दस कविताएँ :-
1).
धूमिल जयंती
आसमान में धुआँ ही धुआँ है
युद्ध जारी है
पूरी दुनिया युद्ध में उलझी हुई है
पुरखों की जयंतियाँ बीत जा रही हैं
और पता भी नहीं चल रहा है
ऐसे में
जनकवि धूमिल जयंती की पूर्वसंध्या पर
मैं देख रहा हूँ
इस बार खेवली में नहीं
बल्कि खजूरगाँव में धूमिल जयंती की धूम मचने वाली है
उनकी पुनर्खोज की तैयारी चल रही है
खेवली केवल खजूरगाँव का रूपक नहीं,
बल्कि राष्ट्र का रूपक है
उनका सौंदर्य, श्रम का नया सौंदर्य है
वे मानवीय दृष्टि से कविता और भाषा को
अपने समय में सबसे अधिक परिभाषित करते हैं
उनका संघर्ष, उनके सृजन को निखारा है
वे अँधेरे में शब्दों को दीपक सा धरते हैं
उनके आत्मचिंतन में समुचित आत्मसंवेग है
सामाजिक सरोकार है, सभ्यता-समीक्षा है
वे भूख और भाषा की दूरी को समझाते हैं
उनकी कहन के अंदाज़ का कायल हूँ मैं
मुझे उनसे असीम प्यार है
उनका गढ़ा ख़ूब पढ़ा जाता है
वे ठंड में धूप की नदी की तरह हैं
उनकी कविता राजनीतिक झूठ का पर्दाफ़ाश करती है
वे अपनी सहजता में गहरी बात के कवि हैं
उनकी क्रांतिकारी चेतना से गुज़रते हुए
मैं साहसिक हो रहा हूँ
उनकी रचनाधर्मिता अवसाद से आश्वस्तता की ओर उन्मुख है
वे दुःख के दौर में दरकते
व टूटते मन को बचाने की कोशिश भी करते हैं
उनकी अभिव्यक्ति पाठक को शक्ति देती है
मैं वक्त का वाचक हूँ
यह स्मृतियों को बचाने का समय है
उनकी स्मृतियों को कोटि-कोटि नमन!
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2).
सत्ता से सवाल
एक दिन
एक किसान कवि चुपचाप
भूख की भूमि में बोया जब अपना दुख
तब उगा दोहा
जो ले रहा है लोकतंत्र से लोहा
जहाँ जनता का जश्न
केवल चुनाव है
उसका पसीना पूछता है प्रश्न____
क्या सत्ता से सवाल करना
धूमिल होना है?
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3).
धूमिल! मैं तुम्हें गाऊँगा
राजनीति के रंगमंच पर
‘क्या मैं तुम्हें काशी का दूसरा कबीर कहूँ?’
“नहीं”
‘क्या मैं तुम्हें अस्सी और खेवली के द्वंद्व की उपज कहूँ?’
“नहीं”
‘क्या मैं तुम्हें भदेस भाषा का जादूगर कहूँ?’
“नहीं”
‘क्या मैं तुम्हें लोकतंत्र का सजग प्रहरी कहूँ?’
“नहीं”
‘क्या मैं तुम्हें जनविमुख व्यवस्था की विद्रोही वाणी कहूँ?’
“नहीं”
‘क्या मैं तुम्हें सपनों का संघर्ष कहूँ?’
“हाँ”
‘क्या मैं तुम्हें मोहभंग का कोह कहूँ?’
“नहीं, ‘कूह’ कहो”
वे जो बेलाग और बेलौस
शब्द सजग चिंतक हैं
वे जो जनधर्मी चेतना के तीख़े स्वर हैं
वे जो बेचैन कर देने वाली प्रश्नाकुलता की परंपरा के प्रेरणास्रोत हैं
वे जो वक्त के वक्ता व वकील हैं
वे जो भास्वरता के कवि हैं
‘क्या तुम वही हो?’
“हाँ, मैं वही हूँ
जो ख़ुद के सवालों के सामने खड़ा हो जाता है
जो अवचेतन की भाषा में बड़ा हो जाता है
हाँ, मैं वही हूँ
जिसकी तुक का जोड़ नहीं
जिसके मुहावरे का तोड़ नहीं
हाँ, मैं वही हूँ
नक्सलबाड़ी का नायक
भारतीय संस्कृति का गायक
हाँ, मैं वही हूँ
जो तुम समझ रहे हो
हाँ, मैं वही हूँ!”
ओ साठोत्तरी पीढ़ी के प्रतिनिधि,
मेरे प्रियतम पुरखे धूमकेतु, अग्निधर्मा, आक्रोश के कवि!
मैंने तुम्हें याद करते हुए
महसूस किया कि
तुम्हारा दुःखबोध ही तुम्हारी कविता का प्राणतत्त्व है
तुमने नीली पलकों पर थरथराती हुई
आँसुओं की जो आवाज़ सुनी
वह मेरे युग की महाकाव्यात्मक पीड़ा है
क्या स्याह संवेदना सत्ता के लिए
विषैला कीड़ा है?
