Sunday, 6 March 2022

युद्ध पर केंद्रित कविताएँ : युद्ध के विरुद्ध आवाज़ / यूक्रेन और रूस / तालिबान और आफगानिस्तान / भारत और पाकिस्तान / भारत और चीन | संपादक : गोलेन्द्र पटेल


युद्ध पर केंद्रित कविताएँ

 1). रामधारी सिंह 'दिनकर'

हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से,

हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही-
उपचार एक अमोघ है
अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का !

(कवितांश)



2). जलियाँवाले बाग़ में वसंत : सुभद्राकुमारी चौहान


यहाँ कोकिला नहीं, काक हैं शोर मचाते। 

काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते॥ 

कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से। 

वे पौधे, वे पुष्प, शुष्क हैं अथवा झुलसे॥ 

परिमल-हीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है। 

हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है। 

आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना। 

यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना॥ 

वायु चले पर मंद चाल से उसे चलाना। 

दुख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना॥ 

कोकिल गावे, किंतु राग रोने का गावे। 

भ्रमर करे गुंजार, कष्ट की कथा सुनावे॥ 

लाना सँग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले। 

हो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ-कुछ गीले॥ 

किंतु न तुम उपहार-भाव आकर दरसाना। 

स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना॥ 

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर। 

कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर॥ 

आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं। 

अपने प्रिय-परिवार देश से भिन्न हुए हैं॥ 

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना। 

करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना॥ 

तड़प-तड़पकर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर। 

शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर॥ 

यह सब करना, किंतु 

बहुत धीरे-से आना। 

यह है शोक-स्थान 

यहाँ मत शोर मचाना॥ 



3).अगर हो सके : अशोक वाजपेयी

आश्विट्ज़-2


अगर हो सके तो 

मैं अपने समय के लिए 

उम्मीद की एक नई वर्णमाला लिखना चाहता हूँ :

कहाँ से शुरू करूँ ‘अ’—

कुल तीन फ़ीट ऊँची झुग्गी में नवजात शिशु के रोने 

और बर्फ़ से ढँके निर्जन अरण्य के वृक्ष के कोटर में 

अपनी माँ की प्रतीक्षा करते पक्षी से?


‘थ’ लिखूँ यातना-शिविर में दूसरे से पहले 

अपने को मरने के लिए प्रस्तुत करते युवक से या 

जेल की दीवार पर मृत्युदंड की प्रतीक्षा करते हुए 

नाख़ून से उकेरे गए पद्य से?


‘ण’ लिखूँ 

आतंक के सामने लाठी, चश्मे और चरखे के 

अविचलित रहने से या 

दंगे की आग में सब कुछ राख हो जाने के बाद 

एक लहूलुहान बुढ़िया को अपना घर खोजने में मदद करती 

अपना सब कुछ गँवा चुकी औरत से?


अब जब अन्याय के कंगूरे दमक रहे हैं 

जब क्रूरतम चेहरों की मूर्तियाँ चौराहों पर से अजायबघरों में हटा दी गई हैं 

जब घृणा एक सुगठित वृंदगान की तरह छा रही है पृथ्वी पर 

जब बिना क़ैद के भी हम सब बंदी हैं अपनी क्षुद्रताओं में—

मैं अपने पोते के तोतले प्रश्न के उत्तर में कि ‘तुम का कल्लै हो’

इतिहास की कभी न साफ़ हो सकने वाली स्याह पड़ती स्लेट पर 

उम्मीद की एक नई वर्णमाला लिखना चाहता हूँ 

जिसमें संसार के सभी बच्चे 

अपनी इबारत बिना हिचक और डर के लिख सकें।


(जनसंदेश टाइम्स,  लखनऊ : साभार : सुभाष राय)

4).  राजेश जोशी

जो युद्घ के विरुद्ध नहीं है

वो युद्ध के पक्ष में हैं

जो युद्ध के पक्ष में हैं 

वो मनुष्य के विरुद्ध हैं

जो मनुष्य के विरुद्ध हैं

उनको जानवर की श्रेणी में रखा जा सकता है 

इसमें लेकिन एक दिक्कत है

इससे जानवरों का अपमान होगा ।

(कवितांश)



5). केवल युद्ध : श्रीप्रकाश शुक्ल

क्रुद्ध शासक लड़ रहे हैं युद्ध

क्षुब्ध हैं संबुद्ध

आसमान से बरस रहे हैं गोले

और बुद्ध हैं कि बंकर में छुप गए हैं


रुद्ध कंठ से निकलते हैं शब्द 

कि आदमी को नहीं हारना है

कि महामारी अभी गई नहीं है 

कि जमीन को अभी  नहीं दरकना  है

कि आते हुए शिशु की किलकारी से  लिखे जाने हैं अभी कई सूत्र


कि दनदनाता हुआ  दगता है एक गोला

घर के एक कोने को दग्ध करता हुआ


नागरिक सुन रहे हैं विलखती हुई आवाजें 

इतिहास में बनी हुई है आवाजाही 

मीडिया से उठ रही हैं खबरें 

कि दहशत में है हरियाली 


बारूद के ढेर में जल रहे हैं दरख़्त

आकाश के फेफड़े को भर रहा है धुआं

समुद्र सोख रहा है दुःख

और ज्वालामुखी के मुंह पर दहक रही है करुणा


सरहदें उदास हैं

पक्षी दुबक गए हैं कोटर में 

चारागाहों में लग गई है आग

खेत बदल रहे हैं मरुथल में 

जहां सूरज लगातार बंजर हो रहा है 


यह एक सभ्य  समाज की पशुता है 

जहां अपनी भूमिका से अनजान 

हर कोई दूसरे की भूमिका पर उठा रहा है सवाल

और उत्तर में चीखता है बस एक ही शब्द---


केवल युद्ध !

