तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव / गोलेन्द्र पटेल
सभ्यता और संस्कृति की समन्वित सड़क पर
निकल पड़ा हूँ शोध के लिए
झाड़ियों से छिल गयी है देह
थक गये हैं पाँव कुछ पहाड़ों को पार कर
सफर में ठहरी है आत्मा
बोध के लिए
बरगद के नीचे बैठा कोई बूढ़ा पूछता है
अजनबी कौन हो ?
जी , मैं एक शोधार्थी हूँ
(पुरातात्विक विभाग ,....विश्वविद्यालय)
मुझे प्यास लगी है
जहाँ प्रोफेसर और शोधार्थी
पुरातात्विक पत्थर पर पढ़ रहे हैं
उम्मीद के उजाले से उत्पन्न उल्लास
उत्खनन की प्रक्रिया में
खोज रही है
प्रथम प्रेमियों के ऐतिहासिक साक्ष्य
मैं वहीं जा रहा हूँ
बेटा उस तरफ देखो
वहाँ छोटी सी झील है
जिसमें यहाँ के जंगली जानवर पीते हैं पानी
यदि तुम कुशल पथिक हो
तो जा कर पी लो
नहीं तो एक कोस दूर एक कबीला है
जहाँ से तुम्हारी मंजिल
डेढ़ कोस दूर नदी के पास
फिलहाल दो घूँट मेरे लोटे में है
पी लो बेटा
धन्यवाद दादा जी!
उत्खनन स्थल पर पहूँचते ही पुरातत्वज्ञ ने
लिख डाली डायरी के प्रथम पन्ने पर
मिट्टी के पात्रों का इतिहास
लोटा देख कर आश्चर्य है
यह बिल्कुल वैसा ही है
जैसा उक्त बूढ़े का था
(वही नकाशी वही आकार)
कलम स्तब्ध है
स्वप्नसागर में डूबता हुआ
मन
सोच के आकाश में
देख रहा है
अस्थियों का औज़ार
पत्थरों के बने हुए औजारों से मजबूत हैं
देखो
टूरिस्ट आ गये हैं
पुरातात्विक पत्थरों के जादे पास न पहुँचे सब
नहीं तो लिख डालेंगे
इतिहास पढ़ने से पहले ही प्रेम की ताजी पंक्ति
किसी ने आवाज दी
सो गये हो क्या ?
शोधकर्ता सोते नहीं है शोध के समय
सॉरी सर!
कल की थकावट की वजह से
आँखें लग गयीं
अब दोबारा ऐसा नहीं होगा
ठीक है
जाओ देखो उन टूरिस्टों को
कहीं कुछ लिख न दें
( प्रिय पर्यटकगण! आप लोगों से अतिविनम्र निवेदन है कि
किसी भी पुरातात्विक पत्थरों पर कुछ भी न लिखें)
श्रीमान! आप मूर्तियों के पास क्या कर रहे हैं ?
कुछ नहीं सर!
बस छू कर देख रहा हूँ
कितनी प्राचीन हैं
महोदय! किसी मूर्ति की प्राचीनता पढ़ने पर पता चलती है
छूने पर नहीं
जो लिखा है मूर्तियों पर उसे पढ़ें
और क्रमशः आप लोग आगे बढ़ें
सामने एक पत्थर पर लिखा है
जंगल के विकास में
इतिहास हँस रहा है
पेड़-पौधे कट रहे हैं
पहाड़-पठार टूट रहे हैं
नदी-झील सूख रही हैं
सड़कें उलट रही हैं
सागर सहारा का रेगिस्तान हो रहा है
कुछ वाक्य स्पष्ट नहीं हैं
अंत में लिखा है
जैसे जैसे बिमारी बढ़ रही है
दीवारों पर थूकने की
और मूतने की
वैसे वैसे चढ़ रही है
संस्कार के ऊपर जेसीबी
और मर रही हैं संवेदनाएँ
आगे एक क्षेत्र विशेष में
अधिकतम मानव अस्थियां प्राप्त हुई हैं
जिससे सम्भावना व्यक्त किया जा सकता है
कि यहाँ प्राकृती के प्रकोप का प्रभाव रहा हो
जिसने समय से पहले ही
पूरी बस्ती को श्मशान बना दी
संदिग्ध इतिहास छोड़िये
मौर्य-गुप्त-मुगलों के इतिहास में भी नहीं रुकना है
सीधे वर्तमान में आइये
जनतंत्र से जनजाति की ओर चलते हैं
आजादी के बाद शहर में आदिवासियों के आगमन पर
हम खुश हुए
कि कम से कम हम रोज हँसेंगे
उनकी भाषा और भोजन पर
वस्त्र और वक्त पर
व्यवसाय और व्यवहार पर
बस कवि को छोड़ कर
शेष सभी पर्यटक जा चुके हैं
जो जानना चाहता है
प्राचीन प्रेम का वह साक्ष्य
जिस पर सर्वप्रथम उत्कीर्ण हुआ है
वही दो अक्षर
(जिसे 'प्रेम' कहते हैं /
दो प्रेमियों के बीच /
संबंधों का सत्य /
सृष्टि की शक्ति /
जीवन का सार /
प्यार-प्यार केवल प्यार)
पास की कबीली दो कन्याएँ
पुरातत्व के शोधार्थी से प्रेम करती हैं
प्रेम की पटरी पर रेलगाड़ी दौड़ने से पहले ही
शोधार्थी लौट आता है शहर
शहर में भी किसी सुशील सुंदर कन्या को हो जाती है
उससे सच्ची मुहब्बत
दिन में रोजमर्रा की राजनीति
रात में मुहब्बते-मजाज़ी की बातें
गंभीर होती हैं
प्रिये!
जब तुम मेरे बाहों में सोती हो
गहरी नींद
निश्चिंत
तब तुम्हारे शरीर की सुगंध
स्वप्न-सागर से आती
सरसराहटीय स्वर में सौंदर्य का संगीत सुनाती है
भीतर
जगती है वासना
तुम होती हो
शिकार
समय की सेज पर
संरक्षकीय शब्द सफर में
थक कर
करता है विश्राम
चीख चलती है हवा में अविराम
साँसों की रफ्तार
दिल की धड़कन से कई गुना बढ़ जाती है
होंठों पर होंठें सटते हैं
कपोलों पर नृत्य करती हैं
सारी रतिक्रियाएँ
एक कर सहलाता है केश
तो दूसरा स्तन को
एक दूसरे की नाक टकराती है
नशा चढ़ता है
ऊपर
(नाक के ऊपर)
आग सोखती हैं आँखें आँखों में देख कर
स्पर्श की प्रसन्नता --- अत्यंत आनंद
तभी अचानक
बाहर से कोई देता है आवाज
यह तो स्वप्नोदय की सनसनाहट है
देखो! वीर अपना बल
अपना वीर्य
अपनी ऊर्जा
प्रियतम!
