Saturday, 13 September 2025

नींद का विज्ञान : सेहत और सृजन — गोलेन्द्र पटेल

नींद का विज्ञान : सेहत और सृजन

               —गोलेन्द्र पटेल

नींद—
केवल आँखों में उतरता अंधकार नहीं,
यह शरीर का मौन चिकित्सक है,
हर कोशिका का प्रयोगशाला,
हर विचार का पुनर्जन्म।

रात ढलते ही
मस्तिष्क अपनी कार्यशाला खोलता है—
थके न्यूरॉनों की जालियाँ
सपनों के तरल में धुलती हैं।
स्मृति के बिखरे टुकड़े
नये अनुशासन में जुड़ते हैं,
ध्यान की पहेली
धीरे-धीरे हल होती है।

पर जब नींद अधूरी रह जाती है—
अधजले रसायनों से भर जाता है मस्तिष्क,
हृदय की धड़कनें असमंजस में,
धमनियाँ तनाव से काँपतीं,
रक्तचाप का अदृश्य चाकू
शरीर को भीतर से काटता है।

अपर्याप्त विश्राम—
चयापचय को अव्यवस्थित करता है,
वजन की परतें बोझ बनती हैं,
इंसुलिन का अनुशासन टूटता है,
मधुमेह भविष्य पर कब्ज़ा करता है।

प्रतिरक्षा भी
नींद की गोद पर निर्भर है।
साइटोकाइन्स घटते हैं,
टी-सेल्स सो जाते हैं,
संक्रमणों की आँधी
शरीर को असुरक्षित छोड़ देती है।

मस्तिष्क—
जहाँ विचार की ज्वाला जलती है,
वहाँ नींद के बिना
सिर्फ धुआँ बचता है।
स्मृति धुंधला जाती है,
निर्णय ग़लत होते हैं,
सीखना थम जाता है।
हिप्पोकैम्पस सिकुड़ता है,
प्रिफ्रंटल कोर्टेक्स सुस्त हो जाता है।
और हाँ—
दर्द की तीव्रता बढ़ती है,
नसें जैसे नंगे तार हो जाएँ।

नींद का अभाव—
अवसाद की काली लहर,
चिंता का चक्रव्यूह।
सेरोटोनिन की सूखी नदी,
डोपामाइन की कमी,
अमिग्डाला की अतिसक्रियता,
ग़ाबा की शांति छिनती।

यौन जीवन भी इससे अछूता नहीं—
टेस्टोस्टेरोन घटता है,
इच्छाएँ राख में बदलती हैं,
थका शरीर केवल विश्राम चाहता है,
संबंधों की ऊष्मा ठंडी पड़ जाती है।

दुर्घटनाएँ भी
इसी गणित से जुड़ी हैं।
एक क्षण की ऊँघ
जीवन और मृत्यु का फ़ासला तय कर देती है।
दिन की सुस्ती,
रिएक्शन टाइम की देरी,
कार्यक्षमता का पतन।

विज्ञान कहता है—
स्वस्थ वयस्क को चाहिए
सात से नौ घंटे की गहरी नींद।
आरईएम की परतें,
डेल्टा वेव्स की गहराई,
यही शरीर का पुनर्निर्माण है।
बच्चों को चाहिए अधिक,
किशोरों को विकास हेतु,
एथलीटों को पुनःस्फूर्ति हेतु।

नींद आलस्य नहीं,
जीवन का मौन रसायन है।
यदि आप हृदय सुरक्षित रखना चाहते हैं,
मस्तिष्क को तीक्ष्ण,
स्मृति को सजीव,
ऊर्जा को अक्षुण्ण—
तो नींद को संजोइए।

सुनो अपने शरीर की फुसफुसाहट—
नियमित रिदम बनाओ,
सर्कैडियन घड़ी का मान रखो।
नीली रोशनी से बचो,
कैफीन की बेड़ियाँ तोड़ो।
संदेह हो तो चिकित्सक से मिलो—
स्लीप एप्निया, अनिद्रा का इलाज खोजो।

याद रखो—
नींद स्वास्थ्य का आधार है,
उसकी कमी मृत्यु का निमंत्रण,
पूर्णता जीवन का उत्सव।
★★★

♣ कठिन शब्दों का मतलब:-


1. न्यूरॉन – मस्तिष्क और नसों की मूल कोशिका (संदेशवाहक)।
2. चयापचय (Metabolism) – शरीर में ऊर्जा और पदार्थों का बनने-टूटने की प्रक्रिया।
3. इंसुलिन – हार्मोन, जो रक्त में शुगर नियंत्रित करता है।
4. साइटोकाइन्स – प्रोटीन, जो रोग-प्रतिरोधक संदेश पहुँचाते हैं।
5. टी-सेल्स – प्रतिरक्षा कोशिकाएँ, जो संक्रमण से लड़ती हैं।
6. हिप्पोकैम्पस – मस्तिष्क का भाग, याददाश्त और सीखने से जुड़ा।
7. प्रिफ्रंटल कोर्टेक्स – मस्तिष्क का आगे का हिस्सा, निर्णय और योजना बनाता है।
8. सेरोटोनिन – रसायन, मनोदशा और नींद नियंत्रित करता है।
9. डोपामाइन – रसायन, सुख, प्रेरणा और पुरस्कार की भावना देता है।
10. अमिग्डाला – मस्तिष्क का भाग, डर और भावनाओं को नियंत्रित करता है।
11. ग़ाबा (GABA) – मस्तिष्क का शांत करने वाला रसायन।
12. टेस्टोस्टेरोन – पुरुष यौन हार्मोन (शक्ति, यौन इच्छा, मांसपेशी वृद्धि)।
13. आरईएम (REM Sleep) – नींद का चरण, जब सपने आते हैं।
14. डेल्टा वेव्स – गहरी नींद के समय मस्तिष्क की धीमी तरंगें।
15. सर्कैडियन – शरीर की 24 घंटे की जैविक घड़ी।
16. कैफीन – उत्तेजक रसायन (कॉफी/चाय में), नींद भगाता है।
17. स्लीप एप्निया – नींद में सांस रुक-रुक कर चलने की समस्या।

__________________________________________

रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (युवा कवि-लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)

संपर्क सूत्र :-
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
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ईमेल : corojivi@gmail.com

Friday, 12 September 2025

नाटक: “लौह पुरुष – सरदार”


लेखक : गोलेन्द्र पटेल 


नाटक: “लौह पुरुष – सरदार”


पात्र परिचय

  1. सरदार वल्लभभाई पटेल – भारत के लौह पुरुष, किसानों और राष्ट्र के एकीकरण के अदम्य नेता। कठोर परंतु न्यायप्रिय, शांत परंतु अडिग, लोहे से भी कठोर और पानी से भी सरल।
  2. झवेरबा (पत्नी) – ममतामयी, धैर्यशील, जीवन में जल्दी गुज़र जाने के बावजूद नाटक में उनकी स्मृति और आत्मिक उपस्थिति।
  3. मणिबेन पटेल (बेटी) – दृढ़ विचारों वाली, पिता की छाया में राजनीति और समाजसेवा का संकल्प लेने वाली नारी।
  4. दह्याभाई पटेल (बेटा) – सरल, व्यवसाय में रत, पिता की कठोर छवि से थोड़े दूरी पर किंतु स्नेह में बंधे।
  5. महात्मा गांधी – अहिंसा और सत्याग्रह के जनक, जिनके स्नेह और मार्गदर्शन से पटेल का राजनैतिक मार्ग प्रशस्त हुआ।
  6. जवाहरलाल नेहरू – आधुनिक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, विचारों में पटेल से कई बार मतभेद, परंतु राष्ट्रहित में साथी।
  7. डॉ. भीमराव अंबेडकर – संविधान निर्माता, सामाजिक न्याय और समानता के प्रखर योद्धा, जिनके साथ पटेल का वैचारिक संवाद।
  8. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद – भारत के प्रथम राष्ट्रपति, सरल, धैर्यशील, पटेल के निकट सहयोगी।
  9. स्वतंत्रता सेनानी – सामूहिक पात्र; किसानों, मज़दूरों, नौजवानों और क्रांतिकारियों का प्रतिनिधित्व।
  10. भारत (पात्र रूप में) – वेशभूषा में एक जीवंत भारत; कभी माँ, कभी शिशु, कभी योद्धा, कभी किसान, कभी घायल पर आशावान।
  11. वाचक – सूत्रधार; घटनाओं का संक्षेप, समय और संदर्भ बताने वाला।

