Monday, 21 October 2024

धम्म दीपोत्सव / धम्म दीपदानोत्सव / प्रज्ञात्मक प्रकाशोत्सव / बौद्ध धम्म दीपोत्सव पर्व : गोलेन्द्र पटेल

 'धम्म दीपोत्सव' की हार्दिक शुभकामनाएं!

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।

बुद्धं सरणं गच्छामि।

धम्मं सरणं गच्छामि।

संघं सरणं गच्छामि।


चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय

लोकानुकंपाय अत्थाय हिताय सुखाय देव मनुस्सानं।

-देसेथ भिक्खवे धम्मं आदिकल्याण मंझे कल्याणं- परियोसान

कल्याणं सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुन्नं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेथ।

[महावग्ग: : विनयपिटक]

सवर्णवादी/ ब्राह्मणवादी बौद्ध भिक्खुओं का मानना है कि "धम्म दीपोत्सव" वैशाख पूर्णिमा या आषाढी पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमा या अशोक धम्मविजय दसमी या 14 अप्रैल को मनाया जाना चाहिए, कार्तिक अमावस्या के दिन नहीं, क्योंकि इस दिन उनकी सजातियों की दीपावली है। बहरहाल, हमारा मानना है कि असली बौद्ध भिक्खुओं, भिक्खुनियों, उपासकों, उपासिकाओं को अपने उत्सव, महोत्सव, पर्व, त्योहार या किसी भी तरह की धम्मतिथि को हाइजै़क होने से बचाना चाहिए। कार्तिक अमावस्या के दिन ही धम्म दीपोत्सव/धम्म दीपदानोत्सव/प्रज्ञात्मक प्रकाशोत्सव मनाना चाहिए, क्योंकि ज़्यादातर इस दिन आपके लोग ही यानी बहुजन समाज के लोग ही अंधविश्वास की ओर उन्मुख होते हैं, ओझा-सोखा, पंडित-पुजारी-पुरोहित, मुल्ला-मौलवी एवं धर्म के ठेकेदारों का अंधभक्त बनते हैं और फिर जीवन भर रोते हैं!

धम्म दीपोत्सव का आयोजन बौद्ध धर्म के सिद्धांतों, जैसे कि करुणा, प्रेम, प्रज्ञा, शांति, शील, अहिंसा, सद्भावना और समता को फैलाने और मानवता के कल्याण के लिए किया जाता है। धम्म दीपदानोत्सव के दिन बौद्ध अनुयायी मंदिरों/मठों में दीप जलाकर उन्हें बुद्ध, धम्म (बुद्ध के उपदेश) और संघ (बौद्ध भिक्षु संघ) के प्रति समर्पित करते हैं। इसे आध्यात्मिक जागरूकता और आत्मशुद्धि का अवसर माना जाता है, जहाँ लोग धम्म के पथ पर चलने की प्रतिज्ञा करते हैं। दीपदान का उद्देश्य अज्ञानता के अंधकार को दूर करना और ज्ञान का प्रकाश फैलाना है। धम्म दीपदानोत्सव विशेष रूप से ध्यान, प्रार्थना और सामाजिक सेवा के माध्यम से व्यक्तिगत और सामाजिक सुधार का संदेश देता है, जिसमें करुणा, शांति और अहिंसा पर जोर दिया जाता है।

वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म हुआ, इसी दिन वे बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे सिद्धार्थ से बुद्ध हुए, उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई, इसी दिन उनका महापरिनिर्वाण हुआ। अर्थात्, उनका जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण (मृत्यु) तीनों ही वैशाख पूर्णिमा के दिन हुए। 

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि आषाढ़ पूर्णिमा को ही तथागत गौतम बुद्ध ने सारनाथ के मृगदाय वन में पंचवग्गीय भिक्षुओं को धम्मचक्कपवत्तन उपदेश देकर धम्म देशना की शुरुआत की थी। इस दिन को धम्म चक्र दिवस भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म के अनुयायी महाउपोसथ व्रत रखते हैं और बौद्ध विहारों में धम्म देशना के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन धम्मसेनापति भंते सारिपुत्र एवं देवानं पिय पियदसि सम्राट (प्रियदर्शी सम्राट) अशोक का परिनिर्वाण दिवस है। इस दिन बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम ने माता महामाया की कोख में प्रवेश किया। इसी दिन 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ गौतम ने गृह त्याग किया था और इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है। नव-बौद्धों का मानना है कि इस दिन राजा अशोक द्वारा 84,000 स्तूपों का निर्माण पूरा किया गया था। महाराजा अशोक ने इसी दिन 84 हजार स्तूपों का अनावरण किया था, जिसकी सजावट दीपों से किया गया था। इसलिए इसे दीपदानोत्सव कहते हैं। पालि साहित्य में 84,000 देशनाएँ संग्रहित हैं, जिनमें 82,000 सम्यक सम्बुद्ध की हैं और 2,000 भंते सारिपुत्र एवं भंते महामौद्गलायन की हैं। भंते सारिपुत्र भगवान बुद्ध के शिष्यों में प्रमुख थे और उन्हें भगवान ने धम्मसेनापति कहा था। वर्षावास (वस्सावास) का आरम्भ आषाढ मास की पूर्णिमा से होता है और समापन आश्विन पूर्णिमा के दिन होता है। आश्विन पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक कठिन चीवरदान के समारोह होते हैं, जिनमें उपासक – उपासिकाऐं विभिन्न महाविहारों में जाकर दान करते हैं।

