(कविता, दर्शन, समय और समाज पर विस्तृत वार्ता)
प्रश्नकर्ता: अर्जुन पटेल & इंद्रजीत सिंह
प्रश्न 1. आपकी कविताओं में समाज, दर्शन और प्रतिरोध — तीनों की सशक्त उपस्थिति दिखाई देती है। कविता की यह यात्रा आपके जीवन में कहाँ से आरंभ हुई?
गोलेन्द्र पटेल:
कविता मेरे लिए कोई अकस्मात घटना नहीं थी, यह भीतर की बेचैनी का स्वाभाविक विस्तार थी। गाँव-गली के जीवन, श्रमशील लोगों की हताश मुस्कानें और उनके भीतर छिपी करुणा ने मुझे लिखने के लिए विवश किया। जब भाषा में संवेदना ने दरवाज़ा खटखटाया, तभी कविता का जन्म हुआ। यह यात्रा समाज के दर्द से होकर शुरू हुई और अब दर्शन की ऊँचाइयों तक पहुँचने की कोशिश कर रही है।
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प्रश्न 2. ‘तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव’ जैसी कविताएँ संवेदना और संघर्ष का दस्तावेज़ हैं। आपके काव्य की मुख्य चिंताएँ क्या हैं?
गोलेन्द्र पटेल:
मेरी कविताओं का केंद्र मनुष्य है—वह मनुष्य जो हाशिए पर है, जो संघर्षरत है, जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ता है। मैं प्रेम, करुणा, असमानता और मुक्ति की बात करता हूँ। मेरे लिए कविता सिर्फ़ अनुभूति नहीं, एक वैचारिक प्रतिरोध है। मेरी चिंता यह है कि समाज में जो मौन हैं, उनकी आवाज़ कविता के माध्यम से गूँजे। ‘तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव’ में मित्रता, मुहब्बत, मानवता और मुक्ति की उदात्त अभिव्यक्ति है।
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प्रश्न 3. आपकी लेखनी में दर्शन और लोक–चेतना साथ-साथ चलती है। क्या आप कविता को साधना मानते हैं या संघर्ष का माध्यम?
गोलेन्द्र पटेल:
कविता मेरे लिए दोनों है। यह साधना भी है और संघर्ष भी। साधना इसलिए कि यह भीतर के अंधकार को उजाला देती है और संघर्ष इसलिए कि यह बाहर के अन्याय को चुनौती देती है। कविता आत्मा और समाज के बीच सेतु है — एक पुल जो भीतर की चेतना से बाहर के परिवर्तन तक जाता है। मैंने ’दुःख दर्शन’ शीर्षक से एक लंबी कविता लिखी है, जिसमें तथागत बुद्ध, कबीर, गुरुनानक, गोरखनाथ, सरहपा से लेकर निराला, अज्ञेय एवं समकालीन कवियों के दुःख चिंतन के साथ अपने समय और समाज के दुःख का दार्शनिक अध्ययन किया है।
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प्रश्न 4. आपके ऊपर किन कवियों, चिंतकों या आंदोलनों का प्रभाव रहा है?
गोलेन्द्र पटेल:
मुझे पर बुद्ध, सरहपा, कबीर, रैदास, तुकाराम, पलटूदास से लेकर फुले, अंबेडकर, पेरियार, राहुल सांकृत्यायन, मार्क्स, ओशो, स्टीफन हॉकिंगइत्यादि वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले कवियों, चिंतकों, विचारकों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों
के विचारों का प्रगतिशील प्रभाव है। मुझे कबीर की निर्भीकता, अंबेडकर की तर्कशीलता, लोहिया की सामाजिक दृष्टि और ओशो की मौन-चेतना ने प्रभावित किया। इन सबमें एक साझा तत्व है — बंधन तोड़ने की आकांक्षा। मैं इन्हीं से सीखता हूँ कि विचार तभी जीवित रहता है जब वह विद्रोह और करुणा दोनों को साथ लेकर चलता है।
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प्रश्न 5. आपने ‘गोलेन्द्रवाद’ जैसी एक मौलिक वैचारिक अवधारणा रखी है। इसका मूल तत्व क्या है?