तुम चेतना के धरातल पर मेरे बहुत करीब हो
मैं अक्सर लोगों से कहता हूँ
कि धूमिल की धरती मेरी धरती है
खेवली और खजूरगाँव के बीच
शब्द-शिक्षक और शब्द-शिष्य का संबंध है
मैंने तुमसे भाषा में आदमी होने की तमीज़ सीखी
मेरे और तुम्हारे बीच एक ही माटी की गंध है
तुम मेरी आत्मा के प्रकाश हो
तुम मेरी मनोभूमि के आकाश हो
तुम मेरी भावभूमि के विचार हो
तुम मेरी धार हो
तुम मेरे आधार हो
तुम मेरे कवि का पहला प्यार हो
हे सामाजिक मन के सर्जक
युवा ऋषि कवि!
मैं तुम्हारी रचनाओं में ऊब और उदासी के बीच
उम्मीद को पाता हूँ
मैं तुम्हें अंतर्मन से गाता हूँ
तुम बन जाओ मेरा गीत
सरस-सरल-सहज संगीत
मैं तुम्हें गाता हूँ— ‘संसद से सड़क तक’
तुम मेरे प्रिय कवि हो
जैसे होते हैं सबके
वैसे ही
तुम्हारी जनपक्षधरता अद्भुत है
मैं चाहता हूँ— तुम ‘कल सुनना मुझे’
मेरे राग में तुम्हारी आग होगी
और मेरी लय में तुम्हारी जय
मैं तुम्हें गाऊँगा!
कल, मैं तुम्हें गाऊँगा!!
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4).
धूमिल की पुण्यतिथि
सड़कें जानती हैं कि
जब एक सूखी हुई नदी
न्याय की माँग करती है
तब लहरें चीखती हैं
और
रेत रक्त से लिखती है
कि माँ के आँसू
द्वीप को डूबो देंगे!
जहाँ धारा की ध्वनि है
चिता की राख से फूटी हुई
रोशनी बिजली में बदल रही है
क्या ख़ूब आँखों से बारिश होगी
इस धरा पर!
आह! रेत में सूरज डूब रहा है
सत्ता का सेतु गिर रहा है
चाँद को लग रहा है कि आज
किसी ऐसे कवि की पुण्यतिथि है
जिनकी कविताओं में बदलाव की एक अमर,
अपराजेय, अप्रतिहत अनुगूँज है
वेदना वैभव, सार्थक वक्तव्य, विचारवीथी है
नदी में नाव स्मृतिकथा कह रही है
कवि धूमिल की!
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5).
याद आते हैं
छब्बीस जनवरी के दिन
मुझे नागार्जुन का गणतंत्र याद आता है
मुझे याद आता है
'सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र'
मुझे याद आते हैं वे कवि
जो कहते हैं कि 'मुझे दूसरी पृथ्वी चाहिए'
मुझे याद आता है
ज्ञानेंद्रपति की 'संशयात्मा' का 249 वाँ पृष्ठ
मुझे याद आती हैं
अरुण कमल व श्रीप्रकाश शुक्ल की कविताएँ
'उत्सव' से लेकर
'देश के प्रधानमंत्री के नाम देश के एक नागरिक का ख़त'
मुझे 'क्षमा करो'
अशोक वाजपेयी भी जानते हैं
कि यह कैसा षड्यंत्र है
मैं देख रहा हूँ मदन कश्यप की आँखों से
कि 'अपना ही देश' में 'लहुलुहान लोकतंत्र' है
मुझे याद आती हैं राजेश जोशी की कुछ पंक्तियाँ
कि 'जो विरोध में बोलेंगे,
जो सच बोलेंगे,
वो मारे जाएंगे'
आज़ादी के अमृत महोत्सव पर
मैंने कहा था कि
मुझे रवीन्द्रनाथ ठाकुर का लिखा राष्ट्रगान नहीं
रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की रची गयी कविता
'जन-गण-मन' याद आ रही है
मुझे ऐसी कविताएँ याद आती हैं
पंद्रह अगस्त पर
या फिर गाँधी जयंती के दिन
लुढ़ियाया तिरंगा को देखकर!
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6).
धूमिल का घर मेरा दिल है
जब सपने धूमिल होते हैं
कवि धूमिल पैदा होते हैं
नई भाषा, नई कहन के साथ
वे गढ़ते हैं नये मुहावरे
और पढ़ते हैं आदमी को आदमी से
उनकी चेतना की चोट से चिनगारी उत्पन्न होती है
उनके प्रेम में गुस्सा है
गुस्सा में प्रेम है
उन्होंने कला में जीवन को वरीयता दी
उनकी आँखों को देखकर
मुझे अपनी आँखों की याद आयी
वे मेरी आँखों की भाषा जानते हैं
मैं साँस भर हवा हूँ
आँचल भर धूप हूँ
अँजुरी भर रूप हूँ
प्यास भर पानी हूँ
भूख भर अन्न हूँ
जीवन भर प्यार हूँ
सृजन भर सम्पन्न हूँ
वैयक्तिक-सामाजिक यथार्थ से लैस हूँ
मैं संवेदना और शब्द के बीच हाइफ़न हूँ
समय और समाज के बीच डैश हूँ
मैं धूमिल की धरती से हूँ
मुझे उनके घर जाने की आवश्यकता नहीं
क्योंकि उनका घर
मेरा दिल है!