गीत 1: “लौह पुरुष का जयगान”

• यह गीत नाटक के आरंभ में सामूहिक कोरस द्वारा गाया जाएगा।
• भारत पात्र मंच पर आएगा, सेनानी, किसान और जनता संग मिलकर सरदार का स्वागत गाएंगे।

कोरस (सभी मिलकर):

लौह पुरुष का जयगान, भारत की शान, भारत की जान,
एक ध्वज, एक पहचान – सरदार है, सरदार महान!

अंतरा 1 (स्वतंत्रता सेनानी):

खेड़ा की धरती गाती, बारडोली गूंज उठाती,
किसान का हर अश्रु बना, संग्राम की ललकार!
अन्याय के विरुद्ध खड़ा, सत्याग्रह का दीप जला,
भारत माँ की माटी में, लौह-पुरुष का संचार!

(कोरस दोहराव)
लौह पुरुष का जयगान, भारत की शान, भारत की जान…

अंतरा 2 (भारत पात्र):

रियासतें बिखरी हुईं, टूटी चीर मेरी,
पटेल ने सी दी धागों से, ममता गहरी-गहरी।
जूनागढ़ से हैदराबाद तक, खड़ा रहा अडिग,
भारत का मान बढ़ाने को, सरदार सदा प्रखर!

(कोरस दोहराव)
लौह पुरुष का जयगान, भारत की शान, भारत की जान…

अंतरा 3 (मणिबेन और सेनानी):

बेटी का संकल्प यही, पिता का सपना पूरा हो,
जनता के जीवन में अब, न्याय और उजियारा हो।
त्याग, तपस्या, बलिदान,
भारत का लौह-निर्माण!

(अंत में कोरस सब मिलकर ऊँचे स्वर में गाएँ)
लौह पुरुष का जयगान,
भारत की शान, भारत की जान!
एक ध्वज, एक पहचान – सरदार है, सरदार महान!!


गीत 2: “राष्ट्र एकता का बिगुल”

• यह गीत नाटक के मध्य में, रियासतों के एकीकरण दृश्य में गाया जाएगा।
• सरदार पटेल, सेनानी और भारत मिलकर इसे घोषणापत्र की तरह गाएँगे।

कोरस (सभी मिलकर):

एक भारत, श्रेष्ठ भारत,
हम सबका संकल्प भारत!
सरदार के नेतृत्व में,
अविभाज्य अखंड भारत!!

अंतरा 1 (सरदार पटेल):

नहीं बँटेगा धर्म-पंथ से, नहीं झुकेगा लोभ से,
रियासतों की बिसात पर, चलेगा राष्ट्र-स्वरूप से।
न झुकेंगे हम किसी के, न टूटेगा ये वतन,
भारत माता के लिए, अर्पित हर जीवन!

(कोरस दोहराव)
एक भारत, श्रेष्ठ भारत, हम सबका संकल्प भारत!

अंतरा 2 (भारत):

मिट्टी से आवाज़ उठी, गूँजा जन-जन नारा,
“सरदार हमारा पथप्रदर्शक, अब न होगा बँटवारा!”
सिंधु से गंगा तक की, एक ध्वजा लहराए,
जन-मन-गण का स्वर, अब गगन चीर जाए!

(कोरस दोहराव)
एक भारत, श्रेष्ठ भारत, हम सबका संकल्प भारत!

अंतरा 3 (अंबेडकर और सेनानी):

समानता का दीप जले, न्याय का उजियारा,
जाति-पांति का बंधन टूटे, मिटे अँधियारा।
आज़ाद भारत बोलेगा, लोहे-सा अटल स्वर,
भूख और भय से मुक्त, होगा यह देश अमर!

(अंतिम कोरस – सब मिलकर ऊँचे स्वर में, मंच पर झंडा फहराते हुए)
एक भारत, श्रेष्ठ भारत,
हम सबका संकल्प भारत!
सरदार के नेतृत्व में,
अविभाज्य अखंड भारत!!


नाटक प्रारंभ : “लौह पुरुष – सरदार”


अंक 1 : बीज और संघर्ष

दृश्य 1 : खेड़ा का गाँव – सरदार का बचपन

(मंच पर किसान, हल, बैल। वाचक आगे आता है।)

वाचक :
यह गुजरात की धरती है। करमसद गाँव।
यहाँ जन्मा वह बालक, जो आगे चलकर भारत के इतिहास का लौह-पुरुष कहलाया।
नाम – वल्लभभाई झवेरभाई पटेल।

(झवेरभाई और लाडबा किसान के रूप में मंच पर। छोटा वल्लभ हाथ में किताब और हल दोनों सँभालता है।)

लाडबा : बेटा, पढ़ाई भी ज़रूरी है और खेत भी।
छोटा वल्लभ : माँ, मैं किताब से न्याय सीखूँगा और हल से श्रम। यही भारत का भविष्य है।

(धीमे से ढोलक, पृष्ठभूमि में किसानों का गीत)


दृश्य 2 : खेड़ा सत्याग्रह (1918)

(किसान कर लगान न चुका पाने की व्यथा कह रहे। अंग्रेज अफसर कठोर आदेश दे रहा।)

किसान : सरकार ने अकाल में भी लगान माँगा। हम कैसे दें?
सरदार (युवा रूप में प्रवेश करते हुए) :
“जब किसान टूटेगा, तो भारत टूटेगा।
हम न देंगे एक पैसा लगान!”

(जनसमूह जयकार करता है – “सरदार पटेल की जय!”)

वाचक :
यहीं से वल्लभभाई बने “सरदार”।

(गीत 1 “लौह पुरुष का जयगान” का मंचन, कोरस में सब गाते हैं।)


अंक 2 : स्वतंत्रता और राजनीति

दृश्य 1 : गाँधी और पटेल

(गाँधी और पटेल आमने-सामने, पृष्ठभूमि में चरखा।)

गाँधी :
वल्लभ, तुम्हारी दृढ़ता लोहे जैसी है।
पर याद रखो, हमारे हथियार हैं सत्य और अहिंसा।

पटेल :
बापू, अहिंसा हमारी आत्मा है।
लेकिन दृढ़ता हमारी ढाल।
भारत को मुक्त करने के लिए दोनों ज़रूरी हैं।


दृश्य 2 : बारडोली सत्याग्रह (1928)

(मंच पर स्त्रियाँ, किसान, नौजवान। अंग्रेज अफसर आदेश पढ़ता है।)

अफसर :
“लगान दुगना होगा। विरोध किया तो जेल।”

मणिबेन (भीड़ से निकलकर) :
नहीं देंगे लगान!
हमारे पास पेट भरने को अन्न नहीं, और तुम खून चूसना चाहते हो?