केवल युद्ध!

केवल युद्ध!


6). सुभाष राय

युद्ध: कुछ तस्वीरें

--------------------


1.


नक्शे पढ़ना जानती हैं मिसाइलें

नक्शे से कुछ भी मिटा सकती हैं मिसाइलें 

लेकिन मनुष्यता के सपनों को 

निशाना नहीं बना सकती मिसाइलें

सपने किसी नक्शे में नहीं आते


2.


युद्ध में पुल ध्वस्त हो सकते हैं

सड़कें गड्ढों में तबदील हो सकती हैं

निर्दोष नागरिक मारे जा सकते हैं

तख्त गिराये जा सकते हैं


पर गुलाम नहीं बनाये 

जा सकते सुलगते हुए दिमाग

भीषण युद्ध के बीच भी जन्म ले सकती है

आजादी की आग


3.


जब टैंक उसे कुचलते हुए 

उसके ऊपर से गुजर गया

वह अपनी गाड़ी से बाहर निकला

और टैंक की बेवकूफी पर हंसता हुआ

निकल गया


यह एक दृश्य भर नहीं है

यह दुनिया के सारे तानाशाहों को 

एक अदने नागरिक की चुनौती है 


4.


सीमा के पार घुमड़ती

एक पागल महत्वाकांक्षा के विरुद्ध


मां‌ ने क्लाश्निकोव संभाल ली है

पिता के हाथों में पेट्रोल बम है

भाई सुरंगें बिछा रहा है

बहन मैगजीनें पैक कर रही है

बेटा घायलों की देख-भाल में जुटा है

रिश्तेदार मोर्चे पर निकल गये हैं


शांति के लिए भी कभी- कभी

उठाने पड़ जाते हैं हथियार

बहुत कम लोगों को पता होता है 

कि जब भी मृत्यु सीधी चुनौती बनकर आती है

अमरता का अवसर भी साथ लाती है

7). गिरीश पंकज

अ). युद्ध क्या है


युद्ध क्या है 

मानवता की छाती पर 

एक कुष्ठ है 

युद्ध वही करता है

जो अपने आप से ही रुष्ट है

युद्ध और कुछ नहीं

अपने गुरूर को दिखाने का

एक घटिया तरीका है 

युद्ध इनसान ने 

किसी शैतान से सीखा है।

युद्ध कमजोरों को

सताने का एक जरिया है 

युद्ध और कुछ नहीं

एक सामंती नज़रिया है

युद्ध तरह-तरह के हथियार 

रखने की गरमी का नाम है

युद्ध वही करता है 

जो पहले भी बहुत बदनाम है 

युद्ध दरअसल

भरे पेट वालों का काम है ।

सच पूछें तो युद्ध

अराजक-अय्याशी है 

युद्ध 

मानवता के गले की फाँसी है 

युद्ध क्रूर लोगों का मनोरंजन है 

युद्ध शांति का भंजन है 

युद्ध इंसानियत के खिलाफ

शैतान का अट्टहास है 

युद्ध करने करने वाला तो

जीते-जी एक लाश है

और इन सब के बीच

पूरी दुनिया को शांति की तलाश है।

संयुक्त राष्ट्र की मुंडेर पर बैठे

एक श्वेत कपोत ने उस दिन

गुटर गूं करते हुए कहा,

दुनिया में उसी दफे 

सच्ची शांति आएगी

जब हथियारों की सारी खेप

सागर में समा जाएगी।

जब तक विश्व की आत्मा में

विराजित नहीं होंगे बुद्ध

तब तक होते ही रहेंगे

युद्ध-दर-युद्ध!

 

ब). युद्ध क्या है


युद्ध क्या है

कमजोर पर ताकतवर का आतंक

गरीबों पर अमीरों का जुल्म है

युद्ध..परपीड़क मनुष्य की

आदिम अभिलाषा है

युद्ध ..अशांति की परिभाषा है

युद्ध.. सीधे-सादे मनुष्य पर

गुंडों का हमला है

युद्ध ..नैतिकता के माथे पर कलंक है

युद्ध ..श्वेत हंस पर

बिच्छू का डंक है

दुनिया में जब तक

युद्ध की कामना रहेगी

तब तक धरती

खून के आँसू रोएगी

वह चैन से बिल्कुल नहीं सोएगी

इसलिए युद्ध-पिपासुओ!