क्यों हाँफ रहे हो
क्यों काँप रहे हो
मैं सोई थी
निश्चिंत फोहमार कर गहरी नींद में
मुझे बताओ
क्या हुआ?
तुम्हें क्या हुआ है?
तुम्हारे चेहरे पर
यह चिह्न कैसा है?
यौन कह रहा है
मौन रहने दो
प्रिये!
ठीक है
जैसा तुम चाहो
अल्हड़ नदी
मुरझाई कली के पास है
साँझ श्रृंगार करने आ रही है
तट पर
हँसी ठिठोली बैठ गई
नाव में
लहरें उठ रही हैं
अलसाई ओसें गिर रही हैं
दूबों की देह पर
इस चाँदनी में देखने दो
प्रेम का प्रतिबिम्ब
आईना है
नेह का नीर
दर्पण है नेह की देह
नाराजगी खे रही है पतवार
दलील दे रही है
देदीप्यमान द्वीप पर रुकने का संकेत
जहाँ रेत की रोशनी है
मगर रूठी है रेह
कितनी रम्य है रात
कितने अद्भुत हैं
ये पेड़-पौधे नदी-झील पशु-पक्षी जंगल-पहाड़
यहाँ के फलों का स्वाद
प्रिये! यही धरती की जन्नत है
हाँ,
मुझे भी यही लगता है
उधर देखो
हड्डियाँ बिखरी हैं
यह तो मनुष्य की खोपड़ी है
अरे! यह तो पुरुष है
इधर देखो
स्त्री का कंकाल है
ये कौन हैं?
जाति से बहिष्कृत धर्म से तिरस्कृत
पहली आजाद औरत का पहला प्यार
या दाम्पत्य जीवन के सूत्र
या आदिवासियों के वे पुत्र
जिन्हें वनाधिकारियों के हवस-कुंड में होना पड़ा है
हविष्य के रूप में स्वाहा
हमें हमारा भविष्य दिख रहा है
अंधेरे में
प्रियतम पीड़ा हो रही है
पेट में
प्रिये!
तुम भूखी हो
कुछ खा लो
नहीं , भूख नहीं है
तब क्या है?
तुम्हारा तीन महीने का श्रम
ढो रही हूँ
निरंतर
इस निर्जनी उबड़खाबड़ जंगली पथ पर
अब और चला नहीं जाता
रुको...रु...को
ठहरो...ठ...ह...रो
सुस्ताने दो
प्रिये!
मुझे माफ करो
मैं वासना के बस में था
उस दिन
आओ! मेरे गोद में
तुम्हें कुछ दूर और ले चलूँ
उस पहाड़ के नीचे
जहाँ एक बस्ती है
पुरातात्विक साक्ष्य के संबंध में गया था
वहाँ कभी
तो दो लड़कियों ने कर ली थी
मुझसे प्रेम
जिनकी भाषा नहीं जानता मैं
वे वहीं हैं
हम दोनों
उनके घर विश्राम करेंगे
निर्भय
गोदी में ही पूछती है
प्रियतमे!
तुम मुझे
कब तक ढोओगे?
प्रिये!
जन जमीन जंगल की कसम
जीवन के अंत तक
ढोऊँगा
तुम्हें
अविचलाविराम
मेरे जीने की उम्मीद
तुम्हारे गर्भ में पल रही है
तुम मेरी प्राण हो
तुम्हारा प्रेम मेरी प्रेरणा
देखो! सामने झोपड़ी है
जो , उसी की है
वह रहा उसका घर
आश्चर्य है प्रियतम
यह तो पेड़ पर बना है
केवल बाँस से
हाँ,
ये लोग खुँखार जानवरों से
बचने के लिए ही ऐसा घर बनाते हैं
बस अंतर इतना है कि हम शहरी हैं
ये वनजाति
(अर्थात् आदिवासियों के पूर्वज)
हम देखने में देवता हैं
ये राक्षस
खैर, ये सच्चे इंसान हैं
कबीलों वालों
मालिक आ रहे हैं
स्वागत करो!
बरगद के चउतरे पर कुश की चटाई बिछी है
जिस पर बैठे हैं वे यायावर
किसी के इंतज़ार
मालिक... मा...लि..क
यह लीजिए एक घार केला
यह लीजिए कटहर
यह लीजिए बेर
यह कंदमूल फल फूल स्वीकार करें
मालिक
हम कबीले की राजकुमारी हैं
सरदार कहता है
मालिक ये दोनों मेरी पुत्री
आपकी राह देख रही थीं
आपके आने से
कबीलीयाई धरती धन्य हुई
अब आप इन्हें वरण करें
आपको अपना परिचय
उस बार हम दोनों बहनें नहीं दे सकी
इसके लिए हमें क्षमा करना
ये कौन हैं?
मेरी पत्नी
जो आपकी भाषाओं से एकदम अपरचित हैं
ये पेट से तीन महीने की हैं
थक गई हैं
सफर में चलते चलते
हम दोनों आपके उपकारों का सदैव ऋणी रहेंगे
यह मेरा सौभाग्य है
कि मैं आप लोगों से पुनः मिल पा रहा हूँ
कुछ दिन बाद
दोनों शहर आ जाते हैं
जहाँ सभ्य समाज के शिक्षित लोग रहते हैं
क्या धर्म के पण्डित?
इस कुँवारी कन्या की भारी पैर पर व्यंग्य के पत्थर मारेंगे
या फिर इन्हें संसद के बीच चौराहे पर
जाति के संरक्षक-सिपाही बहिष्कृत-तिरस्कृत का तीर मारेंगे
कुछ भी हो
कंदमूल की तरह
दोनों ने दुनिया का सारा दुख एक साथ स्वीकार कर लिया
तुम्हारे हिस्से का अँधेरा भी कैद कर लिए
अपने दोनों मुट्ठियों में
ताकि
तुम्हें दिखाई देता रहे प्रकाशमान प्रेम
और तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव
प्रियतम !
पीड़ा पेट में पीड़ा... पी...ड़ा
आह रे माई ! माई रे !
गर्भावस्था की अंतिम स्थिति में
अक्सर अंकुरित होती है आँच
अलवाँती की आँत से आती है आवाज
प्रसूता की पीड़ा प्रसूता ही जाने
औरत की अव्यक्त व्यथा-कथा कैसे कहूँ?