पटेल (गर्जन स्वर में) :
“बारडोली की मिट्टी से जो आवाज़ उठी है,
वह साम्राज्य की नींव हिला देगी!”

(जनता मिलकर नारा लगाती है – “सरदार! सरदार!”)


दृश्य 3 : गाँधी, नेहरू और पटेल की बहस

(तीनों मंच पर। पृष्ठभूमि में भारत का नक्शा टंगा हुआ।)

नेहरू :
भारत को आधुनिक, वैज्ञानिक, समाजवादी दिशा चाहिए।

पटेल :
भारत को पहले अखंड होना चाहिए।
बिखरा हुआ भारत किसी विज्ञान या समाजवाद का बोझ नहीं उठा सकता।

गाँधी :
तुम दोनों सही हो। पर पहले आज़ादी ज़रूरी है।

(तनाव का संगीत, मंच पर रोशनी धुंधली।)


अंक 3 : रियासतों का एकीकरण

दृश्य 1 : स्वतंत्र भारत – 1947

(वाचक आगे आता है, मंच पर नक्शा जिसमें रियासतें अलग-अलग दिखाई जाती हैं।)

वाचक :
आज़ादी मिली, पर भारत अभी टूटा हुआ था।
562 रियासतें – हर राजा अपना ताज पहने खड़ा।
इन सबको एक करने का भार सरदार पर पड़ा।

(सरदार मंच पर आते हैं, कठोर स्वर में)

पटेल :
“भारत एक है, रहेगा।
जो नहीं मानेगा,
वह इतिहास के गर्त में जाएगा!”

(गीत 2 “राष्ट्र एकता का बिगुल” – कोरस और सरदार के साथ सब गाते हैं। मंच पर नक्शा जुड़ने लगता है।)


दृश्य 2 : अंबेडकर और पटेल संवाद

(संविधान सभा का मंच।)

अंबेडकर :
जाति का जहर न मिटा, तो यह आज़ादी अधूरी है।
समानता ही सच्चा राष्ट्र है।

पटेल :
सही कहा बाबा साहेब।
मैं अखंडता सँभालूँगा,
आप न्याय और समानता की नींव रखिए।

(दोनों हाथ मिलाते हैं। जनता तालियाँ बजाती है।)


अंक 4 : विरासत और लौह पुरुष का अमरत्व

दृश्य 1 : पटेल का अंतिम समय (1950)

(मंच पर मंद रोशनी, मणिबेन और दह्याभाई पास बैठे हैं।)

पटेल (धीरे स्वर में) :
मणि… दह्या…
मेरा शरीर मिट्टी है, पर भारत अमर है।
याद रखना – “भारत टूटेगा नहीं, बिखरेगा नहीं।”

(पटेल आँखें मूँदते हैं। मंच पर मौन। पृष्ठभूमि में ढोलक और शंख।)


दृश्य 2 : भारत का उद्गार

(भारत पात्र मंच पर आता है, सैनिक, किसान, स्त्रियाँ और युवा उसके चारों ओर।)

भारत (गूँजते स्वर में):
“यह लौह पुरुष अमर रहेगा।
हर खेत, हर गाँव, हर शहर में,
उसकी दृढ़ता, उसकी आग,
उसकी एकता की गूंज गूँजती रहेगी!”

(गीत 1 और गीत 2 का संयुक्त अंतिम कोरस, सब पात्र मिलकर गाते हैं।)

सभी पात्र (कोरस):
एक भारत, श्रेष्ठ भारत,
हम सबका संकल्प भारत!
सरदार के नेतृत्व में,
अविभाज्य अखंड भारत!!

(झंडा फहरता है, रोशनी उज्ज्वल, परदा गिरता है।)


★★★


रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ जनकवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)

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Wednesday, 10 September 2025

चंदौली जनपद : भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में एक शोधपरक अध्ययन

चंदौली : धान का कटोरा, इतिहास की नदी
          —गोलेन्द्र पटेल


गंगा की गोद में बसा यह जनपद,
मिट्टी में अन्न का संगीत समेटे,
धान की बाली हर खेत में झूमे,
धरती उपजाऊ गीत गुनगुनाती।

कर्मनाशा सीमाएँ बाँधती,
चंद्रप्रभा के झरने गूँजते,
राजदरी–देवदरी की गर्जना में
प्रकृति अनन्त नृत्य रचती।

चंदौली!
तुम केवल नक्शे की रेखा नहीं,
तुम्हारी धमनियों में बहता है इतिहास,
जहाँ ईंटों के अवशेष
राजवंशों की गाथाएँ सुनाते हैं।

काशी राज्य की छाया में सँवरा अस्तित्व,
जहाँ बुद्ध की गूँज है,
जैन स्मृतियाँ हैं,
पुराणों की धूल अमर हुई है।

रामगढ़ में जन्मे बाबा कीनाराम—
अघोर की ज्वाला जगाने वाले,
शिव-शक्ति को मानव सेवा में उतारने वाले—
तुम्हारी धरती का गर्व बने।

हेतमपुर का किला, टोडरमल की छाप,
चौदहवीं शताब्दी की परछाइयाँ—
खंडहर आज भी यात्रियों को बुलाते हैं।
बलुआ में गंगा पश्चिमवाहिनी बहती,
माघ मेले में आस्था उमड़ती है।

स्वतंत्रता की तपती मिट्टी याद दिलाती
धानापुर का शहीद स्मारक,
घोसवां और खखरा की धरती
विद्रोह की कहानियाँ अब भी साँस लेती है।

लाल बहादुर शास्त्री की जन्मभूमि
सादगी और दृढ़ता का प्रतीक बनी,
जिसकी छवि राष्ट्र की आत्मा में रची-बसी।

चकिया में लतीफ शाह का मकबरा
सूफी परंपरा की याद दिलाता है,
और मुगलसराय—
आज पं. दीनदयाल उपाध्याय नगर—
रेल की चीखों में धड़कता हृदय है।

जरी की नक्काशी से जगमगाते गाँव—
खजूरगाँव, गोपालपुर, दुल्हीपुर—
उँगलियों के हुनर से
वाराणसी की रौनक गढ़ते हैं।

जंगलों की हरियाली,
चंद्रप्रभा अभयारण्य का आकर्षण,
लतीफ शाह बाँध की झूमती जलधारा,
ट्रेकरों को पुकारती फुहारें—
सब मिलकर प्रकृति का पर्व रचते हैं।

1997 में बना यह जनपद
चार विधानसभाओं और एक लोकसभा सीट का घर,
उत्तर-पूर्व भारत का रेल द्वार,
जहाँ यात्राएँ मिलतीं,
यात्राएँ बनतीं।

जनसंख्या उन्नीस लाख के पार,
लिंगानुपात नौ सौ अठारह,
साक्षरता साठ प्रतिशत—
प्रगति की ओर बढ़ता संतुलित समाज।

नारायण सिंह जैसे सपूत
आदिवासी उत्थान के योद्धा बने,
कादिराबाद और शमशेरपुर की गाथाएँ
जनचेतना का दीप जलाती हैं।

चंदौली!
तुम्हें केवल धान का कटोरा कहना अधूरा है।
तुम हो धरोहरों का खजाना,
संघर्ष की निशानी,
कृषि और श्रम का गर्व,
संस्कृति और प्रकृति का संवाद।

