आज 7-8 साल बाद
गुल्ली-डंडा खेला,
आश्चर्य हो रहा है,
खेल-खेल में 4-5 घंटे बीत गया
पता भी नहीं चला।
जैसे रोज़-रोज़ खेलनेवाले खेल रहे थे,
वैसे ही मैं भी,
या लम्बे-लम्बे शाट लगाया
अब नहीं खेलूंगा
क्योंकि लक्ष्य के करीब है मेरा समय।।
तन के ,मन के व हृदय के
स्वास्थ के लिए जरूरी
होता है खेलना
पर अब खेलने का मेरा उम्र नहीं
यह वक्त है
अपने गंतव्य-मंतव्य तक पहुँचने का
जुनून को जिद्द में बदल कर
भागीरथ प्रयास करने का
ठीक है
भोर में नहीं उठता
जब रात-दिन है अपने साथ
तब क्यों न दें देह के लिए कुछ समय
देह से दिमाग का संबंध एक संधि है
सड़क पर टहलते समय और स्वाँस के बीच
दक्खिनहिया हवा में
जो प्रायः प्रातःकाल नहीं
3 से 4 के बीच चलती है
अद्भुत औषधियों का स्पर्श कर
लेकिन आज
वो हमें "स्पर्श" का वास्तविक परिभाषा
देना चाहती है
इंसानों के विरुद्ध
अब मैं जगूँगा
इसके चुबंन के लिए रात में
कुछ पुसप कुछ डंड बैठकी
कुछ व्यायाम कुछ प्राणायाम
कुछ योगा कुछ और होगा अगले दिन से
अंदर-बाहर
वात-बात
गाँव का बगीचा कट गया
जहाँ खेला करता था लड़कपन में
होलापाती-आइसपाइस-डाकूपुलिस-एकलव्य का खेल
बाँस के कईंन का धनुष था
तीर सन-सरसों के लकड़ियों का
जिसके मुख बिंदु पर लगाया करता था खजूर का काँटा
जिसका लक्ष्य था
उड़ती चिड़ियों में
कबूतर पेढ़की तोता मैना निलकंठ
शब्द भेदी अभ्यास के लिए उल्लू व चमगादड़
जो पोखरा-पोखरी
प्रायमरी स्कूल के बगल में हैं
उसमें बचपन में नग्गा नहाया करता था
और गुरुजी
वस्त्र हरण कर कृष्ण बन जाते थे मेरे नजरों में
पिताजी पिटते थे
और
माताजी कहती थीं बेटा उसमें बूलुआ रहता है
जो बच्चों को ढुँबो कर मुआँ देता है
मत जाना उसमें नहाने
परंतु "मत" का असर हम और हमारे प्रथम सहपाठियों पर
उलटा पड़ता था
हम बार बार कई बार उसमें नहाते
एक ही दिन में
कटिए से मच्छलियाँ मारते थे
मैं शाकाहारी था
फिर भी दोस्तों के लिए मारने में मज़ा आता था
आज पोखरे बउली से भी गंदे हो गए हैं
क्योंकि उसमें सारे घरों के मल-मूत्र बहते हैं
और लोग बहाते हैं निर्भय हो कर
नहीं तैरता अब कहीं
कभी कभार गंङ्गा में किसी का चिता जलाने के बाद
तैरता हूँ तो बस काव्यसरिता में
या कल्पना के महासागर में क्षीरसागर में नहीं
क्योंकि वहाँ सोए हैं सतफनवें साँप पर विष्णु
जिससे मुझे डर लगता है
और विष्णु को नींद से जगाने पर जो मिलेगा डंड उससे भी
खेल था गुल्ली-डंडा का खेत में
चाँप कर खेला
पहले पहल में सौ का ताड़ पेला
एक सहस्र बना बन गया पड्डो
हो गया जीत हमारे पक्षों का
अब जीतना है जीवन
धैर्य को धारण कर , खेलों के भाँति नहीं
दलित वाल्मीकि व मृत्युंजय कर्ण के भाँति
जीने के उम्मीद में मरने का प्रथम पथ है कर्मपथ
जिस पर जीना मरना है महामोक्ष इस समय।।