मैं पुरुष हूँ
नौ मास में उदीप्त हुई
नयी किरण
किलकारियों की क्यारी में
रात के विरुद्ध
रोपती है
रोशनी का बीज
जिसे माँ छाती से सींचती है
नदी की तरह निःस्वार्थ
अवनि आह्लादित है
आसमान की नीलिमा में झूम रहे हैं तारे
चाँद उतर आया है
हरी भरी वात्सल्यी धरती के खेत में
चरने के लिए
फसल
प्रेम की पइना पकड़े
खड़े हैं
पहरे पर पिता
उम्र बढ़ रही है
ऊख की तरह
मिट्टी से मिठास सोखते हुए
मौसम मुस्कुराया है
बहुत दिन बाद बेटी के मुस्कुराने पर
सयान सुता पूछती है
माँ से
क्या आप मुझे जीने देंगी
अपनी तरह
क्या मैं स्वतंत्र हूँ
अपना जीवनसाथी चुनने के लिए
आपकी तरह
आप चुप क्यों हो?
बापू आप बताइये
जिस तरह माँ ने की है
आपसे प्रेमविवाह
क्या मैं कर सकती हूँ?
धैर्य से उठाकर
पिता ने दे दी
धीमी स्वर में उत्तर
मेरी बच्ची तुम स्वतंत्र हो
शिक्षित हो
जैसा उचित समझो
करो
कॉलेज जाने का समय हो रहा है
बाहर से एक आवाज़ आई
कि चलो सखी
दूसरी आवाज आई कि आज वृक्षारोपण दिवस है
एक पुष्प का पौधा गम के गमले में लगाने के लिए ले लेना
तीसरी आवाज है
कि मेरे पास गेंदा, गुलाब, गुड़हल और गूलर है
चौथी आवाज है
कि मेरे पास केवल इतिहास की घास है
जिसे आर्युवेद के आचार्य औषधि कहते हैं
यह चरवाहे की नज़र में चौपायों का चारा है
मुझे प्यारा है
सो मैंने इसे ही जड़ से उखाड़ ली
मगर मिट्टी को लेकर चिंतित हूँ
कि इसकी उर्वरता
विपरीत परिस्थिति में कब तक बनी रहेगी
पाँचवीं आवाज वाहनों की आवाज़ में खो गई
भीतर से उसने कहा
कि आज खा कर नहीं आई हो क्या?
आओ!
चाय पी कर चलते हैं
हे सखी!
वे भी आ रहे हैं
छठवीं आवाज है
कि हाँ,
भाभी! भइया पहुंच रहे होगें
आज तो मज़ा ही मज़ा है
चुप!
माँ आ रही है
लो,
तुम सब चाय पीयो
मैं पकौड़ी बना कर लाती हूँ
नहीं, मम्मी
पकौड़ी रहने दीजिए
अभी हमें जाना है बाज़ार
कॉलेज के कुछ सामान खरीदने हैं
ठीक है
तुम सब ज़रा सम्भल के जाना
आजकल सड़कों पर
चुनावी रैलियों की वजह से अक्सर जाम लगता है
दिन-प्रतिदिन एक्सीडेंट का दर बढ़ रहा है
देखी-देखा दुर्घटनाएँ हो रही हैं
फिर भी दृष्टि है
कि अनदेखी कर रही है सृष्टि की सच्चाई
या यह कहे
कि वह सत्ता के वास्तविक सत्य से कोसों दूर देख रही है
बहरहाल तुम सब बहरी नहीं,
बल्कि बुद्धिमान हो
कोई कदम उठाने से पहले कुल के विषय में सोच लेना
असल में ज़िंदगी की यात्रा के नाम अपना अंतिम निर्णय कर देना है
नदी में नाव नहीं
बल्कि नाव में नदी को खेना है
गमी की गरमी में साथ संवेदना की बेना है
बच्ची! बात बहुत है
तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो
क्या यार!
तुम्हारी मम्मी तो महर्षिका विदुषी हैं
जब देखो
उपदेश देती रहती हैं
नहीं, सखी!
माँ है न
माँ बनने पर
स्त्री
चिंता की चिता पर जीते जी जलती रहती है
ताकि
उसकी औलाद आह्लादित रहे
जीवन भर
एक ने कहा कि सखी
मेरी माँ नहीं है
मैं जानती हूँ
माँ की कमी की पीड़ा
दूसरी ने कहा कि मैं जानती हूँ
माँ होने का अर्थ
मेरा तन भले ही यहाँ है पर मन घर पर है
एक बच्चे की माँ हूँ न
उसने पूछा कि क्या सामान इसी दुकान से लेना है
हाँ,
इसी दुकान से लेना है
चलो!
अंदर चलते हैं
सौदाबाज़ी के बाद
कॉलेज गईं वे सब
जहाँ अब रोप रही हैं नन्हे पौधे
किसी ने पूछा कि सर
इसे कहाँ लगाऊँ
उत्तर :
मेरे सर पर
मैडम ने कहा कि क्यों सर लड़कियों पर क्रोध
क्यों?
क्या आज मालकिन नाराज़ हैं?
