Golendra Gyan

Thursday, 21 May 2020

"कवि के भीतर स्त्री" से 'देह विमर्श' : गोलेंद्र पटेल 【{©Golendra Patel} (BHU)】

देह विमर्श
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जब

स्त्री ढ़ोती है
गर्भ में सृष्टि
तब

परिवार का पुरुषत्व
उसे श्रद्धा के पलकों पर

धर

धरती का सारा सूख देना चाहते हैं
   घर।।

एक कविता
जो बंजर जमीन और सूखी नदी की है
समय की समिक्षा शरीर-विमर्श

सतीत्व के संकेत
सत्य को भूल

उसे बांझ की संज्ञा दी।...

©गोलेन्द्र पटेल
लम्बी कविता "कवि के भीतर स्त्री"से】
मो.नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com





Thursday, 7 May 2020

मॉब लिंचिंग - गोलेन्द्र पटेल // मॉबलिंचिंग // #मॉबलिंचिंग // golendra patel // golendra gyan // #BHU#JNU#DU#University




*मॉब लिंचिंग*
अद्भुत-
अवैमत्य
अफ़वाह का आवाज़
अनन्त आकाश में
नहीं
आदमी से आदमी के भीतर
अविराम उड़ता रहा
अविस्मरणीय
अश्लथ
अस्त्र बन!
अविवेक का अँकुर
शिक्षित व अशिक्षित के मनःखेत में
सनसनीखेज़ ख़बर का है
जो आतंक के आतिथ्य का वृक्ष होगा
एक दिन
तो ताकता रहेगा तकदीर नयन में लिये नीर
वे घिन
समय के चेतना को चीर
रे बिन!
गिन हीन एक-दो-तीन
तिन के तलवार से
मनुष्य के मनुष्यता को जब मार दिया जाएगा
तब कर्षित पराधीन पत्नी बेटी माँ
या दोहरे शोषित :
दलित स्त्री
"मॉब लिंचिंग" के शिकारियों का शिकार होंगी
तपती धूप में चौंधिया कर गीर पडे़ मृग के भांति
या भयंकर रेगिस्तान में फसें प्यासे असहायों के
अभी यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ
रूढ़िवादिता के पितृसत्तात्मक भट्ठी में जल रही हैं औरतें
इस आग से हृदय और मन जलना कलम से कविता रचना है :
अहम के विरुद्ध
या पुरुषार्थ के प्रशस्ति गान के
सामाजिक शोषण के शमशीरों से
हाथ में हाशिए के हँसुए लें सीना तान के
लड़ाना चहती हैं स्त्रियाँ : आत्मसम्मान के लिए
शीघ्र जीतेंगी तब
जब हम जीताएंगे अपने घर के स्त्रियों को
जीताना ही होगा पूर्ण पुरुष होने के लिए
स्त्री को विजयी भवः बोल
नहीं तो
वो खुद जीत जाएंगी पुरुष को पराजित कर
एक दिन!...
©गोलेन्द्र पटेल
सितंबर,2019

दृष्टिबाधित सेवक // दिव्यांग सेवक // दृष्टिबाधित विद्यार्थी // golendra patel // #BHU#JNU#DU#MU#University//golendra gyan // गोलेन्द्र पटेल


