तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव / गोलेन्द्र पटेल
(द्वितीय खंड)
यह तो ठीक है
लेकिन लोक में पुरुष का वर्चस्व है
उसके जीवन में मेहरारू का महत्व है
मगर महत्व सिर्फ इतना
कि वह वासना की वस्तु है
वर्तमान में इसी की सत्ता है
इसकी महत्ता है
कि यह स्त्री को गढ़ता है
इसे गढ़ने की कला परंपरा सीखाती है
पर पुस्तकीय पंचायत में विर्मश कहता है
कि ये एक-दूसरे के पूरक हैं
इन्हें हक है
कि ये आपस में लड़ें
झगड़ें
रूठें
अंततः करें आत्मालिंगन
बहरहाल किसी विधवा का विवाह
आज भी बहुत मुश्किल से हो पाता है
उनकी उम्र में अंतर इतना होता है
कि ३६ को ६३ मानने की आज़ादी है
आधुनिक प्यार लव-मैरिज का आदी है
जन! जानते हो
विशेष इस अर्थ में इनकी शादी है
कि अब इनकी बरबादी है
जहाँ जिरह से जीवन ज़हर हो गया है
यानी बहस की बात
दुख की गठरी सर पर लादी है
विश्व में
इस विडंबना को सहने वाली
स्त्रियों की बड़ी आबादी है
जो रोज़ रो रही हैं
और
खो रही हैं धैर्य-धर्म
स्त्री पतिव्रता होती है
परंतु पुरुष पत्नीव्रता नहीं
पुरुषार्थ है
पर स्त्र्यार्थ (स्त्री+अर्थ) नहीं
इस नहीं में शामिल है नर का नियम
प्रियतम!
नरत्व नारीत्व का नेता है
फिर भी
देवी का दरजा तो देता है
लेकिन सच्चाई यही है
कि सामाजिक शब्दकोश में
हम कमजोर हैं
सुकोमल हैं, मुलायम हैं,
नाज़ुक हैं,
सृष्टि की सुंदरता हैं,
धरती हैं,
नदी हैं, झील हैं
रोशनी हैं, रसोई हैं
उम्मीद हैं, आशा हैं
ज़िंदगी की जिजीविषा हैं,
जिज्ञासा हैं,
भूख हैं, भाषा हैं
अभिलाषा हैं
सृष्टि की शक्ति हैं
आदमी की अभिव्यक्ति हैं
आत्मानुभूति हैं
खैर,
ख़ुदा से जुदा होकर
भक्ति की खेती करना संभव नहीं है
चलो!
नौकाविहार करते हैं
प्रिये!
तुम मेरी भक्तिन हो
यह कहने की जरूरत नहीं है
न ही मुझे किसी को भक्त बनाने की चाहत है
पति-पत्नी के बीच विश्वास का होना जरूरी है
न कि भक्ति-भाव
प्रिये! मुझे नींद लग रही है
मैं सोना चाहता हूँ
नदी में
नाव को घाव
लगा है
पर वह जाना चाहती है
उस पार
काल का केवट कह रहा है
कि
एक अधेड़ उम्र
जिंदगी के इतिहास में
पहली बार
इतवार को
नदी के इस पार
मुझे किस किया
मैंने देखा
दिन ढल चुका है
अंधेरी रात में
वात्सल्य से वासना तक की
यात्रा
कर रही है
पहली मुलाकात
क्या है बात?
हालात
हँस रहा है
भँवर में भाव
फँस रहा है
वह पूछता है
कि आपके पतिदेव वृद्ध हैं
और
आप अभी अप्सरा लग रही हैं
आख़िर क्या रहस्य है?