धरती को चैन से जीने दो

फेंक दो अपने सारे हथियार

बना दो उन्हें कबाड़

इस दुनिया में इस वक्त

सबसे भयावह चीज

अगर कोई है तो वो है

शैतानों के पास रखे हथियार

जो कर रहे हैं वार

लगातार, बार-बार

मनुष्यता की छाती पर ।

सहसा रोने लगे बुध्द

जब उसने कहा, मैं शांति के लिए

कर रहा हूँ युद्ध

और मार डाले सैकड़ों निर्दोष

युद्ध.. प्रभुत्व जमाने का

प्राचीनतम हथियार है

युद्ध..धरती के माथे पर

एक दाग है

नफरत की आग है

युद्ध का विकल्प केवल प्यार है।

हर सच्चे मनुष्य को यही स्वीकार है।

8).विवेक चतुर्वेदी

युद्ध


अलस्सुबह एक तानाशाह ने घोषणा की ... युद्ध होगा

और जरा देर में ही दूसरे तानाशाह ने

अभी दोनों ने अपनी गर्वित भंगिमाएँ 

उतार कर तह भी न की थी कि 

हथियारों के कारोबारी मुल्कों की 

जरखरीद युद्ध खोज एजेंसियाँ 

ट्वीट करने लगीं .... युद्ध होगा

खबरों के इलाके में गुम हुए 

क्वात्रोची और खगोशी फिर सतह पर आ गए।


 पौ फट भी न पाई थी कि 

टीआरपी के दंश से पीड़ित

अपाहिज और कोढ़ी मीडिया 

रोग शैया से उठ खड़े हो चीखने लगा

यहाँ उत्सव की तरह सजाया गया युद्ध 

फौज के पुराने जनरल .... पार्टियों के प्रवक्ता

मुँह धोए बिना स्टुडियो की ओर भागे।


राष्ट्रवादी तिलक और जालीदार टोपियाँ 

हुंकारने लगीं

जुगलबंदी में मौकापरस्त और कुटिल राजनीतिज्ञ

मैदान में आ खड़े हुए

युद्ध दिमागों में फैलता गया।


शहरों में दफ्तर खुले तो मरघिल्ले बाबू 

अलसायी फाइलें छोड़ 

चाय की चीकट दुकानों में जमा हो गए

और सिर हिला-हिला कर तसदीक की ... युद्ध होगा।


दोपहर के पहले ही अखबारों के सम्पादक 

भागते हुए दफ्तर पहुँचे 

और अखबारी कागजों पर

स्याही की जगह खून उड़ेल दिया

उन्होंने मिलों से छंटनी की/मरते बच्चों की/

महंगी प्याज की/बैंकों से हड़पे कर्ज की/

रुपये की कमजोरी की/सरकार के फर्ज की

खबरें तुरंत गुड़ी कर फेंक दीं।


ठण्डी औरत की तरह लेटा 

बाजार अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा हुआ

अनाज से लेकर शराब तक के 

व्यापारी चहक उठे

भरे जाने लगे गोदाम।


इस बीच दोनों देशों में पसरी 

आम चर्चाओं में महंगाई का रोना मिट गया

जुलूस सड़क तक आते-आते ठिठक गए

भ्रष्टाचार पर पेट दर्द कम हुआ

प्रतिरोध की कविताएँ आधी लिखी रह गईं

सभी असंतोष स्थगित हो गए।


दोपहर खाने की छुट्टी में 

स्कूल के लड़कों को मालूम हुआ .... युद्ध होगा

वे खेल के मैदान में ही 

दो देशों में बंट गए

माँ बहन होने लगी।


शाम से पहले मिट्टी में ढंके 

सूखे मेंढकों जैसे बूढ़े युद्ध विश्लेषक 

सम्भावना के छींटे पड़ते ही जीवित हो 

बताने लगे कि कितने दिनों में 

फौज लाहौर और दिल्ली में होगी।


शाम ताड़ीखाने में 

‘लाल’ और ‘सफेद’ की तेज गंध के बीच

एक ताड़ीबाज रोया युद्ध होगा .... युद्ध होगा।

सड़कों पर निरुद्देश्य फिरतीं 

रेशमी जुल्फों वाली लड़कियाँ

और उनसे चिपके अधगंजी हेयरकट वाले 

चाकलेटी लड़कों की बातों में

नेशन प्राइड, वॉर, बॉर्डर, मिसाइल जैसे शब्द 

च्युंइगम की तरह चुभलाए जाने लगे।


मंदिरों और मस्जिदों में 

आरती और अजान के स्वरों से

नाजुक चिड़ियाएँ उड़ गईं .... वे बाज हो गईं

राम और खुदा भी एक दूसरे की ओर 

पीठ करके खड़े हो गए

‘‘अल्लाह ओ अकबर’’ और ‘‘सीताराम’’ 

की गूँज खोती गई

‘‘चीर देंगे’’, ‘‘चाक कर देंगे’’ 

इबादत और मंत्र जैसा दोहराया जाने लगा।


रात शीघ्र स्खलन से पीड़ित पुरुष,

कामेच्छा की कमी से ग्रस्त स्त्रियाँ,

थके हुए कामगार,

दिन भर चूसे गए दफ्तरी,

बेरोजगार लौंडे,

मरणासन्न बूढ़े,

बिनब्याही लड़कियाँ,

होमवर्क चोर बच्चे 

सबकी आंखें टेलीविजन देख चमक उठीं

वे उत्तेजना से चिल्लाए .... युद्ध होगा।


देर रात तक अनसुनी करते रहे 

कवियों और कलावंतों ने भी

आखिरश कलमें और कूचियाँ फेंक दीं

दाढ़ी खुजा वे बुदबुदा उठे ..... युद्ध होगा

उनका अस्फुट स्वर सुन ... 

सूरज जो सुबह निकलने को 

घर से चल पड़ा था .... राह में ही रुक गया 

रात गहराती ही गई।


उस बहुत काली रात में दोनों तानाशाह

फिर राष्ट्र के नाम संदेशों में प्रकट हुए

और अब पहले से भी अधिक गर्वित भंगिमाओं

और प्रभुता सम्पन्न मुद्राओं में कह सके 

चाहता है देश .... युद्ध होगा .... युद्ध होगा।

                 

   

9). नीरज नीर

युद्धोन्माद 

------------

युद्ध का अर्थ 

मत पूछो 

राजा से 

और न ही सेनापति या सिपाही से 

युद्ध का अर्थ पूछो 

उस आदमी से 

जो रहता है 

सरहद पर बसे गांव में 


तोप के गोले का वजन 

मत पूछो तोपची से 

और न तोप बनाने वाले से 

गोले का वजन पूछो 

उस आदमी से 

जिसके घर पर गिरा है 

तोप का गोला 

 