और
फिर हँसने लगीं
अचानक सभी आँखें कक्षाध्यापक की ओर
मुड़ जाती हैं
हवा में हँसी गूँजने लगती है
कुछ क्षण के बाद
याद आई
कि मुहब्बत के मुहूर्त में मिलना है पिछवाड़े
प्रियतम से
वह शौच का बहाना बनाकर जाना चाहती है
मगर उसे मालूम है
कि मैदान और मूतवास न लगने पर भी सखियाँ
इसमें सहयोग करती हैं
ये ऐसी क्रियाएँ हैं
जो न चाहते हुए भी हो जाती हैं मित्रों के साथ
पर पेट दर्द के बहाने से जाती है कक्षा में
जहाँ केवल और केवल उसका प्रेम है
दोनों दीवार के पीछे
प्रेम की नयी परिभाषा गढ़ते हैं
अक्सर हम पैखाने में लिखा पढ़ते हैं
कि तुम सिर्फ़
मेरी हो
किसी के आने की आहट सुन कर
वह छुड़ाना चाहती है हाथ
जहाँ प्रेम का अंतिम लक्ष्य है
काम
वहाँ वह नहीं होता है
किसी ने ठीक ही कहा है
कि भावना में भावना का वरण करना है
दरअसल दर्द को निमंत्रण देना है
मुहब्बत बनाम बदनाम नाम
लेना है वाम हस्त में थाम
ख़बरों को ख़बर है
कि
बिन मौसम बारिश और घाम का होना है
सुबह-शाम
राग के रव में रोना है
खैर,
पैर परंपरा की बेड़ियों से मुक्त है
मगर मुहब्बत की मर्यादाएं हैं
सुख समय की सेज पर जब एकदम के लिए सो जाता है
तब सूरज सागर में छुप जाता है
और
आसमान में चाँद नज़र नहीं आता है
तकलीफ़ में टिमटिमाते तारे की तान है
कि
प्रेम में प्रसन्नता का पल जल्द बीतता है
दुःख दलदल में दोनों को खींचता है
सरसराहट में सिसकने का स्वर सुनाई देता है
शोक में शोर संगीत के ख़िलाफ़ हो रहा है
गली-गली में हल्ला ही हल्ला है
धुन को धुनने का धूम मचा है
शायद ही कोई शब्द किसी के पेट में पचा है
जिसका संबंध है प्रेम से
कह सकते हैं
कि
संबंध की सरहद पर संग्राम हो रहा है
पिस्तौल के बजाय मुँह से गोलियाँ चल रही हैं
प्रेमियों के परिवार मारे जा रहे हैं
ताने की तोप से
व्यंग्य की बंदूक से
जहाँ देखो वहाँ एक ही वाक्य दुहराया जा रहा है
कि जैसी करनी वैसी भरनी
जब लड़की की माता-पिता ही भिन्न-भिन्न जातियों के हैं
प्रेम से परिणय तक की यात्रा बहुत कठिन है
किंतु करने वाले करते हैं
जैसे कि वे दोनों दाम्पत्यजीवन के सूत्र में सुखी हैं
लेकिन उसकी लड़की की
तकदीर की लकीर कुछ और है
वह पेट से है
आह! प्रेम की कैसी प्रगति है
उसके प्रेमी को जो कि बिना परिणय का पति है
जो अपने परिवार के विरुद्ध प्रेम को चुना
उसे ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ा
उसके ही लोग उसे बेमौत मार दिये हैं
जिसकी वजह से वह कुँवारी
अब विधवा है
इस दुनिया में उसकी दुर्गति है
क्योंकि वह गर्भवती है
सच्ची मुहब्बत करने वाले भले ही मर जाते हैं
मगर मुहब्बत नहीं
मुहब्बत तो जिंदा रहती है
लेकिन आज यह कहने में संकोच नहीं है
कि रोष की रस्सी में सबकी बँधी मति है
कामदेव की रति चीख रही है
कि आधुनिकता की गति में प्रेम की क्षति है
उसके बच्चे का क्या होगा?
जो अभी पेट में है
पता नहीं लड़की है या लड़का
ननद सहेली है
मगर वह इस वक्त अकेली है
उसे गोलेन्द्र पटेल की 'देह विमर्श' शीर्षक नामक
कविता याद आती है कि
("जब
स्त्री ढोती है
गर्भ में सृष्टि
तब
परिवार का पुरुषत्व
उसे श्रद्धा के पलकों पर
धर
धरती का सारा सुख देना चाहता है
घर ;
एक कविता
जो बंजर जमीन और सूखी नदी की है
समय की समीक्षा --- ‘शरीर-विमर्श’
सतीत्व के संकेत
सत्य को भूल
उसे बांझ की संज्ञा दी।...")
जो भाइय के रिश्ते को स्वीकार करती है
कुँवारे में गर्भवती होने को पाप नहीं,
पुण्य मानती है
उसे पता है कि
पवित्र प्रेम का फल है
कि भाभी का भारी पाँव है
पर पूर्वजों का दाँव है
कि उनके लिए कहीं नहीं है छाँव
न शहर में न गाँव में
चिड़ियाँ चुप हैं
नहीं कर रही हैं चीं-चीं चाँव-चाँव
नौ महीने आँखों में रही रात
नर्स घर की नाउन से बोली है
कि बेटा हुआ है
नाना-नानी की बात
जग जान रहा है
जब किसी की बेटी को बेटा पैदा होता है
वह भी पहले दफा
तब नानी-नाना की ख़ुशी का क्या कहना
आप कल्पना कर सकते हैं
अपने घरों में देख सकते हैं
नाती के रूप में नये जीवन का आरंभ
वह अपने मायके में बच्चे को पालती है
पढ़ी लिखी है
अध्यापन की नौकरी करती है
विधि का विधान है
कि मनुष्य में भूलने की क्रिया अधिक सक्रिय होती है
जिसकी वजह से वह समय के साथ
बड़ी से बड़ी बात भूल जाता है
भूलना एक कला है
इससे हम सबका भला है
कुछ वर्ष बाद वह दूसरी शादी करती है
इसमें प्रेम नहीं समझौता है
कि पति की पहली पत्नी की एक बेटी है
और उसका एक बेटा
'हम दो हमारे दो' के सिद्धांत पर
जीवन के नये सूत्र में बँध गयी है
पर नये पति के पूछने पर कहती है
कि वह अपना पहला प्यार भूली नहीं है
यार यादों में है
अब भी है
और आगे भी रहेगा
हे प्रियतम!
जब तक ज़िंदगी है तब तक रहोगे तुम
मेरे हृदय में, मेरी साँसों में
मेरी धड़कन में, मेरे मन में
हे नव सजन! मेरे पति परमेश्वर!
आप भी मेरे हृदय में हैं
आप अपने को जब ढूँढेंगे मुझ में
सदैव पायेंगे
स्त्री आदमी की अनुभूति में होती है
उसका हृदय व्हेल के हृदय से भी बड़ा होता है
शायद दुनिया का सबसे बड़ा दिल है
जिसकी वजह से हम
पिता, पति व पुत्र तीनों के दुःख को
स्वयं में सोखने में सक्षम हैं
आप मेरे हमदम हैं
मैं तुम्हारी शक्ति हूँ
दोस्तो! स्त्री पर लिखना
दरअसल अपने भीतर की स्त्री से बतियाना है
पुरुष केवल पुरुष नहीं है
उसके अंदर भी होती है स्त्री
तभी तो शिव अर्धनारीश्वर हैं
यह तो ठीक है
लेकिन लोक में पुरुष का वर्चस्व है
उसके जीवन में मेहरारू का महत्व है
मगर महत्व सिर्फ इतना
कि वह वासना की वस्तु है
वर्तमान में इसी की सत्ता है
इसकी महत्ता है
कि यह स्त्री को गढ़ता है
इसे गढ़ने की कला परंपरा सीखाती है
पर पुस्तकीय पंचायत में विर्मश कहता है
कि ये एक-दूसरे के पूरक हैं
इन्हें हक है
कि ये आपस में लड़ें
झगड़ें
रूठें
अंततः करें आत्मालिंगन
बहरहाल किसी विधवा का विवाह
आज भी बहुत मुश्किल से हो पाता है
उनकी उम्र में अंतर इतना होता है
कि ३६ को ६३ मानने की आज़ादी है
आधुनिक प्यार लव-मैरिज का आदी है
जन! जानते हो
विशेष इस अर्थ में इनकी शादी है
कि अब इनकी बरबादी है
जहाँ जिरह से जीवन ज़हर हो गया है
यानी बहस की बात
दुख की गठरी सर पर लादी है
विश्व में
इस विडंबना को सहने वाली
स्त्रियों की बड़ी आबादी है
जो रोज़ रो रही हैं
और
खो रही हैं धैर्य-धर्म
स्त्री पतिव्रता होती है
परंतु पुरुष पत्नीव्रता नहीं
पुरुषार्थ है
पर स्त्र्यार्थ (स्त्री+अर्थ) नहीं
इस नहीं में शामिल है नर का नियम
प्रियतम!
