Wednesday, 16 March 2022

तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव : गोलेन्द्र पटेल

 


तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव/ गोलेन्द्र पटेल


(प्रथम खंड)


सभ्यता और संस्कृति की समन्वित सड़क पर

निकल पड़ा हूँ शोध के लिए

झाड़ियों से छिल गयी है देह

थक गये हैं पाँव कुछ पहाड़ों को पार कर

सफर में ठहरी है आत्मा

बोध के लिए


बरगद के नीचे बैठा कोई बूढ़ा पूछता है

अजनबी कौन हो ?

जी , मैं एक शोधार्थी हूँ

(पुरातात्विक विभाग ,....विश्वविद्यालय)

मुझे प्यास लगी है


जहाँ प्रोफेसर और शोधार्थी

पुरातात्विक पत्थर पर पढ़ रहे हैं

उम्मीद के उजाले से उत्पन्न उल्लास

उत्खनन की प्रक्रिया में

खोज रही है

प्रथम प्रेमियों के ऐतिहासिक साक्ष्य

मैं वहीं जा रहा हूँ


बेटा उस तरफ देखो

वहाँ छोटी सी झील है

जिसमें यहाँ के जंगली जानवर पीते हैं पानी

यदि तुम कुशल पथिक हो

तो जा कर पी लो

नहीं तो एक कोस दूर एक कबीला है

जहाँ से तुम्हारी मंजिल

डेढ़ कोस दूर नदी के पास

फिलहाल दो घूँट मेरे लोटे में है

पी लो बेटा


धन्यवाद दादा जी!


उत्खनन स्थल पर पहूँचते ही पुरातत्वज्ञ ने

लिख डाली डायरी के प्रथम पन्ने पर

मिट्टी के पात्रों का इतिहास

लोटा देख कर आश्चर्य है

यह बिल्कुल वैसा ही है

जैसा उक्त बूढ़े का था

(वही नकाशी वही आकार)

कलम स्तब्ध है

स्वप्नसागर में डूबता हुआ

मन

सोच के आकाश में

देख रहा है

अस्थियों का औज़ार

पत्थरों के बने हुए औजारों से मजबूत हैं


देखो

टूरिस्ट आ गये हैं

पुरातात्विक पत्थरों के जादे पास न पहुँचे सब

नहीं तो लिख डालेंगे

इतिहास पढ़ने से पहले ही प्रेम की ताजी पंक्ति


किसी ने आवाज दी

सो गये हो क्या ?

शोधकर्ता सोते नहीं है शोध के समय

सॉरी सर!

कल की थकावट की वजह से

आँखें लग गयीं

अब दोबारा ऐसा नहीं होगा


ठीक है

जाओ देखो उन टूरिस्टों को

कहीं कुछ लिख न दें

( प्रिय पर्यटकगण! आप लोगों से अतिविनम्र निवेदन है कि

किसी भी पुरातात्विक पत्थरों पर कुछ भी न लिखें)


श्रीमान! आप मूर्तियों के पास क्या कर रहे हैं ?

कुछ नहीं सर!