**मैं कैसे बना दिव्यांग सेवक** *सारांश*
*2018 की बात है मुझे सेकंड NDA का पेपर इलाहाबाद में देना था, और अगले ही दिन मुझे बड़ी माता (अर्थात् मिज़ल्स : चेचक) हो गया लेकिन मैं नहीं माना रात्रि में तकरीबन 8:30 के ट्रेन से चला गया।सुबह के पेपर तक सम्पूर्ण देह में जलन ज्वालामुखी के भाँति दहक रहा था लेकिन2बजे के पेपर में आँखों के पुतलियों में भी दो दानें उभर गए।आँखें बंद ही नहीं होते थे, नयन नीर लगातार खौलता हुआ चेहरे को जला रहा था, बेचैनी चर्मोत्कर्ष पर थी, जो दवा ले गया था वो अपने अस्तित्व को भूल गए थे, कोई असर उनके भीतर नहीं रह गया था फिर भी हम उनकी सांत्वना के लिए खाता रहा।क्योंकि की किसी वरिष्ठ डॉक्टर का दिया था।जो भभूत माई भगवती का पिता ने दिलाया था उसे भी लगता रहा।मौत का पेपर किस  तरह दिया यह यमराज भी देख रहे थे, NDA विभाग के परीक्षा केंद्र पर आए अधिकारियों ने भी दवा दिलाया पास के मेडकल से । मजे की बात यह है कि उसमें तीन दवा मेरे पास थी, एक नहीं।उसे खाने पर कुछ राहत हुआ मैं एक घंटे बाद पुनः मुघलसराय का टिकट ले ट्रेन पकड़ घर वापस चल पड़ा,ट्रेन पैसेंजर ट्रेन था सभी डिब्बे खाली जैसे लगा ईश्वर मेरे देह के दर्द का दर्शन कर मुझ पर अपना कृपा दृष्टि फेरी हो।जब सीट पर सोता था तो मिजल्स के दाने ऐसे लगते जैसे कोई सुई चुभो रहा हो।रास्ते में आते आते विन्ध्याचल स्टेशन पर ट्रेन रूकी मैं ब्याकुल हो ट्रेन से उतर गया, घूमने लगा।एक ट्रेन सुपरफास्ट कुछ समय में वहाँ आई ।मैं तुरंत उसमें चढ़ गया।लोग बैठने नहीं दे रहे थे।बहुत मुस्किल से पैखाने के पास बैठने का जगह मिला।जहाँ एक कोढ़ी व्यक्ति बैठा था, और उसकी बुढ़ी पत्नी साथ में।जो मुझसे पूछती है बेटवा कहा जात हया? मैं वत्सलवचन प्रश्न सून कहा माई घरे।हमार घर मुघलसराय के पास है।उन्होंने मेरे दर्द को अपने भीतर लेत हुए कहा कि बेटवा आपको माता जी हैं हे माई भगवती इस अबोध की रक्षा करी।हम शिघ्र ही अपने स्टेशन के पास ज्यूनाथपुर फाटक आ गए जहाँ सभी ट्रेन रूकती हैं चाहे वह कोई भी हो क्योंकि वहाँ से सभी अपने रूट धरती अर्थात् पटरियों की संख्या कम हैं एक जाए तो दूसरी आए।वहाँ से मेरे घर का दूरी मुघलसराय स्टेशन के समान था।रात १२बज रहे थे।मैं उतरा अपने पिता पर फोन किया फोन किसी ने नहीं उठाया कारण फोन साइलेंट में था।थक हार एक चाचा पर किया जो संजोग से रात में पंपूसेट से पानी भर रहे थे।उन्होंने कहा ठीक है वहीं फाटक के पास रूक मैं बाईक ले आ रहा हूँ।मैं आश्चर्य में था मेरे सामने एक भी फाटक नहीं था ।ट्रेन फाटक से एक किमी आगे जा रूकी थी।मैं ट्रेन के उस पार जा देखा छोटा स्टेशन था।जहाँ कुछ अनजान यात्री सोए थे।वहीं चाय बेचने वाले से पूछा चाचा फाटक कहाँ है बोले एक किमी पिछे ही था।मैं फाटक की तरफ जाने लगा।कुत्ते ऐसे भोंक रहे थे जैसे लगता था वे झुंड बना मेरा शिकार करना चाहते हैं वैसे ट्रेन के पटरियों पर घूमने वाले कुत्तों से आप परिचित होंगे।मैं जब फाटक पहूँचा सब कुछ बदल चुका था क्योंकि मैं उस रास्ते लगभग 6 वर्ष पूर्व गया था तब कोई पुल ओगर नहीं था अब है। चाचा भी उस छोटे स्टेशन को नहीं जनते थे।जहाँ मैं रूक था।अच्छा फाटक तक पहुंच तो गया वहाँ इतने लोग कट मेरे थे कि उनमें मेरे गाँव से मेरा एक प्राईमरी सहपाठी भी।जिसका स्मृति मन में भय का नाव तैयार कर उस पर स्वयं को बैठ तुफानी सागर का यात्रा कर रहा था।चाचा आ गए हमें उनके संग घर आए।माँ ने पानी गर्म किया।पिता ने ठंडा पानी दो बाल्टी लाए।हाथ-मुह धोया, ब्रस किया फ्रेश हुआ, कुछ खाया और गर्म पानी पी सोया।प्रातःकाल पिताजी ने एक माईजी छेकने वाले बाबा के पास ले गए वहाँ उन्हें मुझे देखाए फिर झाड़ फूक हुआ, फिर हम वापस घर आयें खाना-वाना खा पी 8बजे रामनगर(वाराणसी) गये एक बडे़ डॉक्टर के पास जो चार दिन का दवा दिए जो था "अंग्रेजी संजीवनी" अर्थात् रामबाण।उसे खाते ही एक घंटे में आराम मिला घर के लोग हमें नींम के पत्तियों से पंखा करते थे अर्थात् मुझमें जो माँ थी उसे।एक हफ्ते में मिजल्स ठीक हुआ पुर्णतः ठीक एक माह में लेकिन दगादियाँ आज भी हैं।मैं उन दिनों मुलायम बिस्तर पर पडे़ पडे़ यही सोचता था कि मेरे पिता एक विकलांग व्यक्ति हैं कहीं जायसी की तरह मेरी आँखें गई तो मेरे परिवार का क्या होगा?मैं बड़ा हूँ इसलिए परिवार का प्रथम हाथ पैर हूँ... मुझे महाकवि जायसी की तरह मत बनाना माँ एक आँख का काना, नहीं सूर जैसा...नहीं तो उनके काव्यगुण भी देना होगा मुझे । यही जाप था मेरा : *दिव्यांगसेवापरमोधर्मः** *मेरी जननी के दूःख हरो और मुझे भी हरने दो जगतजननी!*
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- **गोलेन्द्र पटेल (*बीएचयू बीए द्वितीय वर्ष** )*