नरत्व नारीत्व का नेता है
फिर भी
देवी का दरजा तो देता है
लेकिन सच्चाई यही है
कि सामाजिक शब्दकोश में
हम कमजोर हैं
सुकोमल हैं, मुलायम हैं,
नाज़ुक हैं,
सृष्टि की सुंदरता हैं,
धरती हैं,
नदी हैं, झील हैं
रोशनी हैं, रसोई हैं
उम्मीद हैं, आशा हैं
ज़िंदगी की जिजीविषा हैं,
जिज्ञासा हैं,
भूख हैं, भाषा हैं
अभिलाषा हैं
सृष्टि की शक्ति हैं
आदमी की अभिव्यक्ति हैं
आत्मानुभूति हैं
खैर,
ख़ुदा से जुदा होकर
भक्ति की खेती करना संभव नहीं है
चलो!
नौकाविहार करते हैं
प्रिये!
तुम मेरी भक्तिन हो
यह कहने की जरूरत नहीं है
न ही मुझे किसी को भक्त बनाने की चाहत है
पति-पत्नी के बीच विश्वास का होना जरूरी है
न कि भक्ति-भाव
प्रिये! मुझे नींद लग रही है
मैं सोना चाहता हूँ
नदी में
नाव को घाव
लगा है
पर वह जाना चाहती है
उस पार
काल का केवट कह रहा है
कि
एक अधेड़ उम्र
जिंदगी के इतिहास में
पहली बार
इतवार को
नदी के इस पार
मुझे किस किया
मैंने देखा
दिन ढल चुका है
अंधेरी रात में
वात्सल्य से वासना तक की
यात्रा
कर रही है
पहली मुलाकात
क्या है बात?
हालात
हँस रहा है
भँवर में भाव
फँस रहा है
वह पूछता है
कि आपके पतिदेव वृद्ध हैं
और
आप अभी अप्सरा लग रही हैं
आख़िर क्या रहस्य है?
वह कहती है
कि यह उम्र का अंतर है
जब हम दाम्पत्य के सूत्र में बँधें
तब वे 45 के थे
और
मैं 25 की थी
आज मैं 45 की हूँ
और
वे 65 के हैं
उम्र के उजाले में उलाहना ही उलाहना है
तरंगें कह रही हैं
कि कल तलाक की तारीख़ है
जैसे जल की सतह पर
पतवार की चीख है
वैसे ही मेरे भीतर पीड़ा की पीप है
और
कपाल के केश में लीख है
मेरे रूप के भावी भूप
दिल में दर्द का दीप है
एक-दूसरे से अलग होने की वजह है
विश्वास के बंधनों का टूट जाना
जिसकी जड़ में है
सफ़र के समय
रति की रेलगाड़ी का छूट जाना
अब मैं स्वतंत्र जीना चाहती हूँ
मेरी इच्छा
बिल्कुल नदी की
बहती धारा की तरह है
इसकी गति में ही मेरी प्रगति है
न्याय के नोटिस में नर की जय है
न्यायाधीश का
उसके पक्ष में निर्णय है
नारी के नयन में नीर
उसके शरीर का नहीं
बल्कि आत्मा की पीड़ा है
जो काट रहा है
वह कुल का क्रोधित कीड़ा है
बच्चे बड़े हैं
उनकी चिंता नहीं है
वह प्रथम प्यार की यादों में खोई हुई है
सूरज डूब रहा है सागर में
उमंगें टकरा रही हैं उर में
पर्वत-पहाड़ हिल रहे हैं
पेड़-पौधे झूम रहे हैं
एक-दूसरे को चूम रहे हैं
बाहर हवा में धूल ही धूल है
अंदर तूफ़ानी आँधी आई हुई है
अस्तित्व खतरे में है
प्रियतम!
मेरे पहले बलम
मुझे ले चलो
अपनी दुनिया में
मैं तुम्हारी बाँहों में मुहब्बत के मौसम की तरह
सोना चाहती हूँ
जैसे वह सो गया है
इस संसार के प्यार में
मृत्यु की अँकवार में
सजन!
मैं संवेदना के सिकहर पर लटकना चाहती हूँ
मगर वहाँ मेरी आँखों का तारा
तुम्हारी अंतिम निशानी
मुझे लटकने नहीं देगा
अब इस देह से मोह नहीं है
असल में मैं तो उसी दिन मर गई थी
जिस दिन तुम मरे थे
सुबह-सुबह हल्ला है
कि फलाने की मम्मी नदी में कूद कर जान दे दी
नदी में, कुएँ में
अक्सर प्रेम में पड़ी हुई स्त्रियाँ
कूदती हैं
यानी यहाँ कूद मरना नारी की
नियति है
लाश पुलिस ले गई है
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है
कि ये कूदी नहीं हैं
इन्हें मार कर फेंका गया है
हत्यारे की खोज जारी है
टीवी पर, सोशल मीडिया पर
समाचारपत्रों में
यह ख़बर वायरल हो रही है
कि उसे न्याय नहीं मिला
इसलिए उसने ख़ुदकुशी कर ली
कुछ दिनों के बाद
उसका बेटा बता रहा है कवि से
यानी मुझसे
कि उसके पिता ही
असली कातिल हैं
मित्र!
एक असुर का कहना है
कि पत्नी का कातिल होना
असल में आदमी की आदमियत की मृत्यु होना है
कम से कम इस संदर्भ में
हमारी जाति
अभी कलंकित नहीं हुई है
यानी हमें देवत्व का दंभ त्याग कर
असुरों की अच्छाई अपनाना चाहिए
तभी
हम सही अर्थ में मनुष्य हो पायेंगे
हमारे आसपास
धीरे-धीरे लोग जुटते हैं
हम अपने टॉपिक चेंज करते हैं
और
उसके एक प्रश्न के उत्तर में
मैंने कहा कि
मेरी दृष्टि में
जो पिता
या पति या पुत्र या प्रेमी
कभी
नहीं देता है स्त्री को दर्द
वही है
एक सच्चा मर्द
वह ननिहाल में पला-बढ़ा है
उसे नाना का पेशा पसंद है
वह पुरातत्वविज्ञान का प्रोफेसर बनना चाह रहा है
उसका जेआरएफ इसी वर्ष हुआ है
मेरी आँखें गवाह हैं
कि
उसकी करुण कहानी सुन कर
मेरा मन, मेरा दिल
आज
ख़ूब रोया है
क्या कल भी रोयेगा
मेरा मन
प्रिय पाठक!