वह कहती है
कि यह उम्र का अंतर है
जब हम दाम्पत्य के सूत्र में बँधें
तब वे 45 के थे
और
मैं 25 की थी
आज मैं 45 की हूँ
और
वे 65 के हैं
उम्र के उजाला में उलाहना ही उलाहना है
तरंगें कह रही हैं
कि कल तलाक की तारीख़ है
जैसे जल की सतह पर
पतवार की चीख है
वैसे ही मेरे भीतर पीड़ा की पीप है
और
कपाल के केश में लीख है
मेरे रूप के भावी भूप
दिल में दर्द का दीप है
एक-दूसरे से अलग होने की वजह है
विश्वास के बंधनों का टूट जाना
जिसकी जड़ में है
सफ़र के समय
रति की रेलगाड़ी का छूट जाना
अब मैं स्वतंत्र जीना चाहती हूँ
मेरी इच्छा
बिल्कुल नदी की
बहती धारा की तरह है
इसकी गति में ही मेरी प्रगति है
न्याय के नोटिस में नर की जय है
न्यायाधीश का
उसके पक्ष में निर्णय है
नारी के नयन में नीर
उसके शरीर का नहीं
बल्कि आत्मा की पीड़ा है
जो काट रहा है
वह कुल का क्रोधित कीड़ा है
बच्चे बड़े हैं
उनकी चिंता नहीं है
वह प्रथम प्यार की यादों में खोई हुई है
सूरज डूब रहा है सागर में
उमंगें टकरा रही हैं उर में
पर्वत-पहाड़ हिल रहे हैं
पेड़-पौधे झूम रहे हैं
एक-दूसरे को चूम रहे हैं
बाहर हवा में धूल ही धूल है
अंदर तूफ़ानी आँधी आई हुई है
अस्तित्व खतरे में है
प्रियतम!
मेरे पहले बलम
मुझे ले चलो
अपनी दुनिया में
मैं तुम्हारी बाँहों में मुहब्बत के मौसम की तरह
सोना चाहती हूँ
जैसे वह सो गया है
इस संसार के प्यार में
मृत्यु की अँकवार में
सजन!
मैं संवेदना के सिकहर पर लटकना चाहती हूँ
मगर वहाँ मेरी आँखों का तारा
तुम्हारी अंतिम निशानी
मुझे लटकने नहीं देगा
अब इस देह से मोह नहीं है
असल में मैं तो उसी दिन मर गई थी
जिस दिन तुम मरे थे
सुबह-सुबह हल्ला है
कि फलाने की मम्मी नदी में कूद कर जान दे दी
नदी में, कुएँ में
अक्सर प्रेम में पड़ी हुई स्त्रियाँ
कूदती हैं
यानी यहाँ कूद मरना नारी की
नियति है
लाश पुलिस ले गई है
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है
कि ये कूदी नहीं हैं
इन्हें मार कर फेंका गया है
हत्यारे की खोज जारी है
टीवी पर, सोशल मीडिया पर
समाचारपत्रों में
यह ख़बर वायरल हो रही है
कि उसे न्याय नहीं मिला
इसलिए उसने ख़ुदकुशी कर ली
कुछ दिनों के बाद
उसका बेटा बता रहा है कवि से
यानी मुझसे
कि उसके पिता ही
असली कातिल हैं
मित्र!
एक असुर का कहना है
कि पत्नी का कातिल होना
असल में आदमी की आदमियत की मृत्यु होना है
कम से कम इस संदर्भ में
हमारी जाति
अभी कलंकित नहीं हुई है
यानी हमें देवत्व का दंभ त्याग कर
असुरों की अच्छाई अपनाना चाहिए
तभी
हम सही अर्थ में मनुष्य हो पायेंगे
हमारे आसपास
धीरे-धीरे लोग जुटते हैं
हम अपने टॉपिक चेंज करते हैं
और
उसके एक प्रश्न के उत्तर में
मैंने कहा कि
मेरी दृष्टि में
जो पिता
या पति या पुत्र या प्रेमी
कभी
नहीं देता है स्त्री को दर्द
वही है
एक सच्चा मर्द
वह ननिहाल में पला-बढ़ा है
उसे नाना का पेशा पसंद है
वह पुरातत्वविज्ञान का प्रोफेसर बनना चाह रहा है
उसका जेआरएफ इसी वर्ष हुआ है
मेरी आँखें गवाह हैं
कि
उसकी करुण कहानी सुन कर
मेरा मन, मेरा दिल
आज
ख़ूब रोया है
क्या कल भी रोये गया
मेरा मन
प्रिय पाठक!
पूछ रही है मेरी सिसकी
तुम से
उत्तर दो!
(©गोलेन्द्र पटेल
28-11-2020)
नाम : गोलेन्द्र पटेल
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