प्रेम पर केंद्रित गोलेन्द्र पटेल की 21 कविताएँ :-
1).
प्रेम क्या है?
१).
संबंध टूटता है
समय के कंठ से उत्तर फूटता है
'प्रेम क्या है?
कबीर का अढ़ाई अक्षर है?
बोधा की तलवार पर धावन है?'
'ना ,भाई , ना
प्रेम___
आँखों की भाषा में
मन के विश्वास से उपजी
हृदय की मुक्तावस्था के लिए
आत्मा की आवाज़ है'
'क्या यह मित्रता को मुहब्बत में तब्दील करने की_____
भावना में वासना भरने की____
छद्मवेश धरने की_____
वस्तु है?'
'ना , भाई , ना ,
प्रेम____
व्यक्तित्व में
उदात्त होने का तथास्तु है!'
२).
उसने परिणय से पूर्व पूछा—
“प्रेम संभोग है?”— ‘नहीं’
“प्रेम रोग है?”— ‘नहीं’
“प्रेम वियोग है?”— ‘नहीं’
“प्रेम संयोग है?”— ‘नहीं’
“प्रेम योग है?”— ‘हाँ’
किन्तु ,
किसका?
उत्तर— ‘मन से मन का
हृदय से हृदय का
और
कुछ लोग हैं
कि इसे सोग कहते हैं!’
३).
सुनो!
यदि प्रेम अनंत है
तो संभोग क्षणिक
और यह सृष्टि के लिए
ज़रूरी चीज़ है!
४).
प्रेम का प्रथम लक्ष्य सेक्स है
क्योंकि वह परिणय का पिछलग्गू है
५).
मुक्ति के मार्ग में
सेक्स घृणा नहीं,
बल्कि प्रेम है
और उसके बिना सेक्स
विष है
यह जीवन की
थीसिस है!
■
2).
प्रेम
कल स्वप्न में जिस लड़की से मेरा ब्याह हुआ
आज मैंने उससे कहा कि मित्र,
यह सच है
कि प्रेम करने की कोई उम्र नहीं होती है
पर, जीवन के पूर्वार्द्ध का प्रेम ही प्रेम की संज्ञा को साकार करता है
बाकी, उत्तरार्द्ध का प्रेम तो वैसे भी
अपनी उदात्तता में भक्ति है
प्रेम—
मानव जीवन की सबसे मूल्यवान चीज़
जहाँ कहीं भी मिल जाये
शेष सभी चीज़ें सस्ती हो जाती हैं
प्रेम शब्द का मतलब
समाज के उन मानवों से है
जो आज भी जाति, धर्म व देह से परे जा कर
बेइंतहा प्यार करते हैं
उनकी भाषा में घृणा, नफ़रत और ईर्ष्या जैसी मनोवृत्तियों के लिए
कोई जगह नहीं है,
वे शब्दों के फूलों से सामने वाले का स्वागत करते हैं
उसकी पहुनाई में पूरी पृथ्वी समर्पित कर देते हैं
उन्हें बस प्रेम करना आता है
उनकी वजह से जीवन कड़वा होने से बचा है
और नदी सूखने से बची है
उनकी नज़र में प्रेम ही परमात्मा है
प्रेम—
उन्हें तूफ़ानों में भयमुक्त रखता है
उन्हें लहरों से लोहा लेने की शक्ति देता है
उनकी नाव को चट्टानों से टकराने से बचाता है
वे सागर में नहीं, प्रेम में डूबते हैं
वे लड़ते हैं प्रेम के लिए
वे अकाल में किसी पत्थर पर उगी घास हैं
वे बेस्वाद समय में स्वादिष्ट सच हैं
उनके दर्शन से आत्मा हरी हो जाती है
उनकी संगत से अंतर्मन अपनी ऊँचाई छूता है
उन्हीं से प्रेम का अस्तित्व है
प्रेम—
अपराजेय-अपरिभाषित-अमर शब्द है
प्रेम स्वतंत्रता के स्वर का साथ देता है
पर, प्रेम में प्रेम निःशब्द है
वह आज़ादी, न्याय, सच्चाई, स्वाभिमान
और सुंदरता से भरी ज़िंदगी चाहता है
वह मानवता के लिए बंदगी चाहता है
उसी से सद्भावना है
उसी से नये जीवन की सम्भावना है
वह वासना के अँधेरे में प्रदीप है,
नया सौंदर्यशास्त्र रचने वाला शिल्पकार है
आत्मा का शिल्पी है
उसके गाने से
पत्थर-दिल डर जाते हैं
और उसके गीतों से भी!