पूछ रही है मेरी सिसकी
तुम से
उत्तर दो!
हम दोस्त हैं
आपस में सुख-दुख साझा करते हैं
करते हैं आधी-आधी रात
बात
हम खेले हैं साथ
होलापात
और
एक ही थाली में खाये हैं
भात
वह पत्थर पर पढ़ता है
मानव का इतिहास
मैं गढ़ता हूँ
घास
उसके खेत में
उसे शक्त नफ़रत है लव-अफेयर्स से
उसकी नज़रों में प्रेम
स्वयं में प्रश्न है
उसे प्यार है
करेंट अफेयर्स से
वह मानस की मिट्टी में रोपना चाहता है
मनुष्यता का विशाल वृक्ष
वह पीड़ा के पर्वतों को उखाड़
फेंकना चाहता है
महासागर में
उसकी जिजीविषायें फँसी हैं
जीवन के जंजाल में
जैसे जंगल के झाड़-झंखाड़ में
फँसा है साँड़
और
पीछे से गीदड़-सियार
नोंच रहे हैं गाँड़
यहाँ नोंचना कायरता नहीं
भूख की चतुराई है
आह रे माई!
आहत की अँगड़ाई है
उसे दुःख इस बात का है
कि जंगल जल रहा है
नदियाँ पट रही हैं
हिमालय
होश में नहीं है
चारों ओर धुआँ ही धुआँ है
अशुद्ध हो गया है
वात
फेफड़ा कमजोर हो रहा है
दुःख खड़ा है द्वार पर
और उसका गात
ग्रस्त हो चुका है अनेक रोगों से
वह कह रहा है लोगों से
कि मृत्यु बढ़ी आ रही है
उसकी ओर
लंबी है रात, लंबा है भोर
मचा है शोर
कि घर में घूँसा हुआ चोर
चाकूमार है
एक नहीं, चार हैं
उसका घर केवल घर नहीं
पुस्तकालय है
जिसमें आर्कियॉलॉजी की आत्मा है
जो असल में उसकी ज़िन्दगी की पूँजी है
विस्फोट की आवाज़
आज गगन में गूँजी है
जल गईं इच्छाएँ
राख हो गये सभी स्वप्न
स्वप्नों का मरना
जीते जी जिंदा लाश हो जाना है
मित्र उठो!
तुम्हें लक्ष्य पाना है
इस लक्ष्य में शामिल है
तुम्हारी माँ की इच्छा
नाना की ख़्वाहिश
और
तुम्हारी सबसे बड़ी चाहत
मित्र!
मुश्किलें मनुष्य को मजबूत बनाती हैं
तुम्हें याद ही होगा
कि मेरे घर भी
कभी आग लगी थी
जिसमें जल गई थीं मेरी रचनाएँ
बचपन की कुछ कृतियाँ
कुछ स्मृतियाँ
उस वक्त
मैं भी भीतर से टूट गया था
मेरी रचनात्मकता रो रही थी
तब तुम्हारी भेंट की हुई पुस्तकों ने सम्भाला था मुझे
हाल ही में होनी की वजह से
मेरे घर के दीये बुझे हैं
मैं जगाना चाहता हूँ तुझे
गम की गहरी नींद से
मित्र!
जिद से जीत सकते हो कोई भी जंग
मैं तुम्हारे साथ हूँ
ठीक है मित्र
मुझमें आ गई है उमंग
वह बनाता है समय के श्यामपट पर
दुनिया का चित्र
जिसमें युद्ध की वजह से मरे हुए मानव के
कंकाल एकसाथ कह रहे हैं
कि वे उन शहंशाहों की शक्ति हैं
जो दुनिया जीतना चाहते थे
खैर, मुझे तो केवल और केवल
अपने कल को जीतना है
और संघर्ष की स्याही से लिखना है
संवेदना का शिलालेख
दर्द के दर्पण में देख-देख कर
मित्र गोलेन्द्र! बहुत बहुत धन्यवाद!
कि तुम मुझे पुनः खड़ा किये
बहुत बहुत धन्यवाद!
कि तुम मेरा सपना बड़ा किये
मित्र!
मैं तो चाहता हूँ
कि मेरे सभी मित्रों का स्वप्न
बड़ा हो
मेरे प्रिय पुरातत्वज्ञ!
आज तुम्हारा जन्मदिन है
तुम्हें ख़ूब बधाइयाँ
और
अनंत आत्मिक शुभकामनायें
चलो!
केक काटो
और बाटो ख़ुशियाँ
ठीक उसी तरह
जिस तरह सूरज बाटता है रोशनी
फूल बाटता है ख़ुशबू
मित्र!
ख़ुद को दूसरे के लिए
समर्पित करना है
असल में मनुष्य होना है
परंतु अब पृथ्वी पर मनुष्य बहुत कम हैं
हाँ,
यह तो है
लेकिन जो लोग मनुष्य हैं
वे लोग चाहें
तो शेष भी मनुष्य हो सकते हैं
बाहर से किसी ने आवाज़ दी
कि आपको जन्मदिन मुबारक हो
यह तो लड़की की आवाज़ है
यह कौन है
मैं मौन उसके बारे में सोच रहा हूँ
कि इसके विषय में
मुझे तो कभी बताया नहीं
तभी एक अन्य मित्र ने मुझसे पूछा
कि कहीं यह उसका प्यार तो नहीं है
मैंने कहा
नहीं,
कोई रिश्तेदार होगी
भला जिसे प्रेम से नफ़रत है
उसकी कोई गर्लफ्रैंड हो सकती है
वह मेरी चुप्पी का अर्थ समझ गया
उसने कहा
कि वे मेरी दीदी हैं
सौतेली हैं लेकिन लगती नहीं हैं
कि वे सौतेली हैं
मेरी आँखें पहली दफ़ा देखी
कि रिश्ते की रोशनी
बहन के आने पर आँगन में उतरी है
उनका स्वभाव अच्छा है
बहुत अच्छा है
उनकी बातें अच्छी हैं
वे हिंदी विभाग....विश्वविद्यालय की शोधार्थी हैं
उन्होंने मुझसे पूछा
कि मैं अभी क्या कर रहा हूँ
मैंने कहा कि
मैं बीएचयू में हिंदी ऑनर्स से स्नातक कर रहा हूँ
फिर मेरा परिचय मित्र ने स्वयं कराया
दोस्तो! दोस्ती दुनिया की
वह दवा है
जिससे जख़्म का दर्द जल्द कम होता है
हम जो बातें माँ-बाप-बच्चे-पत्नी से छुपाते हैं
उन बातों को
दोस्तों से साझा करते हैं
ताकि मन भर के मन को हल्का कर सकें
कह सकते हैं कि
एक अच्छा दोस्त देवता से बढ़ कर होता है
वे कहती हैं कि
तुम दोनों की दोस्ती को किसी की नज़र न लगे
किसी अन्य ने कहा कि
दीदी!