गोलेन्द्र पटेल:
गोलेन्द्रवाद किसी व्यक्ति की पूजा नहीं, बल्कि मनुष्य की मुक्ति का दर्शन है। यह विचार कहता है — "कला तब तक अधूरी है जब तक वह अन्याय के विरुद्ध नहीं खड़ी होती।"
गोलेन्द्रवाद मानवीय चेतना का विज्ञान है, जो भक्ति, दर्शन और समाज–सुधार — तीनों को एक बिंदु पर मिलाता है। यह वाद नहीं, आत्मजागरण की प्रक्रिया है।
“गोलेन्द्रवाद (Golendrism) मानवीय जीवन जीने की पद्धति है, जो जाति, धर्म, भाषा और भूगोल से निरपेक्ष, समय-सापेक्ष वैज्ञानिक दर्शन के साथ मानवतावाद पर केंद्रित है।”
मित्रता उसका मूलाधार है, मुहब्बत उसका प्रवहमान हृदय; मानवता उसका सत्यस्वरूप है और मुक्ति उसकी परम परिणति— यही गोलेन्द्रवाद का चतुष्कोण, जीवन और सृष्टि का समग्र दर्शन है।
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प्रश्न 6. आज के बाज़ारवादी समय में कविता की भूमिका आप कैसे देखते हैं?
गोलेन्द्र पटेल:
आज कविता के सामने सबसे बड़ी चुनौती ‘दृष्टि की स्वतंत्रता’ है। बाज़ार कविता को मनोरंजन में बदल देना चाहता है, पर सच्ची कविता मनोरंजन नहीं, मुक्ति का साधन होती है। जो कविता सत्ता को प्रश्न नहीं करती, वह केवल शब्दों का शृंगार है। मुझे विश्वास है कि कविता ही वह आख़िरी भाषा है जो मनुष्य को बचा सकती है और वही मानवता की मशाल जलाती रहेगी।
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प्रश्न 7. आपकी कविताओं में बहुजन चेतना, स्त्री दृष्टि और वर्ग संघर्ष एक साथ गूँजते हैं। क्या आप अपने लेखन को किसी विशेष ‘वाद’ से जोड़कर देखते हैं?
गोलेन्द्र पटेल:
नहीं, मैं किसी वाद का कैदी नहीं हूँ, लेकिन मैं प्रत्येक ‘वाद’ से संवाद करता रहता हूँ। मैं अनुभव का कवि हूँ। मेरा लेखन दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, स्त्री, ट्रांसजेंडर और श्रमिक — इन सबकी सामूहिक चेतना से जन्म लेता है। मैं उन सबकी आवाज़ हूँ जिन्हें समाज ने ‘दूसरा’ या ‘तीसरा’ बना दिया। अगर किसी वाद से जोड़ना ही हो तो कह सकता हूँ — मेरा वाद मानववाद है, लेकिन वह भी संघर्षशील मानववाद।
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प्रश्न 8. आपकी रचनात्मक प्रक्रिया कैसी होती है?
गोलेन्द्र पटेल:
मैं कविता को सोचकर नहीं लिखता। कविता पहले आती है, शब्द बाद में। विचार जब बहुत गहराई तक उतर जाते हैं और भाषा उन्हें रोक नहीं पाती, तब कविता फूट पड़ती है। कई बार एक पंक्ति महीनों तक भीतर गूँजती रहती है और जब उसका अर्थ पूरा होता है, तब वह कविता बन जाती है।
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प्रश्न 9. आने वाले समय में आप किन परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं?
गोलेन्द्र पटेल:
मैं अभी “कल्कि-महाकाव्य” और “अंबेडकर के जीवन चरित पर केंद्रित महाकाव्य”, महाकाव्यात्मक लंबी कविता “पहाड़िन” पर काम कर रहा हूँ। यह श्रृंखला भविष्य के मनुष्य — विवेकशील, न्यायप्रिय और समतामूलक मनुष्य — की प्रतीकात्मक कथा है। इसके अतिरिक्त मैं “गोलेन्द्रवाद और समकालीन दर्शन” पर एक विस्तृत ग्रंथ तैयार कर रहा हूँ जो विचार और साहित्य के संबंध को नए सिरे से परिभाषित करेगा।
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प्रश्न 10. नई पीढ़ी के कवियों और पाठकों के लिए आपका क्या संदेश है?
गोलेन्द्र पटेल:
मैं यही कहना चाहता हूँ —
“सिर्फ़ लिखो नहीं, जियो भी कविता को।”
“हम कविता का पाठ नहीं, जीवन में प्रयोग करें।”
कविता तभी सच्ची होती है जब कवि अपने शब्दों की जिम्मेदारी जीता है। नई पीढ़ी से मेरा आग्रह है कि वे कविता को फैशन नहीं, चेतना के रूप में अपनाएँ। शब्दों की शक्ति समाज बदल सकती है, बशर्ते कवि उनमें आग और करुणा दोनों भर दे। हम शब्द, अग्नि और चेतना के प्रकाश को जनपक्षधर्मी बनायें।
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सार:
कवि गोलेन्द्र पटेल के शब्दों में कविता आत्मा की औषधि है।....कविता कोई विलास नहीं — यह भीतर की क्रांति है। कविताएँ हमें याद दिलाती हैं कि भाषा तभी सार्थक है जब वह अन्याय के विरुद्ध खड़ी होती है और मनुष्य के पक्ष में बोलती है।