गंगा तुम्हारे सीने को चूमती है,
कर्मनाशा तुम्हें बाँधती है,
और तुम्हारी मिट्टी में
हर पीढ़ी अपना इतिहास बोती है।

तुम अतीत भी हो, वर्तमान भी,
और भविष्य की आँखों का सपना भी—
जहाँ खेतों की हरियाली,
झरनों की गूँज,
किलों की खामोशी,
और लोगों का संघर्ष
मिलकर गाते हैं—
“चंदौली की अमर गाथा।”
★★★


चंदौली जनपद : भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में एक शोधपरक अध्ययन

प्रस्तावना

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में स्थित चंदौली जनपद अपनी भौगोलिक विशिष्टता, कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक धरोहर, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक स्मृतियों के कारण एक महत्वपूर्ण जनपद के रूप में पहचाना जाता है। वाराणसी मण्डल का हिस्सा होने के बावजूद चंदौली ने अपनी अलग सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान गढ़ी है। प्रशासनिक दृष्टि से इसका गठन 1997 में हुआ, किंतु इतिहास और संस्कृति के आयाम इसे हजारों वर्षों की विरासत से जोड़ते हैं।

इस शोध निबंध का उद्देश्य चंदौली को केवल "धान का कटोरा" या "रेलवे हब" के रूप में देखने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके भौगोलिक परिदृश्य, ऐतिहासिक घटनाओं, सांस्कृतिक संरचना, धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक संरचनाओं और आर्थिक गतिशीलता का समग्र विवेचन करना है।


1. भौगोलिक परिप्रेक्ष्य

1.1 स्थान और सीमाएँ

चंदौली 24°56′ से 25°35′ उत्तरी अक्षांश तथा 81°14′ से 84°24′ पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है।

  • उत्तर में गाजीपुर,
  • दक्षिण में सोनभद्र,
  • पश्चिम में मिर्ज़ापुर तथा
  • पूर्व में बिहार राज्य की सीमाएँ इसे घेरती हैं।

कर्मनाशा नदी चंदौली और बिहार की प्राकृतिक सीमा निर्धारित करती है, जबकि गंगा और चंद्रप्रभा नदियाँ इसकी भूमि को उर्वरता और जीवन प्रदान करती हैं।

1.2 स्थलाकृति और प्राकृतिक संसाधन

औसत 70 मीटर ऊँचाई पर स्थित यह जिला गंगा के मैदान और विन्ध्याचल की पहाड़ियों के बीच एक संक्रमण क्षेत्र है।

  • मैदान क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त है।
  • दक्षिणी हिस्से में चंद्रप्रभा अभयारण्य और उससे जुड़े वनक्षेत्र जैवविविधता का महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
  • यहाँ राजदरी, देवदरी और छनपातर जैसे जलप्रपात पर्यावरणीय पर्यटन के बड़े केंद्र बन सकते हैं।

2. कृषि और अर्थव्यवस्था

2.1 "धान का कटोरा"

चंदौली की पहचान मुख्यतः कृषि से है।

  • गंगा के मैदानी इलाकों की जलोढ़ मिट्टी और सिंचाई के साधनों ने इसे धान उत्पादन का केंद्र बनाया है।
  • यहाँ उगाया जाने वाला काला नमक धान और सुगंधित चावल अपनी गुणवत्ता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।

2.2 अन्य फसलें और अर्थव्यवस्था

  • गेहूँ, दालें और तिलहन भी व्यापक रूप से उत्पादित होते हैं।
  • जरी उद्योग और लघु हस्तशिल्प यहाँ के लोगों की अतिरिक्त आय का स्रोत हैं।
  • हाल के वर्षों में डेयरी और बागवानी क्षेत्र भी विकसित हुए हैं।

2.3 आर्थिक योगदान

धान और गेहूँ के उत्पादन के माध्यम से यह जनपद राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में योगदान देता है। चंदौली का आर्थिक ढांचा कृषि आधारित होते हुए भी रेलवे, व्यापार और हस्तशिल्प पर निर्भर करता है।


3. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

3.1 प्राचीन इतिहास

चंदौली क्षेत्र प्राचीन काशी महाजनपद का हिस्सा रहा है। पुराणों, महाभारत और बौद्ध ग्रंथों में काशी और इसके आसपास के क्षेत्रों का उल्लेख मिलता है।

  • यह क्षेत्र बौद्ध, जैन और वैदिक परंपराओं का संगम रहा।
  • बलुआ का "पश्चिम वाहिनी मेला" गंगा के विशिष्ट प्रवाह को लेकर धार्मिक-ऐतिहासिक महत्व रखता है।
  • भगवान तथागत बुद्ध के बुद्धत्व प्राप्ति के बाद बोधगया से सारनाथ की यात्रा के दौरान उनके चरणकमल चंदौली की धरती पर भी पड़ें। इस संदर्भ में गोलेन्द्र पटेल की “अर्धचंद्र मार्ग” कविता प्रस्तुत है:- 

“बोधि-वृक्ष तले जगा आलोक,
तथागत चले अर्धचंद्र पथ पर,
जहाँ गंगा झुकी हुई बहती,
बनारस की निस्तब्ध धरा पर।

सारनाथ में फूटा प्रथम स्वर,
धम्मचक्र संग बदली दिशा—
कौण्डिन्य, वप्पा, भद्रिय, महानाम,
अश्वजीत बने बोध की परिभाषा।

पाँच दीप जले, अंधकार टूटा,
मानवता ने पाया नया आयाम,
चंदौली की राह से गुज़री
करुणा की वह अनुपम शाम।

पंचवर्गीय भिक्षु बने साक्षी,
धम्मदीक्षा की उस ध्वनि के—
नवजागरण का प्रथम प्रकाश,
अमर हुआ मानव जीवन में।

गंगा का अर्धचंद्राकार प्रवाह,
सत्य की अनुगूंज में रमता;
धर्मचक्र की चिरंतन गति
अनंत दिशाओं में गूँजता।”

3.2 मध्यकालीन इतिहास

मुगल और सूरी साम्राज्य के काल में यहाँ अनेक किले और दुर्ग बने।

  • हेतमपुर किला इसका प्रमुख उदाहरण है।
  • चंदौली के ग्रामीण अंचलों में आज भी प्राचीन ईंटों और अवशेषों के चिन्ह बिखरे मिलते हैं।

3.3 औपनिवेशिक और स्वतंत्रता संग्राम का दौर

  • चंदौली ने स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • घोसवां, खखरा और धानापुर जैसे स्थान विद्रोही गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध रहे।
  • बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह जैसे व्यक्तित्वों ने शिक्षा, राजनीति और आदिवासी उत्थान में योगदान दिया।

4. सांस्कृतिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य

4.1 संत परंपरा

  • संत बाबा कीनाराम की जन्मभूमि रामगढ़ (सकलडीहा) है। वे अघोर संप्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं।
  • यह परंपरा आज भी सामाजिक-सांस्कृतिक विमर्श में सक्रिय है।

4.2 धार्मिक स्थल

  • अघोराचार्य बाबा कीनाराम मंदिर,
  • बाबा लतीफ शाह की मजार (चकिया),
  • धानापुर शहीद स्मारक,
  • बलुआ माघ मेला स्थल
    चंदौली की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान को परिभाषित करते हैं।

4.3 आधुनिक गौरव

भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म यहीं पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर (पूर्व मुगलसराय) में हुआ। इससे चंदौली को राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान मिली।