दरअसल दोस्ती की पहली शर्त है त्याग
जिसमें अन्य तत्व हैं
मगर विश्वास का अधिक महत्व है
मैं अपने दोस्त की बात दर्ज कर रहा हूँ
कि एक सच्चा दोस्त दुःख हरता है
जो कि सुपथ पर चलने को प्रेरित करता है
दोस्तो!
यह एक दोस्त की व्यथा-कथा को
कविता में ढ़ालने की कोशिश है
मैं चाहता हूँ कि
प्रिय पाठक से मिले
यही आशीष
कि झुके न कभी दोस्ती का शीश
मेरा दोस्त
मेरे इश्क का ईश है!
जो सभी के सामने कह रहा है कि
मित्र गोलेन्द्र!
आज तुम मेरे स्वप्न में आये थे
मैंने कहा कि
क्या संयोग है
यार!
कि आज शाम फोन पर
एक अजनबी लड़की ने कहा
कि मैं उसके ताजे स्वप्न का नायक हूँ
तो मुझे याद आईं
उन आत्मीय सखियों की बातें
जो उन्होंने कुछ इसी तरह कही थीं
कि वे सपने में मेरी माँ से झगड़ रही थीं
माँ की तसवीर शायद ही
मैंने सोशल मीडिया पर साझा की हो
यह कहते हुए कि ये मेरी माँ हैं
दोस्तो! स्वप्न में छवि गढ़ना
आत्मीयता को नहीं दर्शाता है
मैंने भी स्वप्न में देखा है
मगर केवल मार्गदर्शकों को
जो सखियाँ अक्सर अपनी बातें भूल जाती हैं
उनकी मित्रता पर संदेह होना स्वभाविक है
या फिर कह सकते हैं
कि उनके स्वप्न में स्वार्थ है
स्वप्नशास्त्र के शब्दों में कहें
तो नदी में नहीं
बल्कि नींद में नाविक है
जो कि खे रहा है पतवार
पर नाव स्थिर है
अच्छा,
मित्र गोलेन्द्र!
तुम्हारे प्रेम की कथा
तुम्हारे प्राथमिक दोस्तों से सुनी है
क्या यह सच है
कि वह छोटी जाति की लड़की थी
और तुमसे इतना प्यार करती थी
कि उसके हित-नात भी
जानते थे कि तुम उसके प्रेमी हो/
लवर हो/
आशिक हो/
हाँ,
मित्र!
यह सच है कि वह फलाने जाति की थी
जिसे लोग छोटी जाति कहते हैं
खैर,
उस वक्त न मुझे न उसे
न मेरे अन्य साथियों को
किसी को भी
जाति का अर्थ मालूम नहीं था
हम सब एक दूसरे के दोस्त थे
उन्हीं दोस्तों में से एक वह भी थी
कह सकते हो
मेरा पहला सच्चा दोस्त
वही थी
वह मुझसे तीन वर्षों से प्रेम कर रही थी
पर मुझे उसके प्यार का अहसास
निम्न घटना के बाद हुआ
कहते हैं न कि सच्चे मन से
पत्थर को पूजने पर वह पुरुषोत्तम हो जाता है/
कंडी को पूजने पर कृष्ण
फिर तो मैं मनुष्य हूँ
और ऊपर से
उसकी मुहब्बत के मंदिर की मूर्ति हूँ
हाँ,
यह भी सच है
कि मैं उसके घर के सभी सदस्यों से बातें की
उसकी हिताई-नताई में भी की
पर उसके पिताजी से कभी नहीं की
जब तक वह धरती पर थी
हम दोनों के बीच प्यार कम दोस्ती जादे थी
दूसरे दोस्त से
जो कि प्राथमिक कक्षाओं से अभी तक
मेरे साथ है
उसकी ओर मुड़कर मैंने कहा
कि तुम्हें याद ही होगा
संवत 2073 की वसंत पंचमी की रात
तुम्हारे ही साथ
मैं सरस्वती माता की सेवा में लगा था
ठीक आरती के वक्त
मेरी मोबाइल में रिंगटोन बजा
कि "ओ! यारों माफ़ करना कुछ कहने आया हूँ..."
तुमने कॉल को रीसव किया
दिल दहला देने वाली ख़बर थी
कि वह कार एक्सिडेंट की वजह से फलाने हास्पिटल में एडमिट है/
भरती है
देखने,
हम दोनों साथ गये
तो पता चला कि मेरा दोस्त आईसीयू में है
(अन्य की आँखों से मेरा प्यार)
हम लोग बिना देखे ही वापस लौट आए
लेकिन
छह दिन बाद होश में आने पर
वह मुझे देखना चाहती थी
पर जब मैं हास्पिटल पहुंचा
उसकी देह से दूर जा चुकी थी आत्मा
उसके जाने के बाद
उसकी दोस्ती को प्यार की संज्ञा
सुधी साथियों ने दी
मित्र!
मैं सच कहता हूँ
कि वह मुझसे से प्रेम करती थी
पर मैं उसे दोस्त ही मानता था
जैसे तुम मेरे अत्यंत आत्मीय दोस्त हो
ठीक उसी तरह
वह थी
अच्छा मित्र
उसके बाद किसी दूसरी लड़की से
तुम्हारी दोस्ती-वोस्ती हुई
कि नहीं
नहीं,
फिलहाल कोई लड़की मेरा मित्र नहीं है
न ही किसी को मित्र बनाने की
मेरी चाहत है
क्योंकि दो-तीन महीने में ही पता चल जाता है
कि उनकी दोस्ती की दिशा क्या है
वे क्या चाहती हैं?
हाँ,
कुछ सहपाठियों को बोल देता हूँ
कि तुम मेरे मित्र हो
ताकि उन्हें दुःख न हो
मगर मेरी मित्रता का मतलब
तुम हो, मित्र
सिर्फ तुम हो
मित्र गोलेन्द्र!
