पहलगाम
हमें बाँटने, काँटने, लड़ाने की कोशिशें जारी हैं
बेहद दुखद है
इस वक्त भाषा से भूगोल तक
चीख़ और चुप्पी के बीच
आँसू की ऊँची अनुगूँज है—
“जाति नहीं, धर्म पूछकर गोली मारी”
इस वाक्य का ट्रेंडिंग में होना
साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का घड़ियाली आँसू रोना है
स्याह संवेदना की साहसी कलम कैदी है
बंदूक और बारूद के बीच कुर्सी मस्त है
क्योंकि झूठ के आगे सत्य पस्त है
हम मासूम बेगुनाहों की दर्दनाक मौत से संत्रस्त हैं
हमारा मन आहत है, तन नहीं
इस आतंकी हमले ने देश को स्तब्ध कर दिया है
जनतंत्र का तंत्र निःशब्द है, लेकिन जन नहीं
यह आतंकवादी हमला क्रूर, बर्बर, नृशंस, भयानक
और हृदयविदारक है
हम इस घटना से दुखी और हैरान हैं
हम इस कुकृत्य, हत्यकांड की कड़ी भर्त्सना करते हैं
हम सरकार की निंदा करते हैं
क्योंकि हत्या हर हालत में निंदनीय है
हम संवेदनशील इंसान हैं
हमें पता है कि जहाँ कुशासन है
वहाँ हिंसा, हत्या, पलायन, अराजकता फैली हुई है
और बहुत सघन अँधेरा है
हम असुरक्षित हैं
क्योंकि हमें भूख, भय और भूतों ने चारों ओर से घेरा है
हमसे पूछ रहा है संविधान,
“अमृत महोत्सव के मौसम में जाति, धर्म, भाषा, भूगोल निरपेक्ष कौन है?”
पूछ रहा है जहान,
“क्या पहलगाम आतंकी हमला
अपने राजनीतिक फलितार्थ में
पुलवामा का अगला संस्करण है?”
न्याय की गुहार लगतीं मृतात्माएँ कहती हैं
कि हत्यारे ही नहीं,
बल्कि उनके रक्षक भी मानवता के दुश्मन हैं
हमारी पीड़ा के प्रगीत शोक वचन हैं
हम निर्दोष पीड़ितों के परिवारजनों के दुःख में शामिल हैं
हम टूटे हुए निराश सिपाही हैं
हम मानवीय वेदना की गवाही हैं!
(©गोलेन्द्र पटेल /23-04-2025)
संपर्क: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/जनपक्षधर्मी कवि-लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
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