हिंदी साहित्य / ई-नोट : गोलेन्द्र पटेल
(यू.जी.सी. : नेट, जेआरएफ, स्लेट, टेट, सीटेट, टी.जी.टी., पी.जी.टी., जूनियर रिसर्च फैलोशिप एवं लेक्चरशिप राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा, डिग्री कॉलेज एवं समस्त प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रमाणिक ई-नोट)
💠रामचंद्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन💠
Ä ''विलक्षण बात यह है कि आधुनिक गद्य साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन नाटक से हुआ।'' उपर्युक्त कथन किस साहित्यकार का है?
रामचन्द्र शुक्ल
Ä "इस वेदना को लेकर उन्होंने ह्रदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।" ౼ आचार्य रामचंद्र शुक्ल (महादेवी वर्मा के बारे में)
Ä ''इनकी रहस्यवादी रचनाओं को देख चाहेतो यह कहें कि इनकी मधुवर्षा के मानस प्रचार के लिए रहस्यवाद का परदा मिल गया अथवा यों कहें कि इनकी सारी प्रणयानूभूति ससीम पर से कूदकर असीम पर जा रही।'' (जयशंकर प्रसाद के बार में)
Ä कबीर की अपेक्षा ख़ुसरो का ध्यान की भाषा की ओर अधिक था।
Ä जायसी के श्रृंगार में मानसिक पक्ष प्रधान है, शारीरिक गौण हैं।
Ä 'इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर को राम नाम रामानन्द जी से ही प्राप्त हुआ पर आगे चलकर कबीर के राम रामानन्द से भिन्न हो गए।'
Ä भारतेन्दु ने जिस प्रकार हिन्दी गद्य की भाषा का परिष्कार किया, उसी प्रकार काव्य की ब्रजभाषा का भी।
Ä काव्य की पूर्ण अनुभूति के लिए कल्पना का व्यापार कवि और श्रोता दोनों के लिए अनिवार्य है।
Ä वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।
Ä काव्यानुभूति की जटिलता चित्तवृत्तियों की संख्या पर निर्भर नहीं, बल्कि संवादी-विसंवादी वृत्तियों के द्वन्द्व पर आधारित है।
Ä ‘आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान घटना है।’
Ä करुणा दुखात्मक वर्ग में आनेवाला मनोविकार है।
Ä नाद सौन्दर्य से कविता की आयु बढ़ती है।
Ä भक्ति धर्म की रसात्मक अनुभूति है।
Ä करुणा सेंत का सौदा नहीं है।
'Ä प्रकृति के नाना रूपों के साथ केशव के हृदय का सामंजस्य कुछ भी न था।'
Ä 'विरुद्धों का सामंजस्य कर्मश्रेत्र का सौन्दर्य है।'
Ä ‘हिन्दी रीति-ग्रंथों की परम्परा चिन्तामणि त्रिपाठी से चली। अतः रीतिकाल का आरम्भ उन्हीं से मानना चाहिए।’
Ä हरिश्चन्द्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत चलता, मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया।
Ä सौन्दर्य की वस्तुगत सत्ता होती है, इसलिए शुद्ध सौन्दर्य नाम की कोई चीज़ नहीं होती।
Ä यह सूचित करने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सूर का अवधी पर अधिकार था और न जायसी का ब्रजभाषा पर।
Ä धर्म का प्रवाह कर्म, ज्ञान और भक्ति ౼इन तीन धाराओं में चलता है। इन तीनों के सामंजस्य से धर्म अपनी पूर्ण सजीव दशा से रहता है। किसी एक के भी अभाव से वह विकलांग रहता है।
Ä "इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी।" (चिंतामणि त्रिपाठी के बारे में)
Ä "भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी।" (बेनी के बारे में)
Ä "इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रूप में नहीं।" (महाराजा जसवंत सिंह के ग्रंथ 'भाषा भूषण' के बारे में)
Ä "इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है।"
Ä "इसमें तो रस के ऐसे छींटे पड़ते हैं जिनसे हृदय-कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है।" (बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में)
Ä "जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा।" (बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में)
Ä "बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है।"
Ä "कविता उनकी श्रृंगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुंचती, नीचे ही रह जाती है।" (बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में)
Ä "भाषा इनकी बड़ी स्वाभाविक, चलती और व्यंजना पूर्ण होती थी।" (मंडन के बारे में)
Ä "इनका सच्चा कवि हृदय था।" (मतिराम के बारे में)
Ä "रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़ और किसी कवि में मतिराम की-सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती।"
भूषण के बारे में
Ä "उनके प्रति भक्ति और सम्मान की प्रतिष्ठा हिंदू जनता के हृदय में उस समय भी थी और आगे भी बराबर बनी रही या बढ़ती गई।"
Ä "भूषण के वीर रस के उद्गार सारी जनता के हृदय की संपत्ति हुए।"
Ä "जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी राहेगी।"
Ä "शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का वर्णनों को कोई कवियों की झूठी ख़ुशामद नहीं कह सकता।"
Ä "वे हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।"
सुखदेव मिश्र के बारे में
Ä "छंदशास्त्र पर इनका-सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया है।"
देव के बारे में
Ä " ये आचार्य और कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं।"
Ä "कवित्वशक्ति और मौलिकता देव में खूब थी पर उनके सम्यक स्फूर्ण में उनकी रुचि विशेष प्रायः बाधक हुई है।"
Ä "रीतिकाल के कवियों में ये बड़े ही प्रगल्भ और प्रतिभासंपन्न कवि थे, इसमें संदेह नहीं।"
श्रीपति के बारे में
Ä "श्रीपति ने काव्य के सब अंगों का निरूपण विशद रीति से किया है।"
भिखारी दास के बारे में
Ä "इनकी रचना कलापक्ष में संयत और भावपक्ष में रंजनकारिणी है।"
पद्माकर के बारे में
Ä "ऐसा सर्वप्रिय कवि इस काल के भीतर बिहारी को छोड दूसरा नहीं हुआ है। इनकी रचना की रमणीयता ही इस सर्वप्रियता का एकमात्र कारण है।"
ग्वाल कवि के बारे में
Ä "रीतिकाल की सनक इन में इतनी अधिक थी कि इन्हें 'यमुना लहरी' नामक देव-स्तुति में भी नवरस और षट् ऋतु सुझाई पड़ी है।"
Ä "षट् ऋतुओं का वर्णन इन्होंने विस्तृत किया है पर वही श्रृंगारी उद्दीपन के ढंग का।"
Ä "ग्वाल कवि ने देशाटन अच्छा किया था और उन्हें भिन्न-भिन्न प्रांतों की बोलियों का अच्छा ज्ञान हो गया था।"
आदिकाल के सम्बन्ध में
Ä "इन कालों की रचनाओं की विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही उनका नामकरण किया गया है।"
Ä "हिन्दी साहित्य का आदिकाल संवत् 1050 से लेकर संवत् 1375 तक अर्थात महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना जा सकता है।"
Ä "जब तक भाषा बोलचाल में थी तब तक वह 'भाषा' या 'देशभाषा' ही कहलाती रही, जब वह भी साहित्य की भाषा हो गई तब उसके लिए 'अपभ्रंश' शब्द का व्यहार होने लगा।"
Ä "नाथपंथ के जोगियों की भाषा 'सधुक्कड़ी भाषा' थी।"
Ä "सिद्धों की उद्धृत रचनाओं की भाषा 'देशभाषा' मिश्रित अपभ्रंश या 'पुरानी हिन्दी ' की काव्य भाषा है।"
Ä "सिद्धो में 'सरह' सबसे पुराने अर्थात विक्रम संवत् 690 के हैं।"
Ä "कबीर आदि संतों को नाथपंथियों से जिस प्रकार 'साखी' और 'बानी' शब्द मिले उसी प्रकार साखी और बानी के लिए बहुत कुछ सामग्री और 'सधुक्कड़ी' भाषा भी।"
Ä "वीरगीत के रूप में हमें सबसे पुरानी पुस्तक 'बीसलदेवरासो' मिलती है।"
Ä "बीसलदेवरासो में 'काव्य के अर्थ में रसायण शब्द' बार-बार आया है। अतः हमारी समझ में इसी 'रसायण' शब्द से होते-होते 'रासो' हो गया है।"
Ä "बीसलदेव रासो में आए 'बारह सै बहोत्तरा' का स्पष्ट अर्थ 1212 है।"
Ä बीसलदेव रासो के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है, "यह घटनात्मक काव्य नहीं है, वर्णनात्मक है।"
Ä बीसलदेव रासो के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है, "भाषा की परीक्षा करके देखते हैं तो वह साहित्यिक नहीं है, राजस्थानी है।"
Ä "अपभ्रंश के योग से शुद्ध राजस्थानी भाषा का जो साहित्यिक रूप था वह 'डिंगल' कहलाता था।"
Ä चन्दरबरदाई के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है, "ये हिन्दी के 'प्रथम महाकवि' माने जाते हैं और इनका 'पृथ्वीराज रासो' हिन्दी का 'प्रथम महाकाव्य' है।"
Ä पृथ्वीराज रासो के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है, "भाषा की कसौटी पर यदि ग्रंथ को कसते हैं तो और भी निराश होना पड़ता है क्योंकि वह बिल्कुल बेठिकाने हैं౼ उसमें व्याकरण आदि की कोई व्यवस्था नहीं है।"
Ä "विद्यापति के पद अधिकतर श्रृंगार के ही है जिनमें नायिका और नायक राधा-कृष्ण है।"
Ä "विद्यापति को कृष्ण भक्तों की परम्परा में न समझना चाहिए।"
Ä "मोटे हिसाब से वीरगाथाकाल महाराज हम्मीर की समय तक ही समझना चाहिए।"
Ä "कबीर ने अपनी झाड़-फटकार के द्वारा हिंदुओं और मुसलमानों की कट्टरता को दूर करने का जो प्रयास किया। वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ, हृदय को स्पर्श करने वाला नहीं।"
Ä "इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत प्रेम का स्वरूप दिखाया है।" (कुतबन कृत मृगावती के बारे में)
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, मलिक मुहम्मद जायसी के गुरु थे ౼शेख मोहिदी (मुहीउद्दीन)
Ä "प्रेमगाथा की परम्परा में पद्मावत सबसे प्रौढ़ और सरस है।"
Ä "यहीं प्रेममार्गी सूफी कवियों की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चाहिए।" (शेख नबी के बारे में)
Ä "सूफ़ी आख्यान काव्यों की अखंडित परम्परा की यहीं समाप्ति मानी जा सकती है।" (नूर मुहम्मद कृत अनुराग बांसुरी के बारे में)
Ä "नूर मुहम्मद को हिन्दी भाषा में कविता करने के कारण जगह-जगह इसका सबूत देना पड़ा है कि वे इस्लाम के पक्के अनुयायी थे।"
Ä "इस परम्परा में मुसलमान कवि हुए हैं। केवल एक हिन्दू मिला है।" (आचार्य शुक्ल ने किसकी तरफ़ इशारा किया है౼ सूरदास की तरफ़)
Ä "जनता पर चाहे जो प्रभाव पड़ा हो पर उक्त गद्दी के भक्त शिष्यों ने सुन्दर-सुन्दर पदों द्वारा जो मनोहर प्रेम संगीत धारा बहाई उसने मुरझाते हुए हिंदू जीवन को सरस और प्रफुल्लित किया।" ౼श्री बल्लभाचार्य जी के लिए
Ä "सूर की बड़ी भारी विशेषता है नवीन प्रसंगों की उद्भावना।"
Ä "ये बड़े भारी कृष्णभक्त और गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के बड़े कृपापात्र शिष्य थे।" (रसखान के बारे में)
Ä "इन भक्तों का हमारे साहित्य पर बड़ा भारी उपकार है।" (कृष्णभक्त कवियों के लिए)
Ä आचार्य शुक्ल ने केशवदास को भक्ति काल में सम्मिलित किया है।
Ä रामचरितमानस को 'लोगों के हृदय का हार' कहा है। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने)
Ä "गोस्वामी जी की भक्ति पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी सर्वांगपूर्णता।"
Ä "रामचरितमानस में तुलसी केवल कवि रूप में ही नहीं, उपदेशक के रूप में भी सामने आते हैं।"
Ä "प्रेम और श्रृंगार का ऐसा वर्णन जो बिना किसी लज्जा और संकोच के सबके सामने पढ़ा जा सके, गोस्वामी जी का ही है।"
Ä "हम निसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।" (तुलसीदास के लिए)
रामप्रसाद निरंजनी के बारे में
Ä "अब तक पाई गई पुस्तकों में यह "भाषा योगवासिष्ठ" ही सबसे पुराना है, जिसमें गद्य अपने परिष्कृत रूप में दिखाई पड़ता है।"
Ä "भाषा योगवासिष्ठ को परिमार्जित गद्य की प्रथम पुस्तक और रामप्रसाद निरंजनी को प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक मान सकते हैं।"
इंशा अल्ला ख़ाँ के बारे में
Ä "जिस प्रकार वे अपनी अरबी-फारसी मिली हिन्दी को ही उर्दू कहते थे, उसी प्रकार संस्कृत मिली हिन्दी को भाखा।"
Ä "आरंभिक काल के चारों लेखकों में इंशा की भाषा सबसे चटकीली, मटकीली, मुहावरेदार और चलती है।"
Ä 'अपनी कहानी का आरम्भ ही उन्होंने इस ढंग से किया है, जैसे लखनऊ के भाँड़ घोड़ा कुदाते हुए महफ़िल में आते हैं।' (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल इंशा अल्ला ख़ाँ के बारे मे)
राजा लक्ष्मणसिंह
Ä "असली हिन्दी का नमूना लेकर उस समय राजा लक्ष्मणसिंह ही आगे बढ़े।"
हरिश्चंद्र के बारे में
Ä "इससे भी बड़ा काम उन्होंने यह किया कि साहित्य को नवीन मार्ग दिखाया और वे उसे शिक्षित जनता के सहचर्य में ले आए।"
Ä "प्रेमघन में पुरानी परम्परा का निर्वाह अधिक दिखाई पड़ता है।" यहां पुरानी परम्परा से मतलब भाषा से हैं। (प्रेमघन के बारे में)
Ä "विलक्षण बात यह है कि आधुनिक गद्य साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन नाटकों से हुआ।"
Ä "अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास पहले-पहले हिन्दी में लाला श्रीनिवास दास का परीक्षा गुरु निकला था।" (श्रीनिवास दास के परीक्षा गुरु के बारे में)
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
Ä हरिश्चन्द्र की भाषा को 'हरिश्चन्द्री हिन्दी' कहा है शुक्ल जी ने।
Ä "वे सिद्ध वाणी के अत्यन्त सरल हृदय कवि थे।"
Ä "प्राचीन और नवीन का ही सुन्दर सामंजस्य भारतेन्दु की कला का विशेष माधुर्य है।"
Ä "अपनी सर्वतोन्मुखी प्रतिभा के बल से एक ओर तो वे पद्माकर, द्विजदेव की परम्परा में दिखाई पड़ते थे, दूसरी ओर बंग देश के मायकेल एवं हेमचन्द्र की श्रेणी में।"
Ä "श्रीयुत पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने पहले पहल विस्तृत आलोचना का रास्ता निकाला।"
उपन्यासकार
Ä "आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया है वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं।"
बाबू देवकीनंदन खत्री के बारे में
Ä "पहले मौलिक उपन्यास लेखक जिनके उपन्यासों की सर्वसाधारण में धूम हुई काशी के बाबू देवकीनन्दन खत्री थे।"
Ä "ये वास्तव में घटना-प्रधान कथानक या क़िस्से हैं जिनमें जीवन के विविध पक्षों के चित्रण का कोई प्रयत्न नहीं, इससे ये साहित्य कोटि में नहीं आते हैं।
Ä "उन्होंने साहित्यिक हिन्दी ना लिखकर हिन्दुस्तानी लिखी जो केवल इसी प्रकार की हल्की रचनाओं में काम दे सकती है।"
पंडित किशोरीलाल गोस्वामी के बारे में
Ä "उपन्यासों का ढेर लगा देने वाले दूसरे मौलिक उपन्यासकार पंडित किशोरीलाल गोस्वामी हैं, जिनकी रचनाएँ साहित्य कोटि में आती है।"
Ä "साहित्य की दृष्टि से उन्हें हिन्दी का पहला उपन्यासकार कहना चाहिए।"
हिन्दी की पहली मौलिक कहानी
Ä "यदि 'इन्दुमती' किसी बंगला कहानी की छाया नहीं है, तो हिन्दी की यही पहली मौलिक कहानी ठहरती है। इसके उपरान्त 'ग्यारह वर्ष का समय', फिर 'दुलाई वाली' का नंबर आता है।"
निबन्ध गद्य की कसौटी
Ä "यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।"
Ä "भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबन्धों में ही सबसे अधिक सन्भव होता है।"
गुलेरी और 'उसने कहा था' के बारे में
Ä आचार्य शुक्ल ने 'उसने कहा था' कहानी को अद्वितीय कहानी माना है।
Ä "इसके पक्के यथार्थवाद के बीच, सुरुचि की चरम मर्यादा के भीतर, भावुकता का चरम उत्कर्ष अत्यन्त निपुणता के साथ सम्पुटित है। घटना इसकी ऐसी है जैसे बराबर हुआ करती है, पर उसमें भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है ౼केवल झाँक रहा है, निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा है।"
Ä "इसकी घटनाएं ही बोल रही है, पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।"
Ä "यह बेधड़क कहा जा सकता है कि शैली कि जो विशिष्टता और अर्थगर्भित वक्रता गुलेरी जी में मिलती है और किसी लेखक में नहीं।"
Ä आचार्य शुक्ल ने महावीर प्रसाद द्विवेदी के लेखों को "बातों का संग्रह" कहा है।
Ä "द्विवेदी जी के लेखों को पढ़ने से ऐसा जान पड़ता है कि लेखक बहुत मोटी अक़्ल के पाठकों के लिए लिख रहा है।"
Ä "पंडित गोविंदनारायण मिश्र के गद्य को समास अनुप्रास में गुँथे शब्द-गुच्छों का एक अटाला समझिए।"
Ä "उनके (पंडित जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी के) अधिकांश लेख भाषण मात्र हैं, स्थायी विषयों पर लिखे हुए निबन्ध नहीं।"
Ä "इन पुस्तकों (महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचनात्मक पुस्तकों) को एक मुहल्ले में फैली बातों से दूसरे मुहल्ले वालों को कुछ परिचित कराने के प्रयत्न के रूप में समझना चाहिए, स्वतंत्र समालोचना के रूप में नहीं।"
Ä "यद्यपि द्विवेदी जी ने हिन्दी के बड़े-बड़े कवियों को लेकर गम्भीर साहित्य समीक्षा का स्थायी साहित्य नहीं प्रस्तुत किया, पर नई निकली पुस्तकों की भाषा आदि की खरी आलोचना करके हिन्दी साहित्य का बड़ा भारी उपकार किया। यदि द्विवेदी जी न उठ खड़े होते तो जैसी अव्यवस्थित व्याकरण विरुद्ध और उटपटांग भाषा चारों ओर दिखाई पड़ती थी, उसकी परम्परा जल्दी ना रुकती। उसके प्रभाव से लेखक सावधान हो गए और जिनमें भाषा की समझ और योग्यता थी उन्होंने अपना सुधार किया।"