यह तो मेरा सौभाग्य है
कि आप मेरे परममित्र हैं
वह भी एक सर्जक सहृदय साथी
सखा!
पता नहीं, मैं सहृदय हूँ कि नहीं
यह तो मैं नहीं जानता
पर मेरी कोशिश यही है/ और रहेगी
कि मेरी मित्रता पर कोई अँगुली न उठाये
वरना मेरी मनुष्यता जीते जी मर जायेगी
एक अन्य मित्र :
क्या तुम्हें उसकी याद आती है?
हाँ, यार
याद ही तो है
जिसकी वजह से आत्मा की अग्नि
अभिव्यक्ति में बनी हुई है
बहरहाल ये बताओ!
कि तुम सिक्कों पर शोध क्यों करना चाहते हो
वह कहता है
कि सिक्के केवल इतिहास का सच नहीं बताते
वरन समय की शक्ति से अवगत कराते हैं
इतिहास में जब-जब सिक्के बदले हैं
तब-तब शासक बदले हैं
आज सिक्के ही नहीं नोट भी बदल रहे हैं
यह 'बदलना' क्रिया राजनीतिक हो गई है
लोग नाम बदल रहे हैं
(गाँव का/
शहर का/
जिला का/
स्टेशन का/ एवं अन्य का नाम)
मित्र!
एक ओर
मेरे शोध के साहित्यिक साक्ष्य कह रहे हैं
कि जिसे संवेदना के सिक्के की पहचान है
समझ लो! वह इंसान है
वहीं दूसरी ओर
सिक्के कह रहे हैं कि
यह संवेदना के बाज़ारीकरण का समय है
सत्ता के सिनेमा में सच पर झूठ की विजय है
मित्र!
कैसे कहूँ कि
वे जो साहित्य से दूर हैं
सिनेमा को सच्चा इतिहास मान बैठते हैं
उन्हीं से वे ऐंठते हैं पैसे
तुम तो साहित्य के विद्यार्थी हो
तुम्हें तो
सिक्के बदलने का शोक है
मनुष्यता की ओर मिसाइल की नोक है
सो, तुम्हारा डरना
केवल तुम्हारा डरना नहीं है
असल में सक्कों के ऐतिहासिक किस्सों में झाँकना है
संवेदना के सागर में डूबना है
मित्र!
बहुत दुःखद मौसम है
दुःख का दोपहर है
तुम्हारी दीदी मैसेज की हैं
कि नाना-नानी नहीं रहें
एक उम्र के बाद
आत्मा अपना वस्त्र बदलती ही है
चाहे वस्त्र नया ही क्यों न रहे
बहरहाल,
तुम्हारी नानी-नाना की तेरही किस दिन है
वे सच्ची मुहब्बत की मिसाल हैं
मेरी नज़र में प्रेमी-प्रेमिका का ऐसा कोई जोड़ा नहीं है
जो इतना अधिक जीने के बाद
एक ही दिन दुनिया छोड़ा हो
तुम्हारे नाना की भेंट की हुई पुस्तकें
सदैव उनकी याद दिलाती रहेंगी
और नानी के हाथ के हलवे का स्वाद
उनकी याद
मित्र!
28 नवंबर को है
यह बताने ही वाला था
किंतु पता नहीं क्यों पहले
स्वप्न की बात बताने की इच्छा हुई
सो, मैंने बताई
और यहाँ तक यात्रा हुई
तुम सब जरूर आना
मैं अकेला हो गया हूँ
सारा काम तुम्हीं लोगों को देखना है/
करना है
ठीक है मित्र
तेरहवीं की रात
एक मित्र नशे में कहा
कि एक बूँद, एक कौर है
और आगे लड़खड़ाती है ज़बान
पर हम सुनते हैं कि
सेवा में सोमरस समर्पित है
नानाजी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है
उसके कहने की शैली ही ऐसी थी
कि हम सब एकसाथ ठठा के हँसें
शोक को सुख की तरह
जीने का मज़ा ही कुछ और है
उसने कहा कि
सच में शोक को सेलिब्रेट करने का यह दौर है!
(©गोलेन्द्र पटेल
२८-११-२०२०)
■
संक्षिप्त परिचय :-
नाम : गोलेन्द्र पटेल
उपनाम/उपाधि : गोलेंद्र ज्ञान , युवा किसान कवि, हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय, काशी में हिंदी का हीरा एवं दिव्यांगसेवी
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) व एम.ए. (अध्ययनरत), बी.एच.यू.।
भाषा : भोजपुरी, हिंदी, पालि, संस्कृत, अंग्रेजी व तमिल (अध्ययनरत)।
विधा : नवगीत, कविता, कहानी, निबंध, नाटक व आलोचना।
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :
कविताएँ और आलेख - 'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,'साहित्य बीकानेर' ,'उदिता'आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।
विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं।
ब्लॉग्स, वेबसाइट और ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-
गूगल के 100+ पॉपुलर साइट्स पर - 'कविता कोश' , 'हिन्दी कविता', 'साहित्य कुञ्ज', 'साहित्यिकी', 'जनता की आवाज़', 'पोषम पा', 'अपनी माटी', 'द लल्लनटॉप', 'अमर उजाला', 'समकालीन जनमत', 'लोकसाक्ष्य', 'अद्यतन कालक्रम', 'द साहित्यग्राम', 'लोकमंच', 'साहित्य रचना ई-पत्रिका', 'राष्ट्र चेतना पत्रिका', 'डुगडुगी', 'साहित्य सार', 'हस्तक्षेप', 'जन ज्वार', 'जखीरा डॉट कॉम', 'संवेदन स्पर्श - अभिप्राय', 'मीडिया स्वराज', 'अक्षरङ्ग', 'जानकी पुल', 'द पुरवाई', 'उम्मीदें', 'बोलती जिंदगी', 'फ्यूजबल्ब्स', 'गढ़निनाद', 'कविता बहार', 'हमारा मोर्चा', 'इंद्रधनुष जर्नल' , 'साहित्य सिनेमा सेतु' , 'साहित्य सारथी' , 'लोकल ख़बर (गाँव-गाँव शहर-शहर ,झारखंड)', 'भड़ास', 'कृषि जागरण' इत्यादि एवं कुछ लोगों के व्यक्तिगत साहित्यिक ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित हैं।
प्रसारण : राजस्थानी रेडियो, द लल्लनटॉप , वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)
अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित
काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।
सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022" और अनेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र।
मॉडरेटर : 'गोलेन्द्र ज्ञान' एवं 'कोरोजीवी कविता' ब्लॉग के मॉडरेटर हैं। सद्य 'गोलेन्द्र ज्ञान' त्रैमासिक ई-पत्रिका का प्रकाशन।
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