Saturday, 26 June 2021

हिन्दी भाषा एवं साहित्य साहित्य 📚 हिंदी साहित्य : बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर

 📚 *हिन्दी भाषा एवं साहित्य साहित्य*📚


https://youtube.com/c/GolendraGyan

•तुलसीदास को हिंदी का धर्मध्वज किसने कहा है?- 

उत्तर::::-------चतुरसेन शास्त्री

•नाथों की भाषा को फक्कडी भाषा किसने कहा है?

उत्तर:::::--------चतुरसेन शास्त्री

•सिद्धों की भाषा को आलो आंधारी भाषा किसने कहा है?

उत्तर:::------हरप्रसाद शास्त्री

•यह तो जगजाहिर है की रामानंद के बारह शिष्य थे 

लेकिन किस आलोचक ने कहा की रामानंद के बारह नहीं साढे बारह शिष्य थे?

उत्तर::::--------नागरी प्रचारणी पत्रिका मे ।

•पृथ्वीराज रासो को हिंदी का वृहत् महाभारत किसने कहा है?

उतर-::::::---------दशरथ शर्मा


•कबीर को अवधी का प्रथम कवि किसने माना है

उतर :::::::---------बाबूराम सक्सेना

•मिश्रबंधुओं ने हिंदी का सबसे उद्दण्ड कवि किसे माना है?

उतर:::---------बेताल बंदीजन

•मिश्रबंधुओं ने किस रीतिमुक्त कवि को ओऊल नंबर का रसिया कहा है?

उतर::--------- ठाकुर जी

•मिश्रबंधुओं ने अष्टछाप का नौवां कवि किसे माना है?

उतर::::--------नागरीदास

•मिश्रबंधुओं ने पुर्वालंकृतकाल का सबसे बडा आचार्य किसे माना है?

उत्तर::::::-------चिंतामणि


•मिश्रबंधुओं ने उत्तरालंकृत काल का सबसे बडा.कवि किसे माना है?

उतर::::::------भिखारीदास जी

•मिश्रबंधुओं ने पुर्वालंकृतकाल का सबसे बडा कवि किसे माना है?

उतर:::------सेनापति

•मिश्रबंधु विनोद को हिंदी साहित्य का पंचांग किसने कहा है?

उत्तर::---डॉ नामवर सिंह

•शिवसिंह सरोज किस भाषा मे लिखा गया है

उत्तर::----हिंदी में

•गुरुग्रंथ साहब में कुल कितने संत कवियो के पद है?

उतर:---17


•नंददास जडिया और कवि गढिया यह तो जगजाहिर है

लेकिन वो एक भक्त कवि कौन है जिसे 'जडिया और गढियां' भक्त कवि कहा जाता है?

उतर:::------तुलसीदास जी

•रीतिकाल का वह कवि जिसने खडी बोली हिंदी में सीतवसंत नामक (प्रबन्धरूप में)कहानी लिखी थी?

उतर:::------चन्दन कवि

•रीतिकाल के किस कवि का उपनाम 'काष्ठ जिह्वा स्वामी' था?

उतर::------देव बनारस वाले

•हिंदी का प्रथम जयकाव्य कौनसा है?

उतर::-----खुमाण रासो

•मिश्रबंधुओं ने हिंदी का प्रथम नाटककार किसे माना है?

उतर::------विद्यापति जी को


•मिश्रबंधुओ ने हिंदी का प्रथम इतिहास सहायक किसे माना है

एवं किस ग्रंथ को प्रथम प्रथम इतिहास सहायक ग्रंथ माना है?

उतर:::---------शिव सिंह सरोज

•कहा जाता है कि सेनापति ने अपने अंतिम समय मे क्षैत्रसन्न्यास ले लिया था 

यहा क्षैत्र सन्न्यास का क्या मतलब है?

उतर:::-------अपने निवास स्थान से बाहर न निकलना ।सेनापति ने वृन्दावन से निकलना बन्द कर दिया था ।

•मिश्रबंधुओं ने किस कवि को हिंदी का प्राचीन समालोचक माना है?

उतर:::------भिखारीदास जी को


•मिश्रबंधुओ ने हिंदी का चासर किसे कहा है?

उतर:::------चन्दबरदाई जी को

•"देव हिन्दी के भिखारी कवि है|" वाक्य किस विद्वान का है?

उतर------लाला भगवानदीन

•बिहारी सतसई को आजमशाही किसने कहा था और क्यू कहा था?

उतर::-------मिस्रबन्धुओ ने कहा :-----आज बिहारी सतसई दोहों का जो क्रम मिलता है वो सर्वप्रथम आजमशाह ने करवाया था ।

•पल्लव को छायावाद का घोषणा पत्र किसने कहा?

उतर:::------रामधारी सिंह दिनकर जी

•निराला को छंदो का राजा किसने कहा ?

उतर::------डॉ नामवर सिंह जी ने ।


•बिहारी की कविता(सतसई) को हिंदी का श्रृंगार किसने कहा है?

उत्तर::-------आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी

•बिहारी को भाषा का पण्डित किसने कहा है? 

उतर::------विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जी ने

•मिश्रबंधुओं ने हिंदी का सर्वश्रेष्ठ वर्तमान गद्य लेखक किसे माना है?

उतर::-----आचार्य चतुसेन शास्त्री

•रामकुमार वर्मा रचित 'हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' ग्रंथ को किसने हिंदी सआहित्य का एक रिसर्च वर्क -डाक्टरेट के लिए लिखा गया एक थीसेस कहा है?

उत्तर:::-----मिस्रबन्धु

•कृष्ण काव्य धारा में स्वच्छंद काव्य धारा के प्रवर्त्तक कवि है??

उतर::::--------रसखान


•कबीर का वह शिष्य कौन था जो बीजक को लेखर भाग गया था?

उत्तर::-----भगवानदास

•किस विद्वान ने सूर के ग्रंथ सूरसारावली को एक वृहत् होली गीत कहा है?

उतर:::-------मुंशी राम शर्मा ।


◆◆◆


..हिन्दी स्मरण एवं रेखाचित्र : कालक्रमानुसार...........

संकलनकर्ता-रविन्द्र पुनियां..........

1905 अनुमोदन का अन्त (महावीरप्रसाद द्विवेदी)

1907 इंग्लैंड के देहात में महाराज बनारस का कुआं (काशीप्रसाद जायसवाल)

1907 सभा की सभ्यता (महावीरप्रसाद द्विवेदी)

1908 लन्दन का फाग या कुहरा (प्यारेलाल मिश्र)

1909 मेरी नई दुनिया सम्बन्धिनी रामकहानी (भोलदत्त पांडेय)

1911 अमेरिका में आनेवाले विद्यार्थियों की सूचना (जगन्नाथ खन्ना)

1913 मेरी छुट्टियों का प्रथम सप्ताह (जगदीश बिहारी सेठ)

1913 वाशिंगटन महाविद्यालय का संस्थापन दिनोत्सव (पांडुरंग खानखोजे)

1918 इधर-उधर की बातें (रामकुमार खेमका)

1921 कुछ संस्मरण (वृन्दालाल वर्मा, सुधा 1921 में प्रकाशित)

1921 मेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियां (इलाचन्द्र जोशी, सुधा 1921 में प्रकाशित)

1929 पदम पराग (पदमसिंह शर्मा)

1930 रामा (महादेवी वर्मा)

1932 मदन मोहन के सम्बन्ध की कुछ पुरानी स्मृतियां (शिवराम पांडेय)

1934 बिन्दा (महादेवी वर्मा)

1935 घीसा (महादेवी वर्मा)

1935 बिट्टो (महादेवी वर्मा)

1935 सबिया (महादेवी वर्मा)

1936 शिकार (श्रीराम शर्मा)

1937 बोलती प्रतिमा (श्रीराम शर्मा, भाई जगन्नाथ इस संकलन का सर्वश्रेष्ठ संस्मरण)

1937 साहित्यिकों के संस्मरण (ज्योतिलाल भार्गव, हंस के प्रेमचन्द स्मृति अंक 1937 सं. पराड़कर)

1937 क्रान्तियुग के संस्मरण (मन्मथनाथ गुप्त)

1938 झलक (शिवनारायण टंडन)

1938 लाल तारा (रामवृक्ष बेनीपुरी)

1939 प्राणों का सौदा (श्रीराम शर्मा)

1940 रेखाचित्र (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

1940 टूटा तारा (संस्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा, राजा राधिकारमण प्र. सिंह)

1941 अतीत के चलचित्र (महादेवी वर्मा)

1942 तीस दिन मालवीय जी के साथ (रामनरेश त्रिपाठी)

1942 गोर्की के संस्मरण (इलाचन्द्र जोशी)

1943 स्मृति की रेखाएं (महादेवी वर्मा)

1943 चरित्र रेखा (जनार्दन प्रसाद द्विज)

1946 माटी की मूरतें (रामवृक्ष बेनीपुरी)

1946 वे दिन वे लोग (शिवपूजन सहाय)

1946 पंच चिह्न (शांतिप्रसाद द्विवेदी)

1947 मिट्टी के पुतले (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

1947 पुरानी स्मृतियां और नए स्केच (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

1947 स्मृति की रेखाएं (महादेवी वर्मा)

1948 सन् बयालीस के संस्मरण (श्रीराम शर्मा)

1949 माटी हो गई सोना (कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

1949 एलबम (सत्यजीवन वर्मा ‘भारतीय’)

1949 रेखाएं बोल उठीं (देवेन्द्र सत्यार्थी)

1949 दीप जले शंख बजे (कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

1949 ज़्यादा अपनी, कम पराई (‘अश्क’)

1949 जंगल के जीव (श्रीराम शर्मा)

1950 गेहूं और गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी)

1950 क्या गोरी क्या सांवरी (देवेन्द्र सत्यार्थी)

1950 लंका महाराजिन (ओंकार शरद)

1951 अमिट रेखाएं (सत्यवती मल्लिक)

1952 हमारे आराध्य (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1952 संस्मरण (बनारसीदास चतुर्वेदी)

रेखाचित्र (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1952 सेतुबन्ध (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1953 संस्मरण (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1954 ज़िन्दगी मुस्कायी (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1954 गांधी कुछ स्मृतियां (जैनेन्द्र)।

1954 ये और वे (जैनेन्द्र)

1955 बचपन की स्मृतियां (राहुल सांकृत्यायन)

1955 मैं भूल नहीं सकता (कैलाशनाथ काटजू)

1955 रेखाएं और चित्र (उपेन्द्रनाथ अश्क)

1955 रेखा और रंग (विनय मोहन शर्मा)

1956 मंटो मेरा दुश्मन या मेरा दोस्त मेरा दुश्मन (उपेन्द्रनाथ अश्क)

1956 पथ के साथी (महादेवी

1957 जिनका मैं कृतज्ञ (राहुल सांकृत्यायन)

1957 वे जीते कैसे हैं (श्रीराम शर्मा)

1957 माटी हो गई सोना (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1958 दीप जले, शंख बजे (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1958 बाजे पायलिया के घुंघरू (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1959 रेखाचित्र (प्रेमनारायण टंडन)

1959 स्मृति-कण (सेठ गोविन्ददास)

1959 ज़्यादा अपनी कम परायी (अश्क)

1959 मैं इनका ऋणी हूं (इन्द्र विद्यावाचस्पती)

1960 प्रसाद और उनके समकालीन (विनोद शंकर व्यास)

1962 जाने-अनजाने (विष्णु प्रभाकर)

1962 कुछ स्मृतियां और स्फुट विचार (डॉ॰ सम्पूर्णानन्द)

1962 समय के पांव (माखनलाल चतुर्वेदी)

1962 नए-पुराने झरोखे (हरिवंशराय बच्चन)

1962 अतीत की परछाइयां (अमृता प्रीतम)

1963 दस तस्वीरें (जगदीशचन्द्र माथुर)

1963 साठ वर्ष : एक रेखांकन (सुमित्रानन्दन पन्त)

1963 जैसा हमने देखा (क्षेमचन्द्र सुमन)

1965 कुछ शब्द : कुछ रेखाएं (विष्णु प्रभाकर)

1965 मेरे हृदय देव (हरिभाऊ उपाध्याय)

1965 वे दिन वे लोग (शिवपूजन सहाय)

1965 जवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता (रायकृष्ण दास)

1965 लोकदेव नेहरू (रामधारीसिंह दिनकर)

1966 विकृत रेखाएं : धुंधले चित्र (महेन्द्र भटनागर)

1966 स्मृतियां और कृतियां (शान्तिप्रय द्विवेदी)

1966 चेहरे जाने-पहचाने (सेठ गोविन्ददास)

1967 कुछ रेखाएं : कुछ चित्र (कुन्तल गोयल)

1967 चेतना के बिम्ब (डॉ॰ नगेन्द्र)

1968 बच्चन निकट से (अजित कुमार एवं ओंकारनाथ श्रीवास्तव)

1968 संस्मरण और विचार (काका साहेब कालेलकर)

1968 स्मृति के वातायन (जानकीवल्लभ शास्त्री)

1968 घेरे के भीतर और बाहर (डाॅ॰ हरगुलाल)

1969 संस्मरण और श्रद्धांजलियां (रामधारी सिंह दिनकर)

1969 चांद (पद्मिनी मेनन)

1970 व्यक्तित्व की झांकियां (लक्ष्मीनारायण सुधांशु)

1971 जिन्होंने जीना जाना (जगदीशचन्द्र माथुर)

1971 स्मारिका (महादेवी वर्मा)

1972 मेरा परिवार (महादेवी वर्मा)

1972 अन्तिम अध्याय (पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी)

1973 जिनके साथ जिया (अमृतलाल नागर)

1974 स्मृति की त्रिवेणिका (लक्ष्मी शंकर व्यास)

1975 चन्द सतरें और (अनीता राकेश)

1975 मेरा हमदम मेरा दोस्त (कमलेश्वर)

1975 रेखाएं और संस्मरण (क्षेमचन्द्र सुमन)

1976 बीती बातें (परिपूर्णानन्द)

1976 मैंने स्मृति के दीप जलाए (रामनाथ सुमन)

1977 मेरे क्रान्तिकारी साथी (भगतसिंह)

1977 हम हशमत (कृष्णा सोबती)

1978 संस्मरण को पाथेय बनने दो (विष्णुकान्त शास्त्री)

1978 कुछ ख़्वाबों में कुछ ख़यालों में (शंकर दयाल सिंह)

1979 अतीत के गर्त से (भगवतीचरण वर्मा)

1979 श्रद्धांजलि संस्मरण (मैथिलीशरण गुप्त)

1979 पुनः (सुलोचना रांगेय राघव)

1980 यादों के झरोखे (कुंवर सुरेश सिंह)

1980 लीक-अलीक (भारतभूषण अग्रवाल)

1981 यादों की तीर्थयात्रा (विष्णु प्रभाकर)

1981 औरों के बहाने (राजेन्द्र यादव)

1981 जिनके साथ जिया (अमृतलाल नागर)

1981 सृजन का सुख-दुख (प्रतिभा अग्रवाल)

1982 संस्मरणों के सुमन (रामकुमार वर्मा)

1982 स्मृति-लेखा (अज्ञेय)

1082 आदमी से आदमी तक (भीमसेन त्यागी)

1983 मेरे अग्रज : मेरे मीत (विष्णु प्रभाकर)

1983 युगपुरुष (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’)

1983 निराला जीवन और संघर्ष के मूर्तिमान रूप (डॉ॰ ये॰ पे॰ चेलीशेव)

1984 बन तुलसी की गन्ध (रेणु)

1984 दीवान ख़ाना (पद्मा सचदेव)

1986 रस गगन गुफा में (भगवतीशरण उपाध्याय)

1988 हज़ारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण (कमल किशोर गोयनका)

1989 भारत भूषण अग्रवाल : कुछ यादें, कुछ चर्चाएं (बिन्दु अग्रवाल)

1990 सृजन के सेतु (विष्णु प्रभाकर)

1992 याद हो कि न याद हो (काशीनाथ सिंह)

1992 निकट मन में (अजित कुमार)

1992 जिनकी याद हमेशा रहेगी (अमृत राय)

1992 सुधियां उस चन्दन के वन की (विष्णुकान्त शास्त्री)

1994 लाहौर से लखनऊ तक (प्रकाशवती पाल)

1994 सप्तवर्णी (गिरिराज किशोर)

1995 लौट आ ओ धार (दूधनाथ सिंह)

1995 स्मृतियों के छंद (रामदरश मिश्र)

1995 मितवा घर (पदमा सचदेव)

1995 अग्निजीवी (प्रफुल्लचन्द्र ओझा)

1996 सृजन के सहयात्री (रवीन्द्र कालिया)

1996 अभिन्न (विष्णुचन्द्र शर्मा)

1998 यादें और बातें (बिन्दु अग्रवाल)

1998 हम हशमत (भाग-2, कृष्णा सोबती)

2000 अमराई (पदमा सचदेव)

2000 वे देवता नहीं हैं (राजेन्द्र यादव)

2000 यादों के काफिले (देवेन्द्र सत्यार्थी)

2000 नेपथ्य नायक लक्ष्मीचन्द्र जैन (मोहनकिशोर दीवान)

2000 याद आते हैं (रमानाथ अवस्थी)

2001 अपने-अपने रास्ते (रामदरश मिश्र)

2001 अंतरंग संस्मरणों में प्रसाद (सं॰ पुरुषोंत्तमदास मोदी)

2001 एक नाव के यात्री (विश्वनाथप्रसाद तिवारी)

2001 प्रदक्षिणा अपने समय की (नरेश मेहता)

2002 चिडि़या रैन बसेरा (विद्यानिवास मिश्र)

2002 लखनऊ मेरा लखनऊ (मनोहर श्याम जोशी)

2002 काशी का अस्सी (काशीनाथ सिंह)

2002 लौट कर आना नहीं होगा (कान्तिकुमार जैन)

2002 नेह के नाते अनेक (कृष्णविहारी मिश्र)

2002 स्मृतियों का शुक्ल पक्ष (डॉ॰ रामकमल राय)

2003 आंगन के वंदनवार (विवेकी राय)

2003 रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक संस्मरण (मनोहर श्याम जोशी)

2004 तुम्हारा परसाई (कान्तिकुमार जैन)

2004 पर साथ-साथ चली रही याद विष्णुकान्त शास्त्री)

2004 नंगा तलाई का गांव (डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी)

2004 लाई हयात आए (लक्ष्मीधर मालवीय)

2004 आछे दिन पाछे गए (काशीनाथ सिंह)

2005 सुमिरन को बहानो (केशवचन्द्र वर्मा)

2005 मेरे सुहृद : मेरे श्रद्धेय (विवेकी राय)

2006 ये जो आईना है (मधुरेश)

2006 जो कहूंगा सच कहूंगा (डाॅ॰ कान्ति कुमार जैन)

2006 घर का जोगी जोगड़ा (काशीनाथ सिंह)

2007 एक दुनिया अपनी (डॉ॰ रामदरश मिश्र)

2007 अब तो बात फैल गई (कान्तिकुमार जैन)

2009 कुछ यादें : कुछ बातें (अमरकान्त)

2009 दिल्ली शहर दर शहर (डॉ॰ निर्मला जैन)

2009 कालातीत (मुद्राराक्षस)

2009 कितने शहरों में कितनी बार (ममता कालिया)

2009 हाशिए की इबारतें (चन्द्रकान्ता)

2009 मेरे भोजपत्र (चन्द्रकान्ता)

2009 कविवर बच्चन के साथ (अजीत कुमार)

2010 जे॰ एन॰ यू॰ में नामवर सिंह (सं॰ सुमन केशरी)

2010 अंधेरे में जुगनू (अजीत कुमार)

2010 बैकुंठ में बचपन (कान्तिकुमार जैन)

2010 अ से लेकर ह तक (यानी अज्ञेय से लेकर हृदयेश तक, डॉ॰ वीरेन्द्र सक्सेना)

2011 कल परसों बरसों (ममता कालिया)

2011 स्मृति में रहेंगे वे (शेखर जोशी)

2011 अतीत राग (नन्द चतुर्वेदी)

2012 स्मृतियों के गलियारे से (नरेन्द्र कोहली)

2012 गंगा स्नान करने चलोगे (डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी)

2012 आलोचक का आकाश (मधुरेश)

2012 माफ़ करना यार (बलराम)

2012 अपने-अपने अज्ञेय (दो खंड, ओम थानवी)

2012 यादों का सफ़र (प्रकाश मनु)

2012 हम हशमत (भाग-3, कृष्णा सोबती)

2013 मेरी यादों का पहाड़ (देवेंद्र मेवाड़ी)

साभार: हिंदी दर्पण

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भारतीय काव्यशास्त्र महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर | काव्यशास्त्र | हिंदी साहित्य : काव्यशास्त्र ~ BHU & JNU


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1. भारतीय काव्यशास्त्र महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


वास्तविक काव्यलक्षण का प्रारंभ किस आचार्य से होता है जिन्होंने शब्द और अर्थ के सहभाव (शब्दार्थोसहितौ काव्यम् ) को काव्य की संज्ञा दी है --> भामह से

शब्द अर्थ संगम सहित भरे चमत्कृत भाय।

जग अद्भुत में अद्भुतहिँ , सुखदा काव्य बनाए ॥

पंक्ति है --> ग्वाल कवि (रसिकानंद)

प्रतिभा के दो भेद (सहजा और उत्पाद्या ) किसने किये --> रुद्रट ने

प्रतिभा को काव्य निर्माण का एकमात्र हेतु मानने के कारण किस आचार्य के प्रतिभावादी कहा जाता है --> पंडितराज जगन्नाथ को

प्रतिभा के दो भेद 'कारयित्री' और 'भावयित्री' किस आचार्य ने किए हैं --> राजशेखर ने

भावयित्री प्रतिभा किसमे होती है --> सहृदय में

भारतीय काव्यशात्र में 'भावक' से अभिप्राय है? --> सहृदय या आलोचक से

"शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली" कथन किसका है--> दण्डी का

रीति सिद्धांत की उपलब्धि है --> शैली तत्वों को महत्व देना

वामन के अनुसार गुण और रिति का संबंध है --> अभेद

आचार्य कुंतक के अनुसार वक्रोक्ति के कितने भेद हैे --> 6

वक्रोक्ति सिद्धांत की महत्वपूर्ण उपलब्धि है--> कलावाद की प्रतिष्ठा

कवः कर्म काव्यम् , (कवि का कर्म ही काव्य है ) कथन किसका है --> कुन्तक का

औचित्य विचार चर्चा , ग्रंथ किस आचार्य का है --> क्षेमेंद्र का

क्षेमेंद्र के अनुसार औचित्य के प्रधान भेद हैं--> 27

क्षेमेंद्र ने रस का प्राण किसे माना है --> औचित्य को

ध्वन्यालोक की टीका 'ध्वन्यालोकलोचन' किसने लिखी --> अभिनवगुप्त ने

ध्वनि सिद्धांत का प्रादुर्भाव व्याकरण के स्पोट सिद्धांत से हुआ है

वैयाकरण ने वाक् (वाणी) के कितने प्रकार माने है?--> 4

१• परा, 2• पश्यंती, ३• मध्यम, ४• बैखरी

आनन्दवर्धन का समय है --> नवीं शती का मध्य

आनन्दवर्धन ने व्यंग्यार्थ के तारतम्य के आधार पर काव्य के कितने भेद किये है--> 3 ; ध्वनि, गुणिभूत व्यंग, चित्र

आनन्दवर्धन ने ध्वनि के कितने प्रकार माने है--> 3 ; वस्तु ध्वनि, अलंकार ध्वनि,रसध्वनि

आनंद वर्धन के अनुसार रीति के चार नियामक है --> वक्त्रोचित्य , वाच्योचित्य , विषयोचित्य , रसोचित्य

अभिनव गुप्त ने ध्वनि के कितने भेद किए हैं --> 35

मम्मट ने के ध्वनि के शुद्ध भेदों की संख्या स्वीकार की है --> 51

पंडित राज जगन्नाथ काव्य के कितने भेद किए हैं --> 4

उत्तमोत्तम--> उत्तम--> मध्यम--> अधम

आचार्यो ने व्यंग्यार्थ की प्रधानता गौणता एवं अभाव के आधार पर काव्य के कितने भेद किए हैं --> 3 ; उत्तम --> मध्यम--> अधम

आधुनिक काल के प्रारंभिक समय में से सेठ कन्हैयालाल पौद्दार ने काव्यकल्पद्रुम नामक ग्रंथ की रचना की जो आगे चलकर रसमंजरी और अलंकार मंजरी के रुप में प्रकाशित हुआ

हृदयदर्पण नामक ग्रंथ की रचना किसने की --> भट्टनायक ने

हिंदी वक्रोक्ति जीवित की भूमिका किसने लिखी --> नगेंद्र ने

रस निरुपण के प्रथम व्याख्याता और रस निरुपण का प्रथम ग्रंथ किसे माना जाता है --> भरत मुनि व उनके नाट्यशास्त्र को

भरत ने 8 स्थाई भाव , 8 सात्विक भाव, 33 संचारी भावों का उल्लेख किया है

किस आचार्य ने रीती को काव्य की आत्मा मान कर रस के गुण के अंतर्गत स्थान दिया है और कांति गुण का वर्णन करते हुए रस से युक्त माना है --> वामन

आचार्य रुद्रट ने शांत रस का स्थाई भाव किसे माना है --> समयक ज्ञान

रस को ध्वनि के साथ युक्त करने का श्रेय किसे है --> आनंद वर्धन को

भोज ने 12 रसों का विवेचन किया है जिनमें चार नवीन है --> प्रेयस--> शांत--> उदात्त--> उध्दात

भोज ने रस का मूल किसे माना है--> अहंकार को

वाक्य रसात्मक काव्यम् कथन किसका है --> विश्वनाथ का

आचार्य शुक्ल ने काव्य की आत्मा किसे माना है--> रस को

भट्टलोल्लक ने रस की अवस्थिति किसमें मानी है--> अनुकार्य में

किस आचार्य ने रस सूत्र की व्याख्या के संधर्भ में काव्य में तीन शक्तियों की कल्पना की (अभिधा, भावक्त्व, भोजकत्व) -->भट्टनायक ने

अभिनव गुप्त रस को मानते हैं --> व्यंग

किस आलोचक के मतानुसार साधारणीकरण कवि की अनुभूति का होता है --> नगेंद्र के अनुसार

भारतीय काव्यशास्त्र में भावक से अभिप्राय है --> सहृदय या आलोचक से

भावक(सहदय्) के कितने प्रकार माने गए है --> 4

१ अरोचकी [विवेकी], २ सतृणाभ्यव्हारि [अविवेकी], ३ मत्सरी [पक्षपात पूर्ण आलोचना करने वाला], ४ तत्त्वाभिनिवेशी

विभाव के कितने भेद हैं --> 2[आलम्बन और उद्दीपन ]

आलंबन विभाव के कितने भेद हैं --> 2 ; १•आलंबन २•आश्रय

सात्विक अनुभाव की संख्या कितनी मानी गई है --> आठ

आचार्य शुक्ल ने विरोध और अविरोध के आधार पर संचारियों के कितने वर्ग किये हैं --> चार ;

