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धम्म दीपोत्सव / धम्म दीपदानोत्सव / प्रज्ञात्मक प्रकाशोत्सव / बौद्ध धम्म दीपोत्सव पर्व : गोलेन्द्र पटेल

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 'धम्म दीपोत्सव' की हार्दिक शुभकामनाएं! नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स। बुद्धं सरणं गच्छामि। धम्मं सरणं गच्छामि। संघं सरणं गच्छामि। चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय लोकानुकंपाय अत्थाय हिताय सुखाय देव मनुस्सानं। -देसेथ भिक्खवे धम्मं आदिकल्याण मंझे कल्याणं- परियोसान कल्याणं सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुन्नं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेथ। [महावग्ग: : विनयपिटक] सवर्णवादी/ ब्राह्मणवादी बौद्ध भिक्खुओं का मानना है कि "धम्म दीपोत्सव" वैशाख पूर्णिमा या आषाढी पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमा या अशोक धम्मविजय दसमी या 14 अप्रैल को मनाया जाना चाहिए, कार्तिक अमावस्या के दिन नहीं, क्योंकि इस दिन उनकी सजातियों की दीपावली है। बहरहाल, हमारा मानना है कि असली बौद्ध भिक्खुओं, भिक्खुनियों, उपासकों, उपासिकाओं को अपने उत्सव, महोत्सव, पर्व, त्योहार या किसी भी तरह की धम्मतिथि को हाइजै़क होने से बचाना चाहिए। कार्तिक अमावस्या के दिन ही धम्म दीपोत्सव / धम्म दीपदानोत्सव / प्रज्ञात्मक प्रकाशोत्सव मनाना चाहिए, क्योंकि ज़्यादातर इस दिन आपके लोग ही यानी बहुजन समाज के लोग ही अंधविश्वास क

दंगे देश को नंगे करते हैं : गोलेन्द्र पटेल

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बेरोज़गारी व्यक्ति को बर्बरता की ओर ढकेलती है! आह! वेदना हो रही है वायरल  इंसानियत से बड़ी कोई चीज़ नहीं संवेदना को महसूस करने के लिए  संगीत काफ़ी है  बेरोज़गारी व्यक्ति को बर्बरता की ओर ढकेलती है! भीड़ अँधी-बहरी ही नहीं, बल्कि बर्बर भी होती है  ओह! राजनीतिक उथल-पुथल की ख़बरें आ रही हैं  तख़्त गिराए जा रहे हैं, ताज उछाले जा रहे हैं ये आक्रोश, गुस्सा और घृणा के दिन हैं करुणा! भाषा में क्रूरता कूज रही है  क्योंकि, मानवाधिकार के ख़िलाफ़ साम्प्रदायिक हथियार हैं चीख़ और चुप्पी के बीच से समझदारी गायब है  दुविधा और उदासीनता के स्वर ऊँचे हैं लोग ज़ोर-ज़ोर से बोल रहे हैं  प्रगतिशीलजन अमानवीय घटनाओं पर नहीं बोल रहे हैं  बुद्धजीवी परजीविता और आतंकवाद की राह पकड़ रहे हैं  जन प्रतिरोध नया सवेरा लाने में असमर्थ है  हक़ और हुकूमत के बीच लड़ाई जारी है  स्वतंत्रता और स्वाधीनता से कोसों दूर  जो संवेदनशील हैं, वे प्रतिक्रियावादी हैं  वे हवा में अमन, चैन, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की कामना कर रहे हैं वे कह रहे हैं, दंगे देश को नंगे करते हैं  उस देश में उनके धर्म के लोग  प्रताड़ित किये रहे हैं, मारे जा रह

तुझसे डर नहीं मृत्यु (आत्मकथा)

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तुझसे डर नहीं मृत्यु आसमान नीचे देख रहा है फूल की व्यथा  रंग नहीं, गंध कहती है  खेत की आत्मकथा  कलम से नहीं, कुदाल से लिखी जाती है  किस के हाथों में कुदाल है? किस के दिल में फाल है? किस के दिमाग़ के स्मृतिकक्ष में कोई जीवित पात्र है? लेखन में कौन ईमानदार है? सच लिखने का साहस किस में है? किस का जीवन आलोक पुंज है? किस की प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीड़ा है? कौन जानता है आँसू की क़ीमत? भाषा में कितनी दुखी इड़ा है! सागर शांत है सड़क पर सन्नाटा पसरा है जंगल बोल रहा है कि पहाड़ का घाव गहरा है  वन-बुद्धिजीवी! जन-बुद्धिजीवी! यादें ज़िन्दा रहेंगी... सफ़र के संधि स्थल पर  दु:ख में तपे हुए इंसान की कथनी-करनी में कोई अंतर नहीं होता  न तो मैं जूठन पढ़कर विचलित हुआ  न ही मुर्दहिया  न ही कोई जातिदंश की दस्तावेज़ न ही कोई अपमानबोध की अंतहीन कथा  न ही कोई अन्तरावलंबित समाज की अंतर्कथा पढ़कर  मुझे आधी आबादी की आत्मकथाएँ भी नहीं रुला पातीं ऐसा नहीं है कि उनमें क्षमता नहीं है  या फिर उनमें वह आग नहीं है  जो हृदय में रोष का राग छेड़ सके जो करुणा को क्रोध में तब्दील कर सके अन्याय के ख़िलाफ़  अस्मिता और अस्प

चंदौली जिले के गाँवों की सूची | चंदौली जिले में कुल 1629 गाँव हैं

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चन्दौली ज़िला Chandauli district सूचना राजधानी  : चन्दौली क्षेत्रफल  : 2,484.70 किमी² जनसंख्या (2011):  •  घनत्व  : 19,52,713  790/किमी² उपविभागों के नाम: तहसील मुख्य भाषाएँ: हिन्दी ,  भोजपुरी चंदौली जिले के गाँवों की सूची :- प्रशासनिक प्रयोजन के लिए वर्ष 1997 में जिला   वाराणसी   से अलग कर जिला   चंदौली   का गठन किया गया। जिला पवित्र   गंगा नदी   के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में स्थित है। जिला इसकी तहसील मुख्यालय के नाम के नाम पर है। चंदौली जिले में 5 तहसील हैं । इनके नाम सदर, सकलडीहा, चकिया, पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर (मुगलसराय) और नौगढ़ हैं। 2024 के आंकड़ों के अनुसार जिले में 09 ब्लॉक हैं। चंदौली जिले में कुल 1629 गाँव हैं।  इस जिले में कुल 4 विधानसभा   सैयदराजा , चकिया , सकलडीहा , पं . दीनदयाल उपाध्याय नगर ( मुगलसराय ) तथा एक लोकसभा संसदीय क्षेत्र चंदौली है। प्रस्तुत सूची में हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि व लेखक गोलेन्द्र पटेल की जन