Ä आचार्य शुक्ल ने 'मिश्रबन्धु विनोद' को बड़ा 'भारी इतिवृत्त संग्रह' कहा है।
प्रसाद और प्रेमी के बारे में
Ä "प्रसाद जी ने अपना क्षेत्र प्राचीन हिन्दू काल के भीतर चुना और प्रेमी जी ने मुस्लिम काल के भीतर। प्रसाद के नाटकों में स्कन्दगुप्त श्रेष्ठ है और प्रेमी के नाटकों में रक्षाबन्धन।"
Ä "केवल प्रो. नगेंद्र की 'सुमित्रानन्दन पन्त' पुस्तक ही ठिकाने की मिली।"
अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध के बारे में
Ä "काव्य अधिकतर भावव्यंजनात्मक और वर्णनात्मक है।"
Ä "गुप्त जी (मैथिलीशरण गुप्त) वास्तव में सामंजस्यवादी कवि है; प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में झूमाने वाले कवि नहीं हैं। सब प्रकार की उच्चता से प्रभावित होने वाला हृदय उन्हें प्राप्त है। प्राचीन के प्रति पूज्य भाव और नवीन के प्रति उत्साह दोनों इनमें है।"
Ä "उनका (पंडित सत्यनारायण कविरत्न का) जीवन क्या था; जीवन की विषमता का एक छाँटा हुआ दृष्टान्त था।"
Ä "उसका (छायावाद का) प्रधान लक्ष्य काव्य-शैली की ओर था, वस्तु विधान की ओर नहीं। अर्थभूमि या वस्तुभूमि का तो उसके भीतर बहुत संकोच हो गया।"
Ä "हिन्दी कविता की नई धारा का प्रवर्तक इन्हीं को ౼विशेषतः श्री मैथिलीशरण गुप्त और श्री मुकुटधर पांडेय को समझना चाहिए।"
Ä "असीम और अज्ञात प्रियतम के प्रति अत्यन्त चित्रमय भाषा में अनेक प्रकार के प्रेमोद्गारों तक ही काव्य की गतिविधि प्रायः बन्ध गई।"
Ä "छायावाद शब्द का प्रयोग रहस्यवाद तक ही न रहकर काव्य-शैली के सन्बन्ध में भी प्रतीकवाद (सिंबालिज्म) के अर्थ में होने लगा।"
Ä "छायावाद को चित्रभाषा या अभिव्यंजन-पद्धति कहा है।''
Ä "छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए। एक तो रहस्यवाद के अर्थ में, जहाँ उसका सम्बन्ध काव्य वस्तु से होता है अर्थात जहाँ कवि उस अनन्त और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यन्त चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य-शैली या पद्धति विशेष की व्यापक अर्थ में हैं।"
Ä "छायावाद का सामान्यतः अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाली छाया के रूप में अप्रस्तुत का कथन।"
Ä "छायावाद का केवल पहला अर्थात मूल अर्थ लिखकर तो हिन्दी काव्य-क्षेत्र में चलने वाली सुश्री महादेवी वर्मा ही हैं।"
Ä "पन्त, प्रसाद, निराला इत्यादि और सब कवि प्रतीक-पद्धति या चित्रभाषा शैली की दृष्टि से ही छायावादी कहलाए।"
Ä "अन्योक्ति-पद्धति का अवलम्बन भी छायावाद का एक विशेष लक्षण हुआ।"
Ä "छायावाद का चलन द्विवेदी काल की रूखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।"
Ä "लाक्षणिक और व्यंजनात्मक पद्धति का प्रगल्भ और प्रचुर विकास छायावाद की काव्य-शैली की असली विशेषता है।"
Ä "छायावाद की प्रवृत्ति अधिकतर प्रेमगीतात्मक है।"
Ä शुक्ल जी जयशंकर प्रसाद की कृति 'आंसू' को 'श्रृंगारी विप्रलम्भ' कहा है।
Ä "यद्यपि यह छोटा है, पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है।" (नरोत्तमदास की कृति सुदामा चरित के लबारे में)
सूरदास के बारे में
Ä "वात्सल्य के क्षेत्र में जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बन्द आँखों से किया, इतना किसी और कवि ने नहीं। इन क्षेत्रों का तो वे कोना-कोना झाँक आए।"
घनानन्द
Ä आचार्य शुक्ल में घनानन्द को 'साक्षात रस मूर्ति' कहा है।
Ä "प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और वीर पथिक तथा ज़बांदानी का दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ।"
Ä "भाषा के लक्षक एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है, इसकी पूरी परख इन्हीं को थी।"
देव
Ä "रीतिकाल के कवियों में यह बड़े ही प्रतिभा सम्पन्न कवि थे।"
बोधा
Ä आचार्य शुक्ल के अनुसार बोधा एक रसिक कवि थे।
रीति काल का आरम्भ और चिन्तामणि
Ä हिन्दी रीति ग्रंथों की अखंड परम्परा एवं रीति काल का आरम्भ आचार्य शुक्ल चिन्तामणि से मानते हैं।
Ä शुक्ल ने प्रथम आचार्य चिन्तामणि को माना है।
केशवदास
Ä केशव को 'कठिन काव्य का प्रेत' शुक्ल ने उनकी क्लिष्टता के कारण कहा है।
Ä "आलोचना का कार्य है, किसी साहित्यिक रचना की अच्छी तरह परीक्षा करके उसके रूप, गुण और अर्थव्यवस्था का निर्धारण करना।"
Ä "हिन्दी के पुराने कवियों को समालोचना के लिए सामने लाकर मिश्र बन्धुओं ने बेशक बड़ा ज़रूरी काम किया, उनकी बातें समालोचना कही जा सकती है या नहीं, यह दूसरी बात है।"
Ä "आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के गौरव थे। समीक्षा क्षेत्र में उनका कोई प्रतिद्वन्द्वी न उनके जीवनकाल में था, न अब कोई उनके समकक्ष आलोचक है। आचार्य शब्द ऐसे ही कर्त्ता साहित्यकारों के योग्य हैं।" (आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी)
Ä भारतीय काव्यालोचन शास्त्र का इतना गम्भीर और स्वतंत्र विचारक हिन्दी में तो दूसरा हुआ ही नहीं, अन्यान्य भारतीय भाषाओं में भी हुआ है या नहीं, ठीक नहीं कह सकते, शायद नहीं हुआ।" (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी)
Ä आज तक की हिन्दी समीक्षा में शुक्ल जी आधार स्तम्भ है। (डॉक्टर भगवतस्वरूप मिश्र)
Ä 'छायावाद' को 'श्रृंगारी कविता' आचार्य शुक्ल ने कहा है।
Ä आचार्य शुक्ल "रस को हृदय की मुक्तावस्था" मानते हैं।
Ä "जिस प्रकार आत्मा की मुक्त अवस्था ज्ञान दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्त अवस्था रस दशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती है, उसे कविता कहते हैं।" (कविता क्या है)
Ä शुक्ल ने काव्य को कर्मयोग एवं ज्ञानयोग के समकक्ष रखते हुए 'भावयोग' कहा, जो मनुष्य के हृदय को मुक्तावस्था में पहुँचाता है।
Ä 'शुक्ल जी भारतीय पुनरूत्थान युग की उन परिस्थितयों की उपज थे, जिन्होंने राजनीति में महात्मा गांधी, कविता में रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जयशंकर प्रसाद आदि को उत्पन्न किया।' ౼नामवर सिंह
Ä “कविता का उद्देश्य हृदय को लोक-सामान्य की भावभूमि पर पहुंचा देना है।”
Ä ‘प्रत्यय बोध, अनुभूति और वेगयुक्त प्रवृत्ति इन तीनों के गूढ़ संश्लेषण का नाम भाव है।’
Ä भ्रमरगीत का महत्व एक बात से और बढ़ गया है। भक्तशिरोमणि सूर ने इसमें सगुणोपासना का निरूपण बड़े ही मार्मिक ढंग से౼ हृदय की अनुभूति के आधार पर तर्क पद्धति पर नहीं౼ किया है।
Ä 'भक्ति के लिए ब्रह्म का सगुण होना अनिवार्य हैं।'
Ä "तुलसीदास उत्तरी भारत की समग्र जनता के हृदय मंदिर में पूर्ण प्रेम प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे हैं।"
Ä ''इनका हृदय कवि का, मस्तिष्क आलोचक का और जीवन अध्यापक का था।" (आचार्य शुक्ल के लिए)
Ä "हिन्दी समीक्षा को शास्त्रीय और वैज्ञानिक भूमि पर प्रतिष्ठित करने में शुक्ल जी ने युग प्रवर्तक का कार्य किया है। उनका यह कार्य हिन्दी के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा।" (नन्ददुलारे वाजपेयी)
Ä 'रस मीमांसा' में आचार्य शुक्ल ने स्पष्ट लिखा है, "अध्यात्म शब्द की मेरी समझ में काव्य या कला के क्षेत्र में कहीं कोई ज़रूरत नहीं है।" इसी प्रकार जब वे धार्मिक अन्धविश्वासों का खण्डन करते हैं, तो उनका लहजा कबीर की तरह आक्रामक दिखाई देता है, "ईश्वर साकार है कि निराकार, लम्बी दाढ़ी वाला है कि चार हाथ वाला, अरबी बोलता है कि संस्कृत, मूर्ति पूजने वालों से दोस्ती रखता है कि आसमान की ओर हाथ उठाने वालों से, इन बातों पर विवाद करने वाले अब केवल उपहास के पात्र होंगे। इसी प्रकार सृष्टि के जिन रहस्यों को विज्ञान खोल चुका है, उनके सम्बन्ध में जो पौराणिक कथाएँ और कल्पनाएँ (छः दिनों में सृष्टि की उत्पत्ति, आदम-हौवा का जोड़ा, चौरासी लाख योनि, आदि) हैं, वे अब काम नहीं दे सकतीं।" वस्तुतः शुक्ल जी ने विकासवाद के सिद्धान्त के तहत साहित्य को व्यक्ति के सामाजिक जीवन से अविछिन्न बताते हुए उसके समाजोन्मुख रूप पर बल दिया। अपनी इसी भूमिका में उन्होंने लिखा, "विकास परम सत्य है, बड़े महत्व का सिद्धान्त है। सामाजिक उन्नति के लिए हमारे प्रयत्न इसलिए रचित हैं कि हम समष्टि के अंग हैं, अंग भी ऐसे कि चेतन हो गए हैं। अतः समष्टि में उद्देश्य-विधान का अभाव नहीं हो सकता, क्योंकि हम उसके एक अंग होकर अपने-आपमें उसका अनुभव करते हैं।"
Ä 'रस मीमांसा' में शुक्ल जी ने लिखा, "दीन और असहाय जनता को निरन्तर पीड़ा पहुँचाते चले जाने वाले क्रूर आततायियों को उपदेश देने, उनसे दया की भिक्षा माँगने और प्रेम जताने तथा उनकी सेवा-सुश्रूषा करने में ही कर्तव्य की सीमा नहीं मानी जा सकती... मनुष्य के शरीर में जैसे दक्षिण और वाम दो पक्ष हैं, वैसे ही उसके हृदय के भी कोमल और कठोर, मधुर और तीक्ष्ण, दो पक्ष हैं और बराबर रहेंगे। काव्य-कला की पूरी रमणीयता इन दोनों पक्षों के समन्वय के बीच मंगल या सौंदर्य के विकास में दिखाई पड़ती है।"
Ä "ऐसी तुच्छ वृत्तिवालों का अपवित्र हृदय कविता के निवास के योग्य नहीं। कविता देवी के मंदिर ऊँचे, खुले, विस्तृत और पुनीत हृदय हैं। सच्चे कवि राजाओं की सवारी, ऐश्वर्य की सामग्री में ही सौंदर्य नहीं ढूँढ़ा करते, वे फूस के झोपड़ों, धूल-मिट्टी में सने किसानों, बच्चों के मुँह में चारा डालते पक्षियों, दौड़ते हुए कुत्तों और चोरी करती हुई बिल्लियों में कभी-कभी ऐसे सौंदर्य का दर्शन करते हैं, जिसकी छाया महलों और दरबारों तक नहीं पहुँच सकती।"
Ä "मनुष्य लोकबद्ध प्राणी है। उसकी अपनी सत्ता का ज्ञान तक लोकबद्ध है। लोक के भीतर ही कविता क्या किसी कला का प्रयोजन और विकास होता है।"
Ä "कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ संबंधों के संकुचित मंडल से ऊपर उठाकर लोक-सामान्य की भावभूमि पर ले जाती है। इस भूमि पर पहुँचे हुए मनुष्य को कुछ काल के लिए अपना पता ही नहीं रहता। वह अपनी सत्ता को लोकसत्ता में लीन किए रहता है।"
Ä "रीतिग्रंथों की बदौलत रसदृष्टि परिमित हो जाने से उसके संयोजक विषयों में से कुछ तो उद्दीपन में डाल दिए गए और कुछ भावक्षेत्र से निकाले जाकर अलंकार के खाते में हाँक दिए गए। ...हमारे यहाँ के कवियों को रीतिग्रंथों ने जैसा चारों ओर से जकड़ा, वैसा और कहीं के कवियों को नहीं। इन ग्रंथों के कारण उनकी दृष्टि संकुचित हो गई, लक्षणों की कवायद पूरी करके वे अपने कर्तव्य की समाप्ति मानने लगे। वे इस बात को भूल चले की किसी वर्णन का उद्देश्य श्रोता के हृदय पर प्रभाव डालना है।"
Ä "केशव को कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता भी न थी, जो एक कवि में होनी चाहिए। ...प्रबंधकाव्य रचना के योग्य न तो केशव में अनुभूति ही थी, न शक्ति। ...वे वर्णन वर्णन के लिए करते थे, न कि प्रसंग या अवसर की अपेक्षा से। ...केशव की रचना को सबसे अधिक विकृत और अरुचिकर करने वाली वस्तु है आलंकारिक चमत्कार की प्रवृत्ति, जिसके कारण न तो भावों की प्रकृत व्यंजना के लिए जगह बचती है, न सच्चे हृदयग्राही वस्तुवर्णन के लिए।"
Ä "छायावाद नाम चल पड़ने का परिणाम यह हुआ कि बहुत से कवि रहस्यात्मकता, अभिव्यंजना के लाक्षणिक वैचित्र, वस्तुविन्यास की विश्रृंखलता, चित्रमयी भाषा और मधुमयी कल्पना को ही साध्य मानकर चले। शैली की इन विशेषताओं की दूरारूढ़ साधना में ही लीन हो जाने के कारण अर्थभूमि के विस्तार की ओर उनकी दृष्टि न रही। विभावपक्ष या तो शून्य अथवा अनिर्दिष्ट रह गया। इस प्रकार प्रसरोन्मुख काव्यक्षेत्र बहुत कुछ संकुचित हो गया।"
Ä "पन्तजी की रहस्यभावना स्वाभाविक है, साम्प्रदायिक (डागमेटिक) नहीं। ऐसी रहस्यभावना इस रहस्यमय जगत् के नाना रुपों को देख प्रत्येक सहृदय व्यक्ति के मन में कभी-कभी उठा करती है। ...'गुंजन' में भी पन्तजी की रहस्यभावना अधिकतर स्वाभाविक पथ पर पाई जाती है।"
Ä "जगत अनेक रूपात्मक है और हमारा हृदय अनेक भावात्मक है।"
Ä "अध्यात्म शब्द की मेरी समझ में काव्य या कला के क्षेत्र में कोई ज़रूरत नहीं है। ...इस आनन्द शब्द ने काव्य के महत्व को बहुत कुछ कम कर दिया है... उसे नाच-तमाशे की तरह बना दिया है।"
Ä "करुण रस प्रधान नाटक के दर्शकों के आँसुओं के सम्बन्ध में यह कहना कि आनन्द में भी तो आँसू आते हैं, केवल बात टालना है। दर्शक वास्तव में दुख का ही अनुभव करते हैं। हृदय की मुक्त दशा में होने के कारण वह दुख भी रसात्मक होता है।"
Ä "जैसे वीरकर्म से पृथक वीरत्व कोई पदार्थ नहीं, वैसे ही सुंदर वस्तु से अलग सौंदर्य कोई पदार्थ नहीं।"
Ä "सौन्दर्य न तो मात्र चेतना में होता है और न ही सिर्फ़ वस्तु में, दोनों के सम्बन्ध से ही सौन्दर्यानुभूति होती है।"
Ä 'विफलता में भी एक निराला विषण्ण सौन्दर्य होता है।'
Ä रामविलास शर्मा ने सही लिखा है कि "प्राचीन साहित्यशास्त्री स्थायी भावों को रसरूप में प्रकट करके साहित्यिक प्रक्रिया का अंत निष्क्रियता में कर देते थे। शुक्ल जी ने भाव की मौलिक व्याख्या करके निष्क्रिय रस-निष्पत्ति की जड़ काट दी है।"
Ä रामस्वरूप चतुर्वेदी ने शुक्लजी के बारे में लिखा है, "आचार्य का विषय प्रतिपादन जैसा गुरु गम्भीर है उसके बीच उनका सूक्ष्म व्यंग्य और तीव्र तथा पैना हो गया है, घनी-बड़ी मूँछों के बीच हल्की मुस्कान की तरह।"
Ä "यह एक कवि ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफ़ी है।" (तुलसीदास के लिए)
Ä "इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को सम्भाला जो नाथ पंथियों के प्रभाव से प्रेम भाव और भक्ति रस से शुन्य, शुष्क पड़ता जा रहा था।"
Ä आचार्य शुक्ल के अनुसार सिद्धों की उद्धृत रचनाओं की भाषा प्लीज भाषा मिश्रित अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी की काव्य भाषा है।
आचार्य शुक्ल और रामविलास शर्मा
Ä 'सूरसागर' में जगह-जगह दृष्टिकूट वाले पद मिलते हैं। यह भी विद्यापति का अनुकरण है।
Ä शब्द-शक्ति, रस और अलंकार, ये विषय-विभाग काव्य-समीक्षा के लिए, इतने उपयोगी हैं कि इनको अन्तर्भूत करके संसार की नई-पुरानी सब प्रकार की कविताओं की बहुत ही सूक्ष्म, मार्मिक और स्वच्छ आलोचना हो सकती है। (काव्य में अभिव्यंजनावाद, चिन्तामणि, भाग-2)
Ä हमें अपनी दृष्टि से दूसरे देशों के साहित्य को देखना होगा, दूसरे देशों की दृष्टि से अपने साहित्य को नहीं। (चिन्तामणि, भाग-2)
Ä हृदय की अनुभूति ही साहित्य में रस और भाव कहलाती है। (चिन्तामणि, भाग-2)
Ä हृदय के प्रभावित होने का नाम ही रसानुभूति है। (चिन्तामणि, भाग-2)
Ä जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञाल-दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रस-दशा कहलाती है। (रस मीमांसा)
Ä यह सब आलोचना अधिकतर बहिरंग बातों तक ही रही। भाषा के गुण-दोष, रस, अलंकार आदि की समीचीनता इन्हीं सब परम्परागत विषयों तक पहुँचीं। स्थायी साहित्य में परिगणित होने वाली समालोचना जिसमें किसी कवि की अंतर्वृत्ति का सूक्ष्म व्यवच्छेदन होता है, उसकी मानसिक प्रवृत्ति की विशेषताएँ दिखार्इ जाती हैं, बहुत कम दिखार्इ पड़ी। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
Ä भाषा के लक्ष्य एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है इसकी पूरी परख घनानन्द को ही थी।
Ä इनके दोहे क्या हैं, रस के छोटे-छोटे छींटे हैं। (बिहारी के बारे में आचार्य शुक्ल)
Ä आचार्य शुक्ल ने छायावाद को 'अभिव्यंजनावाद का विलायती संस्करण माना है।
Ä यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता।
Ä हिन्दी साहित्य में कविता के क्षेत्र में जो स्थान 'निराला' का रहा और उपन्यास के क्षेत्र में जो स्थान 'प्रेमचन्द' का रहा, आलोचना के क्षेत्र में वही स्थान 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' का है। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, डॉ. रामविलास शर्मा)
Ä भाव उनके लिए मन की वेगयुक्त अवस्था विशेष है, प्रत्यक्ष बोध अनुभूति और वेगयुक्त प्रवृत्ति इन तीनों के गुण संश्लेष का नाम भाव है। मुक्त हृदय मनुष्य अपनी सत्ता को लोक सत्ता में लीन किए रहता है। लोक हृदय के लीन होने की दशा का नाम रसदशा है। (रस मीमांसा)
Ä काव्य के सम्बन्ध में भाव और कल्पना౼ ये दो शब्द बराबर सुनते-सुनते कभी-कभी यह जिज्ञासा होती है कि ये दोनों समकक्ष हैं या इनमें कोर्इ प्रधान है। यह प्रश्न या इसका उत्तर ज़रा टेढ़ा है, क्योंकि रस-काल के भीतर इनका युगपद अन्योन्याश्रित व्यापार होता है। (चिन्तामणि, भाग-2)