धर्मचक्र प्रवर्तन दिवस भारतीय बौद्धों का एक प्रमुख उत्सव है। दुनिया भर से लाखों बौद्ध अनुयाई एकट्ठा होकर हर साल अशोक विजयादशमी एवं 14 अक्टूबर के दिन इसे मुख्य रुप से दीक्षाभूमि, महाराष्ट्र के साथ-साथ अब सारे भारत में मनाते हैं। इस उत्सव को स्थानीय स्तर पर भी मनाया जाता है। 20 वीं सदी के मध्य में बोधिसत्व, भारत रत्न, विश्व ज्ञानपुंज, सिंबल ऑफ नॉलेज डॉ॰ बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने अशोक विजयादशमी के दिन 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने 5,00,000 (5 लाख से अधिक) अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। 

ज्येष्ठ पूर्णिमा  इस दिन महान सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा 5 अर्हतों (संघ, गुट) के साथ श्रीलंका गए थे। इसी दिन वहां के राजा देवानामप्रिय तिस्स से मिले और श्रीलंका में बुद्ध धम्म की शुरुआत की। सम्राट अशोक द्वारा बुलाई गई तीसरी धम्म संगीति का समापन हुआ।

बौद्ध धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है। बौद्ध जगत में आषाढ़ी पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा और वैशाख पूर्णिमा को खास तौर पर मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि विश्वगुरु शाक्यमुनि भगवान् तथागत गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी हर पूर्णिमा को कोई न कोई घटना घटी है। नव-बौद्ध बुद्ध के अंतिम शब्दों - "अप्प दीपो भव" के माध्यम से बौद्धों के रूप में इस त्यौहार की प्रामाणिकता का दावा करते हैं, जिसका अर्थ है "अपना प्रकाश स्वयं बनो।" 

॥भवतु सब्ब कल्याणं॥

'भग्गरागोति, भग्गदोसोति, भग्गमोहोति, भग्ग किलेसोति, भग्गमानोति भगवा'

पालि साहित्य में  "भगवान्" का मतलब ईश्वर या परमेश्वर नहीं है। पालि भाषा में 'भगवान्' शब्द का अर्थ उन अर्थों से सर्वथा भिन्न है, जिन अर्थों में यह शब्द आजकल प्रचलित है।

भगवान् का अर्थ :-

भग्ग + वान = भगवान 

भग्ग = भग्भंजन (नष्ट) करना, भंग करना,  तोड़ना, भाग करना, विभाजन, विश्लेषण करना, उपलब्धि को बाँटना आदि।

वान = तृष्णा (इच्छा), धारणकर्ता आदि।

जिसने अपनी तृष्णाओं को भंग कर दिया वह भगवान् है अर्थात् जिस मानव ने जीवन में सभी तृष्णाओं, इच्छाओं, रागों, द्वेषों, वासनाओं, मोहों, अहम्मन्यताओं का भंजन / नष्ट किया हो, उस महान मानव को  "भगवान्" कहा जाता है। इसी अर्थ में महामानव तथागत गौतम बुद्ध को भगवान् कहा जाता है।

तथागत का अर्थ :-

तथ्य + आगत = तथागत 

तथ्य = सत्य (सच्चाई )

आगत = अवगत (सचेत, आगाह करना) 

अर्थात् तथ्य के साथ सच्चाई से अवगत करने वाले तथागत कहे जाते हैं, जो कि "बुद्ध" हैं। तथागत का पालि भाषा में मतलब 'यथाचारी' या 'तथाचारी'बोधिसत्व उसे कहते हैं, जिसे सम्यक संबोधी (मानवीय प्रज्ञा, सही ज्ञान) हासिल हुई है, जो महान दया से प्रेरित, बोधिचित्त जनित, सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिए सहज इच्छा से बुद्धत्व प्राप्त किया है।

*~1971 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पेरियार रामास्वामी नायकर और पेरियार ललई सिंह यादव बौद्ध की सच्ची रामायण की सुनवाई के दौरान यह साबित किया गया है कि रामायण काल्पनिक महाकाव्य है , कोई इतिहास नहीं है , इसलिए राम भी काल्पनिक पात्र हैं।

**सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था।


टिप्पणीकार : गोलेन्द्र पटेल (युवा कवि-लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)

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