Sunday, 3 May 2020

प्रेम में ब्रह्मचर्य-गोलेन्द्र पटेल // golendra patel



*प्रेम में ब्रह्मचर्य*
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मैं उसका था
वह मेरी नहीं
क्योंकि उसने
प्रेम से पहले ही सून लिया है
ब्रह्मचर्य पर उपदेश
मैं था कि
दिल से दिमाग पर
प्रहार करता रहा
बार बार कई बार
एक ही संदेश
भेज
भोजन परोसने के वक्त
अचानक सामने
चुप्पी बिल्ली चीखती
चिल्लाती गुर्राती बर्राती
दूध से भरे दूधनहड़ी पर पंजा मारी
समय शून्य-सा शेष
प्रतीत होने लगा पहले प्रेम में
है
भय समुद्र को नदी से
और नदी को नाले से
या कहूँ मुझसे उससे

लय कंठ के कर्णप्रिय
उतर जा अंबर से अवनि पर
मेरे प्रिये के पास
जिसे देखता हूँ
आँखें मुद
आठों पहर
उसके देह हैं दीये
जिसके छाया में दो पल जीये : प्रथमप्रेम
अभी अभी
ताज़ा मैसेज आया
लिखा है : "फूल को पत्थर से प्यार है"
प्रति-उत्तर में
भेज रहा हूँ : "पत्थर को हथौड़ी से"
पर्वत गिट्टी हो
पूछ रहे हैं दिल्ली शहर के सड़कों पर
मेरे आशिक गए कहाँ
कब तक दबने दोगे?
लालची लोगों के
लोकतंत्र के पैरों के नीचे
सुना है प्रियतम तुम सोते हो
संसद सदन के सयन कक्ष है में
निडर लिडर बन

अब नहीं आओगे
तो मेरे करीबी जंगल
तुम्हें निर्लज्ज नेता कहेंगे
यह गीत गा रही है
एक चतुर चिडिया बैठ मुंडेर पर
पुनः मैसेज आया
ब्रह्मचर्यार्थ जानते हो या नहीं?
जी नहीं!
न ब्रह्मचर्य ,न प्रेमशास्त्र ,न कामशास्त्र.......
तो
आज जान जाओ
प्रेम ही ब्रह्मचर्य है
जो
अर्थ के अभिव्यक्ति का शब्द नहीं
वही वास्तव में प्रेमशास्त्र है
इसके शब्दकोश मौन
या नवजात शिशु का संकेत
या हमारे-तुम्हारे नैनों की भाषा
कामशास्त्र मैं भी नहीं जानती?
न ही जानना चाहती समय से पहले....
जब कुछ दिन बीत गए
न फोन आया न मैसेज
तो मैं भी बेचैन होने लगा
अनयास आपा खोने लगा
अपने आदर्श आदत से मजबूर
एक बार भी पहले न फोन किया न मैसेज
सीधे छः महीने बाद हृदय से हृदय को ह्वाट्सएप हुआ
शुभ निमंत्रण : मेरे विवाह में आना जी
तब मेरे भीतर से सहसा निकला
मैं था उसका
वह मेरी नहीं
      -गोलेन्द्र पटेल
रचना : 25-04-2020
(काल्पनिक प्यार से)

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