Saturday, 11 November 2023

मकान मालिक (Makan Malik) : गोलेंद्र पटेल (Golendra Patel)

मकान मालिक

कविता में चीखने से किला की दीवारें दरक जाती हैं

आह से उपजी कोई पीड़ा
रोशनी में राह से क्यों भटक जाती है?

कवि जिस मकान में रहता है
उसकी न कोई दीवार होती है
न कोई छत

दिन के अँधेरे में मकान की दीवारें
आपस में बतियाती हैं कि मकान मोह से शुरू होकर
मोहभंग पर ख़त्म होता है
इसकी नींव में सदियों की नींद दफ़नी है
इसके छत पर
मरी हुई भाषा में आसमान रोता है
इसकी ज़मीन पर आँसू के धब्बे हैं
इसके रोशनदान में गौरैया का खोता है
पर, उसमें कोई चहक नहीं, कोई हलचल नहीं

तभी तो, एक दीवार ने सामने की दीवार से कहा
कि बहन तुम्हारी पीठ पर लिखा है
आदमी जैसे-जैसे बड़ा होता है
उसका घर
वैसे-वैसे छोटा होता है
बिल्कुल जंगल की तरह छोटा हो जाता है
आँगन के पेड़ को साँप सूँघा है
समय शून्य है
और कमरा सुन्न, उसमें नहीं कोई धड़कन, नहीं कोई धुन

फिर एक दीवार ने सामने की दीवार से पूछा
कि बहन तुम्हारे पेट में कोई बात पचती क्यों नहीं है!
सुनो न, अपनी परछाईं के किस्से कितने अजीब हैं
कोई ठोंकता है हमारी छाती में कील
कोई पोतता है हमारे चेहरे पर ख़ून,
कोई थूकता है रंगीन बलगम
कोई मूतता है हमारे ऊपर
हमारे ऊपर कोई कुछ लिखता है, कोई कुछ लिखवाता है
कोई कुछ बनाता है, कोई कुछ बनवाता है...

देखो न, हम गरीब हैं, कला के करीब हैं
हम कई दिनों से चुप्पी पी रहे हैं
हमारी मालकिन कहाँ गयी हैं?

गहरे उच्छवास के साथ एक दीवार ने बोला
कि काश कि हम चल पाते बहन!
तो ज़रूर ढूँढ़ते मालकिन को
और मालिक को भी

मालिक हमें हर दीवाली पर नई साड़ी गिफ़्ट करते हैं न!

फिर एक दीवार बोली,
बहन! क्या इस दीवाली पर हमें नई साड़ी नहीं मिलेगी?
अगल-बगल के मकानों की दीवारें नई साड़ियाँ पहन रखी हैं
वे इठला रही हैं, चमक रही हैं, अँगूठा दिखा रही हैं
हमारी हँसी उड़ा रही हैं
हमें अपने मालिक को खोजना चाहिए
नहीं तो ये मूतभुसौलिन दीवारें हमें खड़ी रहने नहीं देंगी
हमें एक साथ ज़ोर से मालिक को बुलाना चाहिए

दीवारों की पुनर्पुकार मालकिन के लिये है
मालकिन के बिना मकान वैसे भी मकान नहीं होता है

हाय, इस मुल्क में मकानों के मुहावरे मौसम के मारे हैं
उनकी दीवारों पर
जीवन के कुछ नारे हैं
जो आदमी को नये परिचय की ओर लेकर
चल रहे हैं और
यह बता रहे हैं कि
पहले मकान का 'म' गायब हुआ, फिर 'कान'!

दरवाज़े-खिड़कियों के संवाद में दीवारों की चर्चा है
जहाँ दुख उन्हें खुरोचा है
एक मकान बनाने में बहुत ख़र्चा है

दीवारें लोकमंगल के दिन दुखी हैं, बहुत दुखी हैं
हाय-हाय करते-करते मालिक चल बसे हैं
एक भावभीनी दीपांजलि मालिक के नाम
इस दीपोत्सव के दिन!

इस दीवाली पर!!

(©गोलेन्द्र पटेल/ 12-11-2023)

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