बेबसी क्या होती है 

मत पूछो 

विरह में जलते प्रेमी युगल से 

बेबसी का अर्थ पूछो 

उस किसान से 

जो नहीं जा सकता है अपने खेतों पर 

तैयार पकी फसल को काटने के लिए 

क्योंकि सरहद पर चल रही हैं गोलियां 

 

मृत्यु का भय क्या होता है 

मत पूछो 

अस्पताल में मृत्यु शय्या पर पड़े मरीज से  

पूछो उस व्यक्ति से 

जो अपनों की लाशों के बीच से 

भागा  है युद्ध क्षेत्र से दूर 

अपनी जान  बचाने के लिए 

 

युद्धोन्माद क्या होता है 

देखने की कोशिश मत करो 

किसी सैनिक की आँखों में 

युद्धोन्माद सबसे ज्यादा होता है 

सरहद से दूर 

सुरक्षित इलाकों में रहने वाले लोगों में 

जिनके पेट भरे होते हैं .   

("जंगल में पागल हाथी और ढोल" से)

10). खेल और युद्ध : कौशल किशोर

इधर क्रिकेट का खेल है

टी - टवेन्टी यानी फटाफट

चित या पट

चौके और छक्के उड़ रहे हैं

यह अंगुलियों का कमाल है 

या पिच का

कि गेंद घूमी

और विकेट ले उड़ी


उधर धरती को रौंदते

टैंकों के काफिले हैं

चील की तरह मडराते

आकाश में युद्धक विमान हैं

वे खोज रहे हैं अपना शिकार 

निशाना साधती मिसाइलें हैं

रॉकेट लांचर से 

आग के गोले की तरह वे निकलीं

और बस्ती जल उठी


खेल और युद्ध 

दोनों जारी है

दोनों में थ्रिल है

दोनों में सस्पेंस है

दोनों में रोमांच है

यह मनोरंजन की थाली है

आपके लिए परोस दी गई है


बस, इतना भर करना है

खेल में युद्ध का

युद्ध में खेल का 

आपको भरपूर मजा लेना है

बाकी के लिए बाजार है

वह बढ़े, फले-फूले, सजे-संवरे

खेल और युद्ध उसी का विस्तार है |


11). शैलेंद्र शांत
अ).


ब). क्या नहीं? 


युद्ध से सबको डर 

फिर भी हथियारों का 

उत्पादन जारी है

मंडी में बेकरारी है


ऐसे में 

व्यापारियों के मुँह से

अमन की बात

महज धूर्तता 

मक्कारी है

क्या नहीं? 


स).

एंकर भाई! 


उसमें घी मत डालिए

उकसावे का


वह एक आग है

बहुत कुछ भष्म हो जाएगा

बहुत-बहुत दिनों तक रुलायेगा

जो बच जायेंगे जख्मों के साथ

उन्हें सपने में भी सतायेगा


हो सके तो

पानी छिड़किये तर्क के

संवेदना के दमकल की

घंटी बजाइये


बर्बादियों के किस्से याद कीजिए

याद दिलाइये क्रूरताओं की

गैस चैंबर, रासायनिक हमले आदि-आदि की


गिनती मत सुनाइये एटमी बमों की

हिरोशिमा, नागासाकी की दिलाइये याद

युद्धों में हो चुकी तबाहियों को बताइये


अमन की सूरत पैदा हो

कुछ ऐसे भाव जगाइये


एंकर भाई! इतने उत्साह में ना आइये

यह कोई क्रिकेट मैच नहीं!


 द). युद्ध रोकें


युद्ध रोकें!

युद्ध रोकें!!

 

नाटो की पीठ ठोकने वाले भी कह रहे हैं

युद्ध रोकें

इराक, सीरिया,फिलिस्तीन,अफगानिस्तान आदि-आदि को तबाह करने वाले 

और हथियारों के सौदागर भी


अच्छी बात है

विवेक जब भी जाग जाए

अच्छी बात है


अमन की चाह

निश्चित ही अच्छी बात है


युद्ध नहीं, शांति

इस धरा को नहीं पसंद अशांति


मगर कहाँ सुनते शासक

छोटे हों या बड़े

अहं में तने


जबकि तबाही ही रहा है हासिल

अब तक के युद्धों का!

.....


12).महेश चंद्र पुनेठा 

युद्ध

*****

(1)

युद्ध गर समाधान होता 

तो आज दुनिया से 

युद्ध खत्म हो गया होता।


(2)

कोई भी युद्ध 

नहीं हो सकता है 

निर्णायक 

एक युद्ध के गर्भ में 

पलते हैं 

दूसरे युद्ध के बीज।



(3)

कहने को 

एक पक्ष युद्ध जीतता है 

और दूसरा पक्ष हारता है

 मगर खोना

 दोनों पक्षों को ही पड़ता है

शासक तो 

अन्ततः समझौता कर लेते हैं

और घाव,आंसू,वेदना, त्रासदी  

अपनी जनता को दे जाते हैं।


(4)

जो युद्ध शुरू होता है उसे 

एक न एक दिन 

खत्म भी होना होता है 

इसलिए किसी एक युद्ध का

 खत्म होना 

गारंटी नहीं शांति की 

स्थायी शांति के लिये जरूरी है 

युद्ध के कारणों का खत्म होना

जो फैले हैं -

दो व्यक्तियों के बीच से लेकर 

दो दुनियाओं के बीच तक।


(5)

