Friday, 27 March 2020




तेजस्वी कवि आज के
सैन हैं , युवा  काज  के ;
खिलाते रहे सर ताज के
हिन्दी साहित्य के लाज के!!-१

लक्ष्य के पथ जाना है मुझे
आँधी  आये  दीप  बुझे ;
फिर भी रूक नहीं सकता
मणि है साथ वही कहता!!-२

और आगे बढ़ चलो
साहित्य के घर चलो!!
आदित्य की तरह जलो
काव्य-परिवार में पलो!!-३
**काव्य-संवाद** से
रचना : २०१५
जन्म : ०५-०८-१९९९
कवि : गोलेन्द्र पटेल





**कविता का सम्मान**
कवियों  के  भाव  कविता

पाठकों के दिल को जीता ;

हम सबको उत्साहित करता

सर्वोत्तम  पथ  सामने  धरता!
कला कितना विशेष

लाता  नयी  परिवेश

कविता का-२....!!
जो अपना रूप बदलता रहता

हर  डगर  पर  चलता  कहता ;

सोच  में परिवर्तन  लाओ

कर्म कर कर्तव्य दिखाओ।
काव्य आचरण आँखों की मोती

प्रभावित करती इसी की ज्योति ;

जिस  जन ने जान  लिया

कविता का सम्मान किया!-२



कवि : गोलेन्द्र पटेल


कविता का सम्मान




**कविता का सम्मान**
कवियों  के  भाव  कविता

पाठकों के दिल को जीता ;

हम सबको उत्साहित करता

सर्वोत्तम  पथ  सामने  धरता!
कला कितना विशेष

लाता  नयी  परिवेश

कविता का-२....!!
जो अपना रूप बदलता रहता

हर  डगर  पर  चलता  कहता ;

सोच  में परिवर्तन  लाओ

कर्म कर कर्तव्य दिखाओ।
काव्य आचरण आँखों की मोती

प्रभावित करती इसी की ज्योति ;

जिस  जन ने जान  लिया

कविता का सम्मान किया!-२



कवि : गोलेन्द्र पटेल


औरत का औकात





**औरत का औकात**
आद्य औरत का अत्यंत

प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य हैं

मातृसत्तात्मक!
फिर भी हम

ऋग्वैदिक काल में आते हैं

जहाँ उषा है

उत्तम उम्मीद।
स्त्री का स्वतंत्र अस्तित्व

अनंत आकाश से ऊपर

अध्यात्म की शिक्षा-दीक्षा

समुद्र से गहरा मन:सागर
ऋचाएँ कंठस्थ थीं

वक्तव्यनिधि व्यक्त की

तर्क के तेराजू पर तौल।
वे महाविश्वविदुषी निम्न थीं

रोमशा ,अपाला ,उर्वशी ,

लोपामुद्रा ,विश्ववारा ,सिक्ता ,

निबावरी ,घोषा व सुलभा।
वैदिक युग में दो वर्ग

प्रथम *सद्योवधू* : विवाह के पूर्व

दूसरा *ब्रह्मवादिनी* : सम्पूर्ण जीवन
बुद्धि ,ज्ञान ,दर्शन ,तर्क ,

मीमांसा व साहित्य आदि

अध्ययन करती जैसे वेदवती
ऋषि कुशध्वज की कन्या

ब्रह्मवादिनी व महापंडिता

बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न स्त्री।
*काशकृत्स्नी* मीमांसा में विख्यात

याज्ञवल्क्य की पत्नी *मैत्रेयी* का नाम न पूछो

जनक सभा की विद्वगोष्ठी में विजेता *गार्गी*
अपने अद्भुत तर्कशक्ति से महर्षियों को मात देती

जिसमें प्रमुख थे याज्ञवल्क्य महाऋषि व उनके गुरु

चौंक उठी सामने झरोखे में बैठी रानी सभी।
रामायण काल में स्त्रियों के शिक्षक कभी

वाल्मीकि थे अत्रेयी के तो अगस्त्य मैत्रेयी के

पाण्डवों की मात कुन्ती अथर्ववेद में परांगत
और

अम्बा व शेखावत्य की शिक्षा

महाभारत की गरिमा है
बौद्ध युग में देखें तो

एक नहीं अनेक हैं थेरी

जिसमें थीं प्रमुख निम्न
शुभा ,सुमेधा, सुभद्रा ,अनोपमा ,

भद्रकुंडकेशा,जयंता ,गोतमी

वैशाली ,विशाखा व खेमा....
गुप्तकालीन गौरव प्रभावतीगुप्त

कश्मीर की शासिका सुगंध और दिद्दा

सोलंकी वंशी अक्का और भैला

राज्य कार्य के लिए इतिहास में विख्यात।
हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री नृत्यगीत

की अध्यापिका थी सखियों के बीच

प्रमाण है हर्षचरित व गाथासप्तशाती

रेखा ,रोहा ,माधवी ,अनुलक्ष्मी ,पाहई बद्धवही

व शशिप्रभा जैसी कवयित्रियों के कला कौशल का।
हम रजिया सुल्तान से रानी लक्ष्मीबाई

और अनेक भारतीय महिलाओं के

महान व्यक्तित्व से परिचित हैं ; जैसे-
कल्पना चावला ,इन्द्रा गाँधी ,सरोजनी नायडू ,लता मंगेशकर ,मीराबाई, सुभद्रा कुमारी चौहान ,महादेवी वर्मा एवं अन्य।
स्त्री चेतना का उत्खनन आधुनिक साहित्य का काम

हम वाल्मीकि , वेदव्यास व गौतम बुद्ध के

नारी नयन को छोडते हैं आते हैं हिंदी में
कबीर , तुलसी , जायसी व सुर से सीधे

प्रसाद , पंत ,निराला ,दिनकर ,प्रेमचंद ,

जैनेन्द्र ,यशपाल ,अज्ञेय एवं अन्य के पास
एक समय था

जब प्रसाद लिखते हैं *नारी तुम केवल श्रद्धा हो*

तब निराला कहते हैं: *वह तोड़ती पत्थर*
मैं चुपचाप पढ़ रहा हूँ

एक रचनाकार के भीतर का स्त्री

और आज के स्त्री का स्त्री।
कुछ लोग कैसे कहते हैं ?

आधुनिक स्त्रियों का स्थिति पहले से अच्छी है

पृथ्वी भी एक स्त्री है क्या इसकी स्थिति अच्छी?
नदी भी एक स्त्री है क्या इसकी?

या मेरे माँ की?

या मेरे पत्नी की?

या मेरे पुत्री की?
हे समाज के साईकिल का एक चक्का महापुरुष!

जब तक रहेगा

पितृसत्तात्मक!
कुशक्ति का घर में वास

तब तक रहेंगी

हाशिये पर स्त्री।
उपर्युक्त औरतों का औकात

ऋषियों ने ,महर्षियों ने ,शासकों ने , रचनाकारों ने

यहाँ तक की हमने और आप ने भी देखा
किसी पौधे के पुष्प का पूर्ण विकास

जिस प्रकार कली के पूर्ण विकास में निहित है

ठीक उसी प्रकार पुरुष का उत्तम उत्थान

स्त्री के उत्तम उत्थान में।
अतः आज हम कह सकते हैं कि नारी

किसी भी कार्य में पुरुषों से पीछे नहीं हैं

खुद के उन्नति और देश के उन्नति के लिए
हमें अपने समान ही अपने घर के स्त्रियों को

समानता ,स्वतंत्रता व शिक्षा देनी ही होगी

अर्थात् मातृसत्तात्मक बराबर पितृसत्तात्मक।....
*-गोलेन्द्र पटेल*

रचना : 24/03/2020

**औरत का औकात** से

*मोबाइल नंबर : 8429249326

स्त्री (नारी , औरत , महिला , माँ ,माता , पत्नी , बेटी या पुत्री , नायिका, प्रेमिका...) // स्त्री - कविता // स्त्री पाठ





स्त्री!

तू औरत है

या नारी

या बेटी

या पत्नी

या माँ।
तू कौन?

क्या कामायनी का श्रद्धा?