Ä इसके लिए सूक्ष्म विश्लेषण-बुद्धि और मर्म-ग्राहिणी प्रज्ञा अपेक्षित है। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
जायसी का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य में एक अद्वितीय वस्तु है। (जायसी ग्रंथावली की भूमिका)
Ä प्रबन्ध क्षेत्र में तुलसीदास का जो सर्वोच्च आसन है, उसका कारण यह है कि वीरता, प्रेम आदि जीवन का कोई एक ही पक्ष न लेकर तुलसी ने संपूर्ण जीवन को लिया है| जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा में परिमित है, पर प्रेम वेदना उनकी अत्यन्त गूढ़ है। (जायसी ग्रंथावली की भूमिका)
Ä यह शील और शील का, स्नेह और स्नेह का तथा नीति और नीति का मिलन है। इस मिलन के संघटित उत्कर्ष की दिव्य प्रभा देखने योग्य, यह झाँकी अपूर्व है। (गोस्वामी तुलसीदास)
Ä शुक्ल जी ने तुलसी और जायसी के समकक्ष ही सूरदास को माना है। यदि हम मनुष्य जीवन के संपूर्ण क्षेत्रा को लेते हैं तो सूरदास की दृष्टि परिमित दिखार्इ पड़ती है, पर यदि उनके चुने हुए क्षेत्रों (श्रृंगार तथा वात्सल्य) को लेते हैं, तो उनके भीतर उनकी पहुँच का विस्तार बहुत अधिक पाते हैं। उन क्षेत्रों में इतना अंतर्दृष्टि विस्तार और किसी कवि का नहीं है। (भ्रमरगीत-सार की भूमिका)
Ä किसी साहित्य में केवल शहर की भद्दी नक़ल से अपनी उन्नति या प्रगति नहीं की जा सकती। बाहर से सामग्री आए ख़ूब आए, परन्तु वह कूड़ा-करकट के रूप में न इकटठी हो जाए। उसकी कड़ी परीक्षा हो, उस पर व्यापक दृष्टि से विवेचन किया जाय, जिससे हमारे साहित्य के स्वतंत्र और व्यापक विकास में सहायता पहुँचे। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
Ä हिन्दुओं के स्वातंत्र्य के साथ वीर गाथाओं की परम्परा भी काल के अँधेरे में जा छिपी है| अंतः पर गहरी उदासी छा गयी थी ...... हृदय की अन्य वृत्तियों (उत्साह आदि) के रंजनकारी रूप भी यदि वे चाहते तो कृष्ण में ही मिल जाते, पर उनकी ओर वे न बढे| भगवान के यह व्यक्त स्वरूप यद्यपि एक देशीय थे ౼ केवल प्रेम था ౼ पर उस समय नैराश्य के कारण जनता के हृदय में जीवन की ओर से एक प्रकार की जो अरुची सी उत्पन्न हो रही थी उसे हटाने में वह उपयोगी हुआ।
Ä आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने ‘गीत गोविंद’ के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी। (विद्यापति के सम्बन्ध में)
Ä प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की शिक्षित जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरुप में भी परिवर्तन होता चला जाता है| आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ कहलाता है। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
Ä इसमें कोई संदेह नहीं कि कबीर को 'राम नाम' रामानन्द जी से ही प्राप्त हुआ। पर आगे चलकर कबीर के 'राम' रामानन्द के 'राम' से भिन्न हो गए।
Ä ने जिस प्रकार हिन्दी गद्य की भाषा का परिष्कार किया, उसी प्रकार काव्य की ब्रज भाषा का भी।
Ä काव्य की पूर्ण अनुभूति के लिए कल्पना का व्यापार कवि और श्रोता दोनों के अनिवार्य है।
Ä 'सूरसागर' में जगह-जगह दृष्टिकूट वाले पद मिलते हैं। यह भी विद्यापति का अनुकरण है।
Ä हृदय के प्रभावित होने का नाम ही रसानुभूति है। (चिन्तामणि, भाग-2)
Ä जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान-दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रस-दशा कहलाती है। (रस मीमांसा)
Ä यह सब आलोचना अधिकतर बहिरंग बातों तक ही रही। भाषा के गुण-दोष, रस, अलंकार आदि की समीचीनता इन्हीं सब परम्परागत विषयों तक पहुँचीं। स्थायी साहित्य में परिगणित होने वाली समालोचना जिसमें किसी कवि की अंतर्वृत्ति का सूक्ष्म व्यवच्छेदन होता है, उसकी मानसिक प्रवृत्ति की विशेषताएँ दिखार्इ जाती हैं, बहुत कम दिखार्इ पड़ी। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
Ä भाषा के लक्ष्य एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है इसकी पूरी परख घनानन्द को ही थी।
Ä इनके दोहे क्या हैं, रस के छोटे-छोटे छींटे हैं। (बिहारी के बारे में आचार्य शुक्ल)
Ä आचार्य शुक्ल ने छायावाद को 'अभिव्यंजनावाद का विलायती संस्करण माना है।
Ä यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता।
Ä हिन्दी साहित्य में कविता के क्षेत्र में जो स्थान 'निराला' का रहा और उपन्यास के क्षेत्र में जो स्थान 'प्रेमचंद' का रहा, आलोचना के क्षेत्रा में वही स्थान 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' का है। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, डॉ. रामविलास शर्मा)
Ä भाव उनके लिए मन की वेगयुक्त अवस्था विशेष है, प्रत्यक्ष बोध् अनुभूति और वेगयुक्त प्रवृत्ति इन तीनों के गुण संश्लेष का नाम भाव है। मुक्त âदय मनुष्य अपनी सत्ता को लोक सत्ता में लीन किए रहता है। लोक हृदय के लीन होने की दशा का नाम रस दशा है। (रस मीमांसा)
Ä काव्य के सम्बन्ध में भाव और कल्पना౼ ये दो शब्द बराबर सुनते-सुनते कभी-कभी यह जिज्ञासा होती है कि ये दोनों समकक्ष हैं या इनमें कोर्इ प्रधान है। यह प्रश्न या इसका उत्तर ज़रा टेढ़ा है, क्योंकि रस-काल के भीतर इनका युगपद अन्योन्याश्रित व्यापार होता है। (चितांमणि, भाग-2)
इसके लिए सूक्ष्म विश्लेषण-बुद्धि और मर्म-ग्राहिणी प्रज्ञा अपेक्षित है। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
Ä जायसी का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य में एक अद्वितीय वस्तु है। (जायसी ग्रंथावली)
Ä प्रबन्ध क्षेत्र में तुलसीदास का जो सर्वोच्च आसन है, उसका कारण यह है कि वीरता, प्रेम आदि जीवन का कोई एक ही पक्ष न लेकर तुलसी ने संपूर्ण जीवन को लिया है| जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा में परिमित है, पर प्रेम वंदना उनकी अत्यन्त गूढ़ है। (जायसी ग्रंथावली’ की भूमिका)
Ä यह शील और शील का, स्नेह और स्नेह का तथा नीति और नीति का मिलन है। इस मिलन के संघटित उत्कर्ष की दिव्य प्रभा देखने योग्य, यह झाँकी अपूर्व है। (गोस्वामी तुलसीदास)
Ä शुक्ल जी ने तुलसी और जायसी के समकक्ष ही सूरदास को माना है। यदि हम मनुष्य जीवन के संपूर्ण क्षेत्र को लेते हैं तो सूरदास की दृष्टि परिमित दिखार्इ पड़ती है, पर यदि उनके चुने हुए क्षेत्रों (श्रृंगार तथा वात्सल्य) को लेते हैं, तो उनके भीतर उनकी पहुँच का विस्तार बहुत अधिक पाते हैं। उन क्षेत्रों में इतना अंतर्दृष्टि विस्तार और किसी कवि का नहीं है। (भ्रमरगीत सार की भूमिका)
Ä किसी साहित्य में केवल शहर की भददी नक़ल से अपनी उन्नति या प्रगति नहीं की जा सकती। बाहर से सामग्री आए ख़ूब आए, परन्तु वह कूड़ा-करकट के रूप में न इकटठी हो जाए। उसकी कड़ी परीक्षा हो, उस पर व्यापक दृष्टि से विवेचन किया जाय, जिससे हमारे साहित्य के स्वतंत्र और व्यापक विकास में सहायता पहुँचे। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
Ä हिन्दुओं के स्वातंत्र्य के साथ वीर गाथाओं की परम्परा भी काल के अँधेरे में जा छिपी है| अंतः पर गहरी उदासी छा गयी थी ...... हृदय की अन्य वृत्तियों (उत्साह आदि) के रंजनकारी रूप भी यदि वे चाहते तो कृष्ण में ही मिल जाते, पर उनकी ओर वे न बढे| भगवान के यह व्यक्त स्वरुप यद्यपि एकदेशीये थे ౼ केवल प्रेम था ౼ पर उस समय नैराश्य के कारण जनता के हृदय में जीवन की ओर से एक प्रकार की जो अरुची सी उत्पन्न हो रही थी उसे हटाने में वह उपयोगी हुआ।
Ä आध्यात्मिक रंग के चश्में आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने ‘गीत गोविंद’ के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी। (विद्यापति के सम्बन्ध में)
Ä प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की शिक्षित जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरुप में भी परिवर्तन होता चला जाता है| आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ कहलाता है। (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
Ä उनकी (अध्यापक पूर्णसिंह की) लाक्षणिकता हिन्दी गद्य साहित्य में नयी चीज थी।......भाषा और भाव की एक नयी विभूति उन्होंने सामने रखी।’ वक्तृत्वकला का ओज एवं प्रवाह तथा चित्रात्मकता व मूर्तिमत्ता, इनकी शैली के दो विशिष्ट गुण हैं। ----- संक्षेप में अतिअल्पमात्रा में निबंधों का लेखन करते हुए भी अध्यापक पूर्णसिंह ने हिन्दी निबन्धकला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
Ä रामचन्द्र शुक्ल से सर्वत्र सहमत होना सम्भव नहीं। ..... फिर भी शुक्ल जी प्रभावित करते हैं। नया लेखक उनसे डरता है, पुराना घबराता है, पंडित सिर हिलाता है। वे पुराने की ग़ुलामी पसन्द नहीं करते और नवीन की ग़ुलामी तो उनको एकदम असह्य है। शुक्ल जी इसी बात में बड़े हैं और इसी जगह उनकी कमज़ोरी है। (आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी)
Ä भारतीय काव्यलोचनशास्त्र का इतना गम्भीर और स्वतंत्र विचारक हिन्दी में तो दूसरा हुआ ही नहीं, अन्यान्य भारतीय भाषाओं में भी हुआ है या नहीं, ठीक से नहीं कह सकते। शायद नहीं हुआ।
(आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य की भूमिका)
Ä ‘‘डिंगल कवियों की वीर-गाथाएँ निर्गुण सन्तों की वाणियाँ, कृष्ण भक्त या रागानुगा भक्तिमार्ग के साधकों के पद, राम-भक्त या वैधी भक्तिमार्ग के उपासकों की कविताएँ, सूफ़ी साधना से पुष्ट मुसलमान कवियों के तथा ऐतिहासिक हिन्दू कवियों के रोमांस और रीति-काव्य। ౼ये छहों धाराएँ अपभ्रंश कविता का स्वाभाविक विकास है।’’ ౼रामचन्द्र शुक्ल
Ä ‘‘कालदर्शी भक्त कवि जनता के हृदय को सम्भालने और लीन रखने के लिए दबी हुई भक्ति को जगाने लगे। क्रमशः भक्ति का प्रवाह ऐसा विकसित और प्रबल होता गया कि उसकी लपेट में केवल हिन्दू जनता ही नहीं आई, देश में बसने वाले सहृदय मुसलमानों में से भी न जाने कितने आ गए।’’
Ä मंगल का विधान करने वाले दो भाव हैं।
Ä ‘अष्टछाप में सूरदास के पीछे इन्हीं का नाम लेना पड़ता है। इनकी रचना भी बड़ी सरस और मधुर है। इनके सम्बन्ध में यह कहावत प्रसिद्ध है कि और कवि गढ़िया नन्ददास जड़िया।’’
Ä ‘हिंदू हृदय और मुसलमान हृदय आमने-सामने करके अजनबीपन मिटानेवालों में इन्हीं का नाम लेना पड़ेगा।’ (कबीरदास के बारे में)
निम्नलिखित में से कोम-सी उक्ति निबन्धकार रामचन्द्र शुक्ल की नहीं है ?
(A) हृदय प्रसार का स्मारक स्तम्भ काव्य है
(B) काव्य एक अखण्ड तत्त्व या शक्ति है, जिसकी गति अमर है।
(C) श्रद्धा और प्रेम के योग का भक्ति है।
(D) धर्म रसात्मक अनुभूति का नाम भक्ति है।
(ये चारों उक्तियाँ आचार्य शुक्ल जी की ही हैं।)
🌷🌼 *आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन*-
👉👉 *श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है*।
👉 *श्रद्धा का व्यापार स्थल विस्तृत है, प्रेम का एंकात, प्रेम में घनत्व अधिक है श्रद्धा में विस्तार*।
👉 *सामाजिक जीवन की स्थिति और पुष्टि के लिए करूणा का प्रसार आवश्यक है*।
👉 *बैर क्रोध का आचार का मुरब्बा है*।
👉 *जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है*। हृदय की इसी मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती है, उसे कविता कहते है।
👉 *यदि गद्य लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है*। भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबंधों में ही सबसे अधिक संभव है।
👉 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी निबंध यात्रा को ’ *बुद्धि की यात्रा हृदय के साथ*’ कहा है।
👉 आचार्य शुक्ल के चिन्तामणि भाग-1 व भाग-2 के निबंध पहले किस नाम से प्रकाशित हुए थे ❓ - *विचार वीथी* (1930 ई.)
👉 यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण।
**आचार्य रामचंद्र शुक्ल*
👉 आचार्य शुक्ल ने एडिसन के ’एस्से ऑन इमेजिनेशन’ का *कल्पना का आनंद* नाम से अनुवाद करवाया।
👉 ’’ *इन पुस्तकों को एक मुहल्ले में फैली बातों से दूसरे मुहल्ले वालों को परिचित कराने के रूप में समझना चाहिए, स्वतंत्र समालोचना के रूप में नहीं*’’’ महावीर प्रसाद द्विवेदी के आलोचनात्मक कृतियों पर टिप्पणी किसने की- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
⇒ काव्य में ’रहस्य’ कोई ’वाद’ है न ऐसा, जिसे लेकर निराला कोई पंथ ही खङा करे।
यो ही जब रूप मिले बाहर के भीतर की भावना से, जानो तब कविता का सत्य पल।
👉 छायावाद का सामान्यतः अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाले छाया के रूप में अप्रस्तुत का कथन।
👉 आचार्य शुक्ल ने छायावाद का प्रतिनिधि कवि किसे माना है- पंत को।
👉 नाद सौन्दर्य से कविता की आयु बढ़ती है।
👉अयोध्या काण्ड में चित्रकूट की सभा-एक आध्यात्मिक घटना है।
👉 सूर द्वारा रचित कृष्ण और गोपियों को प्रेम जीवनोत्सव है।
👉 ’पाखण्ड प्रतिषेध’ शीर्षक से किस आलोचक ने छायावाद-रहस्यवाद के विरोध में एक कविता लिखी ? – आचार्य शुक्ल।
👉 न्यूमैन के ’लिटरेचर’ का ’साहित्य शीर्षक’ से अनुवाद किसने किया – आचार्य शुक्ल।
🌼 🌷 *आचार्य शुक्ल ने किसको क्या कहा*---
🌷 *रीतिकवियों को* 👉भावुक, सहृदय और निपुण कवि।
🌷 *बिहारी को* – परम उत्कृष्ट।
🌷 *देव को* – प्रगल्भ और प्रतिभा सम्पन।
🌷 *घनानंद को* – साक्षात रसमूर्ति और जबांदानी।
💐 *आचार्य रामचंद्र शुक्ल महत्त्वपूर्ण तथ्य* :----
🌼 *लोक हृदय में लीन होने की दशा रस दशा* है। 👉 *आचार्य शुक्ल*।
🌼 किस आलोचक ने ’ *छायावाद*’ शब्द को दो अर्थों में प्रयोग किया है👉 ’ *रहस्यवाद* के अर्थ में और *पद्धति विशेष* के अर्थ में 👉आचार्य शुक्ल।
🌼 क्रोचे के अभिव्यंजनावाद को *भारतीय वक्रोक्ति का विलायती उत्थान* किसने कहा❓👉 *आचार्य शुक्ल*।
🌼 *आचार्य शुक्ल की प्रथम सैद्धांतिक, आलोचनात्मक पुस्तक* है👉 *काव्य में रहस्यवाद (1929 ई.)*
🌼 *भारतीय समीक्षा और आचार्य शुक्ल की काव्य दृष्टि* किसकी कृति है👉 *डाॅ. नगेन्द्र*।
🌼 ’ *आचार्य शुक्ल विचारकोश*’ के लेखक👉 *अजित कुमार* है।
🌼 ’ *आचार्य शुक्ल का चिंतन जगत*’ कृति किसकी है ❓ 👉 *कृष्णदत्त पालीवाल*।
🌼 डाॅ. रामविलास शर्मा के आदर्श समीक्षक कौन है ❓ 👉 *आचार्य शुक्ल*
🌼 किस आलोचक ने मुक्तक को ’ *चुना हुआ गुलदस्ता*’ और ’प्रबन्ध काव्य’ को *विस्तृत वनस्थली* कहा है👉 *आचार्य शुक्ल*।
🌼 भारतेन्दु की हिन्दी को ’ *हरिशचन्द्र हिन्दी*’ किसने कहा👉 *आचार्य रामचन्द्र शुक्ल*।
🌼 ’ *साहित्य’ 1904 ई.*👉 *आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का प्रथम निबन्ध* जो *1904 ई. में *सरस्वती में प्रकाशित* हुआ।
🌼आचार्य शुक्ल का प्रसिद्ध निबंध ’ *कविता क्या है*’ सर्वप्रथम *1909 ई. में *सरस्वती में* प्रकाशित हुआ।
🌼हिन्दी में भाव या मनोविकार संबंधी निबंध लिखने का सूत्रपात किसने किया👉 *बाल कृष्ण भट्ट*।
💐 *आचार्य रामचंद्र शुक्ल*
🌼 *आचार्य शुक्ल से पूर्व भाव यो मनोविकार संबंधी निबंधकार*-
1👉 *बालकृष्ण भट्ट*- आत्मनिर्भरता, आँसू, प्रीति।
2👉 *प्रतापनारायण मिश्र*- मनोयोग।
3👉 *माधव प्रसाद मिश्र*- धृति और क्षमा।
🌼साहस पूर्ण आनंद का नाम उत्साह है
🌼 श्रद्धा महत्व की आनंदपूर्ण स्वीकृति के साथ पूज्य बुद्धि का संचार है।👉 *आचार्य शुक्ल*।
🌼आशंका अनिश्चात्मक वृत्ति है।👉 *आचार्य शुक्ल*
🌼 सत्यम् शिवम् सन्दरम् की भावना👉 *कविता क्या है*।
🌼 प्रत्येक सुन्दर वस्तु में यह क्षमता होती है कि वह हमें रसमग्न कर देती है।👉 *रसात्मक बोध के विविध स्वरूप*।
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1- भक्ति की निष्पत्ति प्रेम और श्रद्धा के योग से होती है।
2- इसमें कोई संदेह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को संभाला जो नाथपंथियों के प्रभाव से प्रेम भाव और भक्ति रस से शून्य पड़ चुका था।
3- कबीर तथा अन्य निर्गुण पंथी संतो के द्वारा अंतस्साधना में रागात्मिका भक्ति और ज्ञान का योग तो हुआ पर कर्म की दशा वहीं रही जो नाथपंथियों के यहां थी।
4- कबीर ने अपनी झाड़ फटकार के द्वारा हिंदुओं और मुसलमानों का कट्टरपन दूर करने का जो प्रयास किया वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ, हृदय को स्पर्श करने वाला नहीं।
5- कबीर की भाषा बहुत परिष्कृत और परिमार्जित ना होने पर भी उनकी उक्तियों में कहीं-कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार दिखाई देता है, प्रतिभा उनमें प्रखर थी इसमें संदेह नहीं।
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▪️ ''विलक्षण बात यह है कि आधुनिक गद्य साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन नाटक से हुआ।'' उपर्युक्त कथन किस साहित्यकार का है?
