युद्ध पर केंद्रित कविताएँ
1). रामधारी सिंह 'दिनकर'
हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से,
हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही-
उपचार एक अमोघ है
अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का !
(कवितांश)
2). जलियाँवाले बाग़ में वसंत : सुभद्राकुमारी चौहान
यहाँ कोकिला नहीं, काक हैं शोर मचाते।
काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते॥
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से।
वे पौधे, वे पुष्प, शुष्क हैं अथवा झुलसे॥
परिमल-हीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है।
हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना।
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना॥
वायु चले पर मंद चाल से उसे चलाना।
दुख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना॥
कोकिल गावे, किंतु राग रोने का गावे।
भ्रमर करे गुंजार, कष्ट की कथा सुनावे॥
लाना सँग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले।
हो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ-कुछ गीले॥
किंतु न तुम उपहार-भाव आकर दरसाना।
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना॥
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर।
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर॥
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं।
अपने प्रिय-परिवार देश से भिन्न हुए हैं॥
कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना।
करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना॥
तड़प-तड़पकर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर।
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर॥
यह सब करना, किंतु
बहुत धीरे-से आना।
यह है शोक-स्थान
यहाँ मत शोर मचाना॥
3).अगर हो सके : अशोक वाजपेयी
आश्विट्ज़-2
अगर हो सके तो
मैं अपने समय के लिए
उम्मीद की एक नई वर्णमाला लिखना चाहता हूँ :
कहाँ से शुरू करूँ ‘अ’—
कुल तीन फ़ीट ऊँची झुग्गी में नवजात शिशु के रोने
और बर्फ़ से ढँके निर्जन अरण्य के वृक्ष के कोटर में
अपनी माँ की प्रतीक्षा करते पक्षी से?
‘थ’ लिखूँ यातना-शिविर में दूसरे से पहले
अपने को मरने के लिए प्रस्तुत करते युवक से या
जेल की दीवार पर मृत्युदंड की प्रतीक्षा करते हुए
नाख़ून से उकेरे गए पद्य से?
‘ण’ लिखूँ
आतंक के सामने लाठी, चश्मे और चरखे के
अविचलित रहने से या
दंगे की आग में सब कुछ राख हो जाने के बाद
एक लहूलुहान बुढ़िया को अपना घर खोजने में मदद करती
अपना सब कुछ गँवा चुकी औरत से?
अब जब अन्याय के कंगूरे दमक रहे हैं
जब क्रूरतम चेहरों की मूर्तियाँ चौराहों पर से अजायबघरों में हटा दी गई हैं
जब घृणा एक सुगठित वृंदगान की तरह छा रही है पृथ्वी पर
जब बिना क़ैद के भी हम सब बंदी हैं अपनी क्षुद्रताओं में—
मैं अपने पोते के तोतले प्रश्न के उत्तर में कि ‘तुम का कल्लै हो’
इतिहास की कभी न साफ़ हो सकने वाली स्याह पड़ती स्लेट पर
उम्मीद की एक नई वर्णमाला लिखना चाहता हूँ
जिसमें संसार के सभी बच्चे
अपनी इबारत बिना हिचक और डर के लिख सकें।
4). राजेश जोशी
जो युद्घ के विरुद्ध नहीं है
वो युद्ध के पक्ष में हैं
जो युद्ध के पक्ष में हैं
वो मनुष्य के विरुद्ध हैं
जो मनुष्य के विरुद्ध हैं
उनको जानवर की श्रेणी में रखा जा सकता है
इसमें लेकिन एक दिक्कत है
इससे जानवरों का अपमान होगा ।
(कवितांश)
5). केवल युद्ध : श्रीप्रकाश शुक्ल
क्रुद्ध शासक लड़ रहे हैं युद्ध
क्षुब्ध हैं संबुद्ध
आसमान से बरस रहे हैं गोले
और बुद्ध हैं कि बंकर में छुप गए हैं
रुद्ध कंठ से निकलते हैं शब्द
कि आदमी को नहीं हारना है
कि महामारी अभी गई नहीं है
कि जमीन को अभी नहीं दरकना है
कि आते हुए शिशु की किलकारी से लिखे जाने हैं अभी कई सूत्र
कि दनदनाता हुआ दगता है एक गोला
घर के एक कोने को दग्ध करता हुआ
नागरिक सुन रहे हैं विलखती हुई आवाजें
इतिहास में बनी हुई है आवाजाही
मीडिया से उठ रही हैं खबरें
कि दहशत में है हरियाली
बारूद के ढेर में जल रहे हैं दरख़्त
आकाश के फेफड़े को भर रहा है धुआं
समुद्र सोख रहा है दुःख
और ज्वालामुखी के मुंह पर दहक रही है करुणा
सरहदें उदास हैं
पक्षी दुबक गए हैं कोटर में
चारागाहों में लग गई है आग
खेत बदल रहे हैं मरुथल में
जहां सूरज लगातार बंजर हो रहा है
यह एक सभ्य समाज की पशुता है
जहां अपनी भूमिका से अनजान
हर कोई दूसरे की भूमिका पर उठा रहा है सवाल
और उत्तर में चीखता है बस एक ही शब्द---
केवल युद्ध !