या जायसी की पद्मिनी

या तुलसी का सीता

या कबीर का बहुरिया रूप

या सृष्टि का आद्यनायिका।
सच कहो ना

कि तुम्हीं परिवर्तन हो

बेटी से पत्नी से माँ में

और आद्यौरत से नारी से नारायणी में

या स्त्री से मर्द में।
सड़क पर जब देखता हूँ

आँचल की कमी

तब याद आती है

मुझे मेरी पत्नी।
जो कहती है आजकल

आर्य जब स्वर्णिम अक्षरों में

लिखें जा रहे हैं इतिहास

तब तुम्हारे रचनाकारों ने

यूहीं नहीं किया मेरा उपहास।
अमर कागज़ के स्याही को

शर्मिंदा करने पहुँच गई

लज्जा का ताज त्याग कर

अपने कर्मों के लेखा जोखा देने लगी जब

तब मेरे बच्चा का भूख स्तन की ओर ताका।
और मैं लाचार हो गई एक आँचल की कमी से

उसे डिब्बे का दूध पिलाया अन्तःमन में रोते रोते

मेरे इस रूदन के दर्द को एक नवयुवक कवि ने 

कविता में जगह दी अन्ततः मैंने अपने सपने

देखी सभ्यता व संस्कृति का चादर ओढ़कर
नयी कविता के नयी सरिता में

स्नान कर रही हैं अनेक स्त्रियाँ

जिसे देख आसमान का पंक्षी

पास आना चाहते हैं काव्यनदी के

और स्वर देना चाहते हैं सौंदर्य को।
कभी कभी कल्पना में प्रकृति

प्रेमिका पत्नी पुत्री और माँ का

रूप धर सीधे सीधे शब्दों के सीढ़ी से

यथार्थ के धरातल पर उतर आती है

जिसे देख दूनिया कहती है : वाह क्या अजूबा हैं नारी

क्या अद्भुत है शक्ति।।

-गोलेन्द्र पटेल

रचना : 10/3/2020


*माता सरस्वती का वंदना*

आज का उत्सव उत्साह
वीणा का पीड़ा अथाह
विद्या माता का आह?
देख सून राही का राह
कागज़-कलम का चाह
सिसकता रोता आगाह
कवि के संग एकांत पर्वत पर
बहता हुआ आँसू धीरे धीरे
तर्क के तराज़ू पर तौल तय
किया है निम्नलिखित तथ्य
चंदा से चढ़ा सुर्ती-चूना-पान
सोपाणी सिगरेट बीड़ी गाँजा-भाँग अश्लीलगान
अन्य नाद का प्रसाद।
उपरोक्त शोक का कारण।
लेकिन बौद्ध कहें तृष्णा
दिनचर्या में चतुर चोर
चित्तचक्षु चाहता चातुर्भद्र
पुरुषार्थ : धर्म ,अर्थ ,काम व मोक्ष
भक्ति प्रज्वलित प्रत्यक्ष या परोक्ष
परोसता शील-समाधि-प्रज्ञा पथ
और दृढ़ प्रतिज्ञा पुष्प पुण्य रथ
परन्तु पूजा के आड़़ में साड़
चर रहे हैं विद्यार्थियों के फ़सल
परीक्षार्थियों के समय संबल
भयावह स्थिति में आज
आनंद ही आनंद ले रहा समाज।
क्या कभी सूँघ पायेगा सत्यगंध?
खदकते चावल या उबलते खाड़ में
हे साहित्य! हे संस्कार!
हे आदित्य! हे संसार!
हे सरस्वती सत्यसार!
हे मिट्टी के चूल्हे को धूप सोखाने वाली!
हे ज्ञान के भूखों का भोजन पकाने वाली!
हे शब्दों का लिट्टी-चोखा खाने वाली!
हे माता मुधर गीत संगीत गाने वाली!

सृष्टि में पुनः सद्बुद्धि बुद्धज्ञान दे!
दृष्टि में पुनः दिव्यधर्म धर्यध्यान दे!
वृष्टि में पुनः आकाशामृत दान दे!
-गोलेन्द्र पटेल
रचना : 30-01-2020

COVID19 // Coronavirus // Wuhan virus // Chinese virus // WHO // #COVID19 || कोरोना और साहित्य


Coronavirus 【COVID-19)】: WHO 2020
                     -Golendra Patel

क्रोना वायरस से रहे सावधान चीन की यात्रा से बचे।
चीन में फैले कोरोना वायरस (जिसे वुहान वायरस भी कहा जा रहा है) को लेकर अब भारत में भी सतर्कता बरती जाने लगी है.
देश की राजधानी दिल्ली समेत मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरू, हैदराबाद, कोच्चि और कोलकाता हवाईअड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था की गई है. चीन और हांगकांग से लौटे यात्रियों की थर्मल जांच की जाएगी. यात्रियों को विमान में चढ़ने से पहले सेल्फ़ रिपोर्टिंग फ़ॉर्म भरना होगा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस संदर्भ में आपात बैठक बुलाई है. इस बैठक में डब्ल्यूएचओ यह तय करेगा कि कोरोना वायरस से फैल रही बीमारी को क्या अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य आपात काल घोषित करने की ज़रूरत है या नहीं.
अमरीका में भी वायरस के संक्रमण का एक मामला सामने आया है. स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यह शख़्स चीन के वुहान से अमरीका आया है.
यह नया कोरोना वायरस दिसंबर महीने में सबसे पहले पकड़ में आया था. लेकिन अब यह चीन की सीमा को पार करके दूसरे देशों में भी पहुंच चुका है.
ताज़ा मामलों की बात करें तो अमरीका के एक मामले से पहले थाईलैंड में दो और जापान में भी एक मामला सामने आ चुका है.सऊदी के एक अस्पताल में काम करने वाली केरल की नर्स इस जानलेवा वायरस से संक्रमित मिली हैं.
कोरोना वायरस के लक्षण

सिरदर्द

नाक बहना

खांसी

गले में ख़राश

बुखार

अस्वस्थता का अहसास होना

छींक आना, अस्थमा का बिगड़ना

थकान महसूस करना

निमोनिया, फेफड़ों में सूजन
कोरोना वायरस के कारण अमूमन संक्रमित लोगों में सर्दी-जुक़ाम के लक्षण नज़र आते हैं लेकिन असर गंभीर हो तो मौत भी हो सकती है.
जानलेना वारयस कोरोना हरियाणा में भी,  एहतियात रखें, सुरक्षित रहें
📣🔕🔇📣🔕🔇📣🔕

चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस अब भारत में पैर पसारने लगा है । हरियाणा में भी खतरनाक करोना वायरस के कुछ संदिग्ध मरीज मिले हैं । फिलहाल इन्हें गहन चिकित्सकों की देखरेख में रखा गया है. स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने इसकी जानकारी दी है । चंडीगढ़ में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने बताया कि इस महीने हरियाणा में चीन से 5 लोग आए हैं. इनमें से दो संदिग्ध मिले हैं. इनका इलाज सरकार की तरफ से किया जा रहा है और इनके पूरे परिवार पर भी नजर रखी जा रही है.हरियाणा सरकार ने पूरे प्रदेश में कोरोना वायरस को लेकर एडवाइजरी जारी कर दी है। कोरोना वायरस को लेकर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर तैयारियां का जायजा भी लिया है. हाल ही में चंडीगढ़ PGI में कोरोना वायरस के एक संदिग्ध को भर्ती करवाया गया है. जो एक सप्ताह पहले चीन से लौटा है।
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क्या है कोरोना वायरस?
कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है, जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है. इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है. इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था. डब्लूएचओ के मुताबिक, बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं. अब तक इस वायरस को फैलने से रोकना वाला कोई टीका नहीं है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?

इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्या उत्पन्न होती हैं. यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है. यह वायरस दिसंबर में सबसे पहले चीन में पकड़ में आया था. इसके दूसरे देशों में पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है.
क्या हैं इससे बचाव के उपाय?