https://www.youtube.com/channel/UCcfTgcf0LR5be5x7pdqb5AA



Sunday, 3 May 2020

सांत्वना समय का सत्य है : गोलेन्द्र पटेल // golendra patel

सांत्वना समय का सत्य है
भूख के जमीन पर भय है
भोजन मिले तो विजय है
भावी चुनाव में नेताजी!

भूखा नहीं किसी का
चाटूकार सूनो सरकार
समाजिक व्यक्ति दो चार
वह जीना चहता निर्भय
पेट के ध्वनि को शब्द दे।

एक कर्षित कटोरी ले
गाता जाता सहृदय से
सामर्थ्यवानों के सामने 
मानवता के तत्व पाने :
दया करुणा अनुकंपा।

आज कोविड19 का कहर है
झूठा वादा तंबाकू सा जहर है
हंता का जनक चूहा घर घर है
जनता कर्फ्यू से डरा हर नर हैं
भूखे मजदूरों के दर्द मेरे अंदर हैं...
-गोलेन्द्र पटेल


27 March,2020

गुल्ली-डंडा : गोलेन्द्र पटेल // golendra patel // golendra gyan


आज 7-8 साल बाद
गुल्ली-डंडा खेला,
आश्चर्य हो रहा है,
खेल-खेल में 4-5 घंटे बीत गया
पता भी नहीं चला।
जैसे रोज़-रोज़ खेलनेवाले खेल रहे थे,
वैसे ही मैं भी,
या लम्बे-लम्बे शाट लगाया
अब नहीं खेलूंगा
क्योंकि लक्ष्य के करीब है मेरा समय।।
तन के ,मन के व हृदय के
स्वास्थ के लिए जरूरी
होता है खेलना
पर अब खेलने का मेरा उम्र नहीं
यह वक्त है
अपने गंतव्य-मंतव्य तक पहुँचने का
जुनून को जिद्द में बदल कर
भागीरथ प्रयास करने का
ठीक है
भोर में नहीं उठता
जब रात-दिन है अपने साथ
तब क्यों न दें देह के लिए कुछ समय
देह से दिमाग का संबंध एक संधि है
सड़क पर टहलते समय और स्वाँस के बीच
दक्खिनहिया हवा में
जो प्रायः प्रातःकाल नहीं
3 से 4 के बीच चलती है
अद्भुत औषधियों का स्पर्श कर
लेकिन आज
वो हमें "स्पर्श" का वास्तविक परिभाषा
देना चाहती है
इंसानों के विरुद्ध
अब मैं जगूँगा
इसके चुबंन के लिए रात में
कुछ पुसप कुछ डंड बैठकी
कुछ व्यायाम कुछ प्राणायाम
कुछ योगा कुछ और होगा अगले दिन से
अंदर-बाहर
वात-बात
गाँव का बगीचा कट गया
जहाँ खेला करता था लड़कपन में
होलापाती-आइसपाइस-डाकूपुलिस-एकलव्य का खेल
बाँस के कईंन का धनुष था
तीर सन-सरसों के लकड़ियों का
जिसके मुख बिंदु पर लगाया करता था खजूर का काँटा
जिसका लक्ष्य था
उड़ती चिड़ियों में
कबूतर पेढ़की तोता मैना निलकंठ
शब्द भेदी अभ्यास के लिए उल्लू व चमगादड़
जो पोखरा-पोखरी
प्रायमरी स्कूल के बगल में हैं
उसमें बचपन में नग्गा नहाया करता था
और गुरुजी
वस्त्र हरण कर कृष्ण बन जाते थे मेरे नजरों में
