जो किसान उड़ान चक से दुखी हैं
प्रिय किसान साथियों, उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम, 1953, उत्तर प्रदेश में चकबंदी प्रक्रिया को विनियमित करने और किसानों को लाभ पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चकबंदी, जिसे ज़मीन समेकित करना भी कहते हैं, चकबंदी वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसानों के बिखरे हुए खेतों को एक साथ करके, उन्हें एक ही बड़े खेत में बदल दिया जाता है अर्थात् चकबंदी से किसानों के बिखरे हुए खेतों को एक साथ लाकर एक बड़ा और सुव्यवस्थित खेत बनाया जाता है। यह प्रक्रिया किसानों को खेती करने में आसानी प्रदान करती है और उत्पादन में वृद्धि में मदद करती है, लेकिन चकबंदी के दौरान कुछ किसानों को अपने पैतृक भूमि से दूर होना पड़ सकता है, उन्हें बिखरे हुए खेतों की जगह कम या अलग जगह पर जमीन मिल सकती है, जिससे उन्हें भावनात्मक नुकसान हो सकता है। बहरहाल, यदि चकबंदी से प्रशासन की चौकसी नज़र हटती है, तो भू माफिया 'चकबंदी के चम्मच' से मलाई खाते हैं।
किसानों की सहूलियत के लिए शुरू की गई चकबंदी की प्रक्रिया काफी अहम होती है, लेकिन इस प्रक्रिया की जानकारी किसानों को काफी कम होती है या गाँव स्तर पर कुछ प्रभावशाली लोग इस प्रक्रिया से आम लोगों को दूर रखना ही बेहतर समझते हैं। अगर किसान लगातार चकबंदी प्रक्रिया पर नज़र रखें और जानकारी लेते रहे तो चकबंदी उनके लिए सहूलियत भरी हो सकती हैं।
चकबंदी लेखपाल गाँव में जाकर अधिनियम की धारा-7 के तहत भू-चित्र संशोधन, स्थल के अनुसार करता है और चकबंदी की धारा-8 के तहत पड़ताल का काम करता है, जिसमें गाटो की भौतिक स्थिति, पेड़, कुओं, सिंचाई के साधन आदि का अकंन आकार पत्र-दो में करता है। इसके अलावा खतौनी में पाई गई अशुद्धियों का अंकन आकार-पत्र 4 में करता है। प्रारंभिक स्तर पर की गई पूरी कार्यवाहियों से खातेदार को अवगत कराने के लिए अधिनियम की धारा-9 के तहत आकार-पत्र 5 का वितरण किया जाता है, जिसमें खातेदार अपने खाते की स्थिति और गाटो के क्षेत्रफल की अशुद्धियाँ जान जाता है। धारा-10 के तहत पुनरीक्षित खतौनी बनाई जाती है, जिसमें खातेदारों की जोत सम्बन्धी, गलतियों को शुद्ध रूप में दर्शाया जाता है। सहायक चकबंदी अधिकारी द्वारा चकबंदी समिति के परामर्श से चकबंदी योजना बनाई जाती है और धारा-20 के तहत आकार पत्र-23 भाग-1 का वितरण किया जाता है। चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी द्वारा प्रस्तावित चकबंदी योजना को धारा-23 के तहत पुष्ट किया जाता है, जिसके बाद नई जोतों पर खातेदारों को कब्ज़ा दिलाया जाता है। अधिनियम की धारा-27 के तहत रिकॉर्ड (बंदोबस्त) तैयार किया जाता है, जिसमें आकार पत्र-41 और 45 बनाया जाता है। नए नक़्शे का निर्माण किया जाता है, जिसमें पुराने गाटों के स्थान पर नये गाटे बना दिए जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया की हर स्तर पर जाँच की जाती है। अगर कोई खातेदार इस प्रक्रिया से खुश नहीं है, तो खातेदार धारा-48 के तहत उप संचालक चकबंदी के न्यायालय में निगरानी वाद दायर कर सकता है।
मतलब, अगर कोई चकबंदी से खुश नहीं है, तो एसीओ के बाद चकबंदी अधिकारी (सीओ) के यहाँ अपील कर सकता है। इसके बाद एसओसी फिर, डीडीसी के यहाँ अपील की जाती है। यहाँ भी बात न बने तो हाई कोर्ट में अपील की जाती है। चकबंदी से संबंधित शिकायत करने के लिए, आप सबसे पहले चकबंदी अधिकारी (Settlement Officer, Consolidation) से संपर्क कर सकते हैं। अगर इससे समाधान न हो, तो आप राजस्व विभाग, SDM या न्यायालय में भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अगर भूमि विवाद गंभीर है या विवाद बढ़ रहा है, तो SDM (Sub Divisional Magistrate) के माध्यम से धारा 144 या 145 CrPC लगवाई जा सकती है। यदि धोखाधड़ी और जालसाजी भूमि के अवैध कब्जे का मामला है, तो सबसे पहले धारा 420 के तहत थाने में शिकायत दर्ज करना और फिर नागरिक मामले की प्रक्रिया शुरू करना सुझाया जाता है।
ऑनलाइन शिकायत के लिए, आप चकबंदी निदेशालय वेबसाइट पर जा सकते हैं या उत्तर प्रदेश के राज्य पोर्टल पर जा सकते हैं। आप चकबंदी निदेशालय, उत्तर प्रदेश सरकार के आधिकारिक वेबसाइट upconsolidation.gov.in पर भी जा सकते हैं। आप भूमि रिकॉर्ड देखने और चकबंदी प्रक्रिया की प्रगति की जाँच करने के लिए भूलेख यूपी पोर्टल (https://upbhulekh.gov.in/) पर जा सकते हैं।
चकबंदी से परेशान ग़रीब किसान ध्यान दें!आपका: गोलेन्द्र पटेल
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