१• सुखात्मक २• दु:खात्मक ३• उभयात्मक ४• उदासीन

श्रृंगार को मूल रस किस आचार्य ने माना है--> भामह ने

भक्ति रस का रस को मूल रास किसने माना है--> मधुसूदन सरस्वती एव रूप गोस्वामी ने

शंकुक के अनुसार भरतमुनि के रस सूत्र में आये “संयोग ” शब्द का अर्थ है --> अनुमान

रस सिद्धांत के संब


ंध में तन्मयतावाद के प्रतिष्ठापक है--> अभिनव भरत

एक के बाद एनी अनेक भावों का उदय होता है तो उसे कहते है --> भाव सबलता

अवहित्था और अपस्मार क्या है ?--> संचारी भाव का एक प्रकार

किस आलोचक के मतानुसार साधारणीकरण कवि भावना का होता है --> नगेंद्र

अभिधा, भावकत्व और भोग काव्य के तीन व्यापार किस आचार्य ने माने हैं --> भट्टनायक ने

भाव-सन्धि, भाव सबलता तथा भाव-शांति किस भाव की प्रमुख स्थितियां है --> संचारी भाव की

अलंकार संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य है --> भामह

भरत मुनि ने कितने अलंकारों का उल्लेख किया है ? --> 4

१• उपमा २• रूपक ३• दीपक ४• यमक

अलंकार रत्नाकर नामक ग्रंथ के रचयिता है --> शोभाकर मित्र

दण्डी ने गुणों की संख्या कितनी मानी है --> 10

आचार्य भोज ने अनुसार गुणों की संख्या है --> 24

वामन ने गुणों की संख्या मानी है --> 20

मम्मट, भामह तथा आनंद वर्धन ने गुणों के भेद माने है --> 3

गुणों के प्रमुख भेद है --> 3

१• माधुर्य, १• औज, ३• प्रसाद

वृत्ति का सर्वप्रथम वर्णन किस ग्रंथ में मिलता है--> नाट्यशास्त्र में

भारतीय काव्यशास्त्र में कितनी काव्य वृत्तियां मानी ग मानी गई है --> 3

१• परुषा

२• कोमल

३• उपनागरी

सर्वप्रथम दोष की परिभाषा किस आचार्य ने प्रस्तुत की--> वामन ने

दंडी में कितने काव्य दोषों का वर्णन किया है --> 10

वामन ने कितने काव्य दोषों का वर्णन किया है --> 20

विश्वनाथ ने कितने दोषों का वर्णन किया है --> 70

काव्य दोषो का सर्वप्रथम निरुपण किस ग्रंथ में मिलता है --> भारत कृत नाट्य शास्त्र में

दस के स्थान पर तीन काव्य गुणों की स्वीकृति प्रथम किस आचार्य ने की--> भामह ने

प्रेयान नामक नवीन रस की उद्भावना किस आचार्य ने की।--> रुद्रट

आलोक का हिंदी भाष्य किसने लिखा--> आचार्य विश्वेश्वर ने

भावप्रकाश नामक ग्रंथ के रचयिता है--> शारदातनय

दण्डी ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• नैेसर्गिकी प्रतिभा

२• निर्मल शास्त्र ज्ञान

३• अमंद अभियोग [अभ्यास]

रुद्रट और कुंतक ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• शक्ति, २•व्युत्तपत्ति, ३• अभ्यास

वामन ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• लोक, २• विद्या , ३• प्रकीर्ण

व्यंग के तारत्मय के आधार पर काव्य के कितने भेद माने जाते है --> 3

१•ध्वनि, २• गुणीभूत व्यंगचित्र, ३• चित्र

काव्यरुप(इंद्रियगम्यता) के आधार पर काव्य के कितने भेद है --> 2

१• दृश्य काव्य, २•श्रव्यकाव्य


दृश्यकाव्य[ रूपक] के कितने प्रमुख भेद है --> 10

श्रव्यकाव्य के कितने भेद हैं --> 3

१•गद्य, •२ पद्य ,३ चंपू [ गद्य-पद्यमय काव्य]


लक्षणा के कुल कितने भेद माने जाते हैं --> 12

किस लक्षणा को अभिधा पुच्छभूता कहते है--> रूढ़ि लक्षणा को

किस आचार्य ने लक्षणा के 80 भेदों का उल्लेख किया है --> विश्वनाथ ने

मम्मट ने लक्षणा के कितने भेदों का उल्लेख किया है --> 12

किस काव्य को चित्रकाव्य कहा जाता है --> अधम काव्य को

बंध के आधार पर काव्य के कितने भेद हैं --> 2 ( १• प्रबंध २• मुक्त्तक)

पूर्वापर सम्बन्ध निरपेक्ष काव्य -रचना को कहते हैं--> मुक्त्तक

पूर्वापर सम्बन्ध निर्वाह -सापेक्ष रचना को कहते है --> प्रबंध

संस्कृत में साहित्य के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है --> वाङ्मय

तात्पर्य, क्या है --> अभिधा, लक्षणा, व्यंजना की तरह चौथे प्रकार की नई शब्द-शक्ति

भामह 'अभाववादी' कहलाते है क्योंकि --> उन्होंने काव्य में ध्वनि की सत्ता स्वीकार नहीं की है

प्रतिभा मात्र को ही काव्य का हेतु आवश्यक सर्वप्रथम किसने माना --> हेमचंद्र ने

गुणिभूत व्यंग के कितने भेद होते हैं --> 8

वाच्यता असह,का अन्य नाम है --> रस ध्वनि

भरत ने हास्य रस के कितने भेद माने हैं --> 6

कुंतक ने वक्रोति के भेद व उपभेद माने है --> 6 भेद व 41 उपभेद

हेतुर्न तु हेतव:’ पंक्ति है--> मम्मट की

जनश्रुति के आधार पर किस आचार्य कोरस के प्रवर्तक होने का श्रेय दिया जाता है --> नंदिकेश्वर को

भरत के नाट्यशास्त्र में भावों की संख्या 49 गिनाई है -->

१• स्थाई भाव--> 8

२• व्याभिचारी भाव--> 33

३• सात्विक भाव--> 8

8+33+8--> 49

आचार्य भामह ने काव्य हेतु किसे माना है --> प्रतिभा को

किस आचार्य का कथन है कि संसार में जो कुछ पवित्र उज्जवल एव दर्शनीय है ,वह श्रृंगार के भीतर समाविष्ट हो सकता --> भरत मुनि

श्रृंगार रस को रसराज माना जाता हैे --> कार्य -व्यापार की व्यापकता के कारण

भरत मुनि के रस सूत्र के प्रथम व्याख्याता भटलोल्लट के रस- विवेचन का सैद्धांतिक आधार है --> मीमांसा

रस को दो वर्गो (सुखकारक व दुःख कारक )में बाँटकार किन आचार्य ने करुण ,भयानक,वीभत्स और रौद्र को दुःखकारक तथा शेष को सुख का कारक माना --> रामचंद्र एव गुणचन्द्र ने

नवरस नामक ग्रंथ के लेखक हे --> बाबू गुलामराय

'रस कलश' नामक ग्रंथ के लिए के लेखक है--> अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

सर्वप्रथम किस आचार्य ने रस को काव्य आत्मा घोषित किया--> विश्वनाथ

रुद्रट तथा कुंतक ने काव्य-हेतुओं


की संख्या मानी है--> 3

१• शक्ति, २•व्युत्पत्ति ”३•अभ्यास

राज शेखर ने रस का प्रतिष्ठाता किसे माना है --> नंदीकेश्वर को

भरत मुनि ने कितने रस, कितने गुण, कितने दोष तथा कितने अलंकारों का उल्लेख किया है --> रस--> 8, गुण--> 10, दोष--> 20, अलंकार--> 4

शब्दार्थो सहित काव्यम् , काव्य काव्य की इस परिभाषा में दोष है--> अतिव्याप्ति

प्रेयान नामक नवीन रस की उद्भावना किस आचार्य ने की।--> रुद्रट

आलोक का हिंदी भाष्य किसने लिखा--> आचार्य विश्वेश्वर ने

भावप्रकाश नामक ग्रंथ के रचयिता है--> शारदातनय

दण्डी ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• नैेसर्गिकी प्रतिभा

२• निर्मल शास्त्र ज्ञान

३•अमंद अभियोग[अभ्यास]

रुद्रट और कुंतक ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3


१•शक्ति

२•व्युत्तपत्ति

३• अभ्यास

वामन ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• लोक,

२•विद्या ,

३•प्रकीर्ण

व्यंग के तारत्मय के आधार पर काव्य के कितने भेद माने जाते है --> 3

१• ध्वनि,

२• गुणीभूत व्यंगचित्र ,

३• चित्र

काव्यरुप(इंद्रियगम्यता) के आधार पर काव्य के कितने भेद है --> 2

१• दृश्य काव्य,

२• श्रव्यकाव्य

दृश्यकाव्य[ रूपक] के कितने प्रमुख भेद है --> 10

श्रव्यकाव्य के कितने भेद हैं --> 3

१• गद्य,

२. पद्य ,

३. चंपू [गद्य-पद्यमय काव्य]

लक्षणा के कुल कितने भेद माने जाते हैं --> 12

किस लक्षणा को अभिधा पुच्छभूता कहते है--> रूढ़ि लक्षणा को

किस आचार्य ने लक्षणा के 80 भेदों का उल्लेख किया है --> विश्वनाथ ने

मम्मट ने लक्षणा के कितने भेदों का उल्लेख किया है --> 12

किस काव्य को चित्रकाव्य कहा जाता है --> अधम काव्य को

बंध के आधार पर काव्य के कितने भेद हैं --> 2

१• प्रबंध,

२• मुक्त्तक

पूर्वापर सम्बन्ध निरपेक्ष काव्य -रचना को कहते हैं--> मुक्त्तक

पूर्वापर सम्बन्ध निर्वाह -सापेक्ष रचना को कहते है --> प्रबंध

संस्कृत में साहित्य के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है --> वाङ्मय

'तात्पर्य' क्या है --> अभिधा, लक्षणा, व्यंजना की तरह चौथे प्रकार की नई शब्द-शक्ति

भामह 'अभाववादी' कहलाते है क्योंकि --> उन्होंने काव्य में ध्वनि की सत्ता स्वीकार नहीं की है

प्रतिभा मात्र को ही काव्य का हेतु आवश्यक सर्वप्रथम किसने माना --> हेमचंद्र ने

गुणिभूत व्यंग के कितने भेद होते हैं --> 8

वाच्यता असह, का अन्य नाम है --> रस ध्वनि

भरत ने हास्य रस के कितने भेद माने हैं --> 6

कुंतक ने वक्रोति के भेद व उपभेद माने है --> 6 भेद , व 41 उपभेद

'हेतुर्न तु हेतव:' पंक्ति है--> मम्मट की

जनश्रुति के आधार पर किस आचार्य कोरस के प्रवर्तक होने का श्रेय दिया जाता है --> नंदिकेश्वर कोभारतीय काव्यशास्त्र महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वास्तविक काव्यलक्षण का प्रारंभ किस आचार्य से होता है जिन्होंने शब्द और अर्थ के सहभाव (शब्दार्थोसहितौ काव्यम् ) को काव्य की संज्ञा दी है --> भामह से

शब्द अर्थ संगम सहित भरे चमत्कृत भाय।

जग अद्भुत में अद्भुतहिँ , सुखदा काव्य बनाए ॥

पंक्ति है --> ग्वाल कवि (रसिकानंद)

प्रतिभा के दो भेद (सहजा और उत्पाद्या ) किसने किये --> रुद्रट ने

प्रतिभा को काव्य निर्माण का एकमात्र हेतु मानने के कारण किस आचार्य के प्रतिभावादी कहा जाता है --> पंडितराज जगन्नाथ को

प्रतिभा के दो भेद 'कारयित्री' और 'भावयित्री' किस आचार्य ने किए हैं --> राजशेखर ने

भावयित्री प्रतिभा किसमे होती है --> सहृदय में

भारतीय काव्यशात्र में 'भावक' से अभिप्राय है? --> सहृदय या आलोचक से

"शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली" कथन किसका है--> दण्डी का

रीति सिद्धांत की उपलब्धि है --> शैली तत्वों को महत्व देना

वामन के अनुसार गुण और रिति का संबंध है --> अभेद

आचार्य कुंतक के अनुसार वक्रोक्ति के कितने भेद हैे --> 6

वक्रोक्ति सिद्धांत की महत्वपूर्ण उपलब्धि है--> कलावाद की प्रतिष्ठा

कवः कर्म काव्यम् , (कवि का कर्म ही काव्य है ) कथन किसका है --> कुन्तक का

औचित्य विचार चर्चा , ग्रंथ किस आचार्य का है --> क्षेमेंद्र का

क्षेमेंद्र के अनुसार औचित्य के प्रधान भेद हैं--> 27

क्षेमेंद्र ने रस का प्राण किसे माना है --> औचित्य को

ध्वन्यालोक की टीका 'ध्वन्यालोकलोचन' किसने लिखी --> अभिनवगुप्त ने

ध्वनि सिद्धांत का प्रादुर्भाव व्याकरण के स्पोट सिद्धांत से हुआ है

वैयाकरण ने वाक् (वाणी) के कितने प्रकार माने है?--> 4

१• परा, 2• पश्यंती, ३• मध्यम, ४• बैखरी

आनन्दवर्धन का समय है --> नवीं शती का मध्य

आनन्दवर्धन ने व्यंग्यार्थ के तारतम्य के आधार पर काव्य के कितने भेद किये है--> 3 ; ध्वनि, गुणिभूत व्यंग, चित्र

आनन्दवर्धन ने ध्वनि के कितने प्रकार माने है--> 3 ; वस्तु ध्वनि, अलंकार ध्वनि,रसध्वनि

आनंद वर्धन के अनुसार रीति के चार नियामक है --> वक्त्रोचित्य , वाच्योचित्य , विषयोचित्य , रसोचित्य

अभिनव गुप्त ने ध्वनि के कितने भेद किए हैं --> 35

मम्मट ने के ध्वनि के शुद्ध भेदों की संख्या स्वीकार की है --> 51

पंडित राज जगन्नाथ


ा असह, का अन्य नाम है --> रस ध्वनि

भरत ने हास्य रस के कितने भेद माने हैं --> 6

कुंतक ने वक्रोति के भेद व उपभेद माने है --> 6 भेद , व 41 उपभेद

'हेतुर्न तु हेतव:' पंक्ति है--> मम्मट की

जनश्रुति के आधार पर किस आचार्य कोरस के प्रवर्तक होने का श्रेय दिया जाता है --> नंदिकेश्वर को


काव्य के कितने भेद किए हैं --> 4

उत्तमोत्तम--> उत्तम--> मध्यम--> अधम

आचार्यो ने व्यंग्यार्थ की प्रधानता गौणता एवं अभाव के आधार पर काव्य के कितने भेद किए हैं --> 3 ; उत्तम --> मध्यम--> अधम

आधुनिक काल के प्रारंभिक समय में से सेठ कन्हैयालाल पौद्दार ने काव्यकल्पद्रुम नामक ग्रंथ की रचना की जो आगे चलकर रसमंजरी और अलंकार मंजरी के रुप में प्रकाशित हुआ

हृदयदर्पण नामक ग्रंथ की रचना किसने की --> भट्टनायक ने

हिंदी वक्रोक्ति जीवित की भूमिका किसने लिखी --> नगेंद्र ने

रस निरुपण के प्रथम व्याख्याता और रस निरुपण का प्रथम ग्रंथ किसे माना जाता है --> भरत मुनि व उनके नाट्यशास्त्र को

भरत ने 8 स्थाई भाव , 8 सात्विक भाव, 33 संचारी भावों का उल्लेख किया है

किस आचार्य ने रीती को काव्य की आत्मा मान कर रस के गुण के अंतर्गत स्थान दिया है और कांति गुण का वर्णन करते हुए रस से युक्त माना है --> वामन

आचार्य रुद्रट ने शांत रस का स्थाई भाव किसे माना है --> समयक ज्ञान

रस को ध्वनि के साथ युक्त करने का श्रेय किसे है --> आनंद वर्धन को

भोज ने 12 रसों का विवेचन किया है जिनमें चार नवीन है --> प्रेयस--> शांत--> उदात्त--> उध्दात

भोज ने रस का मूल किसे माना है--> अहंकार को

वाक्य रसात्मक काव्यम् कथन किसका है --> विश्वनाथ का

आचार्य शुक्ल ने काव्य की आत्मा किसे माना है--> रस को

भट्टलोल्लक ने रस की अवस्थिति किसमें मानी है--> अनुकार्य में

किस आचार्य ने रस सूत्र की व्याख्या के संधर्भ में काव्य में तीन शक्तियों की कल्पना की (अभिधा, भावक्त्व, भोजकत्व) -->भट्टनायक ने

अभिनव गुप्त रस को मानते हैं --> व्यंग

किस आलोचक के मतानुसार साधारणीकरण कवि की अनुभूति का होता है --> नगेंद्र के अनुसार

भारतीय काव्यशास्त्र में भावक से अभिप्राय है --> सहृदय या आलोचक से

भावक(सहदय्) के कितने प्रकार माने गए है --> 4

१ अरोचकी [विवेकी], २ सतृणाभ्यव्हारि [अविवेकी], ३ मत्सरी [पक्षपात पूर्ण आलोचना करने वाला], ४ तत्त्वाभिनिवेशी

विभाव के कितने भेद हैं --> 2[आलम्बन और उद्दीपन ]

आलंबन विभाव के कितने भेद हैं --> 2 ; १•आलंबन २•आश्रय

सात्विक अनुभाव की संख्या कितनी मानी गई है --> आठ

आचार्य शुक्ल ने विरोध और अविरोध के आधार पर संचारियों के कितने वर्ग किये हैं --> चार ;

१• सुखात्मक २• दु:खात्मक ३• उभयात्मक ४• उदासीन

श्रृंगार को मूल रस किस आचार्य ने माना है--> भामह ने

भक्ति रस का रस को मूल रास किसने माना है--> मधुसूदन सरस्वती एव रूप गोस्वामी ने

शंकुक के अनुसार भरतमुनि के रस सूत्र में आये “संयोग ” शब्द का अर्थ है --> अनुमान

रस सिद्धांत के संबंध में तन्मयतावाद के प्रतिष्ठापक है--> अभिनव भरत

एक के बाद एनी अनेक भावों का उदय होता है तो उसे कहते है --> भाव सबलता

अवहित्था और अपस्मार क्या है ?--> संचारी भाव का एक प्रकार

किस आलोचक के मतानुसार साधारणीकरण कवि भावना का होता है --> नगेंद्र

अभिधा, भावकत्व और भोग काव्य के तीन व्यापार किस आचार्य ने माने हैं --> भट्टनायक ने

भाव-सन्धि, भाव सबलता तथा भाव-शांति किस भाव की प्रमुख स्थितियां है --> संचारी भाव की

अलंकार संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य है --> भामह

भरत मुनि ने कितने अलंकारों का उल्लेख किया है ? --> 4

१• उपमा २• रूपक ३• दीपक ४• यमक

अलंकार रत्नाकर नामक ग्रंथ के रचयिता है --> शोभाकर मित्र

दण्डी ने गुणों की संख्या कितनी मानी है --> 10

आचार्य भोज ने अनुसार गुणों की संख्या है --> 24

वामन ने गुणों की संख्या मानी है --> 20

मम्मट, भामह तथा आनंद वर्धन ने गुणों के भेद माने है --> 3

गुणों के प्रमुख भेद है --> 3

१• माधुर्य, १• औज, ३• प्रसाद

वृत्ति का सर्वप्रथम वर्णन किस ग्रंथ में मिलता है--> नाट्यशास्त्र में

भारतीय काव्यशास्त्र में कितनी काव्य वृत्तियां मानी ग मानी गई है --> 3

१• परुषा

२• कोमल

३• उपनागरी

सर्वप्रथम दोष की परिभाषा किस आचार्य ने प्रस्तुत की--> वामन ने

दंडी में कितने काव्य दोषों का वर्णन किया है --> 10

वामन ने कितने काव्य दोषों का वर्णन किया है --> 20

विश्वनाथ ने कितने दोषों का वर्णन किया है --> 70

काव्य दोषो का सर्वप्रथम निरुपण किस ग्रंथ में मिलता है --> भारत कृत नाट्य शास्त्र में

दस के स्थान पर तीन काव्य गुणों की स्वीकृति प्रथम किस आचार्य ने की--> भामह ने

प्रेयान नामक नवीन रस की उद्भावना किस आचार्य ने की।--> रुद्रट

आलोक का हिंदी भाष्य किसने लिखा--> आचार्य विश्वेश्वर ने

भावप्रकाश नामक ग्रंथ के रचयिता है--> शारदातनय

दण्डी ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• नैेसर्गिकी प्रतिभा

२• निर्मल शास्त्र ज्ञान

३• अमंद अभियोग [अभ्यास]

रुद्रट और कुंतक ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• शक्ति, २•व्युत्तपत्ति, ३• अभ्यास

वामन ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• लोक, २• विद्या , ३• प्रकीर्ण

व्यंग के तारत्मय के आधार पर काव्य के कितने भेद माने जाते है --> 3

१•ध्वनि, २• गुणीभूत व्यंगचित्र,


३• चित्र

काव्यरुप(इंद्रियगम्यता) के आधार पर काव्य के कितने भेद है --> 2

१• दृश्य काव्य, २•श्रव्यकाव्य


दृश्यकाव्य[ रूपक] के कितने प्रमुख भेद है --> 10

श्रव्यकाव्य के कितने भेद हैं --> 3

१•गद्य, •२ पद्य ,३ चंपू [ गद्य-पद्यमय काव्य]


लक्षणा के कुल कितने भेद माने जाते हैं --> 12

किस लक्षणा को अभिधा पुच्छभूता कहते है--> रूढ़ि लक्षणा को

किस आचार्य ने लक्षणा के 80 भेदों का उल्लेख किया है --> विश्वनाथ ने

मम्मट ने लक्षणा के कितने भेदों का उल्लेख किया है --> 12

किस काव्य को चित्रकाव्य कहा जाता है --> अधम काव्य को

बंध के आधार पर काव्य के कितने भेद हैं --> 2 ( १• प्रबंध २• मुक्त्तक)

पूर्वापर सम्बन्ध निरपेक्ष काव्य -रचना को कहते हैं--> मुक्त्तक

पूर्वापर सम्बन्ध निर्वाह -सापेक्ष रचना को कहते है --> प्रबंध

संस्कृत में साहित्य के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है --> वाङ्मय

तात्पर्य, क्या है --> अभिधा, लक्षणा, व्यंजना की तरह चौथे प्रकार की नई शब्द-शक्ति

भामह 'अभाववादी' कहलाते है क्योंकि --> उन्होंने काव्य में ध्वनि की सत्ता स्वीकार नहीं की है

प्रतिभा मात्र को ही काव्य का हेतु आवश्यक सर्वप्रथम किसने माना --> हेमचंद्र ने

गुणिभूत व्यंग के कितने भेद होते हैं --> 8

वाच्यता असह,का अन्य नाम है --> रस ध्वनि

भरत ने हास्य रस के कितने भेद माने हैं --> 6

कुंतक ने वक्रोति के भेद व उपभेद माने है --> 6 भेद व 41 उपभेद

हेतुर्न तु हेतव:’ पंक्ति है--> मम्मट की

जनश्रुति के आधार पर किस आचार्य कोरस के प्रवर्तक होने का श्रेय दिया जाता है --> नंदिकेश्वर को

भरत के नाट्यशास्त्र में भावों की संख्या 49 गिनाई है -->

१• स्थाई भाव--> 8

२• व्याभिचारी भाव--> 33

३• सात्विक भाव--> 8

8+33+8--> 49

आचार्य भामह ने काव्य हेतु किसे माना है --> प्रतिभा को

किस आचार्य का कथन है कि संसार में जो कुछ पवित्र उज्जवल एव दर्शनीय है ,वह श्रृंगार के भीतर समाविष्ट हो सकता --> भरत मुनि

श्रृंगार रस को रसराज माना जाता हैे --> कार्य -व्यापार की व्यापकता के कारण

भरत मुनि के रस सूत्र के प्रथम व्याख्याता भटलोल्लट के रस- विवेचन का सैद्धांतिक आधार है --> मीमांसा

रस को दो वर्गो (सुखकारक व दुःख कारक )में बाँटकार किन आचार्य ने करुण ,भयानक,वीभत्स और रौद्र को दुःखकारक तथा शेष को सुख का कारक माना --> रामचंद्र एव गुणचन्द्र ने

नवरस नामक ग्रंथ के लेखक हे --> बाबू गुलामराय

'रस कलश' नामक ग्रंथ के लिए के लेखक है--> अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

सर्वप्रथम किस आचार्य ने रस को काव्य आत्मा घोषित किया--> विश्वनाथ

रुद्रट तथा कुंतक ने काव्य-हेतुओं की संख्या मानी है--> 3

१• शक्ति, २•व्युत्पत्ति ”३•अभ्यास

राज शेखर ने रस का प्रतिष्ठाता किसे माना है --> नंदीकेश्वर को

भरत मुनि ने कितने रस, कितने गुण, कितने दोष तथा कितने अलंकारों का उल्लेख किया है --> रस--> 8, गुण--> 10, दोष--> 20, अलंकार--> 4

शब्दार्थो सहित काव्यम् , काव्य काव्य की इस परिभाषा में दोष है--> अतिव्याप्ति

प्रेयान नामक नवीन रस की उद्भावना किस आचार्य ने की।--> रुद्रट

आलोक का हिंदी भाष्य किसने लिखा--> आचार्य विश्वेश्वर ने

भावप्रकाश नामक ग्रंथ के रचयिता है--> शारदातनय

दण्डी ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• नैेसर्गिकी प्रतिभा

२• निर्मल शास्त्र ज्ञान

३•अमंद अभियोग[अभ्यास]

रुद्रट और कुंतक ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3


१•शक्ति

२•व्युत्तपत्ति

३• अभ्यास

वामन ने कितने काव्य हेतु माने है --> 3

१• लोक,

२•विद्या ,

३•प्रकीर्ण

व्यंग के तारत्मय के आधार पर काव्य के कितने भेद माने जाते है --> 3

१• ध्वनि,

२• गुणीभूत व्यंगचित्र ,

३• चित्र

काव्यरुप(इंद्रियगम्यता) के आधार पर काव्य के कितने भेद है --> 2

१• दृश्य काव्य,

२• श्रव्यकाव्य

दृश्यकाव्य[ रूपक] के कितने प्रमुख भेद है --> 10

श्रव्यकाव्य के कितने भेद हैं --> 3

१• गद्य,

२. पद्य ,

३. चंपू [गद्य-पद्यमय काव्य]

लक्षणा के कुल कितने भेद माने जाते हैं --> 12

किस लक्षणा को अभिधा पुच्छभूता कहते है--> रूढ़ि लक्षणा को

किस आचार्य ने लक्षणा के 80 भेदों का उल्लेख किया है --> विश्वनाथ ने

मम्मट ने लक्षणा के कितने भेदों का उल्लेख किया है --> 12

किस काव्य को चित्रकाव्य कहा जाता है --> अधम काव्य को

बंध के आधार पर काव्य के कितने भेद हैं --> 2

१• प्रबंध,

२• मुक्त्तक

पूर्वापर सम्बन्ध निरपेक्ष काव्य -रचना को कहते हैं--> मुक्त्तक

पूर्वापर सम्बन्ध निर्वाह -सापेक्ष रचना को कहते है --> प्रबंध

संस्कृत में साहित्य के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है --> वाङ्मय