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनके मुताबिक, हाथों को साबुन से धोना चाहिए. अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है. खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढककर रखें. जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों उनसे दूरी बनाकर रखें. अंडे और मांस के सेवन से बचें. जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें.

*"कोरोना" ने गाँव के दुकानदारों की कमाई बढ़ा दी...*

*अब "हंता" जो चूहों से फैल रहा है जनता को जन्नत दिखा रहा है। हे ईश्वर अल्लाह खुदा...! ये कब खत्म होगा?😢 😭*

आज एक रुपये की एक मर्चा

कैसे चलेगा मजदूरों की खर्चा
जो खुले गाँव में दूकान हैं अब

मूर्गा मुर्गी सुर्गी के भाव में सब

लेहसुन प्याज़ टमाटर..को रब

बेज रहे हैं, कोरोना आया जब
शहर से गाँव में "कर्ता" के साथ

घर वाले प्यार से मिलाया हाथ

सभी सदस्य हो गए रोगी नाथ
रात में खबर आई

भाई नया वाइरस "हंता"

जनता का हर रहा है प्राण
"कोरोना" का जनक चमगादड़

और मगरमच्छ हैं या कहूँ वुहान

जो भारत के घरों में नहीं रहता

पर "हंता" फैल रहा है चूहों से

जनता हो जाना सावधान....
छींक खाँसी सरदर्द जुकाम बुख़ार

साँस फूलना बदनदर्द और दो चार

यही सामान्य लक्षण कोरोना का
हंता के भी उपर्युक्त ही लक्षण

फेफड़ा-गुर्दा में वाइरसगण

धीरे धीरे छेद कर देते हैं

ब्लड प्रेशर बढ़ता झटका लगता

धडाम से गिरता एक मानव रोगी....

*-गोलेन्द्र पटेल*

*बीएचयू परिवार*
*#हांटावायरस : नाहक अकुलाहट और भय से बचिए।*
*चीन से कुछ ख़बरें एक दूसरे विषाणु हांटावायरस-संक्रमण की आ रही हैं। एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है और तीस से अधिक संक्रमण से ग्रस्त पाये गये हैं। सोशल मीडिया पर इस ख़बर से --- ज़ाहिर है , परेशान लोगों के अकुलाहट और बेचैनी बढ़नी ही थी।*
*हांटावायरस कोई एक विषाणु नहीं है , अनेक विषाणुओं का एक समूह है। चूहों को ये विषाणु संक्रमित करते हैं , पर उनमें रोग उत्पन्न नहीं करते। ऐसा विज्ञान का मानना है कि ये विषाणु चूहों की प्रजातियों के साथ ही लाखों सालों से विकसित होते रहे हैं : यह एक क़िस्म का कोइवॉल्यूशन है। एक ऐसा साहचर्य जिसमें दोनों एक-साथ बिना किसी को हानि पहुँचाए रहा करते हैं।*
*किन्तु इन संक्रमित चूहों के मल-मूत्र या लार से सम्पर्क में आने से मनुष्य में ये हांटावायरस पहुँच सकते हैं। शरीर के उनके भीतरी अंगों में इनके कारण दुष्प्रभाव पैदा हो सकते हैं। फेफड़ों व गुर्दों को ये विषाणु अधिक प्रभावित करते हैं : हांटावायरस हेमरेजिक फ़ीवर विथ रीनल सिंड्रोम एवं हांटावायरस पल्मोनरी सिंड्रोम इन विषाणुओं के दो प्रमुख रोग-प्रारूप हैं। ये बीमारियाँ विरली हैं , किन्तु इनके कारण मरीज़ों की मृत्यु भी होती गयी है।*
*हांटावायरस-रोगों का संक्रमण एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में होना बहुत विरल है। ऐसा न के बराबर देखा गया है। ऐसे में इन विषाणुओं का संक्रमण तभी सम्भव है , जब कोई मनुष्य किसी संक्रमित चूहे के मल , मूत्र या लार को सूँघ कर फेफड़ों में प्रविष्ट करा ले। चूहों के काटने , संक्रमित चूहों के मल-मूत्र-लार से युक्त किसी वस्तु को छूने अथवा ऐसा संक्रमित भोजन खाने से भी इन विषाणु-रोगों का होना पाया गया है।*
*बुख़ार , बदनदर्द , खाँसी , साँस फूलना जैसे लक्षणों वाले इन रोगों के कारण मरीज़ों में ब्लड प्रेशर का गिरना , शॉक और गुर्दों का फ़ेल होना पाया जा सकता है। हांटावायरस हेमरेजिक बुख़ारों की मृत्यु दर तीस प्रतिशत से भी ऊपर पायी जा सकती है।*
*हांटावायरस-सम्बन्धित संक्रमणों की मनुष्य-से-मनुष्य में पहुँचने की आशंका न के बराबर है। इसलिए वर्तमान कठिन समय में चीन में पुष्ट हुए कुछ मामलों के आधार पर यहाँ जनता को घबराये बिना कोरोना-विषाणु-सम्बन्धित पैंडेमिक के लिए अपने रोकथाम के उपायों पर पूरा अमल करते रहना चाहिए......*

*बीएचयू ने बनाई निम्न फिल्म-*https://www.facebook.com/2494193190655065/posts/3624299540977752/?sfnsn=wiwspmo&extid=wjStZKDc3hJn5QNL&d=n&vh=e
*अफवाहों से बचें : बीएचयू परिवार Whatsapp 8429249326*