रामचन्द्र शुक्ल
▪️ "इस वेदना को लेकर उन्होंने ह्रदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।" ౼ आचार्य रामचंद्र शुक्ल (महादेवी वर्मा के बारे में)
▪️ ''इनकी रहस्यवादी रचनाओं को देख चाहेतो यह कहें कि इनकी मधुवर्षा के मानस प्रचार के लिए रहस्यवाद का परदा मिल गया अथवा यों कहें कि इनकी सारी प्रणयानूभूति ससीम पर से कूदकर असीम पर जा रही।'' (जयशंकर प्रसाद के बार में)
▪️ कबीर की अपेक्षा ख़ुसरो का ध्यान की भाषा की ओर अधिक था।
▪️ जायसी के श्रृंगार में मानसिक पक्ष प्रधान है, शारीरिक गौण हैं।
▪️ 'इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर को राम नाम रामानन्द जी से ही प्राप्त हुआ पर आगे चलकर कबीर के राम रामानन्द से भिन्न हो गए।'
▪️ भारतेन्दु ने जिस प्रकार हिन्दी गद्य की भाषा का परिष्कार किया, उसी प्रकार काव्य की ब्रजभाषा का भी।
▪️ काव्य की पूर्ण अनुभूति के लिए कल्पना का व्यापार कवि और श्रोता दोनों के लिए अनिवार्य है।
▪️ वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।
▪️ काव्यानुभूति की जटिलता चित्तवृत्तियों की संख्या पर निर्भर नहीं, बल्कि संवादी-विसंवादी वृत्तियों के द्वन्द्व पर आधारित है।
▪️ ‘आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान घटना है।’
▪️ करुणा दुखात्मक वर्ग में आनेवाला मनोविकार है।
▪️ नाद सौन्दर्य से कविता की आयु बढ़ती है।
▪️ भक्ति धर्म की रसात्मक अनुभूति है।
▪️ करुणा सेंत का सौदा नहीं है।
▪️ प्रकृति के नाना रूपों के साथ केशव के हृदय का सामंजस्य कुछ भी न था।'
▪️ 'विरुद्धों का सामंजस्य कर्मश्रेत्र का सौन्दर्य है।'
▪️ ‘हिन्दी रीति-ग्रंथों की परम्परा चिन्तामणि त्रिपाठी से चली। अतः रीतिकाल का आरम्भ उन्हीं से मानना चाहिए।’
▪️ हरिश्चन्द्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत चलता, मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया।
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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के रीतिकालीन कवियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण कथन-
"इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी"- चिंतामणि त्रिपाठी के लिए
"भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी"- बेनी के लिए
"इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रुप में नहीं"- भाषा भूषण ग्रंथ (महाराजा जसवंत सिंह) के लिए
"इसका एक-एक दोहा हिंदी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है"- बिहारी सतसई के लिए
"इसमें तो रस के ऐसे छींटे पडते हैं जिनसे हृदयकलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है"- बिहारी सतसई के लिए
"यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है"- बिहारी सतसई के लिए
"जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा"- बिहारी के लिए
"बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है।" "कविता उनकी श्रृँगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुंचती, नीचे ही रह जाती है"- बिहारी के लिए
"भाषा इनकी बड़ी स्वाभाविक, चलती और व्यंजना पूर्ण होती थी"- मंडन के लिए
"इनका सच्चा कवि हृदय था"- मतिराम के लिए
"रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़ और किसी कवि में मतिराम की सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती"- मतिराम के लिए
"उनके प्रति भक्ति और सम्मान की प्रतिष्ठा हिंदू जनता के हृदय में उस समय भी थी और आगे भी बराबर बनी रही या बढ़ती गई"- भूषण के लिए
"भूषण के वीर रस के उद्गार सारी जनता के हृदय की संपत्ति हुए"- भूषण के लिए
"जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी राहेगी"- भूषण के लिए
"शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का वर्णनों को कोई कवियों की झूठी खुशामद नहीं कह सकता"- भूषण के लिए
"वे हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।"- भूषण के लिए
"छंदशास्त्र पर इनका-सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया है"- सुखदेव मिश्र के लिए
" ये आचार्य और कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं"- देव के लिए
"कवित्वशक्ति और मौलिकता देव में खूब थी पर उनके सम्यक स्फूर्ण में उनकी रुचि विशेष प्रायः बाधक हुई है"- देव के लिए
"रीतिकाल के कवियों में ये बड़े ही प्रगल्भ और प्रतिभासंपन्न कवि थे, इसमें संदेह नहीं"- देव के लिए
"श्रीपति ने काव्य के सब अंगों का निरूपण विशद रीति से किया है।"
"इनकी रचना कलापक्ष में संयत और भावपक्ष में रंजनकारिणी है"- भिखारी दास के लिए
"ऐसा सर्वप्रिय कवि इस काल के भीतर बिहारी को छोड दूसरा नहीं हुआ है। इनकी रचना की रमणीयता ही इस सर्वप्रियता का एकमात्र कारण है"- पद्माकर के लिए
"रीतिकाल की सनक इन में इतनी अधिक थी कि इन्हें यमुना लहरी नामक देव स्तुति में भी नवरस और षट् ऋतु सुझाई पड़ी है"- ग्वाल कवि के लिए
"षट् ऋतुओं का वर्णन इन्होंने विस्तृत किया है पर वही श्रृंगारी उद्दीपन के ढंग का"- ग्वाल कवि के लिए4 " ग्वाल कवि ने देशाटन अच्छा किया था और उन्हें भिन्न-भिन्न प्रांतों की बोलियों का अच्छा ज्ञान हो गया था।"
आचार्य शुक्ल के आदिकाल से सम्बन्धित कथन-
"प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्ती का संचित प्रतिबिंब होता है।"
"इन कालों की रचनाओं की विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही उनका नामकरण किया गया है।"
"हिंदी साहित्य का आदिकाल संवत् 1050 से लेकर संवत् 1375 तक अर्थात महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना जा सकता है।"
"जब तक भाषा बोलचाल में थी तब तक वह भाषा या देशभाषा ही कहलाती रही, जब वह भी साहित्य की भाषा हो गई तब उसके लिए अपभ्रंश शब्द का व्यहार होने लगा।"
"नाथपंथ के जोगियों की भाषा सधुक्कड़ी भाषा थी।"
"सिद्धों की उद्धृत रचनाओं की भाषा देश भाषा मिश्रित अपभ्रंश या पुरानी हिंदी की काव्य भाषा है।"
"सिद्धो में सरह सबसे पुराने अर्थात विक्रम संवत 690 के हैं।"
"कबीर आदि संतो को नाथपंथियों से जिस प्रकार साखी और बानी शब्द मिले उसी प्रकार साखी और बानी के लिए बहुत कुछ सामग्री और सधुक्कड़ी भाषा भी।"
"वीरगीत के रुप में हमें सबसे पुरानी पुस्तक बीसलदेवरासो मिलती है।"
"बीसलदेवरासो में काव्य के अर्थ में रसायण शब्द बार-बार आया है। अतः हमारी समझ में इसी रसायण शब्द से होते-होते रासो हो गया है।"
"बीसलदेव रासो में आए "बारह सै बहोत्तरा" का स्पष्ट अर्थ 1212 है।"
"यह घटनात्मक काव्य नहीं है, वर्णनात्मक है।"- बिसलदेव रासो के लिए
"भाषा की परीक्षा करके देखते हैं तो वह साहित्यिक नहीं है, राजस्थानी है।"- बिसलदेव रासो के लिए
"अपभ्रंश के योग से शुद्ध राजस्थानी भाषा का जो साहित्यिक रूप था वह डिंगल कहलाता था।"
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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के रीतिकालीन कवियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण कथन :-
-"इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी"- चिंतामणि त्रिपाठी के लिए
-"भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी"- बेनी के लिए
-"इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रुप में नहीं"- भाषा भूषण ग्रंथ (महाराजा जसवंत सिंह) के लिए
-"इसका एक-एक दोहा हिंदी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है"- बिहारी सतसई के लिए
-"इसमें तो रस के ऐसे छींटे पडते हैं जिनसे हृदयकलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है"- बिहारी सतसई के लिए
-"यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है"- बिहारी सतसई के लिए
-"जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा"- बिहारी के लिए
-"बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है।" "कविता उनकी श्रृँगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुंचती, नीचे ही रह जाती है"- बिहारी के लिए
-"भाषा इनकी बड़ी स्वाभाविक, चलती और व्यंजना पूर्ण होती थी"- मंडन के लिए
-"इनका सच्चा कवि हृदय था"- मतिराम के लिए
-"रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़ और किसी कवि में मतिराम की सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती"- मतिराम के लिए
-"उनके प्रति भक्ति और सम्मान की प्रतिष्ठा हिंदू जनता के हृदय में उस समय भी थी और आगे भी बराबर बनी रही या बढ़ती गई"- भूषण के लिए
-"भूषण के वीर रस के उद्गार सारी जनता के हृदय की संपत्ति हुए"- भूषण के लिए
-"जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी राहेगी"- भूषण के लिए
-"शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का वर्णनों को कोई कवियों की झूठी खुशामद नहीं कह सकता"- भूषण के लिए
-"वे हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।"- भूषण के लिए
-"छंदशास्त्र पर इनका-सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया है"- सुखदेव मिश्र के लिए
-" ये आचार्य और कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं"- देव के लिए
-"कवित्वशक्ति और मौलिकता देव में खूब थी पर उनके सम्यक स्फूर्ण में उनकी रुचि विशेष प्रायः बाधक हुई है"- देव के लिए
-"रीतिकाल के कवियों में ये बड़े ही प्रगल्भ और प्रतिभासंपन्न कवि थे, इसमें संदेह नहीं"- देव के लिए
-"श्रीपति ने काव्य के सब अंगों का निरूपण विशद रीति से किया है।"
-"इनकी रचना कलापक्ष में संयत और भावपक्ष में रंजनकारिणी है"- भिखारी दास के लिए
-"ऐसा सर्वप्रिय कवि इस काल के भीतर बिहारी को छोड दूसरा नहीं हुआ है। इनकी रचना की रमणीयता ही इस सर्वप्रियता का एकमात्र कारण है"- पद्माकर के लिए
-"रीतिकाल की सनक इन में इतनी अधिक थी कि इन्हें यमुना लहरी नामक देव स्तुति में भी नवरस और षट् ऋतु सुझाई पड़ी है"- ग्वाल कवि के लिए
-"षट् ऋतुओं का वर्णन इन्होंने विस्तृत किया है पर वही श्रृंगारी उद्दीपन के ढंग का"- ग्वाल कवि के लिए
-" ग्वाल कवि ने देशाटन अच्छा किया था और उन्हें भिन्न-भिन्न प्रांतों की बोलियों का अच्छा ज्ञान हो गया था।"
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महत्वपूर्ण कथन💐💐
1- लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके।
☉ - हजारी प्रसाद द्विवेदी
2- यदि इस्लाम न आया होता तब भी भक्ति साहित्य बारह आना वैसा ही होता जैसा आज है।
☉ - हजारी प्रसाद द्विवेदी
3- कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है।
☉- रामचंद्र शुक्ल
4- भक्ति धर्म का रसात्मक रूप है।
☉ - रामचंद्र शुक्ल
5- सूर ही वात्सल्य है, वात्सल्य ही सूर है।
☉- रामचंद्र शुक्ल
6- सूरदास की कविता में हम विश्वव्यापी राग सुनते हैं, वह राग मनुष्य के हृदय का सूक्ष्म उद्गार है।
☉- रामकुमार वर्मा
7- महात्मा बुद्ध के बाद भारत के सबसे बड़े लोकनायक तुलसीदास थे।
☉ - जार्ज ग्रियर्सन
8- तुलसी कलिकाल के वाल्मीकि हैं।
☉ - नाभादास
9- यदि प्रबंधकाव्य एक वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता।
☉- रामचंद्र शुक्ल
10- भक्ति की निष्पत्ति श्रद्धा और प्रेम के योग से होती है।
☉- रामचंद्र शुक्ल
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✅ कुछ नए और उपयोगी तथ्य जो गाइडों में नहीं मिलेंगे।
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🗣 रामचंद्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन 👇👇
▪️ ‘हिन्दी रीति-ग्रंथों की परम्परा चिन्तामणि त्रिपाठी से चली। अतः रीतिकाल का आरम्भ उन्हीं से मानना चाहिए।’
▪️ हरिश्चन्द्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत चलता, मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया।
▪️ सौन्दर्य की वस्तुगत सत्ता होती है, इसलिए शुद्ध सौन्दर्य नाम की कोई चीज़ नहीं होती।
▪️ यह सूचित करने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सूर का अवधी पर अधिकार था और न जायसी का ब्रजभाषा पर।
▪️ धर्म का प्रवाह कर्म, ज्ञान और भक्ति ౼इन तीन धाराओं में चलता है। इन तीनों के सामंजस्य से धर्म अपनी पूर्ण सजीव दशा से रहता है। किसी एक के भी अभाव से वह विकलांग रहता है।
▪️ "इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी।" (चिंतामणि त्रिपाठी के बारे में)
▪️ "भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी।" (बेनी के बारे में)
▪️ "इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रूप में नहीं।" (महाराजा जसवंत सिंह के ग्रंथ 'भाषा भूषण' के बारे में)
▪️ "इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है।"
▪️ "इसमें तो रस के ऐसे छींटे पड़ते हैं जिनसे हृदय-कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है।" (बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में)
▪️ "जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा।" (बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में)
▪️ "बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है।" 🥀🥀🥀🥀🥀🥀
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1. भारतेंदु ने हिंदी साहित्य को एक नए मार्ग पर खड़ा किया ।वे साहित्य के नए युग के प्रवर्तक थे । किसकी पंक्ति है ?
A. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
B. धीरेन्द्र वर्मा
C. रामविलास शर्मा
D. महावीर प्रसाद द्विवेदी
उत्तर - A
2." भारतेंदु का पूर्ववर्ती काव्य साहित्य संतों की कुटिया से निकलकर राजाओं और रईसों के दरबार में पहुँच गया था । उन्होंने एक तरफ तो काव्य को फिर से भक्ति की पवित्र मंदाकिनी में स्नान कराया और दूसरी तरफ उसे दरबारीपन से निकालकर लोक-जीवन के आमने सामने खड़ा कर दिया । "भारतेंदु के बारे में यह कथन किस आलोचक का है ?
A. बच्चन सिंह
B. रामविलास शर्मा
C. रामचंद्र शुक्ल
D. हजारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर - D
3. 'तप्ता संवरण' नाटक के नाटककार कौन हैं ?
A. भारतेंदु हरिश्चंद्र
B. जैनेन्द्र
C. यशपाल
D. श्रीनिवासदास
उत्तर - D
4. 'निःसहाय हिन्दू' किसकी रचना है?
A. भारतेंदु हरिश्चंद्र
B. बालकृष्ण भट्ट
C. प्रताप नारायण मिश्र
D. राधाकृष्ण दास
उत्तर - D
Trick - राधा निसहाय
5. 'जुआरी खुवारी' नाटक के नाटककार कौन हैं??
A. बालमुकुंद गुप्त
B. बालकृष्ण भट्ट
C. प्रतापनारायण मिश्र
D. हरिऔध
उत्तर - C
ट्रिक -जुवाड़ी प्रताप
6. आयु क्रम की दृष्टि से भारतेन्दु मंडल के सबसे वरिष्ठ सदस्य थे?
A. बालकृष्ण भट्ट
B. बालमुकुंद गुप्त
C. राधाचरण गोस्वामी
D. प्रेमघन
उत्तर - A
7. आधुनिक हिन्दी साहित्य का आरंभ वर्ष कौन-सा माना जाता है?
A. सन् 1850 ई०
B. सन् 1858 ई०
C. सन् 1900 ई०
D. सन् 1920 ई०
उत्तर - A
8. भारतेन्दु काल को ' पुनर्जागरण काल' किसने कहा ?
A. नन्द दुलारे वाजपेयी
B. आचार्य शुक्ल
C. डॉ० नगेंद्र
D. डॉ० महेंद्र कुमार
उत्तर - C
9. 'संवाद कौमुदी' पत्रिका के प्रकाशन में महत्वपूर्ण योगदान था ?
A. राजा राममोहन राय
B. जुगुल किशोर शुक्ल
C. भारतेंदु हरिश्चंद्र
D. प्रताप नारायण मिश्र
उत्तर - A
10. हिन्दी का प्रथम 'दैनिक पत्र' कौन-सा था ?