'तात्पर्य' क्या है --> अभिधा, लक्षणा, व्यंजना की तरह चौथे प्रकार की नई शब्द-शक्ति

भामह 'अभाववादी' कहलाते है क्योंकि --> उन्होंने काव्य में ध्वनि की सत्ता स्वीकार नहीं की है

प्रतिभा मात्र को ही काव्य का हेतु आवश्यक सर्वप्रथम किसने माना --> हेमचंद्र ने

गुणिभूत व्यंग के कितने भेद होते हैं --> 8

वाच्यत

               साभार: हिंदी दर्पण

2. भारतीय काव्यशास्त्र महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वास्तविक काव्यलक्षण का प्रारंभ किस आचार्य से होता है जिन्होंने शब्द और अर्थ के सहभाव (शब्दार्थोसहितौ काव्यम ) को काव्य की संज्ञा दी है --> भामह से

शब्द अर्थ संगम सहित भरे चमत्कृत भाय।

जग अद्भुत में अद्भुतहिँ , सुखदा काव्य बनाए ॥पंक्ति है --> ग्वाल कवि (रसिकानंद)

प्रतिभा के दो भेद (सहजा और उत्पाद्या ) किसने किये --> रुद्रट ने

प्रतिभा को काव्य निर्माण का एकमात्र हेतु मानने के कारण किस आचार्य के प्रतिभावादी कहा जाता है --> पंडितराज जगन्नाथ को

प्रतिभा के दो भेद 'कारयित्री' और 'भावयित्री' किस आचार्य ने किए हैं --> राजशेखर ने

भावयित्री प्रतिभा किसमे होती है --> सहृदय में

भारतीय काव्यशात्र में 'भावक' से अभिप्राय है? --> सहृदय या आलोचक से

"शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली" कथन किसका है--> दण्डी का

रीति सिद्धांत की उपलब्धि है --> शैली तत्वों को महत्व देना

वामन के अनुसार गुण और रिति का संबंध है --> अभेद

आचार्य कुंतक के अनुसार वक्रोक्ति के कितने भेद हैे --> 6

वक्रोक्ति सिद्धांत की महत्वपूर्ण उपलब्धि है--> कलावाद की प्रतिष्ठा

कवः कर्म काव्यम् , (कवि का कर्म ही काव्य है ) कथन किसका है --> कुन्तक का

औचित्य विचार चर्चा , ग्रंथ किस आचार्य का है --> क्षेमेंद्र का

क्षेमेंद्र के अनुसार औचित्य के प्रधान भेद हैं--> 27

क्षेमेंद्र ने रस का प्राण किसे माना है --> औचित्य को

ध्वन्यालोक की टीका 'ध्वन्यालोकलोचन' किसने लिखी --> अभिनवगुप्त ने

ध्वनि सिद्धांत का प्रादुर्भाव व्याकरण के स्पोट सिद्धांत से हुआ है

वैयाकरण ने वाक् (वाणी) के कितने प्रकार माने है?--> 4

१• परा, 2• पश्यंती, ३• मध्यम, ४• बैखरी

आनन्दवर्धन का समय है --> नवीं शती का मध्य

आनन्दवर्धन ने व्यंग्यार्थ के तारतम्य के आधार पर काव्य के कितने भेद किये है--> 3 ; ध्वनि, गुणिभूत व्यंग, चित्र

आनन्दवर्धन ने ध्वनि के कितने प्रकार माने है--> 3 ; वस्तु ध्वनि, अलंकार ध्वनि,रसध्वनि

आनंद वर्धन के अनुसार रीति के चार नियामक है -->वक्त्रोचित्य , वाच्योचित्य , विषयोचित्य , रसोचित्य

अभिनव गुप्त ने ध्वनि के कितने भेद किए हैं --> 35

मम्मट ने के ध्वनि के शुद्ध भेदों की संख्या स्वीकार की है --> 51

पंडित राज जगन्नाथ काव्य के कितने भेद किए हैं --> 4

उत्तमोत्तम--> उत्तम--> मध्यम-->

           साभार: हिंदी भाषा एवं साहित्य

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Monday, 14 June 2021

मजदूर थककर हो गए हैं चूर : गोलेन्द्र पटेल

 


मजदूर थककर हो गए हैं चूर//


मैं अपनी एक लुंगी पहनता हूँ

और एक ओढ़ता हूँ

और उसी से बाँधता हूँ पगड़ी

जब उससे टपकता है

श्रम का शहद 

और गमकती है 

जिंदगी की गंध

तब सब कहते हैं 

कि रब ने बनाया है मुझे मजदूरों का कवि

और मेरी कविता प्रस्तुत करती है 

शोषितों की छवि

जिसमें उन्हें हँसती हुई दिखाई देती है

हाशिए पर खड़ी नयी पीढ़ी

अचानक उनकी दृष्टि की सृष्टि कंपित होती है

और दीवार से फिसलने लगती है सीढ़ी

फिसलने वाले गाने लगते हैं

कि हर बार फिसलने पर सहारा देती है

शब्द की सत्ता

इस बार भी देगी


निर्भयता से बाँस की सड़ी सीढ़ी पर

कोई गिट्टी की भरी तगाड़ी 

तो कोई बालू की झउआ लेकर चढ़ रहा है

कोई लोक रहा है 

तो कोई नीचे से ऊपर फेंक रहा है ईंट

कोई मिला रहा है अढ़ाई एक कऽ मसाला

तो कोई करनी चला रहा है तेजी से

कोई बतिया रहा है साहुल-सूत के भाषा में

तो कोई खिसिया रहा है अपनी खिंचाई होते देखकर

ढलाई हो रही है ताबड़तोड़

जीतोड़ काम करने के बाद एक मजदूर दुःख की गठरी खोल रहा है

उसके चेहरे का रंग बोल रहा है

कि मजदूरी कम देने के लिए कमरतोड़ दाँव लगा रहे हैं साहब


सारे मजदूर थककर हो गए हैं चूर

हिसाब हो रहा है

पगड़ी में पोंछकर आँसू थाम रहे हैं पैसे

ऐसे लोगों का कैसे चलेता है परिवार

जो रोज़ कुआँ खोदकर पानी पीते हैं

क्या बताऊँ कि उनके बच्चे अक्सर भूखे सोते हैं

तो साहब दे देंगे पैसे?


(©गोलेन्द्र पटेल

14-06-2021)


मो.नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


Friday, 11 June 2021

साभार संकलन : आओ संस्कृत सीखें (डिप्लोमा कोर्स का छात्र, संस्कृत विभाग ~ बीएचयू : गोलेन्द्र पटेल)

 


प्रिय मित्रों!

संस्कृत डिप्लोमा कोर्स का व्याकरण (संस्कृत विभाग, बीएचयू)

#दिव्यांग एवं दृष्टिबाधित विद्यार्थी साथियों का निम्नलिखित चैनल है अतः आप लिंक पर क्लिक कर हमसे जुड़ें!

दिव्यंगसेवी : गोलेन्द्र पटेल

1.

सन्धि विषय

 इ,ई को य्‌, उ,ऊ को व्‌, ऋ,ॠ को र्‌, लृ को ल्‌ हो जाता है यदि बाद में कोई स्वर हो तो।

 उदाहरण-- प्रति + एकः= प्रत्येकः। यहां प्रति शब्द के इ को य्‌ हुआ है क्योंकि बाद में स्वर ए परे है।

 इसी प्रकार-- २) यदि+अपि= यद्यपि। 

                 ३) गुरु+ आज्ञा= गुर्वाज्ञा।

                 ४) वधू+ औ=वध्वौ।

                  ५) पितृ+आ= पित्रा।

                  ६) कर्तृ+आ=कर्त्रा।

                  ७) लृ+आकृतिः=लाकृतिः।

                  ८) इति+ आह=इत्याह

                  ९)नदी+औ=नद्यौ

                  १०)अनु+अयः=अन्वयः।


2.

अयादि सन्धि

(एचोयवायावः) ए को अय्‌ , ओ को अव्‌ ,ऐ को आय्‌ , औ को आव्‌ हो जाता है यदि बाद में कोई स्वर हो तो ।

उदाहरण- हरे + ए= हरये। यहां हरे के “ए” के स्थान पर अय्‌ हो गया है क्योंकि बाद में स्वर”ए” है।

२) कवे + ए= कवये ।

३) पो + अनः= पवनः।

४) भानो + ए= भानवे ।

५) नै + अकः= नायकः।

६) गै +अकः= गायकः।

७) प्रभौ + अः= प्रभावः।

८) पौ + अकः= पावकः ।

९) शिशो + ए= शिशवे ।

१०) परिचै+अकः=परिचायकः


3.

अनुनासिक सन्धि

शब्द के अन्त में  यर् प्रत्याहार(य,व,र,ञ,म,ङ,ण,न,झ,भ,घ,ढ,ध,ज,ब,ग,ड,द,ख,फ,छ,ठ,थ,च,ट,त,क,प,श,ष,स) वाले वर्णों के बाद अनुनासिक हो तो यर् के स्थान पर अनुनासिक आदेश हो जाता है।

उदाहरण- सद् + मतिः= सन्मतिः । यहां यर् प्रत्याहार वाले वर्ण द् के स्थान पर अपने वर्ग का अन्तिम वर्ण अनुनासिक न् हो गया क्योंकि अनुनासिक म् परे है ।

२) वाक् + मयम्= वाङ्मयम् ।

३) दिक् + नागः= दिङ्नागः ।

४) तत् + न= तन्न ।

५) तत् + मयम्= तन्मयम् ।

६) पद्‌ + नगः= पन्नगः ।

७) षट् + मुखः= षण्मुखः ।

८) अप् + मयम्= अम्मयम् ।

९) सत् + मुखम् = सन्मुखम् ।

१०) जगत् + माता= जगन्माता ।


4.

अनुस्वार सन्धि

शब्द के अन्त में म् के बाद कोई व्यञ्जन हो तो उसको अनुस्वार हो जाता है ।

उदाहरण- हरिम् + वन्दे= हरिं वन्दे । यहां “म्” को अनुस्वार हो गया क्योंकि व्यञ्जन “व्” परे है।

२) गुरुम् + नमति= गुरुं नमति ।

३) कम् + चित्= कंचित् ।

४) कार्यम् + कुरु= कार्यं कुरु ।

५) सत्यम् + वद= सत्यं वद ।

६) धर्मम् + चर= धर्मं चर ।

७) पुस्तकम् + पठति= पुस्तकं पठति ।

८) भोजनम् + खादति= भोजनं खादति ।

९) रामम् + पश्यति = रामं पश्यति ।

१०) बालम् + ताडयति= बालं ताडयति ।


5.

गुण सन्धि(आद् गुण: )

अ या आ के बाद इ या ई हो तो दोनों को ए , उ या ऊ हो तो ओ , ऋ या ॠ हो तो अर्‌ ,लृ हो तो अल्‌ हो जाता है।

उदाहरण- महा+ईशः= महेशः । यहां आ से परे ई है अतः दोनों के स्थान पर ए हो गया ।

२) रमा + ईशः= रमेशः ।

३) पर + उपकारः= परोपकारः ।

४) महा + उत्सवः= महोत्सवः।

५) महा+ऋषिः=महर्षिः ।

६)  सप्त + ऋषिः=सप्तर्षिः।

७) तव + लृकारः=तवल्कारः।

८) का + इदानीम्‌= केदानीम्‌ ।

९) हित + उपदेशः= हितोपदेशः।

१०) ग्रीष्म + ऋतु= ग्रीष्मर्तुः।


6.

वृद्धि सन्धि ( वृद्धिरेचि)

( वृद्धिरेचि )अ या आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों को “ऐ” ,ओ या औ हो “औ”  होगा ।

उदाहरण- अत्र +एकः=अत्रैकः। यहां अ से परे ए है अतः दोनों के स्थान पर “ऐ” हुआ।

२) सा + एषा= सैषा ।

३) राज + ऐश्वर्यम्‌= राजैश्वर्यम् ।

४) का +एका = कैका ।

५) पश्य + ऐरावतः= पश्यैरावतः।

६) जल + ओघः= जलौघः ।

७) महा + औषधिः= महौषधिः।

८) तण्डुल +ओदनम्= तण्डुलौदनम् ।

९) महा + ओजः= महौजः।

१०) न + औघः= नौघः।


7.

छत्व सन्धि

शब्द के अन्त में झय् प्रत्याहार(वर्ग के १,२,३,४) के बाद श् हो तो उसको छ् हो जाता है,यदि उस श् के बाद अट्( स्वर,ह्,य्,व्,र्) हों तो ।

उदाहरण- तत् + शिवः= तच्छिवः । यहां झय् प्रत्याहार वाले वर्ण त् के बाद श् को छ् हो गया है क्योंकि श् के बाद में अट् प्रत्याहार वाला वर्ण इ है व श्चुत्व सन्धि से त् को च् हो गया ।

२) सत् + शीलः= सच्छीलः ।

३) तत् + शिला= तच्छिला ।

४) उत् + श्रायः= उच्छ्रायः ।

५) पठत् + शाला= पठच्छाला ।

६) एतत् + शलाका= एतच्छलाका ।

७) धावत् + शशकः= धावच्छशकः ।

८) हसत् + शशिः= हसच्छशिः ।

९) भवत् + शर्करा= भवच्छर्करा ।

१०) भगवत् + शापः= भगवच्छापः ।


8.

जशत्व सन्धि 

झलों अर्थात्‌ वर्ग के १,२,३,४ व ऊष्म वर्णों को जश् अर्थात् वर्ग के तृतीय अक्षर हो जाते हैं यदि वे शब्द के अन्तिम अक्षर हों  व अन्तिम अक्षर न हो ,उसके बाद झश्(वर्ग का ३,४) वर्ण हो तो भी हो जाता है। 

उदाहरण- जगत् + ईशः= जगदीशः । यहां जगत् शब्द के अन्तिम “त्” को “द्” हो गया है क्योंकि यह शब्द का अन्तिम वर्ण है।

२) चित् + आनन्दः= चिदानन्दः ।

३) दिक् + अम्बरः= दिगम्बरः ।

४) उत् + देश्यम्= उद्देश्यम् ।

५) षट् + आननः= षडाननः ।

झश् परे के उदाहरण-

६) बुध् + धिः= बुद्धिः ।

७) दुघ् + धम्= दुग्धम् ।

८) युध् + धम्= युद्धम् ।

९) क्षुभ् + धः= क्षुब्धः ।

१०) शुध् + धिः= शुद्धिः ।


9.

परसवर्ण सन्धि

(अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः) अनुस्वार के बाद यय् प्रत्याहार(य,र,ल,व,वर्ग के १,२,३,४,५) हो तो अनुस्वार को परसवर्ण अर्थात् आगे के वर्ण का पञ्चम अक्षर हो जाता है।

उदाहरण- अं + कः= अङ्कः । यहां अनुस्वार के बाद यय् प्रत्याहार वाला क् परे है अतः अनुस्वार को क् का सवर्णी ङ् हो गया।

२) शं + का= शङ्का ।

३) अं + चितः= अञ्चितः।

४) कं + ठः= कण्ठः ।

५) शां + तः= शान्तः ।

६) सं + मानः= सम्मानः ।

७) गं + गा= गङ्गा ।

८) बं + धनम् = बन्धनम् ।

९) सं + पर्कः= सम्पर्कः।

१०) सं + चयः= सञ्चयः ।


10.

पूर्वरूप सन्धि

शब्द के अन्तिम ए या ओ के बाद अ हो तो उसको पूर्वरुप( ए या ओ ) ही हो जाता है अर्थात्‌ “अ” ए या ओ में मिल जाता है।

उदाहरण- विद्यालये + अस्मिन्‌= विद्यालयेस्मिन्‌ । यहां “अ” व “ए” के स्थान पर “ए” हो गया है।

२) लोके + अयम्‌= लोकेयम्‌ ।

३) हरे + अव= हरेव ।

४) याचते + अधुना= याचतेधुना ।

५) अधीते + अमुम्= अधीतेमुम्‌ ।

६) विष्णो + अव= विष्णोव ।

७) रामो + अत्र=रामोत्र ।

८) लोको + अयम्‌= लोकोयम्‌ ।

९) रमेशो + अगच्छत्‌= रमेशोगच्छत् ।

१०) देवो + अन्नम्= देवोन्नम् ।


11.

विसर्ग सन्धि

विसर्ग के बाद खर् प्रत्याहार के वर्ण (वर्ग के १,२,श,ष,स) में से कोई हो तो विसर्ग को स् हो जाता है।

उदाहरण- बालः + चलति= बालस् + चलति= बालश्चलति । यहां विसर्ग को स् हो गया क्योंकि बाद में खर् प्रत्याहार का “च् ” है व चवर्ग या श् के परे रहने पर होने वाली श्चुत्व सन्धि होकर स् को श् हो गया।

२) रामः + च= रामश्च ।

३) हरिः + त्रायते= हरिस्त्रायते ।

४) देवदत्तः + तिष्ठति= देवदत्तस्तिष्ठति ।

५) कः + चित्= कश्चित् ।

६) निः + चलः= निश्चलः ।

७) बालिकाः + कुर्वन्ति= बालिकास्कुर्वन्ति ।

८) यः + पचति= यस्पचति ।

९) शिशुः + खादति= शिशुस्खादति ।

१०) भवतः + फलम्= भवतस्फलम् ।


12.

विसर्ग सन्धि 

( खरवसानयोर्विसर्जनीयः)खर् प्रत्याहार परे रहते या विराम होने पर शब्द के अन्तिम र् को विसर्ग हो जाता है। यह र् शब्द के अन्तिम स् के स्थान पर होता है( ससजुषो रुं) ।

उदाहरण- बालकस् + चलति । यहां पहले स् को र् हुआ फिर र् के स्थान पर उपर्युक्त नियम से खर् प्रत्याहार वाले वर्ण च् के परे रहते विसर्ग हो गया ।

२) पशवस् + चरन्ति= पशवः चरन्ति ।

३) शिशुस् + स्वपिति= शिशुः स्वपिति ।

४) हरिस् + कथयति= हरिः कथयति ।

५) देवदत्तस् + पालयति= देवदत्तः पालयति ।

६) पितरस् = पितरः ।

७) नृपस् = नृपः ।

८) शिष्यस् = शिष्यः ।

९) मोहनस् = मोहनः ।

१०) छात्रस् = छात्रः ।


13.

रुत्व सन्धि(नश्छव्यप्रशान् )

शब्द के अन्तिम न् को र् हो जाता है यदि बाद में छव् प्रत्याहार( च्,छ्,ट्,ठ्,त्,थ्) बाद में हो व उस छव् के बाद अम् प्रत्याहार वाला वर्ण ( स्वर,ह,अन्तःस्थ,वर्ग के पञ्चम अक्षर) हो तो ।

उदाहरण- कस्मिन् + चित्= कस्मिंश्चित् । यहां पहले उपर्युक्त सूत्र से न् को र् हुआ क्योंकि न् के बाद छव् प्रत्याहार वाला वर्ण च् व उस च् के बाद अम् प्रत्याहार वाला इ है । उसके बाद विसर्ग सन्धि( खरवसानयोर्विसर्जनीयः) से खर् प्रत्याहार वाले वर्ण के परे रहते र् के स्थान पर विसर्ग हो गया। फिर उस विसर्ग को स् खर् प्रत्याहार के परे रहते विसर्ग सन्धि( विसर्जनीयस्य सः) से स् और स् को श्चुत्व सन्धि से श् हो गया है । 

२) धीमान् + च= धीमांश्च ।

३) अस्मिन् + तरौ= अस्मिंस्तरौ ।

४) शार्ङिन् + छिन्धि= शार्ङ्गिश्छिन्धि ।

५) चक्रिन् + त्रायस्व= चक्रिंस्त्रायस्व ।

६) तस्मिन् + तथा= तस्मिंस्तथा ।

७) श्रीमान् + चलति= श्रीमांश्चलति ।

८) विद्वान् + तरति= विद्वांस्तरति ।

९) भवान् + छिनत्ति= भवांश्छिनत्ति ।

१०) भगवान् + छन्दः= भगवांश्छन्दः ।


14.

यत्व सन्धि

( भोभगोअघोअपूर्वस्य योशि ) भोः,भगोः,अघोः व अ या आ के बाद र् को य् हो जाता है बाद में यदि अश् प्रत्याहार के वर्ण ( स्वर,ह,य,व,र,ल,वर्ग के ३,४,५ ) हों तो । 

उदाहरण- रामः +  इच्छति= राम इच्छति । राम् + अ+स् + इच्छति । 

                                   रा‌म् + अ +र् + इच्छति ( यहां शब्द के अन्तिम स् को र् हुआ)

                                   राम् + अ+ य् +इच्छति ( यहां अ से परे र् को य् उपर्युक्त नियम से हुआ क्योंकि बाद में स्वर इ है।                      राम इच्छति । इसके बाद य् का लोप शाकल्य आचार्य के अनुसार( लोपः शाकल्यस्य) से हो जाता है। 

२) देवाः + गच्छन्ति= देवा गच्छन्ति ।

३) नराः + हसन्ति= नरा हसन्ति ।

४) देवः + इह= देव इह ।

५) बालाः + यच्छति= बाला यच्छति ।

६) शिष्याः + एते= शिष्या  एते ।

७) लताः + लिखति= लता लिखति ।

८) भोः + राम != भो राम !

९) भगोः + अत्र = भगो अत्र ।

१०) अघोः ददाति = अघो ददाति ।


15.

लत्व सन्धि

तवर्ग के बाद ल हो तो तवर्ग को भी ल हो जाता है।

उदाहरण- उत् + लेखः= उल्लेखः । यहां त् के स्थान पर ल् हो गया क्योंकि ल् परे है। न् के स्थान पर अनुनासिक ल् हो जाएगा ।

२) पद् +लवः= पल्लवः ।

३) तत् + लीनः= तल्लीनः ।

४) विद्वान् + लिखति= विद्वाल्लिंखति ।

५) तद् + लयः= तल्लयः ।

६) भगवत् + लीनः= भगवल्लीनः ।

७) हसन् + लिखति= हसल्लिंखति ।

८) खादन् + लसति= खादल्लंसति ।

९) श्रीमत् + लाति= श्रीमल्लाति ।

१०) जगत् + लजते= जगल्लजते ।


16.

श्चुत्व सन्धि

स्‌ या तवर्ग से पहले या बाद में श्‌ या चवर्ग हो तो स्‌ व तवर्ग को क्रमशः श्‌ या चवर्ग हो जाता है।

उदाहरण- तत् + च= तच्च । यहां त्‌ को च् हो गया है क्योंकि “च्” बाद में है।

२) सत् + चित्= सच्चित् ।

३) रामस् + च= रामश्च ।

४) कस् + चित्= कश्चित् ।

५) सन् +जयः= सञ्जयः ।

६) शार्ङ्गिन् + जयः= शार्ङ्गिञ्जयः ।

७) उत् + चारणम्= उच्चारणम् ।

८) तत् + चरित्रम्= तच्चरित्रम् ।

९) सद् + जनः= सज्जनः ।

१०) याच् +ना= याच्ञा ।


17.

ष्टुत्व सन्धि 

स् या तवर्ग से पहले या बाद में ष् या टवर्ग हो तो स् व तवर्ग को क्रमशः ष् व टवर्ग हो जाते हैं।

उदाहरण- तत् + टीका= तट्टीका । यहां त् को ट् हो गया है क्योंकि “ट्” बाद में है।

२) सृष् + तिः= सृष्टिः ।

३) कृष् + नः= कृष्णः ।

४) विष् + नुः= विष्णुः ।

५) उद्+ डयनम्= उड्डयनम् ।

६) उद् + डीनः= उड्डीनः ।

७) हरिस् + षष्ठः= हरिष्षष्ठः ।

८) दुष् + तः= दुष्टः ।

९) उष् + त्रः= उष्ट्रः ।

१०) बालास्  + षड्= बालाष्षड् ।


18.

सुलोप सन्धि

सः व एषः के विसर्ग का लोप होता है बाद में यदि कोई व्यञ्जन हो तो ।

उदाहरण- सः + पठति= स पठति । यहां सः के विसर्ग का लोप हो गया है क्योंकि बाद में व्यञ्जन “प्”है।

२) सः + खादति= स खादति ।

३) एषः + लिखति= एष लिखति ।

४) एषः + करोति= एष करोति ।

५) सः + पचति= स पचति ।

६) एषः + धावति= एष धावति ।

७) सः + हसति= स हसति ।

८) एषः + वदति= एष + वदति ।

९) सः + चलति= स चलति ।

१०) एषः + पश्यति= एष पश्यति ।


■★■

19.

समास प्रकरण

समास- दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द बनाने को समास कहते हैं ।

समास का अर्थ हैं संक्षेप करना । समास कर लेने पर समास को प्राप्त हुए शब्दों के बीच की विभक्तियां नहीं रहती व अन्त में पूरे (मिलकर बने हुए) शब्द में एक विभक्ति लग जाती है ।

विग्रह- समास को अलग करके उसकी पहले वाली स्थिति में रखने को विग्रह कहते हैं ।

उदाहरण- राज्ञः पुरुषः(विग्रह)= राजपुरुषः(समास) ।

 यहां विग्रह वाक्य में राज्ञः(राजा का) एक शब्द है व पुरुषः(व्यक्ति)दूसरा शब्द है । इन दोनों शब्दों से मिलकर एक शब्द “राजपुरुषः” बन गया। “राज्ञः” शब्द में स्थित मध्य की षष्ठी विभक्ति का लोप हो गया।

समास के मुख्यरुप से पांच भेद होते हैं—

१) अव्ययीभावः २) तत्पुरुषः ३) बहुव्रीहिः ४) द्वन्द्वः ५) केवली समास ।


20.


अव्ययीभाव समास

      अव्ययीभाव समास में पहला शब्द अव्यय होता है बाद का शब्द कोई संज्ञा शब्द होता है। इस समास वाले शब्द नपुंसक लिङ्ग में व अव्यय होते हैं ।

उदाहरण- हरौ इति= अधिहरि । यहां विग्रह वाक्य में हरि शब्द में सप्तमी विभक्ति है जबकि समास में सप्तमी के अर्थ में “अधि” अव्यय का प्रयोग किया गया है।

२) कृष्णस्य समीपम्= उपकृष्णम् ( समीप अर्थ में उप अव्यय )।

३) विघ्नानाम् अभावः= निर्विघ्नम् ( अभाव अर्थ में निर् अव्यय)।

४) रथानाम् पश्चात्= अनुरथम् ( पीछे अर्थ में अनु अव्यय)।

५) गृहं गृहं प्रति= प्रतिगृहम् ( व्याप्ति अर्थ में प्रति अव्यय)।

६) शक्तिम् अनतिक्रम्य= यथाशक्ति( शक्ति का उल्लंघन करने अर्थ में यथा अव्यय)।

७) चक्रेण सह= सचक्रम् ( साथ अर्थ में सह अव्यय व सह को स हुआ)।

८) आ पाटलिपुत्राद् = आपाटलिपुत्रम् ( तक अर्थ में आ अव्यय)।

९) ग्रामाद् बहिः= बहिर्ग्रामम् ( बाहर अर्थ में बहिः अव्यय)।

१०) अग्निं प्रति= प्रत्यग्नि (  की ओर अर्थ में प्रति अव्यय)।


21.

तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास में दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने पर बीच की द्वितीया,तृतीया,चतुर्थी,पञ्चमी,षष्ठी या सप्तमी विभक्ति का लोप हो जाता है व जिस विभक्ति का लोप होता है उसी के नाम से समास का नाम हो जाता है। इसमें बाद वाले शब्द के अर्थ की प्रधानता रहती है(उत्तरपदप्रधानस्तत्पुरुषः)।

उदाहरण- भयं प्राप्तः= भयप्राप्तः। यहां समास होने पर “भय” शब्द में प्रयुक्त द्वितीया विभक्ति का लोप हो गया है अतः यह द्वितीया तत्पुरुष समास हो गया। यहां पहले शब्द “भय” को मुख्य रुप से न कहा जाकर भय को प्राप्त मनुष्य को कहा जा रहा है अतः बाद वाले अर्थ की प्रधानता हुई।

२) विद्यया हीनः= विद्याहीनः( तृतीया तत्पुरुषः)।

३) ज्ञानेन शून्यः= ज्ञानशून्यः( तृतीया तत्पुरुषः)।

४) भूताय बलिः= भूतबलिः( चतुर्थी तत्पुरुषः)।

५) गवे हितम्= गोहितम् ( चतुर्थी तत्पुरुषः)।

६) शत्रोः भयम्= शत्रुभयम् ( पञ्चमी तत्पुरुषः)।

७) अश्वात् पतितः= अश्वपतितः(पञ्चमी तत्पुरुषः)।

८) देवानाम् आलयः= देवालयः( षष्ठी तत्पुरुषः)।

९) जले मग्नः= जलमग्नः( सप्तमी तत्पुरुषः)।

१०) कार्ये दक्षः= कार्यदक्षः(सप्तमी तत्पुरुषः)।


22.

कर्मधारय समास

यह समास उन दो शब्दों के मध्य होता है जिनका एक ही अधिकरण(आधार) हो। यह तत्पुरुष समास का ही एक भेद है। 

उदाहरण- कृष्णः च असौ सर्पः च= कृष्णसर्पः। यहां “कृष्णसर्पः” में प्रयुक्त “कृष्ण” वर्ण भी उसी शरीर में है जिसे सर्प कहा जा रहा है अतः इन दोनों शब्दों का आधार समान होने से समास हो गया।

२) नीलं च तत् कमलं च= नीलकमलम् ।

३) महान् च असौ आत्मा च= महात्मा ।

४) महान् च असौ देवः च= महादेवः ।

५) मुखम् एव कमलम्= मुखकमलम् ।

६) सुन्दरः पुरुषः= सुपुरुषः( सुन्दर के अर्थ में “सु” का प्रयोग)।

७) कुत्सितः पुत्रः= कुपुत्रः( कुत्सित अर्थ में “कु” का प्रयोग)।

८) घन इव श्यामः= घनश्यामः ।

९) चन्द्रसदृशं मुखम्= चन्द्रमुखम् ।

१०)   नर इव सिंहः= नरसिंहः ।


23.

द्विगु तत्पुरुष

 यह कर्मधारय समास का ही उपभेद है। जब कर्मधारय समास में प्रथम शब्द संख्यावाचक हो तो वह द्विगु समास हो जाता है।अधिकतर यह समाहार(समुदाय) अर्थ में होता है अतः एकवचन, नपुंसकलिङ्ग व कहीं-२ स्त्रीलिङ्ग में होता है।

उदाहरण- त्रयाणां लोकानां समाहारः- त्रिलोकम् ( तीन लोकों का समूह) । यहां समास में पूर्व-पद संख्यावाचक है व समस्तपद समूह को कहने में आया है अतः द्विगु समास हो गया ।

२) त्रयाणां भुवनानां समाहारः= त्रिभुवनम् ।

३) चतुर्णां युगानां समाहारः= चतुर्युगम् ।

४) पञ्चानां पात्राणां समाहारः= पञ्चपात्रम् ।

५) शतानाम् अब्दानां समाहारः= शताब्दी ।

६) दशानां वर्षाणां समाहारः= दशाब्दी ।

७) सप्तानां खट्वानां समाहारः= सप्तखट्वम् ।

८) अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः= अष्टाध्यायी ।

९) दशानां पूलानां समाहारः= दशपूली ।

१०) पञ्चानां गवां समाहारः= पञ्चगवम् ।


24.

नञ् तत्पुरुष समास

 “नहीं” अर्थ वाले “नञ्” का जब दूसरे शब्द के साथ समास हो जाता है तो वह नञ् समास कहलाता है। यदि बाद में व्यञ्जन हो तो नञ् का “अ” शेष रहता है व बाद में स्वर हो तो अन् रहेगा ।

उदाहरण- न ब्राह्मणः=अब्राह्मणः । यहां “न” व “ब्राह्मण” का समास होकर “अब्राह्मणः” शब्द बना व समस्त पद में न का अ शेष रहा ।

२) न स्वस्थः= अस्वस्थः ।

३) न न्यायः= अन्यायः ।

४) न प्रियः= अप्रियः ।

५) न सुन्दरः= असुन्दरः ।

६) न उपस्थितः= अनुपस्थितः ।

७) न उचितः= अनुचितः ।

८) न आगतः= अनागतः ।

९) न उदारः= अनुदारः ।

१०) न ईश्वरवादी= अनीश्वरवादी ।


25.

बहुव्रीहि समास

(अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः)इस समास में दो या दो से अधिक शब्द मिलकर नया शब्द बनाते हैं जो समास हुए शब्दों के अर्थों से अन्य अर्थ को कहता है। इसकी पहचान यह है कि जहां अर्थ करने पर जिसको,जिसने,जिसका,जिसमें आदि अर्थ निकले।

उदाहरण- पीतम् अम्बरं यस्य सः=पीताम्बरः । यहां “पीतम्” व “अम्बरम्” मिलकर पीताम्बर शब्द बना रहे हैं जिसका अर्थ पीतम्(पीला) व अम्बर(वस्त्र) से भिन्न “पीला है वस्त्र जिसका वह= पीताम्बरः होगा। 

२) प्राप्तम् उदकं यं सः= प्राप्तोदकः ।

३) हताः शत्रवः येन सः= हतशत्रुः।

४) दत्तं भोजनं यस्मै सः= दत्तभोजनः ।

५) पतितं पर्णं यस्मात् सः= पतितपर्णः ।

६) दश आननानि यस्य सः= दशाननः ।

७) वीराः पुरुषाः यस्मिन् सः= वीरपुरुषः ।

८) धनुः पाणौ यस्य सः= धनुष्पाणिः ।

९) पुत्रेण सह यः= सपुत्रः ।

१०) विनयेन सह यः= सविनयः ।


26.

द्वन्द्व समास

(उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः) इस समास में “च”के अर्थ में समास होता है अर्थात् समस्तपद का अर्थ करने पर “और” का अर्थ निकलता है। जिन शब्दों के बीच समास होता है उन सभी शब्दों के अर्थ की प्रधानता रहती है।

यह समास मुख्यरुप से दो प्रकार का होता है-

         १) इतरेतरयोग द्वन्द्व- इसमें मध्य में और का अर्थ होता है व शब्दों की संख्या के अनुसार समस्तपद का वचन होता है अर्थात् दो हो तो द्विवचन,बहुत हो तो बहुवचन ।

उदाहरण- रामश्च कृष्णश्च= रामकृष्णौ । यहां “राम और कृष्ण” ऐसा “और” का अर्थ आ रहा है व दो शब्दों के मध्य समास हुआ है इसलिए समस्तपद में द्विवचन है।

२)सीता च रामश्च= सीतारामौ ।

३)उमा च शंकरश्च= उमाशंकरौ ।

४)रामश्च लक्ष्मणश्च भरतश्च शत्रुघ्नश्च= रामलक्ष्मणभरतशत्रुघ्नाः ।

५)पत्रं च पुष्पं च फलं च= पत्रपुष्पफलानि ।

२) समाहार द्वन्द्वः- इस समास में कई शब्दों के समुदाय का बोध होता है। समस्तपद में नपुंसक लिङ्ग एकवचन होता है।

उदाहरण- हस्तौ च पादौ च= हस्तपादम् । यहां दो हाथ व दो पैर के समुदाय को समास के द्वारा कहा जा रहा है। समस्तपद में नपुंसकलिङ्ग एकवचन हुआ ।

७)दधि च घृतं च= दधिघृतम् ।

८) गावश्च महिषाश्च= गोमहिषम् ।

९) व्रीहयश्च यवाश्च= व्रीहियवम् ।

१०) शीतं च उष्णं च= शीतोष्णम् ।

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27.

केवली या सुप्-सुपा समास

जो समास अव्ययीभाव आदि चारों समासों की परिभाषा में नहीं आता वह केवल समास कहलाता है।

कहीं कहीं सुबन्त का सुबन्त के साथ समास हो जाता है-

जैसे-पूर्वंभूतः=भूतपूर्वः ।                                                                                                                                                            पूर्वम् अदृष्टः=अदृष्टपूर्वः ।

न एकः= नैकः ।   

कहीं कहीं सुबन्त का तिङन्त के साथ भी समास हो जाता है-

परि अभूषत्- पर्यभूषत् ।

अनु वि अचलत्= अनुव्यचलत् ।

कहीं कहीं सुबन्त का इव अव्यय के साथ समास होता है व बीच की विभक्ति का लोप नहीं होता-

वाससी इव= वाससीइव ।

वस्त्रे इव= वस्त्रेइव ।

वागर्थौ इव= वागर्थाविव ।

जीमूतस्य इव= जीमूतस्येव।

उद्बाहुः इव= उद्बाहुरिव ।


28.

प्रत्यय प्रकरण 

कर्ता अर्थ के बोधक ण्वुल्‌ व तृच् प्रत्यय

धातु से कर्ता अर्थ को कहने में ण्वुल्‌ व तृच् प्रत्यय होते हैं। ण्वुल्‌ का वु बचता है, उसको अक हो जाता है व तृच्‌ का तृ । ण्वु‌ल्‌ प्रत्ययान्त के रुप पुल्लिंग में राम‌,स्त्रीलिङ्ग में रमा के समान । इसी प्रकार तृच्‌ प्रत्ययान्त के रुप पुल्लिङ्ग में कर्तृ व स्त्रीलिङ्ग में नदी के तुल्य चलेगें। 

उदाहरण- ईश्वरः जगतः कर्ता अस्ति। यहां “कर्ता” शब्द में “कृ” धातु से तृच्‌ प्रत्यय हुआ अतः वाक्य का अर्थ हुआ “ ईश्वर जगत्‌ का करने वाला है”।

२) एते जनाः धनानां भोक्तारः सन्ति।

     ये लोग धनों के भोगने वाले हैं।

३) चोरः वस्तुनः हर्ता अस्ति ।

    चोर वस्तु का हरण करने वाला है ।

४) पिता पुत्राणां भर्ता अस्ति ।

    पिता पुत्रों का भरण करने वाला है।

५) माता  बालकानां कर्त्री अस्ति ।

     माता बालकों की करने वाली(निर्माण) है।

६) रमेशः कक्षायाम्‌ अध्यापकः अस्ति।

    रमेश कक्षा में अध्यापक है।

७) सः चलचित्रे उत्तमः नायकः अस्ति।

    वह फिल्म में अच्छा नायक है।

८) स्वामी दयानन्दः “सत्यार्थप्रकाश”इत्यस्य ग्रन्थस्य लेखकः अस्ति।

    स्वामी दयानन्द” सत्यार्थप्रकाश” इस ग्रन्थ के लेखक हैं।

९) रामः श्रेष्ठानां परम्पराणां वाहकः अस्ति।

    राम श्रेष्ठ परम्पराओं का वहन करने वाला है।

१०) परीक्षायां सा परीक्षिका भविष्यति ।

      परीक्षा में वह जांचने वाली होगी ।


29.

क्त व क्तवतु (भूतकाल के प्रत्यय)

भूतकाल को कहने में धातु(क्रियावाची शब्द) से क्त व क्तवतु प्रत्ययों का प्रयोग होता है।

उदाहरण- १) तेन पुस्तकं पठितम्‌। यहां प‌ठ्‌ धातु में क्त प्रत्यय का प्रयोग हुआ है अतः वाक्य का अर्थ हुआ उसके द्वारा पुस्तक पढी गई। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि क्त का त व क्तवतु का तवत् शेष रहता है व क्त प्रत्यय के वाक्य अधिकतर कर्मवाच्य व क्तवतु के कर्तृवाच्य में बनते हैं।

२) अहं गृहं गतवान्‌ ।

    मैं घर को गया ।

३) रामेण इदं कार्यं कृतम्‌।

    राम के द्वारा यह कार्य किया गया।

४) बालकः भोजनं भुक्तवान्‌ ।

    बालक ने भोजन खाया ।

५) शिष्येण लेखः लिखितः ।

    शिष्य के द्वारा लेख लिखा गया।

६) तत्र एकं पत्रं पतितवान्‌।

    वहां एक पत्ता गिरा ।

७) यज्ञकर्त्रा दारु छिन्नम्‌ ।

     यज्ञ करने वाले के द्वारा लकडी फाडी गई।

८) रामः रावणं हतवान्‌ ।

    राम ने रावण को मारा ।

९) बालिका विद्यालयं गता ।

    बालिका विद्यालय को गयी ।

१०) कृषकः अन्नम्‌ उप्तवान् ।

     किसान के अन्न बोया ।


30.

“चाहिए” अर्थबोधक तव्यत्‌ व अनीयर्‌ प्रत्यय

“चाहिए”अर्थ को कहने में धातु से तव्यत् व अनीयर्‌ प्रत्यय होते हैं। इनके क्रमशः तव्य व अनीय शेष रहते हैं। ये प्रत्यय कर्मवाच्य व भाववाच्य में होते हैं।

 उदाहरण- तेन कार्यं कर्तव्यम्‌ । यहां क्रिया अर्थात्‌ कृ धातु में तव्यत्‌ प्रत्यय हुआ है अतः वाक्य का अर्थ हुआ “ उसके द्वारा कार्य किया जाना चाहिए”। इस प्रकार अनीयर्‌ प्रत्ययान्त शब्दों के प्रयोग होगें।

२) मया लेखः लेखितव्यः।

    मेरे द्वारा लेख लिखा जाना चाहिए।

३) लतया अत्र स्थातव्यम्‌।

    लता के द्वारा यहां ठहरा जाना चाहिए।

४) देव्या गानं गातव्यम्‌।

     देवी के द्वारा गान गाया जाना चाहिए।

५) पित्रा तत्र स्नातव्यम्‌ ।

     पिता के द्वारा वहां स्नान किया जाना चाहिए।

 ६) युष्माभिः पाठः पठनीयः।

      तुम सब के द्वारा पाठ पढा जाना चाहिए।

 ७) भगिन्या हसनीयम्‌ ।

      बहन के द्वारा हंसा जाना चाहिए।

 ८) राज्ञा राज्यं पालनीयम्‌ ।

      राजा के द्वारा राज्य का पालन किया जाना चाहिए।

  ९) शिष्येण गुरुः सेवनीयः ।

       शिष्य के द्वारा गुरु की सेवा की जानी चाहिए।

   १०) साधुना  इत्थम् आचरणीयम्‌ ।

        साधु के द्वारा इस प्रकार आचरण किया जाना चाहिए।


31.

चाहिए अर्थक यत्‌ प्रत्यय

चाहिए या योग्य अर्थो में आ,इ,ई,उ,ऊ अन्त वाली धातुओं से यत्‌ प्रत्यय होता है। यत् का य शेष रहता है। यह प्रत्यय कर्मवाच्य व भाववाच्य में होता है।

उदाहरण- शिशुना जलं पेयम्‌। यहां पा धातु से “चाहिए” या “योग्य” अर्थ का बोधक यत्‌ प्रत्यय हुआ है अतः वाक्य का अर्थ हुआ “ शिशु के द्वारा जल पीना योग्य है”।

२) भवद्भिः पुस्तकानि देयानि ।

     आप सब के द्वारा पुस्तकें दी जानी योग्य हैं।

३) अतिथिना शुचि वारि पेयम्‌ ।

     अतिथि के द्वारा स्वच्छ जल पीना योग्य है।

४) जनैः महापुरुषाणां कीर्तिः गेया ।

     लोगों के द्वारा महापुरुषों की कीर्ति गाई जानी योग्य है।

५) तया अत्र स्थेयम्‌ ।

     उस(स्त्री) के द्वारा यहां रहा जाना योग्य है।

 ६) बालिकया पुष्पाणि चेयानि ।

      बालिका के द्वारा फूल चुनने योग्य हैं।

 ७) सेनापतिना शत्रुः जेयः।

      सेनापति के द्वारा शत्रु जीता जाना चाहिए।

 ८) शिक्षकेण शिक्षा देया ।

      शिक्षक के द्वारा शिक्षा दी जानी चाहिए ।

 ९) दुर्जनेन पापानि हेयानि ।

     दुर्जन के द्वारा पाप छोडे जाने चाहिए।

 १०) पण्डितेन यज्ञकुण्डे हव्यम्‌ ।

       पण्डित के द्वारा यज्ञकुण्ड में आहुति दी जानी चाहिए।


32.

इ्च्छा अर्थ का बोधक सन्‌ प्रत्यय

इच्छा करना या चाहना अर्थ में धातु से सन्‌ प्रत्यय होता है। सन्‌ का “स” शेष रहता है।

उदाहरण- भूभृत्‌ राज्यं जिगीषति । यहां क्रिया में “जि” धातु से सन्‌ प्रत्यय हुआ अतः वाक्य का अर्थ हुआ”राजा राज्य को जीतने की इच्छा करता है”।

२) चिकित्सकः रोगिणं चिकित्सति।

    चिकित्सक रोगी का रोग दूर करना चाहता है।

३) मार्गे भिक्षुकः बुभुक्षते ।

    रास्ते में भिखारी खाने की इच्छा करता है।

४) धनिकः धनं लिप्सते।

     धनी धन पाना चाहता है।

५) सः विदुषः वचनं मीमांसते ।

     वह विद्वान्‌ के वचन की मीमांसा करना चाहता  है।

६) देवदत्तः दानं दित्सति।

     देवदत्त दान देना चाहता है।

७) दुर्जनः पापानि मुमुक्षति ।

     दुर्जन पापों को छोडने की इच्छा करता है।

८) विद्यार्थी पाठं पिपठिषति।

     विद्यार्थी पाठ पढना चाहता है।

९) अहं धर्मं जिज्ञासे ।

     मैं धर्म को जानना चाहता हूं।

१०) काकः जलं पिपासति।

      कौआ जल पीना चाहता है।


33.

भाववाचक ल्युट्‌ प्रत्यय

धातु से भाव अर्थात्‌ क्रिया को कहने में ल्युट्‌(अन) प्रत्यय होता है। ल्युट् का यु शेष बचता है व उसको अन हो जाता है। अन प्रत्ययान्त शब्द नपुंसक लिङ्ग में होते हैं।

उदाहरण- बालकस्य गमनं पश्य । यहां गम्‌(जाना) धातु से ल्युट्‌(अन) प्रत्यय हुआ है जिसका अर्थ मूल धातु के समान “जाना”ही हुआ अतः वाक्य का अर्थ होगा” बालक का जाना देखो”।

२) पयसः पानं शोभनं भवति।

     दूध का पीना अच्छा होता है।

३) त्वं स्रोतसि स्नानं कुरु।

    तुम स्रोत में स्नान करो ।

४) बालकः वाससः धारणं करिष्यति ।

     बालक कपडों को धारण करेगा ।

५) अद्य रात्रौ भवान्‌ नभसः दर्शनं करोतु ।

     आज रात्रि में आप आकाश का दर्शन करो ।

६) एतत्‌ साधोः वचसः कथनम्‌ अस्ति ।

     यह साधु के वचन का कथन है ।

७) जीवनस्य प्रथमे काले तपसः आचरणं स्यात्‌ ।

     जीवन के प्रथम समय में तप का आचरण होवे ।

८) लेखकः लेखनम्‌ अकरोत्‌ ।

    लेखक ने लेखन किया ।

९) बालकः पुस्तकस्य पठनं करोति ।

     बालक पुस्तक का पढना करता है ।

१०) माता पुत्रस्य भरणं पोषणं च करोति ।

      माता पुत्र का भरण-पोषण करती है।


34.

पूर्वकालिक कत्वा व ल्यप्‌ प्रत्यय

वाक्य में दो क्रियाओं  का समान कर्ता होने पर के होने पर पूर्वकाल वाली क्रिया से कत्वा प्रत्यय होता है। यदि उस धातु से पूर्व अव्यय या उपसर्ग आदि हों तो कत्वा के स्थान पर ल्यप्‌ हो जाता है। इससे अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं आता व दोनों ही स्थितियों में शब्द के अव्यय होने से रुप नहीं चलते।

उदाहरण- यज्ञदतः भुक्त्वा विद्यालयं गच्छति। यहां खाना व जाना दो क्रियाएं हो रही हैं जिनका एक ही कर्ता यज्ञदत्त है अतः पूर्वकाल में घटित होने वाली भुज्(खाना) क्रिया में कत्वा प्रत्यय होकर वाक्य का अर्थ हुआ” यज्ञदत्त खाकर विद्यालय जाता है”।

२) शिष्यः स्नात्वा पाठं पठति।

    शिष्य स्नान करके पाठ पढता है।

३) सः मित्रं दृष्ट्वा ग्रामाद् आयाति।

    वह मित्र को  देखकर गांव से आता है।

४) कृषकः दुग्धं दुग्ध्वा क्षेत्रं प्रति गच्छति।

     किसान दूध को दुहकर खेत की ओर जाता है।

५) बालकः वाक्यम् उक्त्वा लिखति।

     बालक  वाक्य को बोल कर लिखता है।

 ६) परीक्षाम्‌ उत्तीर्य रमा मोदते ।

      परीक्षा को उत्तीर्ण करके रमा प्रसन्न होती है।

७) पुत्रम् आहूय पिता पृष्टवान्‌।

     पुत्र को बुलाकर पिता ने पूछा।

८)  देवदत्तः वेदम्‌ अधीत्य गृहस्थी भवति।

      देवदत्त  वेद को पढकर घर वाला बनता है।

९)  वणिक्‌ धनं संगृह्य दानं ददाति।

      व्यापारी धन को इक्टठा करके दान देता है।

१०) मयूरः प्रनृत्य मनः हरति।

      मोर नाचकर मन को हरता है।


35.

प्रत्यय प्रकरण( प्रकार अर्थ वाले प्रत्यय)

संख्यावाचक शब्दों से प्रकार अर्थ में धा या विध प्रत्ययों का प्रयोग होता है ।

उदाहरण- 

     १) स: एकधा कार्यं करोति। 

          वह एक प्रकार से कार्य करता है।

     २) एतत् पुस्तकं द्विविधम् अस्ति ।

           यह पुस्तक दो प्रकार की है।

     ३) राम: द्विधा पाठं पठिष्यति ।

          राम दो प्रकार से पाठ पढेगा ।

     ૪) बालकस्य समीपे द्विविधे कन्दुके स्त: 

          बालक के पास दो प्रकार की गेंद हैं।

     ५) सीता त्रिधा चलति ।

          सीता तीन प्रकार से चलती है।

      ६) माता बहुविधं भोजनं निर्मापयति ।

          माता बहुत प्रकार का भोजन बनाती है।

     ७) पिता बहुधा कार्याणि करोति।

           पिता बहुत प्रकार से कार्यों को करता है।

     ८) अस्मिन् ग्रामे बहुविधा:  मनुष्‍या: सन्ति ।

          इस गाँव में बहुत प्रकार के मनुष्य हैं ।

     ९) रमा एकधा एव कीडति ।

          रमा एक प्रकार से ही खेलती है।

    १०) अत्र द्विविधानि फलानि सन्ति ।

           यहां दो प्रकार के फ़ल हैं ।


36.

प्रेरणार्थक णिच्‌ प्रत्यय

       धातु(क्रियावाची शब्द) से प्रेरणा अर्थ को कहने में णिच्‌(अय) प्रत्यय लगता है। जहां कर्ता स्वयं कार्य न करके दूसरे से कार्य करवाता है वहां प्रेरणा अर्थ होता है।

       उदाहरण- १) गुरुः बालकेन लेखं लेखयति।

                          गुरु बालक से लेख लिखवाता है।

                      २) दुष्टः भृत्येन धनं चोरयति।

                          दुष्ट नौकर से धन चोरी करवाता है।

                       ३) बालकः भ्रातरं स्वापयति।

                            बालक भाई को सुलाता है।

                        ४) राजा भृत्येन कार्यं कारयति।

                             राजा नौकर से काम करवाता है।

                        ५) गुरुः शिष्यं पुस्तकं पाठयति ।

                            गुरु शिष्य को पुस्तक पढाता है।

                         ६) पिता पुत्रं विद्यालयं गमयति।

                              पिता पुत्र को विद्यालय भेजता है।

                          ७) देवदत्तः  अतिथीन् भोजनं भोजयति।

                               देवदत्त अतिथियों को भोजन खिलाता है।

                           ८) माता पुत्र्या भारं हारयति।

                               माता पुत्री से भार लिवाती है।

                           ९) अहं त्वां वेदम्‌ अवगमयामि।  

                                मैं तुमको वेद समझाता हूं।

                             १०) सः मया वस्त्राणि प्रक्षालयति ।

                                   वह मुझसे वस्त्र धुलवाता है।

      सामान्यरुप से जिससे कार्य करवाया जावे उसमें तृतीया विभक्ति होती है लेकिन जाना,समझना,खाना-पीना,शब्दकर्म वाली व अकर्मक धातुओं में वहां द्वितीया विभक्ति होती है।


37.

· 

                         तुमु‌न्‌ प्रत्यय( को,के लिए)  


को या के लिए अर्थ को प्रकट करने के लिए धातु से तुमुन्‌ प्रत्यय होता है। तुमुन्‌ का तुम् शेष रहता है। तुमुन्‌ प्रत्ययान्त शब्द अव्यय होता है अतः इसके रुप नहीं चलते हैं।

उदाहरण- सः कार्यं कर्तुम् इच्छति। यहां कृ धातु में तुमुन्‌ प्रत्यय का प्रयोग हुआ है अतः वाक्य का अर्थ हुआ “ वह कार्य करने को चाहता है”।

२) अहं फलानि खादितुम् इच्छामि।

मैं फलों को खाना चाहता हूं।

३) नेता सभायां वक्तुम् इच्छति।

नेता सभा में बोलना चाहता है।

४) बालिका विद्यालये पठितुम् इच्छति ।

बालिका विद्यालय में पढना चाहती है।

५) कृष्णः ग्रामं गन्तुम् इच्छति।

कृष्ण गांव को जाना चाहता है।

६) त्वं गुरुं वन्दितुम्‌ इच्छ ।

तुम गुरु का अभिवादन करना चाहो ।

७) कृषकः गां दोग्धुम्‌ गच्छति ।

किसान गाय को दुहने को जाता है।

८) मल्लः मल्लं जेतुं शक्नोति ।

पहलवान पहलवान को जीत सकता है।

९) सा पीडां सोढुं जानाति।

वह दर्द को सहन करना जानती है।

१०) पाचकः पक्तुं पाकशालां गच्छति।

रसोईया पकाने के लिए पाकशाला को जाता है।


38.