*गॉड इज नॉट ग्रेट!*

***************

   21वीं सदी में दुनिया में जो पांच दस सबसे महान नास्तिक विचारक पैदा हुए हैं, उनमें से *रिचर्ड डॉकिंस* के बाद सबसे बड़ा नाम आता है, *किस्तोंपर हीचेन* का । उन्होंने 2007 में  *"गॉड इज नॉट ग्रेट"* नाम की किताब लिखी और उस किताब में उन्होंने  सैकड़ों सबूत दे कर यह साबित करने की प्रयास किया, कि पिछले 5000 साल में मानव जाति पर जितने भी महा भयंकर संकट आए हैं उस दौरान  दुनिया के किसी भी ईश्वर, अल्लाह या गॉड ने मानव जाति की कोई मदद नहीं की। *मानव जाति में जो मुश्किल से 5% बुद्धिमान लोग हैं जिन्होंने मानव जाति को हर संकट के समय कोई न कोई रास्ता ढूंढ कर दिया है ।*
    लेकिन धर्म के नाम पर जो लोग अपना पेट पालते हैं और अपने आप को धर्म का ठेकेदार और ईश्वर का  प्रतिनिधि समझते हैं उन लोगों ने *मानव जाति के जो 95% लोग है, और जो जन्मजात बुद्धिहीन है, और जो किसी न किसी काल्पनिक सहारे के बगैर जी ही नहीं सकते,* ऐसे लोगों को बार-बार धर्म ने अपने जाल में जकड़ कर रखा है। दुर्भाग्य से आज किस्तोंपर हिचेन हमारे बीच नहीं है, लेकिन कोरोना वायरस ने फिर एक बार किस्तोंपर हीचैन को सही साबित किया है। और यह भी साबित किया है कि कोरोना वायरस प्रकृति ने पैदा किया है, इंसान ने पैदा किए हुए ईश्वर गॉड और अल्लाह उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता । सिर्फ विज्ञान है जो उसे आज कंट्रोल करेगा।
   सभी धर्मों के ठेकेदारों का यह सनातन दावा है कि, ईश्वर इस ब्रह्मांड का निर्माता है और वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और हर जगह पर मौजूद है और उसकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता है ।
    दुनिया का सबसे बड़ा धर्म क्रिश्चन है और पूरी दुनिया के क्रिश्चन लोगों का सबसे बड़ा गुरु इटली के रोम शहर में रहता है, जिसे वेटिकन सिटी कहा जाता है। आजकल कोरोना के डर से इटली के सभी चर्च और वेटिकन सिटी लॉक डाउन है और उनका सबसे बड़ा धर्म गुरु यानी पोप कहीं छुप कर बैठा है। दुनिया का सेकंड नंबर का धर्म इस्लाम है और दुनिया भर में फैले मुसलमानों की सबसे पवित्र भूमि और पवित्र धर्मस्थल मक्का मदीना है,  वह भी आज पूरी तरह से बंद है। और दुनिया के तीसरे नंबर का धर्म यानी हिंदू धर्म और उसके सभी प्रसिद्ध धर्मस्थल जैसे कि चारों धाम, बालाजी मंदिर, शिर्डी के साईं बाबा का मंदिर, जम्मू के वैष्णो देवी का मंदिर और बहुत सारे छोटे-मोटे मंदिर आज लॉक डाउन है। दुनिया के किसी भी धर्म मे और किसी भी भगवान में इतनी ताकत नहीं है की वह कोरोना नाम के एक मामूली कीटाणु को रोक  सकें ।
   कोरोना वायरस ने फिर एक बार साबित किया है की ईश्वर, गॉड या अल्लाह यह सब पाखंड है । धर्म के ठेकेदारों ने बुद्धिहीन लोगों के अज्ञान और डर का फायदा उठाकर उनका शोषण करने के लिए दुनिया भर में बड़े-बड़े धर्मस्थल बना रखे हैं। और हजारों सालों से भोली भाली जनता के अज्ञान और डर का नाजायज फायदा उठा रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं।
   जब हजारों लोग मुंबई से शिरडी तक बिना चप्पल पहने हुए पैदल जाते हैं और साईं बाबा को अच्छी बीवी, अच्छी नौकरी, अच्छी संतान और धंधे मे मुनाफा मांगते हैं और समझते हैं कि साईं बाबा उनको यह सब कुछ दे देगा। यदि साईं बाबा या बालाजी या वैष्णो देवी या अजमेर शरीफ या फिर मक्का मदीना और वेटिकन सिटी अपने भक्तों की ऐसी छोटी मोटी मांगे और मुरादे पूरी करते है और मानव जाति का हमेशा हित और सुख देखते हैं, तो फिर आज सारे के सारे छुपकर क्यों बैठे हैं ? कोरोना में ज्यादा ताकत है या फिर ईश्वर, अल्लाह या गॉड में ज्यादा ताकत है ?
   विज्ञान कहता है 14 बिलियन साल पहले बिग बैंग के माध्यम से इस विश्व की निर्मिती हुई। और लगभग 5 बिलियन ईयर पहले पृथ्वी की निर्मिति हुई । इस पृथ्वी पर आज तक विज्ञान ने लगभग 8 मिलियन प्रजातियां आईडेंटिफाई की है, और मानव जाति होमोसेपियन 18 मिलियन प्रजातियों में से एक प्रजाति है। और इस विश्व के अनगिनत साल के इतिहास में मानव जाति का कोई अता पता नहीं था, मानव जाति मुश्किल से पिछले चार मिलियन साल से इस पृथ्वी पर आई है। आज तक कई प्रजातियां पृथ्वी में आई कुछ साल तक रही और जलवायु बदलते ही नष्ट हो गई। मानव जाति भी इस पृथ्वी पर हमेशा रहेगी इसका कोई भरोसा नहीं है। जिस तरह डायनासोर और न जाने कितनी प्रजाति है आई और गई और इंसान भी इनमें से एक मामूली प्रजाति है।
   इस विश्व को चलाने वाली एक शक्ति है इसे विज्ञान नेचर या प्रकृति के नाम से जानता है। और विज्ञान यह भी मानता है कि प्रकृति एक निश्चित नियमों के अनुसार इसको चलाती है। यदि इस प्रकृति पर काबू पाना है तो हमारे हाथ में सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है इस प्रकृति के रहस्य में नियमों को अनुसंधान संशोधन और प्रयोग के द्वारा जान लेना। आज तक विज्ञान ने प्रकृति के बहुत सारे नियमों को खोज लिया है और विज्ञान की खोज निरंतर जारी है। दुनिया के सारे धर्म हमको सिर्फ प्रकृति की पूजा करने की शिक्षा देते हैं और यह कहते हैं की पूजा करने से प्रकृति प्रसन्न होगी और हमारी मांगे और मुरादे पूरी करेगी। दुनिया के सारे धर्मों की यह मूलभूत शिक्षा ही सरासर झूठ है। विज्ञान ने इस बात को साबित किया है, पूजा पाठ करने से प्रकृति अपने नियम कभी नहीं बदलती यदि प्रकृति पर काबू पाना है तो उसका एकमात्र रास्ता है प्रकृति के नियमों को जानना। आज तक दुनिया में मानव जाति के सामने जितनी भी समस्याएं आई जैसे कि प्राकृतिक आपदाएं, और सभी प्रकार की संसर्गजन्य बीमारियां । किसी भी धर्म ने या धर्म गुरु ने या ईश्वर ने इनमें से एक भी बीमारियों का कोई इलाज मानव जाति को नहीं दिया । यह तो सिर्फ विज्ञान जिसने, मलेरिया इनफ्लुएंजा कॉलरा स्मॉल पॉक्स और कितनी बीमारी पर साइंस ने दवाइयां खोजी है और इन महामारीयों को हमेशा के लिए दुनिया से मिटा दिया है । कोरोना के ऊपर भी बहुत जल्द साइंस इलाज ढूंढ के निकालेगा ।
   आज तक मानव जाति के ऊपर जब भी कोई बड़ा संकट आता है तो सारे मानव अपने अपने तीर्थ स्थल पर जाकर भगवान अल्लाह या गॉड के सामने झुक जाते हैं, लेकिन कोरोना वायरस ने तो यह रास्ता भी बंद कर दिया है। अभी सिर्फ हमारे सामने एक ही रास्ता है और वह है विज्ञान का। सारे भगवान छुप कर बैठे हैं हमारे सामने सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है हॉस्पिटल का। यह रास्ता हमें भगवान ने नहीं विज्ञान ने दिया है। किसलिए कोरोना वायरस से कुछ सीख लो! विज्ञान वादी बनो और जाति धर्म के सांचे से बाहर निकल कर एक नजर से हर इंसान और प्रकृति से प्रेम करना सीखो ।
*C/p from FB Wall of Advocate Gopal Bhagat*

डॉक्टरों द्वारा कोरोना वायरस से मारे गए लोगो का पोस्ट-मोर्टेम करने के बाद इस वायरस से सम्बंधित बहुत अहम् जानकारी दी गयी गई | 
ये वायरस स्वास नली में जाकर म्यूकस की लेयर बना लेता है जो सॉलिड हो जाती है और स्वास नली बंद हो जाती है . इलाज़ के लिए डॉक्टर्स इसी नली को खोलने की कोशिश करते हैं और दवाई देते हैं, हलाकि इसमें कई दिन लगते हैं और पेशेंट क्रिटिकल हो जाता है. इससे बचने के कुछ उपाय है जो की नीचे है -
१. दिन भर समय समय पर गरम पेय का सेवन करें जैसे की कॉफी, चाय, सूप, गरम पानी| हर २० mins में गरम पानी पिए| ऐसा करने से मुँह सूखेगा नहीं और अगर कोई वायरस आ गया होगा तो वो पेट में चला जायगा और गैस्ट्रिक juices की वजह से ख़तम हो जायगा इसके पहले की वो lungs तक पहुंच के पकड़ बना पाए.
२. हर दिन antiseptic जैसे की विनेगर या लेमन या साल्ट और गरम पानी से गरारे करें .
३. वायरस बालो और कपड़ो में चिपक जाता है| किसी भी साबुन या डिटर्जेंट से वो मर जाता है| इसलिए बाहर से घर आते ही सबसे पहले बिना कहीं बैठे सीधे बाथरूम जाके नहा लें | अगर कपडे धो नहीं सकते तुरंत तो धुप में रख देख कपड़ो को |
४. मैटेलिक जगहों पर वायरस 9 दिन तक रह सकता है . इसलिए ऐसी कोई चीज़ हो तो उसे जरूर साफ़ करें|  सीढ़ीओं की रेलिंग, डोर हैंडल्स आदि को छूने से बचे और घर साफ़ करते रहे
५.  सिगरेट न पियें
६. हर 20 mins में 20 sec के लिए किसी भी झाग वाले साबुन से अच्छे से हाथ धोएं |
७. सब्जियां और फल खाएं | Zinc और विटामिन-c दोनों को बढ़ाने की कोशिश करें
८. जानवरो से ये इंसानो को नहीं हो सकता | ये इंसान से इंसान को होता है |
९. एहतियात बरते की आपको वायरल फीवर या नार्मल कोल्ड और फ्लू ना होने पाए क्यूंकि उससे इम्युनिटी सिस्टम (रोग से लड़ने की शरीर की क्षमता) कमजोर हो जाता है | ठंडा पानी या ठन्डे पेय ना पिएं
१०. अगर आपको इन दिनों कभी भी गला ख़राब या खांसी या खराश लगे तो ऊपर बताये गए सुझावों को तुरंत प्रयोग ही करें | वायरस शरीर में ३-४ दिन इसी तरह गले में रह कर lungs में पहुंच जाता है | इसलिए बचाव के तौर पर एवं कोई भी लक्षण आने पर ऊपर बताय तरीके अपनाये |
अपना ध्यान रखें और सभी को भेजे |
#मुझे_जीवन_बाद_में_चाहिए_पहले_भोजन