प्रेम—
पाप और पुण्य से परे मनुष्य को मनुष्य बनाता है
उसकी तलाश में
मैंने पूरी पृथ्वी का कई बार चक्कर लगाया
पर, वह नहीं मिला
नहीं मिला कहीं भी
फिर भी वह मेरे जीवन का लक्ष्य है
उसी से मेरी मुक्ति है
क्योंकि
मुक्ति का दूसरा नाम है प्रेम
वह मेरी बात कितनी समझी
मुझे नहीं मालूम
मगर, मुझे यह मालूम है
कि वह मेरी भाषा से अनजान है
मेरे स्वप्न के बाहर
मुझसे बेहतर इनसान है!
■
3).
पवित्र प्रेम
चल रही है विरह की परीक्षा
इश्क की इमारत में इंगुर पहन रही है इच्छा
दृष्टि! सृष्टि में सम्पन्न हुई दिशा की दीक्षा
शिक्षा है कि उम्मीद की उड़ान उपज्ञा है
परन्तु पृथ्वी पर पवित्र प्रेम प्रज्ञा है
■
4).
जिससे प्यार करूँ
मैं जिससे प्यार करूँ
वह तन से नहीं
मन से सुंदर हो
उसे कलह नहीं
कला प्रिय हो
उसकी भुजा में नहीं
भाषा में बल हो
वह मेरा आज नहीं
कल हो!
■
5).
रूह की रोशनी
देखा जब आँसू के आईने में अपने को
तब जाना कि दिल में दर्द के दाग हैं
दिमाग ने नेह की देह पर लिखा
आँख और आँत में आग के राग हैं
मैं ढो रहा हूँ तुम्हारी बातों का बोझ
अब जिह्वा पर तीन अक्षर बेलाग हैं
रीढ़ की हड्डियों में हुस्न की हँसी
पवित्र प्रेम में समर्पण और त्याग हैं
नसों में रक्त नहीं, रूह की रोशनी
पतझड़ के विरुद्ध मन के बाग हैं!
■
6).
गुज़रने पर
प्रेम-कविता से गुज़रने पर
कोई याद आती है
आँखों से चूतीं बूँदें
कहती हैं कि
जिस देह का आधार स्नेह नहीं
वह गम का गेह है
हवा में उड़ती हुई
खारी ख़ाक रेह है!
■
7).
प्रेम में पड़ीं लड़कियाँ
माफ़ करना
मैंने नहीं मेरे गुरु देखे हैं
कि (पढ़ी-लिखी)
प्रेम में पड़ी हुईं लड़कियाँ
जन्मदिन पर
प्रेमी का पाँव छूती हैं!
■
8).
पिछलग्गू
वे कैसे दिन थे
जब लोग पहले परिणय करते थे
फिर प्रेम
अब तो
प्रेम परिणय का पिछलग्गू है!
■
9).
काली प्रेमिकाएँ
जंगल, पहाड़, समुद्र और कोयले में
जो पाई जाती हैं काली प्रेमिकाएँ
वे सिर्फ़ वासना की पूर्ति भर हैं
उनकी नज़र में
जो उन्हें प्रेम कर के छोड़ देते हैं!
■
10).
ईश्वर नहीं नींद चाहिए
उनके व्यर्थ गए गुनाहों के बारे में
जब सोचती हूँ मैं
स्पर्शशून्य रस उमड़ता है भीतर
आँखें बोलती हैं
ईश्वर नहीं नींद चाहिए!
■
11).
संस्मरण
मुहब्बत वीणा की तरह
मेरे हृदय में थी
तुम तो साधक थे!
अब संगीत में सना संस्मरण
मेरे दिल व दिमाग का गायक है!
■
12).
प्यार! प्यार!! प्यार!!!
प्रिये!
तुम्हारे स्पर्श ने मुझे ज़िन्दा रखा है
मुझे नयनों से नयनों का गोपन
संभाषण पसंद है
उनका मारना नहीं
जब भी तुमने मारीं आँखें
मैं घायल हुआ
तन से, मन से
और मुझ पर
पर्वतराज, सिंधु व सिंह हँसें
जो कि अभिव्यक्ति के अखाड़े में
मुझसे पराजित होते रहे हैं
बार-बार
यदि तुम मेरी प्रेरणा बनोगी
मैं रच डालूँगा
प्रेम का सबसे सुंदर छंद
होगा उसमें
इस जीवन का सार
प्यार! प्यार!! प्यार!!!