बस छू कर देख रहा हूँ

कितनी प्राचीन हैं

महोदय! किसी मूर्ति की प्राचीनता पढ़ने पर पता चलती है

छूने पर नहीं

जो लिखा है मूर्तियों पर उसे पढ़ें

और क्रमशः आप लोग आगे बढ़ें


सामने एक पत्थर पर लिखा है

जंगल के विकास में

इतिहास हँस रहा है

पेड़-पौधे कट रहे हैं

पहाड़-पठार टूट रहे हैं

नदी-झील सूख रही हैं

सड़कें उलट रही हैं

सागर सहारा का रेगिस्तान हो रहा है

कुछ वाक्य स्पष्ट नहीं हैं

अंत में लिखा है

जैसे जैसे बिमारी बढ़ रही है

दीवारों पर थूकने की

और मूतने की

वैसे वैसे चढ़ रही है

संस्कार के ऊपर जेसीबी

और मर रही हैं संवेदनाएँ


आगे एक क्षेत्र विशेष में

अधिकतम मानव अस्थियां प्राप्त हुई हैं

जिससे सम्भावना व्यक्त किया जा सकता है

कि यहाँ प्राकृती के प्रकोप का प्रभाव रहा हो

जिसने समय से पहले ही

पूरी बस्ती को श्मशान बना दी


संदिग्ध इतिहास छोड़िये

मौर्य-गुप्त-मुगलों के इतिहास में भी नहीं रुकना है

सीधे वर्तमान में आइये

जनतंत्र से जनजाति की ओर चलते हैं


आजादी के बाद शहर में आदिवासियों के आगमन पर

हम खुश हुए

कि कम से कम हम रोज हँसेंगे

उनकी भाषा और भोजन पर

वस्त्र और वक्त पर

व्यवसाय और व्यवहार पर


बस कवि को छोड़ कर

शेष सभी पर्यटक जा चुके हैं

जो जानना चाहता है

प्राचीन प्रेम का वह साक्ष्य

जिस पर सर्वप्रथम उत्कीर्ण हुआ है

वही दो अक्षर

(जिसे 'प्रेम' कहते हैं / 

दो प्रेमियों के बीच /

संबंधों का सत्य / 

सृष्टि की शक्ति / 

जीवन का सार / 

प्यार-प्यार केवल प्यार)


पास की कबीली दो कन्याएँ

पुरातत्व के शोधार्थी से प्रेम करती हैं

प्रेम की पटरी पर रेलगाड़ी दौड़ने से पहले ही

शोधार्थी लौट आता है शहर

शहर में भी किसी सुशील सुंदर कन्या को हो जाती है

उससे सच्ची मुहब्बत


दिन में रोजमर्रा की राजनीति

रात में मुहब्बते-मजाज़ी की बातें

गंभीर होती हैं


प्रिये!

जब तुम मेरे बाहों में सोती हो

गहरी नींद

निश्चिंत

तब तुम्हारे शरीर की सुगंध

स्वप्न-सागर से आती

सरसराहटीय स्वर में सौंदर्य का संगीत सुनाती है

भीतर

जगती है वासना

तुम होती हो

शिकार

समय की सेज पर


संरक्षकीय शब्द सफर में

थक कर

करता है विश्राम

चीख चलती है हवा में अविराम


साँसों की रफ्तार

दिल की धड़कन से कई गुना बढ़ जाती है

होंठों पर होंठें सटते हैं

कपोलों पर नृत्य करती हैं

सारी रतिक्रियाएँ

एक कर सहलाता है केश

तो दूसरा स्तन को

एक दूसरे की नाक टकराती है

नशा चढ़ता है

ऊपर

(नाक के ऊपर)

आग सोखती हैं आँखें आँखों में देख कर

स्पर्श की प्रसन्नता --- अत्यंत आनंद


तभी अचानक

बाहर से कोई देता है आवाज

यह तो स्वप्नोदय की सनसनाहट है

देखो! वीर अपना बल

अपना वीर्य

अपनी ऊर्जा


प्रियतम!

क्यों हाँफ रहे हो

क्यों काँप रहे हो

मैं सोई थी

निश्चिंत फोहमार कर गहरी नींद में

मुझे बताओ

क्या हुआ?

तुम्हें क्या हुआ है?

तुम्हारे चेहरे पर

यह चिह्न कैसा है?

यौन कह रहा है

मौन रहने दो

प्रिये!


ठीक है

जैसा तुम चाहो


अल्हड़ नदी

मुरझाई कली के पास है

साँझ श्रृंगार करने आ रही है

तट पर

हँसी ठिठोली बैठ गई

नाव में


लहरें उठ रही हैं

अलसाई ओसें गिर रही हैं

दूबों की देह पर

इस चाँदनी में देखने दो

प्रेम का प्रतिबिम्ब

आईना है

नेह का नीर

दर्पण है नेह की देह

नाराजगी खे रही है पतवार

दलील दे रही है

देदीप्यमान द्वीप पर रुकने का संकेत

जहाँ रेत की रोशनी है

मगर रूठी है रेह


कितनी रम्य है रात

कितने अद्भुत हैं

ये पेड़-पौधे नदी-झील पशु-पक्षी जंगल-पहाड़

यहाँ के फलों का स्वाद

प्रिये! यही धरती की जन्नत है

हाँ,

मुझे भी यही लगता है


उधर देखो

हड्डियाँ बिखरी हैं

यह तो मनुष्य की खोपड़ी है

अरे! यह तो पुरुष है

इधर देखो

स्त्री का कंकाल है


ये कौन हैं?