केवल युद्ध!
केवल युद्ध!
6). सुभाष राय
युद्ध: कुछ तस्वीरें
--------------------
1.
नक्शे पढ़ना जानती हैं मिसाइलें
नक्शे से कुछ भी मिटा सकती हैं मिसाइलें
लेकिन मनुष्यता के सपनों को
निशाना नहीं बना सकती मिसाइलें
सपने किसी नक्शे में नहीं आते
2.
युद्ध में पुल ध्वस्त हो सकते हैं
सड़कें गड्ढों में तबदील हो सकती हैं
निर्दोष नागरिक मारे जा सकते हैं
तख्त गिराये जा सकते हैं
पर गुलाम नहीं बनाये
जा सकते सुलगते हुए दिमाग
भीषण युद्ध के बीच भी जन्म ले सकती है
आजादी की आग
3.
जब टैंक उसे कुचलते हुए
उसके ऊपर से गुजर गया
वह अपनी गाड़ी से बाहर निकला
और टैंक की बेवकूफी पर हंसता हुआ
निकल गया
यह एक दृश्य भर नहीं है
यह दुनिया के सारे तानाशाहों को
एक अदने नागरिक की चुनौती है
4.
सीमा के पार घुमड़ती
एक पागल महत्वाकांक्षा के विरुद्ध
मां ने क्लाश्निकोव संभाल ली है
पिता के हाथों में पेट्रोल बम है
भाई सुरंगें बिछा रहा है
बहन मैगजीनें पैक कर रही है
बेटा घायलों की देख-भाल में जुटा है
रिश्तेदार मोर्चे पर निकल गये हैं
शांति के लिए भी कभी- कभी
उठाने पड़ जाते हैं हथियार
बहुत कम लोगों को पता होता है
कि जब भी मृत्यु सीधी चुनौती बनकर आती है
अमरता का अवसर भी साथ लाती है
7). गिरीश पंकज
अ). युद्ध क्या है
युद्ध क्या है
मानवता की छाती पर
एक कुष्ठ है
युद्ध वही करता है
जो अपने आप से ही रुष्ट है
युद्ध और कुछ नहीं
अपने गुरूर को दिखाने का
एक घटिया तरीका है
युद्ध इनसान ने
किसी शैतान से सीखा है।
युद्ध कमजोरों को
सताने का एक जरिया है
युद्ध और कुछ नहीं
एक सामंती नज़रिया है
युद्ध तरह-तरह के हथियार
रखने की गरमी का नाम है
युद्ध वही करता है
जो पहले भी बहुत बदनाम है
युद्ध दरअसल
भरे पेट वालों का काम है ।
सच पूछें तो युद्ध
अराजक-अय्याशी है
युद्ध
मानवता के गले की फाँसी है
युद्ध क्रूर लोगों का मनोरंजन है
युद्ध शांति का भंजन है
युद्ध इंसानियत के खिलाफ
शैतान का अट्टहास है
युद्ध करने करने वाला तो
जीते-जी एक लाश है
और इन सब के बीच
पूरी दुनिया को शांति की तलाश है।
संयुक्त राष्ट्र की मुंडेर पर बैठे
एक श्वेत कपोत ने उस दिन
गुटर गूं करते हुए कहा,
दुनिया में उसी दफे
सच्ची शांति आएगी
जब हथियारों की सारी खेप
सागर में समा जाएगी।
जब तक विश्व की आत्मा में
विराजित नहीं होंगे बुद्ध
तब तक होते ही रहेंगे
युद्ध-दर-युद्ध!
ब). युद्ध क्या है
युद्ध क्या है
कमजोर पर ताकतवर का आतंक
गरीबों पर अमीरों का जुल्म है
युद्ध..परपीड़क मनुष्य की
आदिम अभिलाषा है
युद्ध ..अशांति की परिभाषा है
युद्ध.. सीधे-सादे मनुष्य पर
गुंडों का हमला है
युद्ध ..नैतिकता के माथे पर कलंक है
युद्ध ..श्वेत हंस पर
बिच्छू का डंक है
दुनिया में जब तक
युद्ध की कामना रहेगी
तब तक धरती
खून के आँसू रोएगी
वह चैन से बिल्कुल नहीं सोएगी
इसलिए युद्ध-पिपासुओ!