■
13).
बीस पार
यह कहना कि मैं प्रेम नहीं करता
सही नहीं होगा
हर किसी की तरह मैं भी देखता हूँ दुनिया
मुझे आकाश होना है
किसी ख़ास चिड़िया के लिए
शायद उसने उम्मीद की उड़ान भरना
सीख ली है
वह मेरी चेतना है
पंखों की लम्बी अनुपस्थिति में
धरती की धुन सुनीं
मेरी आँखें
मैंने महसूस किया कि मेरी हथेलियों की रेखाएँ
मेरे मस्तक पर पढ़ी जा सकती हैं
मैं उसके गीत में उतरना चाहता हूँ
जैसे फूल के रंग
उसकी गंध के राग हैं
मैं वैसे ही उसके शब्द का अर्थ हूँ
मेरे हृदय के स्वर
उदात्त संबंधों के नये अनुराग हैं
मैंने अपने खेतों में प्रेम रोपा है
नयी सदी के लिए
मेरी फ़सलें
पुरखों की संचित मानवीय संवेदनाएँ हैं
मेरे जीवन के वन में असंख्य यादों के पेड़ हैं
जहाँ समय संवाद और सवाल करता है
मेरे भूत, वर्तमान और भविष्य से
और मुझे उसकी उपस्थिति की अनुभूति होती है
तन-मन की हरियाली से
लेकिन लताएँ
नदी की ओर जाती हुई हवा से कहती हैं
कि मैं बीस पार हो चुका हूँ
मुझे सागर से सीख लेने की आवश्यकता है!
■
14).
प्यार का इंतज़ार
नहीं हूँ किसी का भी भक्त मैं
पर प्रभु तुम्हारे मंदिर की सीढियों पर
करती हूँ अपने प्यार का इंतज़ार
वैसे ही
जैसे पृथ्वी करती है
वसंत की प्रतीक्षा!
■
15).
चिंतित समुद्र
उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव की
यात्रा से लौटे हैं प्रभु!
उनकी थकान की मात्रा
मीडिया में मुस्कुरा रही है कि
रेगिस्तान में
जब उठती हैं लहरें
समुद्र चिंतित होता है
पर नदी प्रसन्न होती है
क्योंकि वह प्यास बुझाती है!
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16).
भावना-भूख
मैंने प्रेम किया अपने उम्र से
मुझसे प्रेम कर बैठी बड़ी उम्र
स्नेह के स्तन से फूट पड़ी दूध की धार
लोग कहते हैं इसे हुआ है तुझसे प्यार
दुनिया देख रही है दिल में दर्द-ए-दुख
दृश्य दृष्टि से बाहर दौड़ रहा है निर्भय
देह की दयनीय दशा दर्पण में मुख
ममत्व का मन निहार रहा है वात्सल्य
नादान उम्र नदी बीच नाव पर है भावनाभूख
हिमालय पर हवा का होंठ चूम रहा है हृदय
संवेदना सो रही है शांत सागर में चुहकर ऊख
वासना बेना डोला रही है अविराम मेरे हमदम!
मैंने प्रेम किया.....
(रचना : 2017)
■
17).
चेहरे पर चेतना की चाँदनी का चुम्बन
संभावना के स्वर में
सुबह गा रही है उम्मीद का गीत
हे सखी!
शाम आ रही है
नाव पर
धारा के विपरीत पतवार खेओ!
तरंग टकरा रही है तन से
नदी उचक-उचक कर उर छू रही है मन से
हवा की गंध तैर रही है सतह पर
तकलीफ़ों के तूफ़ान पर फतह कर
तकदीर उत्साहित है
मछली की तरह ;
आशाएँ आती हैं आकाश से
मछुआरिन की कीचराई आँखें चमक उठती हैं
चेहरे पर चेतना की चाँदनी चूमती है
प्रेम का तुहिन ताप बुझाता है
तरुणी की तरणी पहुँच जाती है किनारे
भव सागर के पार!
(रचना : ३०-१०-२०२०)
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18).
आवाज़
मैं जिनकी आवाज़ हूँ ,
उन्हें मालूम है
कि मैं उनकी कितनी आवाज़ हूँ
कैसी आवाज़ हूँ!
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19).