A. उदंत मार्तंड
B. समाचार सुधावर्षण
C. संवाद कौमुदी
D. सदादर्श
उत्तर - B
ट्रिक - दैनिक समाचार
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➡️हज़ारी प्रसाद द्विवेदी: विशेष
💐"दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं। सुखी वह है जिसका मन वश में है, दुःखी वह है जिसका मन परवश है। ...पंक्ति किस निबन्ध की है - कुटज
💐हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने कुल कितने उपन्यासों की रचना की - 04
💐"मानव देह केवल दंड भोगने के लिए नहीं बनी है, आर्य! यह विधाता की सर्वोत्तम सृष्टि है । यह नारायन का पवित्र मंदिर है।"...कथन किस कृति से है - बाणभट्ट की आत्मकथा
💐महर्षि औषस्ती हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के किस उपन्यास के पात्र हैं - अनामदास का पोथा
💐"सारे मानव-समाज को सुंदर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है"...हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
💐किस उपन्यास का कथन है "इस नरलोक से लेकर किन्नर लोक तक एक ही रागात्मक हृदय व्याप्त है"....बाणभट्ट की आत्मकथा
💐किस ग्रन्थ में द्विवेदी जी आदिकाल से लेकर आधुनिककाल के प्रगतिवाद तक की चर्चा अपनी पुस्तक में की है - हिंदी साहित्य : उसका उद्भव और विकास
💐उस पुस्तक का नाम बताइये जो बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के तत्वावधान में दिए गए पांच व्याख्यानों का संग्रह है - हिंदी साहित्य का आदिकाल
💐हिंदी साहित्य को भारतीय चिंता के स्वाभाविक विकास के रूप में हज़ारी प्रसाद द्विवेदी किस पुस्तक में स्वीकार करते हैं - हिंदी साहित्य की भूमिका
💐पंजाब विश्वविद्यालय में दिए गए व्याख्यानों का संकलन किस पुस्तक के रूप में आया - मध्यकालीन बोध का स्वरूप
💐"भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा लिया-बन गया तो सीधे सीधे, नहीं तो दरेरा देकर" प्रसिद्ध कथन हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी का है।
💐"मुझे लगता है बेटा, जिसे लोग आत्मा कहते हैं वह इसी जिजीविषा के भीतर कुछ होना चाहिए।...आत्मा अज्ञात, अपरिवर्तित संभावनाओं का द्वार है। अगर संभावना नहीं होती तो जिजीविषा भी नहीं होती" द्विवेदी जी का कथन किस उपन्यास से है - अनामदास का पोथा
💐"मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है।...शुद्ध है केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा(जीने की इच्छा)।" कथन कहां से लिया गया है। - अशोक के फूल
💐"पंडित मैं बनना जरूर चाहता हूं परन्तु ठूंठ पंडित
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द्विवेदी जी के कुछ महत्वपूर्ण कथन-:
1..दही में जितना दूध डालते जाओगे वह दही बनता जायेगा वैेसे ही जो लोग शंका करते हैं उनके दिल में हमेशा शंका उत्पन्न होती ही रहती है।
2...वे लोग ही विचार में निर्भीक हुआ करते हैं जिन लोगों के अन्दर आचरण की दृढ़ता होती है।
3..बुद्धिमान लोग हमेशा स्वेच्छा से ही सही रास्ते पर चलते हैं।
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गोस्वामी तुलसीदास जी के संबंध में महत्वपूर्ण कथन : -
1. नाभादास : -
"भक्ति काल का सुमेरु"
2. चतुरसेन शास्त्री : -
"तुलसी धर्म ध्वज है।"
3. नाभादास : -
'कलिकाल का वाल्मीकि'
4. स्मिथ : -
"मुगल काल का सबसे महान व्यक्ति"
5. ग्रियर्सन : -
"महात्मा बुद्ध के बाद सबसे बड़ा लोकनायक"
6. मधुसूदन सरस्वती : -
'आनंद कानन का वृक्ष'
7. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी : -
"भारतवर्ष का लोकनायक वहीं हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो।"
8. अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' : -
"कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला"
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दिनकर से संबंधित महत्वपूर्ण कथन 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार दिनकर की पहली रचना ’प्रणभंग’ है। एक प्रबंध काव्य है।
डाॅ. धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार –
’’दिनकर अपने आप को द्विवेदीयुगीन और छायावादी काव्य पद्धतियों का वारिस मानते थे।’’
डाॅ. धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार –
’’दिनकर की कविता प्रायः छायावाद की अपेक्षा द्विवेदीयुगीन कविता कि निकटतर जान पङती है।’’
डाॅ. धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार –
’’दिनकर मूलतः सामाजिक चेतना के चारण है।’’
डाॅ. गणपतिचन्द्र गुप्त के अनुसार –
’’काव्यत्व की दृष्टि से ’कुरूक्षेत्र’ शांतरस या बौद्धिक आकर्षण की व्यंजना का श्रेष्ठ उदाहरण है। इसका मूल केन्द्र भाव नहीं अपितु विचार है, भावनाओं के माध्यम से विचार की अभिव्यक्ति की गई, अतः इसमें शांत रस को ही अंगीरस मानना होगा।’’
डाॅ. धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार-
’’दिनकर का काव्य छायावाद का प्रतिलोम है, पर इसमें संदेह नहीं कि हिन्दी काव्य जगत पर छाये छायावादी कुहासे को काटने वाली शक्तियों में ’दिनकर’ की प्रवाहमयी ओजस्विनी कविता का स्थान, विशिष्ट महत्व का है।’’
डाॅ. बच्चन ने ’दिनकर’ की रचना ’हुकार’ (1939) को ’वैतालिका का जागरण गान’ कहा है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उर्वशी को प्रबंध काव्य न मानकर गीतिकाव्य माना है।
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"हिंदी भाषा की उन्नति का अर्थ है राष्ट्र और जाति की उन्नति।" - रामवृक्ष बेनीपुरी।
"हिंदी आज साहित्य के विचार से रूढ़ियों से बहुत आगे है। विश्वसाहित्य में ही जानेवाली रचनाएँ उसमें हैं।" - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
"भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहँुचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।" - शिवपूजन सहाय।
"भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है।" - नलिनविलोचन शर्मा।
"संस्कृत मां, हिंदी गृहिणी और अंग्रेजी नौकरानी है।" - डॉ. फादर कामिल बुल्के।
"साहित्य के हर पथ पर हमारा कारवाँ तेजी से बढ़ता जा रहा है।" - रामवृक्ष बेनीपुरी।
"समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है।" - (जस्टिस) कृष्णस्वामी अय्यर।
"हिंदी का पौधा दक्षिणवालों ने त्याग से सींचा है।" - शंकरराव कप्पीकेरी।
"अकबर से लेकर औरंगजेब तक मुगलों ने जिस देशभाषा का स्वागत किया वह ब्रजभाषा थी।" -रामचंद्र शुक्ल।
"राष्ट्रभाषा हिंदी का किसी क्षेत्रीय भाषा से कोई संघर्ष नहीं है।" - अनंत गोपाल शेवड़े।
"हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।" - वी. कृष्णस्वामी अय्यर।
"राष्ट्रीय एकता की कड़ी हिंदी ही जोड़ सकती है।" - बालकृष्ण शर्मा नवीन।
"विदेशी भाषा का किसी स्वतंत्र राष्ट्र के राजकाज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता है।" - वाल्टर चेनिंग।
"हिंदी को तुरंत शिक्षा का माध्यम बनाइये।" - बेरिस कल्यएव।
"देश को एक सूत्र में बाँधे रखने के लिए एक भाषा की आवश्यकता है।" - सेठ गोविंददास।
"इस विशाल प्रदेश के हर भाग में शिक्षित-अशिक्षित, नागरिक और ग्रामीण सभी हिंदी को समझते हैं।" - राहुल सांकृत्यायन।
"समस्त आर्यावर्त या ठेठ हिंदुस्तान की राष्ट्र तथा शिष्ट भाषा हिंदी या हिंदुस्तानी है।" -सर जार्ज ग्रियर्सन।
"मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर।" - चंद्रबली पांडेय।
"जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी।" - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
"अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई।" - भवानीदयाल संन्यासी।
"भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है।" - टी. माधवराव।
"हिंदी हिंद की, हिंदियों की भाषा है।" - र. रा. दिवाकर।
"यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं।" - राजेन्द्र प्रसाद।
"समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है।" - जनार्दनप्रसाद झा द्विज।
"शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है।" - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
"हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है।" - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
"वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके।" - पीर मुहम्मद मूनिस।
"हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है।" - छविनाथ पांडेय।
"देवनागरी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक लिपि है।" - रविशंकर शुक्ल।
"हमारी नागरी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है।" - राहुल सांकृत्यायन।
"नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है।" - गोपाललाल खत्री।
"उसी दिन मेरा जीवन सफल होगा जिस दिन मैं सारे भारतवासियों के साथ शुद्ध हिंदी में वार्तालाप करूँगा।" - शारदाचरण मित्र।
"हिंदी के ऊपर आघात पहुँचाना हमारे प्राणधर्म पर आघात पहुँचाना है।" - जगन्नाथप्रसाद मिश्र।
"हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है।" - देवव्रत शास्त्री।
"हिंदी और नागरी का प्रचार तथा विकास कोई भी रोक नहीं सकता।" - गोविन्दवल्लभ पंत।
"भाषा विचार की पोशाक है।" - डॉ. जानसन।
"रामचरित मानस हिंदी साहित्य का कोहनूर है।" - यशोदानंदन अखौरी।
"कवि संमेलन हिंदी प्रचार के बहुत उपयोगी साधन हैं।" - श्रीनारायण चतुर्वेदी।
"हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया।" - राजेंद्रप्रसाद।
"जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता।" - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
"हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है।" - शारदाचरण मित्र।
"हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है।" - कमलापति त्रिपाठी।
"हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है।" - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
"राष्ट्रभाषा हिंदी हो जाने पर भी हमारे व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन पर विदेशी भाषा का प्रभुत्व अत्यंत गर्हित बात है।" - कमलापति त्रिपाठी।
"सभ्य संसार के सारे विषय हमारे साहित्य में आ जाने की ओर हमारी सतत् चेष्टा रहनी चाहिए।" - श्रीधर पाठक।
"भारतवर्ष के लिए हिंदी भाषा ही सर्वसाधरण की भाषा होने के उपयुक्त है।" - शारदाचरण मित्र।
"हिंदी भाषा और साहित्य ने तो जन्म से ही अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा है।" - धीरेन्द्र वर्मा।
"जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं।"- सेठ गोविंददास।
"भाषा की समस्या का समाधान सांप्रदायिक दृष्टि से करना गलत है।" - लक्ष्मीनारायण सुधांशु।
"भारतीय साहित्य और संस्कृति को हिंदी की देन बड़ी महत्त्वपूर्ण है।" - सम्पूर्णानन्द।
"हिंदी के पुराने साहित्य का पुनरुद्धार प्रत्येक साहित्यिक का पुनीत कर्तव्य है।" - पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल।
"परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें।" - हरगोविंद सिंह।
"अहिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के लोग भी सरलता से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर अपना काम चला लेते हैं।" - अनंतशयनम् आयंगार।
"दाहिनी हो पूर्ण करती है अभिलाषा पूज्य हिंदी भाषा हंसवाहिनी का अवतार है।" - अज्ञात।
"हिंदुस्तान की भाषा हिंदी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर्वगुणकारी नागरी ही है।" - गोपाललाल खत्री।
"हिंदी ही के द्वारा अखिल भारत का राष्ट्रनैतिक ऐक्य सुदृढ़ हो सकता है।" - भूदेव मुखर्जी।
"हिंदी का शिक्षण भारत में अनिवार्य ही होगा।" - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
"हिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित है।" - नन्ददुलारे वाजपेयी।
"हिंदी साहित्य धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष इस चतु:पुरुषार्थ का साधक अतएव जनोपयोगी।" - (डॉ.) भगवानदास।
"हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है।" - मैथिलीशरण गुप्त।
"अब हिंदी ही माँ भारती हो गई है- वह सबकी आराध्य है, सबकी संपत्ति है।" - रविशंकर शुक्ल।
"बच्चों को विदेशी लिपि की शिक्षा देना उनको राष्ट्र के सच्चे प्रेम से वंचित करना है।" - भवानीदयाल संन्यासी।
"भाषा और राष्ट्र में बड़ा घनिष्ट संबंध है।" - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
"भारतेंदु का साहित्य मातृमंदिर की अर्चना का साहित्य है।" - बदरीनाथ शर्मा।
"तलवार के बल से न कोई भाषा चलाई जा सकती है न मिटाई।" - शिवपूजन सहाय।
"अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिये ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता समझता है।" - महात्मा गाँधी।
"हिंदी को राजभाषा करने के बाद पूरे पंद्रह वर्ष तक अंग्रेजी का प्रयोग करना पीछे कदम हटाना है।"- राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन।
"भाषा राष्ट्रीय शरीर की आत्मा है।" - स्वामी भवानीदयाल संन्यासी।
"हिंदी के राष्ट्रभाषा होने से जहाँ हमें हर्षोल्लास है, वहीं हमारा उत्तरदायित्व भी बहुत बढ़ गया है।"- मथुरा प्रसाद दीक्षित।
"भारतवर्ष में सभी विद्याएँ सम्मिलित परिवार के समान पारस्परिक सद्भाव लेकर रहती आई हैं।"- रवींद्रनाथ ठाकुर।
"इतिहास को देखते हुए किसी को यह कहने का अधिकारी नहीं कि हिंदी का साहित्य जायसी के पहले का नहीं मिलता।" - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
"संप्रति जितनी भाषाएं भारत में प्रचलित हैं उनमें से हिंदी भाषा प्राय: सर्वत्र व्यवहृत होती है।" - केशवचंद्र सेन।
"हिंदी ने राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहानसारूढ़ होने पर अपने ऊपर एक गौरवमय एवं गुरुतर उत्तरदायित्व लिया है।" - गोविंदबल्लभ पंत।
"हिंदी जिस दिन राजभाषा स्वीकृत की गई उसी दिन से सारा राजकाज हिंदी में चल सकता था।" - सेठ गोविंददास।
"हिंदी भाषी प्रदेश की जनता से वोट लेना और उनकी भाषा तथा साहित्य को गालियाँ देना कुछ नेताओं का दैनिक व्यवसाय है।" - (डॉ.) रामविलास शर्मा।
"जब एक बार यह निश्चय कर लिया गया कि सन् १९६५ से सब काम हिंदी में होगा, तब उसे अवश्य कार्यान्वित करना चाहिए।" - सेठ गोविंददास।
"जिसका मन चाहे वह हिंदी भाषा से हमारा दूर का संबंध बताये, मगर हम बिहारी तो हिंदी को ही अपनी भाषा, मातृभाषा मानते आए हैं।" - शिवनंदन सहाय।
"मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती। भगवान भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती। - मैथिलीशरण गुप्त।
"लाखों की संख्या में छात्रों की उस पलटन से क्या लाभ जिनमें अंग्रेजी में एक प्रार्थनापत्र लिखने की भी क्षमता नहीं है।"- कंक।
"मैं राष्ट्र का प्रेम, राष्ट्र के भिन्न-भिन्न लोगों का प्रेम और राष्ट्रभाषा का प्रेम, इसमें कुछ भी फर्क नहीं देखता।" - र. रा. दिवाकर।
"देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्वयं सिद्ध है।" - महावीर प्रसाद द्विवेदी।
"हिमालय से सतपुड़ा और अंबाला से पूर्णिया तक फैला हुआ प्रदेश हिंदी का प्रकृत प्रांत है।" - राहुल सांकृत्यायन।
"किसी राष्ट्र की राजभाषा वही भाषा हो सकती है जिसे उसके अधिकाधिक निवासी समझ सके।" - (आचार्य) चतुरसेन शास्त्री।
"साहित्य के इतिहास में काल विभाजन के लिए तत्कालीन प्रवृत्तियों को ही मानना न्यायसंगत है।" - अंबाप्रसाद सुमन।
"हिंदी भाषा हमारे लिये किसने बनाया? प्रकृति ने। हमारे लिये हिंदी प्रकृतिसिद्ध है।" - पं. गिरिधर शर्मा।
"हिंदी भाषा उस समुद्र जलराशि की तरह है जिसमें अनेक नदियाँ मिली हों।" - वासुदेवशरण अग्रवाल।
"भाषा देश की एकता का प्रधान साधन है।" - (आचार्य) चतुरसेन शास्त्री।
"क्रांतदर्शी होने के कारण ऋषि दयानंद ने देशोन्नति के लिये हिंदी भाषा को अपनाया था।" - विष्णुदेव पौद्दार।
"सच्चा राष्ट्रीय साहित्य राष्ट्रभाषा से उत्पन्न होता है।" - वाल्टर चेनिंग।
"हिंदी के पौधे को हिंदू मुसलमान दोनों ने सींचकर बड़ा किया है।" - जहूरबख्श।
"हिंदी राष्ट्रभाषा है, इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को, प्रत्येक भारतवासी को इसे सीखना चाहिए।" - रविशंकर शुक्ल।
"हिंदी प्रांतीय भाषा नहीं बल्कि वह अंत:प्रांतीय राष्ट्रीय भाषा है। - छविनाथ पांडेय।
"साहित्य को उच्च अवस्था पर ले जाना ही हमारा परम कर्तव्य है।" - पार्वती देवी।
"विश्व की कोई भी लिपि अपने वर्तमान रूप में नागरी लिपि के समान नहीं।" - चंद्रबली पांडेय।
"भाषा की एकता जाति की एकता को कायम रखती है।" - राहुल सांकृत्यायन।
"जिस राष्ट्र की जो भाषा है उसे हटाकर दूसरे देश की भाषा को सारी जनता पर नहीं थोपा जा सकता - वासुदेवशरण अग्रवाल।"
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"पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय सहस्रगुना अच्छी है।" - अज्ञात।
"समाज के अभाव में आदमी की आदमियत की कल्पना नहीं की जा सकती।"- पं. सुधाकर पांडेय।
"तुलसी, कबीर, नानक ने जो लिखा है, उसे मैं पढ़ता हूँ तो कोई मुश्किल नहीं आती।" - मौलाना मुहम्मद अली।
"भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर।" - रामवृक्ष बेनीपुरी।
"हिंदी भाषी ही एक ऐसी भाषा है जो सभी प्रांतों की भाषा हो सकती है।" - पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
"जब हम हिंदी की चर्चा करते हैं तो वह हिंदी संस्कृति का एक प्रतीक होती है।" - शांतानंद नाथ।
"भारतीय धर्म की है घोषणा घमंड भरी, हिंदी नहीं जाने उसे हिंदू नहीं जानिए।" - नाथूराम शंकर शर्मा।
"राजनीति के चिंतापूर्ण आवेग में साहित्य की प्रेरणा शिथिल नहीं होनी चाहिए।" - राजकुमार वर्मा।
"हिंदी में जो गुण है उनमें से एक यह है कि हिंदी मर्दानी जबान है।" - सुनीति कुमार चाटुर्ज्या।
"बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता।" - गोविंद शास्त्री दुगवेकर।
"राष्ट्रभाषा राष्ट्रीयता का मुख्य अंश है।" - श्रीमती सौ. चि. रमणम्मा देव।
"बानी हिंदी भाषन की महरानी, चंद्र, सूर, तुलसी से जामें भए सुकवि लासानी।" - पं. जगन्नाथ चतुर्वेदी।
"जय जय राष्ट्रभाषा जननि। जयति जय जय गुण उजागर राष्ट्रमंगलकरनि।" - देवी प्रसाद गुप्त।
"हिंदी हमारी हिंदू संस्कृति की वाणी ही तो है।" - शांतानंद नाथ।
"आज का लेखक विचारों और भावों के इतिहास की वह कड़ी है जिसके पीछे शताब्दियों की कड़ियाँ जुड़ी है।" - माखनलाल चतुर्वेदी।
"विज्ञान के बहुत से अंगों का मूल हमारे पुरातन साहित्य में निहित है।" - सूर्यनारायण व्यास।
"हमारी राष्ट्रभाषा का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीयता का दृढ़ निर्माण है।" - चंद्रबली पांडेय।
"मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता।" - विनोबा भावे।
"हिंदी विश्व की महान भाषा है।" - राहुल सांकृत्यायन।
"राष्ट्रीय एकता के लिये एक भाषा से कहीं बढ़कर आवश्यक एक लिपि का प्रचार होना है।" - ब्रजनंदन सहाय।