जाति से बहिष्कृत धर्म से तिरस्कृत

पहली आजाद औरत का पहला प्यार

या दाम्पत्य जीवन के सूत्र

या आदिवासियों के वे पुत्र

जिन्हें वनाधिकारियों के हवस-कुंड में होना पड़ा है

हविष्य के रूप में स्वाहा

हमें हमारा भविष्य दिख रहा है

अंधेरे में


प्रियतम पीड़ा हो रही है

पेट में

प्रिये!

तुम भूखी हो

कुछ खा लो

नहीं , भूख नहीं है

तब क्या है?


तुम्हारा तीन महीने का श्रम

ढो रही हूँ

निरंतर

इस निर्जनी उबड़खाबड़ जंगली पथ पर

अब और चला नहीं जाता

रुको...रु...को

ठहरो...ठ...ह...रो

सुस्ताने दो


प्रिये!

मुझे माफ करो

मैं वासना के बस में था

उस दिन

आओ! मेरे गोद में

तुम्हें कुछ दूर और ले चलूँ

उस पहाड़ के नीचे

जहाँ एक बस्ती है

पुरातात्विक साक्ष्य के संबंध में गया था

वहाँ कभी

तो दो लड़कियों ने कर ली थी

मुझसे प्रेम

जिनकी भाषा नहीं जानता मैं

वे वहीं हैं

हम दोनों

उनके घर विश्राम करेंगे

निर्भय


गोदी में ही पूछती है

प्रियतमे!

तुम मुझे

कब तक ढोओगे?

प्रिये!

जन जमीन जंगल की कसम

जीवन के अंत तक

ढोऊँगा

तुम्हें

अविचलाविराम


मेरे जीने की उम्मीद

तुम्हारे गर्भ में पल रही है

तुम मेरी प्राण हो

तुम्हारा प्रेम मेरी प्रेरणा

देखो! सामने झोपड़ी है

जो , उसी की है

वह रहा उसका घर


आश्चर्य है प्रियतम

यह तो पेड़ पर बना है

केवल बाँस से

हाँ,

ये लोग खुँखार जानवरों से

बचने के लिए ही ऐसा घर बनाते हैं

बस अंतर इतना है कि हम शहरी हैं

ये वनजाति

(अर्थात् आदिवासियों के पूर्वज)

हम देखने में देवता हैं

ये राक्षस

खैर, ये सच्चे इंसान हैं


कबीलों वालों

मालिक आ रहे हैं

स्वागत करो!

बरगद के चउतरे पर कुश की चटाई बिछी है

जिस पर बैठे हैं वे यायावर

किसी के इंतज़ार

मालिक... मा...लि..क

यह लीजिए एक घार केला

यह लीजिए कटहर

यह लीजिए बेर

यह कंदमूल फल फूल स्वीकार करें

मालिक

हम कबीले की राजकुमारी हैं

सरदार कहता है

मालिक ये दोनों मेरी पुत्री

आपकी राह देख रही थीं

आपके आने से

कबीलीयाई धरती धन्य हुई

अब आप इन्हें वरण करें


आपको अपना परिचय

उस बार हम दोनों बहनें नहीं दे सकी

इसके लिए हमें क्षमा करना

ये कौन हैं?

मेरी पत्नी

जो आपकी भाषाओं से एकदम अपरचित हैं

ये पेट से तीन महीने की हैं

थक गई हैं

सफर में चलते चलते


हम दोनों आपके उपकारों का सदैव ऋणी रहेंगे

यह मेरा सौभाग्य है

कि मैं आप लोगों से पुनः मिल पा रहा हूँ


कुछ दिन बाद

दोनों शहर आ जाते हैं

जहाँ सभ्य समाज के शिक्षित लोग रहते हैं


क्या धर्म के पण्डित?

इस कुँवारी कन्या की भारी पैर पर व्यंग्य के पत्थर मारेंगे

या फिर इन्हें संसद के बीच चौराहे पर

जाति के संरक्षक-सिपाही बहिष्कृत-तिरस्कृत का तीर मारेंगे


कुछ भी हो

कंदमूल की तरह

दोनों ने दुनिया का सारा दुख एक साथ स्वीकार कर लिया

तुम्हारे हिस्से का अँधेरा भी कैद कर लिए

अपने दोनों मुट्ठियों में

ताकि

तुम्हें दिखाई देता रहे प्रकाशमान प्रेम

और तुम्हारी संतानें  सुखी रहें सदैव


प्रियतम !

पीड़ा पेट में पीड़ा... पी...ड़ा

आह रे माई ! माई रे !