युद्ध ! यदि तुम

 इतने ही ताकतवर हो 

तो कर दो, 

दुनिया से युद्धों का खात्मा 

तब मैं भी स्वीकार करूँ 

तुम्हारी ताकत को ।

13). अनन्त आलोक

 सींग

------------
मेरे गाँव में
मेरे परिवार में
पड़ोस में
गाँव-सहन में
रिश्ते-नाते में
अब कोई बाबा
कोई दद्दू
कोई चचा जान
कोई पितामह
जीवित नहीं बचा है क्या ?
मैं पूछना चाहता हूँ
पिछली सदी से
क्या ये उसकी जिम्मेदारी नहीं थी ?
कि कोई ठगड़ा
ढोल में मढ़ कर ही ले आती
इस सदी तक |
जो समझाता इन बच्चों को
इन भाइयों को
कि इस तरह नहीं
झगड़ा करते |
बचपन को मेले से बन्दूक दिलवाते वक्त
क्यों हमने एक बार भी नहीं सोचा ?
कि बन्दूक से बारूद निकलती है
कि बन्दूक से गोली निकलती है
और निकलती है सिर्फ मौत
कि बन्दूक कनपटी पर रख कर
किसी को संगीत नहीं सुनाया जा सकता !
काश कि मेले में बंदूक की जगह बिक रहे होते
गिटार, बाँसुरी, ढोल-मजीरा और खंजरी
तो क्या वक्त के व्यापारी भी शामिल हैँ
इस षड्यंत्र में ?
बेकसूर लहू के ये दाग
सदी के इन सभी सफेद लिबासों पर
शाया होंगे
इसमें हैरत भी क्या ?
ए बेदस्तार सदी अब दुआ कर
कि हम दूसरे के फटे में
अपनी टांग न फँसाएँ
दो बैल भिड़ेंगे तो एक की सींग टूटेंगी
कुश्ती ख़त्म हो जायेगी
पूरा रेवड़ भिड़ पड़ा
तो पशुओं की ये सभ्य जाति
ही जाती रहेगी |
ये कुश्ती दरअसल
पुतिन और जेलेंस्की के
सींग की कुश्ती है |
14).अनिता रश्मि 
अ).
युद्ध औ स्त्री 
--------------

स्त्री के लिए 
दुनिया वैसी नहीं 
जैसी वह चाहती रही, 
सदा रही दुनिया वह 
जो वह चाह पाती नहीं 
कभी भी, कहीं भी। 

युद्ध में लिपटी 
उसके ख्यालों के परे 
प्यार, स्नेह से कटी 
बारूद के ढेर पर 
लेटी 
खूँ में डूबी दुनिया 
वह कब चाहती है?  

फिर भी सबसे ज्यादा 
स्त्री ही भोगती है 
युद्ध की विभीषिका, 
काँधे पर थामे अपने 
स्वप्नों का सलीब, 
क्षत-विक्षत बच्चों को 
पीठ पर बाँधे हुए 
देखती रह जाती है 
लुट गई मासूम दुनिया। 

ब).
? ? ?
--------

सबको सब कुछ 
ऊपरवाले ने  
दिया बराबर

न बँटी हुई जमीं 
न टुकड़ों में आस्मां,
न हवा अलग, 
न पानी बदरंग  
न ही गाछ-बिरिछ विहीन 
किसी का संसार

लाशों की नई 
खेप उगाने की 
फिर जिद कैसी? 

फिर ये युद्ध 
किसलिए??

स).
शब्दातीत 
------------

कहीं दो चूड़ियाँ
कहीं आईने पर चिपकीं
छोटी-बड़ी, गोल-चौकोर
रंगीली बिंदियाँ
कहीं तकिए के नीचे
सुस्ताता चश्मे का कवर
कभी कहीं
मेज पर अखबार के 
अधखुले पन्ने से
आधे झाँकते
समाचार,

अनपढ़े पृष्ठ किताबों के,
मेडलों का भरा-पूरा संसार
वर्दी औ शान की जुगलबंदियाँ 
तहाए गए यत्न से 
झंडों के ऊपर रखी 
गई शानदार टोपियाँ, 
कोने में धूल नहान की
चुगली करती लाठी
रूमाल का भीगा कोना
दिल में अपार सम्मान,
ये ही बचीं रह जाती हैं
निशानियांँ 
युद्ध में खो गई 
जिदंगी की।
15). वसंत सकरगाए
*मैं थूकना चाहता हूँ*
युद्ध से बिगड़ गया है मुँह का स्वाद मर गई है मेरी भूख मुझे याद आ रही है अरूण कमल की कविता-"थूक" कि प्राचार्य मान बहादुर सिंह को जब खींच घसीटे ले जा रहा था गुंडा हजारों छात्र जमा थे चारों तरफ़ और वह गुंडा अकेला था और मान बहादुर अकेले अगर सब लोग केवल थूक देते एक साथ तो गुंडा वहीं डूब जाता युद्ध से बिगड़ गया है मुँह का स्वाद मर गई है मेरी भूख थूकना चाहता हूँ भीतर का सारा कसेला थूकना चाहता हूँ कि भीतर भर गया है बारूद का धुँआ कि मेरे भीतर भर गई है चीख़ें आँसू जीवित जले चिथड़ा-चिथड़ा लोगों की गंध मैं थूकना चाहता हूँ और इतना सारा थूकना चाहता हूँ कि डूब जाएँ सारी बँदूकें टैंक मिसाइल और सारा मसला ही ख़त्म हो जाए युद्धोन्माद का
16). बोधिसत्व
अ).
एक दिन सम्राट का भौकाल गोबर की कंडी में सुलग गया! प्रजा का जो जो दुःख था सम्राट के लिए वह अवसर था सुख था! पीड़ित लोगों के साथ फोटो खिंचाने के शौक से राजा हर शोक को उत्सव में बदल लेता था! त्रासदी को यादगार बनाना और समय समय पर दुःख के मनोरम चित्र देखना दिखाना इतना ही लोकतंत्र था शेष! प्रजा का खून चूस कर उसे नमक बांटना महान कृत्य था और इसे इतिहास में दर्ज कराने के लिए दिन रात जागता था मुखिया! युग में जो जितना झूठा था वो उतना अनूठा था! पीड़ा छुपाने और मुस्कराने में ही अपना कुशल मानता था जनगण! व्यथित मन से कह रहा हूं मेरे इस लिखे को याद रखा जाए गोबर रंग रंगा फोटो का युग था मेरा! गोबर से उसे और उसके अपनों को बहुत प्रेम था और एक दिन उसी गोबर की कंडी सुलग गई उसी एक दिन राजा का भौकाल राख हो गया! शासक ने सुलगती आग के साथ कोई चित्र ना खिंचवाया बच बचा कर निकल गया और कोई संदेशा ना भिजवाया! अब धुएं के पार से दिखता था मटमैला नया दिन अब दुःख था दुःख जैसा व्यथित करता अब सुख था सुख जैसा बीते दुःख सा धुंआ हो गए राजा की याद दिलाता!