पिताजी पिटते थे
और
माताजी कहती थीं बेटा उसमें बूलुआ रहता है
जो बच्चों को ढुँबो कर मुआँ देता है
मत जाना उसमें नहाने
परंतु "मत" का असर हम और हमारे प्रथम सहपाठियों पर
उलटा पड़ता था
हम बार बार कई बार उसमें नहाते
एक ही दिन में
कटिए से मच्छलियाँ मारते थे
मैं शाकाहारी था
फिर भी दोस्तों के लिए मारने में मज़ा आता था
आज पोखरे बउली से भी गंदे हो गए हैं
क्योंकि उसमें सारे घरों के मल-मूत्र बहते हैं
और लोग बहाते हैं निर्भय हो कर
नहीं तैरता अब कहीं
कभी कभार गंङ्गा में किसी का चिता जलाने के बाद
तैरता हूँ तो बस काव्यसरिता में
या कल्पना के महासागर में क्षीरसागर में नहीं
क्योंकि वहाँ सोए हैं सतफनवें साँप पर विष्णु
जिससे मुझे डर लगता है
और विष्णु को नींद से जगाने पर जो मिलेगा डंड उससे भी
खेल था गुल्ली-डंडा का खेत में
चाँप कर खेला
पहले पहल में सौ का ताड़ पेला
एक सहस्र बना बन गया पड्डो
हो गया जीत हमारे पक्षों का
अब जीतना है जीवन
धैर्य को धारण कर , खेलों के भाँति नहीं
दलित वाल्मीकि व मृत्युंजय कर्ण के भाँति
जीने के उम्मीद में मरने का प्रथम पथ है कर्मपथ
जिस पर जीना मरना है महामोक्ष इस समय।।
-गोलेन्द्र पटेल
रचना : २३-०४-२०२०

प्रेम में ब्रह्मचर्य-गोलेन्द्र पटेल // golendra patel



*प्रेम में ब्रह्मचर्य*
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मैं उसका था
वह मेरी नहीं
क्योंकि उसने
प्रेम से पहले ही सून लिया है
ब्रह्मचर्य पर उपदेश
मैं था कि
दिल से दिमाग पर
प्रहार करता रहा
बार बार कई बार
एक ही संदेश
भेज
भोजन परोसने के वक्त
अचानक सामने
चुप्पी बिल्ली चीखती
चिल्लाती गुर्राती बर्राती
दूध से भरे दूधनहड़ी पर पंजा मारी
समय शून्य-सा शेष
प्रतीत होने लगा पहले प्रेम में
है
भय समुद्र को नदी से
और नदी को नाले से
या कहूँ मुझसे उससे

लय कंठ के कर्णप्रिय
उतर जा अंबर से अवनि पर
मेरे प्रिये के पास
जिसे देखता हूँ
आँखें मुद
आठों पहर
उसके देह हैं दीये
जिसके छाया में दो पल जीये : प्रथमप्रेम
अभी अभी
ताज़ा मैसेज आया
लिखा है : "फूल को पत्थर से प्यार है"
प्रति-उत्तर में
भेज रहा हूँ : "पत्थर को हथौड़ी से"
पर्वत गिट्टी हो
पूछ रहे हैं दिल्ली शहर के सड़कों पर
मेरे आशिक गए कहाँ
कब तक दबने दोगे?
लालची लोगों के
लोकतंत्र के पैरों के नीचे
सुना है प्रियतम तुम सोते हो
संसद सदन के सयन कक्ष है में
निडर लिडर बन