                                                   -भूखा
अब दो देशों के बीच #वाइरस को लेकर #कम्पटीशन चल रहा है।#कोरोना से लेकर #हंता तक का सफर #गाँव के #गरीब #जनता ,#किसानों,.... और #मजदूरों के घरों में एक ही जुआर #चूल्हा को जलाने पर मजबूर कर दिया है।...
जिसके पेट भर सकते हैं वो तो आराम से कई दिनों तक घरों में रहे सकते हैं पर उनका हाल तो सोच, समझो और फिल करो जो दिन में खटते हैं तो शाम को उनके बच्चें भोजन करते हैं।अब #दूकान भी बंद हैं जो खुलते हैं वहाँ दैनिक वस्तुएँ ऐसे बचे जा रहे हैं जैसे वही है कोरोना का असली दवा या फिर सदियों के हानि का एक ही दिन में पूर्ति का साधन।...
बहुत दुःख होता है जब देश के बच्चे भूखे सोते हैं मेरे सामने।मैं क्या वे भी #भूख के #भयंकर रोग को अनदेखा कर देश पर आई आफत के लिए #कुर्बानी देने को तैयार हैं।पेट में रोटी पहूँचाने की जगह #सांत्वना पहूँचा।घरों में रह कर अपने देश के #राजनीतिक दलालों के दुःख- दर्द समझ रहे हैं।...
कोरोना कहाँ है? किस आदमी के पास है?...
क्या जिसको कोरोना है? वो खुद अपने परिवार के सदस्यों जैसे-माता पिता भाई बहन बच्चों को कोरोना से ग्रसित कर सकता है.... तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए मान लें यह देश ही कोरोना से पीडित व्यक्ति का घर ; तो फिर वह कैसे अपनो को अपने दुःख का हिस्सा बनाएगा?...
वह जनता है कोरोना से पहले ही हमारे गरीब भाई बहन माता पिता बच्चे भूख के तडप की वजह से अनेक रोगों का शिकार हो जाएंगे।फिर इलाज क्या ईश्वर भी उन्हें नहीं बचा सकता।क्योंकि सरकारी अस्पतालों में जाने के लिए शक्ति ,साहस व विश्वास की जरुरत होती है जो उनके पास नहीं है।...
अतः आप सभी #महान #राजनेताओं, #समाज #सेवियों, #सरकारी-#प्राइवेट #महानुभावों, #गुरुजनों-#आचार्यों , #डॉक्टरों....तथा #विद्यार्थियों-#शोधार्थियों से अतिविनम्र साहित्यिक सहृदय सविनय निवेदन है कि भूखे परिवार को "कोरोना व हंता" के कहर में कम से कम एक वक्त का भोजन प्रबंध कराने का कष्ट करें।...

                                        #आत्मीय #धन्यवाद!
दृष्टिबाधित विद्यार्थियों का सेवक : #गोलेन्द्र #पटेल

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय : वाराणसी। #BHU


क्षीर सागर में नींद -/- प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल



'क्षीरसागर में नींद' कविता को पढ़ते हुए आप पायेंगे कि


सृजन एक जिम्मेदारी है| जिम्मेदारी कभी लापरवाह नहीं होने देती| इधर लापरवाही की हद तक जाकर कविता-सृजन का कार्य किया जा रहा है| जो ऐसा कर रहे हैं वे स्वयं को भले कवि मानकर चल रहे हों, कविता उनमें हो यह जरूरी नहीं है| सृजन के उत्स को जानना और उसकी जमीन को उर्वर बनाना आसान नहीं है| इधर यथार्थ और विमर्श के नाम पर बहुत कुछ परोसा जा रहा है जिसका न तो सम्वेदना से कोई लेना देना है और न ही तो परिवेश अभिव्यक्ति से| सभी एक ‘चिंगारी’ लेकर दौड़ लगा रहे हैं| जो दौड़ रहे हैं वह कविता की लहलहाती फसल को जलाने का कार्य कर रहे हैं| कवि जलाने की इस प्रक्रिया के खिलाफ है| वह ‘चिंगारी’ की जगह ‘आँच’ को प्राप्त करना चाहता है जिसमें सम्वेदनाओं को पकाया जा सके| सम्वेदनाएँ जब पकती हैं तो कविता हृदय से निकलकर मस्तिष्क तक को प्रभावित करती हैं| “हमें चिंगारी नहीं/ आंच चाहिए/ चिंगारियां तो जलाने के काम आती हैं/ हमारा काम तो पकाना है/ वह हांड़ी का चावल हो/ या अपने मूल से छिटके हुए शब्द|”