"मैं मानती हूँ कि हिंदी प्रचार से राष्ट्र का ऐक्य जितना बढ़ सकता है वैसा बहुत कम चीजों से बढ़ सकेगा।" - लीलावती मुंशी।
"हिंदी उर्दू के नाम को दूर कीजिए एक भाषा बनाइए। सबको इसके लिए तैयार कीजिए।" - देवी प्रसाद गुप्त।
"साहित्यकार विश्वकर्मा की अपेक्षा कहीं अधिक सामर्थ्यशाली है।" - पं. वागीश्वर जी।
"हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य को सर्वांगसुंदर बनाना हमारा कर्त्तव्य है।" - डॉ. राजेंद्रप्रसाद।
"हिंदी साहित्य की नकल पर कोई साहित्य तैयार नहीं होता।" - सूर्य कांत त्रिपाठी निराला।
"भाषा के उत्थान में एक भाषा का होना आवश्यक है। इसलिये हिंदी सबकी साझा भाषा है।" - पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
"यदि स्वदेशाभिमान सीखना है तो मछली से जो स्वदेश (पानी) के लिये तड़प तड़प कर जान दे देती है।" - सुभाषचंद्र बसु।
"पिछली शताब्दियों में संसार में जो राजनीतिक क्रांतियाँ हुई, प्राय: उनका सूत्रसंचालन उस देश के साहित्यकारों ने किया है।" - पं. वागीश्वर जी।
"हिंदी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।" - माखनलाल चतुर्वेदी।
"भारत सरस्वती का मुख संस्कृत है।" - म. म. रामावतार शर्मा।
"यदि आप मुझे कुछ देना चाहती हों तो इस पाठशाला की शिक्षा का माध्यम हमारी मातृभाषा कर दें।" - एक फ्रांसीसी बालिका।
"हिंदुस्तान को छोड़कर दूसरे मध्य देशों में ऐसा कोई अन्य देश नहीं है, जहाँ कोई राष्ट्रभाषा नहीं हो।"- सैयद अमीर अली मीर।
"सरलता, बोधगम्यता और शैली की दृष्टि से विश्व की भाषाओं में हिंदी महानतम स्थान रखती है।" - अमरनाथ झा।
"हिंदी सरल भाषा है। इसे अनायास सीखकर लोग अपना काम निकाल लेते हैं।" - जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी।
"किसी भाषा की उन्नति का पता उसमें प्रकाशित हुई पुस्तकों की संख्या तथा उनके विषय के महत्व से जाना जा सकता है।" - गंगाप्रसाद अग्निहोत्री।
"जीवन के छोटे से छोटे क्षेत्र में हिंदी अपना दायित्व निभाने में समर्थ है।" - पुरुषोत्तमदास टंडन।
"बिहार में ऐसा एक भी गाँव नहीं है जहाँ केवल रामायण पढ़ने के लिये दस-बीस मनुष्यों ने हिंदी न सीखी हो।" - सकलनारायण पांडेय।
"संस्कृत की इशाअत (प्रचार) का एक बड़ा फायदा यह होगा कि हमारी मुल्की जबान (देशभाषा) वसीअ (व्यापक) हो जायगी।" - मौलवी महमूद अली।
"संसार में देश के नाम से भाषा को नाम दिया जाता है और वही भाषा वहाँ की राष्ट्रभाषा कहलाती है।" - ताराचंद्र दूबे।
"जो गुण साहित्य की जीवनी शक्ति के प्रधान सहायक होते हैं उनमें लेखकों की विचारशीलता प्रधान है।" - नरोत्तम व्यास।
"साहित्य पढ़ने से मुख्य दो बातें तो अवश्य प्राप्त होती हैं, अर्थात् मन की शक्तियों को विकास और ज्ञान पाने की लालसा।" - बिहारीलाल चौबे।
"है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी।" - मैथिलीशरण गुप्त।
"संस्कृत की विरासत हिंदी को तो जन्म से ही मिली है।" - राहुल सांकृत्यायन।
"कैसे निज सोये भाग को कोई सकता है जगा, जो निज भाषा-अनुराग का अंकुर नहिं उर में उगा।" - हरिऔध।
"हिंदी में हम लिखें पढ़ें, हिंदी ही बोलें।" - पं. जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी।
"यह जो है कुरबान खुदा का, हिंदी करे बयान सदा का।" - अज्ञात।
"क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो।" - डॉ. श्यामसुंदर दास।
"वास्तव में वेश, भाषा आदि के बदलने का परिणाम यह होता है कि आत्मगौरव नष्ट हो जाता है, जिससे देश का जातित्व गुण मिट जाता है।" - सैयद अमीर अली मीर।
"समालोचना ही साहित्य मार्ग की सुंदर सड़क है।" - म. म. गिरधर शर्मा चतुर्वेदी।
"नागरी वर्णमाला के समान सर्वांगपूर्ण और वैज्ञानिक कोई दूसरी वर्णमाला नहीं है।" - बाबू राव विष्णु पराड़कर।
"व्याकरण चाहे जितना विशाल बने परंतु भाषा का पूरा-पूरा समाधान उसमें नहीं हो सकता।" - अनंतराम त्रिपाठी।
"स्वदेशप्रेम, स्वधर्मभक्ति और स्वावलंबन आदि ऐसे गुण हैं जो प्रत्येक मनुष्य में होने चाहिए।" - रामजी लाल शर्मा।
"गुणवान खानखाना सदृश प्रेमी हो गए रसखान और रसलीन से हिंदी प्रेमी हो गए।" - राय देवीप्रसाद।
"वैज्ञानिक विचारों के पारिभाषिक शब्दों के लिये, किसी विषय के उच्च भावों के लिये, संस्कृत साहित्य की सहायता लेना कोई शर्म की बात नहीं है।" - गणपति जानकीराम दूबे।
"हिंदुस्तान के लिये देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहाँ हो ही नहीं सकता।" - महात्मा गाँधी।
"हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।" - चंद्रबली पाण्डेय।
"भाषा की उन्नति का पता मुद्रणालयों से भी लग सकता है।" - गंगाप्रसाद अग्निहोत्री।
"आर्यों की सबसे प्राचीन भाषा हिंदी ही है और इसमें तद्भव शब्द सभी भाषाओं से अधिक है।" - वीम्स साहब।
"क्यों न वह फिर रास्ते पर ठीक चलने से डिगे , हैं बहुत से रोग जिसके एक ही दिल में लगे।" - हरिऔध।
"जब तक साहित्य की उन्नति न होगी, तब तक संगीत की उन्नति नहीं हो सकती।" - विष्णु दिगंबर।
"राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।" - महात्मा गाँधी।
"जिस प्रकार बंगाल भाषा के द्वारा बंगाल में एकता का पौधा प्रफुल्लित हुआ है उसी प्रकार हिंदी भाषा के साधारण भाषा होने से समस्त भारतवासियों में एकता तरु की कलियाँ अवश्य ही खिलेंगी।" - शारदाचरण मित्र।
"विदेशी लोगों का अनुकरण न किया जाय।" - भीमसेन शर्मा।
"भारतवर्ष के लिये देवनागरी साधारण लिपि हो सकती है और हिंदी भाषा ही सर्वसाधारण की भाषा होने के उपयुक्त है।" - शारदाचरण मित्र।
"अकबर का शांत राज्य हमारी भाषा का मानो स्वर्णमय युग था।" - छोटूलाल मिश्र।
"किसी भी बृहत् कोश में साहित्य की सब शाखाओं के शब्द होने चाहिए।" - महावीर प्रसाद द्विवेदी।
"भारत के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हिंदी भाषा कुछ न कुछ सर्वत्र समझी जाती है।" - पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
"जापानियों ने जिस ढंग से विदेशी भाषाएँ सीखकर अपनी मातृभाषा को उन्नति के शिखर पर पहुँचाया है उसी प्रकार हमें भी मातृभाषा का भक्त होना चाहिए।" - श्यामसुंदर दास।
"विचारों का परिपक्व होना भी उसी समय संभव होता है, जब शिक्षा का माध्यम प्रकृतिसिद्ध मातृभाषा हो।" - पं. गिरधर शर्मा।
"यह महात्मा गाँधी का प्रताप है, जिनकी मातृभाषा गुजराती है पर हिंदी को राष्ट्रभाषा जानकर जो उसे अपने प्रेम से सींच रहे हैं।" - लक्ष्मण नारायण गर्दे।
"हिंदी भाषा के लिये मेरा प्रेम सब हिंदी प्रेमी जानते हैं।" - महात्मा गांधी।
"किसी देश में ग्रंथ बनने तक वैदेशिक भाषा में शिक्षा नहीं होती थी। देश भाषाओं में शिक्षा होने के कारण स्वयं ग्रंथ बनते गए हैं। - साहित्याचार्य रामावतार शर्मा।
"जो भाषा सामयिक दूसरी भाषाओं से सहायता नहीं लेती वह बहुत काल तक जीवित नहीं रह सकती।" - पांडेय रामवतार शर्मा।
"जितना और जैसा ज्ञान विद्यार्थियों को उनकी जन्मभाषा में शिक्षा देने से अल्पकाल में हो सकता है; उतना और वैसा पराई भाषा में सुदीर्घ काल में भी होना संभव नहीं है।" - घनश्याम सिंह।
"मैं महाराष्ट्री हूँ, परंतु हिंदी के विषय में मुझे उतना ही अभिमान है जितना किसी हिंदी भाषी को हो सकता है।" - माधवराव सप्रे।
"मनुष्य सदा अपनी मातृभाषा में ही विचार करता है। इसलिये अपनी भाषा सीखने में जो सुगमता होती है दूसरी भाषा में हमको वह सुगमता नहीं हो सकती।" - डॉ. मुकुन्दस्वरूप वर्मा।
"हिंदी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।" - महात्मा गांधी।
"राष्ट्रीयता का भाषा और साहित्य के साथ बहुत ही घनिष्ट और गहरा संबंध है।" - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
"यदि हम अंग्रेजी दूसरी भाषा के समान पढ़ें तो हमारे ज्ञान की अधिक वृद्धि हो सकती है।" - जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी।
"हिंदी पर ना मारो ताना, सभा बतावे हिंदी माना।" - नूर मुहम्मद।
"आप जिस तरह बोलते हैं, बातचीत करते हैं, उसी तरह लिखा भी कीजिए। भाषा बनावटी न होनी चाहिए।" - महावीर प्रसाद द्विवेदी।
"हिंदी भाषा की उन्नति के बिना हमारी उन्नति असम्भव है।" - गिरधर शर्मा।
"भाषा ही राष्ट्र का जीवन है।" - पुरुषोत्तमदास टंडन।
"जब हम अपना जीवन जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दें तब हम हिंदी के प्रेमी कहे जा सकते हैं।" - गोविन्ददास।
"देश तथा जाति का उपकार उसके बालक तभी कर सकते हैं, जब उन्हें उनकी भाषा द्वारा शिक्षा मिली हो।" - पं. गिरधर शर्मा।
"राष्ट्रभाषा की साधना कोरी भावुकता नहीं है।" - जगन्नाथप्रसाद मिश्र।
"साहित्य को स्वैर संचा करने की इजाजत न किसी युग में रही होगी न वर्तमान युग में मिल सकती है।" - माखनलाल चतुर्वेदी।
"अंग्रेजी सीखकर जिन्होंने विशिष्टता प्राप्त की है, सर्वसाधारण के साथ उनके मत का मेल नहीं होता। हमारे देश में सबसे बढ़कर जातिभेद वही है, श्रेणियों में परस्पर अस्पृश्यता इसी का नाम है।" - रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
"साहित्य की सेवा भगवान का कार्य है, आप काम में लग जाइए आपको भगवान की सहायता प्राप्त होगी और आपके मनोरथ परिपूर्ण होंगे।" - चंद्रशेखर मिश्र।
"सब से जीवित रचना वह है जिसे पढ़ने से प्रतीत हो कि लेखक ने अंतर से सब कुछ फूल सा प्रस्फुटित किया है।" - शरच्चंद।
"सिक्ख गुरुओं ने आपातकाल में हिंदी की रक्षा के लिये ही गुरुमुखी रची थी।" - संतराम शर्मा।
"हिंदी जैसी सरल भाषा दूसरी नहीं है।" - मौलाना हसरत मोहानी।
"भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिंदी प्रचार द्वारा एकता स्थापित करने वाले सच्चे भारत बंधु हैं।" - अरविंद।
"मेरा आग्रहपूर्वक कथन है कि अपनी सारी मानसिक शक्ति हिन्दी के अध्ययन में लगावें।" - विनोबा भावे।
"हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।" - स्वामी दयानंद।
"अधिक अनुभव, अधिक विपत्ति सहना, और अधिक अध्ययन, ये ही विद्वता के तीन स्तंभ हैं।" - डिजरायली।
"जैसे-जैसे हमारे देश में राष्ट्रीयता का भाव बढ़ता जायेगा वैसे ही वैसे हिंदी की राष्ट्रीय सत्ता भी बढ़ेगी।" - श्रीमती लोकसुन्दरी रामन् ।
"राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिये आवश्यक है।" - महात्मा गांधी।
"जीवित भाषा बहती नदी है जिसकी धारा नित्य एक ही मार्ग से प्रवाहित नहीं होती।" - बाबूराव विष्णु पराड़कर।
"हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है।" - मैथिलीशरण गुप्त।
"हिन्दी भाषा और साहित्य ने तो जन्म से ही अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा है।" - धीरेन्द्र वर्मा।
"बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता।" - गोविन्द शास्त्री दुगवेकर।
"प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है।" - रामचंद्र शुक्ल।
"अंग्रेजी को भारतीय भाषा बनाने का यह अभिप्राय है कि हम अपने भारतीय अस्तित्व को बिल्कुल मिटा दें।" - पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
"भाषा ही राष्ट्र का जीवन है। - पुरुषोत्तमदास टंडन।
"हिंदी स्वयं अपनी ताकत से बढ़ेगी।" - पं. नेहरू।
"हमारी देवनागरी इस देश की ही नहीं समस्त संसार की लिपियों में सबसे अधिक वैज्ञानिक है।" - सेठ गोविन्ददास।
"आइए हम आप एकमत हो कोई ऐसा उपाय करें जिससे राष्ट्रभाषा का प्रचार घर-घर हो जाये और राष्ट्र का कोई भी कोना अछूता न रहे।" - चन्द्रबली पांडेय।
"हिंदी और उर्दू की जड़ एक है, रूपरेखा एक है और दोनों को अगर हम चाहें तो एक बना सकते हैं।" - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
"भारत की रक्षा तभी हो सकती है जब इसके साहित्य, इसकी सभ्यता तथा इसके आदर्शों की रक्षा हो।" - पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
"हिंदी संस्कृत की बेटियों में सबसे अच्छी और शिरोमणि है।" - ग्रियर्सन।
"मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया।" - महात्मा गांधी।
"मेरे लिये हिन्दी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।" - राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन।
"संस्कृत को छोड़कर आज भी किसी भी भारतीय भाषा का वाङ्मय विस्तार या मौलिकता में हिन्दी के आगे नहीं जाता।" - डॉ. सम्पूर्णानन्द।
"राष्ट्रभाषा के विषय में यह बात ध्यान में रखनी होगी कि यह राष्ट्र के सब प्रान्तों की समान और स्वाभाविक राष्ट्रभाषा है।" - लक्ष्मण नारायण गर्दे।
"विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा हृदयग्राही वाक्य।" - मन्नन द्विवेदी।
"हिंदी अपनी भूमि की अधिष्ठात्री है।" - राहुल सांकृत्यायन।
"हिन्दी व्यापकता में अद्वितीय है।"- अम्बिका प्रसाद वाजपेयी।
"हमारी राष्ट्रभाषा की पावन गंगा में देशी और विदेशी सभी प्रकार के शब्द मिलजुलकर एक हो जायेंगे।" - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
"नागरी की वर्णमाला है विशुद्ध महान, सरल सुन्दर सीखने में सुगम अति सुखदान।" - मिश्रबंधु।
"मनुष्य सदा अपनी भातृभाषा में ही विचार करता है।" - मुकुन्दस्वरूप वर्मा।
"हिंदी और उर्दू एक ही भाषा के दो रूप हैं और दोनों रूपों में बहुत साहित्य है।" - अंबिका प्रसाद वाजपेयी।
"हम हिन्दी वालों के हृदय में किसी सम्प्रदाय या किसी भाषा से रंचमात्र भी ईर्ष्या, द्वेष या घृणा नहीं है।" - शिवपूजन सहाय।
"भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिन्दी प्रचार द्वारा एकता स्थापित करने वाले सच्चे भारत बंधु हैं।" - अरविंद।
"राष्ट्रीय एकता के लिये हमें प्रांतीयता की भावना त्यागकर सभी प्रांतीय भाषाओं के लिए एक लिपि देवनागरी अपना लेनी चाहिये।" - शारदाचरण मित्र (जस्टिस)।
"समूचे राष्ट्र को एकताबद्ध और दृढ़ करने के लिए हिन्द भाषी जाति की एकता आवश्यक है।" - रामविलास शर्मा।
"हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है, इसमें कोई संदेह नहीं।" - अनंत गोपाल शेवड़े।
"हिन्दी को ही राजभाषा का आसन देना चाहिए।" - शचींद्रनाथ बख्शी।
"अंतरप्रांतीय व्यवहार में हमें हिन्दी का प्रयोग तुरंत शुरू कर देना चाहिए।" - र. रा. दिवाकर।
"हिन्दी का शासकीय प्रशासकीय क्षेत्रों से प्रचार न किया गया तो भविष्य अंधकारमय हो सकता है।" - विनयमोहन शर्मा।
"हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में प्रांतीय भाषाओं को हानि नहीं वरन् लाभ होगा।" - अनंतशयनम् आयंगार।
"संस्कृत के अपरिमित कोश से हिन्दी शब्दों की सब कठिनाइयाँ सरलता से हल कर लेगी।" - राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन।
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1. नानकदेव का जन्म कब हुआ था ?
(अ) सन् 1478 ई. (ब) सन् 1464 ई.
(स) सन् 1469 ई.✔️ (द) सन् 1473 ई.
2. नानकदेव का जन्म कहाँ हुआ था ?
(अ) अमृतसर में (ब) लाहौर में
(स) फरीदकोट में (द) तलवंडी ग्राम में✔️
3. नानकदेव कृत रचनाएँ है –
(अ) असादीवार, रहिरासा (ब) जपुजी, नसीहतनामा
(स) सोहिला (द) उपर्युक्त सभी✔️
4. जम्भनाथ से संबंधित संगत कथन है ?
(अ) ये आजीवन ब्रह्मचारी रहे।
(ब) ये नाथपंथ से प्रभावित थे।
(स) इनका समाधि स्थल समराथल नाम से विख्यात है।
(द) उपर्युक्त सभी✔️
5. ’’गगन हमारा बाजा बाजे, मतरफल हाथी,
संसै का बल गुरूमुख तोङा, पाँच पुरुष मेरे साथी।’ के रचयिता है?
(अ) संत सींगा (ब) जम्भनाथ✔️
(स) मलूकदास (द) लालदास
6. ’निरंजनी सम्प्रदाय’ का प्रमुख मठ स्थित है?
(अ) तालसर में (ब) डीडवाना में✔️
(स) नगला में (द) अलख दरीबा
7. संत सींगा का जन्म कहाँ हुआ था ?
(अ) पीपासर में (ब) खराङी गाँव में
(स) खजूर गाँव में ✔️ (द) फेफरिया ग्राम में
8. ’गुणग्राही गोविन्द गुण गावा, भजि-भजि राम परमपद पावा’ पद के रचनाकार है ?
(अ) हरिदास निरंजनी✔️ (ब) दादूदयाल
(स) मलूकदास (द) लालदास
9. संत सींगा कृत रचनाएँ है ?
(अ) सींगा जी का आत्मज्ञान, सींगा जी का आत्मध्यान
(ब) सींगाजी का आत्मबोध, सींगा जी का नरद
(स) सींगा जी का सरद, सींगा जी का सप्तवार
(द) उपर्युक्त सभी✔️
10. निम्न में से किस संत का जन्म अलव के धौलीधूप ग्राम में एक मुसलमान परिवार में हुआ था ?
(अ) मलूकदास (ब) लालदास✔️
(स) बाबालाल (द) संतसींगा
11. दादूदयाल का जन्म कहाँ हुआ था ?
(अ) लाहौर में (ब) अहमदाबाद में✔️
(स) श्री ध्यानपुर में (द) धौंसा में
12. गरीबदास तथा मिस्कीनदास नामक दो पुत्र थे ?
(अ) संत सींगा के (ब) संत दादूदयाल के✔️
(स) संत बाबालाल के (द) संत सुंदरदास के
13. ’अंगवधु’ के रचयिता है ?
(अ) दादूदयाल✔️ (ब) मलूकदास
(स) बाबालाल (द) सुंदरदास
14. निम्न में से किस संत ने निर्गुण भक्त कवि होने पर भी ईश्वर के सगुण स्वरूप को मान्यता दी है ?
(अ) मलूकदास (ब) सुंदरदास
(स) संत दादूदयाल✔️ (द) बाबालाल
15. संत दादूदयाल के गुरू थे ?
(अ) गुरूवृद्ध भगवान✔️ (ब) रामानन्द
(स) मनरंगीर (द) रामानुजाचार्य
16. दादूपंथ से सम्बन्धित स्थान है ?
(अ) कल्याणपुर, सांभर (ब) आमेर, नारायणा
(स) भराणा (द) उपर्युक्त सभी ✔️
17. मलूकदास कृत रचनाएँ है ?
(अ) ज्ञानबोध, ज्ञानपरोछि (ब) विभवविभूति
(स) रतनखान (द) उपर्युक्त सभी✔️
18. मलूकदास की रचनाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रचना है ?
(अ) ज्ञानबोध✔️ (ब) रतनखान
(स) बारह खङी (द) सुख सागर
19. ’भक्ति विवेक’ में सम्मिलित कथा है ?
(अ) काशी नृत की कथा, नृत तथा बढ़ई की कथा
(ब) सिंह तथा शंृगाल की कथा
(स) पंडित तथा नागकन्या की कथा
(द) उपर्युक्त सभी✔️
20. बाबालाल के गुरू थे ?
(अ) केशव भारती
(ब) चेतन बाबा या चैतन्य स्वामी✔️
(स) दादूदयाल
(द) मनरंगीर
21. ’’देहा भीतर श्वासे भीतर जीव जीवे
भीतर वासना, किस विधि पाईये पीव।’’
पद के रचनाकार है ?
(अ) बाबा लाल ✔️ (ब) सुंदरदास
(स) मलूक दास (द) रज्जब
22. सुंदरदास के गुरू थे ?
(अ) दादू✔️ (ब) कांथीपूर्ण
(स) कबीर (द) केशव भारती
23. सुंदरदास का जन्म कब हुआ था ?
(अ) सन् 1590 ई. में (ब) सन् 1596 ई.✔️
(स) सन् 1567 ई. में (द) सन् 1504 ई.
24. निम्न में से कौनसे संत शृंगार रस की रचनाओं के कट्टर विरोधी थे ?
(अ) सुंदरदास ✔️ (ब) मलूकदास
(स) बाबालाल (द) संत रज्जब
25. गुरू अर्जुनदेव द्वारा रचित रचना है ?
(अ) सुखमनी (ब) बावन अखरी
(स) बारहमासा (द) उपर्युक्त सभी✔️
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प्रश्न.1- 'तमस' उपन्यास की भाषा कौन सी है?
उत्तर:- हिंदी, उर्दू, पंजाबी एवं अंग्रेजी के मिश्रित रूप वाली
प्रश्न.2- 'राग दरबारी' उपन्यास में किस जीवन की समीक्षा है?
शहरी जीवन/ ग्रामीण जीवनans. / आधुनिक जीवन/ इनमें से कोई नही
प्रश्न.3- 'परीक्षा गुरु' उपन्यास के प्रमुख पात्र कौन है?
उत्तर- लाला मदनमोहन, बृजकिशोर, मुंशी चुन्नीलाल, मास्टर शम्भूदयाल
प्रश्न.4- 'अमृतलाल नागर' का जीवनीपरक उपन्यास कौन सा है?
उत्तर- मानस का हंस
प्रश्न.5- 'अज्ञेय' ने अपने उपन्यासों में किसका चित्रण किया है?
सहज भावनाओं/ दमित भावनाओं/ यौन प्रवृत्तियों/ काल्पनिकता
प्रश्न.6- राग दरबारी में किस गाँव का उल्लेख हुआ है?
उत्तर- शिवपालगंज
प्रश्न.7- 'मानस का हंस' उपन्यास की भाषा क्या है?
यथार्थपरक, पात्रानुकूल, देशकाल की स्थिति के अनुकूल, उपरोक्त सभीans.