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7).
धूमिल होना
एक शब्दवाहक में व्यंग्य के रंग अनेक हैं
और चेतना की चोट से उत्पन्न दूरगामी चिंगारी भी
वे कवि जो अपनी कविताओं में शब्दों को खोलकर रखते हैं
जिनकी टिप्पणियाँ जनता की ज़बान पर होती हैं
जो प्रजातंत्र को प्रश्नांकित करते हैं
जो भय, भूमि, भूख, भाषा
और भाव को परिभाषित करते हैं
जो धुंध में रोशनी देते हैं
जो कविता के किसान हैं
जो सच का सबूत पेश करते हैं
जो बीमारी, बसंत और बनारसी बात के ही नहीं
बल्कि स्वप्न, संघर्ष और मानवीय सौंदर्य के कवि हैं
जिनकी पहचान श्रम-संस्कृति की तान है
उन्हीं का नाम धूमिल है
धूमिल होना
कविता में आदमी होना है
भारतीय समाज की यंत्रणा का कवि होना है!
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8).
कविता मरने के बाद भी कवि को ज़िंदा रखती है
ब्रेन ट्यूमर की वजह से
तुम ही नहीं
कई कवि अल्प आयु में चल बसे
पर, तुम्हारा जाना
एक युग की सबसे बड़ी क्षति है
अब अभिव्यक्ति के नाम पर
कविता में गति नहीं,
यति है
केवल कोरा विचार
काश कि जब तुम बाहर आये
तुम्हारे हाथों में कविता के बजाय
दिमाग़ का एक्स-रे होता
तुम ज़िंदा होते!
पर, तुम्हारे दिमाग़ में आँतों का एक्स-रे था
और हाथों में कविता
क्योंकि
तुम जानते थे कि कविता मरने के बाद भी
तुम्हें ज़िंदा रखेगी!
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9).
नज़्र-ए-रत्नशंकर पाण्डेय
धुंध सूरज को कब तक रोकेगी?
गंध रंग को कब तक टोगेगी?
कोई मोचिन कब तक करेगी
अच्छे दिन का इंतज़ार?
भाषा की रात कब तक बीतेगी?
चाँद कब तक करेगा
नदी में डूब कर रोहिणी से प्यार?
खेवली में धूमिल के नाम से कब तक बनेगा गेट?
क्या कवि-पुत्र को मालूम है?
क्या रत्नशंकर ने धूमिल के कंधे पर काशी देखी है?
(मतलब, बेटा बाप के कंधे पर बनारस देखा है
या बनारसी रामलीला का रावण-दहन?
क्या ख़ूब है कवि की कहन!)
कविरत्न कैसे पिता थे रतन!
क्या वे कविता के बाहर भी गरम थे?
आक्रोशित दिखते थे?
वे बहुत ज़िद्दी थे न? रतन!
कभी ऐसा हुआ है कि वे कोई गीत लिख रहे थे
और उनके रत्न रोने लगे!
या फिर वे कुछ लिखकर रखे थे
उनके रत्न उसका जहाज़ बनाकर उड़ा दिए?
या बारिश में तैरा दिए?
फिर पीठ-पूजा हुई हो, कोई ऐसी घटना याद है रतन?
बहुत सुन लिया मैंने
उनके साथियों का संस्मरण
अब मैं जानना चाहता हूँ कि उनकी कौन सी रचना है
जिसका पहला श्रोता रतन हैं
और पहला पाठक भी
क्या कविरत्न की तरह रतन का बचपन भी आर्थिक संघर्षों में बीता है?
खैर, अब मुझे माता मूरत देवी को सुनना है
उनकी स्मृति के आलोक में आलोकित होना है
क्योंकि वे बिन भाषा
थके-हारे
धूमिल के उदास मन को राहत देती थीं!
■
धूमिल की धरती
प्रश्नाकुलता के साथ
प्रगीत में प्रज्ञा की तलाश के करते हुए
धूमिल की धरती पर किसी ने पूछा
कि मेरा उनसे क्या रिश्ता है
मैंने कहा कि जो संबंध लमही और लहरतारा के बीच है,
वही संबंध खेवली और खजूरगाँव के बीच है
वे अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ते थे
और मैं अक्षरों के नीचे दबी हुईं चीखें
सुनता हूँ!
©गोलेन्द्र पटेल
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संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
निवेदन :- यदि आपकी किताब या पत्रिका धूमिल से संबंधित है, धूमिल पर केंद्रित है, तो आप अपनी किताब या पत्रिका मुझे भेंट स्वरूप शीघ्र भेज सकते हैं, ताकि धूमिल पर आने वाली मेरी शोधपरक किताब में आपकी किताब या पत्रिका सहायक हो सके। आप अपनी किताबें उपर्युक्त डाक-पते पर ही भेजने की कृपा करें। आत्मिक धन्यवाद!!
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बहुत बढ़िया कविता
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचनाऍं
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