#नोट:-

संस्कृतभाषा में  ध्यान रखने योग्य नियम

  १) "मैं"के साथ उत्तम पुरुष का प्रयोग होता है।

       १) अहं पठामि।

       २) अहं लिखामि।

       ३)  अहं गच्छामि।

  २) "त्वम्‌" के साथ मध्यम पुरुष का प्रयोग होता है।

       १)  त्वं पठसि।

       २)  त्वं लिखसि।

       ३)  त्वं गच्छसि।

      "त्वम्‌" के स्थान पर यदि भवान्‌ शब्द का प्रयोग हो तो प्रथम पुरुष का प्रयोग होता है।

       १) भवान्‌ पठति।

       २) भवान्‌ लिखति।

       ३) भवान्‌ गच्छति।

   ३) "अहम्‌"या "त्व‌म्‌"के अलावा किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु के लिए प्रथम पुरुष का प्रयोग होता है।


       १) सः पठति।

       २) सः लिखति।

       ३) सः गच्छति।


39.

संस्कृतभाषा में कुछ ध्यान रखने योग्य बातें--

  १) बिना प्रत्यय लगाए किसी शब्द या धातु का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

      उदाहरण- मूल शब्दों जैसे गृह,पुस्तक,भोजन,प‌ठ्‍,रक्ष्‌ आदि का प्रयोग नहीं किया जा सकता बल्कि गृहम्‌,पुस्तकम्‌,भोजनम्‌,पठति,रक्षति आदि का ही प्रयोग होगा।

  २) व्यञ्जन आगे के स्वर में मिल जाता है।

       उदाहरण- अहम्‌+अद्य= अहमद्य।

                     त्वम्‌+ इदानीम्‌= त्वमिदानीम्‌।

                     अहम्‌+ आगच्छामि= अहमागच्छामि।

                      यूयम्‌+ इदम्‌= यूयमिदम्‌।

                     इदम्‌+ अत्र= इदमत्र

  ३) संस्कृत भाषा में च का प्रयोग एक शब्द के बाद किया जाता है।

     उदाहरण- रामः कृष्णः च( राम और कृष्ण)

                 २) फलं पुष्पं च।

                 ३) सीता गीता च।

                 ४) बालकः बालिका च।

                 ५) ईश्वरः भक्तः च।

40.

संस्कृत-भाषा में मुख्यतः तीन प्रकार के शब्द होते हैं


१) शब्दरुप वाले शब्द      २) क्रियारुप वाले शब्द      ३) अव्यय शब्द


१) शब्दरुप वाले शब्द- इस वर्गीकरण के अन्तर्गत वे शब्द आते हैं जिनके सात विभक्तियों व तीन वचनों में रुप चलते हैं। ये संज्ञा,सर्वनाम या विशेषणवाची शब्द होते हैं। इनकी विशेषता यह है कि जिन शब्दों का अन्तिम वर्ण व लिङ्ग मिलता हो उनके रुप एक समान चलते हैं। जैसे राम अकारान्त पुल्लिङ्ग शब्द है अतः सभी अकारान्त पुल्लिङ्ग  शब्दों के रुप एक समान चलेगें।

इसी प्रकार    अकारान्त पुल्लिङ्ग शब्द- राम,बालक,छात्र,श्याम आदि

                   आकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्द- लता,रमा,अजा,बालिका आदि 

                    इकारान्त पुल्लिङ्ग शब्द- हरि,रवि,गिरि,कपि आदि

                    इकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्द- मति,गति,बुद्धि,शक्ति आदि


२) क्रियारुप वाले शब्द- इस वर्गीकरण के अन्तर्गत वे शब्द आते हैं जिनके तीन पुरुषों(प्रथम पुरुष,मध्यम पुरुष,उत्तम पुरुष) व तीन वचनों में रुप चलते हैं। ये क्रियावाची शब्द होते हैं। इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है

 १)परस्मैपदी     

 २) आत्मनेपदी।

 परस्मैपदी क्रियाओं के रुप लगभग एक समान चलते हैं व आत्मनेपदी क्रियाओं के रुप एक समान चलते हैं।


३) अव्यय शब्द- इस वर्गीकरण के अन्तर्गत वे शब्द आते हैं जिनके रुप सभी विभक्तियों,लिङ्गों व वचनों में एक समान रहते हैं अर्थात् उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता ।

उदाहरण- यत्र,तत्र,सर्वदा,यतः,ततः आदि ।


41.

कारक प्रकरण

   संस्कृत भाषा में छः कारक होते हैं--

    १) कर्ता २) कर्म ३) करण ४) सम्प्रदान ५) अपादान ६) अधिकरण

    १) कर्ता कारक(स्वतन्त्र: कर्ता)- क्रिया के करने वाले को कर्ता कहते हैं।

      उदाहरण-१) रामः पठति। इस वाक्य में पढने की क्रिया राम कर रहा है अतः राम कर्ता हुआ।

                 इसी प्रकार 

                 २)  बालकः गच्छति ।

                       बालक जाता है।

                  ३) पुष्पं पतति ।

                      फूल गिरता है।

                  ४) पुत्रः क्रीडति।

                       पुत्र खेलता है।

                  ५) सः हसति ।

                       वह हंसता है।

                  ६) बालिका नृत्यति।

                       बालिका नाचती है।

                  ७) श्यामः खादति ।

                       श्याम खाता है।

                  ८) दुर्जनः धावति ।

                       दुर्जन दौडता है।

                  ९) त्वं पृच्छसि ।

                       तुम पूछते हो ।

                  १०) अहम्‌ इच्छामि ।

                          मैं इच्छा करता हूं।


42.

कर्म कारक

    (कर्तुरीप्सित्तमं कर्म) कर्ता क्रिया के द्वारा जिसे सबसे अधिक चाहता है उसे कर्म कहते हैं। कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है।

        उदाहरण-- रामः पाठं पठति। इस वाक्य में राम पढने की क्रिया के द्वारा पाठ को पढना चाहता है अतः पाठ की कर्म संज्ञा हुई व उसमे द्वितीया विभक्ति हुई।

        इसी प्रकार

                     २) बालकः विद्यालयं गच्छति।

                          बालक विद्यालय को जाता है।

                     ३) राजा राज्यं रक्षति।

                          राजा राज्य की रक्षा करता है।

                     ४) कृष्णः भोजनं खादति।

                          कृष्ण भोजन को खाता है।

                     ५) अहम्‌ ईश्वरं नमामि।

                          मैं ईश्वर को नमस्कार करता हूं।

                     ६) त्वं पुस्तकं पठसि।

                          तुम पुस्तक को पढते हो ।

                     ७) सः पत्रं स्पृशति।

                          वह पत्ते को छूता है।

                     ८)  अहं पत्रं लिखामि।

                           मैं पत्र को लिखता हूं।

                     ९)  त्वं गृहं प्रविशसि।

                           तुम घर में प्रवेश करते हो ।

                     १०) वयम्‌ ईश्वरं स्मरामः।

                            हम सब ईश्वर को याद करते हैं।


43.

कर्म कारक

       अन्य कारकों की परिभाषाओं के द्वारा जिसे न कहा जाए उसकी भी कर्म संज्ञा होती है व उसमें द्वितीया विभक्ति होती है।

         उदाहरण--१) रामः नृपं धनं याचते। यहां राम राजा से धन मांग रहा है। अतः राम मांगना क्रिया का कर्ता व धन कर्म(प्रधान-कर्म) हुआ क्योंकि राम मांगना क्रिया के द्वारा धन को चाहता है। परन्तु "राजा से" यहां कौन सा कारक हो यह प्रश्न है क्योंकि यहां तो किसी कारक की परिभाषा नहीं लगती। अतः उपर्युक्त नियम से कर्म कारक(गौण-कर्म) हुआ। 

        इसी प्रकार

        २) सः अजां दुग्धं दोग्धि ।

             वह बकरी से दुध दुहता है।

        ३) देवदतः गुरुं धर्मं पृच्छति।

             देवदत्त गुरु से धर्म को पूछता है।

        ४) पिता पुत्रं धर्मं ब्रवीति।

             पिता पुत्र से धर्म को कहता है।

        ५) पाचकः तण्डुलान् ओदनं पचति।

             पाचक चावलों से भात को पकाता है।

        ६) शिवः सागरं सुधां मथ्नाति।

             शिव सागर से अमृत को मथता है।

        ७) रमा पुष्पं गृहं नयति।

             रमा फूल को घर को ले जाती है।

        ८)  कृष्णः यज्ञदतं शतं जयति।

              कृष्ण यज्ञदत्त से सौ रुपए जीतता है।

        ९) अहं मातरं सत्यं वदिष्यामि।

              मैं माता से सत्य को बोलता हूं।

       १०) बालिका वृक्षं पुष्पं चिनोति।

              बालिका वृक्ष से फूल को चुनती है।


44.

करण कारक

   क्रिया की सिद्धि में जो सबसे अधिक सहायक हो उसकी करण संज्ञा होती है। करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।

    उदाहरण--१) सः कन्दुकेन अक्रीडत्‌। यहां "वह"कर्ता गेंद से खेलने की क्रिया सम्पन्न करता है। यदि गेंद न होती वह खेलने की क्रिया न कर पाता।अतः खेलने में गेंद के सबसे अधिक सहायक होने से उसकी करण संज्ञा होकर तृतीया विभक्ति हुई। 

    इसी प्रकार

                 २) रमा द्विचक्रिकया  नगरम् अगच्छत्‌ ।

                     रमा साईकिल से नगर को गई ।

                 ३) मुनिः दण्डेन अभ्रमत् ।

                     मुनि डण्डे से घूमा ।

                 ४) विद्यार्थी लेखन्या अलिखत्‌ ।

                     विद्यार्थी ने पैन से लिखा ।

                 ५) माता मार्जन्या  गृहशुद्धिम् अकरोत्‌ ।

                     माता ने झाडू से घर को साफ किया ।

                 ६) रमेशः चमसा  भोजनम् अखादत् ।

                      रमेश ने चम्मच से खाना खाया ।

                  ७) सा बालिका कंसेन  जलम् अपिबत् ।

                       उस बालिका ने गिलास से जल को पिया                                          

                  ८) काष्ठविक्रेता कुठारेण वृक्षम् अछिनत् ।

                      लकडहारे ने कुल्हाडे से वृक्ष को काटा ।

                  ९) सूर्यः मरीचिभिः अभासत ।

                       सूर्य किरणों के द्वारा चमका ।

                  १०) शिशुः लघुक्रीडानकैः अक्रीडत् ।

                        शिशु छोटे खिलौनों से खेला ।


        उपर्युक्त वाक्यों में क्रिया में लङ्‌ लकार का प्रयोग हुआ है जिसका प्रयोग भूतकाल(बीता हुआ समय) को कहने में होता है।


45.

संप्रदान कारक

  कर्ता कर्म के द्वारा जिसके अभिप्राय को पूरा करता है उसे सम्प्रदान कहते हैं। सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है।

    उदाहरण-- गृहस्थः ब्राह्मणाय गां ददातु। यहां कर्ता "गृहस्थ" गाय(कर्म) देने के द्वारा ब्राह्मण के अभिप्राय को पूरा करता है अतः ब्राह्मण की सम्प्रदान संज्ञा होकर उसमें चतुर्थी विभक्ति हुई।

    अन्य उदाहरण- 

                        २) कृष्णः रामाय फलानि ददातु ।

                              कृष्ण राम के लिए फल देवे ।

                        ३) गुरुः शिष्याय ज्ञानं वितरतु ।

                             गुरु शिष्य को ज्ञान बांटे ।

                        ४) त्वं एतस्मै मुनये धनं यच्छ ।

                             तुम इस मुनि को धन दे ।

                        ५) अहं बालकाय पुस्तकं यच्छानि।

                             मैं बालक को पुस्तक दूं।

                        ६) लता भिक्षुकाय भोजनं ददातु ।

                              लता भिक्षुक को भोजन देवे ।

                         ७) सीता गीतायै गानविद्यां ददातु ।

                               सीता गीता को गान-विद्या देवे ।

                         ८)  स्वामिन: भृत्येभ्य: वेतनं यच्छन्तु।

                                स्वामी नौकरों के लिए वेतन देवें।

                         ९) मालाकार: वराय पुष्पाणि यच्छतु ।

                               माली वर के लिए फूल देवे ।

                         १०) वयं यज्ञकर्तार: पुरोहिताय दक्षिणां यच्छाम ।        

                                हम यज्ञ करने वाले पुरोहित को दक्षिणा देवें।                                                                                                

                उपर्युक्त वाक्यों में क्रिया में लोट्‌ लकार का प्रयोग हुआ है जो "आज्ञा" अर्थ में होता है जिसके अनुसार प्रथम वाक्य का अर्थ होगा "गृहस्थ ब्राह्मण को गाय देवे"।इसी प्रकार अन्य वाक्यों में भी समझना चाहिए।


46.

सम्प्रदान कारक

   (रुच्यर्थानां प्रीयमाण:) रुचि अर्थात्‌ अच्छा लगना अर्थ की धातु का प्रयोग होने पर जिसे वह वस्तु अच्छी लगती है उसकी भी सम्प्रदान संज्ञा होती है व सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है।

   उदाहरण-- देवदत्ताय मोदकं रोचते।यहां रुच्‌(अच्छा लगना) क्रिया है व मोदक कर्ता है। लड्‌डू देवदत्त को अच्छा लगता है अतः उसकी सम्प्रदान संज्ञा होकर चतुर्थी विभक्ति हुई।

   इसी प्रकार- २) बालकाय पुस्तकं रोचते।

                        बालक को पुस्तक अच्छी लगती है।

                  ३) पुत्राय दुग्धं रोचते ।

                       पुत्र को दूध अच्छा लगता है।

                  ४) लतायै अपूपा: स्वदन्ते ।

                       लता को पुए स्वादिष्ट लगते हैं।

                  ५) गुरवे विद्या रोचते ।

                       गुरु को विद्या अच्छी लगती है।

                  ६) पितामह्यै रामायणं बहु रोचते ।

                       दादी को रामायण बहुत अच्छी लगती है

                  ७) बालेभ्य: बाल-चलचित्राणि रोचन्ते ।

                       बच्चों को कार्टून अच्छे लगते हैं।

                  ८) कृषकाय कृषियन्त्रं रोचते ।

                       किसान को कृषि-यन्त्र अच्छा लगता है।

                  ९) गीतायै दूरभाषे वार्ता रोचन्ते ।

                       गीता को फोन पर बाते करना पसन्द है।

                  १०) रमायै चित्रकला-निर्माणं बहु रोचते ।

                         रमा को चित्रकारी करना बहुत अच्छा लगता है।

                          यहां क्रिया में वर्तमान काल को कहने वाले लट्‌ लकार का प्रयोग हुआ है।इसके अनुसार प्रथम वाक्य का अर्थ हुआ देवदत्त को लड्‍डू अच्छा लगता है। इसी प्रकार अन्य वाक्यों भी समझना चाहिए।


47.

#अव्यय-शब्दानां लक्षणम्

         सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु,सर्वासु च विभक्तिषु ।

        वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्ययेति तदव्ययम् ।।

        अर्थात्  सभी लिङ्गो,विभक्तियों व वचनों में जो न बदले एक जैसा रहे वह शब्द अव्यय कहलाता है।


48.

सम्प्रदान कारक (क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोप:) क्रोध,द्रोह,ईर्ष्या,निन्दा अर्थ वाली क्रियाओं का प्रयोग होने पर जिसके ऊपर कोप किया जाए उसकी भी सम्प्रदान संज्ञा होती है व उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। कोप एक सामान्य भाव होता है जो क्रोध,द्रोह,ईर्ष्या,निन्दा आदि की स्थिति में मन में बना रहता है।

   उदाहरण-- लता सीतायै क्रुध्यति। यहां क्रुध्‌ धातु(क्रिया) का प्रयोग होने पर लता का कोप सीता पर हो रहा है इसलिए उसकी सम्प्रदान संज्ञा होकर चतुर्थी विभक्ति हुई।

               २) रामः देवदत्ताय द्रुह्यति ।

                    राम देवदत्त से द्रोह करता है।

               ३) त्वं मह्यम्‌ ईर्ष्यसि ।

                    तुम मुझसे ईर्ष्या करते हो ।

               ४) अहं तुभ्यम्‌ असूयामि ।

                     मैं तुम्हारी निन्दा करता हूं।

               ५) गुरुः बालकेभ्यः क्रुध्यति ।

                    गुरु बालकों पर क्रोध करता है।

               ६) कृष्ण: कंसाय द्रुह्यति ।

                    कृष्ण कंस से द्रोह करता है।

                ७) दुर्योधन: पाण्डवेभ्य: ईर्ष्यति स्म ।

                     दुर्योधन: पाण्डवों से ईर्ष्या करता था ।

                ८) गौरी तस्या: प्रतिवेशिन्यै सरलायै असूयति 

                     गौरी उसकी पडोसिन सरला की निन्दा करती है।

                ९) माता शिशवे क्रुध्यति ।

                     माता शिशु पर क्रोध करती है।

                १०) मन्त्री राज्ञे द्रुह्यति ।

                       मन्त्री राजा से द्रोह करता है।

    

49.

अपादान कारक

   (ध्रुवमपायेsपादानम् ) क्रिया होने पर एक वस्तु से दूसरी वस्तु का अलग होना पाया जाए तो जो स्थिर वस्तु है उसकी अपादान संज्ञा होती है।अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है।

   उदाहरण-- वृक्षात्‌ पत्राणि अपतन्‌। यहां वृक्ष से पते गिरने की क्रिया में पत्ते वृक्ष से अलग हो रहे हैं जबकि वृक्ष अपने स्थान पर स्थिर है अतः उसकी अपादान संज्ञा होकर पञ्चमी विभक्ति हुई।

 इसी प्रकार

२) अश्वेभ्यः सैनिकाः अपतन्‌ ।

     अश्वों से सैनिक गिरे ।

३) हस्तात्‌ पात्रम्‌ अपतत्‌ ।

     हाथ से बर्तन गिरा ।                                        

४) भवनाद्‍ बालकः अपतत्‌ ।

     भवन से बालक गिरा ।              

५) त्वं नगरात्‌ ग्रामम्‌ आगच्छः।

     तुम नगर से गांव को आए ।

६) अहं विद्यालयात्‌ गृहम्‌ आगमिष्यामि ।

     मैं विद्यालय से घर को आऊंगा ।

 ७) सः अस्याः रेखायाः धाविष्यति ।

      वह इस रेखा से दौडेगा ।       

८) अहम्‌ अधुना गृहात्‌ चलिष्यामि ।

     मैं अब घर से चलूंगा ।

९)  कृष्णः आपणात्‌ गमिष्यति ।

      कृष्ण बाजार से जाएगा ।

१०)वाहनात्‌ वस्तु पतिष्यति ।

      वाहन से वस्तु गिरेगी ।

यहां प्रथम पांच वाक्यों में भूतकाल को कहने वाले लङ्‍ लकार का प्रयोग हुआ है व अगले पांच वाक्यों में भविष्यत्‌ काल को कहने वाले लृ‌ट्‍ लकार का प्रयोग हुआ है।


50.

अपादान कारक

   डरना व रक्षा करना अर्थ की क्रियाओं का प्रयोग होने पर जो भय का कारण है उसकी अपादान संज्ञा होती है व अपादान कारक होने से उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।

   उदाहरण--  बालकः चोराद्‍ बिभेति। यहां "बिभेति" डरना अर्थ वाली क्रिया है व कर्ता बालक के डर का कारण चोर है अतः उसकी अपादान संज्ञा होकर पञ्चमी विभक्ति हुई।

   इसी प्रकार

                २) रक्षकः चोरात्‌ त्रायते ।

                     रक्षक चोर से बचाता है।

                ३) सेना आतंकवादिभ्यः जनान्‌ त्रायते ।

                     सेना आतंकवादियों से लोग को बचाती है

                ४) ग्रामवासिनः लुण्ठकेभ्यः बिभ्यति ।

                     ग्रामवासी लुटेरों से डरते हैं।

                ५) माता मां पितुः रक्षति ।

                     माता मेरी पिता से रक्षा करती है।

                ६) सः ब्राह्मणः इमां कन्यां तस्मात्‌ राक्षसात्‌ रक्षतु ।

                     वह ब्राह्मण इस कन्या को उस राक्षस से बचावे ।

                ७) क्षत्रियः प्रजां दुखात्‌ रक्षतु ।

                     क्षत्रिय प्रजा को दुख से बचावे ।

                ८) शिष्यः गुरोः उद्विजताम्‌ 

                     शिष्य गुरु से डरे ।

                ९) मनुष्यः तस्कराद्‌ बिभेतु ।

                     मनुष्य तस्कर से डरे ।

              १०) अहं बालकं लुण्ठकात्‌ रक्षाणि ।

                       मैं बालक को लुटेरों से बचाऊं ।

               उपर्युक्त क्रियाओं में पहले पांच वाक्यों में वर्तमानकालिक लट्‍ लकार व अन्तिम पांच वाक्यों में आज्ञार्थ वाले लोट्‌ लकार का प्रयोग हुआ है।


51.

हटाने अर्थ वाली क्रिया का प्रयोग होने पर कर्ता का जो इच्छित पदार्थ है उसकी भी अपादान संज्ञा होती है व उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- कृषकः यवेभ्यो गां वारयति। यहां किसान जौ के खेत से गाय को इसलिए ह्टाता है क्योंकि जौ उसका इच्छित पदार्थ है। अतः जौ की अपादान संज्ञा होकर पञ्चमी विभक्ति हुई।

   इसी प्रकार-२) माता शिशोः मलिनतां वारयति ।

                       माता शिशु की मलिनता को दूर करती है

                ३) गृहणी मार्जन्या गृहात्‌ अवकरम्‌ अपसारयति।

                     गृहणी झाड़ू से घर से कूड़ा हटाती है।

                 ४) गुरुः शिष्यात्‌ अज्ञानं निवारयति।

                      गुरु शिष्य से अज्ञान दूर करता है।

                 ५) सैनिकः भूमेः शत्रुं निवर्तयति।

                      सैनिक भूमि से शत्रु को हटाता है।

                 ६) पिता पुत्रात्‌ पापं पृथग्‌करोति।

                      पिता पुत्र से पाप को दूर करता है।

                 ७) ईश्वरः लोकात्‌ सर्वाः बाधाः अपसारयति।

                      ईश्वर लोक से सारी बाधाओं को हटाता है

                 ८) रामः कृष्णं ग्रामाद्‌ व्यपनयति।

                      राम कृष्ण को गांव से हटाता है।

                 ९) लेखहारकः कुक्कुरं विद्यालयात्‌ अपसारयति।

                      चपरासी कुते को विद्यालय से हटाता है।

               १०) अहं वस्तु प्रकोष्ठाद्‌ वारयामि।

                        मैं वस्तु को कमरे से हटाता हूं।


52.

अपादान कारक

 (आख्यातोपयोगे) जिससे विद्या पढी जाए उसकी भी अपादान संज्ञा होती है व उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।

  उदाहरण--विद्यार्थी गुरोः पठति। यहां विद्यार्थी गुरु से विद्या पढ रहा है अतः पढाने वाले गुरु की अपादान संज्ञा होकर पञ्चमी विभक्ति हुई।

  २) बालकः उपाध्यायाद्‌ अधीते ।

       बालक उपाध्याय से पढता है।

  ३) सः अध्यापकाद्‍ अपठत्‌ ।

       वह अध्यापक से पढा ।

  ४) रामः गुरोः पाठं पठिष्यति ।

       राम गुरु से पाठ को पढेगा ।

  ५) आख्यातुः विद्यां पठ।

       पढाने वाले से विद्या को पढो ।

  ६) लवः बाल्मीकेः अधीत्वान्‌ ।

       लव ने वाल्मीकि से पढा ।

  ७) दयानन्दः विरजानन्दाद्‌ पाठं पठित्वान्‌ ।

       दयानन्द ने विरजानन्द से पाठ को पढा ।

  ८) त्वं मत्‌ पठित्वान्‌ ।

       तुमने मुझसे पढा ।

  ९) अहं त्वत्‌ अधीत्वान्‌ ।

       मैंने तुमसे पढा ।

  १०) अर्जुनः द्रोणाचार्यात्‌ शस्त्रं शिक्षित्वान्‌ ।

         अर्जुन ने द्रोणाचार्य से शस्त्र को सीखा ।

  

 यहां अन्तिम के पांच वाक्यों में क्रिया में क्तवतु प्रत्यय का प्रयोग हुआ है जो भूतकाल के अर्थ में होता है।


53.


अपादान कारक

  (जनिकर्तु: प्रकृति:)उत्पन्न होने अर्थ वाली क्रिया के कर्ता की जो प्रकृति(मूल कारण) की अपादान संज्ञा होती है व उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।

  उदाहरण--शृङ्गात्‌ शरः जायते। यहां उत्पन्न होने वाली क्रिया का कर्ता बाण है व वह सींग से उत्पन्न होता है अर्थात्‌ बनता है अतः उसकी अपादान संज्ञा होकर पञ्चमी विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--

                 २) गोमयाद्‌ वृश्चिकः जायते ।

                      गोबर से बिच्छू पैदा होता है।

                ३) भूमेः वनस्पतयः प्ररोहन्ति ।

                     भूमि से वनस्पतियां उगती हैं।

                 ४) अनृतात्‌ पापम्‌ उपजायते ।

                      झूठ से पाप उत्पन्‍न होता है।

                 ५) सङ्गात्‌ कामः सञ्जायते ।

                      सङ्ग से काम पैदा होता है।

                 ६) दारुणः आसन्दिका जायेत ।

                      लकडी से कुर्सी उत्पन्‍न होवे ।

                 ७) मृत्तिकायाः घटः जनिष्यते ।

                      मिट्टी से घडा उत्पन्‍न होगा ।

                 ८) वृक्षात्‌ कागदम् अजायत ।

                      पेड से कागज उत्पन्‍न हुआ ।

                 ९)  सुवर्णात्‌ कुण्डलं जायताम्‌ ।

                       सुवर्ण से कुण्डल उत्पन्‍न होवे ।

                 १०) चर्मणः स्यूतः जायते ।

                        चमड़े से थैला बनता है।

       यहां क्रिया में पहले पांच वाक्यों में वर्तमान काल को कहने वाले लट्‍ लकार व अन्तिम पांच वाक्यों में क्रमशः विधिलिङ्‌(चाहिएअर्थक),लृट( भविष्यत्‌काल),लङ्‌(भूतकाल),लोट्‌(आज्ञार्थक) व लट्‍ लकार का प्रयोग हुआ ह

54.