अब नहीं आओगे
तो मेरे करीबी जंगल
तुम्हें निर्लज्ज नेता कहेंगे
यह गीत गा रही है
एक चतुर चिडिया बैठ मुंडेर पर
पुनः मैसेज आया
ब्रह्मचर्यार्थ जानते हो या नहीं?
जी नहीं!
न ब्रह्मचर्य ,न प्रेमशास्त्र ,न कामशास्त्र.......
तो
आज जान जाओ
प्रेम ही ब्रह्मचर्य है
जो
अर्थ के अभिव्यक्ति का शब्द नहीं
वही वास्तव में प्रेमशास्त्र है
इसके शब्दकोश मौन
या नवजात शिशु का संकेत
या हमारे-तुम्हारे नैनों की भाषा
कामशास्त्र मैं भी नहीं जानती?
न ही जानना चाहती समय से पहले....
जब कुछ दिन बीत गए
न फोन आया न मैसेज
तो मैं भी बेचैन होने लगा
अनयास आपा खोने लगा
अपने आदर्श आदत से मजबूर
एक बार भी पहले न फोन किया न मैसेज
सीधे छः महीने बाद हृदय से हृदय को ह्वाट्सएप हुआ
शुभ निमंत्रण : मेरे विवाह में आना जी
तब मेरे भीतर से सहसा निकला
मैं था उसका
वह मेरी नहीं
      -गोलेन्द्र पटेल
रचना : 25-04-2020
(काल्पनिक प्यार से)

प्रश्न-कोरोना : हुक्म-ए-लोकतंत्र -युवा कवि गोलेन्द्र पटेल // golendra patel


*प्रश्न-कोरोना : हुक्म-ए-लोकतंत्र*
१.
सृष्टि के सृजन गर्भ में
एक नहीं अनेक
अंतरिक्षाकाश भर अनंत अद्भुत
आश्चर्यमयी-रहस्यमयी-महाविनाशी प्रश्न छुपे हैं
जैसे अद्यतन प्रश्न "प्रश्न-कोरोना"
अब साहित्यिक समाज को स्वीकार है
यह युद्ध नहीं
महासंग्राम है संसार के श्यामपट्ट पर
समय के स्याही से उत्कीर्ण होने के लिए
जिसका जनक जन हैं
प्रकृति नहीं!
जो चाईना के हैं.....।।
दो वक्त के रोटी के लिए
संर्घष शब्द विश्व-विख्यात है
जिसे गणित विज्ञान में समुच्चय कहते हैं
भूख के अवयवों के
और साहित्य में समन्वय
चिखने चिल्लाने गुर्राने बर्राने रोने के।
कान-कान से
अफवाह का आवाज़ "कहर-ए-कोरोना" काल में
सोशल मीडिया पर सनसनीखेज़ ख़बर बन रहा
धीरज-धैर्य सड़क शुन्य फार्मूला से
"लॉकडाउन" का लालटेन जला संसद सदन में है उजाला
जनता जन्नत देखने जा रही
अंधेरे घरों के भीतर "एकांतवास" का चादर ओढ़
सीख है चमगादड़ के चाम से सूप के विरुद्ध ढोल बनाना
जिसके ध्वनि शंखनाद से वायरस भीतर से बाहर भागेगा
तन से मन से जीवन से वतन से.....।।
२.
चमचमाती धूप में चिल्ला चिल्ला फेरी लगाने वाले
महामजदूर
महामौन के महासागर में अपने आँसुओं के एकैक बूंद
को सतह पर तैरते देख रहे
आँखें बंद कर उपजीवी उम्मीद के स्वप्न में कहर कहर
कुछ पिता छुप छुप इधर उधर डगर पर डर डर मर मर
गाँव आ रहे शहर से
जिनके स्वागत के लिए सड़क पर पत्तें उपस्थित हैं
कुछ पत्तें मालूम होते हैं धरने के लिए
उन्हें रोकना चाहते हैं अपने पास
जो स्वयं सूख रहे हैं धरने पर बैठ
बच्चें खिडकियों से देख रहे गलियों में पिता की राह
अंतःअंदर अनंत सपने सजाकर चिंता की चाह
देह के डकची में पकाते पकाते थक हार पत्नी भी
गर्भ के रक्षक रोटी
जिस मुहर वाले ठप्पे युक्त कागज़ से मिलते हैं
उसे दिल्ली के दीमक चाट गयें
इसलिए एक-एक दो-दो किलो चावल बाट रहें
ऐसा सोच रही गर्भवती मजदूरीन
कोविड-१९ कर्ज़ को काल बनाने आया है
ऐसा कह रहे हैं किसान और भूखे इंसान
लॉकडाउन में लक्ष्मणरेखा घर का ड्योढ़ी अब हुआ
सड़क पर स्वर्णमृग पकड़ने वाले सैनिक हुए राम
सीता के लिए लक्ष्मण का आदेश - "हुक्म-ए-लोकतंत्र"
-गोलेन्द्र पटेल
नोट : आधा भेजा हूँ कैसा लगा यह कविता
सम्पूर्ण "कविता का पाठ " विडिओ में भेजूंगा