एक अथाह अर्थ में आह
मुझ पर विजय पाने के लिए
तुम्हारा भगीरथ प्रयास व्यर्थ है
मुझे मालूम है
तुम्हारी मुस्कान का क्या अर्थ है?
तुम्हारी आँखों का अस्त्र
मुझे घायल करने में असमर्थ है
तुम्हारे होंठों की शक्ति
मुझे पराजित करने में असमर्थ है
ओ भावना!
मैं भाषा में प्यार नहीं
विचार हूँ!!
तुम्हारा समर्पण सराहनीय है
लेकिन मेरे पास
एक अथाह अर्थ में आह है
सुगबुगाता संबंध
तुम्हारी चाह की राह में डाह है
रव की रुकावट
बेवजह बुद्धि का ब्रेकर
सत्य के सफ़र में
राग को रोक रहा है
समय का शब्द
स्वर को टोक रहा है
तुम्हारी मुहब्बत में मोड़ अधिक है
तुम्हारा मन स्वयं पथिक है
तुम्हारी बात
रात में बस की बर्थ है
ओ वासना!
मैं देह की परिभाषा में मोच नहीं
नयी सोच हूँ!!
■
20).
परीक्षा केंद्र पर प्रेम
आजकल धर्मपुरी में धूपाग बरस रही है
विद्युत के लाले पड़े हैं
सड़कों के तपन-राग गाँव के नंगे पाँव गुनगुना रहे हैं
जहाँ प्रबुद्ध पेड़ पक्षियों का डैना नहीं,
पंखों का डैना देखते हुए दिन काट रहे हैं
उनकी रात मत पूछो कैसे कटी, पद्मिनी!
हे पद्मिनी!
कल, पांडेयपुर की काली माता के मंदिर में
परीक्षा के बहाने मिलते हैं
लेकिन याद रखना इस बार
न किसी का सर कटेगा
न हाथ
न कोई कपिलदेही देवदत्त कहलायेगा
न कोई देवदत्त-शरीरी कपिल
एक जन्म पुरुष चार अनुपस्थित रहेगा
पर, समस्या वही रहेगी
तुम्हारे वक्ष पर वेदना रहेगी
जाँघों पर परम प्रेमी
आँखों में मशाल
और कौमार्य के खुले अधरों पर
कामदेव-रति का नृत्य होगा
कोई मुखौटा नहीं
हृदय को सब स्पष्ट दिखेगा
मैं तुम्हारे केशों को केशव की तरह प्यार करूँगा,
तुम राधा की तरह चेहरे पर मन की मुस्कान लेकर
आओगी न, पद्मिनी?
आ गयी पद्मिनी
काली-मंदिर के भीतर
पसीना से तरबतर
तुम्हारे साथ ये सिपाही कौन हैं, पद्मिनी?
"पिताजी"
ओह!, अब क्या होगा?
परीक्षा शुरू होने से पहले ही चले जाएंगे
तब ठीक है
पद्मिनी, ये सब परीक्षार्थी नहीं, प्रेमी हैं
और
आँखों के अंतर्वैयक्तिक सम्प्रेषण
सिर्फ़ प्रेमी समझते हैं!
ज़रा सावधानी से सब इधर ही देख रहे हैं
"वे देख नहीं रहे हैं,
अपनी आँखें सेंक रहे हैं!"
जानती हो पद्मिनी?
पुरुष कथ्य किसी से भी सीख सकता है
लेकिन जीवन का शिल्प तो वह अपनी स्त्री से ही सीखता है
और एक बात, यह सरासर गलत है
कि स्त्री के प्रेमतंत्र में बुद्धि और ज्ञान की कोई जगह नहीं है
प्रेम में मान और महत्व के बीच
कुछ पाना
कुछ खोना है
क्योंकि वह आत्मा को जागृत करता है
मेरा घर-द्वार व ज़मीन-जैजात सब कुछ बिक गया है
मैंने अपने आँख-कान व किडनी-गुर्दा आदि अंगों का दान कर दिया
मतलब मेरे पास सिर्फ़ बचा है ईमान-धर्म
जो तुम्हारा पेट नहीं भर सकता, पद्मिनी!
न मुझे भूत की चिंता
न भविष्य की
मुझे वर्तमान में जीने की आदत है, पद्मिनी!
पद्मिनी, प्रेम का कोई धर्म नहीं होता है
कोई जाति नहीं होती है
लेकिन परिणय का धर्म होता है न?
