनती जितनी, हिस्सेदारी उतनी”—
उनकी यह घोषणा
हवा में नहीं,
जनता के दिल में गूँज बन गई।
वे जानते थे—
दलित, पिछड़े, किसान, स्त्रियाँ, वंचित—
इनकी मुक्ति के बिना
भारत की आत्मा अधूरी है।
इसलिए उन्होंने कहा—
“कुर्मी की ताक़त को पहचानो,
बहुजन की शक्ति को जगाओ
और व्यवस्था के किले को
गिराने के लिए आगे बढ़ो।”
पर सत्ता हमेशा डरती है
उन आवाज़ों से
जो सच्चाई बोलती हैं।
इसलिए सड़क की दुर्घटना
एक सवाल बनकर खड़ी है—
क्या सचमुच दुर्घटना थी
या न्याय की हत्या?
आज भी इतिहास पूछता है
और उनके अनुयायी संकल्प दोहराते हैं—
“सत्य को कभी मारा नहीं जा सकता।”
उनकी विरासत सिर्फ़ एक दल नहीं,
बल्कि जलते हुए दीपक की तरह है—
जो किसानों की झोपड़ियों में,
दलित बस्तियों की गलियों में,
पिछड़ों की चेतना में
अब भी रोशनी करता है।
उनकी संतानें,
उनकी पार्टी,
उनके सपनों का कारवाँ—
भले बँट गया हो दिशाओं में,
पर उनका मूल संदेश
आज भी वही है—
“समानता से कम कुछ नहीं चाहिए।”
हे सोनेलाल!
हम तुम्हें प्रणाम करते हैं
शत-शत नमन के साथ,
पर नमन ही काफ़ी नहीं।
हम तुम्हारे स्वप्न को
संघर्ष की धरती पर
फिर से बोने का संकल्प लेते हैं।
तुम्हारी आवाज़ आज भी गूँजती है—
“दूसरी आज़ादी चाहिए,
समानता का सूरज चाहिए,
जनता का राज चाहिए।”
और जब तक यह धरती
अन्याय से दहकती रहेगी,
तब तक तुम्हारा नाम
क्रांति की धड़कन बनकर
हमारे सीने में जलता रहेगा।
★★★
2).
क्रांति का बोधिसत्व
शोषितों की ललकार, सोनेलाल!
कुर्मी मिट्टी से जन्मा योद्धा,
दूसरी आज़ादी का आगाज़ आपने किया,
वंचितों के हक़ में तलवार उठाई।
अपना दल का बीज बोया,
किसान-दलित की हिस्सेदारी माँगी,
बौद्ध दीक्षा से हिंदुत्व की जंजीर तोड़ी,
समरसता की आग में कट्टरता जलाई।
साजिशों में घिरा, लाठी-गोली सही,
सड़क पर 'हत्या' की आड़ में दफ़नाया गया,
पर आपकी आवाज़ अब विद्रोह की चिंगारी,
पल्लवी-अनुप्रिया में बँटी, मगर अमर।
उठो, पिछड़ो! न्याय की आँधी बनो,
शोषण की दीवारें ढहाओ, क्रांति जगाओ!
सोनेलाल की जयंती पर संकल्प:
हर वंचित का राज, या फिर युद्ध!
★★★
डॉ. सोनेलाल पटेल (2 जुलाई 1950 – 17 अक्टूबर 2009) एक भारतीय राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और अपना दल (Apna Dal) के संस्थापक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के बगुलीहाई गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने पंडित पृथ्वी नाथ कॉलेज, कानपुर से भौतिकी में एमएससी और कानपुर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी।
प्रमुख योगदान:
1. अपना दल की स्थापना: डॉ. सोनेलाल पटेल ने 4 नवंबर 1995 को अपना दल की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य कुर्मी, किसानों, पिछड़े वर्गों, दलितों और शोषित समुदायों के अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करना था। वे जनसंख्या के अनुपात में सभी वर्गों को शासन और प्रशासन में हिस्सेदारी देने के पक्षधर थे।
2. सामाजिक न्याय और समानता: उन्होंने सामाजिक समानता और शोषित वर्गों के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष किया। उनकी विचारधारा सामाजिक न्याय, समरसता और किसानों के कल्याण पर केंद्रित थी। उन्होंने गरीबों, पिछड़ों व वंचितों के हक़-हुक़ूक़ के लिए 'दूसरी आज़ादी' का आह्वान किया।
3. बौद्ध धर्म अपनाना: 1999 में, डॉ. सोनेलाल पटेल ने हिंदू धर्म छोड़कर अयोध्या में सरयू तट पर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और बोधिसत्व के रूप में जाने गए। इस कदम ने उन्हें सामाजिक परिवर्तन के लिए और अधिक प्रेरित किया, लेकिन कट्टर हिंदू संगठनों के लिए विवादास्पद भी बना।
4. राजनीतिक संघर्ष: उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ भी काम किया और उत्तर प्रदेश में बसपा के महासचिव रहे। हालांकि, 1995 में मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने बसपा छोड़ दी और अपना दल बनाया। वे कुर्मी समाज को राजनीतिक रूप से संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विवाद और मृत्यु:
डॉ. सोनेलाल पटेल की मृत्यु 17 अक्टूबर 2009 को एक सड़क दुर्घटना में हुई, जिसे उनके समर्थक और परिवार के कुछ सदस्य साजिश मानते हैं। उनकी पत्नी कृष्णा पटेल और बेटी पल्लवी पटेल ने उनकी मृत्यु की सीबीआई जांच की मांग की है, यह दावा करते हुए कि यह हत्या थी। 1999 में प्रयागराज के पीडी टंडन पार्क में उनके नेतृत्व में एक रैली के दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें वे घायल हुए और जेल में डाले गए। इस घटना को भी कुछ लोग साजिश का हिस्सा मानते हैं।
विरासत:
डॉ. सोनेलाल पटेल की मृत्यु के बाद उनका परिवार और पार्टी दो गुटों में बंट गई:
- "अपना दल (एस)", जिसका नेतृत्व उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल करती हैं, जो वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन में हैं।
- "अपना दल (कमेरावादी)", जिसका नेतृत्व उनकी पत्नी कृष्णा पटेल और बेटी पल्लवी पटेल करती हैं, जो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में हैं।
उनके परिनिर्वाण दिवस पर हर साल उत्तर प्रदेश में उनके अनुयायी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं ने भी उनके सामाजिक योगदान को याद किया है।
निजी जीवन:
डॉ. सोनेलाल पटेल का विवाह कृष्णा पटेल से हुआ था, और उनकी तीन बेटियां थीं, जिनमें अनुप्रिया पटेल और पल्लवी पटेल प्रमुख राजनीतिक हस्तियां हैं।
उनका योगदान सामाजिक न्याय, समानता और शोषित वर्गों के उत्थान के लिए अविस्मरणीय माना जाता है।
★★★
रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
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