धरती को चैन से जीने दो
फेंक दो अपने सारे हथियार
बना दो उन्हें कबाड़
इस दुनिया में इस वक्त
सबसे भयावह चीज
अगर कोई है तो वो है
शैतानों के पास रखे हथियार
जो कर रहे हैं वार
लगातार, बार-बार
मनुष्यता की छाती पर ।
सहसा रोने लगे बुध्द
जब उसने कहा, मैं शांति के लिए
कर रहा हूँ युद्ध
और मार डाले सैकड़ों निर्दोष
युद्ध.. प्रभुत्व जमाने का
प्राचीनतम हथियार है
युद्ध..धरती के माथे पर
एक दाग है
नफरत की आग है
युद्ध का विकल्प केवल प्यार है।
हर सच्चे मनुष्य को यही स्वीकार है।
8).विवेक चतुर्वेदी
युद्ध
अलस्सुबह एक तानाशाह ने घोषणा की ... युद्ध होगा
और जरा देर में ही दूसरे तानाशाह ने
अभी दोनों ने अपनी गर्वित भंगिमाएँ
उतार कर तह भी न की थी कि
हथियारों के कारोबारी मुल्कों की
जरखरीद युद्ध खोज एजेंसियाँ
ट्वीट करने लगीं .... युद्ध होगा
खबरों के इलाके में गुम हुए
क्वात्रोची और खगोशी फिर सतह पर आ गए।
पौ फट भी न पाई थी कि
टीआरपी के दंश से पीड़ित
अपाहिज और कोढ़ी मीडिया
रोग शैया से उठ खड़े हो चीखने लगा
यहाँ उत्सव की तरह सजाया गया युद्ध
फौज के पुराने जनरल .... पार्टियों के प्रवक्ता
मुँह धोए बिना स्टुडियो की ओर भागे।
राष्ट्रवादी तिलक और जालीदार टोपियाँ
हुंकारने लगीं
जुगलबंदी में मौकापरस्त और कुटिल राजनीतिज्ञ
मैदान में आ खड़े हुए
युद्ध दिमागों में फैलता गया।
शहरों में दफ्तर खुले तो मरघिल्ले बाबू
अलसायी फाइलें छोड़
चाय की चीकट दुकानों में जमा हो गए
और सिर हिला-हिला कर तसदीक की ... युद्ध होगा।
दोपहर के पहले ही अखबारों के सम्पादक
भागते हुए दफ्तर पहुँचे
और अखबारी कागजों पर
स्याही की जगह खून उड़ेल दिया
उन्होंने मिलों से छंटनी की/मरते बच्चों की/
महंगी प्याज की/बैंकों से हड़पे कर्ज की/
रुपये की कमजोरी की/सरकार के फर्ज की
खबरें तुरंत गुड़ी कर फेंक दीं।
ठण्डी औरत की तरह लेटा
बाजार अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा हुआ
अनाज से लेकर शराब तक के
व्यापारी चहक उठे
भरे जाने लगे गोदाम।
इस बीच दोनों देशों में पसरी
आम चर्चाओं में महंगाई का रोना मिट गया
जुलूस सड़क तक आते-आते ठिठक गए
भ्रष्टाचार पर पेट दर्द कम हुआ
प्रतिरोध की कविताएँ आधी लिखी रह गईं
सभी असंतोष स्थगित हो गए।
दोपहर खाने की छुट्टी में
स्कूल के लड़कों को मालूम हुआ .... युद्ध होगा
वे खेल के मैदान में ही
दो देशों में बंट गए
माँ बहन होने लगी।
शाम से पहले मिट्टी में ढंके
सूखे मेंढकों जैसे बूढ़े युद्ध विश्लेषक
सम्भावना के छींटे पड़ते ही जीवित हो
बताने लगे कि कितने दिनों में
फौज लाहौर और दिल्ली में होगी।
शाम ताड़ीखाने में
‘लाल’ और ‘सफेद’ की तेज गंध के बीच
एक ताड़ीबाज रोया युद्ध होगा .... युद्ध होगा।
सड़कों पर निरुद्देश्य फिरतीं
रेशमी जुल्फों वाली लड़कियाँ
और उनसे चिपके अधगंजी हेयरकट वाले
चाकलेटी लड़कों की बातों में
नेशन प्राइड, वॉर, बॉर्डर, मिसाइल जैसे शब्द
च्युंइगम की तरह चुभलाए जाने लगे।