गर्भावस्था की अंतिम स्थिति में

अक्सर अंकुरित होती है आँच

अलवाँती की आँत से आती है आवाज

प्रसूता की पीड़ा प्रसूता ही जाने


औरत की अव्यक्त व्यथा-कथा कैसे कहूँ?

मैं पुरुष हूँ


नौ मास में उदीप्त हुई

नयी किरण

किलकारियों की क्यारी में

रात के विरुद्ध

रोपती है

रोशनी का बीज

जिसे माँ छाती से सींचती है

नदी की तरह निःस्वार्थ


अवनि आह्लादित है

आसमान की नीलिमा में झूम रहे हैं तारे

चाँद उतर आया है

हरी भरी वात्सल्यी धरती के खेत में

चरने के लिए

फसल


प्रेम की पइना पकड़े

खड़े हैं

पहरे पर पिता

उम्र बढ़ रही है

ऊख की तरह

मिट्टी से मिठास सोखते हुए

मौसम मुस्कुराया है

बहुत दिन बाद बेटी के मुस्कुराने पर


सयान सुता पूछती है

माँ से

क्या आप मुझे जीने देंगी

अपनी तरह

क्या मैं स्वतंत्र हूँ

अपना जीवनसाथी चुनने के लिए 

आपकी तरह

आप चुप क्यों हो?


बापू आप बाताई

जिस तरह माँ ने की है

आपसे प्रेमविवाह

क्या मैं कर सकती हूँ?

धैर्य से उठाकर

पिता ने दे दी

धीमी स्वर में उत्तर

मेरी बच्ची तुम स्वतंत्र हो

शिक्षित हो

जैसा उचित समझो

करो


कॉलेज जाने का समय हो रहा है 

बाहर से एक आवाज़ आई 

कि चलो सखी

दूसरी आवाज आई कि आज वृक्षारोपण दिवस है

एक पुष्प का पौधा गम के गमले में लगाने के लिए ले लेना

तीसरी आवाज है 

कि मेरे पास गेंदा, गुलाब, गुड़हल और गूलर है

चौथी आवाज है

कि मेरे पास केवल इतिहास की घास है

जिसे आर्युवेद के आचार्य औषधि कहते हैं

यह चरवाहे की नज़र में चौपायों का चारा है

मुझे प्यारा है

सो मैंने इसे ही जड़ से उखाड़ ली

मगर मिट्टी को लेकर चिंतित हूँ 

कि इसकी उर्वरता

विपरीत परिस्थिति में कब तक बनी रहेगी


पाँचवीं आवाज वाहनों की आवाज़ में खो गई

भीतर से उसने कहा

कि आज खा कर नहीं आई हो क्या?

आओ! 

चाय पी कर चलते हैं


हे सखी!

वे भी आ रहे हैं

छठवीं आवाज है

कि हाँ,

भाभी! भइया पहुंच रहे होगें

आज तो मज़ा ही मज़ा है

चुप!

माँ आ रही है

लो,

तुम सब चाय पीयो

मैं पकौड़ी बना कर लाती हूँ

नहीं, मम्मी 

पकौड़ी रहने दीजिए

अभी हमें जाना है बाज़ार

कॉलेज के कुछ सामान खरीदने हैं

ठीक है

तुम सब ज़रा सम्भल के जाना

आजकल सड़कों पर 

चुनावी रैलियों की वजह से अक्सर जाम लगता है


दिन-प्रतिदिन एक्सीडेंट का दर बढ़ रहा है

देखी-देखा दुर्घटनाएँ हो रही हैं

फिर भी दृष्टि है

कि अनदेखी कर रही है सृष्टि की सच्चाई

या यह कहें 

कि वह सत्ता के वास्तविक सत्य से कोसों दूर देख रही है

बहरहाल तुम सब बहरी नहीं,

बल्कि बुद्धिमान हो

कोई कदम उठाने से पहले कुल के विषय में सोच लेना

असल में ज़िंदगी की यात्रा के नाम अपना अंतिम निर्णय कर देना है

नदी में नाव नहीं

बल्कि नाव में नदी को खेना है

गमी की गरमी में साथ संवेदना की बेना है

बच्ची! बात बहुत है

तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो


क्या यार!

तुम्हारी मम्मी तो महर्षिका विदुषी  हैं

जब देखो

उपदेश देती रहती हैं

नहीं, सखी!