5. सामाजिक संरचना और जनसांख्यिकी

2011 की जनगणना के अनुसार—

  • जनसंख्या : लगभग 19.5 लाख
  • घनत्व : 769 व्यक्ति/वर्ग किमी
  • साक्षरता : 60.2% (पुरुष 74%, महिला 55%)

चंदौली की सामाजिक संरचना बहुजन समाज की विविधता से निर्मित है, जिसमें दलित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों की सक्रिय भागीदारी है। यह जनपद सामाजिक गतिशीलता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का क्षेत्र रहा है।


6. प्रशासनिक और रेल कनेक्टिविटी

6.1 प्रशासनिक ढांचा

  • गठन : 20 मई 1997
  • मुख्यालय : चंदौली
  • तहसीलें : सैयदराजा, चकिया, सकलडीहा, पं. दीनदयाल उपाध्याय नगर
  • लोकसभा क्षेत्र : चंदौली
  • विधानसभा क्षेत्र : चार

6.2 रेल और सड़क कनेक्टिविटी

  • पं. दीनदयाल उपाध्याय नगर (मुगलसराय) स्टेशन एशिया के सबसे व्यस्त रेलवे जंक्शनों में से एक है।
  • यहाँ से पूर्वी भारत और उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख मार्ग जुड़ते हैं।
  • राष्ट्रीय राजमार्ग और एक्सप्रेस-वे इसे उत्तर प्रदेश के औद्योगिक नगरों से जोड़ते हैं।

7. पर्यटन और आधुनिक संभावनाएँ

चंदौली प्राकृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है।

  • चंद्रप्रभा अभयारण्य : वन्यजीव प्रेमियों और पर्यावरणीय शोध के लिए आदर्श।
  • राजदरी और देवदरी झरने : इको-टूरिज्म के बड़े केंद्र।
  • हेतमपुर किला : पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लाए जाने योग्य।
  • बलुआ का पश्चिम वाहिनी मेला : सांस्कृतिक पर्यटन की धरोहर।

पर्यटन के विकास से यह जनपद न केवल आर्थिक दृष्टि से सशक्त हो सकता है, बल्कि स्थानीय कारीगरों और किसानों की आय भी बढ़ सकती है।


8. समकालीन चुनौतियाँ और संभावनाएँ

  • शिक्षा और स्वास्थ्य : महिला साक्षरता अब भी औसत से कम है।
  • औद्योगिक विकास : बड़े उद्योगों की कमी के कारण युवा पलायन करते हैं।
  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ : वनों की कटाई और खनन गतिविधियाँ जैवविविधता को प्रभावित कर रही हैं।

फिर भी,

  • धान आधारित एग्री-इंडस्ट्री,
  • इको-टूरिज्म,
  • जरी हस्तशिल्प का आधुनिकीकरण,
  • और रेलवे-आधारित लॉजिस्टिक हब का विकास
    चंदौली को उत्तर भारत का एक आधुनिक औद्योगिक-पर्यटन केंद्र बना सकता है।

निष्कर्ष

चंदौली जनपद केवल उत्तर प्रदेश का एक प्रशासनिक जिला नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, संस्कृति, कृषि और आधुनिक विकास का संगम है। गंगा और चंद्रप्रभा जैसी नदियाँ इसे जीवन देती हैं, संत बाबा कीनाराम जैसी विभूतियाँ इसे आध्यात्मिक पहचान देती हैं, लाल बहादुर शास्त्री जैसा व्यक्तित्व इसे राष्ट्रीय गौरव से जोड़ता है और धान की उपजाऊ फसलें इसे "धान का कटोरा" बनाती हैं।

इस प्रकार, चंदौली का अध्ययन केवल क्षेत्रीय महत्व का विषय नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज के कृषि-आधारित इतिहास, सांस्कृतिक विविधता और आधुनिक विकास की चुनौतियों को समझने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है।


★★★


अध्ययनकर्ता: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


Tuesday, 9 September 2025

"हद से ज़्यादा" और "हद से अधिक" में अंतर

"हद से ज़्यादा" और "हद से अधिक" — दोनों ही व्याकरण की दृष्टि से सही और प्रचलित हैं, लेकिन इनमें सूक्ष्म अंतर है:


1. हद से ज़्यादा :-

यह रोज़मर्रा की बातचीत और भावपूर्ण हिंदी/उर्दू में ज़्यादा प्रचलित है। इसमें सहजता और भावनात्मकता अधिक झलकती है। उदाहरण: "वह हद से ज़्यादा भावुक हो गया।"


2. हद से अधिक :-

यह अपेक्षाकृत औपचारिक और साहित्यिक/लेखन की भाषा में प्रयुक्त होता है। इसमें गंभीरता और तटस्थता अधिक होती है। उदाहरण: "इस प्रयोग में हद से अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।"


इसलिए चुनाव प्रसंग पर निर्भर करता है :-

अगर आप सामान्य कथन या बातचीत का भाव रखना चाहते हैं → "हद से ज़्यादा"


अगर आप औपचारिक, निबंधात्मक या साहित्यिक शैली चाहते हैं → "हद से अधिक"


❝ अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा प्रतिभा को परिष्कृत नहीं करती, बल्कि नष्ट कर देती है। इसलिए जब कोई हद से अधिक प्रशंसा करे, तो सावधान हो जाना चाहिए। प्रतिभा को पुरखों से प्रेरणा और प्रतिक्रिया, दोनों एकसाथ ग्रहण करनी चाहिए, क्योंकि केवल प्रेरणा या केवल प्रतिक्रिया ग्रहण करने से प्रतिभा परिष्कृत नहीं होती। ❞ — गोलेन्द्र पटेल 

★★★


टिप्पणीकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
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Monday, 8 September 2025

प्रबुद्ध भारत का आह्वान : बहुजन क्रांति का घोषणापत्र — गोलेन्द्र पटेल

5 अगस्त, 2025


प्रबुद्ध भारत का आह्वान : बहुजन क्रांति का घोषणापत्र

— गोलेन्द्र पटेल 

हम इतिहास बनाते हैं, पर इतिहासकार हमें मिटा देते हैं।” — डॉ. भीमराव अंबेडकर

भारत का वर्तमान और भविष्य तभी सुरक्षित हो सकता है जब इसका मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी अस्मिता, अस्तित्व और अधिकार के लिए जाग्रत होकर संगठित संघर्ष करे। यह संघर्ष केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का है। जैसा कि साहेब कांशीराम ने कहा था— “हम सत्ता में भागीदार नहीं, बल्कि हिस्सेदार बनकर रहेंगे।”

आज का बहुजन समाज अपमान, शोषण और वंचना की पीड़ाओं से गुजर रहा है। जल, जंगल, ज़मीन से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार तक हर क्षेत्र में ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी ताक़तों ने इन्हें हाशिये पर धकेला है। परंतु इतिहास गवाह है कि जब-जब अन्याय अपने चरम पर पहुँचा है, तब-तब बहुजन चेतना ने विद्रोह की मशाल जलाई है।

तथागत बुद्ध ने कहा था— “चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।” यह धम्म की मूल चेतना थी— समता और करुणा पर आधारित समाज। अशोक ने इसे राजधम्म के रूप में लागू किया। फुले-शाहू-पेरियार ने इसे सामाजिक आंदोलन का रूप दिया। बाबा साहेब ने इसे संविधान में अमर कर दिया।

लेकिन आज विडंबना यह है कि जिन नेताओं और संगठनों ने बहुजन चेतना को आगे ले जाने का दावा किया, वे आरामगाहों और वातानुकूलित गाड़ियों से बाहर निकलना तक पसंद नहीं करते। जनता की पीड़ा पर केवल भाषण और पोस्टर ही रह गए हैं। सवाल उठता है— जब त्याग और बलिदान के लिए कोई तैयार नहीं, तो प्रबुद्ध भारत का निर्माण कैसे होगा?