प्रश्न.8- 'आपका बंटी' उपन्यास की लेखिका/लेखक हैं?
मन्नू भंडारीans./ कृष्णा सोबती/ निर्मल वर्मा
प्रश्न.9- 'ज़िंदगीनामा' उपन्यास के केंद्र में है-
सामाजिक बन्धन/ शाहजी परिवारans./ मनोरंजन/ अंधविश्वास
प्रश्न.10- 'सलीम' प्रेमचंद जी के किस उपन्यास का पात्र है?
उत्तर:- कर्मभूमि
प्रश्न.11- प्रकाशन वर्ष के अनुसार निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम है-
उत्तर- प्रेमाश्रम, कायाकल्प, गबन, गोदान
प्रश्न.12- प्रकाशन वर्ष के अनुसार निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम है-
उत्तर- कंकाल, तितली, सुनीता, त्यागपत्र
प्रश्न.13- प्रकाशन वर्ष के अनुसार निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम है-
उत्तर- अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा
प्रश्न.14-प्रकाशन वर्ष के अनुसार निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम-
उत्तर- बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्र लेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा
प्रश्न.16- प्रकाशन वर्ष के अनुसार निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम है-
उत्तर- माँ, गोदान, वैशाली की नगरवधू, मृगनयनी
प्रश्न.17- प्रकाशन वर्ष के अनुसार निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम है-
तमस/ झूठा सच/ आपका बंटी/
उत्तर- गोदान, झूठा सच, आपका बंटी, तमस
प्रश्न.18- प्रकाशन वर्ष के अनुसार निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम है-
मैला आँचल/ जिंदगी नामा/ शेखर एक जीवनी/ धरती धन न अपना
उत्तर- शेखर एक जीवनी, मैला आँचल, धरती धन न अपना, जिंदगीनामा
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1.
साहित्य अकादमी पुरस्कार, सन् 1955 से प्रत्येक वर्ष भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों को दिया जाता है, जिसमें एक ताम्रपत्र के साथ नकद राशि दी जाती है। नकद राशि इस समय एक लाख रुपये हैं। साहित्य अकादमी द्वारा अनुवाद पुरस्कार, बाल साहित्य पुरस्कार एवं युवा लेखन पुरस्कार भी प्रतिवर्ष विभिन्न भारतीय भाषाओं में दिए जाते हैं, इन तीनों पुरस्कारों के अंतर्गत सम्मान राशि पचास हजार नियत है।
2.
भारत के संविधान में शामिल 22 भाषाओं के अलावा, साहित्य अकादमी ने अंग्रेज़ी तथा राजस्थानी को भी उन भाषाओं के रूप में मान्यता दी है जिसमें अकादमी के कार्यक्रम को लागू किया जा सकता है।
3.
साहित्य अकादमी पुरस्कार 24 भाषाओं के लेखन को सम्मानित करता है इसमें असमिया, बोडो, डोगरी, अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, राजस्थानी, संताली, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू तथा उर्दू भाषा शामिल हैं.
4.अन्य साहित्य अकादमी पुरस्कार:
क). साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार लेखकों द्वारा बाल साहित्य में उनके योगदान के आधार पर दिया जाता है और पुरस्कार वर्ष से तुरंत पहले के पाँच वर्षों के दौरान पहली बार प्रकाशित पुस्तकों से संबंधित है।
ख). साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 35 वर्ष और उससे कम आयु के लेखक द्वारा प्रकाशित पुस्तकों से संबंधित है।
5.
हिन्दी में दिए गए साहित्य अकादमी पुरस्कारों की सूची :-
#वर्ष - #लेखक - #कृति - #शैली
१९५५ माखनलाल चतुर्वेदी - हिमतरंगिनी - काव्य
१९५६ वासुदेव शरण अग्रवाल - पद्मावत संजीवनी व्याख्या - व्याख्या
१९५७ आचार्य नरेन्द्र देव - बौद्ध धर्म दर्शन - दर्शन
१९५८ राहुल सांकृत्यायन मध्य एशिया का इतिहास इतिहास
१९५९ रामधारी सिंह 'दिनकर' - संस्कृति के चार अध्याय भारतीय - संस्कृति
१९६० सुमित्रानंदन पंत - कला और बूढ़ा चाँद - काव्य
१९६१ भगवतीचरण वर्मा - भूले बिसरे चित्र - उपन्यास
१९६२ पुरस्कार वितरण नही #विशेष
१९६३ अमृत राय - प्रेमचंद: कलम का सिपाही - जीवनी
१९६४ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'- आँगन के पार द्वार - काव्य
१९६५ डॉ॰ नगेन्द्र रस - सिद्धांत (विवेचना) - विवेचना
१९६६ जैनेन्द्र कुमार - मुक्तिबोध - उपन्यास
१९६७ अमृतलाल नागर -अमृत और विष - उपन्यास
१९६८ हरिवंशराय बच्चन - दो चट्टाने - काव्य
१९६९ श्रीलाल शुक्ल - राग दरबारी - उपन्यास
१९७० राम विलास शर्मा - निराला की साहित्य साधना - जीवनी
१९७१ नामवर सिंह - कविता के नये प्रतिमान - साहित्यिक आलोचना
१९७२ भवानीप्रसाद मिश्र - बुनी हुई रस्सी - काव्य
१९७३ हजारी प्रसाद द्विवेदी - आलोक पर्व - निबंध
१९७४ शिवमंगल सिंह सुमन - मिट्टी की बारात - काव्य
१९७५ भीष्म साहनी - तमस - उपन्यास
१९७६ यशपाल - मेरी तेरी उसकी बात - उपन्यास
१९७७ शमशेर बहादुर सिंह - चुका भी हूँ मैं नहीं - काव्य
१९७८ भारतभूषण अग्रवाल - उतना वह सूरज है - काव्य
१९७९ सुदामा पांडेय 'धूमिल' - कल सुनना मुझे - काव्य
१९८० कृष्णा सोबती - ज़िन्दगीनामा - ज़िन्दा रुख़ - उपन्यास
१९८१ त्रिलोचन - ताप के ताये हुए दिन - काव्य
१९८२ हरिशंकर परसाईं - विकलांग श्रद्धा का दौर - व्यंग
१९८३ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना - खूँटियों पर टँगे लोग - काव्य
१९८४ रघुवीर सहाय - लोग भूल गये हैं - काव्य
१९८५ निर्मल वर्मा - कव्वे और काला पानी - कहानी संग्रह
१९८६ केदारनाथ अग्रवाल - अपूर्वा - काव्य
१९८७ श्रीकांत वर्मा - मगध - काव्य
१९८८ नरेश मेहता - अरण्या - काव्य
१९८९ केदारनाथ सिंह - अकाल में सारस - काव्य
१९९० शिव प्रसाद सिंह - नीला चाँद - उपन्यास
१९९१ गिरिजाकुमार माथुर - मैं वक्त के हूँ सामने - काव्य
१९९२ गिरिराज किशोर - ढाई घर - उपन्यास
१९९३ विष्णु प्रभाकर - अर्द्धनारीश्वर - उपन्यास
१९९४ अशोक वाजपेयी - कहीं नहीं वहीं - काव्य
१९९५ कुंवर नारायण - कोई दूसरा नहीं - काव्य
१९९६ सुरेन्द्र वर्मा - मुझे चाँद चाहिये - उपन्यास
१९९७ लीलाधर जगूड़ी - अनुभव के आकाश में चांद - काव्य
१९९८ अरुण कमल - नये इलाके में - काव्य
१९९९ विनोद कुमार शुक्ल - दीवार में एक खिड़की रहती थी - उपन्यास
२००० मंगलेश डबराल - हम जो देखते हैं - काव्य
२००१ अलका सरावगी - कलिकथा वाया बाईपास - उपन्यास
२००२ राजेश जोशी - दो पंक्तियों के बीच - काव्य
२००३ कमलेश्वर - कितने पाकिस्तान - उपन्यास
२००४ वीरेन डंगवाल - दुष्चक्र में सृष्टा - काव्य
२००५ मनोहर श्याम जोशी - क्याप - उपन्यास
२००६ ज्ञानेन्द्रपति - संशयात्मा - काव्य
२००७ अमरकांत - इन्हीं हथियारों से - उपन्यास
२००८ गोविन्द मिश्र - कोहरे में कैद रंग - उपन्यास
२००९ कैलाश वाजपेयी - हवा में हस्ताक्षर - काव्य
२०१० उदय प्रकाश - मोहन दास - कहानी
२०११ काशीनाथ सिंह - रेहन पर रग्घू - उपन्यास
२०१२ चंद्रकांत देवताले - पत्थर फेंक रहा हूँ - काव्य
२०१३ मृदुला गर्ग - मिलजुल मन - उपन्यास
२०१४ रमेशचन्द्र शाह - विनायक - उपन्यास
२०१५ रामदरश मिश्र - आग की हँसी - काव्य
२०१६ नासिरा शर्मा - पारिजात - उपन्यास
२०१७ रमेश कुंतल मेघ - विश्व मिथक सरित सागर - साहित्यिक समालोचना
२०१८ चित्रा मुद्गल - पोस्ट बॉक्स न. २०३ नाला सोपारा - उपन्यास
२०१९ नंदकिशोर आचार्य - छीलते हुए अपने को - कविता
२०२० अनामिका - "टोकरी में दिग्गंत - काव्य
२०२१ : ???
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भारतीय काव्य शास्त्र==महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. वास्तविक काव्यलक्षण का प्रारंभ किस आचार्य
से होता है जिन्होंने शब्द और अर्थ के सहभाव
(शब्दार्थो सहितौ काव्यम )को काव्य की संज्ञा दी है == भामह से
2. शब्द अर्थ संगम सहित भरे चमत्कृत भाय।
जग अद्भुत में अद्भुतहिँ ,सुखदा काव्य बनाए ||”
पंक्ति है ====ग्वाल कवि( रसिकानंद)
3. प्रतिभा के दो भेद (सहजा और उत्पाद्या ) किसने किये==रुद्रट ने
4. प्रतिभा को काव्य निर्माण का एकमात्र हेतु मानने के कारण किस आचार्य के प्रतिभावादी कहा जाता है ==पंडितराज जगन्नाथ को
5. प्रतिभा के दो भेद कारयित्री और भावयित्री किस आचार्य ने किए हैं == राजशेखर ने
6. भावयित्री प्रतिभा किसमे होती है==सहदय् में
7. भारतीय काव्यशात्र में ‘भावक, से अभिप्राय है?
===सहदय् या आलोचक से
8. शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली” कथन किसका है==दण्डी का
9. रीति सिद्धांत की उपलब्धि है ==
शैली तत्वों को महत्व देना
10. वामन के अनुसार गुण और रिति का संबंध है =अभेद
11. आचार्य कुंतक के अनुसार वक्रोक्ति के कितने भेद हैे =6
12. व्क्रोक्ति सिद्धांत की महत्वपूर्ण उपलब्धि है===कलावाद की प्रतिष्ठा
13. कव: कर्म काव्यम् , (कवि का कर्म ही काव्य है )
कथन किसका है
कुन्तक का
14. औचित्य विचार चर्चा ,ग्रंथ किस आचार्य का है =
क्षेमेंद्र का
15. क्षेमेंद्र के अनुसार औचित्य के प्रधान भेद हैं
===27
काव्यशास्त्र महत्वपूर्ण प्रश्न भाग-2(kaavyshastr quiz)
16. क्षेमेंद्र ने रस का प्राण किसे माना है = औचित्य को
17. ध्वन्यालोक, की टीका ध्वन्यालोक लोचन किसने लिखी ==अभिनवगुप्त ने
18. ध्वनि सिद्धांत का प्रादुर्भाव व्याकरण के स्पोट सिद्धांत
से हुआ है
19. वैयाकरण ने वाक् (वाणी) के कितने प्रकार माने है?=4
१•परा, १•पश्यंती, ३•मध्यम, ४•बैखरी
20. आनन्दवर्धन का समय है =नवीं शती का मध्य
21. आनन्दवर्धन ने व्यंग्यार्थ के तारतम्य के आधार पर काव्य के कितने भेद किये है==3
ध्वनि, गुणिभूत व्यंग, चित्र
22. आनन्दवर्धन ने ध्वनि के कितने प्रकार माने है=3
वस्तु ध्वनि, अलंकार ध्वनि,रसध्वनि
23. आनंद वर्धन के अनुसार रीति के चार नियामक है =
वक्त्रोचित्य , वाच्योचित्य , विषयोचित्य , रसोचित्य
24. अभिनव गुप्त ने ध्वनि के कितने भेद किए हैं ==35
25. मम्मट ने के ध्वनि के शुद्ध भेदों की संख्या स्वीकार की है ==51
26. पंडित राज जगन्नाथ काव्य के कितने भेद किए हैं =4
उत्तमोत्तम=उत्तम=मध्यम=अधम
27. आचार्यो ने व्यंग्यार्थ की प्रधानता गौणता एवं अभाव के आधार पर काव्य के कितने भेद किए हैं =3
उत्तम =मध्यम=अधम
28. आधुनिक काल के प्रारंभिक समय में से सेठ कन्हैयालाल पौद्दार ने काव्यकल्पद्रुम नामक ग्रंथ की रचना की जो
आगे चलकर रसमंजरी और अलंकार मंजरी के रुप में प्रकाशित हुआ
29. ह्दय दर्पण नामक ग्रंथ की रचना किसने की =
भट्टनायक ने
30. हिंदी वक्रोक्ति जीवित् की भूमिका किसने लिखी =नगेंद्र ने
31. रस निरुपण के प्रथम व्याख्याता और रस निरुपण का प्रथम ग्रंथ किसे माना जाता है =
भरत मुनि व् उनके नाट्यशास्त्र को
32. भरत ने 8 स्थाई भाव ,,8 सात्विक भाव,, 33संचारी भावों का उल्लेख किया है
33. किस आचार्य ने रीती को काव्य की आत्मा मान कर रस के गुण के अंतर्गत स्थान दिया है और कांति गुण का वर्णन करते हुए रस से युक्त माना है =वामन
34. आचार्य रुद्रट ने शांत रस का स्थाई भाव किसे माना है ===समयक ज्ञान
35. रस को ध्वनि के साथ युक्त करने का श्रेय किसे है ==आनंद वर्धन को
36. भोज ने 12 रसों का विवेचन किया है जिनमें चार नवीन है =प्रेयस=शांत=उदात्त=उध्दत
37. भोज ने रस का मूल किसे माना है= अहंकार को
38. वाक्य रसात्मक काव्यम् कथन किसका है =विश्वनाथ का
39. आचार्य शुक्ल ने काव्य की आत्मा किसे माना है
=रस को
40. भट्टलोल्लक ने रस की अवस्थिति किसमें मानी है=अनुकार्य में
41. किस आचार्य ने रस सूत्र की व्याख्या के संधर्भ में काव्य में तीन शक्तियों की कल्पना की =अभिधा =भावक्त्व=
भोजकत्व **भट्टनायक ने
42. अभिनव गुप्त रस को मानते हैं =व्यंग
43. किस आलोचक के मतानुसार साधारणीकरण कवि की अनुभूति का होता है =नगेंद्र के अनुसार
44. भारतीय काव्यशास्त्र में भावक से अभिप्राय है =
सहदय् या आलोचक से
45. भावक(सहदय्) के कितने प्रकार माने गए है = 4
1 अरोचकी [विवेकी]
2 सतृणाभ्यव्हारि [अविवेकी]
3 मत्सरी [पक्षपात पूर्ण आलोचना करने वाला]
4 तत्त्वाभिनिवेशी
काव्यशास्त्र महत्वपूर्ण प्रश्न भाग-2(kaavyshastr quiz)
46. विभाव के कितने भेद हैं =2[आलम्बन और उद्दीपन ]
47. आलंबन विभाव के कितने भेद हैं =2
१•आलंबन २•आश्रय
48. सात्विक अनुभाव की संख्या कितनी मानी गई है =आठ
49. आचार्य शुक्ल ने विरोध और अविरोध के आधार पर संचारियों के कितने वर्ग किये हैं =चार
१•सुखात्मक २•दु:खात्मक ३•उभयात्मक
४•उदासीन
50. श्रृंगार को मूल रस किस आचार्य ने माना है=भामह ने
51. भक्ति रस का रस को मूल रास किसने माना है=
मधुसूदन सरस्वती एव रूप गोस्वामी ने
52. शंकुक के अनुसार भरतमुनि के रस सूत्र में आये “संयोग ” शब्द का अर्थ है =अनुमान
53. रस सिद्धांत के संबंध में तन्मयतावाद के प्रतिष्ठापक है= अभिनव भरत
54. एक के बाद एनी अनेक भावों का उदय होता है तो उसे कहते है = भाव सबलता
55. अवहित्था और अपस्मार क्या है ?==
संचारी भाव का एक प्रकार
56. किस आलोचक के मतानुसार साधारणीकरण कवि भावना का होता है =नगेंद्र
57. अभिधा ,,भावकत्व और भोग काव्य के तीन व्यापार किस आचार्य ने माने हैं =भट्टनायक ने
58. भाव-सन्धि ,,भाव सबलता तथा भाव -शांति किस भाव की प्रमुख स्थितियां है =संचारी भाव की
59. अलंकार संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य है =भामह
60. भरत मुनि ने कितने अलंकारों का उल्लेख किया है ?
=4
१• उपमा २• रूपक ३• दीपक ४•यमक
61. अलंकार रत्नाकर नामक ग्रंथ के रचयिता है =
शोभाकर मित्र
62. दण्डी ने गुणों की संख्या कितनी मानी है =10
63. आचार्य भोज ने अनुसार गुणों की संख्या है =24
64. वामन ने गुणों की संख्या मानी है =20
65. मम्मट,, भामह तथा आनंद वर्धन ने गुणों के भेद माने है =3
66. गुणों के प्रमुख भेद है =3
१•माधुर्य १ •औज ३• प्रसाद
67. वृत्ति का सर्वप्रथम वर्णन किस ग्रंथ में मिलता है=नाट्यशास्त्र में
68. भारतीय काव्यशास्त्र में कितनी काव्य वृत्तियां मानी ग मानी गई है =3
१•परुषा २•कोमल३•उपनागरी
69. सर्वप्रथम दोष की परिभाषा किस आचार्य ने प्रस्तुत की=वामन ने
70. दंडी में कितने काव्य दोषों का वर्णन किया है =10
71. वामन ने कितने काव्य दोषों का वर्णन किया है =20
72. विश्वनाथ ने कितने दोषों का वर्णन किया है =70
73. काव्य दोषो का सर्वप्रथम निरुपण किस ग्रंथ में मिलता है =भारत कृत नाट्य शास्त्र में
74. दस के स्थान पर तीन काव्य गुणों की स्वीकृति प्रथम किस आचार्य ने की==भामह ने
75. प्रेयान नामक नवीन रस की उद्भावना किस आचार्य ने की।=रुद्रट
76. आलोक का हिंदी भाष्य किसने लिखा= आचार्य विश्वेश्वर ने
77. भावप्रकाश नामक ग्रंथ के रचयिता है=शारदातनय
78. दण्डी ने कितने काव्य हेतु माने है =3
१• नैेसर्गिकी प्रतिभा
२• निर्मल शास्त्र ज्ञान
३•अमंद अभियोग[अभ्यास]
79. रुद्रट और कुंतक ने कितने काव्य हेतु माने है =3
१•शक्ति२•व्युत्तपत्ति३• अभ्यास
80. वामन ने कितने काव्य हेतु माने है =3
१• लोक,, २•विद्या ,,३•प्रकीर्ण
81. व्यंग के तारत्मय के आधार पर काव्य के कितने भेद माने जाते है =3
१•ध्वनि,,२• गुणीभूत व्यंगचित्र ,,३• चित्र
82. काव्यरुप(इंद्रियगम्यता) के आधार पर काव्य के कितने भेद है =2
१• दृश्य काव्य,, २•श्रव्यकाव्य
83. दृश्यकाव्य[ रूपक] के कितने प्रमुख भेद है =10
84. श्रव्यकाव्य के कितने भेद हैं =3
१•गद्य,, •२पद्य ,,३ चंपू [ गद्य- पद्यमय काव्य]
85. लक्षणा के कुल कितने भेद माने जाते हैं =12
86. किस लक्षणा को अभिधा पुच्छभूता कहते है=
रूढ़ि लक्षणा को
87. किस आचार्य ने लक्षणा के 80 भेदों का उल्लेख किया है =विश्वनाथ ने
88. मम्मट ने लक्षणा के कितने भेदों का उल्लेख किया है =12
89. किस काव्य को चित्रकाव्य कहा जाता है =
अधम काव्य को
90. बंध के आधार पर काव्य के कितने भेद हैं =2
१• प्रबंध,, २• मुक्त्तक
91. पूर्वापर सम्बन्ध निरपेक्ष काव्य -रचना को कहते हैं=मुक्त्तक
92. पूर्वापर सम्बन्ध निर्वाह -सापेक्ष रचना को कहते है =
प्रबंध
93. संस्कृत में साहित्य के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है =वाङ्मय
काव्यशास्त्र महत्वपूर्ण प्रश्न भाग-2(kaavyshastr quiz)
94. तात्पर्य,, क्या है ==अभिधा,, लक्षणा,, व्यंजना की तरह चौथे प्रकार की नई शब्द-शक्ति
95. भामह ‘अभाववादी ,कहलाते है क्योंकि ====
उन्होंने काव्य में ध्वनि की सत्ता स्वीकार नहीं की है
96. प्रतिभा मात्र को ही काव्य का हेतु आवश्यक सर्वप्रथम किसने माना ==हेमचंद्र ने
97. गुणिभूत व्यंग के कितने भेद होते हैं =8
98. वाच्यता असह,,का अन्य नाम है ==रस ध्वनि
99. भरत ने हास्य रस के कितने भेद माने हैं =6
100. कुंतक ने वक्रोति के भेद व् उपभेद माने है =
6 भेद ,,व् 41 उपभेद
पाश्चात्य काव्य शास्त्र
✡◼प्लेटो का समय है?