ब). बूझो तो जाने! मातम को कहता जो उत्सव कहे रुदन को गाना भूखों मरना परम तपस्या रूप धरे वह नाना! पैदलजन को लतियाये वो डमरू घंट बजैया कौन वीर जिसके खेने से डूबे देश की नैया?
17). निलय उपाध्याय
आ अब लौट चलें कहना चाहता हूँ ? मै किससे कहना चाहता हूँ क्या मै गाँव के प्रधान से कहना चाहता हूँ जिला के कलक्टर से ,राज्य के मुखी मंत्री या देश के प्रधान मंत्री से या संयुक्त राष्ट संघ या नहीं जो अंधे है और जो बहरे है और जो गुलाम है और जो दलाल है जो जानकर अनजान है उन्हे मेरी बात सुनाई नहीं देगी बड़बड़ाना सुनेंगे वे मै खुद से कहना चाहता हूँ और उनलोगों से भी जो मेरी तरह सोचते है या मैं उनकी तरह सोचता हूँ जैसे वैदिक ऋषि यज्ञ मंडप मे बैठ आहुति देते हुए आत्मा के प्रकाश में देखते थे मंत्र देख रहा हूँ कई दिनों से जीवन यारा की कुछ बातें साफ साफ आगे बढ़ने की होड में जाने किस नशे में चलते हुए कहाँ आ गए हैं हम ,यहाँ कोई नदी नहीं है यहाँ कोई पहाड़ नहीं रहा बस उंचे मकान है हम चाहे तो रह सकते है पर यहाँ का पानी पीने लायक नही रहा यहाँ की हवा सांस लेने लायक न रही फसल देने लायक नहीं रहे पुरखो के खेत यहा अहंकार के पहाड़ है इस हवा मे बारूद के कण है यह जगह जीवन के अनुकूल नहीं है हमें बहुत दिनों तक रहना है कथाओ में रहना है इस घरती पर कविता ,गीतों फूलों और तारो में रहना है आ अब लौट चले और पड़ताल करे वह रास्ता जो आगे बढ़ाने की होड में पीछे छूट गया था |
18). सुरेंद्र प्रजापति
*युद्ध* ( 1.) सारा आसमान रोशन हो रहा है बारूद की धुंध से, और नगर मलबे के ढेर में बदल रहा है बच्चे दूध के लिए रो रहे हैं और माँ चीख कर दम तोड़ रही है गोला बारूद के धमाकों में। *** ( 2. ) बगीचे में शेमल वृक्ष के नीचे, एक प्रेमी युगल बैठा है, सपनीले प्यार के वार्तालाप में मुस्कुरा रहा है, और बाग़ का सारा फुल, धू-धु कर जल रहा है। शीतल हवा में निरंतर धुंध चल रहा है गर्भ में एक अनाथ पल रहा है *** ( 3.) राजनेता जनता को आश्वस्त कर रहा है, कि अब शान्ति होगी, युद्ध रुकेगा उधर सत्ता लोलुप आदेश सेना को कुच करवा रहा है उर्वर प्रदेश में लहुलुहान रक्त बह रहा है *** (4.) नर्म बिस्तर पर प्रेम में मग्न मधुर राग गा रही है स्वप्निल आँखें उन्माद में जश्न मनाए जा रहे हैं नवजात शिशु जन्म लेते ही आनाथ हो रहा है *** ( 5.) लाखों चेहरे खुन से पटे हैँ करोड़ों आँखें बदहवास रो रही है इस सदी का- सबसे भयानक रुदन और ऐसे में मेरा हर शब्द नादिर के विरुद्ध एक इंकलाबी बयान है *** ( 6.) तुम क्रूर हो गए हो, देखो तुम्हारी क्रूरता स्वप्निल आकाश को बारूद से भर गया और वतन की मिट्टी उस ज्वाला से सिहर गया *** ( 7.) ओ जिद्दी तानाशाह, तुम अपने भीषम युद्ध में बारूद बिखेर दिया सर्वत्र मिशाइलें दागा कितनी ईमारतों को ध्वंस करवाया, कितनी प्रेम कहानियों को तबाह किया, पर बता-- मेरे घोसले को क्यों जलाया ***
19). भरत प्रसाद
अ). अघोषित विश्वयुद्ध
●●● दिशाओं के पोर-पोर में अपूर्व भय का सन्नाटा नियति की तरह, दिखाई कुछ भी नहीं देता, सिवाय विदा लेती अपनों की आंखों के भरोसा उठता जा रहा कल की सुबह से! बेखौफ है, केवल पक्षियों की उड़ान जिन्हें मृत्यु की कोई खबर नहीं, सारी हरियाली जैसे सहमी हुई मानो आहट मिल गयी हो किसी अघोषित विश्वयुद्ध की! पृथ्वी के पैरों में कांटे चुभ गये हैं लड़खड़ा कर नाचती हो जैसे, सूर्य की परिक्रमा करते हुए, आदमी भविष्य के आगे इतना विवश कभी नहीं रहा, कभी नहीं हुआ इतना स्वप्नविहीन आजकल की रातों के पहले!