याद रखिए—

  • “मनुस्मृति जला दो, तभी इंसान आज़ाद होगा।” — जोतिबा फुले
  • “मनुष्य जन्म से नहीं, कर्म से महान होता है।” — बुद्ध
  • “राजनीतिक सत्ता ही सारी सामाजिक समस्याओं की कुँजी है।” — अंबेडकर

इसलिए आज आवश्यकता है एक नये महाआंदोलन की—
एक ऐसा आंदोलन, जो संविधानसम्मत शासन को धरातल पर उतारे।
एक ऐसा आंदोलन, जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर बहुजन एकता गढ़े।
एक ऐसा आंदोलन, जो केवल हक़ की मांग न करे, बल्कि न्याय की लड़ाई लड़े।

हमारे पुरखे बिना साधन-संसाधन के पैदल यात्राएँ करके धम्म का प्रचार कर गए। आज हमें भी उसी मार्ग पर चलना होगा। इसीलिए हम “ग्राम ज्ञान संस्थान/ छत्रपति शाहूजी महाराज शोध संस्थान/ खजूरगाँव” के योजना के तहत चंदौली जनपद के कोने-कोने धम्म यात्रा करेंगे, यह यात्रा अन्याय के किलों को चुनौती देगी और बहुजन चेतना का नया महागठबंधन गढ़ेगी।

यह केवल यात्रा नहीं, बल्कि एक जीवित घोषणापत्र है—

  • ब्राह्मणवाद, पूंजीवाद और सामंतवाद के विरुद्ध सीधा प्रतिरोध।
  • बहुजन समाज की एकता और आत्मसम्मान का शंखनाद।
  • और संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए संघर्ष का व्रत।

सत्ता यदि अन्यायपूर्ण हो तो उसका प्रतिरोध ही धर्म है।” — भगत सिंह

हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि यह संघर्ष किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के विरुद्ध नहीं, बल्कि उस शोषणकारी मानसिकता के खिलाफ है जिसने बहुजनों को सदियों से गुलाम बनाए रखा। इस संघर्ष का अंतिम लक्ष्य है— प्रबुद्ध भारत का निर्माण।

हम इतिहास के निर्माता हैं। हमें अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करना होगा।” — डॉ. अंबेडकर

नमो बुद्धाय।
जय भीम।
सत्यमेव जयते।

★★★


रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ जनकवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
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Friday, 5 September 2025

विद्यालय से विश्वविद्यालय तक गुरु-शिष्य

विद्यालय से विश्वविद्यालय तक की मेरी यात्रा में, निस्संदेह मेरे सुपरहीरो मेरे शिक्षक ही रहे हैं, लेकिन ज़्यादातर आदरणीय शिक्षक ही मिले, अनुकरणीय कुछ गिने चुने ही हैं! उनमें से एक हैं गुरुवर श्री मुमताज़ अहमद जी।


इस स्मृति-विहीन समय में लगभग 12–13 वर्षों बाद रामनगर (वाराणसी) के एक सम्मान समारोह में गुरुवर श्री मुमताज़ अहमद जी से अचानक भेंट हुई। संयोग इतना अद्भुत कि उसी कार्यक्रम में गुरुवर्य की भी अपने गुरु से लगभग 40 वर्षों बाद मुलाकात हुई। यह क्षण अवर्णनीय रूप से सुखद रहा।

गुरुवर मुमताज़ अहमद जी 7वीं–8वीं कक्षा में मेरे कक्षाध्यापक रहे, पर आज भी गाँव में मेरी पहचान उनके शिष्य के रूप में ही होती है।
सच कहूँ तो आज तक मुझे इनके जैसा कोई और शिक्षक मिला ही नहीं, जिसके नाम से मेरी पहचान गाँव में गूँज उठे।

सभी प्रिय शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं को 'शिक्षक दिवस' की हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनायें सह सादर प्रणाम।🙏

__________________________________________

युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की तीन कविताएं :-

1).

*शिल्पकार की ललकार : ज्ञान और श्रम के दीपक*
                         —गोलेन्द्र पटेल


अंधकार टिक नहीं सकता,
जब ज्ञान का दीपक जलता है।
गुरु वह शक्ति हैं
जो आँखों में तर्क का उजाला भरते हैं,
मनुष्य को अंधविश्वास की बेड़ियों से
मुक्त कराते हैं।

गुरु वह नहीं
जो आस्था का बोझ लादें,
बल्कि वही हैं
जो विज्ञान की कसौटी पर
हर तथ्य को परखना सिखाते हैं
और निर्भीकता से
सही-गलत का निर्णय कराते हैं।

वे चरित्र गढ़ते हैं
जैसे संगतराश पत्थर से आकृति निकालता है।
कठिन चट्टानों से
वे भविष्य का आकार तराशते हैं,
सिखाते हैं कि संघर्ष ही
मनुष्य की पहचान है,
और श्रम से बड़ा कोई देवता नहीं।

वे मिट्टी की तरह लचीला बनाते हैं,
कुम्हार की तरह भविष्य का चाक घुमाते हैं।
बताते हैं कि मानवता का सबसे बड़ा दीपक
ज्ञान और श्रम से जलता है,
न कि किसी चमत्कार से।

शिक्षक राष्ट्र के निर्माता हैं—
वे किताबों से अधिक
सोचने का विज्ञान पढ़ाते हैं,
आलोचना का साहस जगाते हैं,
नई पीढ़ी को तैयार करते हैं
ताकि वह अंधकार से टकराकर
भविष्य का सूरज गढ़ सके।

उनकी वाणी प्रेरणा का प्रवाह है,
उनका श्रम सामाजिक परिवर्तन का औजार।
वे सिखाते हैं:
मनुष्य ही इतिहास का असली शिल्पकार है
और समाज वही आगे बढ़ता है
जहाँ ज्ञान और श्रम को
समान सम्मान मिलता है।

अंधेरे की चट्टान पर हथौड़े की हर चोट
विज्ञान की धार बन जाती है—
न देवता, न मंत्र,
बस तर्क की छेनी
जो अज्ञान को चीरती है।

मिट्टी के लोथड़े से वे भविष्य गढ़ते हैं,
कुम्हार की तरह,
पर चाक उनका क्रांति का चक्र है।
बाजार की बाढ़ और नकली चमक के बीच
वे धरती को मजबूत बनाते हैं,
उपयोगी और अटूट।

चुनौतियाँ उनके लिए रुकावट नहीं—
वे ईंधन हैं।
समाज की दरारों को भरते हैं,
चरित्र की नींव डालते हैं,
सोच को आलोचना की आग में पकाते हैं
ताकि निकले प्रगति का सूरज
बिना किसी छाया के।

वे मार्गदर्शक ही नहीं, क्रांतिकारी हैं—
ज्ञान की लहरें फैलाते हैं,
जहाँ हर बच्चा नेता बने,
बंधन टूटें, विचार उड़ान भरें,
और राष्ट्र की एकता
वैज्ञानिक चेतना से गढ़ी जाए।

नहीं दोहराव, बस धारदार स्वर—
वे व्यक्तिगत विकास की आग जगाते हैं,
समस्या-समाधान की तलवार थमाते हैं
और पुकारते हैं:
“उठो, तराशो अपना कल,
क्योंकि शिक्षक नहीं रुकते,
क्रांति अनवरत चलती है।”
★★★


2).