शब्द अर्थ देते हैं| जिन शब्दों से अर्थों की प्राप्ति होती है ‘विद्वान लोग’ उसे कल्पना लोक की उपज मानते हैं| कवि ऐसा नहीं मानता| वह मानता है कि “शब्द अगर अर्थ हैं तो इसी धरती पर हैं/ कि वे सब जगह हैं जिनसे जीवन सम्भव होता है|” ‘जिनसे जीवन सम्भव होता है’ उन ‘सब जगह’ शब्दों के होने की बात करना व्यावहारिक जीवन और यथार्थ परिवेश से काव्य-सम्वेदना ग्रहण करना है| जब आप किसी स्थिति या घटना को ‘घटित’ होते हुए देखते हैं तो कहीं गहरे में उसके प्रभाव और स्वभाव को आत्मसात कर रहे होते हैं| अनुभूतियाँ यहीं से सघन होती हैं| यहीं से सम्वेदनाओं का अंकुरण होता है और बाद में ‘काव्य-वृक्ष’ परिवर्तित होकर हमारे चिंतन-भूमि को पल्लवित करता है, न कि स्वप्नलोक में खोए रहने से| मनुष्य-हृदय की चिंतन-भूमि में“शब्दों के होने से यह दुनिया प्रकाशित है/ और अन्धकार से मुक्त भी |”
क्या कभी सोचा है आपने कि जिन शब्दों से दुनिया प्रकाशित होती है और जिनसे अंधकार से मुक्ति होती है, उन शब्दों को ‘सम्वेदना रूप’ का आकार कैसे देता है एक कवि? कैसे ‘चिन्तन-भूमि’ में उन्हें अंकुरित होने का ‘खाद-बिसार’ मुहैया करते हुए कोई सम्वेदना का प्रतिमूर्ति गढ़ता है? दरअसल जब तक हमारे चेतन हृदय में ‘चिंतन’ का प्राधान्य होता है हम चुप और शांत नहीं रह सकते| हम विमर्श करते हैं, विचार करते हैं| जिस समय ऐसा कर रहे होते हैं उस समय हर प्रकार की स्थिति मिल जाने वाली ‘रेत’ होते हैं| ऐसी रेत “जिसे हमारे भीतर का कलाकार/ हर वक्त एक आकृति में गढ़ता रहता है/ हमारा आकृति में होना/ हमारे जिंदा होने का निशान होना है|”  जो जिन्दा होते हैं वे श्रम करते हैं| जो श्रम करते हैं वे हर समय सार्थक करने और होने का उद्यम करते हैं| उद्यम करने की प्रक्रिया में “जो जिंदा हैं/ एक आकृति हैं/ दूसरे को गढ़ते हुए|”  इसी तरह ये शब्द बनते हैं और इसी तरह अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए एक ‘दूसरे को गढ़ने’ का उपक्रम करते हैं|
यह उपक्रम आसान नहीं होता| औसत बुद्धिमान और समझदार के मध्य द्वंद्व की स्थिति से जूझता रहता है कवि| वह कवि जो अतीत को साथ लेते वर्तमान को झेलते रहने का श्रम ही नहीं करता भविष्य को सुन्दर बनाने का प्रयास भी करता है| इस बीच कवि के पास एक ‘स्मृति’ होती है जो उसे अधिक सांस्कृतिक और भाउक बनाकर रखती है| परिवार और समाज से जुड़े रहने का भाव उसमें खूब होता है| ऐसा होना ही उसे कवि बना जाता है और सदैव जमीन पर रहने और उसे उर्वर बनाकर रखने के लिए प्रेरित करता है| इस अर्थ में “स्मृति का अच्छा होना/ अपने को ज्यादे सांस्कृतिक और कोमल बनाना है|” जिनके पास यह स्मृति नहीं होती उस रूप में ‘वे शीर्ष पर पहुँचते हैं/ और हमेशा ऊपर देखते हैं’ उन्हें किसी चीज के बनने बिगड़ने का कोई फर्क नहीं पड़ता| ऐसी स्थिति में “स्मृति का बुरा होना/ खुद को ज्यादे राजनैतिक और कठोर बनाना है|”
यहाँ जो शब्द, जो सम्वेदना और जो भाव बनते हैं वे ‘दूसरे को गढ़ने’ का नहीं ‘तोड़ने’ का उपक्रम करते हैं| लेकिन यदि एक कवि-हृदय और उसके हृदय में उठने वाली सम्वेदना की बात करें तो “कठोर और मुलायम के बीच/ बना रहता है एक तनाव/ जिसे एक कवि के अलावा कोई नहीं जानता” क्योंकि कवि जिम्मेदार होता है| सही और हानिकारक की स्थिति को पहचानता भर नहीं सृजन और सम्वाद के धरातल पर विचरण करते हुए जो भी करता है सार्थक करता है|
क्षीरसागर में नींद संग्रह की एक बहुत जरूरी कविता है ‘आलोचक’| वैसे तो यह कविता पढ़ते हुए आप हंसने को मजबूर होते हैं लेकिन जैसे ही होठ हंसी की मस्ती से गंभीरता की मुद्रा में आते हैं आप बहुत गंभीर होते जाते हैं| इस कविता के हवाले से कहें तो इधर हिंदी कविता में आलोचना पर संशय और विश्वास का दौर चल रहा है| आलोचक की प्रवृत्ति कहीं आक्रामक हो रही है तो कहीं सामंजस्यपूर्ण| विश्वास और अविश्वास की जमीन पर खड़ा आलोचक कहीं जिम्मेदारी के मूड में है तो कहीं लापरवाही की| कुछ ऐसे आलोचक हैं जिन्होंने ‘चाटुकारिता’ हद तक जाकर अपना स्वाभिमान गिरवी रख दिया है जिसके लिए इसी संग्रह की ‘चापलूस’ कविता को देखना जरूरी हो जाता है|
‘आलोचक’ कविता को पढ़ते हुए आप पाएंगे कि इधर कुछ आलोचक ऐसे दिखे हैं जिनमें स्थाईत्व नहीं दिखाई देती| भटकाव इस तरह है कि अपने ही स्थापनाओं का ध्यान नहीं| विमर्श के दौरान आलोचक से “जब कभी कविता की बात होती है/ वह कहानी बतियाने लगता है/ जब साहित्य की बात होती है/ वह उपनिषद बतियाने लगता है|”  कारण यह कि न तो वह कविता से उस हद तक जुड़ा हुआ है और न ही तो साहित्य से| कविता के समय कहानी की बात करना और साहित्य के समय उपनिषद की चर्चा करना आलोचक के विक्षिप्त होने की कहानी मात्र है| यथार्थ पर आदर्श की परिचर्चा और ‘निराला, मुक्तिबोध व प्रेमचंद’ के स्थान पर ‘वाल्मीकि व व्यास के सैकड़ों उदहारण’ रखना जहाँ उसके वैचारिक रूप से कमजोर होने की स्थिति का पता चलना है वहीं उसका ‘गाथा के विरुद्ध ऋक का आवाहन’ उसकी ‘मानसिक दुराग्रह’ की स्थिति को स्पष्ट करता है|
वैचारिक दुराग्रह में चिंतन का विकल्प तो कहीं रह ही नहीं गया है, यह भी इधर की एक बड़ी समस्या है आलोचना जगत की| यह यहाँ से समझिये कि “उसकी हर स्थापना एक बिंदु से शुरू होती है/ और सभी तरंगों को ख़ारिज करती हुई/ उसी बिंदु में समाहित हो जाती है|” जहाँ से उठना वहीं आकर समाप्त होना लकीर का फकीर होना है| साहित्य विस्तार की बात करता है और कविता वहां तक हमारे मस्तिष्क को ले जाती है जहाँ तक की कवि भी नहीं सोच पाता है| यह ठहराव मात्र आलोचक का ठहराव नहीं है अपितु कविता की सीमा को संकुचित करना है| कहने को इस कटेगरी में आने वाला आलोचक“एक खोजी आलोचक है/ जो हमेशा फेंकता रहता है नये पत्ते/ अपने पुराने पीपल की याद में/ जबकि सच तो यह है कि पुराना बचा नहीं है/ और नये में कोई गति नहीं है|” ‘
यहाँ पुराना’ से कवि का आशय ऐसे रचनाकारों से जिनमे इतनी सामर्थ्य नहीं कि वे समकालीनता की अवधारणा को सम्पुष्ट कर सकें और ‘नये’ से तात्पर्य उनसे है जो किसी तरह से परम्परा का दीप जलाए बैठे हैं| दीप जलाना अलग बात है और दीप के माध्यम से परिवेश को रोशनी देना एक दूसरी बात| यहाँ जरूरी हो जाता है कि हमारा प्रयास परिवेश को रोशनी देना हो, न कि दीप जलाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेना|
पिता के त्याग और संघर्षों को लेकर बहुत कम काम हुआ है समकालीन हिंदी कविता में| माँ पर बहुत लिखा गया है| सम्वेदना के सभी द्वार की ड्योढ़ी माँ से शुरू होती है और उसी से लगभग समाप्त हो जाती है| पहले तो जिक्र नहीं करता कोई और यदि करता भी है तो एक अपराधी की तरह कटघरे में उसे खड़ा कर दिया जाता है|
'क्षीरसागर में नींद' संग्रह में कवि ‘अलसाई उम्मीदें’, ‘पहरे पर पिता’, ‘पिता की रुलाई’, ‘देवदारु पिता’ कविताओं के माध्यम से यह बताने का प्रयास करता है कि वात्सल्य की भावना माँ के समान पिता में भी वर्तमान होती है| इतना कि “पिता हमारी नींद को लेकर/ अपने खांसने में भी सजग हैं.../ अब जब खाँसते हैं तो मुँह तोपकर खाँसते हैं” कि कहीं बच्चों की नींद पर इसका असर न पड़े| पिता बढ़ती उम्र की वजह से अपने वर्तमान को जितनी जिम्मेदारी से जीता है अतीत को याद भी करता है उसी सिद्दत से|
परिवार में उम्र के ढलान से उपेक्षित होने का दुःख भी उसे होता है और बच्चों द्वारा जिम्मेदारी के भाव को हथिया लेने का मलाल भी| कवि देखता है कि उपेक्षा और दुःख के इन्हीं वजहों से“आजकल पिता बात-बात पर रोते हैं/ रोना जैसे अपने होने को जीना है.../ जब वे रोते हैं तब अपने वर्तमान में होते हैं/ जब हँसते हैं तब अतीत में|”  वर्तमान कचोटता है तो अतीत गुदगुदाता है| वर्तमान से पिता अपदस्थ हो रहा होता है और अतीत उसे लुभा रहा होता है| पिता के लिए “हँसना जैसे बीते जीवन को फिर से देखना है!”
ऐसा जीवन जिसे उन्होंने खड़ा किया, संवारा, परिवार, समाज और परिवेश को बनाया| जहाँ पिता को सम्वेदना के धरातल पर लगातार उपेक्षित किया जाता रहा हो वहां उनके संघर्ष को कविता-सृजन का आधार बनाना सही अर्थों में एक बड़ा कार्य करना है| इन कविताओं से गुजरते हुए सहसा पुरुष-विमर्श की आवश्यकता महसूस होने लगती है तो वृद्ध-विमर्श की जरूरत भी|
विस्तृत समीक्षा का संक्षिप्त अंश : क्षीरसागर में नींद (कवि श्रीप्रकाश शुक्ल)
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कविता में जब जन-सरोकारों के संरक्षण की बात आएगी तो कवि की निष्क्रियता एवं निष्पक्षता को लेकर सवाल किया जाएगा| किसी भी देश के सांस्कृतिक समाज और सामाजिक संस्कृति की समृद्धि कवि-विवेक और कविता-सामर्थ्य पर निर्भर करता है| जनसामान्य यहाँ एक हद तक उत्तरदायी नहीं होता जितने कि बुद्धिजीवी| साधारण जनता से यह अपेक्षा इसलिए कम की जाती है क्योंकि दैनिक समस्याओं से जूझते हुए जीवन-यापन के संसाधनों की तलाश करना उसकी नियति होती है| वह इतना समय निकाल पाने में असमर्थ होता है कि सत्ता केन्द्रित षड्यंत्रों का प्रतिरोध कर सके| होता तो कवि भी नहीं फुर्सत में लेकिन स्वयं की समस्याओं से कहीं अधिक चिंता उसे जन-समस्या की होती है| जूझता कवि भी है लेकिन व्यक्तिगत समस्याओं से कहीं अधिक जन-सम्भावनाओं को सम्पुष्ट करने वाली स्थितियां उसके चिंतन-केन्द्र में होती हैं|   
इस अर्थ में एक जागरूक कवि कभी नहीं चाहेगा कि उसका लोक किसी की स्वार्थ-लिप्सा का भाजन बने| वह जागते रहने की ऐसी प्रक्रिया में होता है कि कोई गैरजिम्मेदारी की स्थिति पर टिका नहीं रह सकता| यहाँ कवि की भूमिका बढ़ जाती है| जब मैं यह कह रहा हूँ तो स्पष्ट होना चाहिए कि किसी कवि के लिए कह रहा हूँ, झोला उठाकर ‘कविता-क्रांति’ का विस्फोटक पदार्थ लेकर चलने वाले साहित्य-व्यापारियों के लिए नहीं| यहाँ यदि यह कहा जाए कि प्रतिरोध का एक मात्र विश्वसनीय आवाज, जिस पर विश्वास किया जा सकता है, कवि है, तो इसे अतिश्योक्ति न माना जाए| यह एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया होती है जिसमें आने के बाद कोई कवि शांत न बैठकर चौकन्ना रहता है| कहने को कह सकते हैं कि वह एक विशेष ‘चौकीदार’ की भूमिका में होता है लेकिन इस शब्द को अभी राजनीतिक फायदे और कायदे के लिए प्रयोग किया जा रहा है इसलिए यदि कहना चाहते हैं तो अभिभावक कह सकते हैं|
कवि अभिभावक होता है यह जोर देकर कहने और समझने की जरूरत है| कवि शब्दों का व्यापारी नहीं अपितु सम्वेदनाओं का सर्जक होता है| सृजन का माध्यम जो बनता है वह समय, समाज, जन और जीवन का महत्त्व समझता है| वह समझता है कि यह समय, जिसमें रहते हुए तमाम आशाओं के दीप बुझने के करीब पहुँच जाते हैं तो तमाम संभावनाएं पैदा होने से पहले ही मृत्यु के कगार पर खड़ी बंजर भूमि का आहार बन जाती हैं, ‘क्षीरसागर में नींद’ लेने का समय नहीं अपितु नींद से उठकर उद्यम-पथ पर बढ़ने का समय है| वह समझता है कि जब सभी के लिए सब धान बाईस पसेरी हैं तो श्रेष्ठता के पैमाने को निर्धारित करने का समय है यह| यह समय है उसकी नजर में लोगों को ‘सही और गलत’ के अंतर को समझाने का ताकि लोग ‘क्या हो रहा है’ के साथ दो कदम आगे बढ़कर अपना ध्यान ‘क्या होना चाहिए’ पर भी लगाएँ|
यहाँ कवि उनके प्रति संदेह से भर उठता है जो किसी के ‘कहे’ को स्वीकार कर अपने भाग्य का फैसला कर बैठते हैं, किसी स्थिति के ‘होने’ को अपनी नियति और समय का सच मान बैठते हैं| ‘कहे’ और ‘होने’ भर की स्थिति को अपना सब कुछ मान बैठने वाले लोग ही उसे पुरुषार्थ की संज्ञा देते हैं जबकि कवि ऐसे पुरुषार्थ को सीधे नकारता है; वह मानता है कि “यदि यही है हमारा पुरुषार्थ/ तो हम मानवीय आधारों पर इसे अस्वीकार करते हैं/ अस्वीकार करते हैं उन सभी शब्दों को जो/ जो कुछ के हो जाने/ हर कुछ के स्वीकर करने को/ घटित होता हुआ मान लेते हैं|” ऐसा कहते हुए कवि विरोध या प्रतिशोध का लबादा ओढ़कर चुप बैठने की स्थिति में नहीं होता क्योंकि यह हर स्वतंत्र ख़याल व्यक्तित्व को पता है कि “नहीं बंधी है हमारी नियति/ जो कुछ हो जाता है उसके होने से/ हम जो कुछ करते हैं/ होता वही है/ जो कुछ के होने से बड़ा और भारी|” जो यह जानता है और मानता है ऐसा वह निर्भीक होकर अपने मन की बात लोक में रखता है और रखे हुए बात को सवालों के घेरे में लाकर उत्तरदायित्व के निर्वहन के प्रति जिम्मेदार होने के लिए विवश करता है| विवशता की इस स्थिति पर लाना ही कविता की पहली ज़िम्मेदारी है|
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जिस कवि के दिल-दिमाग में “यात्रा भीतर यात्रा/ यात्रा भीतर घर/ घर भीतर यात्रा” होती है वह सम्पूर्ण परिवेश को निज-घर और समाज को अपने परिवार का अंश मान कर चलता है| वह यह भी मानकर चलता है कि सरहदों का निर्माण हम व्यावहारिक तौर पर करने से बचें| बंधन वहीं तक अच्छे लगते हैं जहाँ तक उनमें स्वाभाविकता बची होती है| बनी बनाई धारणाओं के आधार पर जब हम मानवीय स्वभाव को बंदिशों में कैद करना शुरू करते हैं तो उसका अतिक्रमण निश्चित होता है| इस अर्थ में“तुम मानो या न मानो/ सरहदों के पार जाने की छूट जहाँ नहीं मिलती/ सरहदें वहाँ रोज़ ही लाँघी जाती हैं|”  चेतना कभी भी बंधन को स्वीकार नहीं करती| चेतना सम्पन्न मनुष्य अपनी इच्छाओं के अनुसार चलता है| ज्ञान प्राप्ति से लेकर अगम सत्ता की खोज तक उसकी इच्छाएं सक्रिय होती हैं, तो टोने-टोटके से लेकर वैज्ञानिक आविष्कार तक अबाध गति से यही इच्छाएँ उसे शोध-ज्ञान में प्रवृत्त करती हैं|
कवि जब कहता है कि “पाँवों का इतिहास असल में मनुष्य की इच्छाओं का इतिहास है/ और मनुष्य की इच्छाएँ अपने समय के भूगोल से तय होती हैं/ जहाँ बाज़ार के उछलने के साथ/ पाँवों में भी उछाल आता है” तो वह यह समझाने का प्रयास कर रहा होता है कि जिसने कदम बढ़ाए हैं वह सहसा रुकने की गलती नहीं कर सकता| बाज़ार घाटे-मुनाफे की गुणा-गणित पर केन्द्रित होता जहाँ दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ रहा है यह चिंता न होकर हमें कितना फायदा होने वाला है यह आंकलन महत्त्वपूर्ण होता है| बाज़ार के उछाल पर मनुष्य का उठा हुआ कदम महत्त्वाकांक्षा की जमीन पर सरपट दौड़ने की अभिलाषा रखता है| इस अभिलाषा में ‘जीवन’ और ‘जन’ न होकर ‘धन’ की केन्द्रिकता होती है|  “एक खुला हुआ बाज़ार है/ जो दबी हुई आकाँक्षाओं की तरह/ आक्रामक है/ और फैलने को आतुर/ महाल की मलिन बस्तियों में धुएँ को समेटने की जल्दी है/ जिन्होंने धीरे-धीरे फैलाए अपने पक्के पाँव/ वे अब इसे अपने कंधे पर लेकर भाग रहे हैं/ एक धंधे की तरह”