अधिकरण कारक

  (आधारोsधिकरणम् ) क्रिया का आधार अर्थात्‌ जहां पर या जिसमें वह क्रिया की जाती है उसकी अधिकरण संज्ञा होती है व अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है।

   उदाहरण-- बालकाः विद्यालये पठन्ति।यहां बालक पढने की क्रिया विद्यालय में कर रहे हैं अतः उसकी अधिकरण संज्ञा होकर सप्तमी विभक्ति हुई।

    इसी प्रकार--२) अध्यापकः पाठशालायाम्‌ अस्ति ।

                         अध्यापक पाठशाला में है।

                   ३) अहं गृहे कार्यं करोमि।

                        मैं घर में कार्य को करता हूं।

                   ४) कृषकः हलेन क्षेत्रे कार्यं करोति।

                        किसान हल से खेत में काम को करता है।

                   ५) पक्षिणः आकाशे उड्‌डयन्ते।

                        पक्षी आकाश में उडते हैं।

                   ६) माता पात्रे भोजनं पक्ष्यति।

                        माता बर्तन में भोजन को पकाएगी ।

                   ७) पण्डितः यज्ञशालायां यज्ञं करिष्यति।

                        पण्डित यज्ञशाला में यज्ञ को करेगा ।

                   ८) त्वम्‌ उद्याने भ्रमणं करिष्यसि ।

                        तू उद्यान में भ्रमण को करेगा ।

                   ९) मम संस्कृते रुचिः भविष्यति ।

                        मेरी संस्कृत में रुचि होगी ।

                  १०) विद्यार्थी खट्‌वायां शयिष्यते ।

                         विद्यार्थी खाट पर सोएगा ।


55.

#आयुध वर्ग- अस्त्रों शस्त्रों के नाम

आयुधम् - शस्त्र-अस्त्र

आयुधागारम् - शस्त्रागार 

आहवः- युद्ध

कबन्धः- धड़

करबालिका - गुप्ती

कारा- जेल

कार्मुकम्- धनुष

कौक्षेयकः - कृपाण

गदा - गदा

छुरिका - चाकू

जिष्णुः - विजयी

तूणीरः - तूणीर

तोमरः - गँड़ासा

धन्विन् – धनुर्धर

प्रहरणम् - शस्त्र

प्रासः - भाला

वर्मन् - कवच

विशिखः - बाण

वैजयन्ती  - पताका

शरव्यम् - लक्ष्य

शल्यम् - वर्छी

सायुंगीनः - रणकुशल

सादिन् - घुड़सवार

हस्तिपकः – हाथीवान्


सर्वनाम वर्ग

कदा--कब,

यदा--जब,

सदा (सर्वदा)---हमेशा,

एकदा--एक समय,

तदीयः--उसका,

यदीयः--जिसका,

परकीयः (अन्यदीयः)--दूसरे का,

उपरि--ऊपर,

अधः--नीचे,

अग्रे, (पुरः, पुरस्तात्)---आगे,, (पश्चात्, पीछे),

बहिः--बाहर,

अन्तः--भीतर,

उपरि-अधः---ऊपर-नीचे,

इदानीम्, (सम्प्रति, अधुना) अब,इस समय,

आत्मीयः (स्वकीयः,स्वीयः )--अपना,

शीघ्रम्--जल्दी,

शनैः शनैः--धीरे-धीरे,

महत्--महान्,

कुर्वत्--करता हुआ

पठत्--पढता हुआ,

ददत्--देता हुआ,

गमिष्यत्--जाने वाला,

कुर्वत्--करता हुआ,

ददत्--देता हुआ,

गमिष्यत्--जाने वाला,

पठत्--पढता हुआ,

सद्यः--तत्काल (अतिशीघ्र),

पुनः--फिर,

अद्य--आज,

अद्यैव---आज ही,

आद्यापि--आज भी,

श्वः--आने वाला कल,

ह्यः--बीता हुआ कल,

परश्वः--आने वाला परसों,

ह्यश्वः--गया हुआ परसों,

प्रपरश्वः--आने वाला नरसों,

प्रह्यश्वः--बीता हुआ नरसों

पुनः पुनः--बार-बार,

युगपत्---एक ही समय में,

सकृत्--एक बार,

असकृत्--अनेक बार,

पुरा, प्राक्--पहिले,

पश्चात्---पीछे,

अथ, अनन्तरम्--इसके बाद,

कियत् कालम्--कब तक,

एतावत् कालम्--अब तक,

तावत् कालम्—तब


धातु वर्ग

अभ्रकम्- अभ्रक

आयसम्- लोहा

इन्द्रनीलः- नीलम

कार्तस्वरम्, हाटक- सोना

कांस्यम्- कांसा

कांस्यकूटः- कसकूट

गन्धकः- गन्धक

चन्द्रलौहम्- जर्मन सिल्वर

ताम्रकम्- ताँबा

तुत्थाञ्जनम्- तूतिया

निष्कलंकायसम्- स्टेनलेस स्टील

पारदः- पारा

पीतकम्- हरताल

पीतलम्- पीतल

पुष्परागः- पुखराज

प्रवालम्- मूँगा

मरतकम्- पन्ना

माणिक्यम्- चुन्नी

मौक्तिकम्- मोती

यशदम्- जस्ता

रजतम्- चाँदी

वैदूर्यम्- लहसुनिया

सीसम्- सीसा

स्फटिका- फिटकरी

हीरकः- हीरा


56.

विभक्ति प्रकरण  


(वार्तिक:-अभित:परित:समयानिकषाहाप्रतियोगेषु च दृश्यते)

अभितः,परितः,समया,निकषा,हा,प्रति,अनु के साथ द्वितीया विभक्ति होती है।

  उदाहरण--्ग्रामम्‌ अभितः वनम्‌ अस्ति। यहां अभितः(दोनों ओर) शब्द के योग (सम्बन्ध) में ग्राम शब्द है अतः उसमें द्वितीया विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) नगरं परितः जलम्‌ अस्ति ।

                        नगर के चारों ओर जल है।

                 ३) गृहं समया आपणम्‌ अस्ति।

                      घर के समीप बाजार है।

                 ४) द्वारं निकषा पादुका अस्ति।

                      गेट के पास चप्पल है।

                 ५) हा दुर्जनम्‌ ।

                      दुर्जन को धिक्कार ।

                 ६) अहं गृहं प्रति गच्छामि ।

                      मैं घर की ओर जाता हूं।

                 ७) सीता रामम्‌ अनु गच्छति ।

                      सीता राम के पीछे जाती है।

                  ८) विद्वान्‌ धर्मम्‌ अनु गच्छति ।

                       विद्वान् धर्म की ओर जाता है।

                  ९) मां निकषा संगणकम्‌ अस्ति ।

                       मेरे पास कम्प्यूटर है।

                  १०) विद्यार्थी विद्यालयं प्रति गच्छति ।

                         विद्यार्थी विद्यालय की ओर जाता है।


57.

द्वितीया विभक्ति नियम


कारिका- उभसर्वतसो: कार्या धिगुपर्यादिषु त्रिषु ।

             द्वितीयाम्रेडिन्तान्तेषु ततोsन्यत्रापि दृश्यते ।

अर्थात्  उभयतः,सर्वतः,धिक्‌,उपर्युपरि,अधोधः व अध्यधि के योग(सम्बन्ध) के शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- ग्रामम्‌ उभयतः जलम्‌ अस्ति। यहां उभयतः के योग में ग्राम शब्द है अतः उसमें द्वितीया विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) नगरं सर्वतः वृक्षाः सन्ति ।

                        नगर के सब ओर वृक्ष हैं।

                 ३) धिग् नास्तिकम्‌ ।

                      नास्तिक को धिक्कार ।

                 ४) पृथ्वीम्‌ उपर्युपरि वनानि सन्ति।

                      पृथ्वी के ऊपर-ऊपर वन हैं।

                 ५) ग्रामम्‌ अधोधः जलम्‌ अस्ति।

                      गांव के नीचे-नीचे जल है।

                  ६) लोकम्‌ अध्यधि ईश्वरः अस्ति।

                       लोक के अन्दर-अन्दर ईश्वर है।

                  ७) गृहं सर्वतः फलानि सन्ति ।

                       घर के सब ओर फल हैं।

                  ८) माम्‌ उभयतः पुस्तकानि सन्ति ।

                       मेरे दोनों ओर पुस्तकें हैं।

                  ९) धिग्‌ दुर्जनम्‌ ।

                       दुर्जन को धिक्कार ।

                 १०) त्वाम्‌ अध्यधि रोगः अस्ति ।

                        तुम्हारे अन्दर-अन्दर रोग है।


58.

द्वितीया-विभक्ति नियम  


(अन्तरान्तरेण युक्ते) अन्तरा,अन्तरेण व विना के योग(सम्बन्ध) के शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है।

    उदाहरण-- गङ्गां यमुनां च अन्तरा प्रयागः अस्ति। यहां अन्तरा(मध्य) के योग में गङ्गा व यमुना शब्द हैं अतः उनमें द्वितीया विभक्ति हुई।

   इसी प्रकार--२) ज्ञानम्‌ अन्तरेण न सुखं भवति ।

                         ज्ञान के बिना सुख नहीं होता ।

                  ३) श्रमं विना धनं न भवति ।

                       श्रम के बिना धन नहीं होता ।

                  ४) ग्रामं विद्यालयं च अन्तरा वनम्‌ अस्ति।

                       गांव और विद्यालय के बीच में वन है।

                  ५) जलम्‌ अन्तरेण जीवनं न अस्ति।

                       जल के बिना जीवन नहीं होता ।

                   ६) ईश्वरं विना न संसारः वर्तते ।

                        ईश्वर के बिना संसार नहीं होता ।

                   ७) त्वां मां च अन्तरा भित्तिः अस्ति ।

                        तुम्हारे व मेरे मध्य में दीवार है।

                   ८) प्रकृतिं अन्तरेण लोकस्य अस्तित्वः न सम्भवति ।

                        प्रकृति के बिना संसार का अस्तित्व संभव नहीं होता ।

                   ९) वृक्षं विना जीवनस्य कल्पना न भवति ।

                        वृक्ष के बिना जीवन की कल्पना नहीं होती ।

                   १०) शिशुं विना गृहे शोभा न भवति ।

                          शिशु के बिना घर में शोभा नहीं होती


59.

द्वितीयाविभक्ति नियम

(कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे)क्रिया,गुण व द्रव्य का समय या रास्ते के साथ पूर्ण सम्बन्ध विद्यमान होने पर समय व रास्ते को कहने वाले शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है।

  उदाहरण-- सः दश दिनानि लिखति। यहां लिखने की क्रिया दश दिन तक लगातार हो रही है।लिखने का दश दिन से पूर्ण सम्बन्ध बना रहा।अतः समय के बोधक दश दिन में द्वितीया विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) विद्यार्थी पञ्च वर्षाणि पठति ।

                        विद्यार्थी पांच वर्ष तक पढता है।

                 ३) पिता क्रोशं गच्छति ।

                      पिता पांच कोश जाता है।

                 ४) रामेण मासम्‌ अधीतः।

                      राम के द्वारा मासभर पढा गया ।

                 ५) मासं कल्याणी ।

                      मासभर सुखदायी ।

                 ६) मासं गुडधानाः ।

                      मासभर गुडधानी ।

                 ७) क्रोशम्‌ अधीते ।

                      कोशभर पढता है।

                 ८) क्रोशं कुटिला नदी अस्ति।

                      कोशभर टेढ़ी नदी है।

                 ९) क्रोशं पर्वतः अस्ति ।

                       कोशभर पर्वत है।

               १०) विंशतिः कलाः यावत्‌ सः अत्र आसीत्‌ 

                      बीस मिनट तक वह यहां था ।


60.

तृतीयाविभक्ति नियम

(सहयुक्तेsप्रधाने) वाक्य में सह या उसके अर्थवाची शब्द होने पर अप्रधान कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- रामः जनकेन सार्धं गच्छति।यहां जाने की क्रिया का सीधा सम्बन्ध राम से है व गौण(अप्रधान) रुप से जनक से भी है। वाक्य में सह के अर्थ वाले "सार्धम्"शब्द का प्रयोग है ही अतः अप्रधान कर्ता जनक में तृतीया विभक्ति हुई।

 इसी प्रकार--२) पुत्रेण सह पिता आगतः ।

                       पुत्र के साथ पिता आया ।

                ३) श्यामेन साकं स्थूलः पुरुषः अस्ति ।

                     श्याम के साथ मोटा व्यक्ति है।

                ४) लतया सार्धं शीला आसीत्‌ ।

                     लता के साथ शीला थी ।

                ५) मया सह अशोकः भविष्यति ।

                     मेरे साथ अशोक होगा ।

                ६) सः मया सह आपणम्‌ अगच्छत्‌ ।

                     वह मेरे साथ बाजार गया ।

                 ७) अहं तेन सह नगरम्‌ अगच्छम्‌ ।

                      मैं उसके साथ नगर गया ।

                 ८) मोहनः भ्रात्रा साकं कार्यं करिष्यति ।

                      मोहन भाई के साथ काम को करेगा ।

                 ९) अहं त्वया सह भ्रमणाय गमिष्यामि ।

                       मैं तुम्हारे साथ घूमने के लिए जाऊंगा ।

                 १०) अद्य अहं मात्रा सह गृहे स्थास्यामि ।

                         आज मैं माता के साथ घर में ठहरुंगा ।


61.

तृतीया-विभक्ति नियम

 ( इत्थम्भूतलक्षणे ) जिस चिह्न से किसी व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है उसमें तृतीया विभक्ति होती है।

  उदाहरण-- जटाभिः सन्यासी अस्ति। यहां जटाओं के द्वारा सन्यासी होने का बोध होता है अतः जटा शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।

   इसी प्रकार--२) कमण्डलुना छात्रः भवति ।

                         कमण्डलु से छात्र का बोध होता है।

                  ३) मेखलया ब्रह्मचारी आसीत्‌ ।

                       मेखला से ब्रह्मचारी हुआ ।

                  ४) एते यज्ञोपवीतैः द्विजाः प्रतीयन्ते ।

                       ये यज्ञोपवीत से विद्वान् लग रहे हैं।

                  ५) काषायैः वस्त्रैः भवान्‌ यतिः प्रतिभाति।

                       गेरुऐ वस्त्रों से आप सन्यासी लग रहे हो 

                   ६) अहं पीतवस्त्रैः ब्रह्मचारिणम्‌ अपश्यम्‌ ।

                        मैंने पीले वस्त्रों वाले ब्रह्मचारी को देखा 

                   ७) श्वेतवस्त्रैः सः साधुः अस्ति।

                        सफेद कपडों से वह साधु है।

                   ८) त्वचायाः शिथिलतया सः वृद्धः प्रतीयते 

                        त्वचा की शिथिलता से वह बूढा लग रहा है।

                   ९) कारयानेन सः धनी प्रतीयते।

                        कार-वाहन से वह धनी लग रहा है।

                   १०) शस्त्रेण सः रक्षकः प्रतिभाति।

                          शस्त्र से वह पुलिस वाला लग रहा है।


62.

तृतीया-विभक्ति नियम

 (येनाङ्गविकार:) शरीर के जिस अङ्ग के विकार के द्वारा शरीर के विकार को कहा जा रहा हो उस अङ्गवाची शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। 

  उदाहरण-- नेत्रेण काणः। यहां आंख के विकार के द्वारा पूरे व्यक्ति को काणा कहा जा रहा है अतः नेत्र शब्द में तृतीया विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) बालिका कर्णेन बधिरा अस्ति ।

                       बालिका कान से बहरी है।

                 ३) पशुः पादेन खञ्जः अस्ति ।

                      पशु पैर से लंगड़ा है।

                 ४)  सः पाणिना कुण्ठः आसीत्‌ ।

                       वह हाथ से लुञ्जा था ।

                 ५) अहं मुखेन मूकः न अस्मि ।

                       मैं मुख से गूंगा नहीं हूं।

                 ६) रामः शिरसा खल्वाटः भविष्यति ।

                      राम शिर से गंजा होगा ।

                 ७) क्रीडायां शरीरेण वामनाः जनाः सन्ति ।

                       खेल में शरीर से बौने लोग हैं।

                 ८) शत्रुः नेत्राभ्याम् अन्धः अस्ति ।

                      शत्रु आंखों से अन्धा है।


63.

तृतीया विभक्ति नियम

 बस करो या मत करो के अर्थ वाले "अलम्‌"शब्द के साथ के शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- अलं विवादेन।यहां मत करो अर्थ वाले अलम्‌ शब्द के योग में विवाद शब्द में तृतीया विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) अलं हसितेन ।

                        मत हंसों ।

                 ३) अलं भोजनेन ।

                      भोजन मत करो ।

                 ४) अलं भाषणेन ।

                      भाषण से बस करो ।

                 ५) अलं रोदनेन ।

                      रोना बन्द करो ।

                 ६) अलं पठनेन ।

                      मत पढो ।

                 ७) अलं वार्तया ।

                      बात बन्द करो ।

                 ८) अलं हिंसया ।

                      हिंसा मत करो ।

                 ९) अलं गमनेन ।

                      मत जाओ ।

                 १०) अलं दर्शनेन ।

                        देखना बन्द करो ।


64.

तृतीया-विभक्ति नियम

 (हेतौ) कारणवाची शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।

  उदाहरण-- विद्यया यशः भवति। यहां विद्या के कारण से यश को प्राप्त किया जा रहा है अतः कारणवाची विद्या शब्द में तृतीया विभक्ति हुई।

   २) सत्सङ्गेन बुद्धिः भवति ।

        सत्संग के कारण बुद्धि होती है।

   ३) धनेन कुलं स्थितम्‌ ।

        धन के कारण कुल है।

   ४) बालकः तत्र अध्ययनेन वसति ।

        बालक वहां अध्ययन के हेतु से रहता है।

    ५) मुनिः सत्येन लोकं जयति ।

         मुनि सत्य के कारण संसार को जीतता है।

     ६) त्वं भोजनेन अत्र आगच्छः।

          तुम भोजन के हेतु से यहां आए।

     ७) अहं भवतां दर्शनेन तत्र गतवान्‌ ।

           मैं आपके दर्शन के हेतु से वहां गया ।

     ८) रोदनेन माता बालकं पृच्छति।

          रोने के कारण माता बालक को पूछती है।

      ९) श्यामः क्रीडया नगरं गच्छति।

           श्याम खेल के हेतु से नगर को जाता है।

     १०) लता पित्रा गृहे अस्ति।

             लता पिता के कारण घर में है।


65.

(वार्तिक:- चतुर्थीविधाने तादर्थ्य उपसंख्यानम् ) जिस प्रयोजन के लिए जो वस्तु या क्रिया होती है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।

 उदाहरण- शिशुः दुग्धाय क्रन्दति। यहां शिशु दुध के लिए रो रहा है अतः दुग्ध शब्द में चतुर्थी विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) सः मोक्षाय हरिं भजति ।

                        वह मोक्ष के लिए हरि को भजता है।

                 ३) विद्या अर्थाय भवति ।

                      विद्या धन के लिए होती है।

                 ४) हे पुत्र ! यूपाय दारु आनय।

                      हे पुत्र खंबे के लिए लकडी लाओ ।

                 ५) अहं कुण्डलाय हिरण्यम्‌ आनेष्यामि।

                       मैं कुण्डल के लिए सोने को लाऊंगा ।

                 ६) अस्य समीपे रन्धनाय स्थाली न अस्ति।

                       इसके पास रांधने के लिए बटलोई है।

                  ७) त्वं भोजनाय पाकशालां गच्छसि ।

                       तुम भोजन के लिए पाकशाला को जाते हो ।

                   ८) अहं पठनाय विद्यालयं अगच्छम्‌ ।

                         मैं पढ़ने के लिए विद्यालय गया ।

                   ९)  मोहनः भ्रमणाय उद्यानं गमिष्यति ।

                         मोहन घूमने के लिए बाग में जाएगा ।

                   १०)  रक्षणाय रक्षकः अस्ति ।

                           बचाने के लिए पुलिस है।

66.

चतुर्थी-विभक्ति नियम

 चतुर्थी के अर्थ में अर्थम्‌ और कृते अव्ययों का प्रयोग होता है।

 उदाहरण-- त्वं भोजनार्थम्‌ आगच्छ। यहां "तुम भोजन के लिए आओ" इस वाक्य में "अर्थम्‌" अव्यय का प्रयोग चतुर्थी विभक्ति के अर्थ (के लिए) में हुआ है। चतुर्थी विभक्ति के अर्थ में कृते अव्यय का प्रयोग षष्ठी विभक्ति के साथ होता है।

  इसी प्रकार--२) सः भोजनस्य कृते आगच्छति ।

                        वह भोजन के लिए आता है।

                 ३) अहं धनार्थं कार्यं करोमि ।

                       मैं धन के लिए कार्य करता हूं।

                 ४) कृष्णः ज्ञानस्य कृते पठति ।

                      कृष्ण ज्ञान के लिए पढता है।

                 ५) लता क्रीडार्थं क्रीडाक्षेत्रं गच्छति ।

                      लता खेलने के लिए खेल के मैदान में जाती है।

                  ६) त्वं रोगिणां कृते फलानि आनयसि ।

                       तुम रोगियों के लिए फल लाते हो ।

                  ७) मनुष्यः धर्मार्थं जीवेत्‌ ।

                       मनुष्य धर्म के लिए जीवे ।

                  ८) पशुः जलस्य कृते तडागं आगच्छत्‌ ।

                       पशु जल के लिए तालाब को आया ।

                  ९) त्वं विकासार्थं विद्यां शृणु ।

                       तुम विकास के लिए विद्या सुनो ।

                  १०)त्वं दानस्य कृते धनम्‌ आनय ।

                        तुम दान के लिए धन लाओ ।


67.

चतुर्थी-विभक्ति नियम

(नम:स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च) नमः,स्वस्ति,स्वाहा,अलम्‌ आदि शब्दों के योग(सम्बन्ध) के शब्दों में चतुर्थी विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- गुरवे नमः। यहां नमः शब्द के योग में गुरु शब्द है अतः उसमें चतुर्थी विभक्ति हुई।

 इसी प्रकार--२) शिष्याय स्वस्ति ।

                       शिष्य का कल्याण हो ।

                ३) अग्नये स्वाहा।

                     अग्नि के लिए आहुति ।

                ४) हरिः दैत्येभ्यः अलम्‌ ।

                     हरि राक्षसों के लिए पर्याप्त है।

                ५) शिवाय नमः।

                     शिव को नमस्कार।

                 ६) प्रजाभ्यः स्वस्ति।

                      प्रजा का कल्याण हो।

                 ७) सोमाय स्वाहा ।

                      सोम के लिए आहुति ।

                 ८) अलं मल्लः मल्लाय ।

                      मल्ल मल्ल के लिए पर्याप्त है।

                 ९) परमात्मने नमः।

                      परमात्मा को नमस्कार ।

               १०) पुत्राय स्वस्ति ।

                        पुत्र का कल्याण हो ।


68.

पञ्चमी-विभक्तिनियम

(अन्यारादितरर्तेदिक्छब्दाञ्चूत्तरपदाजाहियुक्ते)

अन्य,आरात्,इतर,ऋते,पूर्व आदि दिशावाची शब्द,प्रभृति व बहिः आदि शब्दों के योग में जो शब्द उनमें पञ्चमी विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- अन्यः देवदत्तात्‌ कः एतत्‌ कार्यं कुर्यात्‌। यहां भिन्न अर्थ वाले अन्य शब्द के योग में देवदत्त शब्द में पञ्चमी विभक्ति हुई।

 इसी प्रकार--२) आरात्‌ यज्ञदत्तात्‌ जलम्‌ अस्ति ।

                      यज्ञदत्त से दूर जल है।

                ३) एषः इतरः रामात्‌ अस्ति।

                     यह राम से भिन्न है।

                ४) रमायाः ऋते यज्ञः न भविष्यति ।

                     रमा के बिना यज्ञ नहीं होगा।

                ५) ग्रामात्‌ पूर्वः पर्वतः अस्ति।

                     गांव से पूर्व की ओर पर्वत है।

                 ६) शैश्वात्‌ प्रभृतिः अहम्‌ अत्र अस्मि।

                      बचपन से लेकर मैं यहां पर हूं।

                  ७) नगराद्‌ बहिः विद्यालयः अस्ति ।

                       नगर से बाहर विद्यालय है।

                  ८) ज्ञानाद्‌ ऋते न मोक्षः भवति ।

                       ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं होता ।

                  ९) गृहाद्‌ दक्षिणः वृक्षः अस्ति ।

                       घर से दक्षिण दिशा में वृक्ष है।

                  १०) उद्यानाद्‌ बहिः तडागः अस्ति ।

                         बगीचे के बाहर तालाब है।


69.

पञ्चमी-विभक्ति नियम

(पञ्चमी विभक्ते) तुलना करने में जिससे तुलना की जाती है उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- रामात्‌ कृष्णः पटुतरः अस्ति। यहां कृष्ण की राम से तुलना की जा रही है अतः राम में पञ्चमी विभक्ति हुई।

 इसी प्रकार--२) धनाद्‌ ज्ञानं गुरुतरम्‌ अस्ति।

                      धन से ज्ञान ज्ञान अधिक श्रेष्ठ है।

                ३) माथुराः पाटलिपुत्रकेभ्यः सुकुमारतराः सन्ति।

                     मथुरा वाले पाटलिपुत्र वालों से अधिक सुकुमार हैं।

                ४) अहं त्वत्‌ पटुतरः अस्मि।

                     मैं तुमसे अधिक चतुर हूं।

                ५) देवदत्तः यज्ञदत्तात्‌ आढ्यतरः अस्ति ।

                     देवदत्त यज्ञदत्त से अधिक धनी है॥

                ६) अस्माद्‌ बालकाद्‌ अयं बालकः पटुतरः अस्ति।

                     इस बालक से यह बालक अधिक चतुर है।

                ७) गृहस्थात्‌ सन्यासी गुरुतरः अस्ति ।

                     गृहस्थ से सन्यासी अधिक श्रेष्ठ है।

                ८) क्षत्रियाद्‍ ब्राह्मणः पूज्यतरः अस्ति ।

                     क्षत्रिय से ब्राह्मण अधिक पूज्य है।

                ९) इदं नगरं तस्मात्‌ नगरात्‌ दर्शनीयतरः अस्ति ।

                    यह नगर उस नगर से अधिक दर्शनीय है।

                १०) एषः ग्रामः तस्माद्‌ ग्रामात्‌ लघीयान्‌ अस्ति ।

                       यह गांव उस गांव से छोटा है।


70.

पञ्चमी-विभक्ति नियम

(पृथग्विनानानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम्) 

 पृथक्‌,विना,नाना आदि शब्दों के योग में जो शब्द उनमें पञ्चमी विभक्ति होती है। विकल्प से द्वितीया,तृतीया विभक्ति भी होती हैं।

 उदाहरण--अस्माद्‌ ग्रामात्‌ पृथक्‌ वस।यहां पृथक्‌ शब्द के योग में ग्राम शब्द होने के कारण उसमें पञ्चमी विभक्ति हुई व सर्वनाम विशेषण होने के कारण इदम्‌ शब्द में भी पञ्चमी विभक्ति हुई।यहां पञ्चमी की जगह ग्रामेण,ग्रामम्‌ अर्थात्‌ द्वितीया या तृतीया विभक्ति भी की जा सकती है।

    इसी प्रकार--२) अहं रामात्‌ पृथक्‌ गच्छामि।

                        मैं राम से अलग जाता हूं।

                   ३) अत्र मोहनात्‌ विना कार्यं न भविष्यति 

                        यहां मोहन के बिना काम नहीं होगा ।

                   ४) देवदत्तात्‌ नाना कः एषः अस्ति।

                       देवदत्त से भिन्न यह कौन है ?