मंदिरों और मस्जिदों में
आरती और अजान के स्वरों से
नाजुक चिड़ियाएँ उड़ गईं .... वे बाज हो गईं
राम और खुदा भी एक दूसरे की ओर
पीठ करके खड़े हो गए
‘‘अल्लाह ओ अकबर’’ और ‘‘सीताराम’’
की गूँज खोती गई
‘‘चीर देंगे’’, ‘‘चाक कर देंगे’’
इबादत और मंत्र जैसा दोहराया जाने लगा।
रात शीघ्र स्खलन से पीड़ित पुरुष,
कामेच्छा की कमी से ग्रस्त स्त्रियाँ,
थके हुए कामगार,
दिन भर चूसे गए दफ्तरी,
बेरोजगार लौंडे,
मरणासन्न बूढ़े,
बिनब्याही लड़कियाँ,
होमवर्क चोर बच्चे
सबकी आंखें टेलीविजन देख चमक उठीं
वे उत्तेजना से चिल्लाए .... युद्ध होगा।
देर रात तक अनसुनी करते रहे
कवियों और कलावंतों ने भी
आखिरश कलमें और कूचियाँ फेंक दीं
दाढ़ी खुजा वे बुदबुदा उठे ..... युद्ध होगा
उनका अस्फुट स्वर सुन ...
सूरज जो सुबह निकलने को
घर से चल पड़ा था .... राह में ही रुक गया
रात गहराती ही गई।
उस बहुत काली रात में दोनों तानाशाह
फिर राष्ट्र के नाम संदेशों में प्रकट हुए
और अब पहले से भी अधिक गर्वित भंगिमाओं
और प्रभुता सम्पन्न मुद्राओं में कह सके
चाहता है देश .... युद्ध होगा .... युद्ध होगा।
9). नीरज नीर
युद्धोन्माद
------------
युद्ध का अर्थ
मत पूछो
राजा से
और न ही सेनापति या सिपाही से
युद्ध का अर्थ पूछो
उस आदमी से
जो रहता है
सरहद पर बसे गांव में
तोप के गोले का वजन
मत पूछो तोपची से
और न तोप बनाने वाले से
गोले का वजन पूछो
उस आदमी से
जिसके घर पर गिरा है
तोप का गोला
बेबसी क्या होती है
मत पूछो
विरह में जलते प्रेमी युगल से
बेबसी का अर्थ पूछो
उस किसान से
जो नहीं जा सकता है अपने खेतों पर
तैयार पकी फसल को काटने के लिए
क्योंकि सरहद पर चल रही हैं गोलियां
मृत्यु का भय क्या होता है
मत पूछो
अस्पताल में मृत्यु शय्या पर पड़े मरीज से
पूछो उस व्यक्ति से
जो अपनों की लाशों के बीच से
भागा है युद्ध क्षेत्र से दूर
अपनी जान बचाने के लिए
युद्धोन्माद क्या होता है
देखने की कोशिश मत करो
किसी सैनिक की आँखों में
युद्धोन्माद सबसे ज्यादा होता है
सरहद से दूर
सुरक्षित इलाकों में रहने वाले लोगों में
जिनके पेट भरे होते हैं .
("जंगल में पागल हाथी और ढोल" से)
10). खेल और युद्ध : कौशल किशोर
इधर क्रिकेट का खेल है
टी - टवेन्टी यानी फटाफट
चित या पट
चौके और छक्के उड़ रहे हैं
यह अंगुलियों का कमाल है
या पिच का
कि गेंद घूमी
और विकेट ले उड़ी
उधर धरती को रौंदते
टैंकों के काफिले हैं
चील की तरह मडराते
आकाश में युद्धक विमान हैं
वे खोज रहे हैं अपना शिकार
निशाना साधती मिसाइलें हैं
रॉकेट लांचर से
आग के गोले की तरह वे निकलीं
और बस्ती जल उठी
खेल और युद्ध
दोनों जारी है
दोनों में थ्रिल है
दोनों में सस्पेंस है
दोनों में रोमांच है
यह मनोरंजन की थाली है
आपके लिए परोस दी गई है
बस, इतना भर करना है
खेल में युद्ध का
युद्ध में खेल का
आपको भरपूर मजा लेना है
बाकी के लिए बाजार है
वह बढ़े, फले-फूले, सजे-संवरे
खेल और युद्ध उसी का विस्तार है |
ब). क्या नहीं?