माँ है न


माँ बनने पर

स्त्री

चिंता की चिता पर जीते जी जलती रहती है

ताकि 

उसकी औलाद आह्लादित रहे

जीवन भर


एक ने कहा कि सखी

मेरी माँ नहीं है

मैं जानती हूँ 

माँ की कमी की पीड़ा

दूसरी ने कहा कि मैं जानती हूँ

माँ होने का अर्थ

मेरा तन भले ही यहाँ है पर मन घर पर है

एक बच्चे की माँ हूँ न


उसने पूछा कि क्या सामान इसी दुकान से लेना है

हाँ,

इसी दुकान से लेना है

चलो!

अंदर चलते हैं

सौदाबाज़ी के बाद

कॉलेज गईं वे सब

जहाँ अब रोप रही हैं नन्हे पौधे


किसी ने पूछा कि सर

इसे कहाँ लगाऊँ

उत्तर :

मेरे सर पर

मैडम ने कहा कि क्यों सर लड़कियों पर क्रोध 

क्यों?

क्या आज मालकिन नाराज़ हैं?

और 

फिर हँसने लगीं

अचानक सभी आँखें कक्षाध्यापक की ओर 

मुड़ जाती हैं

हवा में हँसी गूँजने लगती है


कुछ क्षण के बाद 

याद आई

कि मुहब्बत के मुहूर्त में मिलना है पिछवाड़े

प्रियतम से


वह शौच का बहाना बनाकर जाना चाहती है

मगर उसे मालूम है 

कि मैदान और मूतवास न लगने पर भी सखियाँ 

इसमें सहयोग करती हैं

ये ऐसी क्रियाएँ हैं 

जो न चाहते हुए भी हो जाती हैं मित्रों के साथ

पर पेट दर्द के बहाने से जाती है कक्षा में

जहाँ केवल और केवल उसका प्रेम है

दोनों दीवार के पीछे

प्रेम की नयी परिभाषा गढ़ते हैं

अक्सर हम पैखाने में लिखा पढ़ते हैं

कि तुम सिर्फ़

मेरी हो

किसी के आने की आहट सुन कर

वह छुड़ाना चाहती है हाथ


जहाँ प्रेम का अंतिम लक्ष्य है

काम

वहाँ वह नहीं होता है

किसी ने ठीक ही कहा है

कि भावना में भावना का वरण करना है

दरअसल दर्द को निमंत्रण देना है

मुहब्बत बनाम बदनाम नाम

लेना है वाम हस्त में थाम

ख़बरों को ख़बर है 

कि

बिन मौसम बारिश और घाम का होना है 

सुबह-शाम

राग के रव में रोना है

खैर, 

पैर परंपरा की बेड़ियों से मुक्त है

मगर मुहब्बत की मर्यादाएं हैं


सुख समय की सेज पर जब एकदम के लिए सो जाता है

तब सूरज सागर में छुप जाता है

और 

आसमान में चाँद नज़र नहीं आता है

तकलीफ़ में टिमटिमाते तारे की तान है 

कि

प्रेम में प्रसन्नता का पल जल्द बीतता है

दुःख दलदल में दोनों को खींचता है

सरसराहट में सिसकने का स्वर सुनाई देता है

शोक में शोर संगीत के ख़िलाफ़ हो रहा है

गली-गली में हल्ला ही हल्ला है

धुन को धुनने का धूम मचा है

शायद ही कोई शब्द किसी के पेट में पचा है 

जिसका संबंध है प्रेम से

कह सकते हैं 

कि

संबंध की सरहद पर संग्राम हो रहा है

पिस्तौल के बजाय मुँह से गोलियाँ चल रही हैं


प्रेमियों के परिवार मारे जा रहे हैं

ताने की तोप से

व्यंग्य की बंदूक से

जहाँ देखो वहाँ एक ही वाक्य दुहराया जा रहा है

कि जैसी करनी वैसी भरनी

जब लड़की की माता-पिता ही भिन्न-भिन्न जातियों के हैं

प्रेम से परिणय तक की यात्रा बहुत कठिन है

किंतु करने वाले करते हैं 

जैसे कि वे दोनों दाम्पत्यजीवन के सूत्र में सुखी हैं

लेकिन उसकी लड़की की 

तकदीर की लकीर कुछ और है

वह पेट से है


आह! प्रेम की कैसी प्रगति है

उसके प्रेमी को जो कि बिना परिणय का पति है

जो अपने परिवार के विरुद्ध प्रेम को चुना

उसे ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ा

उसके ही लोग उसे बेमौत मार दिये हैं

जिसकी वजह से वह कुँवारी 

अब विधवा है

इस दुनिया में उसकी दुर्गति है

क्योंकि वह गर्भवती है

सच्ची मुहब्बत करने वाले भले ही मर जाते हैं

मगर मुहब्बत नहीं

मुहब्बत तो ज़िदा रहती है

लेकिन आज यह कहने में संकोच नहीं है 

कि रोष की रस्सी में सबकी बँधी मति है

कामदेव की रति चीख रही है

कि आधुनिकता की गति में प्रेम की क्षति है


उसके बच्चे क्या होगा?