ब). युद्ध और कविता युद्ध नासूर है –पृथ्वी के शरीर पर बावजूद इसके कि दुनिया के सारी भाषाएँ चीख रही हैं युद्ध को रोको , युद्ध को रोको ! सारे कवि ललकार रहे हैं –तानाशाहों को सदियों पुरानी सख्त खाल की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं कलम की मार से , तानाशाह बेख़ौफ़ धज्जियाँ उड़ा रहे हैं हमारी कागजी क्रांतियों की युद्ध के खिलाफ हर क्षण जन्म ले रही है कविता और युद्ध रोज असंभव होता जा रहा है पृथ्वी के कोने-कोने से कवि चीखते हैं – युद्ध रुकता क्यों नहीं ? उत्तर में तानाशाह हंस देता है | मैं पूछता हूँ कवि से या तो तानाशाह और कविता दो विपरीत ध्रुव हैं या फिर कविता नपुंसक हो गयी है जब धरती को लूट खाने की जंग छिड़ी हो तो जरूरी नहीं कवि के लिए कविता लिखना वह कलम को फेंककर सरेआम सड़क पर चिल्ला सकता है युद्ध नहीं बुद्ध ! युद्ध नहीं बुद्ध ! वह सिद्ध कर सकता है – जुबान भी हथियार होती है युद्ध में मिट गए लोगों जले हुए खेतों,मरे हुए पेड़ों लाश की तरह पड़े मकानों पर जार-जार आंसू बहा लेना भी कविता लिखना है तानाशाहों की याद आते ही मुट्ठी भींच लेना कवि होना है कौन रोक सकता है कवि को कविता भूलकर पुकार लगाने से जब बारूदों की मुर्दागंध गला घोंट चुकी हो मनुष्य का तो कलम और कागज़ सिर्फ खिलौना रह जाते हैं |
20). गोलेन्द्र पटेल
*टीस के टैंक* शांति की क्रांति की कथा है कि वे मारे गए बुद्धि की बंदूक से नहीं बल्कि पशुता की पिस्तौल से दुःख के दुपहर में दर्द के दीये जल रहे हैं गम की गोधूलि में गोली चल रही है रो रही है रात पर ख़ास बात : बोली बुद्ध की आत्मा ---- हे अशोक! शुद्ध शोक है नहीं रोक है बह रहा है आजादी की आँखों से आँसू अनिरुद्ध संवेदना की सरहद पर वक्त के वकील बता रहे हैं कि आज विधि है विनय के विरुद्ध और भाई-भाई के बीच भाषा है क्रुद्ध मनुष्यता की मिट्टी सोख रही है रक्त जिंदगी की ज़मीन लाल है टीस के टैंक टकरा रहे हैं आपस में एक दूसरे के ऊपर फेंके जा रहे हैं विचारों के बम सुख के शुक्ल में मुल्क छोड़ रहा है मिसाइल और कोप की तोप --- नया से नया हथियार बार-बार बना रहा है विज्ञान आधुनिकता की आग लगी है जंग में जिजीविषा जगी है सैनिक की कलम कह रही है कि विश्व का बुरा हाल है बेमौत मर रहा है इंसान मगर वे मस्त हैं।
21).
महेश आलोक
अ).
*राष्ट्रपिता के लिए* जब मेरा जन्म हुआ उसके बहुत पहले उनकी हत्या हो गई थी मुझे स्कूल में तकली से सूत बनाने का तरीका सिखाया जाता था और आगे की कक्षाओं में वह चरखे में बदल गया था मुझे याद है धागों के लच्छे बीच-बीच में उलझ जाते थे बिल्कुल मेरे सपनों की तरह और उन्हें सुलझाने में घन्टी बज जाती थी जहाँ तक मुझे याद है मैने एक गाँधी टोपी बनाई थी या वह कुछ-कुछ वैसी ही थी मुझे गाँधी जी की आत्मकथा पुरस्कार में मिली थी आत्मकथा में मेरे समय की घन्टी को बजाने का हुनर छिपा है जिसे आज तक नहीं सीख पाए हम और निरन्तर मारे जा रहे हैं गाँधी की तरह किसी प्रार्थना सभा में नहीं हिंसा में डरे हुए दर्शक की भूमिका का निर्वाह करते हुए हम निरन्तर मारे जा रहे हैं आज एक रहस्य का पर्दाफाश करुँ उस समय पेड़ ने मुझे जोर का थप्पण मारा जब मैने फूल को तोड़ा गाँधी की प्रतिमा पर चढ़ाने के लिए ब).
अगर घर बच गया देश भी बच जाएगा जिस समय उसकी अपनी छत देश के नक्शे के आकार में टूट गई थी जिस समय उसके सपने अपने घर का नहीं पड़ोसी का दरवाजा खटखटा रहे थे जिस समय उसकी टाई वार्डरोब में किसी कल की प्रतीक्षा में अपनी गाँठ को ढीला कर रही थी जिस समय उसे लग रहा था कि बम की आवाजों में उसके कपड़े हैंगर की तरह टँगे हैं कि उसकी बेटी अन्तिम साँस में ईश्वर को भला-बुरा कहने पर मजबूर हो गई है जिस समय उसे लग रहा था कि गाँधी का करोड़ों वर्ष तक जीवित रहना जरुरी है जिस समय उसे लग रहा था कि उसके हाथ इतने छोटे हो गए हैं कि बालों में कँघी तक नहीं कर सकते कि उसके बोए गए बीज इतने गुस्से में हैं कि खेतों में मिसाइल बनकर उगना चाहते हैं मैं उस समय हैरान रह गया जब उसे लग रहा था कि उसका दिल भी बम की तरह हो सकता है उसका दिमाग भी अगर वह ठान ले बम की तरह काम कर सकता है वह इस समय किसी देश को नहीं अपने घर को बचाने की कोशिश में लगा था कि अगर घर बच गया देश भी बच जाएगा आप विश्वास करें न करें इतना यकीन काफी था किसी तानाशाह के दिल की धड़कन को तेज गति से धड़काने के लिए उसके घर की छत पर उसके सपनों के घोड़े इतनी तेज गति से दौड़ रहे थे कि उन्हे रोकना लगभग नामुमकिन था उसका दिल रह- रहकर धड़क रहा था लेकिन यह कतई नामुमकिन नहीं था कि वह घोषित करे कि वह अपने आँगन में लगे गौरैया के घोसले को बचा लेगा किसी भी हमले से -------