युद्ध से सबको डर
फिर भी हथियारों का
उत्पादन जारी है
मंडी में बेकरारी है
ऐसे में
व्यापारियों के मुँह से
अमन की बात
महज धूर्तता
मक्कारी है
क्या नहीं?
स).
एंकर भाई!
उसमें घी मत डालिए
उकसावे का
वह एक आग है
बहुत कुछ भष्म हो जाएगा
बहुत-बहुत दिनों तक रुलायेगा
जो बच जायेंगे जख्मों के साथ
उन्हें सपने में भी सतायेगा
हो सके तो
पानी छिड़किये तर्क के
संवेदना के दमकल की
घंटी बजाइये
बर्बादियों के किस्से याद कीजिए
याद दिलाइये क्रूरताओं की
गैस चैंबर, रासायनिक हमले आदि-आदि की
गिनती मत सुनाइये एटमी बमों की
हिरोशिमा, नागासाकी की दिलाइये याद
युद्धों में हो चुकी तबाहियों को बताइये
अमन की सूरत पैदा हो
कुछ ऐसे भाव जगाइये
एंकर भाई! इतने उत्साह में ना आइये
यह कोई क्रिकेट मैच नहीं!
द). युद्ध रोकें
युद्ध रोकें!
युद्ध रोकें!!
नाटो की पीठ ठोकने वाले भी कह रहे हैं
युद्ध रोकें
इराक, सीरिया,फिलिस्तीन,अफगानिस्तान आदि-आदि को तबाह करने वाले
और हथियारों के सौदागर भी
अच्छी बात है
विवेक जब भी जाग जाए
अच्छी बात है
अमन की चाह
निश्चित ही अच्छी बात है
युद्ध नहीं, शांति
इस धरा को नहीं पसंद अशांति
मगर कहाँ सुनते शासक
छोटे हों या बड़े
अहं में तने
जबकि तबाही ही रहा है हासिल
अब तक के युद्धों का!
.....
12).महेश चंद्र पुनेठा
युद्ध
*****
(1)
युद्ध गर समाधान होता
तो आज दुनिया से
युद्ध खत्म हो गया होता।
(2)
कोई भी युद्ध
नहीं हो सकता है
निर्णायक
एक युद्ध के गर्भ में
पलते हैं
दूसरे युद्ध के बीज।
(3)
कहने को
एक पक्ष युद्ध जीतता है
और दूसरा पक्ष हारता है
मगर खोना
दोनों पक्षों को ही पड़ता है
शासक तो
अन्ततः समझौता कर लेते हैं
और घाव,आंसू,वेदना, त्रासदी
अपनी जनता को दे जाते हैं।
(4)
जो युद्ध शुरू होता है उसे
एक न एक दिन
खत्म भी होना होता है
इसलिए किसी एक युद्ध का
खत्म होना
गारंटी नहीं शांति की
स्थायी शांति के लिये जरूरी है
युद्ध के कारणों का खत्म होना
जो फैले हैं -
दो व्यक्तियों के बीच से लेकर
दो दुनियाओं के बीच तक।
(5)
युद्ध ! यदि तुम
इतने ही ताकतवर हो
तो कर दो,
दुनिया से युद्धों का खात्मा
तब मैं भी स्वीकार करूँ
तुम्हारी ताकत को ।
13). अनन्त आलोक
सींग
■ यूट्यूब चैनल लिंक :-
https://youtube.com/c/GolendraGyan
■ फेसबुक पेज़ :-
https://www.facebook.com/golendrapatelkavi
◆ अहिंदी भाषी साथियों के इस ब्लॉग पर आपका सादर स्वागत है।
◆ उपर्युक्त किसी भी कविता का अनुवाद आप अपनी मातृभाषा या अन्य भाषा में कर सकते हैं।
◆ अहिंदी भाषी राज्य :- तमिलनाडु, केरल, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मिजोरम, नागालैंड एवं अन्य नेपाल, पाकिस्तान, मारीशस , सिंगापुर, फ़ीजी व अन्य स्थान(विदेश) के साहित्यिक साथियों का तहेदिल से शुक्रिया! बहुत-बहुत धन्यवाद!
शानदार संग्रह है। बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteयुद्ध पर बेहतरीन रचनाओं का संग्रह , साधुवाद आपको
ReplyDeleteबहुत बधाई गोलेन्द्र, युद्ध की कविताओं का संग्रह बेहतरीन है।
ReplyDeleteशुभकामनाएँ। शीघ्र ही अपनी कविताएँ भेजूँगा।