*क्रांति का आलोक : गुरु–शिष्य, शिक्षा और मुक्ति*
                            —गोलेन्द्र पटेल


गुरु सिर्फ़ ज्योति नहीं,
वह मशाल है—
जो अँधेरे चीरती है,
सदियों की गुलामी तोड़ती है,
जाति की जंजीरें गलाती है।

शिक्षक केवल पाठ का व्यापारी नहीं,
वह भविष्य का शिल्पकार है—
जहाँ दलित–बहुजन की संतानें
गुलाम नहीं, शेर कहलाती हैं,
समानता की दहाड़ से गूँज उठती हैं।

गुरु वह है
जो परंपराओं की कैद को तोड़े,
स्वतंत्रता का मन्त्र दे,
तर्क का दीपक जलाए
और कहे—
“मनुष्य बनो, स्वाधीन बनो।”

शिक्षा—
काग़ज़ी डिग्री नहीं,
संघर्ष का शस्त्र है,
आत्मसम्मान का घोष है,
अंधविश्वास और ब्राह्मणवादी जाल
तोड़ने का तीखा हथियार है।

जब फुले ने पहला स्कूल खोला,
तो वह सिर्फ़ अक्षरज्ञान नहीं,
जाति की दीवार गिरा रहे थे।
सावित्रीबाई पर कीचड़ फेंका गया,
पर वही कीचड़ बहुजन चेतना की मिट्टी बना,
क्रांति के फूल खिला गया।

अंबेडकर ने कहा—
“शिक्षा शेरनी का दूध है।”
हाँ, गुरु वही है
जो शिष्य के भीतर शेर जगाए,
गुलामी की आदत मारे,
सिंहनाद करना सिखाए।

विद्यालय अगर सिर्फ़ किताबों तक सीमित है,
तो अधूरा है।
विश्वविद्यालय अगर केवल डिग्रियाँ बाँटे,
तो निरर्थक है।
सच्चा शिक्षालय वही है—
जहाँ आलोचना जन्म ले,
सोचने का साहस पनपे,
“क्यों?” और “कैसे?”
हर पाठ का हिस्सा बनें।

विद्यार्थी—
अनुशासन का गुलाम नहीं,
अन्याय का सबसे पहला प्रतिरोधक है।
गुरु–शिष्य परंपरा झूठ है,
जब तक गुरु शिष्य को
जाति–धर्म की कैद से मुक्त कर
मनुष्यत्व का पाठ न पढ़ाए।

सच्चा शिक्षक वही है
जो सिखाए—
“संविधान तुम्हारा शस्त्र है,
संघर्ष तुम्हारा मार्ग है,
बराबरी तुम्हारा धर्म है।”

ज्ञान—
संस्कृत श्लोकों का संग्रह नहीं,
मज़दूर की पुकार है,
किसान की कराह है,
स्त्री की मुक्ति की ज़िद है,
बहुजन का आत्मबोध है।

गुरु का धर्म है
दलित को ब्राह्मण का शिष्य न बनाना,
बल्कि मनुष्य का स्वामी बनाना।
शिक्षक का धर्म है
वंचित की प्रतिभा पहचानना,
उसे ऊँचाई देना
और कहना—
“भविष्य तेरे हाथ में है।”

आज ज़रूरत है
बुद्ध और कबीर जैसे मार्गदाताओं की,
फुले और सावित्रीबाई जैसे शिक्षकों की,
अंबेडकर और पेरियार जैसे पथप्रदर्शकों की,
जो शिक्षा को शांति-क्रांति का घोषणापत्र बनाएँ।

यह विद्रोह का मन्त्र है,
बहुजन समाज को जगाने वाली चेतावनी—
“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।”

गुरु आता है तूफ़ान बनकर,
अविद्या की कालकोठरी फाड़कर
प्रकाश बिखेरता है।
नहीं केवल ज्ञान,
बल्कि विद्रोह की आग और समानता का हथियार सौंपता है।

वह क्रांति का सेनापति है,
भविष्य का शिल्पकार है,
जो दलित बस्तियों में स्कूल खोलता है,
महिलाओं को उड़ान देता है,
हर हाथ में कलम,
हर ज़ुबान में विद्रोह थमाता है।

गुरु–शिष्य का बंधन
पवित्र नहीं, युद्ध का संधि–पत्र है—
जहाँ शिष्य बनता है योद्धा,
गुरुकुल क्रांति का अड्डा होता है,
जहाँ वेदों से नहीं,
संविधान की धाराओं से जीवन बहता है।

विद्यार्थी जीवन—
संघर्ष का मैदान है।
छुआछूत की चोट सहकर,
अनुशासन से संगठित होकर
बहुजन सेनाएँ गढ़ता है।
उसकी निष्ठा सत्ता के प्रति नहीं,
न्याय के प्रति होती है।

विद्यालय की नींव
बराबरी पर टिकनी चाहिए।
विश्वविद्यालय
स्वतंत्रता का किला होना चाहिए।
डिग्री का नहीं,
क्रांति का पुल होना चाहिए—
जहाँ वंचित नेता बनते हैं,
छिपी प्रतिभाएँ ज्वालामुखी बनकर फूटती हैं।

फुले ने स्कूल खोले,
सावित्रीबाई ने आग लगाई,
अंबेडकर ने घोषणा की—
“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।”
यही है गुरु–शिष्य की क्रांति का घोषणा–पत्र।

गुरु देवता नहीं,
मानव उत्थान का योद्धा है।
शिक्षक वेतनभोगी नहीं,
समाज का क्रांतिकारी है।
अंबेडकरवादी तीर से
असमानता को भेदता है,
दलित चेतना की आग से
कुरीतियों को जलाता है।

यह कविता नहीं—
विद्रोह का मैनिफेस्टो है।
यह प्रेरणा का स्रोत है
जहाँ हर शिष्य गुरु बनता है।
उठो बहुजन!
शिक्षा की तलवार थामो,
जंजीरें तोड़ो,
समता और न्याय का नया भारत गढ़ो।

बौद्ध नैतिकता से करुणा बहाओ,
वंचित को अधिकार दिलाओ,
गुरु को ईश्वर से ऊपर मानो,
क्योंकि वही अंधकार नहीं,
शोषण से मुक्ति देता है।

क्रांति का आलोक फैलाओ—
हर कक्षा, हर गुरुकुल में।
बहुजन का सूरज उगाओ—
जो कभी न डूबे।
संघर्ष अनंत है,
पर विजय निश्चित है—
शिक्षा से, गुरु से, शिष्य से,
क्रांति से
संतों का सपना साकार करो—
“ऐसा चाहूँ राज मैं,
जहाँ मिलै सबन को अन्न। 
छोट बड़ो सब सम बसै,
रैदास रहै प्रसन्न।”
★★★

3).