22). चंद्रेश्वर
आसान है युद्ध अन्याय के रास्ते पर चलना आसान है आसान है बेईमान, धूर्त और मक्कार बनना बोलना झूठ बात -बात पर गिरवी रख देना ईमान दबा देना आत्मा की आवाज़ रिश्ते तोड़ लेना आसान है आसान है युद्ध, रक्तपात और हिंसा घृणा की खड़ी करना दीवार मगर ज़िंदगी आसान रास्तों पर चलने का नाम नहीं है !
23). नरेश अग्रवाल
अ). *टैंक* इस पुराने टैंक को देखता हूंँ युद्ध न हो तो यह कितना अकेला पुराना हो जाये तो लोहे का टुकड़ा इसे कबाड़ में भेजने की तैयारी इसकी जगह दूसरा नयी तकनीक वाला तैयार वह भी कुछ वर्षों में बेकार कहीं कोई युद्ध नहीं केवल धमकियाॅं काश! ये आदमी की तरह सोच पाते तो खुश होते चलो लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी तो क्या हुआ धमकाया तो खूब लोगों को अच्छी नीति है यह डराये रखो दूसरों को, बचाये रखो स्वयं को हर चालाक तो यही करता है हर बार मरता है पुराना टैंक ही पिघला दिया जाता है आग में इस आग उगलने वाले बहादुर को आग ही पचा जाती है एक दिन

ब). *आतंक* धरती टुकड़ों-टुकड़ों में बंट गयी देश, प्रांत में बंट गये आदमी, जाति में बदल गये नाम भी उपनाम में बदल गये रंग-रूप भी सभी के अलग-अलग जीवन हुआ अलग-थलग सभी ने उठा लिए अपने-अपने झंडे इसे भी सबसे ऊंचा करने की होड़ में फेंक रहे एक-दूसरे पर गोले सिर छुपाने को कोई जगह नहीं हर जगह दिख रहे आतंक फैलाते चेहरे सबसे कमजोर के पास केवल मृत्यु छुपने के लिए कोई बंकर नहीं!
स). *बारूद ही इनकी साॅंस* इन शस्त्रों से केवल बारूद छीन लो चाहे टैंक हो या पिस्तौल या राइफल या मिसाइलें फिर सारे मामूली औजार हो जाएॅंगे बारूद ही इनकी सांॅस और यही मनुष्य से सांॅस छीनने का जरिया कल जब शस्त्रों का प्रहार हो चारों ओर एक बार जरूर सोचना कितनों की सांॅसें हम छीन रहे हैं कितनों को बर्बाद कर रहे हैं भरकर साॅंस इन हथियारों में
द).*मां से प्रार्थना* लड़ाई पर हूं पहले किसे याद करूं? मां को या पत्नी दोनों की तस्वीरें जेब में पहले मां की निकालता हूं उससे आशीर्वाद लेता हूं लड़ाई जीतने के लिए फिर पत्नी की प्रेम और चिंता से देखता हूं चिंता हो रही कि मैं न रहा तो उसका क्या होगा अकेला जीवन उसका और बच्चों का कैसा होगा संभलना तो उसे ही है मैं तो युद्ध का मोर्चा संभाल रहा अनेक मित्र हैं यहां कोई रिश्तेदार नहीं फिर भी मौत के संघर्ष को यूं झेल रहा हूं जैसे मुझे इसकी पुरानी आदत ऐसी आदत पत्नी को भी लग जाए तो कितना अच्छा हो मां से उसके लिए प्रार्थना करता हूं

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3 comments:

  1. शानदार संग्रह है। बहुत बहुत धन्यवाद!

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  2. युद्ध पर बेहतरीन रचनाओं का संग्रह , साधुवाद आपको

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  3. बहुत बधाई गोलेन्द्र, युद्ध की कविताओं का संग्रह बेहतरीन है।
    शुभकामनाएँ। शीघ्र ही अपनी कविताएँ भेजूँगा।

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