➤➤☑427-347 ई.पूर्व
◼प्लेटो का जन्म हुआ था?
➤➤☑एथेंस में
✡◼प्लेटो का मूल नाम था?
➤➤☑रिस्तोक्लीस
(प्लेटो अंग्रेजी नाम★ अफलातून अरबी नाम★प्लातोन गुरु प्रदत्त नाम)
✡◼प्लेटों किस प्रकार के दार्शनिक थे?
➤➤☑प्रत्ययवादी
◼प्लेटो ने काव्यहेतु स्वीकार किया है?
➤➤☑ईश्वरीय उन्मांद को
✡◼प्लेटो ने अपने किस ग्रन्थ मे काव्य-सर्जन प्रक्रिया या काव्य हेतु की चर्चा की है?
➤➤☑इओन नामक ग्रन्थ में
✡◼कला के मूल्य के सन्दर्भ मे प्लेटो का दृष्टिकोण था?
➤➤☑उपयोगितावादी और नैतिकतावादी
◼प्लेटो स्वयं एक कवि था इनकी कविताये किसमें संकलित है?
➤➤☑ऑक्सफोर्ड बुक ऑफ ग्रीक वर्स में
✡◼”दासता मृत्यु से भी भयावह है!” यह कथन किसका है
➤➤☑प्लेटो का (रिपब्लिक में)
✡◼अरस्तू का समय निर्धारित किया जाता है ?
➤➤☑=384-322ई.पू•
◼अरस्तु के ग्रन्थों की संख्या 400 बताई जाती है जिनमे तीन प्रमुख है?
➤➤☑
★पेरिपोइएतिकेस(काव्यशास्त्र 12 )
★तेखनेस रितोरिकेस(भाषा शास्त्र)
★ वसीयतनामा
◼अरस्तु के 3 प्रमुख ग्रन्थों में जो काव्यशास्त्र का ग्रन्थ है?
➤➤☑पेरिपोइएतिकेस
✡◼अरस्तु के के किस ग्रन्थ को दास प्रथा से मुक्ति का प्रथम घोषणा पत्र कहा जाता है?
➤➤☑वसीयतनामा
✡◼प्रथम काव्य शास्त्री जिन्होंने उपयोगी कला(art) और ललित कला (fine art) का भेद स्पष्ट किया?
➤➤☑अरस्तु ने
◼काव्य व्यापर में निरत मनुष्य अनुकरण जा विषय है ये कथन किसका है?
➤➤☑अरस्तू का
✡◼कविता को छंदोबद्ध अनुकृति किसने कहा?
➤➤☑अरस्तु
✡◼कविता को उत्तमोत्तम क्रम -विधान कहा है??
➤➤☑कालरिज
✡◼किसने प्रश्न उठाया कि ‘कौन कहता है कि कवि अनुकर्ता हैै? वह तो ईश्वर की तरह काव्य जगत का निर्माता है, स्वयं कर्ता है?
➤➤☑बूचर
✡◼लोंजाइनस ने उदात्त के कितने स्त्रोत गिनाए है?
➤➤☑=5
◼लोंनजाइस ने ‘शैली का सबसे जघन्य दोष कोनसे दोष को मानते है?
➤➤☑बालेयता
◼लोंजाइनस ने उदात्त के अवरोधक दोष माने?
➤➤☑=3
✡◼लोंजाइनस(लोंगिनुस यूनानी नाम)के पद रचना के विशेषण ‘अभिजात ‘से क्या तात्पर्य है?
➤➤☑उदात्त
✡◼ कविता को ‘व्यक्तित्व से पलायन’ कौन मानता है?
➤➤☑इलियट
✡◼तेन के सिद्धांत को अपूर्ण मानते हुए हडसन ने कौनसे तत्व का समावेश आवश्यक माना?
➤➤☑व्यक्तित्व व प्रतिभा
✡◼बार्कर महोदय ने अरस्तू की किस रचना को राजनीती के क्षेत्र में महान योगदान की संज्ञा दी है?
➤➤☑पोएटिक्स को (इसमे 26अध्याय है)
◼अरस्तू ने अनुकरण की व्याख्या इतिहास क्रम मे प्रमुख रुप से कितनी दृष्टियों से की गई?
➤➤☑3
✡◼नव्य क्लासिकी व्याख्या के प्रेरक थे?
➤➤☑होरेस
✡◼उदात्तता किसकी दृष्टि मे ‘वागाडंबर ‘है?
➤➤☑लोंजाइनस(लोंगिनुस यूनानी नाम)
◼प्रैक्टिकल क्रिटिसिज्म’ किसका ग्रन्थ है?
➤➤☑रिचर्ड्स
◼सेक्रेड वुड’ किसकी रचना है?
➤➤☑टी.एस. इलियट
✡◼लिरिकल बैलेडस’ किसने लिखा है?
➤➤☑विलियम वर्ड्सवर्थ
◼’पोयटिक्स’ किसकी कृति है?
➤➤☑अरस्तू
✡◼विखण्डनवाद’ के प्रवर्तक कौन हैं?
➤➤☑जॉ. देरिदा
✡◼अभिव्यंजनावाद के प्रवर्तक कौन हैं?
➤➤☑क्रोचे
✡◼लोंजाइनस (लोंगिनुस यूनानी नाम) के ग्रन्थ का नाम है?
➤➤☑ पेरिहुप्सुस
◼पेरिहुप्सुस एक__
➤➤☑मूलतः भाषणशास्त्र(रेटोरिक)का ग्रन्थ है
✡◼उदात्त का निरूपण सर्वप्रथम किसने किया?
➤➤☑केकिलिउस ने
✡◼उदात्त महान आत्मा की प्रतिध्वनि है!”यह कथन है?
➤➤☑लोंजाइनस का
✡◼विलियम वर्ड्सवर्थ ने किसके सह लेखन में लिरिकल बैलेडस’ नामक कविताओं का प्रथम संस्करण1778ई में प्रकाशित करवाया?
➤➤☑कोलरिज
◼वर्ड्सवर्थ 1795ई में किसके मित्र बने ?
➤➤☑कोलरिज के
◼स्वछंदतावादी काव्य आन्दोलन जा घोषणा पत्र किसको माना जाता है?
➤➤☑लिरिकल बैलेडस’ को
✡◼कविता प्रबल भावो का सहज उच्छलन है!” यह कथन किसका है?
➤➤☑वर्डसवर्थ का
◼काव्य और गद्य में अंतर केवल छन्द के कारण होता है!”यह कथन किसका है?
➤➤☑वर्डसवर्थ
◼सैमुअल टेलर कोलरिज का प्रमुख ग्रन्थ है?➤➤☑बायोग्राफिया लिटरेरिया
✡◼इमैजिनेशन” शब्द की उतपत्ति लैटिन के इमाजिनातियो से हुई है जिसका हिंदी अर्थ है?
➤➤☑कल्पना
◼बेनेदेत्तो क्रोचे का समय क्या है?
➤➤☑1866-1952ई.(इटली निवासी)
✡◼बेनेदेत्तो क्रोचे की पुस्तक जा नाम क्या है?
➤➤☑इस्थेटिक
✡◼आधुनिक सौन्दर्यशास्त्र का जनक माना जाता है?
➤➤☑बाउम गार्टन को
✡◼बेनेदेत्तो क्रोचे किस प्रकार के दार्शनिक थे?
➤➤☑प्रत्यवादी
( ये आत्मवादी भी माने जाते है)
✡◼क्रोचे ने कल निर्माण में किसको मूल कारण माना है?
➤➤☑प्रतिभा को
◼टॉमस स्टर्न्स इलियट का समय है?
➤➤☑1888-1965ई.अमेरिकी मूल निवासी
✡◼टॉमस स्टर्न्स इलियट को किस रचना और 1948 का नोबेल पुरस्कार मिला था?
➤➤☑द वेस्टलैंड पर
◼रिचर्ड्स और एम्पसन की शाब्दिक आलोचना पद्धति को किसने नीबू-निचोड़ आलोचना(Lemon Squeezer criticism) कहा है?
➤➤☑टी.एस इलियट ने
◼किसने रूचि -परिष्कार को आलोचना का अन्यतम प्रयोजन माना है?
➤➤☑टी.एस इलियट ने
◼रिचर्ड्स ने आवेगों के आधार और काव्य के कितने भेद किये है?
➤➤☑=2
★१•सजातीय(काव्य-अपवर्जी)जिसमे एक ही भाव का वर्णन हो
★२•विजातीय(काव्य-अन्तर्वेशी)जिसमे विरोधी भावो का संश्लेषण हो
◼रिचर्ड्स के अनुसार आलोचना का चरम बिंदु है?
➤➤☑सम्प्रेषण
◼रिचर्ड्स ने भाषा के कितने रूप माने है
➤➤☑=2 १•वैज्ञानिक २•रागात्मकन
✡◼आलोचना के क्षेत्र में न्यू क्रिटिसिज्म का सूत्रपात किससे माना जाता है?
टी.एस इलियट और रिचर्ड्स से
✡◼अस्तित्ववाद के प्रवर्तक किसको माना जाता है?
➤➤☑डेनिश विद्वान सारेन कीर्केगाड
◼सारेन कीर्केगाड का समय है?
➤➤☑1813-1855ई.
✡◼किसने घोषित किया कि”ईश्वर की मृत्यु हो चुकी है!”?
➤➤☑नीत्से
✡◼संरचनावाद की अवधारणा के प्रवर्तक कौन थे?
➤➤☑फर्दिनाद डी सास्यूर (1857-1913ई)
◼फर्दिनाद डी सास्यूर किस देश के निवासी थे?
➤➤☑फ्रांस के(भाषा वैज्ञानिक)
◼साहित्य और कला के क्षेत्र जा एक आंदोलन है जिसका जन्म प्रथम विश्व युद्ध के बाद फ़्रांस में हुआ ?
➤➤☑अतियथार्थवाद
◼अतियथार्थवाद के प्रबल समर्थक जिसने मिथ,ड्रीम एंड पोयम नाम प्रसिद्ध लेख लिखा?
➤➤☑हर्बर्ट रीड
◼अतियथार्थवाद का सम्बन्ध दादावाद से है दादावाद का प्रवर्तन किसने किया?
➤➤☑ट्रिस्टन ने 1916ई में
✡◼संरचनावाद को साहित्य के क्षेत्र में प्रचारित करने का श्रेय किसको जाता है?
➤➤☑रोलां बार्थ को
✡◼रोलां बार्थ संरचनावाद की वाख्या किस पुस्तक में की है?
➤➤☑द फैशन सिस्टम में
✡◼जादुई यथार्थवाद(Magic realism)पद का प्रथम प्रयोग किसने किया था?
➤➤☑फ्रेन्ज रोह ने
(जर्मन चित्रकारों के चित्रों का विश्लेषण करते हुऐ
✡◼जादुई यथार्थवाद(Magic realism)के प्रतिष्ठापक किसको माना जाता है?
➤➤☑बुअलो को
✡◼प्रतीकवाद का आरम्भ 19वीं शती में किस देश में हुआ?
➤➤☑फ्रांस में
✡◼फ्रांस में प्रतिकवाद के पुरस्कर्ता किसको माना जाता है?
➤➤☑वादलेयर को
✡◼प्रतिकवादियो ने किस कविता को अपना घोषणा पत्र माना है?
➤➤☑कॉरपॉन्डेस (सादृश्य)
◼कॉरपॉन्डेस (सादृश्य) कविता के लेखक है?
➤➤☑चार्ल्स वादलेयर
✡◼फ्रांस जा प्रथम कवि किसको माना जाता है?
➤➤☑ चार्ल्स वादलेयर
✡◼मार्क्सवाद के प्रवर्तक थे?
➤➤☑कार्ल्समार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
◼मनोविश्लेषणवाद के प्रवर्तक माने जाते है
➤➤☑सिंगमण्ड फ्रायड
◼सिंगमण्ड फ्रायड मनोविश्लेषणवाद का साहित्य मे प्रथम आलोचनात्मक प्रयोग किसने किया
➤➤☑जेम्स ने
शेक्सपियर के हैमलेट आलोचना में
◼रूपवाद आंदोलन का सूत्रपात सन1919ई. में रूस में किया?
➤➤☑विक्टर शक्लोव्स्की ने
✡◼प्लेटो का इयोन नामक ग्रन्थ सम्बंधित है?
➤➤☑नाट्यशास्त्र से
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काव्य शास्त्र के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न .....
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1 काव्यशास्त्र का प्रयोग भोजदेव ने सरस्वती कंठाभरण में किया ।
2 साहित्य जीवन की व्याख्या है - प्रेमचंद ने कहा ।
3 काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है - प्रसाद ने कहा ।
4 काव्य के दो भेद है - (1) दृश्य काव्य (2) श्रव्य काव्य
5 काव्य आत्माभिव्यक्ति है - नगेन्द्र ने कहा ।
6 भटनायक ने रस को सह्दय सामजिक का ह्रदय बताया ।
7 रामचंद्र शुक्ल आलंबत्व धर्म का साधारिकरण मानते है ।
8 श्यामसुन्दर दास ने सह्रदय के चित का साधारिकरण मानते थे ।
9 मिथक शब्द अंग्रेजी के मिथ और ग्रीक के माईथोस पर आधारित है ।
10 आनंदवर्धन ने रीति को सघटना नाम दिया ।
11 अलंकार का सर्वेप्रथम प्रयोग भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में मिलता है ।
12 ध्वनि के दो भेद है - (1) लक्षणमूलक (2) अभिधामूलक
13 रुद्रट ने प्रतिभा के दो भेद किये -(1) सहजा (2) उत्पाध्या
14 राजशेखर ने कवियों के तीन कोटि मानी - (1) सारस्वत (2) आभ्यसिक (3) ओपदेशिक
15 राजशेखर ने प्रतिभा के दो भेद माने - (1) कारयित्री (2) भावयित्री
16 कुंतक और रुद्रट ने शक्ति , व्युत्पति , अभ्यास को काव्य हेतु माना ।
17 आनंदवर्धन ने प्रतिभा , निपुणता , अभ्यास को काव्य हेतु माना ।
18 ममट ने शक्ति , निपुणता , अभ्यास को काव्य हेतु माना ।
19 रुद्रट ने रीति का सम्बन्ध रस से स्थापित किया और इनकी संख्या चार मानी - वैदर्भी , गोड़ी , पांचाली , लाटिया है ।
20 भोजराज ने रीति की संख्या छः मानी है - वैदर्भी , गोड़ी , पांचाली , लाटिया , अवंतिका , मागधी ।
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1. देवनागरी लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग किस राज्य में हुआ माना जाता है ?
A. उत्तर प्रदेश B.बिहार
C.गुजरात. D. राजस्थान
2. 'प्राची' का अर्थ है ?
A .प्राचीन B.नवीन C.पूर्व D.पश्चिम
3. 'भाषा के जादूगर' के रूप में कौन विख्यात है ?
A.जयशंकर B.निराला C.शिवपूजन सहाय D.यशपाल
4. मगही किस प्रदेश में बोली जाती है ?
A. मध्य प्रदेश B.बिहार.
C उत्तर प्रदेश D.राजस्थान
5.' गोस्वामी तुलसीदास' की अंतिम रचना कौन-सी है ?
A.विनय पत्रिका B.दोहावली C.कवितावली. D. हनुमान बाहुक
6.कबीरदास किस शासक के समकालीन थे ?
A. हुमायूं B. अकबर
C. सिकंदर लोदी D. बहादुर शाह
7. किस कवि को अपभ्रंश का बाल्मीकि कहा जाता है ?
A.प्रेमचंद B.हेमचंद्र C.सरहपा. D. स्वयंभू
8. प्रेमचंद्र की कौन सी कृति अंग्रेजों द्वारा जप्त कर ली गई थी ?
A.कायाकल्प B.सोजे वतन
C.निर्मला. D. ईदगाह
9. उत्तर अपभ्रंश को पुराणी हिंदी कहने वाले प्रथम विद्वान थे ?
A. हजारी प्रसाद B. रामचंद्र शुक्ल
C. रामकुमार वर्मा. D. चंद्रधर शर्मा गुलेरी
10. अपभ्रंश व्याकरण के रचयिता है ?
A. हेम चंद्र B.विद्यासागर
C. धनपाल D.अज्ञेय
___________________
उत्तर ..1.गुजरात 2.पूर्व 3.शिवपूजन सहाय
4.बिहार 5.हनुमान बाहुक 6.सिकन्दर लोदी
7.स्वयंभू 8.सोजेवतन 9.चंद्रधर शर्मा गुलेरी
10.हेमचन्द्र.
■★■
■■ संक्षिप्त परिचय :-
नाम : गोलेन्द्र पटेल
उपनाम/उपाधि : गोलेंद्र ज्ञान , युवा किसान कवि, हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय, काशी में हिंदी का हीरा ,कोरोजयी कवि एवं दिव्यांगसेवी
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) व एम.ए. (अध्ययनरत), बी.एच.यू.।
भाषा : हिंदी
विधा : कविता, कहानी, निबंध व आलोचना।
माता : श्रीमती उत्तम देवी
पिता : श्री नन्दलाल
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :
कविताएँ और आलेख - 'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,साहित्य बीकानेर’ आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।
विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं।
ब्लॉग्स, वेबसाइट और ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-
गूगल के 100+ पॉपुलर साइट्स पर - 'कविता कोश' , 'हिन्दी कविता', 'साहित्य कुञ्ज', 'साहित्यिकी', 'जनता की आवाज़', 'पोषम पा', 'अपनी माटी', 'द लल्लनटॉप', 'अमर उजाला', 'समकालीन जनमत', 'लोकसाक्ष्य', 'अद्यतन कालक्रम', 'द साहित्यग्राम', 'लोकमंच', 'साहित्य रचना ई-पत्रिका', 'राष्ट्र चेतना पत्रिका', 'डुगडुगी', 'साहित्य सार', 'हस्तक्षेप', 'जन ज्वार', 'जखीरा डॉट कॉम', 'संवेदन स्पर्श - अभिप्राय', 'मीडिया स्वराज', 'अक्षरङ्ग', 'जानकी पुल', 'द पुरवाई', 'उम्मीदें', 'बोलती जिंदगी', 'फ्यूजबल्ब्स', 'गढ़निनाद', 'कविता बहार', 'हमारा मोर्चा', 'इंद्रधनुष जर्नल' , 'साहित्य सिनेमा सेतु' , 'साहित्य सारथी' , 'लोकल ख़बर (गाँव-गाँव शहर-शहर ,झारखंड)' , 'हौसला' , 'साहित्य-रसाल' इत्यादि एवं कुछ लोगों के व्यक्तिगत साहित्यिक ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित हैं।
प्रसारण : राजस्थानी रेडियो, द लल्लनटॉप , वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)
अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित
काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।
सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022" और अनेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र।
मॉडरेटर : 'गोलेन्द्र ज्ञान' एवं 'कोरोजीवी कविता' ब्लॉग के मॉडरेटर हैं।
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