                  ५) ग्रामाः नगरेभ्यः पृथग्‌ भवेयुः।

                       गांव नगरों से अलग होवें।

                  ६) घृतात्‌ विना भोजनं शोभनं न भवति।

                       घी के बिना भोजन अच्छा नहीं होता।

                  ७) मम त्वत्‌ नाना व्यक्तित्वः अस्ति।

                       मेरा व्यक्तित्व तुमसे भिन्न है।

                  ८) मम कार्यं मित्रात्‌ पृथग्‌ अस्ति ।

                       मेरा कार्य मित्र से अलग है।

                  ९) सीतायाः विना रामाय एतत्‌ स्थानं रुचिकरं न अस्ति।

                      सीता के बिना राम के लिए यह स्थान रुचिकर नहीं है।

                  १०) दुर्योधनस्य गुणाः युधिष्ठिराद्‌ नाना आसन्‌ ।

                        दुर्योधन के गुण युधिष्ठिर के गुणों से भिन्न थे।


71.

पञ्चमी विभक्ति नियम

(दूरान्तिकार्थेभ्यो द्वितीया च) दूर व समीपवाची शब्दों में पञ्चमी विभक्ति होती है। इन शब्दों में द्वितीया व तृतीया विभक्ति भी विकल्प से होती है।

  उदाहरण-- मम गृहं ग्रामास्य दूराद्‌ अस्ति। यहां दूर शब्द में पञ्चमी विभक्ति हुई। इसके अतिरिक्त यहां दूरम्‌ या दूरेण प्रयोग भी हो सकते हैं।

   इसी प्रकार--२) अहं जनकस्य समीपात्‌ आगच्छामि।

                        मैं पिता के समीप से आ रहा हूं।

                  ३) नगरस्य दूराद्‌ एषः विद्यालयः अस्ति।

                       यह विद्यालय नगर से दूर है।

                   ४) अहं गुरोः पार्श्वात्‌ वसामि।

                        मैं गुरु के निकट रहता हूं।

                   ५) क्षेत्रस्य विप्रकृष्टाद्‌ ग्रामः अस्ति।

                        खेत से दूर गांव है।

                   ६) 'जयपुर' नगरस्य सकाशात्‌ 'अजमेर' नगरम्‌ अस्ति।

                        जयपुर नगर के पास अजमेर नगर है।

                   ७) त्वं क्रीडाक्षेत्रस्य दूराद्‌ असि।

                        तुम खेल के मैदान से दूर हो।

                   ८) अहम्‌ आपणस्य अन्तिकाद्‍ अस्मि ।

                       मैं दुकान के निकट हूं।

                  ९) अहम्‌ इतः दूराद्‌ गच्छामि ।

                       मैं यहां से दूर जाता हूं।

                  १०) सः मम हृदयस्य निकटाद्‌ अस्ति ।

                         वह मेरे मन के पास है।


72.

सम्बन्धबोधक षष्ठी विभक्ति

(षष्ठी शेषे) दो व्यक्ति या वस्तुओं के बीच सम्बन्ध का बोध कराने के लिए षष्ठी विभक्ति होती है।

 उदाहरण--पण्डितः रामायणस्य कथां कथयति। यहां पण्डित रामायण की कथा को कह रहा है अतः कथा का रामायण के साथ सम्बन्ध होने से रामायण में षष्ठी विभक्ति हुई। 

  इसी प्रकार--२) इदं गङ्गायाः जलम्‌ अस्ति।

                      यह गंगा का जल है।

                 ३) देवदत्तस्य धनं गृहे वर्तते।

                      देवदत्त का धन घर में है।

                 ४) रामस्य पुस्तकम्‌ आसन्दिकायाम्‌ अस्ति।

                      राम की पुस्तक कुर्सी पर है।

                 ५) विद्यार्थिनः जीवनम्‌ अमूल्यं भवति।

                      विद्यार्थी का जीवन अमूल्य है।

                 ६) लक्ष्मणः भ्रातुः लेखन्या लेखिष्यति।

                      लक्ष्मण भाई के पैन से लिखेगा।

                 ७) मम वस्त्रं शोभनं भविष्यति।

                      मेरा वस्त्र अच्छा होगा।

                 ८) बालकस्य पठने रुचिः भविष्यति।

                      बालक की पढ़ने में रुचि होगी।

                ९) तव समीपे सुन्दराणि पुष्पाणि सन्ति।

                     तुम्हारे पास सुन्दर फूल हैं।

                १०) भित्त्यां महापुरुषाणां चित्राणि वर्तन्ते।

                       दीवार पर महापुरुषों के चित्र हैं।


73.

षष्ठी-विभक्ति नियम

 (यतश्च निर्धारणम्) बहुतों में से एक को छांटने में जिसमें से छांटा जाए उसमें षष्ठी विभक्ति होती है। यहां विकल्प से सप्तमी विभक्ति भी होती है।

      उदाहरण-- छात्राणां छात्रेषु वा रामः श्रेष्ठः।यहां बहुत छात्रों में से राम को श्रेष्ठ बताया जा रहा है अतः छात्र शब्द में षष्ठी या सप्तमी विभक्ति हुई।

       इसी प्रकार--२) मनुष्याणां क्षत्रियः शूरतमः अस्ति।

                           मनुष्यों में क्षत्रिय सबसे अधिक शूर है।

                      ३) गवां कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा अस्ति।

                           गायों में कृष्णा सबसे ज्यादा दूध देने वाली है।

                      ४) अध्वागानां धावन्तः शीघ्रतमाः सन्ति

                           रास्ता चलने वालों में दौडते हुए सबसे तेज होते हैं।

                      ५) शिष्याणाम्‌ अर्जुनः पटुतमः आसीत्‌।

                           शिष्यों में अर्जुन सबसे चतुर था।

                      ६) नराणां ब्राह्मणः श्रेष्ठः अस्ति।

                           मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है।

                      ७) पुस्तकानां गीता श्रेष्ठा अस्ति।

                           पुस्तकों में गीता श्रेष्ठ है।

                      ८) अत्र सर्वेषां त्वं सम्पन्नतमः असि।

                           यहां सबमें तुम सबसे ज्यादा सम्पन्न हो।

                      ९) गृहाणाम्‌ इदं गृहं शोभनम्‌ अस्ति।

                           घरों में यह घर अच्छा है।

                      १०) बालकानाम्‌ अयं बालकः नेता भविष्यति ।

                            बालकों में यह बालक नेता होगा।


74.

षष्ठी-विभक्ति नियम

(वार्तिक:-निमित्तकारणहेतुषु सर्वासां प्रायदर्शनम्) निमित्त(कारण) अर्थ वाले शब्दों में प्रायः सभी विभक्तियां होती हैं।

 उदाहरण-- भवान्‌ किं कारणम्‌ अत्र वसति। यहां निमित्त अर्थ वाले कारण शब्द में द्वितीया विभक्ति हुई।

              २) त्वं कस्य हेतोः शोचसि?

                   तुम किस कारण से शोक करते हो?

              ३) त्वं तत्र कस्मात्‌ कारणाद्‌ गच्छसि?

                   तुम वहां किस कारण से जाते हो?

              ४) अहम्‌ अनेन प्रयोजनेन  नगरे वसामि।

                   मैं इस प्रयोजन से नगर में रहता हूं।

              ५) रामः यज्ञ-कारणाय ग्रामम्‌ अगच्छम्‌।

                   राम यज्ञ के कारण गांव को गया।

              ६)  लता तस्मात्‌ हेतोः बालकं पश्यति।

                    लता उस हेतु से बालक को देखती है।

               ७) देवदत्तः दान-निमितेन मन्दिरं गच्छति।

                    देवदत्त दान के निमित्त मन्दिर को जाता है।

               ८) अहं भोजन-हेतोः पाकशालाम्‌ आगच्छामि

                    मैं भोजन के हेतु से पाकशाला को आता हूं।

               ९) सुशीलः व्यायाम-कारणेन व्यायामशालाम्‌ अगच्छम्‌।

                    सुशील व्यायाम के कारण व्यायामशाला को गया ।

               १०) रमे! किं निमितम्‌ एवं कथयसि ।

                      हे रमा! तुम किसलिए ऐसा कहती हो ?


75.

षष्ठी-विभक्ति नियम

  उपरि,अधः,पुरः,पश्चात्‌,अग्रे,दक्षिणतः,उतरतः आदि शब्दों के योग में जो शब्द उनमें षष्ठी विभक्ति होती है।

  उदाहरण-- वृक्षस्य उपरि पक्षिणः सन्ति। यहां उपरि शब्द के योग में स्थित वृक्ष शब्द में षष्ठी विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार-- २) वृक्षस्य अधः मनुष्यः अस्ति।

                        वृक्ष के नीचे मनुष्य है।

                  ३) गृहस्य पुरः अवकरः अस्ति।

                       घर के सामने कूडा है।

                   ४) मम पश्चात्‌ द्विचक्रिका अस्ति।

                        मेरे पीछे साइकिल है।

                   ५) वाहनस्य अग्रे बाधा अस्ति।

                        वाहन के आगे बाधा है।

                   ६) नगरस्य दक्षिणतः जलम्‌ अस्ति।

                        नगर के दक्षिण की ओर जल है।

                    ७) ग्रामस्य उतरतः वनम्‌ अस्ति।

                        गांव के उत्तर की ओर वन है।

                    ८) तव उपरि गृहस्य भारः अस्ति।

                         तुम्हारे ऊपर घर का भार है।

                    ९) भवनस्य अधः अग्निः ज्वलति।

                         भवन के नीचे अग्नि जल रही है।

                    १०) विद्यालयस्य पुरः छात्राः सन्ति।

                           विद्यालय के सामने छात्र हैं।


76.

षष्ठी-विभक्ति नियम

(कर्तृकर्मणो: कृति,उभयप्राप्तौ कर्मणि) क्रिया में यदि अन,तृ,अ आदि प्रत्यय हों तो उसके कर्ता व कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है।जहां वाक्य में कर्ता व कर्म दोनों हों वहां कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- शिशोः शयनं मनोहरम्‌ अस्ति। यहां शयन क्रिया अन प्रत्यय अन्त वाली है अतः उसके कर्ता शिशु में षष्ठी विभक्ति हुई। 

 इसी प्रकार-२)तत्र रामस्य गमनं शोभनम्‌ अस्ति।

                  वहां राम का जाना अच्छा है।

                ३) सः पुस्तकस्य पठनं करोति।

                     वह पुस्तक को पढता है।

                ४) अस्मिन्‌ नगरे कार्यस्य कर्तार: सन्ति।

                     इस नगर में कार्य के कर्ता हैं।

                ५) तत्र सत्यस्य वक्तारः सन्ति।

                    वहां सत्य के वक्ता हैं।

                ६) मार्गे नराणां नेता गच्छति।

                     मार्ग में लोगों का नेता जाता है।

                ७) धनस्य दाता मोदते।

                     धन का देने वाला प्रसन्न होता है।

                ८)  धनस्य हर्ता धावति।

                      धन का हरने वाला दौडता है।

                ९)  नेतुः भाषणं रुचिकरं भविष्यति।

                      नेता का भाषण रुचिकर होगा।

               १०) भोजनस्य पाकः अस्मै रोचते।

                      भोजन का पाक इसको अच्छा लगता है


77.

षष्ठी-विभक्ति नियम

 (तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम्)

 तुल्यवाची शब्दों व (चतुर्थी चाशिष्यायुष्यमद्रभद्रकुशलसुखार्थहितै:)आशीर्वाद सूचक शब्दों के योग में जो शब्द उनमें षष्ठी विभक्ति होती है। इन शब्दों में विकल्प से क्रमशः तृतीया व चतुर्थी विभक्ति होती है।

  उदाहरण--रामस्य रामेण वा तुल्यः कः अपि न अस्ति। यहां तुल्य शब्द के योग में राम शब्द में षष्ठी विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) कृष्णस्य सदृशं मनुष्यम्‌ आनय।

                      कृष्ण के समान मनुष्य को लाओ।

                 ३) सर्वे छात्राः अत्र भवतः तुल्याः न सन्ति।

                      सभी छात्र आपके जैसे नहीं हैं।

                 ४) अस्य समं पुस्तकं तत्र आसीत्‌।

                      इसके जैसी पुस्तक वहां थी।

                 ५) दयानन्दस्य समः दयानन्दः एव आसीत्‌।

                      दयानन्द के जैसा दयानन्द ही था।

                 ६) तव कुशलं भूयात्‌ ।

                      तुम्हारा कुशल होवे।

                 ७) शिष्यस्य आयुष्यं भूयात्‌ ।

                      शिष्य का दीर्घायु होवे।

                 ८) पितुः शं भूयात्‌ ।

                      पिता का सुख होवे ।

                 ९) भ्रातुः भद्रं भूयात्‌ ।

                      भाई का कल्याण होवे।

                 १०) रोगिणः पथ्यं भूयात्‌ ।

                        रोगी का स्वास्थ्यवर्धन होवे।


78.

सप्तमी-विभक्ति नियम   

  जब एक क्रिया से दूसरी क्रिया कही जा रही हो तो पहली क्रिया में सप्तमी विभक्ति होती है। वह क्रिया यदि कर्तृ-वाच्य में हो तो कर्ता में व कर्म-वाच्य में हो तो कर्म में भी सप्तमी विभक्ति होती है।

  उदाहरण-- रामे वनं गते दशरथः मृतः। यहां राम के वन जाने से दशरथ का मरना कहा जा रहा है अतः जाना क्रिया में सप्तमी विभक्ति हुई व वाक्य के कर्तृ-वाच्य में होने के कारण कर्ता राम में भी सप्तमी विभक्ति हुई।

   इसी प्रकार--२) कार्ये कृते अहम्‌ अत्र आगच्छम्‌ ।

                       काम कर लेने पर मैं यहां आया।

                  ३) भोजने कृते सः विद्यालयम्‌ अगच्छत् ।

                       भोजन कर लेने पर वह विद्यालय गया।

                  ४) बालके वृक्षम्‌ आरुढे पिता तत्र आगच्छत्‌ ।

                      बालक के वृक्ष पर चढ़ने पर पिता वहां आया।

                   ५) मोहनेन पाठे पठिते सः क्रीडार्थं अगच्छत्‌ ।

                       मोहन के द्वारा पाठ पढ़ने पर वह खेलने को गया।

                   ६) मया बालके रक्षिते सः तत्र स्थितः।

                        मेरे द्वारा बालक को बचाए जाने पर वह वहां ठहरा।

                    ७) गृहे नष्टे सः आगतः।

                         घर के नष्ट होने पर वह आया।

                    ८) युधिष्ठिरे आगते अर्जुनः अपि आगतः।

                         युधिष्ठिर के आने पर अर्जुन भी आया

                    ९) पितरि स्थिते सः जातः।

                         पिता के ठहरने पर वह उत्पन्‍न हुआ।

                    १०) मयि तत्र उषिते त्वं कार्यं अकरोः।

                           मेरे वहां निवास करने पर तुमने कार्य किया।


79.

सप्तमी-विभक्ति नियम

 (आयुक्तकुशलाभ्यां चासेवायाम्) संलग्न अर्थ वाले शब्दों के योग में जो शब्द उनमें सप्तमी विभक्ति होती है।

 उदाहरण-- सः कार्ये संलग्नः अस्ति। यहां संलग्न शब्द के योग में कार्य शब्द में सप्तमी विभक्ति हुई।

इसी प्रकार-- २) अहम्‌ अधुना अध्ययने युक्तः अस्मि।

                     मैं आज अध्ययन में लगा हुआ हूं।

                ३) रामः निद्रायाम्‌ आसक्तः अस्ति।

                    राम नींद में लगा हुआ है।

                ४) बालकः क्रीडायां तत्परः अस्ति ।

                    बालक खेल में लगा हुआ है।

                ५) विद्यार्थी शास्त्रेषु व्यापृतः भवेत्‌ ।

                    विद्यार्थी शास्त्रों में लगा हुआ होगा।

                ६) अहं भक्षणे लग्नः आसम्‌ ।

                    मैं खाने में लगा हुआ था।

                ७) नेता भाषणे युक्तः आसीत्‌ ।

                     नेता भ‍ाषण में लगा हुआ था।

                ८) माता मार्जने तत्परा भविष्यति।

                     माता साफ करने में तत्पर होगी।

                 ९) भ्राता पठने व्यापृतः भविष्यति।

                      भाई पढ़ने में लगा हुआ होगा।

                 १०) त्वं गुरोः सेवायां आसक्तः आसीः ।

                       तुम गुरु की सेवा में लगे हुए थे।


80.

सप्तमी-विभक्ति नियम

 (साधुनिपुणाभ्यामर्चायां सप्तम्यप्रते:) चतुर अर्थ वाले शब्दों के योग में जो शब्द उनमें सप्तमी विभक्ति होती है।

 उदाहरण--सः शास्त्रे कुशलः अस्ति। यहां चतुर अर्थ वाले कुशल शब्द के योग में शास्त्र शब्द है अतः उसमें सप्तमी विभक्ति हुई।

  इसी प्रकार--२) हरिः युद्धे निपुणः अस्ति।

                      हरि युद्ध में निपुण है।

                 ३) रमा अध्ययने दक्षा आसीत्‌।

                     रमा अध्ययन में चतुर थी।

                 ४) सुशीलः क्रीडायां पटुः भविष्यति।

                      सुशील खेल में चतुर होगा ।

                 ५) एषः छात्रः भाषणे प्रवीणः अस्ति।

                     यह छात्र बोलने में प्रवीण है।

                 ६) बाल्यकाले त्वं शयने चतुरः आसीः।

                     बाल्यकाल में तुम सोने में चतुर थे।

                 ७) अहं धावने साधुः भविष्यामि।

                      मैं दौड़ने नें चतुर हूंगा।

                 ८) माता पचने निपुणा अस्ति।

                      माता पकाने में निपुण है।

                ९) पिता व्यापारे कुशल: अस्ति।

                     पिता व्यापार में कुशल है।

                १०) मम गुरुः पाठने प्रवीणः अस्ति ।

                      मेरा गुरु पढाने में प्रवीण है।


81.

सन्धि विषय(यण् सन्धि)


( इको यणचि) इ,ई को य्‌, उ,ऊ को व्‌, ऋ,ॠ को र्‌, लृ को ल्‌ हो जाता है यदि बाद में कोई स्वर हो तो।

 उदाहरण-- प्रति + एकः= प्रत्येकः। यहां प्रति शब्द के इ को य्‌ हुआ है क्योंकि बाद में स्वर ए परे है।

 इसी प्रकार-- २) यदि+अपि= यद्यपि। 

                 ३) गुरु+ आज्ञा= गुर्वाज्ञा।

                 ४) वधू+ औ=वध्वौ।

                  ५) पितृ+आ= पित्रा।

                  ६) कर्तृ+आ=कर्त्रा।

                  ७) लृ+आकृतिः=लाकृतिः।

                  ८) इति+ आह=इत्याह

                  ९)नदी+औ=नद्यौ

                  १०)अनु+अयः=अन्वयः।


82.

#व्याकरण प्रश्नोत्तरी


प्रश्न :- व्याकरण किसे कहते हैं ?

उत्तर :- शब्दों और वाक्यों को नियमबद्ध कर उनकी चिकित्सा करने वाले शास्त्र को व्याकरण कहते हैं ।


प्रश्न :- व्याकरण में कितने ग्रंथ हैं ? 

उत्तर :- व्याकरण किसी एक शास्त्र का नाम नहीं बल्कि शास्त्रों का संग्रह है । इसमें पाणिनि मुनि के पाँच उपदेश ( अष्टाध्यायी, धातुपाठ, गणपाठ, उणादिकोष, लिङ्गानुशासनम् ) और पतंजलि मुनि द्वारा अष्टाध्यायी का भाष्य जिसे महाभाष्य कहा जाता है । ये व्याकरण ग्रंथ हैं ।


प्रश्न :- व्याकरण की रचना का प्रयोजन क्या है ?

उत्तर :- शब्दों के भ्रष्ट रूप हो जाने से भाषा बिगड़ जाती है और अर्थ भिन्न होने लगते हैं । इन्हीं व्यवधानों का समाधान करने के लिए व्याकरण शास्त्र रचा जाता है ।


प्रश्न :- व्याकरण की रचना किन किन के द्वारा हुई है ? 

उत्तर :- समय समय पर व्याकरण की रचना मनुष्यों की बुद्धि के आधार पर ऋषियों द्वारा होती रही है । जिनमें गर्ग, ब्रह्मा, आग्रायण, औपमनव्य, उल्लूक, आपिशल, चान्द्रायण, शाकल्य, कश्यप, काश्कृत्सन, पाणिनि, पतंजलि आदि मुनियों के नाम प्रसिद्ध हैं । प्राचीनतम व्याकरण केवल पाणिनि मुनि का ही उपलब्ध है । पाणिनि मुनि के व्याकरण से पूर्व इन्द्र का व्याकरण प्रचलित था ।


प्रश्न :- अष्टाध्यायी किसे कहते हैं ?

उत्तर :- आठ अध्यायों की पुस्तक को अष्टाध्यायी कहते हैं । जिनमें पाणिनीय सूत्र होते हैं ।


प्रश्न :- सूत्र किसे कहते हैं ?

उत्तर :- संक्षिप्त नियमों को सूत्र कहा जाता है ।


प्रश्न :- अष्टाध्यायी में कितने सूत्र हैं ?

उत्तर :- अष्टाध्यायी में 3980 के लगभग सूत्र हैं ।


 प्रश्न :- सूत्रों से क्या प्रयोजन है ?

उत्तर :- सूत्रों से शब्दों और वाक्यों को आपसे में नियमबद्ध किया जाता है जिससे कि भाषा का मन्तव्य स्पष्ट हो ।


 प्रश्न :- धातुपाठ आदि ग्रंथों के क्या प्रयोजन हैं ?

उत्तर :- ये सब अष्टाध्यायी के सहायक ग्रंथ हैं । जिनसे धातुरूप, प्रत्यय आदि के द्वारा शब्द बनाए जाते हैं ।


प्रश्न :- महाभाष्य किसे कहते हैं ?

उत्तर :- अष्टाध्यायी सूत्रों के भाष्य को महाभाष्य कहते हैं । जिनसे शब्दों का दार्शनिक, वैज्ञानिक पक्ष जाना जाता है ।


 प्रश्न :- पूरी व्याकरण को पढ़ने के लिए कितना समय लगता है ?

उत्तर :- व्याकरण पढ़ने में बुद्धि के अनुसार ४-५ वर्ष तक समय लगता है ।


 प्रश्न :- व्याकरण किस विधि से पढ़ी जाती है ?

उत्तर :- सबसे पहले वर्णोच्चारण शिक्षा से उच्चारण शुद्ध किया जाता है और फिर अष्टाध्यायी सूत्रों को कंठस्थ करवाया जाता है और बुद्धि अनुसार बाकी के उपदेश धातुपाठ आदि कंठस्थ करवाकर अष्टाध्यायी की प्रथमावृत्ति पढ़ाई जाती है जिसमें सूत्रों के अर्थ से लेकर शब्द सिद्धि करी जाती है, प्रथमावृत्ति में लगभग 1 से 1.5 वर्ष लगता है । फिर शंका समाधान के साथ अष्टाध्यायी को दूसरी बार पढ़ना द्वितीया वृत्ति कहलाता है । द्वितीया वृत्ति में लगभग 8 से 10 मास लगते हैं । द्वितीया वृत्ति के बाद 1.5 से 2 वर्ष में महाभाष्य पढ़ा जाता है । तब व्याकरण पूर्ण होती है ।


 प्रश्न :- व्याकरण पढ़ने से क्या होता है ?

उत्तर :- मनुष्य की बुद्धि तीव्र हो जाती है, खरबों शब्दों या अनंत शब्दों के शब्दकोष का वह स्वामी हो जाता है, संस्कृत भाषा पर उसका अधिकार हो जाता है जिससे वह अन्य संस्कृत भाषा में लिखे प्राचीन वैदिक वाङ्‌मय को सरलता से पढ व समझ सकता है व वेदार्थ करने में गति हो जाती है, उसकी जिह्वा शुद्धता और वह व्यवहार कुशल हो जाता है, निरुक्त शास्त्र पढ़ने का वह अधिकारी हो जाता है ऐसे ही कई लाभ होते हैं ।


83.

वृद्धि सन्धि 


( वृद्धिरेचि )अ या आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों को “ऐ” ,ओ या औ हो “औ”  होगा ।

उदाहरण- अत्र +एकः=अत्रैकः। यहां अ से परे ए है अतः दोनों के स्थान पर “ऐ” हुआ।

२) सा + एषा= सैषा ।

३) राज + ऐश्वर्यम्‌= राजैश्वर्यम्‍ ।

४) का +एका = कैका ।

५) पश्य + ऐरावतः= पश्यैरावतः।

६) जल + ओघः= जलौघः ।

७) महा + औषधिः= महौषधिः।

८) तण्डुल +ओदनम्‍= तण्डुलौदनम्‍ ।

९) महा + ओजः= महौजः।

१०) न + औघः= नौघः।


84.

पूर्वरूप सन्धि


(एङ: पदान्तादति) शब्द के अन्तिम ए या ओ के बाद अ हो तो उसको पूर्वरुप( ए या ओ ) ही हो जाता है अर्थात्‌ “अ” ए या ओ में मिल जाता है।

उदाहरण- विद्यालये + अस्मिन्‌= विद्यालयेsस्मिन्‌ । यहां “अ” व “ए” के स्थान पर “ए” हो गया है व "अ" ए या ओ में मिला है यह दिखाने के लिए अवग्रह चिह्न(s) लगा दिया चाहता है जो ऐच्छिक है।

२) लोके + अयम्‌= लोकेsयम्‌ ।

३) हरे + अव= हरेsव ।

४) याचते + अधुना= याचतेsधुना 

५) अधीते + अमुम्‍= अधीतेsमुम्‌ 

६) विष्णो + अव= विष्णोsव ।

७) रामो + अत्र=रामोsत्र ।

८) लोको + अयम्‌= लोकोsयम्‌ ।

९) रमेशो + अगच्छत्‌= रमेशोsगच्छत् ।

१०) देवो + अन्नम् = देवोsन्नम् ।


85.