*शिक्षक*

—गोलेन्द्र पटेल 

शिक्षा सृष्टि की सबसे महान रोशनी है 

सीखना और सिखाना क्रिया के बीच 
मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ एक शिक्षार्थी हूँ
लेकिन कुछ लोग हैं 
कि मुझे शिक्षक समझते हैं

क्योंकि 
भाषा में एक पुरखे कवि* ने अर्ज़ की है,
“प्रत्येक कवि शिक्षक होता है,
मैं चाहता हूँ कि या तो मैं शिक्षक समझा जाऊँ
या कुछ नहीं।”

समझने और समझाने के बीच 
शिक्षक जीवनपर्यंत शिक्षक बना रहता है 
अपने शिक्षार्थी को नया जीवन देते हुए
यह सीख देते हुए 
कि ऐसे सीखो कि जैसे सदैव जीना है 
सफलता का अमृत पीने से पहले 
असफलता का विष पीना है

शिक्षक होना 
असल में उदात्त उजाले को उचित दिशा दिखाना है!
★★★

*वर्ड्सवर्थ 
__________________________________________

★★★


रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ जनकवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


Thursday, 4 September 2025

गुरु, शिक्षक और शिक्षा : अंधकार से मुक्ति का अंबेडकरवादी घोषणापत्र — गोलेन्द्र पटेल

 गुरु, शिक्षक और शिक्षा : अंधकार से मुक्ति का अंबेडकरवादी घोषणापत्र
—गोलेन्द्र पटेल



भारतीय समाज में "गुरु" और "शिक्षक" की भूमिका सदियों से चर्चा का विषय रही है। पारंपरिक धारणाओं में गुरु को देवताओं से भी ऊँचा स्थान दिया गया, क्योंकि वे अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान का प्रकाश देते हैं। किंतु प्रश्न यह है कि यह "प्रकाश" किसके हिस्से आया और किसे अंधकार में ही छोड़ दिया गया? किसके लिए गुरुकुलों के द्वार खुले रहे और किसे वहाँ प्रवेश करने से रोका गया? यही प्रश्न आज हमें गुरु-शिष्य परंपरा को अंबेडकरवादी दृष्टि से पुनर्परिभाषित करने के लिए मजबूर करता है।

शिक्षा : दमन से मुक्ति का औज़ार

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने शिक्षा को मुक्ति और समानता का सबसे बड़ा हथियार बताया। उनका वाक्य आज भी गूंजता है—
"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पिएगा वही दहाड़ेगा।"
यह दहाड़ केवल व्यक्तिगत उन्नति की नहीं, बल्कि सामूहिक मुक्ति और सामाजिक क्रांति की है। इसलिए गुरु और शिक्षक का असली कर्तव्य केवल पाठ्यपुस्तकें पढ़ाना नहीं, बल्कि शोषित-उत्पीड़ित समाज को अपने पैरों पर खड़ा करना, उनमें आत्मसम्मान जगाना और उन्हें संघर्ष के लिए तैयार करना है।

गुरु-शिष्य परंपरा : आलोचनात्मक पुनर्पाठ

भारतीय परंपरा में गुरु-शिष्य संबंध को पवित्र माना गया, किंतु वास्तविकता यह है कि यह परंपरा जाति और वर्ण की दीवारों में कैद थी। शूद्रों, दलितों और स्त्रियों को ज्ञान से वंचित रखकर इस परंपरा ने सदियों तक अंधकार को ही उनका भाग्य बना दिया।
आज आवश्यकता है कि हम इस परंपरा को पुनर्परिभाषित करें—

गुरु वह है जो शोषण के खिलाफ संघर्ष का रास्ता दिखाए।

शिक्षक वह है जो समाज के वंचित वर्गों में आलोचनात्मक सोच और आत्मविश्वास पैदा करे।

गुरु और शिक्षक की कसौटी यह होनी चाहिए कि वह ज्ञान किसे उपलब्ध करा रहा है और किसे परिवर्तन के लिए तैयार कर रहा है।


अंबेडकरवादी गुरु : ज्ञान और क्रांति का संगम

अंबेडकर ने कहा था— "शिक्षित बनो, संगठित रहो, और संघर्ष करो।" यह केवल नारा नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा के नए स्वरूप का घोषणापत्र है।

गुरु का कार्य अब केवल शिष्य के चरित्र निर्माण तक सीमित नहीं, बल्कि उसके भीतर अन्याय के खिलाफ लड़ने की चेतना जगाना है।

शिक्षक का कर्तव्य है कि वह छात्र को विज्ञान, तर्क और समानता की दृष्टि से सुसज्जित करे, ताकि वह परंपरा और रूढ़ियों की गुलामी से मुक्त हो सके।


बहुजन महापुरुष और शिक्षा की क्रांति

ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले और बाबासाहेब अंबेडकर जैसे महापुरुषों ने शिक्षा को क्रांति का औज़ार बनाया।

सावित्रीबाई फुले ने पहला विद्यालय खोलकर स्त्रियों और दलितों को शिक्षा का अधिकार दिया। वे असली "जनगुरु" थीं, जिनकी क्रांति आज भी प्रेरणादायक है।

ज्योतिबा फुले ने "सत्यशोधक समाज" के माध्यम से ज्ञान को ब्राह्मणवादी वर्चस्व से मुक्त कर बहुजनों के हाथ में सौंपा।

अंबेडकर ने शिक्षा को केवल व्यक्तिगत सफलता का साधन नहीं माना, बल्कि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की नींव के रूप में स्थापित किया।


शिक्षा : आत्मसम्मान और संघर्ष की धुरी

अंबेडकरवादी दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि शिक्षा का असली उद्देश्य नौकरी पाना या डिग्री अर्जित करना भर नहीं है।

यह आत्मसम्मान जगाने का माध्यम है।

यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आलोचनात्मक सोच विकसित करने का साधन है।

यह जाति, लिंग और वर्ग आधारित अन्याय को पहचानने और उसके खिलाफ खड़े होने की ताक़त देती है।


आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की चुनौतियाँ

आज विश्वविद्यालय और विद्यालय "ज्ञान" तो बाँट रहे हैं, लेकिन यह ज्ञान किसकी सेवा कर रहा है? क्या यह शिक्षा गरीब, दलित, आदिवासी और स्त्रियों को बराबरी दे रही है, या फिर उन्हें बाज़ार और सत्ता का उपकरण बना रही है?
अंबेडकरवादी दृष्टिकोण कहता है कि शिक्षा तभी सार्थक है, जब वह समाज में बराबरी और न्याय को मज़बूत करे, न कि असमानता को और गहरा करे।

घोषणापत्र : नए युग का गुरु-शिष्य संबंध

1. गुरु-शिष्य परंपरा अब केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि संघर्ष और परिवर्तन की साझेदारी है।


2. हर शिक्षक का कर्तव्य है कि वह बहुजन बच्चों को मुख्यधारा से जोड़कर उनमें आत्मविश्वास पैदा करे।


3. शिक्षा को बाज़ार और जाति की कैद से मुक्त कर, उसे सामाजिक न्याय की धुरी बनाया जाए।


4. असली गुरु वही है, जो शिष्य को प्रश्न करना सिखाए, न कि अंधविश्वास में झुकना।


5. अंबेडकरवादी शिक्षक वही है, जो "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो" का जीवन्त उदाहरण बने।



निष्कर्ष

गुरु और शिक्षक का महत्व निर्विवाद है, लेकिन उनकी भूमिका का पुनर्पाठ करना ज़रूरी है। आज हमें ऐसे गुरु चाहिए, जो केवल ज्ञान न दें, बल्कि न्याय और समानता के लिए लड़ने की प्रेरणा दें। ऐसे शिक्षक चाहिए, जो केवल पाठ्यक्रम न पढ़ाएँ, बल्कि बहुजन समाज की चेतना को जगाएँ।
यही अंबेडकरवादी शिक्षा का मार्ग है—
ज्ञान से मुक्ति, शिक्षा से क्रांति और गुरु-शिष्य परंपरा से सामाजिक न्याय की स्थापना।

★★★


रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
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