जो निर्माण की प्रक्रिया से गुजरता है वह कभी विनाश की बात नहीं करता| उसके स्वप्न से लेकर कल्पना तक मात्र निर्माण होता है| विध्वंश की स्थितियां देखकर वह विचलित होता है| परेशान होता है| हतप्रभ होने की अंतिम स्थिति तक प्रयास उसका यही होता है कि सृजन की सम्भावनाएं जिन्दा रहें| विनाश का हितैषी ऐसा नहीं सोचता| वह एक उर्वर भावभूमि को विनष्ट करने का पूरा खेल खेलता है और उसे बंजर बनाने के लिए ‘विलायती’ कारनामों का प्रयोग करता है| बाज़ार कभी भी हमारे लोक का स्थाई विकल्प नहीं रहा| पक्का महाल टूटने की स्थिति पर जन की यह परिकल्पना कि “यहाँ एक बिग बाज़ार होगा/ जहाँ सब तरह की सामग्री सब प्रकार के दामों में उपलब्ध होगी"
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अलगाव शब्द से नफरत करने वाला ‘लोक’ विलगाव में नहीं होता| बनावटी सौंदर्य के सजावट में भी नहीं होता है लोक| लोक अपनी तरह की विवशता में हो सकता है| परेशानियों और विसंगतियों में हो सकता है लेकिन षड्यंत्रों में नहीं होता| फौरेबों और दलाली की प्रवृत्ति से सदैव स्वयं को सुरक्षित रखता है इसीलिए वह अपने जन के हृदय में स्थाई होता है| लोक का अपना सौन्दर्य होता है जो बनावटीपन से बहुत दूर वास्तविक और ईमानदार होता है| लोक की रवायतों में रचा-बसा जन अपनी संस्कृति और संस्कार के दम पर संसार में न होते हुए भी बड़े समय तक लोगों के दिल-दिमाग पर राज करता है| पक्का महाल से सम्बन्धित श्री प्रकाश शुक्ल“खुली आँखों से देखते हैं दृश्य तो/ बूढ़े मिसिर की आँखें दिख ही जाती हैं/ कुछ-कुछ गनी मियाँ के मलबे से मेल खातीं/ और एक अदृश्य-सा दलाल बेनीराम उभर ही आता है सामने/ जिसने हारते हुए हेस्टिंग्स को बचाया था|”
क्रमशः
विस्तृत के लिये इंतजार
-अनिल पाण्डेय
【गोलेन्द्र पटेल】


