बीहड़ों की साँसों में गूँजता था उनका नाम,
अन्याय के अंधेरों में चमकती थी उनकी आँखों की ज्वाला।
वो आई थीं, आँसू बहाने नहीं —
बल्कि इतिहास की दीवारों पर गोली से लिखने।
जिन्हें बचपन ने जंजीरों में बाँधना चाहा,
उन्हें चट्टानों ने तलवार बना दिया।
रात की दरिंदगी को दिन की अदालत में घसीटा,
और फैसले बंदूक की नली से सुनाए।
वो समझ चुकी थीं —
बाल्टी में बैठकर बाल्टी नहीं उठाई जाती।
इसलिए उन्होंने
धर्म का वह झूठा आसमान छोड़ दिया
जहाँ चार रंगों में बाँटी जाती थी इंसान की रौशनी।
उन्होंने अपनाया बुद्ध का मार्ग,
जहाँ मानवता एक है और सम्मान जन्मसिद्ध अधिकार।
उनकी हर साँस चेतावनी थी —
कि पीड़ित जब उठता है,
तो सामंतों के महल हिल जाते हैं।
उनका हर कदम एक उद्घोष था —
"औरत सहने के लिए नहीं,
अन्याय मिटाने के लिए जन्म लेती है।"
टाइम मैगज़ीन ने नाम दिया "महान विद्रोही",
पर उनकी पहचान केवल किताबों में नहीं,
बल्कि उन आँखों में है
जो अब डर के साये में नहीं झपकतीं।
चंबल की रानी, संसद की शेरनी,
वो न गोली से डरती थीं,
न गिद्धों की गालियों से।
क्योंकि फूलन मिट्टी, लोहा, पत्थर, आग से बनी थीं—
और ऐसी चीज़ों को इतिहास कभी ख़ामोश नहीं करता।
आज, उनकी जयंती पर,
हम कसम खाते हैं —
ज़ुल्म सहना बंद करेंगे,
समानता का रास्ता चुनेंगे,
और हर फूलन के सपने को
आवाज़ देंगे।
फूलन घोषणापत्र
फूलन नाम नहीं—विद्रोह हैं!
बीहड़ों में जन्मीं, सत्ता को चीर गईं,
जाति के अहंकार को गोली में पिघला दिया,
मनुवादी मंदिर ढहा दिया।
बलात्कार का बदला लिया,
अन्याय की नींव हिला दी,
गाँव से संसद तक आग फैलाई,
वंचितों के लिए रास्ता बनाया।
बुद्ध की करुणा, रविदास का स्वप्न,
अंबेडकर का संविधान—
तीनों की ज्वाला बनकर जलीं,
और नारी के नवयुग को गढ़ा।
मनिपुर की चीखों से उठेंगी नई फूलनें,
दरिंदों का अंत करेंगी,
जंजीरों को तोड़ेंगी,
समानता की मशाल जलाएंगी।
हम कसम खाते हैं—
हर चिंगारी को फूलन बनाएंगे,
हर अन्याय का जवाब देंगे,
और इस धरती को बराबरी का घर बनाएंगे!
—गोलेन्द्र पटेल
★★★
रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
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