पद्मिनी, हम इस समय जिस अवस्था में है
इसमें भावुकता प्रधान है
हमें गंभीरता और संयम से सोचने की आवश्यकता है।
लो, परीक्षा-कक्ष में परिवेश के लिए
घंटी बज गयी
तुम्हें पता है पद्मिनी
रट्टा और रचनात्मकता एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं
अर्थात्
परीक्षा रटना क्रिया का पक्षधर है
पर प्रतिभा रचना क्रिया का
इन दोनों क्रियाओं में श्रेष्ठ कौन हैं, पद्मिनी?
पद्मिनी, यह परीक्षार्थियों की भाषा में पीएचडी का प्रश्न है
मैंने तुम्हारी साँसों के स्वाद से जाना
ज़िस्म के जश्न पर रूह क्यों मौन है?
पद्मिनी, हमें पुरखे कवियों व लेखकों के बारे में
कुछ नया कहने लिए
उन पुरखों व पूर्ववर्तियों से अधिक सोचना है
उन से अधिक मानसिक श्रम करना है
जो उन पर कुछ नया कह चुके हैं
नया के बाद कुछ नया कहना
पुनर्नवा है
और यह पुनर्नवा परंपरा पर प्रश्नचिह्न लगाता है
क्योंकि इसमें परिवर्तन की शक्ति निहित होती है, पद्मिनी!
पद्मिनी, साहित्य का सूरज पश्चिम में उगता है
उसके पूरब में उगने का अर्थ है
उसे किसी राहु-केतु से भय नहीं है
उसे किसी अग्नि-परीक्षा की चिंता नहीं है
क्योंकि वह स्वयं आग का गोला है न?
ओह हो, तुम्हारी सीट उस कक्ष में है
मेरी सीट इस कक्ष में है
परीक्षा के बाद गेट पर मिलते हैं!
पेपर कैसा रहा पद्मिनी?
ठीक रहा,
परंतु परीक्षक पिछले कुछ वर्षों से
पेपर कठिन बनाने के चक्कर में प्रश्न ही गलत बना दे रहे हैं
मुझे लग रहा है ये-ये प्रश्न गलत हैं
चलो, गलत हैं तो उसके फ़ायदे भी तो हैं
फ़ायदा क्या घंटा?
गलत प्रश्न आगामी प्रश्न के उत्तर को प्रभावित करते हैं
और उनके प्रभाव में
आगामी प्रश्न के गलत होने की संभावना बढ़ जाती है
खैर, तुम्हारा कैसा गया?
मेरा??
मेरा क्या?
मैं मस्त रहता हूँ
मुझे परीक्षा-वरीक्षा की चिंता नहीं रहती है
वैसे भी अब तक मैंने जितने साहित्यकारों को पढ़ा है
उनमें से अधिकांश के पास मुझसे कम डिग्री है
वे अपने समय के कबीर हों
या फिर निराला
या फिर कोई और
उधर देखो, पद्मिनी!
तुम्हें तुम्हारे सिपाही बुला रहे हैं
इधर मुझे मेरी सड़क!
■
21).
नई सुबह
नई सुबह का स्वर -
हवा , धूप व बारिश वृक्ष के अधीन हैं
धरती आसमान से पूछ कि प्रेम क्या है ?
क्या अब भी वे उड़ने में लीन हैं ?
जो पंक्षी बीज बोते हैं
उसकी छाया में सुस्ताते वक्त
तुम्हारी आँखों में अपना चेहरा देखना
असल में अंतर्मन को सेकना है !
संक्षिप्त परिचय :-प्रस्तुति : अर्जुन आलोचक
अनमोल सृजन!
ReplyDeleteसादर प्रणाम मै'म!👏 धन्यवाद!
Delete*प्रेमाश्रम*
ReplyDeleteप्रेम जाति से परे है
प्रेमियो!
तुमने प्रेम और जाति में से
प्रेम को चुना है
प्रेम जातिवाद के ख़िलाफ़ है
जाति के नहीं
प्रेमविवाह से जातिवाद कमज़ोर होता है
प्रेमविवाह ही जातिवाद को ख़त्म कर सकता है
प्रेमियो!
यदि तुम चाहते हो
कि जाति प्रेम में बाधक न बनें
तो हर जिला में प्रेमाश्रम होना चाहिए
जैसे वृद्धाश्रम है
जैसे अनाथाश्रम है
अब तो मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है
हर जिला में प्रेमाश्रम बनवाना।
-गोलेन्द्र पटेल (मो. 8429249326)