जो अभी पेट में है

पता नहीं लड़की है या लड़का

ननद सहेली है

मगर वह इस वक्त अकेली है

उसे गोलेन्द्र पटेल की 'देह विमर्श' शीर्षक नामक

कविता याद आती है कि 

("जब

स्त्री ढोती है

गर्भ में सृष्टि

तब

परिवार का पुरुषत्व

उसे श्रद्धा की पलकों पर

धर

धरती का सारा सुख देना चाहता है

घर ;

एक कविता

जो बंजर जमीन और सूखी नदी की है

समय की समीक्षा --- ‘शरीर-विमर्श’

सतीत्व के संकेत

सत्य को भूल

उसे बांझ की संज्ञा दी।...")


जो भाइय के रिश्ते को स्वीकार करती है 

कुँवारे में गर्भवती होने को पाप नहीं,

पुण्य मानती है

उसे पता है कि

पवित्र प्रेम का फल है 

कि भाभी का भारी पाँव है

पर पूर्वजों का दाँव है

कि उनके लिए कहीं नहीं है छाँव 

न शहर में न गाँव में

चिड़ियाँ चुप हैं

नहीं कर रही हैं चीं-चीं चाँव-चाँव


नौ महीने आँखों में रही रात

नर्स घर की नाउन से बोली है 

कि बेटा हुआ है

नाना-नानी की बात

जग जान रहा है

जब किसी की बेटी को बेटा पैदा होता है

वह भी पहले दफा

तब नानी-नाना की ख़ुशी का क्या कहना

आप कल्पना कर सकते हैं

अपने घरों में देख सकते हैं

नाती के रूप में नये जीवन का आरंभ


वह अपने मायके में बच्चे को पालती है

पढ़ी लिखी है 

अध्यापन की नौकरी करती है

विधि का विधान है 

कि मनुष्य में भूलने की क्रिया अधिक सक्रिय होती है

जिसकी वजह से वह समय के साथ

बड़ी से बड़ी बात भूल जाता है

भूलना एक कला है

इससे हम सबका भला है


कुछ वर्ष बाद वह दूसरी शादी करती है

इसमें प्रेम नहीं समझौता है

कि पति की पहली पत्नी की एक बेटी है

और उसका एक बेटा

'हम दो हमारे दो' के सिद्धांत पर

जीवन के नये सूत्र में बँध गयी है

पर नये पति के पूछने पर कहती है

कि वह अपना पहला प्यार भूली नहीं है

यार यादों में है 

अब भी है 

और आगे भी रहेगा

हे प्रियतम!

जब तक ज़िंदगी है तब तक रहेगे तुम

मेरे हृदय में, मेरी साँसों में

मेरी धड़कन में, मेरे मन में


हे नव सजन! मेरे पति परमेश्वर!

आप भी मेरे हृदय में हैं

आप अपने को जब ढूँढेंगे मुझे में

सदैव पायेंगे

स्त्री आदमी की अनुभूति में होती है

उसका हृदय व्हेल के हृदय से भी बड़ा होता है

शायद दुनिया का सबसे बड़ा दिल है

जिसकी वजह से हम

पिता, पति व पुत्र  तीनों के दुःख को 

स्वयं में सोखने में सक्षम हैं

आप मेरे हमदम हैं

मैं तुम्हारी शक्ति हूँ


दोस्तो! स्त्री पर लिखना

दरअसल अपने भीतर की स्त्री से बतियाना है

पुरुष केवल पुरुष नहीं है

उसके अंदर भी होती है स्त्री

तभी तो शिव अर्धनारीश्वर हैं!


(©गोलेन्द्र पटेल

२८-११-२०२०)


(शेष दूसरे खण्ड में)

नाम : गोलेन्द्र पटेल

🙏संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

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ईमेल : corojivi@gmail.com





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