मैं!

वह हूँ

जो किसी का गुलाम नहीं

चाहे तुम वीर हो

चाहे तुम धीर हो

चाहे तुम ज्ञानी हो

चाहे तुम ध्यानी हो

चाहे तुम ईश्वर हो

चाहे तुम अमर हो

चाहे तुम जो हो

तुम सब मेरे गुलाम हो

मैं किसी का नहीं

लोग मुझे कहते हैं

समय!!
जय

विधि-विधाता

नियम-नियंता

आता-जाता

जी हाँ मैं ही हूँ

सृष्टि में अकेला निर्भय

महाकाल पर विजय-

पाने वाला सत्य!!

-गोलेन्द्र पटेल





काव्य का आलमारी -
जितना ही भरा रहा है
विद्वता प्रदर्शन के लिए
शिक्षा के प्रति जागरूक -
ग्रामीण विद्यार्थी उतना ही
नये नये कवियों के रचनाओं
को कुड़ा समझ रहे हैं
मैं तो बहुत खुश हो रहा हूँ
भाभीजी को यह देखकर
की नई कविता के कागज़ पर
बच्चे का मल उठा उसी के
साथ नई पद्यपंक को फेंक रही हैं
अरे भाभीजी!
आप ऐसा क्यों कर रही हैं
पढ़ीलिखी हैं दूरदृष्टि हैं आप -
जैसी विदुषी को देखकर
मुझे तो दुःख भी हो रहा हैं
जानना चाहते हो देवरजी
तो थोड़ा धैर्यध्यान से सुनो
जो काव्य दिल में जगह ही
नहीं बना सकता है पूज्य पूर्वजों की
साहित्यिक काव्य तुलना में कूड़ा हैं
कूड़ा करकट के स्थान पर
जब जाते हो , तो नई कविता
कैसे मलमूतर के गंध से घूँट रही होती है
आप अच्छे से देख सकते हैं कैसे रोती है
कवि की काव्यात्मा!!
ऐसा क्यों हुआ कविता के साथ
नई चेतना के पाथ कह रहा मन
पद्य का गद्य की ओर विस्थापन
मोह ही काव्यशास्त्र के मार्गदर्शन
पर न चलने को बाध्य कर
कवियों से कूड़ा बटोरवा रहा है
कविता का औषधालय काव्यशास्त्र रीत हैं
इसके बदौलत अतीत की कविता जीवित है
हमें काव्य के पूज्य परंपरा पथ पर
लौटना ही होगा-कहते डॉ. इंदीवर
जिससे कवि-काव्य की आयु बढ़ेगी
उस पथ पर मैं तो अवश्य ही चलूँगी
देवरजी! कविजी!
रचना : २९-१२-२०१९
-गोलेन्द्र पटेल

धनुर्धर // धनुर्धर(राम ,लक्ष्मण, मेघनाथ, रावण, अर्जुन, कर्ण, एकलव्य, भीष्म पितामह, द्रौणाचार्य, परसुराम, गोलेन्द्र पटेल....) // धनुर्विद्या // धनुर्धारी



*धनुर्धर*
शास्त्रों की अद्भुत विद्या
प्राचीनतम धनुर्विद्या भारत में
योद्धा युद्धों के महाविद्या
रामायण और महाभारत में
परमवीरों ने प्रयोग किया
रण में रणरक्तभोग किया
महाधनुर्धरों के धनुष बाण
सगेसंबंधियों के लिए प्राण
वाल्मीकिजी ने राम-रावण  
महायोद्धा मेघनाथ-लक्ष्मण
के महाधनुष संग्राम वर्णन
कर ,महाकाव्य को जीवन
प्रदान कर,पहुँच अन्तःमन
चिंतन मनन से कहे कथन
महान् धरोहर अमृत वचन
महाकवि कल्याण हेतु जन
रचते महाकृति महामंत्र बन
-गोलेन्द्र पटेल


जनविमुख व्यवस्था के प्रति गहरे असंतोष के कवि हैं संतोष पटेल

  जनविमुख व्यवस्था के प्रति गहरे असंतोष के कवि हैं संतोष पटेल  साहित्य वह कला है, जो मानव अनुभव, भावनाओं, विचारों और जीवन के विभिन्न पहलुओं ...