सवर्णदीर्घसन्धि 

(अक: सवर्णे दीर्घ:) अ,इ,उ,ऋ के बाद को सवर्ण (सदृश) वर्ण परे हो तो दोनों के स्थान पर उसी वर्ण का दीर्घ अक्षर हो जाता है। उदाहरण- शिष्ट + आचार: = शिष्टाचार: । यहां शिष्ट शब्द के अन्तिम "अ" के बाद सवर्ण "आ" परे है अत: दोनों के स्थान पर "अ" का दीर्घ "आ" हो गया ।

इसी प्रकार-

 २) हिम+आलय:= हिमालय:।

 ३) गिरि + ईश: = गिरीश: ।

 ૪)  गुरु + उपदेश: = गुरूपदेश: ।

 ५)  होतृ + ऋकार: = होतॄकार: ।

 ६)  विद्या + आलय: = विद्यालय: ।

 ७)  पठति + इदम्  = पठतीदम् ।

 ८)  भानु + उदय: = भानूदय: ।

 ९)  पितृ + ऋणम् = पितॄणम् ।

 १०) महा + आत्मा = महात्मा ।


86.

श्चुत्व सन्धि

(स्तो: श्चुना श्चु:) स्‌ या तवर्ग से पहले या बाद में श्‌ या चवर्ग हो तो स्‌ व तवर्ग को क्रमशः श्‌ या चवर्ग हो जाता है।

उदाहरण- तत् + च= तच्च । यहां त्‌ को च् हो गया है क्योंकि “च्" बाद में है।

२) सत् + चित् = सच्चित् ।

३) रामस् + च= रामश्च ।

४) कस्  + चित् = कश्चित् ।

५) सन् + जयः= सञ्जयः ।

६) शार्ङ्गिन् + जयः= शार्ङ्गिञ्जयः ।

७) उत् + चारणम् = उच्चारणम् ।

८) तत् + चरित्रम् = तच्चरित्रम्

९) सद्‍ + जनः= सज्जनः ।

१०) याच् + ना= याच्ञा ।


87.

ष्टुत्व सन्धि 

स् या तवर्ग से पहले या बाद में ष् या टवर्ग हो तो स् व तवर्ग को क्रमशः ष् व टवर्ग हो जाते हैं।

उदाहरण- तत् + टीका= तट्टीका । यहां त् को ट्‍ हो गया है क्योंकि “ट्‍” बाद में है।

२) सृष् + तिः= सृष्टिः ।

३) कृष् + नः= कृष्णः ।

४) विष् + नुः= विष्णुः ।

५) उद्‍+ डयनम् = उड्‍डयनम् ।

६) उद्‍ + डीनः= उड्‍डीनः ।

७) हरिस् + षष्ठः= हरिष्षष्ठः ।

८) दुष् + तः= दुष्टः ।

९) उष् + त्रः= उष्ट्रः ।

१०) बालास् + षड्‍= बालाष्षड्‍ ।


88.

जशत्व सन्धि 

झलों अर्थात्‌ वर्ग के १,२,३,४ व ऊष्म वर्णों को जश् ‍ अर्थात् वर्ग के तृतीय अक्षर हो जाते हैं यदि वे शब्द के अन्तिम अक्षर हों  व अन्तिम अक्षर न हो ,उसके बाद झश्‍(वर्ग का ३,४) वर्ण हो तो भी हो जाता है। 

उदाहरण- जगत् + ईशः= जगदीशः । यहां जगत् शब्द के अन्तिम "त्" को “द्‍” हो गया है क्योंकि यह शब्द का अन्तिम वर्ण है।

२) चित् + आनन्दः= चिदानन्दः ।

३) दिक् + अम्बरः= दिगम्बरः ।

४) उत् + देश्यम् = उद्देश्यम् ।

५) षट्‍ + आननः= षडाननः ।

झश् परे के उदाहरण-

६) बुध् + धिः= बुद्धिः ।

७) दुघ् + धम् = दुग्धम् ।

८) युध् + धम् = युद्धम् ।

९) क्षुभ् + धः= क्षुब्धः ।

१०) शुध् + धिः= शुद्धिः ।


89.

चर्त्वसन्धि

(खरि च) झलों(वर्ग के १,२,३,४,ऊष्म) को चर्( १,उसी वर्ग के प्रथम अक्षर)होते हैं,बाद में खर्(१,२,श,ष,स)हों तो। उदाहरण-सद्+कार=सत्कार। यहां झल्(द्) के स्थान में उसी वर्ग का प्रथम अक्षर त् आदेश हुआ खर् प्रत्याहार वाले वर्ण क् के परे रहते।

इसी प्रकार

२) तद्+परः=तत्परः।

३) सद्+पुत्रः=सत्पुत्रः।

४) उद्+पन्नः=उत्पन्नः।

५) उद्+साहः=उत्साहः।

६) तज्+छिवः=तच्छिवः।

७) भेद्+तुम्=भेत्तुम् ।

८) युयुध्+सते=युयुत्सते।

९) आलिभ्+सते=आलिप्सते।

१०) सद्+कर्म=सत्कर्म।


90.

अनुस्वार सन्धि

शब्द के अन्त में म् के बाद कोई व्यञ्जन हो तो उसको अनुस्वार हो जाता है ।

उदाहरण- हरिम् + वन्दे= हरिं वन्दे । यहां “म्” को अनुस्वार हो गया क्योंकि व्यञ्जन “व्” परे है।

२) गुरुम् + नमति= गुरुं नमति ।

३) कम् + चित्= कंचित् ।

४) कार्यम् + कुरु= कार्यं कुरु ।

५) सत्यम् + वद= सत्यं वद ।

६) धर्मम् + चर= धर्मं चर ।

७) पुस्तकम् + पठति= पुस्तकं पठति ।

८) भोजनम् + खादति= भोजनं खादति ।

९) रामम् + पश्यति = रामं पश्यति ।

१०) बालम् + ताडयति= बालं ताडयति ।


91.

अनुनासिक सन्धि

(यरोsनुनासिकेsनुनासिको वा) शब्द के अन्त में  यर्  प्रत्याहार(य,व,र,ञ,म,ङ,ण,न,झ,भ,घ,ढ,ध,ज,ब,ग,ड,द,ख,फ,छ,ठ,थ,च,ट,त,क,प,श,ष,स) वाले वर्णों के बाद अनुनासिक हो तो यर् के स्थान पर अनुनासिक आदेश हो जाता है।

उदाहरण- सद्‍ + मतिः= सन्मतिः । यहां यर् प्रत्याहार वाले वर्ण द्‍ के स्थान पर अपने वर्ग का अन्तिम वर्ण अनुनासिक न् हो गया क्योंकि अनुनासिक म् परे है ।

२) वाक् + मयम् = वाङ्‍मयम् ।

३) दिक् + नागः= दिङ्नागः ।

४) तत् + न= तन्न ।

५) तत् + मयम्‍= तन्मयम्‍ ।

६) पद्‌ + नगः= पन्नगः ।

७) षट्‍ + मुखः= षण्मुखः ।

८) अप् + मयम् = अम्मयम् ।

९) सत् + मुखम् = सन्मुखम् ।

१०) जगत् + माता= जगन्माता ।


92.

यत्व सन्धि

( भोभगोअघोअपूर्वस्य योशि ) भोः,भगोः,अघोः और अ या आ के बाद र् को य् हो जाता है बाद में यदि अश् प्रत्याहार के वर्ण ( स्वर,ह,य,व,र,ल,वर्ग के ३,४,५ ) हों तो । 

उदाहरण- रामः +  इच्छति= राम इच्छति । राम् + अ+स् + इच्छति ।

 रा‌म् + अ +र् + इच्छति ( यहां शब्द के अन्तिम स् को र् हुआ)।

 राम् + अ+ य् +इच्छति ( यहां अ से परे र् को य् उपर्युक्त नियम से हुआ क्योंकि बाद में स्वर इ है।                      राम इच्छति । इसके बाद य् का लोप शाकल्य आचार्य के अनुसार( लोपः शाकल्यस्य) से हो जाता है। 

२) देवाः + गच्छन्ति= देवा गच्छन्ति ।

३) नराः + हसन्ति= नरा हसन्ति ।

४) देवः + इह= देव इह ।

५) बालाः + यच्छति= बाला यच्छति ।

६) शिष्याः + एते= शिष्या  एते ।

७) लताः + लिखति= लता लिखति ।

८) भोः + राम != भो राम !

९) भगोः + अत्र = भगो अत्र ।

१०) अघोः ददाति = अघो ददाति ।


93.

उत्व सन्धि

(अतो रोरप्लुतादप्लुते) ह्रस्व अ के बाद र् को उ हो जाता है यदि बाद में ह्रस्व अ या (हशि च) हश् प्रत्याहार के वर्ण(वर्ग के ३,४,५,ह,य,व,र,ल) हों तो । 

उदाहरण- सः + अपि= सोsपि ।सन्धि के लिए विसर्ग की पूर्व अवस्था स् को लिया जाता है। यहां सस् + अपि= सर् +अपि( पहले स् हो र् ससजुषो रुः सूत्र से हुआ)।

स् +अ+उ +अपि । यहां र् से पहले ह्रस्व अ है व बाद में भी अतः र् को उ हो गया । तत्पश्चात् गुण सन्धि से ओ होकर “सो अपि” बना । इसके बाद पूर्वरुप सन्धि होकर ओ व अ के स्थान पर ओ होकर सोsपि बन गया। यह दिखाने के लिए कि अ ओ में मिला है अवग्रह चिह्न(s) लगा दिया जाता है व यह ऐच्छिक है अर्थात् इसे इच्छानुसार लगाया भी जा सकता है और नहीं भी ।

२) कः + अस्ति= कोsस्ति ।

३) सः + अपठत्= सोsपठत् ।

४) देवः + अयम्= देवोsयम् ।

५) यज्ञदत्तः + अवदत्= यज्ञदत्तोsवदत् ।

    

    हश् प्रत्याहार परे के उदाहरण

६) बालः + लिखति= बालो लिखति ।

७) रामः + जयति= रामो जयति ।

८) शिष्यः + हसति= शिष्यो हसति ।

९) पाचकः + वदति= पाचको वदति।

१०) देवः + भरति= देवो भरति ।


94.

सुलोप सन्धि

(एतत्तदो: सुलोपोsकोरनञ्समासे हलि) सः व एषः के विसर्ग का लोप होता है बाद में यदि कोई व्यञ्जन हो तो ।

उदाहरण- सः + पठति= स पठति । यहां सः के विसर्ग का लोप हो गया है क्योंकि बाद में व्यञ्जन “प्" है।

२) सः + खादति= स खादति ।

३) एषः + लिखति= एष लिखति ।

४) एषः + करोति= एष करोति ।

५) सः + पचति= स पचति ।

६) एषः + धावति= एष धावति ।

७) सः + हसति= स हसति ।

८) एषः + वदति= एष + वदति ।

९) सः + चलति= स चलति ।

१०) एषः + पश्यति= एष पश्यति ।


95.

लत्व सन्धि

तवर्ग के बाद ल हो तो तवर्ग को भी ल हो जाता है।

उदाहरण- उत् + लेखः= उल्लेखः । यहां त् के स्थान पर ल् हो गया क्योंकि ल् परे है। न् के स्थान पर अनुनासिक लं‍ हो जाएगा ।

२) पद्‍ +लवः= पल्लवः ।

३) तत् + लीनः= तल्लीनः ।

४) विद्वान् + लिखति= विद्वाल्ंलिखति ।

५) तद्‍ + लयः= तल्लयः ।

६) भगवत् + लीनः= भगवल्लीनः ।

७) हसन् + लिखति= हसल्ंलिखति ।

८) खादन् + लसति= खादल्ंलसति ।

९) श्रीमत् + लाति= श्रीमल्लाति ।

१०) जगत् + लजते= जगल्लजते ।


96.


छत्व सन्धि

(शश्छोsटि) शब्द के अन्त में झय् प्रत्याहार(वर्ग के १,२,३,४) के बाद श् हो तो उसको छ् हो जाता है,यदि उस श् के बाद अट्‍( स्वर,ह्,य्,व्,र् ) हों तो ।

उदाहरण- तत् + शिवः= तच्छिवः । यहां झय् प्रत्याहार वाले वर्ण त् के बाद श् को छ् हो गया है क्योंकि श् के बाद में अट्‍ प्रत्याहार वाला वर्ण इ है व श्चुत्व सन्धि से त् को च् ‍ हो गया ।

२) सत् + शीलः= सच्छीलः ।

३) तत् + शिला= तच्छिला ।

४) उत् + श्रायः= उच्छ्रायः ।

५) पठत् + शाला= पठच्छाला ।

६) एतत् + शलाका= एतच्छलाका ।

७) धावत् + शशकः= धावच्छशकः ।

८) हसत् + शशिः= हसच्छशिः ।

९) भवत् + शर्करा= भवच्छर्करा ।

१०) भगवत् + शापः= भगवच्शापः ।


97.


परसवर्ण सन्धि

(अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः) अनुस्वार के बाद यय्‍ प्रत्याहार(य,र,ल,व,वर्ग के १,२,३,४,५) हो तो अनुस्वार को परसवर्ण अर्थात्‍ आगे के वर्ण का पञ्चम अक्षर हो जाता है।

उदाहरण- अं + कः= अङ्कः । यहां अनुस्वार के बाद यय्‍ प्रत्याहार वाला क्‍ परे है अतः अनुस्वार को क्‍ का सवर्णी ङ्‍ हो गया।

२) शं + का= शङ्का ।

३) अं + चितः‍= अञ्चितः।

४) कं + ठः= कण्ठः ।

५) शां + तः= शान्तः ।

६) सं + मानः= सम्मानः ।

७) गं + गा= गङ्गा ।

८) बं + धनम्‍ = बन्धनम्‍ ।

९) सं + पर्कः= सम्पर्कः।

१०) सं + चयः= सञ्चयः ।


98.

रुत्व सन्धि

(नश्छव्यप्रशान् ) शब्द के अन्तिम न् को र् हो जाता है यदि बाद में छव् ‍ प्रत्याहार( च् ,छ्‍,ट्‍,ठ्‍,त् थ्) बाद में हो व उस छव् के बाद अम् प्रत्याहार वाला वर्ण ( स्वर,ह,अन्तःस्थ,वर्ग के पञ्चम अक्षर) हो तो ।

उदाहरण- कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित् । यहां पहले उपर्युक्त सूत्र से न् को र् हुआ क्योंकि न् के बाद छव् ‍ प्रत्याहार वाला वर्ण च् व उस च् के बाद अम् प्रत्याहार वाला इ है । उसके बाद विसर्ग सन्धि( खरवसानयोर्विसर्जनीयः) से खर् प्रत्याहार वाले वर्ण के परे रहते र् के स्थान पर विसर्ग हो गया। फिर उस विसर्ग को स् खर् प्रत्याहार के परे रहते विसर्ग सन्धि( विसर्जनीयस्य सः) से स् और स् को श्चुत्व सन्धि से श् ‍ हो गया है । 

२) धीमान् + च= धीमांश्च ।

३) अस्मिन् + तरौ= अस्मिंस्तरौ ।

४) शार्ङिन् + छिन्धि= शार्ङ्गिश्छिन्धि ।

५) चक्रिन् + त्रायस्व= चक्रिंस्त्रायस्व ।

६) तस्मिन् + तथा= तस्मिंस्तथा ।

७) श्रीमान् + चलति= श्रीमांश्चलति ।

८) विद्वान् + तरति= विद्वांस्तरति ।

९) भवान् + छिनत्ति= भवांश्छिनत्ति ।

१०) भगवान् + छन्दः= भगवांश्छन्दः ।


99.

वर्तमानकालिक शतृ व शानच्‌ प्रत्यय 


(लट: शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे) वर्तमान काल को कहने में धातु से शतृ व शानच्‌ प्रत्यय होते हैं । शतृ का अत्‌ व शानच्‌ का आन शेष रहता है।

शतृ-प्रत्ययान्त शब्द के रुप पुल्लिङ्ग में पठत्‌ के तुल्य,स्त्रीलिङ्ग में नदी व नपुंसक लिङ्ग में जगत्‌ के तुल्य रुप चलेगें।

वहीं शानच्‌ प्रत्ययान्त शब्दों में पुल्लिङ्ग में राम,स्त्रीलिङ्ग में रमा व नपुंसक में गृह के तुल्य रुप चलेगें।

उदाहरण- १) सः विद्यालयं गच्छन्‌  भविष्यति। यहां गच्छन्‍ क्रिया “जा रहा अर्थ” अर्थात्‌ जाना क्रिया की वर्तमानता का बोध कराती है व “जा रहा होगा” इस अर्थ को प्रकट करने के लिए साथ में भविष्यति( लृट्‍ लकार) का प्रयोग किया है। इसी प्रकार भूतकालिक वर्तमानता को दिखाने के लिए “लङ्‌ लकार” व वर्तमानकालिक वर्तमानता को दिखाने के लिए “लट्‍ लकार” का प्रयोग होगा।

२) पुष्पाणि पतन्ति सन्ति।

   फूल गिर रहे हैं।

३) बालकः पठन्‌ आसीत्‌ ।

    बालक पढ रहा था।

४) रमा भोजनं खादन्ती अस्ति ।

     रमा भोजन खा रही है।

५) अहं त्वां पश्यन्‍ अस्मि।

     मैं तुमको देख रहा हूं।

६)  भगिनी भोजनं पचमाना अस्ति।

     बहन भोजन पका रही है।

७)  दासी धनं याचमाना आसीत्‌ ।

      दासी धन मांग रही थी ।

८)  सः फलानि नयमानः भविष्यति ।

     वह फल ले जा रहा होगा ।

९)  हरिः अत्र शयानः अस्ति ।

     हरि यहां सो रहा है।

१०) तत्‌ पत्रं पतमानम्‌ अस्ति।

     वह पत्ता गिर रहा है।


100.

#संस्कृतभाषायां शाकानां नामानि |


अदरक - आर्द्रकम्

आलू – आलुः

आलू बुखारा - आलुकम्

करेला - कारबेल्लम्

कांकर - कर्कटी

करौंदा - आमलकी

ककडी - कर्कटी

कोहडा (कद्दू) - कूष्मांड:, तुम्‍बी

कटहल - पनसम्

कुंदरू – कुंदरुः

खीरा/ककडी - कर्कटी, चर्भटि:

गवाक्षी - तिल्लिका

गांजर - गृञ्जनम्

गोभी - गोजिह्वा

गांठ गोभी - कन्‍दशाकम्

चुकन्‍दर - पालङ्गशाकः

टमाटर - रक्त वृन्तकम्

टमाटर - हिण्डीरः

टिंडा - टिंडिशः

तोरई - कोशातकी, जालिनी

धनिया - धान्याकम्

नींबू - निम्बुकम्

परवल - पटोलः

पुदीना - अजगन्‍ध:

बथुआ - वास्तुकम्

भिण्‍डी - भिण्डिका‚ भिण्डकः, रामकोशातकी

भांटा - भण्टाकी

मूली - मूलिका, मूलकम्

मिर्चा/मिर्ची - मरीचम्

मटर - कलायः

मशरूम – छत्राकम्

लोबिया (बोडा) - वनमुद्गः

लौकी - कुम्माण्डः

लौकी - अलाबूः

लहसुन - लसुनम्

लौकी (पेठा) - वृहत्‍फलम्

शकरकंद - शकरकन्दः

शिमलामिर्च - महामरीचिका

शिमलामिर्च - कटुविरा

शलजम् - शिखामूलं, श्वेतकन्दः

शतावरी - शतावरी

सेम – शिबिका, सिम्बा

सहिजन - सुरजन:

सरसो – सर्षपः


101.

#वस्त्राणांं नामानि ।।

अंगरखा – अंगरक्षिका 

अंगोछा - गात्रमार्जनी 

ऊनी वस्‍त्र - रांकवम् 

ओढनी - प्रच्‍छदपट: 

कंबल - कम्‍बल: 

कनात - काण्‍डपट:, अपटी 

कपडा - वस्‍त्रम्, वसनम्, चीरम् 

कमरबन्‍द - रसना, परिकर:, कटिसूत्रम् 

कुर्ता- कंचुक:, निचोल: 

कोट - प्रावार: 

गद्दा - तूलसंतर: 

गलेबन्‍द - गलबन्‍धनांशुकम् 

चादर - शय्याच्‍छादनम्, प्रच्‍छद: 

जांघिया - अर्धोरुकम् 

जाकेट - अंगरक्षक: 

जूता - उपानह्

तकिया - उपधानम् 

दरी - आस्‍तरणम् 

दुपट्टा - उत्‍तरीयम् 

धोती - अधोवस्‍त्रम्, धौतवस्‍त्रम् 

नाइटड्रेस - नक्‍तकम् 

नायलोन का - नवलीनकम् 

पगडी - शिरस्‍त्रम्, उष्‍णीषम् 

परदा - यवनिका, तिरस्‍करिणी, अवगुण्‍ठनम् 

पायजामा - पादयाम: 

पेटीकोट - अन्‍तरीयम् 

पैंट - आप्रपदीनम् 

बिछौना - शैय्या 

ब्‍लाउज - कंचुलिका 

मरेठा (टोपी) -शिरस्‍कम्, शिरस्‍त्राणम् 

मोजा - पादत्राणम् 

रजाई - तूलिका, नीशार: 

रुई - कार्पास:, तूल:


102.

#*वेद मन्त्रो के पाठ के ग्यारह तरीके*


चारो वेद के मन्त्रो को लाखों वर्षो से संरक्षित करने के लिए,

वेदमन्त्रों के पदो मे मिलावट ,कोई अशुद्धि न हो इसलिए 

*हमारे ऋषि मुनियो ने 11 तरह के पाठ करने की विधि बनाई।*

*_वेद के हर मन्त्र को 11 तरह से पढ सकते हैं।_*


11 पाठ के पहले तीन पाठ को प्रकृति पाठ व अन्य आठ को विकृति पाठ कहते हैं।


     *||प्रकृति पाठ||*

 १ संहिता पाठ

 २ पदपाठ

 ३ क्रमपाठ 


   *||विकृति पाठ||*

४ जटापाठ

५ मालापाठ

६ शिखापाठ

७  लेखपाठ

८  दण्डपाठ

९ ध्वजपाठ

१० रथपाठ

११ घनपाठ


         *१ संहिता पाठ*


 इसमे वेद मन्त्रों के पद को अलग किये बिना ही  पढा जाता है।

 जैसे 

 अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् । होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥


          *२ पदपाठ*


इसमें पदो को अलग करके क्रम से उनको पढा जाता है


अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । पु॒रःऽहि॑तम् । य॒ज्ञस्य॑ । दे॒वम् । ऋ॒त्विज॑म् । होता॑रम् । र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥


         *३ क्रम पाठ*

पदक्रम- १ २ | २ ३| ३ ४| ४ ५| ५ ६

क्रम पाठ करने के लिए पहले पदों को गिनकर फिर 

फिर पहला पद दूसरे पद के साथ।

दूसरा तीसरे पद के साथ

तीसरा चौथे पद के साथ इस तरह से पढा जाता है

जैसे

अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |  पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ |

य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्|

होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||


        *४ जटा पाठ*

पदक्रम -   १ २| २ १| १ २|

                २ ३| ३ २| २ ३|

                ३ ४| ४ ३| ३ ४|

                ४ ५| ५ ४| ४ ५|

                ५ ६| ६ ५| ५ ६|

                ६ ७| ७ ६| ६ ७|

 जैसे-      अ॒ग्निम् ई॒ळे॒|  ई॒ळे॒ अ॒ग्निम्| अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्|      ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्| र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||


         *५ माला पाठ*

जिस तरह  पांच छह फूलो को लेकर माला गूथी जाती है  उसी तरह इसमे क्रम बनता है

पदक्रम-  १ २ ६ ५|

              २ ३ ५ ४|

              ३ ४ ४ ३|

              ४ ५ ३ २|

              ५ ६ २ १|


  अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम् | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्|....

  इस तरह से


        *६ शिखापाठ*


*पदक्रम-*  १ २| २ १ | १ २ ३| 

              २ ३| ३ २ | २ ३ ४|

              ३ ४| ४ ३ | ३ ४ ५|

              ४ ५| ५ ४ | ४ ५ ६|

              

     *७ ध्वज पाठ*

     

यह क्रम पाठ की तरह ही होता है।       

पदक्रम-  १ २ २ ३ ३ ४ 

              ३ ४ २ ३ १ २|

              ४ ५ ५ ६ ६ ७

              ६ ७ ५ ६ ४ ५|  


     *८ दण्डपाठ*

     

पदक्रम- १ २| २ १| १ २| २ ३ | ३ २ १||     

             २ ३| ३ २| २ ३| ३ ४ | ४ ३ २||

             इस तरह से

             

        *९ रथ पाठ*

        

पदक्रम-   १ २ ४ ५| 

               १ २ ५ ४|

               १ २ २ ३|

               ४ ५ ५ ४|

               ३ ४ ६ ७|

               ३ ४ ७ ६|

               ३ ४ ४ ५|  इत्यादि

               

        *१०  घनपाठ*


पदक्रम- १ २| २ १| १ २ ३| ३ २ १| 

             १ २ ३| २ ३| ३ २| २ ३ ४| ४ ३ २|

             २ ३ ४| ३ ४| ४ ३| ३ ४ ५| ५ ४ ३| इत्यादि


         *११ लेखापाठ*


       पदक्रम-  १ २  २ १  १ २| २ ३ ४  ४ ५ २   २ ३  ३ ४ इत्यादि

      इस तरह से ११ तरह के पाठ है जिनका गुरुकुल मे

ब्रह्मचारी पाठ करते हैं इससे वेद मन्त्र सुनने मे कर्णप्रिय लगते हैं। और विद्यार्थी मन्त्रों को याद भी कर लेते  हैं।


*जब विदेशी आक्रांताओ ने भारत के गुरुकुल नष्ट करने शुरु किये तो दक्षिण आदि के ब्राह्मणों ने  बहुत कष्ट सहकर वेदो के पाठ को आजतक सुरक्षित रखा।*

*इसलिए वेदो मे आजतक मिलावट नही हो पायी।*

*अन्य सभी ग्रन्थो मे मिलावट है सिर्फ वेदो को छोड़कर ।*


*जो तीन तरह के पाठ का अभ्यास करते हैं उनको त्रिपाठी*

जो *दो वेद पढे उन्हे द्विवेदी, जो चारो पढे उनको चतुर्वेदी* इस तरह से उपाधि भी दी जाने लगी थी।

 आज भी जो लोग इन उपाधि को लगाते हैं उनके पूर्वज वैसे ही वेदपाठ करते थे।

*सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय हो।*


103.

लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद्बहवो गुणाः।

तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्नतुलालयेत्।।


भावार्थ - अधिक लाड-प्यार से बच्चे  गलत आदतों के अभ्यस्त हो जाते हैं, दृढ़तापूर्वक उन्हें उत्तम शिक्षा एवम् सुसंस्कार देने से वे अच्छी आदते सीखते हैं, इसलिए बच्चों को आवश्यकता पड़ने पर दण्डित भी करें, अधिक व अनावश्यक लाड न करें ।


   
साभार  : आओ संस्कृत सीखें

(परम पूज्य परमादरणीय आचार्य सत्यवान आर्य सर का क्लास नोटस)

संकलनकर्ता : गोलेन्द्र पटेल
डिप्लोमा कोर्स का छात्र
संस्कृत विभाग , काशी हिंदू विश्वविद्यालय ,वाराणसी।
ईमेल: corojivi@gmail.com

 #संस्कृतडिप्लोमाकोर्स #बीएचयू


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